डेली न्यूज़ (18 Apr, 2023)



वन हेल्थ

One-Health


रिट

Writs


पशु महामारी तैयारी पहल और “वन हेल्थ के लिये पशु स्वास्थ्य प्रणाली सहायता”

प्रिलिम्स के लिये:

वन हेल्थ दृष्टिकोण, WHO, विश्व बैंक, ज़ूनोटिक रोग 

मेन्स के लिये:

पशु महामारी तैयारी पहल, वन हेल्थ, वन हेल्थ के लिये पशु स्वास्थ्य प्रणाली सहायता

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने पशुओं से मनुष्यों में फैलने वाली बीमारियों के खतरे को रोकने के लिये वन हेल्थ दृष्टिकोण के तहत पशु महामारी तैयारी पहल (Animal Pandemic Preparedness Initiative- APPI) शुरू की है।

  • वन हेल्थ दृष्टिकोण पर्यावरण, पशु और मानव स्वास्थ्य की परस्पर निर्भरता पर प्रकाश डालता है।
  • मंत्रालय ने विश्व बैंक द्वारा वित्तपोषित एनिमल हेल्थ सिस्टम सपोर्ट फॉर वन हेल्थ (AHSSOH) परियोजना भी शुरू की है।

पशु महामारी तैयारी पहल:

  • परिचय: 
    • यह पहल विश्व स्वास्थ्य संगठन की ग्लोबल वन हेल्थ रणनीति के अनुरूप है, जो ज़ूनोटिक रोगों के खतरे को दूर करने में बहुक्षेत्रीय सहयोग पर ज़ोर देती है।
    • यह पशु चिकित्सा सेवाओं और बुनियादी ढाँचे, रोग निगरानी क्षमताओं, शीघ्र पहचान एवं प्रतिक्रिया, पशु स्वास्थ्य पेशेवरों की क्षमता का निर्माण तथा सामुदायिक पहुँच के माध्यम से किसानों के बीच जागरूकता बढ़ाने में मदद करेगी। 
  • APPI के स्तंभ: 
    • रोग निगरानी और नियंत्रण। 
    • रोग मॉडल एल्गोरिद्म और प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली।
    • प्रकोप जाँच और प्रतिक्रिया।
    • पारिस्थितिक तंत्र समन्वय।
    • टीका विकास और अनुसंधान तथा विकास। 
    • आपदा प्रतिरोध का निर्माण।
    • अनुदान।
    • नियामक ढाँचा।  
  • उद्देश्य:
    • इस पहल का उद्देश्य ज़ूनोटिक रोगों को रोकने और नियंत्रित करने के लिये भारत की तैयारी और प्रतिक्रिया क्षमताओं को बढ़ाना है, ताकि जानवरों तथा मनुष्यों दोनों के स्वास्थ्य की रक्षा हो सके। 

वन हेल्थ के लिये पशु स्वास्थ्य प्रणाली सहायता (AHSSOH):

  • इसका उद्देश्य वन हेल्थ दृष्टिकोण (One Health Approach) को ध्यान में रखकर बेहतर पशु स्वास्थ्य प्रबंधन प्रणाली के लिये एक पारिस्थितिकी तंत्र बनाना है। 
  • परियोजना को केंद्रीय क्षेत्र योजना के रूप में पाँच साल की अवधि हेतु लागू किया जाएगा।
  • इसमें भाग लेने वाले पाँच राज्यों के 151 ज़िलों को कवर करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, जिसमें 75 ज़िला/क्षेत्रीय प्रयोगशालाओं को अपग्रेड करने के साथ-साथ 300 पशु चिकित्सालयों/ औषधालयों के सुदृढ़ीकरण पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

पशुधन रोग दबाव और पशुधन क्षेत्र का परिदृश्य (Scenario of Livestock Diseases Burden and Livestock Sector) 

Livestock-Disease Indian-Livestock-Sector

राष्ट्रीय वन हेल्थ मिशन ( National One Health Mission- NOHM):

  • वन हेल्थ: 
    • वन हेल्थ (One Health) के तहत स्वास्थ्य, उत्पादकता और संरक्षण चुनौतियों को हल करने हेतु विभिन्न क्षेत्रों बीच समन्वय सुनिश्चित करना है, जो भारत के विविध वन्य जीवन, बड़ी पशुधन आबादी और उच्च मानव घनत्व के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • कोविड-19, गाँठदार त्वचा रोग और एवियन इन्फ्लूएंज़ा (Avian influenza-AI) जैसे हाल के रोग प्रकोपों से पता चलता है कि केवल मानवीय दृष्टिकोण से बीमारी को संबोधित करना पर्याप्त नहीं है। हमें पशुधन और वन्य जीवन पर भी विचार करने की आवश्यकता है।
  • परिचय: 
    • NOHM, प्रधानमंत्री विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार सलाहकार परिषद (PM-STIAC) की 21वीं बैठक में अनुमोदित अंतर-मंत्रालयी प्रयास है।  
    • NOHM को अन्य मंत्रालयों के सहयोग से स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा लागू किया जाएगा।

