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डेली न्यूज़

  • 16 Oct, 2023
  • 63 min read
इन्फोग्राफिक्स

वैश्विक भुखमरी सूचकांक 2023

और पढ़ें: वैश्विक भुखमरी सूचकांक 2023


शासन व्यवस्था

भारत में सूचना आयोग

प्रिलिम्स के लिये:

सूचना का अधिकार अधिनियम (आर.टी.आई. अधिनियम), केंद्रीय सूचना आयोग (CIC), राज्य सूचना आयोग (SIC), सतर्क नागरिक संगठन

मेन्स के लिये:

सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 तथा देश में शासन व्यवस्था, पारदर्शिता और जवाबदेही पर इसका प्रभाव

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सतर्क नागरिक संगठन (SATARK NAGRIK SANGATHAN- SNS) ने सूचना का अधिकार (Right to Information- RTI) अधिनियम, 2005 के तहत 'भारत में सूचना आयोगों के प्रदर्शन पर रिपोर्ट कार्ड (Report Card on the Performance of Information Commissions in India), 2022-23' जारी किया है, जिससे ज्ञात होता है कि महाराष्ट्र, 1,15,524 लंबित अपीलों के साथ, RTI प्रतिक्रिया में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला राज्य रहा है।

  • SNS भारत में पारदर्शिता एवं जवाबदेही को बढ़ावा देने के लिये समर्पित एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) है जो नागरिकों को लोकतंत्र में सक्रिय और सूचित भागीदार बनने के लिये सशक्त बनाने का कार्य करता है।

रिपोर्ट कार्ड के प्रमुख बिंदु:

  • अन्य खराब प्रदर्शनकर्त्ता:
    • लंबित अपीलों की दूसरी सबसे बड़ी संख्या कर्नाटक (41,047) में थी, जबकि तमिलनाडु ने अपने सूचना आयोग में कुल लंबित अपीलों के बारे में जानकारी देने से इनकार कर दिया, जिसका वर्ष 2022 में सबसे खराब प्रदर्शन रहा था।
  • वर्ष 2023 में समग्र स्थिति:
    • पूरे देश के 27 राज्य सूचना आयोगों में कुल 3,21,537 अपीलें एवं शिकायतें लंबित हैं और बैकलॉग लगातार बढ़ रहा है।
  • विगत वर्षों की स्थिति:
    • वर्ष 2019 के आकलन से ज्ञात हुआ कि 26 सूचना आयोगों में कुल 2,18,347 अपील/शिकायतें लंबित थीं, जो वर्ष 2021 में बढ़कर 2,86,325 हो गईं तथा फिर वर्ष 2022 में बढ़कर तीन लाख तक पहुँच गईं।
  • निष्क्रिय सूचना आयोग:
    • चार सूचना आयोग (झारखंड, तेलंगाना, मिज़ोरम और त्रिपुरा) निष्क्रिय हैं क्योंकि पद छोड़ने के बाद रिक्त पदों पर कोई नया सूचना आयुक्त नियुक्त नहीं किया गया है।
    • छह सूचना आयोग (केंद्रीय सूचना आयोग तथा मणिपुर, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, बिहार और पंजाब के राज्य सूचना आयोग) वर्तमान में नेतृत्त्वहीन हैं।
  • निपटान दर:
    • आकलन से ज्ञात होता है कि पश्चिम बंगाल राज्य सूचना आयोग (SIC) को मौजूदा मानकों के अनुसार किसी मामले के निपटान में अनुमानित 24 वर्ष और एक महीने का समय लगेगा तथा निपटान दर में यह सबसे खराब प्रदर्शन है।
    • छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में अपील या शिकायत के निपटारे में SIC द्वारा लिया गया अनुमानित समय चार वर्ष से अधिक है। आकलन से पता चलता है कि 10 सूचना आयोगों को किसी अपील/शिकायत का निपटारा करने में एक वर्ष या उससे अधिक का समय लगेगा।

केंद्रीय एवं राज्य सूचना आयोग:

  • केंद्रीय सूचना आयोग (Central Information Commission- CIC):
    • स्थापना: CIC की स्थापना सूचना का अधिकार अधिनियम (2005) के प्रावधानों के तहत वर्ष 2005 में केंद्र सरकार द्वारा की गई थी। यह कोई संवैधानिक निकाय नहीं है।
    • सदस्य: इस आयोग में एक मुख्य सूचना आयुक्त और अधिकतम दस सूचना आयुक्त होते हैं।
    • नियुक्ति: उनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा एक समिति की सिफारिश पर की जाती है जिसमें अध्यक्ष के रूप में प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री शामिल होते हैं।
    • कार्यकाल: मुख्य सूचना आयुक्त और एक सूचना आयुक्त केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित अवधि के लिये या 65 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक (जो भी पहले हो) पद पर बने रहेंगे। वे पुनर्नियुक्ति के पात्र नहीं हैं (वर्ष 2019 में RTI अधिनियम, 2005 में किये गए संशोधन के अनुसार)।
      • आयोग का कर्तव्य है कि वह सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत किसी विषय पर प्राप्त शिकायतों के मामले में संबंधित व्यक्ति से पूछताछ करे।
      • आयोग उचित आधार होने पर किसी भी मामले में स्वतः संज्ञान (Suo-Moto Power) लेते हुए जाँच का आदेश दे सकता है।
      • आयोग के पास पूछताछ करने हेतु सम्मन भेजने, दस्तावेज़ों की आवश्यकता आदि के संबंध में सिविल कोर्ट की शक्तियाँ होती हैं।
  • राज्य सूचना आयोग:
    • इसका गठन राज्य सरकार द्वारा किया जाता है।
    • इसमें एक राज्य मुख्य सूचना आयुक्त (State Chief Information Commissioner- SCIC) तथा मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली नियुक्ति समिति की सिफारिश पर राज्यपाल द्वारा नियुक्त किये जाने वाले अधिकतम 10 राज्य सूचना आयुक्त (State Information Commissioners- SIC) शामिल होते हैं।

सूचना का अधिकार अधिनियम:

