प्रारंभिक परीक्षा
गाँठदार त्वचा रोग
- 28 Jan 2023
- 4 min read
हाल ही में पंजाब राज्य सरकार ने मवेशियों में गाँठदार त्वचा रोग की शुरुआती रोकथाम हेतु निःशुल्क टीकाकरण अभियान चलाने के लिये गोट पॉक्स वैक्सीन की 25 लाख खुराकें एयरलिफ्ट की हैं।
- गाँठदार त्वचा रोग (Lumpy Skin Disease- LSD) ने जुलाई 2022 में मवेशियों को बड़े पैमाने पर प्रभावित किया था। पूरे पंजाब राज्य में लगभग 1.75 लाख मवेशी प्रभावित हुए थे और लगभग 18,000 मवेशियों की मौत हो गई थी
गाँठदार त्वचा रोग:
- कारण:
- LSD मवेशियों या भैंस के लम्पी स्किन डिज़ीज़ वायरस (LSDV) के संक्रमण के कारण होता है।
- खाद्य और कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization- FAO) के अनुसार, LSD की मृत्यु दर 10% से कम है।
- ‘गाँठदार त्वचा रोग’ को पहली बार वर्ष 1929 में जाम्बिया में एक महामारी के रूप में देखा गया था। प्रारंभ में यह या तो ज़हर या कीड़े के काटने का अतिसंवेदनशील परिणाम माना जाता था।
- LSD मवेशियों या भैंस के लम्पी स्किन डिज़ीज़ वायरस (LSDV) के संक्रमण के कारण होता है।
- संक्रमण:
- गाँठदार त्वचा रोग मुख्य रूप से मच्छरों और मक्खियों के काटने, कीड़ों (वैक्टर) के काटने से जानवरों में फैलता है।
- लक्षण:
- इसमें मुख्य रूप से बुखार, आंँखों और नाक से तरल पदार्थ का निकलना, मुंँह से लार का टपकना, शरीर पर छाले आदि लक्षण होते हैं।
- इस रोग से पीड़ित पशु खाना बंद कर देता है और चबाने या खाने के दौरान समस्याओं का सामना करता है, जिसके परिणामस्वरूप दूध का उत्पादन कम हो जाता है।
- रोकथाम और उपचार:
- वर्तमान में भारत LSD के लिये गोट पॉक्स वैक्सीन और शीप पॉक्स वायरस के टीके लगा रहा है।
- यह एक हेटरोलॉगस वैक्सीन है जो बीमारी के खिलाफ मवेशियों को क्रॉस-सुरक्षा प्रदान करती है।
- गोट पॉक्स, शीप पॉक्स और LSD एक ही कैप्रिपोक्सवायरस जीनस से संबंधित हैं।
- यह एक हेटरोलॉगस वैक्सीन है जो बीमारी के खिलाफ मवेशियों को क्रॉस-सुरक्षा प्रदान करती है।
- लम्पी-प्रोवैकइंड ICAR के राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र और भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान द्वारा संयुक्त रूप से विकसित एक लाइव एटेन्यूएटेड वैक्सीन है, जिसे LSD वायरस के खिलाफ मवेशियों की रक्षा के लिये लक्षित किया गया है और 100% सुरक्षा प्रदान करती है।
- कुछ महीनों में इसे व्यावसायिक रूप से लॉन्च किये जाने की उम्मीद है।
- गाँठदार त्वचा रोग के उपचार के लिये कोई विशिष्ट एंटीवायरल दवा उपलब्ध नहीं है। इसका उपलब्ध एकमात्र उपचार मवेशियों की उचित देखभाल है।
- इसमें घाव देखभाल, स्प्रे का उपयोग करके त्वचा के घावों का उपचार और द्वितीयक त्वचा संक्रमण तथा निमोनिया को रोकने के लिये एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग शामिल हो सकता है।
- प्रभावित जानवरों की भूख को बनाए रखने के लिये एंटी-इंफ्लेमेटरी (Anti-Inflammatories) दर्द निवारक दवाओं का उपयोग किया जा सकता है।
- वर्तमान में भारत LSD के लिये गोट पॉक्स वैक्सीन और शीप पॉक्स वायरस के टीके लगा रहा है।