  • उद्देश्य: 
    • NOHM रोग नियंत्रण और रोकथाम के लिये समग्र एवं एकीकृत दृष्टिकोण को बढ़ावा देने हेतु मानव, पशु तथा पर्यावरणीय स्वास्थ्य की अन्योन्याश्रितता को संबोधित करने पर ध्यान केंद्रित करेगा।
    • इसका उद्देश्य मानव, पशु और पर्यावरणीय स्वास्थ्य की अन्योन्याश्रितता को उजागर करते हुए भारत में रोग नियंत्रण एवं रोकथाम हेतु एक समन्वित तथा एकीकृत दृष्टिकोण को बढ़ावा देना है।
  • घटक: 
    • ज़ूनोटिक रोगों और रोगाणुरोधी प्रतिरोध हेतु निगरानी एवं पूर्व चेतावनी प्रणाली (Early Warning Systems) को मज़बूत करना।
    • वन हेल्थ क्षेत्र में अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देना।
    • स्वास्थ्य पेशेवरों, पशु चिकित्सकों और शोधकर्त्ताओं की क्षमता निर्माण में सुधार।
    • वन हेल्थ के मुद्दों पर जन जागरूकता और सामुदायिक जुड़ाव बढ़ाना।
    • वन हेल्थ हस्तक्षेप और रणनीतियों हेतु दिशा-निर्देश एवं नीतियाँ विकसित करना।
    • वन हेल्थ डेटा रिपॉज़िटरी और सूचना प्रणाली की स्थापना।
    • वन हेल्थ चुनौतियों का समाधान करने हेतु राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एवं साझेदारी को सुगम बनाना।

स्रोत: पी.आई.बी.


डिजिटल हेल्थ समिट 2023

प्रिलिम्स के लिये:

डिजिटल हेल्थ समिट 2023, 3D प्रिंटिग, चौथी औद्योगिक क्रांति, आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (AB-PMJAY), CoWIN एप, रैनसमवेयर हमला, ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी

मेन्स के लिये:

भारत में डिजिटल हेल्थकेयर से संबंधित मुद्दे, डिजिटल स्वास्थ्य से संबंधित प्रमुख सरकारी पहल  

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में गोवा में भारतीय उद्योग परिसंघ (Confederation of Indian Industry- CII) द्वारा डिजिटल हेल्थ समिट 2023 का आयोजन किया गया।

  • CII एक गैर-सरकारी, गैर-लाभकारी, उद्योग-आधारित और उद्योग-प्रबंधित संगठन है।

डिजिटल हेल्थ समिट 2023 की प्रमुख विशेषताएँ:

  • इसने डिजिटल स्वास्थ्य नवाचारों के महत्त्व पर प्रकाश डाला और बताया कि कैसे वे 3D प्रिंटिंग, पॉइंट-ऑफ-केयर डायग्नोस्टिक्स, रोबोट, जैव सूचना विज्ञान तथा जीनोमिक्स सहित घातीय चिकित्सा को सशक्त बना सकते हैं।
  • इसका उद्देश्य अंतरसंचालनीयता, डेटा गोपनीयता और डेटा सुरक्षा मानकों को बढ़ावा देने के लिये एक डिजिटल पब्लिक गुड्स फ्रेमवर्क बनाना है।
  • इसने उच्च गुणवत्तापूर्ण  चिकित्सा तक समान पहुँच के साथ "नागरिक केंद्रित" डिजिटल स्वास्थ्य प्रणालियों की आवश्यकता पर बल दिया।
  • साथ ही इस बात पर भी प्रकाश डाला कि स्वास्थ्य प्रौद्योगिकी चौथी औद्योगिक क्रांति का सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू है।

डिजिटल स्वास्थ्य देखभाल:  