  • श्री कुलवाल बनाम जयपुर नगर निगम मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के माध्यम से वर्ष 1986 में RTI कानून की उत्पत्ति हुई, जिसमें यह निर्देश दिया गया कि संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत प्रदान की गई भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता स्पष्ट रूप से सूचना का अधिकार है। जानकारी के बिना सूचना, वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का नागरिकों द्वारा पूरी तरह से उपयोग नहीं किया जा सकता है।
  • इसका उद्देश्य भारतीय नागरिकों को व्यावहारिक रूप से सरकार और विभिन्न सार्वजनिक उपयोगिता सेवा प्रदाताओं से कुछ प्रासंगिक प्रश्न पूछने के अपने अधिकारों का प्रयोग करने में सक्षम बनाना है।
  • सूचना की स्वतंत्रता अधिनियम, 2002 को RTI अधिनियम में बदल दिया गया।
  • इस अधिनियम का उद्देश्य नागरिकों को सरकारी एजेंसियों की त्वरित सेवाओं का लाभ उठाने में मदद करना था क्योंकि यह अधिनियम उन्हें यह सवाल पूछने में सक्षम बनाता है कि किसी विशेष आवेदन या आधिकारिक कार्यवाही में देरी क्यों होती है।
  • इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य भ्रष्टाचार मुक्त भारत के सपने को साकार करना है।
  • केंद्रीय और राज्य दोनों स्तरों पर CIC व IC के कार्यकाल तथा सेवा शर्तों के संबंध में बदलाव लाने हेतु सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 में वर्ष 2019 में संशोधन किया गया।
  • हाल ही में डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम 2023 की धारा 44 (3) द्वारा RTI अधिनियम की धारा 8 (1) (j) को संशोधित किया है, जिससे सभी व्यक्तिगत जानकारी को प्रकटीकरण की समस्या से निदान मिल गया है तथा पहले से मौजूद अपवादों को हटा दिया गया है जिनके तहत इस तरह की जानकारी जारी करने की अनुमति का प्रावधान था।

अधिनियम के तहत प्रदान की जाने वाली जानकारियाँ:

  • कोई भी भारतीय नागरिक किसी सरकारी प्राधिकरण से विलंबित IT रिफंड, ड्राइविंग लाइसेंस अथवा पासपोर्ट के लिये आवेदन करने अथवा आधारभूत अवसंरचना परियोजना के पूर्ण होने अथवा मौजूदा विवरण की प्राप्ति के लिये आवेदन करने हेतु स्वतंत्र है।
  • देश में विभिन्न प्रकार के राहत कोषों के तहत आवंटित राशि के बारे में जानकारी मांगने की स्वतंत्रता ।
  • यह अधिनियम छात्रों को विश्वविद्यालयों से उत्तर पुस्तिकाओं की प्रतियाँ प्राप्त करने संबंधी स्वतंत्रताएँ भी प्रदान करता है।


RTI अधिनियम, 2005 से संबंधित चुनौतियाँ:

  • इस अधिनियम के प्रावधान के तहत कई बार ऐसी जानकारियों की मांग की जाती है जो सार्वजनिक हित से संबंधित नहीं होती हैं तथा कभी-कभी इनका उपयोग कानून का दुरुपयोग करने और सार्वजनिक प्राधिकरण को परेशान करने के लिये किया जा सकता है। उदाहरण के लिये:
    • निरंतर और अत्यधिक जानकारी की मांग करना।
    • दिखावे के लिये RTI दाखिल करना।
    • सार्वजनिक प्राधिकरण को परेशान करने अथवा दबाव डालने के लिये प्रतिशोधी उपकरण के रूप में RTI दाखिल करना।
  • देश की बहुसंख्यक आबादी में निरक्षरता और निर्धनता के कारण RTI का प्रयोग नहीं किया जा सकता है।
  • हालाँकि RTI का उद्देश्य शिकायत निवारण तंत्र बनाना नहीं है, सूचना आयोगों के नोटिस अमूमन सार्वजनिक अधिकारियों को शिकायतों के निवारण के लिए आव्हान करने से संबंधित होते हैं।
  • उप-ज़िला और ब्लॉक स्तर पर डिजिटल एकीकरण की कमी ई-गवर्नेंस तंत्र को अवरुद्ध करती है जो RTI अधिनियम, 2005 के कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न करती है।

आगे की राह

  • लोकतंत्र जनता द्वारा, जनता के लिये, जनता का शासन है। तीसरे प्रतिमान को प्राप्त करने हेतु राज्य को जागरूक जनता के महत्त्व और एक राष्ट्र के रूप में देश के विकास में उसकी भूमिका को स्वीकार करना होगा। इस संदर्भ में RTI अधिनियम से संबंधित अंतर्निहित मुद्दों को हल किया जाना चाहिये, ताकि यह समाज की सूचना आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके।
  • 2019 के आदेश में शीर्ष अदालत ने केंद्र और राज्य सरकारों को पारदर्शी व समयबद्ध तरीके से केंद्रीय एवं राज्य सूचना आयोगों में रिक्त पदों को भरने के लिये कई निर्देश जारी किये थे।
  • अभिलेखों का त्वरित रूप से डिजिटलीकरण और उचित रिकॉर्ड प्रबंधन महत्त्वपूर्ण है क्योंकि लॉकडाउन में अभिलेखों तक दूरस्थ पहुँच (Remote Access) की कमी को व्यापक रूप से आयोगों द्वारा अपीलों तथा शिकायतों की सुनवाई करने में बाधक होने का कारण बताया गया है।
  • यह सर्वविदित है कि अधिशासन सुधारने के लिये आवश्यक है, किंतु पर्याप्त नहीं। अधिशासन में जवाबदेही लाने की ज़रूरत है, जिसमें भेद खोलने वालों को संरक्षण प्रदान करना, शक्ति का विकेंद्रीकरण करना और सभी स्तरों पर जवाबदेही के साथ प्राधिकार का प्रसार शामिल है।
  • फिर भी इस कानून से हमें अधिशासन की प्रक्रिया पर विशेष रूप से आधारभूत स्तर, जहाँ नागरिकों की अन्योन्य-क्रिया अधिकतम होती है, पर फिर से गौर करने का बहुमूल्य अवसर प्राप्त होता है। इसलिये RTI अधिनियम, 2005 के संबंध में स्थानीय स्तर पर बड़े पैमाने पर जागरूकता उत्पन्न की जानी चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न: सूचना का अधिकार अधिनियम केवल नागरिकों के सशक्तीकरण के बारे में नहीं है, यह अनिवार्य रूप से जवाबदेही की अवधारणा को पुनः परिभाषित करता है। चर्चा कीजिये। (2018)


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

फिलिस्तीन में यहूदी राष्ट्र-राज्य पर गांधी का रुख

प्रिलिम्स के लिये:

महात्मा गांधी, इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष, बाल्फोर घोषणा

मेन्स के लिये:

भारत के हितों पर देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव, इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष को लेकर भारत का रुख और प्रस्तावित समाधान

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

महात्मा गांधी फिलिस्तीन में यहूदी राष्ट्र-राज्य की स्थापना का विचारिक रूप से विरोध करते थे, इज़रायल और फिलिस्तीन के बीच चल रहे संघर्ष एवं तनाव के संदर्भ में उनके विचार काफी चर्चा में है।

गांधी द्वारा फिलिस्तीन में यहूदी राष्ट्र-राज्य के विरोध का कारण:

  • यूरोप में यहूदी लोगों की दुर्दशा:
    • 1930 और 1940 के दशक में एडॉल्फ हिटलर के नेतृत्त्व वाले नाज़ी शासन के तहत यूरोप में यहूदियों को अत्यधिक उत्पीड़न एवं भेदभाव का सामना करना पड़ा
      • नाज़ियों के शासन के दौरान व्यवस्थित रूप से लगभग छह मिलियन यहूदियों का नरसंहार किया गया, उन्हें नज़रबंदी शिविरों में रहने या निर्वासित होने को मज़बूर होना पड़ा।
  • यहूदियों के प्रति गांधी की सहानुभूति:
    • गांधीजी को यहूदी लोगों के प्रति अपार सहानुभूति थी, इन लोगों को ऐतिहासिक रूप से उनके धर्म के कारण प्रताड़ित किया गया था।
      • गांधीजी ने पाया कि यूरोप में यहूदियों और भारत में अछूतों के साथ होने वाले व्यवहार में काफी समानताएँ हैं तथा उन्होंने दोनों समुदायों के साथ होने वाले अमानवीय व्यवहार की काफी आलोचनाएँ भी कीं।
    • गांधी जर्मनी द्वारा यहूदियों के उत्पीड़न को लेकर बहुत चिंतित थे और उनका मानना ​​था कि इस तरह के उत्पीड़न को रोकने के लिये अगर जर्मनी के साथ युद्ध करना पड़े तो यह उचित होगा।
  • ज़ायोनी आंदोलन और उसके लक्ष्य:
    • 19वीं सदी के अंत में फिलिस्तीन में यहूदी लोगों के लिये एक राष्ट्रीय मातृभूमि की स्थापना के लक्ष्य के साथ ज़ायोनी आंदोलन की शुरुआत हुई।
    • प्रथम विश्व युद्ध के बाद इस आंदोलन को और बल मिला, साथ ही इसे वर्ष 1917 की बाल्फोर घोषणा (जिसके द्वारा फिलिस्तीन में एक यहूदी राष्ट्र-राज्य की स्थापना हेतु समर्थन किया गया था) का प्रोत्साहन भी प्राप्त हुआ।
    • द्वितीय विश्व युद्ध के बाद वर्ष 1947 में संयुक्त राष्ट्र ने फिलिस्तीन को अलग-अलग यहूदी और अरब राज्यों में विभाजित करने वाली एक विभाजन योजना का प्रस्ताव रखा, जिसके अनुसार यरुशलम एक अंतर्राष्ट्रीय शहर होगा।
      • यहूदी नेताओं ने इस योजना को स्वीकार कर लिया किंतु अरब द्वारा इसे अस्वीकार कर दिया गया, जिससे हिंसा भड़की।
      • 14 मई, 1948 को इज़रायल को आधिकारिक तौर पर एक स्वतंत्र राज्य घोषित कर दिया गया।
  • यहूदी राष्ट्र-राज्य के प्रति गांधी का विरोध:
    • गांधीजी ने फिलिस्तीन में यहूदी राष्ट्र-राज्य को गलत और अमानवीय मानते हुए इसका विरोध किया। उनका मानना था कि यहूदी मातृभूमि की स्थापना के लिये मूल अरब आबादी को विस्थापित करना मानवता के खिलाफ अपराध कृत्य होगा।
      • गांधीजी को लगा कि यहूदी केवल "अरबों की सद्भावना से" फिलिस्तीन में बस सकते हैं और इसके लिये उन्हें "ब्रिटिशों के साथ जुड़ाव को कम करना होगा"
      • उनका मानना था कि कोई भी धार्मिक कृत्य, जैसे यहूदियों का फिलिस्तीन लौटना, गंभीरता से नहीं बल्कि अरबों की सद्भावना के साथ लागू होना चाहिये।
    • गांधी का मानना था कि फिलिस्तीन में यहूदी मातृभूमि की अवधारणा दुनिया भर में यहूदी अधिकारों की लड़ाई का खंडन करती है। उन्होंने सवाल किया कि यदि फिलिस्तीन यहूदियों का एकमात्र घर है तो क्या वे दुनिया के उन हिस्सों को छोड़ेंगे, जहाँ पर वे पहले से बसे हुए हैं।

गांधी के रुख का भारत की इज़राइल-फिलिस्तीन नीति पर प्रभाव:

  • गांधीजी की राय और उनके स्वयं के साम्राज्यवाद-विरोध का भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पर गहरा प्रभाव पड़ा। वे दशकों तक उभरते राष्ट्र की विदेश नीति को आकार देने के लिये ज़िम्मेदार थे, जिसके कारण भारत ने फिलिस्तीन को विभाजित करने वाले संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव 181 के खिलाफ वोट किया।
  • 17 सितंबर 1950 को, भारत ने आधिकारिक तौर पर इज़राइल राज्य को मान्यता दी, लेकिन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव के द्वारा वर्ष 1992 में आधिकारिक राजनयिक संबंध स्थापित किये।
  • भारत, फिलिस्तीन मुक्ति संगठन (PLO) को एकमात्र फिलिस्तीनी प्रतिनिधि के रूप में स्वीकार करने वाले पहले गैर-अरब देशों में से एक था। वर्ष 1988 में भारत ने फिलिस्तीन को एक राज्य के रूप में मान्यता दी।
  • हालाँकि समय के साथ भारत की नीति में भी कुछ बदलाव आए, जो उसके रणनीतिक और आर्थिक हितों को दर्शाते हैं।
    • हाल ही में भारत इज़राइल और फिलिस्तीन दोनों के साथ अपने संबंधों को संतुलित करते हुए, दो-राज्य समाधान या ‘टू स्टेट सॉल्यूशन’ (Two-State Solution) को प्राथमिकता देने और शांतिपूर्ण तरीके से दोनों देशों के लिये आत्मनिर्णय के अधिकार के साथ डी-हाईफनेशन (Dehyphenation) नीति स्थापित करने की ओर बढ़ गया है।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2023)

कथन-I: इज़राइल ने कुछ अरब राज्यों के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किये हैं।

कथन-II: 'अरब शांति पहल' सऊदी अरब की मध्यस्थता से इज़राइल और अरब लीग द्वारा हस्ताक्षरित हुआ।

उपर्युक्त कथनों के बारे में, निम्नलिखित में से कौन-सा एक सही है?