  • परिचय:  
    • डिजिटल स्वास्थ्य सेवा चिकित्सा देखभाल वितरण की एक प्रणाली है जो गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा देखभाल सेवाओं को सुलभ, सस्ती और टिकाऊ बनाने के लिये डिजिटल तकनीकों की एक शृंखला का उपयोग करती है।
    • डिजिटल स्वास्थ्य के व्यापक दायरे में मोबाइल स्वास्थ्य (mHealth), स्वास्थ्य सूचना प्रौद्योगिकी (IT), पहनने योग्य उपकरण, टेलीहेल्थ और टेलीमेडिसिन और व्यक्तिगत चिकित्सा जैसी श्रेणियाँ शामिल हैं।
    • विश्व स्वास्थ्य सभा (World Health Assembly) द्वारा वर्ष 2020 में अपनाई गई डिजिटल स्वास्थ्य पर WHO की वैश्विक रणनीति, नवाचार और डिजिटल स्वास्थ्य में नवीनतम विकास को शामिल करने के लिये एक रोडमैप प्रस्तुत किया गया है जिसका उद्देश्य स्वास्थ्य परिणामों में सुधार हेतु इन उपकरणों का उपयोग करना है।
  • प्रमुख अनुप्रयोग:
    • प्वाइंट-ऑफ-केयर डायग्नोस्टिक्स: प्वाइंट-ऑफ-केयर डायग्नोस्टिक्स ("POCD") चिकित्सा उपकरण उद्योग में एक उभरती हुई प्रवृत्ति है और इसमें उत्पादों की एक विस्तृत शृंखला शामिल है जो रोगियों या स्वास्थ्य देखभाल चिकित्सकों द्वारा संसाधन सीमित समायोजन द्वारा सटीक निदान में सक्षम बनाती है।
      • हाल के दिनों में बायोसेंसर, पोर्टेबल एक्स रे, हैंडहेल्ड अल्ट्रासाउंड और स्मार्टफोन आधारित POCD जैसे कई एप्लीकेशन विकसित किये गए हैं।
    • चिकित्सा आभासी सहायक: आभासी स्वास्थ्य सहायक और चैटबॉट रोगियों तथा चिकित्सकों के बीच के अंतराल को भरते हैं तथा नियुक्ति निर्धारण, स्वास्थ्य रिकॉर्ड बनाए रखने एवं अन्य प्रशासनिक कार्यों जैसी सेवाओं के माध्यम से रोगियों की ज़रूरतों को पूरा करती हैं। 
    • स्व-निगरानी हेल्थकेयर डिवाइस: मॉनिटर और सेंसर अब पहनने योग्य उपकरणों में एकीकृत किये जा रहे हैं, जो इन्हें शरीर में विभिन्न शारीरिक परिवर्तनों का पता लगाने की अनुमति देते हैं। 
      • ये स्मार्ट डिवाइस वज़न, नींद के पैटर्न, आसन, आहार और व्यायाम को ट्रैक करने में सक्षम हैं।
    • ई-फार्मेसी: ई-फार्मेसी एक ऐसी फार्मेसी है जो इंटरनेट के माध्यम से कार्य करती है और मेल, कूरियर या डिलीवरी पर्सन के माध्यम से ऑर्डर का निपटान सुनिश्चित  करती है।
  • डिजिटल हेल्थकेयर के लाभ:
    • टेलीमेडिसिन ने स्वास्थ्य सेवा के विकेंद्रीकरण और दूरस्थ तथा उन्नत देखभाल तक पहुँच सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 
    • ग्रामीण और दूरदराज़ के क्षेत्रों के मरीज़ अब ऑनलाइन परामर्श और दवाओं की होम डिलीवरी के माध्यम से सस्ती एवं गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा प्राप्त कर सकते हैं।
    • डिजिटल उपकरण स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को स्वास्थ्य डेटा तक पहुँच प्रदान कर रोगी के स्वास्थ्य के बारे में व्यापक दृष्टिकोण प्रदान कर सकते हैं।

भारत में डिजिटल स्वास्थ्य देखभाल से संबंधित चुनौतियाँ:  

  • परिचय:  
  • भारत ने कोविड-19 महामारी को देखते हुए तीव्र गति से डिजिटल स्वास्थ्य को अपनाया है। इस अभूतपूर्व स्वास्थ्य संकट ने टेलीमेडिसिन को अपनाने का मार्ग प्रशस्त किया और इस प्रकार भारत में दूरस्थ तथा रोगी-केंद्रित देखभाल की शुरुआत हुई।
  • चुनौतियाँ:  
    • स्पष्ट विनियमों की अनुपस्थिति: स्पष्ट विनियमों और दिशा-निर्देशों के अभाव में दुर्व्यवहार, स्वास्थ्य संबंधी डिजिटल रिकॉर्ड का दुरुपयोग, डेटा चोरी तथा इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड का दुरुपयोग हो सकता है।
      • साथ ही डिजिटल बुनियादी ढाँचे एवं कुशल पेशेवरों की कमी भारत में स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के डिजिटलीकरण हेतु एक और बाधा है।
    • डेटा गोपनीयता और साइबर सुरक्षा: डिजिटल स्वास्थ्य सेवा में रोगी का विश्वास बनाए रखने हेतु डेटा गोपनीयता एवं साइबर सुरक्षा सुनिश्चित करना आवश्यक है। सुरक्षा उपायों की कमी से डेटा का उल्लंघन हो सकता है तथा रोगी के डेटा से समझौता हो सकता है।
    • ई-फार्मेसी को वैधानिक समर्थन नहीं: औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 भारत में दवाओं के आयात, निर्माण एवं वितरण को नियंत्रित करता है।
      • हालाँकि औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 या फार्मेसी अधिनियम, 1948 के तहत "ई-फार्मेसी" की कोई वैधानिक परिभाषा नहीं है।
  • डिजिटल स्वास्थ्य से संबंधित सरकारी पहल:  

डिजिटल स्वास्थ्य और नवाचार को बढ़ावा देने हेतु WHO के उद्देश्य: 

  • अंतर-संचालनीयता और डेटा शेयरिंग के लिये मानकों के निर्धारण के माध्यम से डेटा, अनुसंधान एवं साक्ष्य सुनिश्चित करना तथा सूचित निर्णय लेने के लिये डिजिटल समाधानों के कार्यान्वयन का समर्थन करना।
  • नई तकनीक द्वारा समर्थित अभ्यास में वैज्ञानिक समुदायों का उपयोग करके ज्ञान बढ़ाना और विशेषज्ञ दृष्टिकोण के बीच नैदानिक तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दों की चर्चा को सुविधाजनक बनाना।
  • देश की ज़रूरतों के आधार पर नवाचारों की पहचान, प्रचार, सह-विकास और वृद्धि के लिये एक सक्रिय रणनीति अपनाना। इसके तहत किसी देश के नवाचारों के माध्यम से ज़रूरतों एवं आपूर्ति के बीच समन्वय स्थापित किया जाता है।

आगे की राह

  • AI पावर्ड हेल्थकेयर: बड़ी मात्रा में डेटा का विश्लेषण, जाँच करने के लिये स्वास्थ्य क्षेत्र में कृत्रिम बुद्धिमता का तेज़ी से उपयोग किया जा रहा है।
    • इस तकनीक में लागत कम करने के साथ-साथ स्वास्थ्य सेवा वितरण की सटीकता और गति में सुधार करने की क्षमता है।
  • हेल्थकेयर में ब्लॉकचेन: ब्लॉकचेन तकनीक स्वास्थ्य डेटा की सुरक्षा और गोपनीयता में सुधार करने के साथ-साथ स्वास्थ्य देखभाल प्रक्रियाओं को कारगर बनाने में मदद कर सकती है।
    • ब्लॉकचेन सूचनाओं को संगृहीत और साझा करने के लिये एक सुरक्षित और पारदर्शी तरीका प्रदान करता है, इससे त्रुटियों, धोखाधड़ी एवं प्रशासनिक लागतों को कम करने में मदद मिल सकती है।
  • मोबाइल हेल्थ (mHealth): mHealth के अंतर्गत अप्रत्यक्ष तौर पर स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के लिये मोबाइल उपकरणों और एप्स का उपयोग करना शामिल है।
    • यह विशेष रूप से स्वास्थ्य सेवा तक सीमित पहुँच वाले ग्रामीण क्षेत्रों में उपयोगी हो सकता है। mHealth रोगियों को पुरानी स्वास्थ्य स्थितियों का प्रबंधन करने और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के साथ अधिक आसानी से सामंजस्य स्थापित करने में भी मदद कर सकता है।

स्रोत: पी.आई.बी.


आपराधिक जाँच में आवाज़ के नमूने

प्रिलिम्स के लिये:

आपराधिक जाँच में आवाज़ के नमूने, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो, निजता का अधिकार

मेन्स के लिये:

आपराधिक जाँच में आवाज़ पहचान तकनीक की विश्वसनीयता और सटीकता, न्यायालय में सबूत के रूप में आवाज़ के नमूने के उपयोग संबंधी कानूनी और नैतिक विचार।

चर्चा में क्यों?

वर्ष 1984 के सिख विरोधी दंगों में कथित संलिप्तता के संबंध में हाल ही में एक राजनेता को एक विशेष भाषण की पुष्टि हेतु अपनी आवाज़ के नमूने प्रस्तुत करने के लिये केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो के समक्ष उपस्थित होना पड़ा।

  • आवाज़ के नमूने आपराधिक जाँच में महत्त्वपूर्ण स्रोत बन गए हैं, जिससे जाँचकर्त्ताओं को सबूतों की पुष्टि करने एवं संदिग्धों की पहचान करने की अनुमति मिलती है। 

आवाज़ के नमूने प्राप्त करने की प्रक्रिया: 

  • प्रक्रिया:  
    • जाँच एजेंसियाँ किसी व्यक्ति की आवाज़ का नमूना लेने के लिये न्यायालय की अनुमति लेती हैं। आवाज़ का नमूना लेने का कार्य एक नियंत्रित और शोर-मुक्त वातावरण में किया जाता है
    • नमूना रिकॉर्ड करने के लिये वॉयस रिकॉर्डर का उपयोग किया जाता है जिसमें संबद्ध व्यक्ति से उसके बयान के हिस्से के किसी विशिष्ट शब्द को बोलने के लिये कहा जाता है जो पहले से ही साक्ष्य का हिस्सा होता है। 
  • तुलना की विधि: 
    • पाँच संदिग्ध लोगों और एक अज्ञात आवाज़ के नमूने की तुलना की जाती है; वक्ता की पहचान के साथ ही दोनों आवाज़ के नमूनों की पुष्टि हो जाती है।
    • आवाज़ रिकॉर्ड करने हेतु अंतर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक अक्षरों का उपयोग किया जाता है जिसमें विषय के मूल कथन का केवल एक छोटा सा हिस्सा (विश्लेषण में आसानी हेतु) उच्चारित किया जाता है। 
    • भारत में आवाज़ का नमूना लेने की प्रक्रिया:  
      • भारतीय फोरेंसिक प्रयोगशालाओं में आवाज़ के नमूने की सेमी-ऑटोमैटिक स्पेक्ट्रोग्राफिक पद्धति का उपयोग किया जाता है।
      • फोरेंसिक लैब जाँच एजेंसी को अंतिम रिपोर्ट सौंपती है, जिसमें बताया जाता है कि आवाज़ के नमूने के विश्लेषण के परिणाम सकारात्मक हैं अथवा नकारात्मक।
    • हालाँकि कुछ देशों में स्वचालित पद्धति का उपयोग किया जाता है, जिसमें आवाज़ के नमूनों को संभावित अनुपात में विकसित किया जाता है। इससे दक्षता बढ़ती है।
  • कमियाँ: 
    • यदि दवाओं के प्रभाव के कारण व्यक्ति की आवाज़ बदल जाती है या यदि व्यक्ति सर्दी से पीड़ित है तो परिणाम में अशुद्धि उत्पन्न हो सकती है।
    • इस नमूने की विश्वसनीयता विशेषज्ञ द्वारा उपयोग की जाने वाली तकनीक और न्यायालय द्वारा इसका विश्लेषण करने के तरीके पर निर्भर करती है।