(a) कथन-I और कथन-II दोनों सही हैं तब कथन-II, कथन-I की सही व्याख्या है।
(b) कथन-I और कथन-II दोनों सही हैं तथा कथन-II, कथन-I की सही व्याख्या नहीं है।
(c) कथन-I सही है किंतु कथन-II गलत है।
(d) कथन-I गलत है किंतु कथन-II सही है।

उत्तर: (c)


प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में "टू स्टेट सॉल्यूशन" शब्द का उल्लेख किस संदर्भ में किया जाता है? (2018)

(a) चीन
(b) इज़रायल
(c) इराक
(d) यमन

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. ‘आवश्यकता से कम नगदी, अत्यधिक राजनीति ने यूनेस्को को जीवन- रक्षण की स्थिति में पहुँचा दिया है।’ अमेरिका द्वारा सदस्यता परित्याग करने और सांस्कृतिक संस्था पर ‘इज़रायल विरोधी पूर्वाग्रह’ होने का दोषारोपण करने के प्रकाश में इस कथन की विवेचना कीजिये।’ (2019)

प्रश्न. “भारत के इज़रायल के साथ संबंधों ने हाल ही में एक ऐसी गहराई और विविधता हासिल की है, जिसकी पुनर्वापसी नहीं की जा सकती है।” विवेचना कीजिये। (2018)


शासन व्यवस्था

खनन हेतु रॉयल्टी दरों को कैबिनेट की स्वीकृति

प्रिलिम्स के लिये:

 कैबिनेट द्वारा खनन हेतु रॉयल्टी दरों को स्वीकृति, खान और खनिज (विकास तथा विनियमन) अधिनियम, 1957 ('MMDR Act'), लिथियम और नाइओबियम, खान और खनिज (विकास तथा विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2023, दुर्लभ पृथ्वी धातुओं।

मेन्स के लिये:

कैबिनेट द्वारा खनन हेतु रॉयल्टी दरों को स्वीकृति, विश्व भर (दक्षिण एशिया और भारतीय उपमहाद्वीप सहित) में प्रमुख प्राकृतिक संसाधनों का वितरण

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 3 महत्त्वपूर्ण और रणनीतिक खनिजों अर्थात् लिथियम, नाइओबियम एवं दुर्लभ मृदा तत्त्व (REE) के संबंध में रॉयल्टी की दर निर्दिष्ट करने के लिये खान और खनिज (विकास तथा विनियमन) अधिनियम, 1957 ('MMDR अधिनियम') की दूसरी अनुसूची में संशोधन को मंज़ूरी दे दी है।  

  • इससे केंद्र सरकार देश में पहली बार लिथियम, नाइओबियम और REE के लिये ब्लॉकों की नीलामी कर सकेगी।

नोट:

  • खान और खनिज (विकास तथा विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2023 संसद द्वारा पारित किया गया, जो 17 अगस्त, 2023 से लागू हुआ।
  • संशोधन ने लिथियम और नाइओबियम सहित छह खनिजों को परमाणु खनिजों की सूची से हटा दिया, जिससे नीलामी के माध्यम से निजी क्षेत्र को इन खनिजों के लिये रियायतें देने की अनुमति मिल गई।

रॉयल्टी दरें:

  • परिचय:
    • खनिज रॉयल्टी वह भुगतान है जो सरकार को खनिज संसाधनों के निष्कर्षण की अनुमति देने के लिये प्राप्त होती है।
    • सेंटर फॉर सोशल एंड इकोनॉमिक प्रोग्रेस (CSEP) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि विश्व में भारत की खनिज रॉयल्टी दरें सबसे अधिक हैं, जो इसके खनन क्षेत्र की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को प्रभावित करती हैं।
  • प्रमुख संशोधन:
    • MMDR अधिनियम की दूसरी अनुसूची विभिन्न खनिजों के लिये रॉयल्टी दरों का प्रावधान करती है। संशोधन से इन खनिजों के लिये रॉयल्टी दरें काफी कम हो गईं हैं।
    • उदाहरण के लिये लिथियम खनन पर लंदन मेटल एक्सचेंज मूल्य के आधार पर 3% की रॉयल्टी लगेगी।
      • नाइओबियम भी, प्राथमिक और द्वितीयक दोनों स्रोतों के मामले में, ASP पर गणना की गई 3% रॉयल्टी के अधीन होगा।
      • REE में रेयर अर्थ ऑक्साइड (वह अयस्क जिसमें REE सबसे अधिक पाया जाता है) के ASP (औसत बिक्री मूल्य) के आधार पर 1% की रॉयल्टी होगी।
    • खान मंत्रालय ने इन खनिजों के ASP की गणना करने का तरीका निर्धारित किया है, जिसके आधार पर बिड (bid) पैरामीटर निर्धारित किये जाएंगे
    • आयात को कम करने तथा इलेक्ट्रिक वाहन (EV) और ऊर्जा भंडारण समाधान जैसे संबंधित अंतिम-उपयोग (end-use) उद्योगों की स्थापना के उद्देश्य से घरेलू खनन को बढ़ावा देने की मांग की गई है। 

प्रयास का महत्त्व: 

  • निजी क्षेत्र की भागीदारी:
    • चूँकि सरकार ने इन खनिजों को "निर्दिष्ट" परमाणु खनिजों की सूची से हटा दिया है, इसलिये यह संशोधन निजी क्षेत्र के लिये नीलामी रियायतों के माध्यम से भागीदारी का मार्ग प्रशस्त करता है।
  • ग्लोबल बेंचमार्किंग और व्यावसायिक दोहन:
    • वैश्विक मानकों के अनुरूप नई रॉयल्टी दरों को निर्दिष्ट कर, सरकार केंद्र सरकार अथवा राज्यों द्वारा आयोजित प्रतिस्पर्धी नीलामियों के माध्यम से इन खनिजों के व्यावसायिक दोहन को बढ़ावा दे रही है
  • घरेलू खनन और उद्योगों को बढ़ावा देना: 
    • इस प्रयास का उद्देश्य आयात को कम करने के लिये घरेलू खनन को प्रोत्साहित करना तथा इलेक्ट्रिक वाहनों व ऊर्जा भंडारण समाधान जैसे अंतिम-उपयोग उद्योगों की स्थापना को बढ़ावा देना है।
  • शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन लक्ष्य प्राप्ति:
    • इस संशोधन में लक्षित महत्त्वपूर्ण खनिजों को भारत के ऊर्जा परिवर्तन तथा वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने के लक्ष्य के लिये आवश्यक माना जाता है।
  • चीन के विरुद्ध रणनीतिक प्रयास:
    • लिथियम-आयन ऊर्जा भंडारण वस्तुओं के एक प्रमुख उत्पादक चीन पर अपनी निर्भरता कम करने के लिये भारत लिथियम मूल्य शृंखला में शामिल होने का प्रयास कर रहा है।

लिथियम, REE, नाइओबियम से संबंधित मुख्य बिंदु: 

  • लिथियम: 
    • इलेक्ट्रिक वाहनों, लैपटॉप और मोबाइल फोन में उपयोग की जाने वाली रिचार्जेबल लिथियम-आयन बैटरी के लिये लिथियम एक मुख्य घटक है। वर्तमान में भारत लिथियम के लिये आयात पर निर्भर है तथा इसने हाल ही के वर्षों में लिथियम निष्कर्षण के लिये जम्मू और कश्मीर, राजस्थान, गुजरात, ओडिशा एवं छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में अन्वेषण प्रयास किये हैं।
  • दुर्लभ मृदा तत्त्व (REE):
    • इलेक्ट्रिक वाहनों में प्रयुक्त स्थायी चुंबक मोटरों के लिये REE अत्यावश्यक हैं। ये मुख्य रूप से चीन से प्राप्त अथवा संसाधित होते हैं, जो भारत की आपूर्ति शृंखला की चुनौती को दर्शाता है। 
    • दुर्लभ पृथ्वी तत्वों (REE) के खनन से पर्यावरण पर प्रभाव पड़ सकता है। भारत पर्यावरणीय संधारणीयता को ध्यान में रखते हुए REE की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये कार्य कर रहा है।
  • नाइओबियम: 
    • नाइओबियम का उपयोग मिश्र धातुओं (alloys) को और मज़बूत करने के लिये किया जाता है, जो उन्हें जेट इंजन, इमारतों, तेल एवं गैस पाइपलाइनों, MRI स्कैनर के लिये मैग्नेट आदि जैसे विभिन्न अनुप्रयोगों में विशेष रूप से उपयोगी बनाता है।
    • नाइओबियम एक चांदी जैसी धातु है जो अपनी सतह पर ऑक्साइड की परत के कारण संक्षारण के प्रति अत्यधिक प्रतिरोधी है। 
    • नाइओबियम चाँदी जैसी दिखने वाली एक धातु है जिसकी सतह पर ऑक्साइड की परत मौजूद होती है जो इसे अत्यधिक संक्षारण रोधी बनाती है।

भारत में खनन क्षेत्र का परिदृश्य:

  • विनिर्माण क्षेत्र की रीढ़:
    • खनन उद्योग का देश की अर्थव्यवस्था में काफी योगदान है, यह विनिर्माण और बुनियादी ढाँचा क्षेत्रों के लिये रीढ़ की हड्डी अर्थात् प्रमुख आधार के रूप में कार्य करता है।
    • खनन और उत्खनन क्षेत्र का सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 2.5% का योगदान है।
  • विस्तार:
    • लौह अयस्क उत्पादन के मामले में भारत विश्व स्तर पर चौथे स्थान पर है और आँकड़ों के अनुसार, विश्वभर में कोयला उत्पादन के संदर्भ में भारत वर्ष 2021 में दूसरे स्थान पर था।
      • संयुक्त रूप से वित्त वर्ष 2021 में 4.1 मीट्रिक टन प्रतिवर्ष एल्युमीनियम उत्पादन (प्राथमिक और द्वितीयक) के साथ भारत विश्वभर में दूसरे स्थान पर था।
    • विश्व खनिज उत्पादन 2016-20, ब्रिटिश भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण के अनुसार, उत्पादन मात्रा के संदर्भ में विश्व में वर्ष 2020 में उत्पादन में भारत की रैंकिंग:
खनिज/संसाधन वर्ष 2020 में उत्पादन में रैंक
कोयला एवं लिग्नाइट 2nd
स्टील (कच्चा/तरल) 2nd
जस्ता (स्लैब) 3rd
एल्यूमीनियम (प्राथमिक) 3rd
क्रोमाइट अयस्क एवं सांद्रण 4th

लौह अयस्क

4th
ग्रेफाइट 4th
मैंगनीज अयस्क 5th
बाक्साइट 6th
तांबा (परिष्कृत) 7th
  • वर्ष 2023 में भारत में विद्युतीकरण के विस्तार और समग्र आर्थिक विकास के कारण खनिज की मांग में 3% की वृद्धि होने की संभावना है।
    • भारत को इस्पात और एल्यूमिना के उत्पादन और रूपांतरण से काफी लाभ होता है। इसका प्रमुख कारण इसकी रणनीतिक अवस्थिति है जो निर्यात क्षमता के विकास के साथ-साथ एशियाई बाज़ारों में तेज़ी से विकसित होने में मदद करती है।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

मेन्स:

प्रश्न. गोंडवानालैंड के देशों में से एक होने के बावजूद भारत के खनन उद्योग का देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में बहुत कम प्रतिशत योगदान है। चर्चा कीजिये। (2021)

प्रश्न. प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभाव के बावजूद कोयला खनन विकास के लिये अभी भी अपरिहार्य है"। विवेचना कीजिये। (2017)


जैव विविधता और पर्यावरण

अंटार्कटिका के ऊपर बड़े ओज़ोन छिद्र का पता चला

प्रिलिम्स के लिये:

ओज़ोन छिद्र, टोंगा में ज्वालामुखी विस्फोट, ग्रीनहाउस गैस प्रभाव, मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल, विश्व ओज़ोन दिवस

मेन्स के लिये:

ओज़ोन छिद्र, ओज़ोन छिद्र और जलवायु परिवर्तन के पीछे का तंत्र।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों

अंटार्कटिका के ऊपर उपग्रहीय माप से बड़े पैमाने पर ओज़ोन छिद्र या "ओज़ोन-क्षयित क्षेत्र" का पता चला है, जिससे वायुमंडलीय चिंताएँ बढ़ गई हैं। यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के कॉपरनिकस सेंटिनल-5P उपग्रह ने इस महत्त्वपूर्ण विसंगति की पहचान की है।

  • हालाँकि इससे अंटार्कटिका की सतह पर गर्मी बढ़ने की संभावनाएँ नहीं है, लेकिन यह घटना इसके कारणों और जलवायु परिवर्तन के संभावित संबंधों पर सवाल उठाती है।

ओज़ोन परत:

  • समताप मंडल में पाई जाने वाली ओज़ोन परत  (अच्छा ओज़ोन) एक सुरक्षात्मक गैस प्रवणता के रूप में कार्य करती है जो हानिकारक पराबैंगनी (UV) विकिरण को अवशोषित करती है, जो हमें अत्यधिक UV जोखिम के प्रतिकूल प्रभावों से बचाती है।
  • त्वचा कैंसर की दर UV विकिरण से काफी प्रभावित होती है, जो ओज़ोन परत के संरक्षण के महत्त्व को रेखांकित करती है।

ओज़ोन छिद्र:

  • परिचय: 
    • ओज़ोन छिद्र अंटार्कटिका के ऊपर समताप मंडल का एक क्षेत्र है जहाँ ओज़ोन परत असाधारण रूप से क्षरित हो गई है।
      • ओज़ोन छिद्र तकनीकी रूप से कोई "छिद्र" नहीं है। बल्कि छिद्र शब्द का उपयोग वैज्ञानिक उस क्षेत्र के लिये एक रूपक के तौर पर करते हैं जिसमें ओज़ोन सांद्रता 220 डॉब्सन इकाइयों की वांछित सीमा से बहुत नीचे पहुँच जाती है।
    • अंटार्कटिका के ऊपर ओज़ोन छिद्र का आकार साल-दर-साल बदलता रहता है, आमतौर पर इस छिद्र का आकार अगस्त माह तक बहुत हद तक बढ़ जाता है और नवंबर व दिसंबर माह तक प्रायः कम हो जाता है।
      • आकार में यह वार्षिक उतार-चढ़ाव इस क्षेत्र की विशेष जलवायु परिस्थितियों के कारण होता है।

  • ओज़ोन छिद्र- समग्र प्रक्रिया:
    • पृथ्वी के घूर्णन के कारण ओज़ोन छिद्र खुल जाता है, जो अंटार्कटिका के समीप के भूभाग पर विशेष हवाएँ उत्पन्न करता है।
      • ओज़ोन छिद्र की यांत्रिकी में एक प्रमुख कारक ध्रुवीय भँवर (Polar Vortex) है, जो ध्रुवों के चारों ओर तीव्र हवाओं की एक बेल्ट है।
    • शीत के दौरान तापमान में बदलाव के पोलर वर्टेक्स उत्पन्न होता है, जो ध्रुवीय वायु को ऊष्मित, निम्न अक्षांश वाली वायु से अलग रखने में सुरक्षा बाधा के रूप में कार्य करता है
      • यह प्रथक्करण ध्रुवीय समतापमंडलीय बादलों (PSC) के लिये एक शीत वातावरण प्रदान करता है, जो ओज़ोन-क्षयकारी प्रतिक्रियाओं का कारण बनता है। 
        • PSC की सतह पर होने वाली रासायनिक प्रतिक्रियाओं के कारण क्लोरीन और ब्रोमीन यौगिक सक्रिय हो जाते हैं । ये यौगिक विशेष रूप से क्लोरीन, ओज़ोन-क्षयकारी प्रतिक्रियाओं में उत्प्रेरक के रूप में कार्य करते हैं। ये सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आने पर ओज़ोन अणुओं के टूटने का कारण बनते हैं। 
    • ध्रुवीय भँवर( Polar Vortex) का आकार और उसका बल प्रत्यक्ष रूप से ओज़ोन क्षरण को प्रभावित करते है। जब वसंत ऋतु में यह क्षीण हो जाता है तो निचले अक्षांशों से ऊष्मित वायु के संपर्क में आने से धीरे-धीरे ओज़ोन छिद्र बंद हो जाता है, जिससे ओज़ोन परत फिर से दुरुस्त हो जाती है। 
  • ओज़ोन छिद्र का कारण, 2023:
    • वैज्ञानिकों का अनुमान है कि वर्ष 2023 में खोज किये गए ओज़ोन छिद्र का प्रमुख कारण दिसंबर 2022 और जनवरी 2023 के दौरान टोंगा में हुआ ज्वालामुखी विस्फोट हो सकता है।
    • पारंपरिक ज्वालामुखी विस्फोटों के विपरीत, जिसमें आम तौर पर निचले वायुमंडल तक गैसें उत्सर्जित होती हैं, इस विस्फोट के कारण बड़ी मात्रा में जलवाष्प समतापमंडल तक पहुँची।
      • जलवाष्प, ब्रोमीन और आयोडीन जैसे अन्य ओज़ोन-क्षयकारी तत्त्वों के अतिरिक्त, समतापमंडल में रासायनिक अभिक्रियाओं के कारण ओज़ोन परत काफी प्रभावित हुई, जिसके परिणामस्वरुप इसकी ताप दर में काफी बदलाव आया।

नोट: अंटार्कटिका के ऊपर बड़े ओज़ोन छिद्र का होना एक प्राकृतिक घटना से जुड़ा हुआ माना जा रहा है, किंतु यह भी समझना आवश्यक है कि 1970 के दशक में ओज़ोन परत के क्षरण में मानवीय गतिविधियों, विशेष रूप से क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFC) नामक रसायनों का व्यापक उपयोग, का बड़ा योगदान था।

  • एयरोसोल कैन में प्रणोदक के रूप में क्लोरो फ्लोरो कार्बन गैस के उपयोग से समतापमंडल में क्लोरीन उत्सर्जित होता है, जो ओज़ोन क्षय में योगदान देती है।
  • ओज़ोन छिद्र और जलवायु परिवर्तन:
    • ऐसा माना जाता है कि ओज़ोन क्षरण वैश्विक जलवायु परिवर्तन का प्राथमिक कारक नहीं है। हालाँकि ऐसे संकेत हैं कि बढ़ता वैश्विक तापमान ओज़ोन छिद्रों के व्यवहार को प्रभावित कर सकता है।
      • जलवायु परिवर्तन के कारण हाल ही में वनाग्नि की घटनाओं को ओज़ोन छिद्रों में हुए बदलाव से संबंधित माना गया है।
      • वनाग्नि की बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता, जो अक्सर जलवायु परिवर्तन के कारण होती है, के कारण समतापमंडल में अधिक धुआँ मुक्त होता है, जो संभावित रूप से ओज़ोन के क्षरण में योगदान देता है।
    • ओज़ोन छिद्रों में शीतलन प्रभाव के कारण ग्रीनहाउस गैस प्रभाव कम हो सकता है, (ओज़ोन के नुकसान का मतलब है कि उस क्षेत्र से थोड़ी अधिक गर्मी अंतरिक्ष में जा सकती है), वे मौसम में भी बदलाव कर सकते हैं, जिससे लंबे समय तक सर्दियों जैसा मौसम बना रह सकता है।

नोट: ओज़ोन क्षरण संकट के जवाब में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने कार्रवाई की आवश्यकता को पहचाना, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 1985 में वियना कन्वेंशन और उसके बाद वर्ष 1987 में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल हुआ।

  • मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर करने के उपलक्ष्य में प्रत्येक वर्ष विश्व ओज़ोन दिवस (16 सितंबर को) मनाया जाता है।

कॉपरनिकस सेंटिनल 5P सैटेलाइट:

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा एक, ओज़ोन का अवक्षय करने वाले पदार्थों के प्रयोग पर नियंत्रण और उन्हें चरणबद्ध रूप से प्रयोग से बाहर करने के मुद्दे से संबंद्ध है? (2015)

(a) ब्रेटन वुड्स सम्मेलन
(b) मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल
(c) क्योटो प्रोटोकॉल
(d) नागोया प्रोटोकॉल

उत्तर: (b) 