आवाज़ के नमूने एकत्र करने की वैधता: 

  • वर्ष 2013 में भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर विचार किया कि क्या आवाज़ के नमूने एकत्र करना आत्म-अभिशंसन के खिलाफ मौलिक अधिकार अथवा निजता के अधिकार का उल्लंघन होगा या नहीं।
  • दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 53 (1) DNA विश्लेषण अथवा शरीर की सामान्य जाँच के लिये नमूने एकत्र करने हेतु पुलिस अधिकारी के अनुरोध पर एक चिकित्सक द्वारा आरोपी की जाँच या फिर "इस तरह के अन्य आवश्यक परीक्षण" की अनुमति देती है। 
    • धारा 53 (1) में "ऐसे अन्य परीक्षण" वाक्यांश को आवाज़ के नमूनों के संग्रह को शामिल करने के समान है। हालाँकि आपराधिक प्रक्रिया कानूनों के तहत आवाज़ के नमूनों के परीक्षण के लिये कोई विशेष प्रावधान नहीं है क्योंकि यह एक अपेक्षाकृत नया तकनीकी साधन है।
    • वर्ष 2013 के मामले में एक खंडित फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने भी स्वीकार किया कि इस उद्देश्य के लिये एक विशिष्ट कानून उपलब्ध नहीं है।
  • तीन न्यायाधीशों की बेंच की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जाँच के लिये आवाज़ का नमूना एकत्र करने से अभियुक्त के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं होगा। 
    • इसने माना कि निजता के अधिकार को पूर्ण नहीं माना जा सकता है और इसे सार्वजनिक हित में बदला जाना चाहिये।
    • हाल ही में वर्ष 2022 में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के एक फैसले में यह भी पाया गया कि आवाज़ के नमूने उंगलियों के निशान एवं लिखावट से मिलते-जुलते हैं तथा कानून के अनुसार अनुमति के साथ एकत्र किये जाते हैं और पहले से एकत्र किये गए सबूतों की तुलना करने के लिये उपयोग किये जाते हैं।

निजता का अधिकार:

  • निजता के अधिकार को अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के आंतरिक भाग के रूप में और संविधान के भाग III द्वारा गारंटीकृत स्वतंत्रता के एक भाग के रूप में संरक्षित किया गया है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने के.एस. पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ 2017 के एक ऐतिहासिक फैसले में निजता और उसके महत्त्व को बताया था कि निजता का अधिकार एक मौलिक एवं अविच्छेद्य अधिकार है तथा उस व्यक्ति के बारे में सभी जानकारी और उसके द्वारा चुने गए विकल्पों को कवर करने वाले व्यक्ति को जोड़ता है।

पिछले मामले जहाँ आवाज़ के नमूने एकत्र किये गए:

  • भारत: 
    • आवश्यक वस्तु और नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट (NDPS) के तहत एक विशेष अदालत ने फरवरी 2021 में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) द्वारा दायर एक याचिका को अनुमति दी थी जिसमें अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद ड्रग्स मामले में 33 अभियुक्तों की आवाज़ के नमूने एकत्र करने की मांग की गई थी। 
  • अन्य देश: 
    • यूएस फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (FBI) ने पहली बार 1950 के दशक में वॉयस आइडेंटिफिकेशन एनालिसिस की तकनीक का इस्तेमाल किया था। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. फिंगरप्रिंट स्कैनिंग के अलावा किसी व्यक्ति की बायोमेट्रिक पहचान में निम्नलिखित में से किसका उपयोग किया जा सकता है? (2014)

  1. आईरिस स्कैनिंग 
  2. रेटिनल स्कैनिंग 
  3. आवाज़ पहचान

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये :  

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)   

व्याख्या:

  • बॉयोमीट्रिक सत्यापन कोई भी माध्यम हो सकता है, जिसके द्वारा किसी व्यक्ति को एक या अधिक विशिष्ट जैविक लक्षणों का मूल्यांकन करके विशिष्ट रूप से पहचाना जा सकता है।
  • विशिष्ट पहचानों में उंँगलियों के निशान, हाथ की ज्यामिति, ईयरलोब ज्यामिति, रेटिना और आईरिस पैटर्न, आवाज़ तरंगें, डीएनए तथा हस्ताक्षर शामिल हैं। बॉयोमीट्रिक सत्यापन का सबसे पुराना रूप फिंगरप्रिंटिंग है।
  • बॉयोमीट्रिक पहचान के लिये दी गई सभी प्रक्रियाओं, अर्थात् आइरिस स्कैन, वॉयस रिकग्निशन और रेटिनल स्कैनिंग का उपयोग किया जा सकता है। अत: 1, 2 और 3 सही हैं।
  • अतः विकल्प (d) सही उत्तर है। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


कार्बन मुक्त विद्युत उत्पादन के प्रति G7 की प्रतिबद्धता

प्रिलिम्स के लिये:

G7 शिखर सम्मेलन हिरोशिमा, वैश्विक ऊर्जा संकट, शुद्ध-शून्य ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन, IPCC, प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना, हरित ऊर्जा गलियारा, राष्ट्रीय स्मार्ट ग्रिड मिशन (NSGM)

मेन्स के लिये:

G7, कार्बन-मुक्त विद्युत उत्पादन से संबंधित भारतीय पहल।

चर्चा में क्यों?

सात देशों के समूह (Group of Seven- G7) के जलवायु और ऊर्जा मंत्रियों तथा दूतों ने वर्ष 2035 तक कार्बन मुक्त विद्युत उत्पादन सुनिश्चित करने एवं कोयले की चरणबद्ध समाप्ति/फेज-आउट की दिशा में तेज़ी लाने हेतु प्रतिबद्धता जताई है। मई 2023 में हिरोशिमा में आयोजित G7 शिखर सम्मेलन से पहले यह समझौता साप्पोरो, जापान में किया गया था।

  • G20 की अध्यक्षता के संदर्भ में भारत को शिखर सम्मेलन में 'अतिथि' के रूप में भी आमंत्रित किया गया था।

प्रमुख बिंदु  

  • मौजूदा वैश्विक ऊर्जा संकट और आर्थिक समस्याओं को देखते हुए इस समझौते में वर्ष 2050 तक शुद्ध-शून्य ग्रीनहाउस गैस (Greenhouse Gas- GHG) उत्सर्जन हेतु स्वच्छ ऊर्जा को अपनाने में तेज़ी लाने का आह्वान किया गया है।
    • G7 देशों ने वर्ष 2030 तक GHG उत्सर्जन को लगभग 43% और वर्ष 2035 तक 60% कम करने की तत्काल आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
  • IPCC की AR6 रिपोर्ट के अनुसार, जिसमें शताब्दी के अंत तक वैश्विक तापमान को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ने से रोकने की आवश्यकता को इंगित किया गया है, प्रतिभागी देशों ने अपतटीय प्लेटफाॅर्मों से 1,000 गीगावाट सौर ऊर्जा और 150 गीगावाट पवन ऊर्जा का उत्पादन करने के लिये सौर एवं पवन ऊर्जा क्षेत्र में निवेश में तेज़ी लाने पर सहमति व्यक्त की।
  • इसमें पुष्टि की गई है कि जीवाश्म ईंधन सब्सिडी पेरिस समझौते के लक्ष्यों के साथ असंगत है और वे वर्ष 2025 तक अकुशल जीवाश्म ईंधन सब्सिडी को खत्म करने के लिये प्रतिबद्ध हैं। 
  • वे प्रमुख मुद्दे जिन पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई:  
    • अन्य देशों को उनके ऊर्जा संक्रमण और ऊर्जा दक्षता बढ़ाने में मदद करने के लिये और अधिक सहायता दिये जाने के संबंध में।
      • UNFCCC COP 27 में प्रतिवर्ष 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर के योगदान की प्रतिबद्धता जताई गई थी, परंतु विकसित देशों द्वारा किये जाने वाले वित्तीय योगदान में कमी आई है।
    • ब्रिटेन और कनाडा द्वारा वर्ष 2030 तक कोयले को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने का प्रस्ताव।

G7:  