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2012)

  1. क्लोरोफ्लोरोकार्बन, जिसे ओज़ोन-ह्रासक पदार्थों के रूप में जाना जाता है, उनका प्रयोग
  2. सुघट्य फोम के निर्माण में होता है   
  3. ट्यूबलेस टायरों के निर्माण में होता है   
  4. कुछ विशिष्ट इलेक्ट्रॉनिक अवयवों की सफाई में होता है   
  5. एयरोसोल कैन में दाबकारी एजेंट के रूप में होता है  

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 4
(c) केवल 1, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: c


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

भारत की पहली CAR-T सेल थेरेपी को स्वीकृति

प्रिलिम्स के लिये:

CAR-T सेल थेरेपी,  केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO), ल्यूकेमिया, NexCAR19 (एक्टालिकैब्टाजीन ऑटोल्यूसेल), T-कोशिकाएँ

मेन्स के लिये:

CAR-T सेल थेरेपी, विकास और उनके अनुप्रयोग तथा रोज़मर्रा की जिंदगी में प्रभाव, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में भारत की उपलब्धियाँ

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

आई.आई.टी. बॉम्बे समर्थित कंपनी इम्यूनो एडॉप्टिव सेल थेरेपी (ImmunoACT) को पहले मानवकृत CD19-लक्षित चिमेरिक एंटीजन रिसेप्टर टी सेल (Chimeric Antigen Receptor T cell- CAR T-cell) थेरेपी उत्पाद के लिये केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (Central Drugs Standard Control Organisation- CDSCO) द्वारा विपणन संबंधी अनुमोदन प्राप्त हुआ है। इस उत्पाद का उपयोग भारत में पुनरावर्ती/दुर्दम्य B-सेल लिंफोमा और ल्यूकेमिया (Relapsed/Refractory B-cell Lymphomas and Leukaemia) के लिये किया जाता है।

  • NexCAR 19 आई.आई.टी. बॉम्बे और टाटा मेमोरियल सेंटर के बीच एक दशक लंबे सहयोगात्मक प्रयास का परिणाम है तथा इसका काफी अच्छे से नैदानिक जाँच एवं परिणाम संबंधी अध्ययन किया गया है।

CAR-T सेल थेरेपी:

  • परिचय:
    • CAR T- सेल थेरेपी कैंसर के इलाज में एक बड़ी सफलता है।
      • कीमोथेरेपी या इम्यूनोथेरेपी, जिसमें ड्रग्स लेना शामिल है, के विपरीत CAR T-सेल थेरेपी रोगी की कोशिकाओं का उपयोग करती है। उन्हें टी-कोशिकाओं को सक्रिय करने और ट्यूमर कोशिकाओं को लक्षित करने हेतु इनको प्रयोगशाला में संशोधित किया जाता है।
    • ल्यूकेमिया (श्वेत रक्त कोशिकाओं का उत्पादन करने वाली कोशिकाओं से उत्पन्न होने वाले कैंसर) और लिम्फोमा (लसीका प्रणाली से उत्पन्न होने वाले) के उपचार के लिये CAR-T सेल थेरेपी को मंज़ूरी दी गई है
  • प्रक्रिया:
    • T- कोशिकाओं को एक रोगी के रक्त से लिया जाता है और फिर एक विशेष रिसेप्टर के जीन को प्रयोगशाला में T- कोशिकाओं से संयोजित किया जाता है जो रोगी की कैंसर कोशिकाओं पर एक निश्चित प्रोटीन को लक्षित करता है
      • विशेष रिसेप्टर को काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर (CAR) कहा जाता है। बड़ी संख्या में CAR-T कोशिकाएँ प्रयोगशाला में सृजित की जाती हैं और इन्फ्यूज़न द्वारा रोगी को दी जाती हैं।

  • महत्त्व:
    • CAR-T सेल थेरेपी लक्षित औषधियों की तुलना में और भी अधिक विशिष्ट होते हैं तथा कैंसर से लड़ने के लिये रोगी की प्रतिरक्षा प्रणाली को सीधे प्रेरित करते हैं, जिससे अधिक नैदानिक ​​प्रभावकारिता बढ़ जाती है।
      • इस विशिष्टता के कारण उन्हें "लिविंग ड्रग्स" कहा जाता है।
  • चुनौतियाँ:
    • तैयारी: CAR T-सेल थेरेपी तैयार करने में होने वाली कठिनाई इसके व्यापक उपयोग में एक बड़ी बाधा रही है।
      • इसका पहला सफल क्लिनिकल परीक्षण एक दशक पहले प्रकाशित हुआ था और भारत में स्वदेशी रूप से विकसित पहली थेरेपी वर्ष 2021 में की गई थी।
    • दुष्प्रभाव: कुछ प्रकार के ल्यूकेमिया और लिम्फोमा में प्रभावकारिता 90% तक होती है, जबकि अन्य प्रकार के कैंसर में यह काफी कम होती है।
      • इसके संभावित गंभीर दुष्प्रभाव भी हैं, जो साइटोकिन रिलीज़ सिंड्रोम (प्रतिरक्षा प्रणाली की व्यापक सक्रियता और शरीर की सामान्य कोशिकाओं को संपार्श्विक क्षति) तथा न्यूरोलॉजिकल लक्षण (गंभीर भ्रम, दौरे एवं वाक् हानि) से संबद्ध हैं।
    • सामर्थ्य: भारत में CAR T-सेल थेरेपी की शुरुआत को लागत और मूल्य संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
      • आलोचकों का तर्क है कि भारत में CAR T-सेल थेरेपी विकसित करना लागत प्रभावी नहीं हो सकता है क्योंकि यह अभी भी अधिकांश लोगों के लिये अप्राप्य होगी।

T कोशिकाएँ:

  • T कोशिकाएँ, जिन्हें T लिम्फोसाइट्स भी कहा जाता है, एक प्रकार की श्वेत रक्त कोशिकाएँ हैं जो प्रतिरक्षा अनुक्रिया में केंद्रीय भूमिका निभाती हैं।
  • T कोशिकाएँ, कोशिका-मध्यस्थ प्रतिरक्षा में शामिल होती हैं, जिसका अर्थ है कि वे शरीर को बाह्य पदार्थों, जैसे- वायरस, बैक्टीरिया और असामान्य कोशिकाओं, जैसे- कैंसर कोशिकाओं को पहचानने तथा इनके विरुद्ध अनुक्रिया करने में सहायता करती हैं।
  • T कोशिकाएँ दो प्रमुख प्रकार की होती हैं: सहायक T कोशिका और साइटोटॉक्सिक T कोशिका।
    • जैसा कि नाम से पता चलता है, सहायक T कोशिकाएँ प्रतिरक्षा प्रणाली की अन्य कोशिकाओं की 'सहायता' करती हैं, जबकि साइटोटॉक्सिक T कोशिकाएँ वायरल रूप से संक्रमित कोशिकाओं और ट्यूमर को समाप्त कर देती हैं।