  • परिचय:  
    • सात देशों का समूह (G7) एक अंतर-सरकारी संगठन है जिसमें सात प्रमुख उन्नत अर्थव्यवस्थाएँ- कनाडा, फ्राँस, जर्मनी, इटली, जापान, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राष्ट्र शामिल हैं
    • G7, मूल रूप से G8 (जब इसमें शामिल होने के लिये रूस को आमंत्रित नहीं किया गया था), को वर्ष 1975 में विश्व की सबसे उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के नेतृत्त्वकर्त्ताओं के एक अनौपचारिक मंच के रूप में स्थापित किया गया था। 
  • उद्देश्य: 
    • G7 का प्राथमिक उद्देश्य इसके सदस्य देशों के बीच आर्थिक विकास और स्थिरता को बढ़ावा देना है।
    • यह व्यापार, आर्थिक नीति और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा सहित पारस्परिक चिंतनीय मुद्दों पर चर्चा करने के लिये एक मंच के रूप में कार्य करता है।
    • जलवायु परिवर्तन, गरीबी में कमी लाना और वैश्विक स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर सहयोग एवं समन्वय को बढ़ावा देता है।  
  • बैठकें: 
    • G7 शिखर सम्मेलन का आयोजन वार्षिक रूप से किया जाता है जिसमें सदस्य देश विभिन्न मुद्दों पर चर्चा और उनका समाधान करने के लिये एकत्रित होते हैं।
      • इस शिखर सम्मेलन का आयोजन क्रमिक रूप से इसके सदस्य देशों द्वारा किया जाता है।
  • महत्त्व:  
    • आर्थिक शक्तियाँ: G7 देश विश्व की कुछ सबसे बड़ी और शक्तिशाली अर्थव्यवस्थाएँ हैं, जो दुनिया की 40 प्रतिशत आर्थिक गतिविधियों का प्रतिनिधित्त्व करती हैं।
      • ये वैश्विक व्यापार नीतियों और विनियमों पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव के साथ विश्व के अग्रणी व्यापारिक राष्ट्रों में भी शामिल हैं।
    • वैश्विक शासन: G7 वैश्विक शासन की एक महत्त्वपूर्ण संस्था है, जिसका संयुक्त राष्ट्र और विश्व व्यापार संगठन जैसे अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव है।
      • इसकी नीतियों और निर्णयों का वैश्विक आर्थिक तथा राजनीतिक स्थिरता पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है।
  • आलोचनाएँ: 
    • G7, जिसमें विश्व की कुछ सबसे विकसित अर्थव्यवस्थाएँ शामिल हैं, वैश्विक कार्बन उत्सर्जन के लगभग एक-चौथाई हिस्से के लिये ज़िम्मेदार है। 
      • यह आश्चर्यचकित कर देने वाला आँकड़ा है जो जलवायु परिवर्तन के कार्यक्रम चलाने में इन देशों की महत्त्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करता है।
    • G7 को विश्व की आबादी का विशिष्ट और अप्रतिनिधि होने के कारण आलोचना का सामना करना पड़ा है, क्योंकि यह वैश्विक आबादी के केवल एक छोटे से हिस्से का प्रतिनिधित्त्व करता है एवं भारत तथा चीन जैसे देश इससे बाहर हैं, जो कि प्रमुख आर्थिक शक्तियाँ हैं।
    • आलोचकों ने यह भी तर्क दिया है कि हाल के वर्षों में G7 के प्रभाव में कमी आई है क्योंकि उभरती अर्थव्यवस्थाएँ वैश्विक अर्थव्यवस्था में अधिक महत्त्वपूर्ण हो गई हैं।

कार्बन मुक्त विद्युत के संबंध में भारत की पहल:  

  UPSC यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से किस एक समूह के सभी चारों देश G20 के सदस्य हैं?

अर्जेंटीना, मैक्सिको, दक्षिण अफ्रीका और तुर्की
ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, मलेशिया और न्यूज़ीलैंड
ब्राज़ील, ईरान, सऊदी अरब और वियतनाम
इंडोनेशिया, जापान, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न. "सतत्, विश्वसनीय, टिकाऊ और आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) को प्राप्त करने के लिये अनिवार्य है।" इस संबंध में भारत में हुई प्रगति पर टिप्पणी कीजिये। (2018)

प्रश्न. पारंपरिक ऊर्जा की समस्या को दूर करने के लिये भारत के हरित ऊर्जा गलियारे पर एक टिप्पणी लिखिये। (2013)

स्रोत: द हिंदू


राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण

प्रिलिम्स के लिये:

मानव तस्करी, जाली मुद्रा या बैंक नोट, साइबर-आतंकवाद, NIA, सूचीबद्ध अपराध, आतंकवाद, LWE, उग्रवाद, कट्टरता, NIA अधिनियम 2008

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण, इसका कार्य और क्षेत्राधिकार, कट्टरता- मुद्दा, चुनौतियाँ, समाधान।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (National Investigation Agency- NIA) ने दो लोगों के खिलाफ एक प्राथमिकी/प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की है, जिन्हें कथित रूप से युवाओं को कट्टरपंथी बनाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।

नोट: कट्टरता वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक व्यक्ति या समूह चरम विश्वासों और विचारधाराओं को अपनाता है जो मुख्यधारा के समाज के मूल्यों, मानदंडों एवं कानूनों को अस्वीकार या विरोध करते हैं। इसमें प्रायः प्रचार, प्रेरक बयानबाज़ी तथा प्रेरक व्यक्तियों या समूहों का जोखिम शामिल होता है जो चरमपंथी विचारों व विचारधाराओं को बढ़ावा देते हैं।

राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण:

  • परिचय: 
    • NIA भारत सरकार की एक संघीय एजेंसी है जो आतंकवाद, उग्रवाद और अन्य राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों से संबंधित अपराधों की जाँच एवं मुकदमा चलाने हेतु ज़िम्मेदार है।
      • किसी देश में संघीय एजेंसियों के पास विशेष रूप से उन मामलों पर अधिकार क्षेत्र होता है जो पूरे देश को प्रभावित करते हैं, न कि केवल अलग-अलग राज्यों या प्रांतों से संबंधित होते हैं।
    • वर्ष 2008 में मुंबई आतंकवादी हमलों के बाद राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण, 2008 के तहत इसकी स्थापना वर्ष 2009 में की गई थी, यह गृह मंत्रालय के तहत संचालित होती है।
    • राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण अधिनियम, 2008 में बदलाव करते हुए राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (संशोधन) अधिनियम, 2019 को जुलाई 2019 में पारित किया गया था।
    • राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण के पास राज्य पुलिस बलों और अन्य एजेंसियों से प्राप्त आतंकवाद से संबंधित मामलों की जाँच करने की शक्ति है। इसके पास राज्य सरकारों से पूर्व अनुमति प्राप्त किये बिना राज्य की सीमाओं के मामलों की जाँच करने का भी अधिकार है। 
  • कार्य: 
    • आतंकवाद और अन्य राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों से संबंधित खुफिया सूचनाओं का संग्रह, विश्लेषण और प्रसार करना।
    • आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित मामलों में भारत एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अन्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ समन्वय करना।
    • कानून प्रवर्तन एजेंसियों और अन्य हितधारकों के लिये क्षमता निर्माण कार्यक्रम आयोजित करना।
  • जाँच क्षेत्र: 
    • NIA के जाँच के तरीके अलग-अलग हो सकते हैं। NIA अधिनियम, 2008 की धारा 6 के तहत राज्य सरकार राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण जाँच के लिये केंद्र सरकार को सूचीबद्ध अपराधों से संबंधित मामलों का उल्लेख कर सकती है।
    • केंद्र सरकार NIA को अपने हिसाब से भारत के भीतर अथवा विदेश में किसी सूचीबद्ध अपराध की जाँच करने का निर्देश दे सकती है। 
    • UAPA तथा कुछ सूचीबद्ध अपराधों के तहत अभियुक्तों पर मुकदमा चलाने के लिये एजेंसी को केंद्र सरकार की मंज़ूरी लेनी होती है।
    • वामपंथी उग्रवाद (LWE) के आतंकी वित्तपोषण से संबंधित मामलों से निपटने के लिये एक विशेष प्रकोष्ठ है। किसी सूचीबद्ध अपराध की जाँच के दौरान NIA उससे जुड़े किसी अन्य अपराध की भी जाँच कर सकती है। अंत में जाँच के बाद मामलों को NIA की विशेष अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है।

राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (संशोधन) अधिनियम, 2019 के तहत किये गए परिवर्तन:

  • भारत के बाहर अपराध: 
    • NIA के पास मूल रूप से भारत के भीतर अपराधों की जाँच करने की शक्ति थी, लेकिन संशोधित अधिनियम अब इसे भारत के बाहर किये गए अपराधों की जाँच करने की अनुमति देता है, जब तक कि यह अंतर्राष्ट्रीय संधियों और शामिल देशों के कानूनों का पालन करता है।
    • केंद्र सरकार का मानना है कि अगर कोई अपराध भारत के बाहर किया गया है, लेकिन अधिनियम के अधिकार क्षेत्र में आता है, तो वह NIA को मामले की जाँच करने का निर्देश दे सकती है।
  • कानून का विस्तृत दायरा:
    • NIA अधिनियम की अनुसूची में सूचीबद्ध अपराधों की जाँच NIA कर सकती है।  
      • अनुसूची में मूल रूप से परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962, गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 और अपहरण-रोधी अधिनियम, 1982 जैसे अधिनियम शामिल थे। 
    • संशोधन के साथ NIA अब इससे संबंधित मामलों की भी जाँच कर सकती है: 
  • विशेष न्यायालय:
    • अधिनियम, 2008 ने अधिनियम के तहत मामलों की सुनवाई के लिये विशेष न्यायालयों की स्थापना की। 
    • वर्ष 2019 का संशोधन केंद्र सरकार को अधिनियम के तहत सूचीबद्ध अपराधों की सुनवाई के लिये सत्र न्यायालयों को विशेष न्यायालयों के रूप में नामित करने की अनुमति देता है।
    • ऐसा करने से पहले केंद्र सरकार को संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करना होगा। यदि एक क्षेत्र में कई विशेष न्यायालय मौजूद हैं, तो मामले को सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश द्वारा सौंपा जाएगा।
    • राज्य सरकारें सूचीबद्ध अपराधों की सुनवाई के लिये सत्र न्यायालयों को विशेष न्यायालयों के रूप में नामित कर सकती हैं।

सूचीबद्ध अपराध:

स्रोत: इंडियन एक्स्प्रेस