कैंसर के इलाज से संबंधित सरकारी पहल:

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा एक, मानव शरीर में B कोशिकाओं और T कोशिकाओं की भूमिका का सर्वोत्तम वर्णन करता है? (2022)

(a) वे शरीर की पर्यावरणीय प्रतूर्जकों (एलर्जनों) से संरक्षित करती हैं।
(b) वे शरीर के दर्द और सूजन का अपशमन करती हैं।
(c) वे शरीर में प्रतिरक्षा निरोधकों की तरह काम करती हैं।
(d) वे रोगजनकों द्वारा होने वाले रोगों से बचाती हैं।

उत्तर: (d)


आंतरिक सुरक्षा

भारत-म्याँमार सीमा पर स्मार्ट फेंसिंग प्रणाली

प्रिलिम्स के लिये:

स्मार्ट फेंसिंग सिस्टम, भारत-म्याँमार सीमा

मेन्स के लिये:

बुनियादी ढाँचा, सीमा निगरानी और नियंत्रण, सीमा क्षेत्रों में सुरक्षा चुनौतियाँ और उनका प्रबंधन

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs- MHA) ने अपनी 2022-23 की वार्षिक रिपोर्ट में भारत-म्याँमार सीमा पर 100 किलोमीटर की स्मार्ट फेंसिंग प्रणाली (Smart Fencing System- SFS) तैयार करने की योजना पेश की है।                  

स्मार्ट फेंसिंग प्रणाली:

  • परिचय:
    • SFS एक तकनीकी रूप से उन्नत सीमा सुरक्षा बुनियादी ढाँचा है जिसे संवेदनशील सीमा क्षेत्रों पर निगरानी और नियंत्रण में सुधार व बेहतरी के लिये डिज़ाइन किया गया है।
    • इसमें आमतौर पर भौतिक संरचनाओं, सेंसर, कैमरे और संचार प्रणालियों का संयोजन शामिल होता है।
      • "स्मार्ट" शब्द का तात्पर्य सीमा पर खतरों की प्रभावी ढंग से निगरानी और प्रतिक्रिया करने के लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग करने की प्रणाली की क्षमता से है।
  • भारत-म्याँमार सीमा के निकट स्मार्ट फेंसिंग प्रणाली की आवश्यकता:
    • नृजातीय हिंसा और  विद्रोह:
      • मणिपुर में नृजातीय हिंसा एक प्रमुख चिंता का विषय रही है, जिसके परिणामस्वरूप 3 मई, 2022 से 175 से अधिक लोगों की मौत हुई। पूर्वोत्तर राज्यों में मणिपुर में वर्ष 2022 में दर्ज कुल 201 में से 137 उग्रवाद से संबंधित घटनाएँ हुई हैं।
      • मणिपुर मैतेई, नगा, कुकी, ज़ोमी, हमार विद्रोही समूहों की गतिविधियों से प्रभावित है।
      • मणिपुर में नृजातीय हिंसा के लिये ज़िम्मेदार कुछ कारकों के रूप में बिना बाड़े वाली सीमा की उपस्थिति तथा म्याँमार से अनियमित प्रवासन को ज़िम्मेदार ठहराया गया है।
        • इसके परिणामस्वरूप विभिन्न इंडियन इंसरजेंट ग्रुप्स (IIG) द्वारा हिंसा, ज़बरन वसूली तथा विविध मांगें शुरू हो गई हैं, जो भारत के पड़ोसी देशों में सुरक्षित आश्रय/शिविर बनाए हुए हैं।
      • स्मार्ट फेंसिंग प्रणाली उग्रवादियों और अवैध तत्त्वों द्वारा अनधिकृत प्रवेश तथा घुसपैठ को रोकेगी, जिससे एक गंभीर सुरक्षा समस्या का समाधान होगा।
    • निगरानी बढ़ाना:
      • स्मार्ट फेंसिंग प्रणाली सीमा उल्लंघनों की निगरानी तथा जवाबी कार्यवाई करने के लिये उन्नत निगरानी प्रौद्योगिकियों से लैस है।
    • जटिल सुरक्षा चुनौतियों से निपटना:
      • इसे सामाजिक-आर्थिक विकास, जनजातीय संघर्ष और प्रवासन जैसे कारकों के कारण पूर्वोत्तर क्षेत्र को नाज़ुक सुरक्षा स्थिति का सामना करना पड़ता है।
        • स्मार्ट फेंसिंग प्रणाली इन खतरों को कम करने और क्षेत्र में शांति एवं स्थिरता बनाए रखने हेतु एक कारगर उपाय है।

भारत-म्यांमार सीमा से संबंधित मुख्य बिंदु: 

  • भारत म्यांमार के साथ 1643 किमी. से अधिक लंबी भूमि सीमा के साथ-साथ बंगाल की खाड़ी में समुद्री सीमा भी साझा करता है। चार पूर्वोत्तर राज्य, अर्थात् अरुणाचल प्रदेश (520 किमी.), नगालैंड (215 किमी.), मणिपुर (398 किमी.) और मिज़ोरम (510 किमी.)।
    • गृह मंत्रालय की 2022-23 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार 1,643 किमी. में से 1,472 किमी. का सीमांकन पूर्ण हो चुका है
  • म्याँमार भारत से सटा एकमात्र आसियान देश है और इसलिये, यह दक्षिण-पूर्व एशिया का प्रवेश द्वार है।
  • इसकी सीमा कई हिस्सों में खुली हुई और बिना फेंसिंग की है, जिससे द्विपक्षीय समझौते के तहत लोगों एवं वस्तुओं की निर्बाध आवाजाही की अनुमति मिलती है। सीमा पर अवैध गतिविधियाँ भी देखी जाती हैं तथा यह विभिन्न विद्रोही समूहों की गतिविधियों से भी प्रभावित होती है जो इस क्षेत्र में सक्रिय हैं और प्रायः म्याँमार में शरण लेते हैं।
    • भारत और म्याँमार के बीच एक निर्बाध आवाजाही व्यवस्था (FMR) मौजूद है। “FMR के तहत पहाड़ी जनजातियों का प्रत्येक सदस्य, जो या तो भारत का नागरिक है या म्याँमार का नागरिक है और जो भारत-म्याँमार सीमा के दोनों ओर 16 किमी. के भीतर किसी भी क्षेत्र का निवासी है, सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी सीमा पास (एक वर्ष की वैधता) जारी किये जाने पर सीमा पार कर सकता है और प्रति यात्रा दो सप्ताह तक रह सकता है।

भारत में अन्य स्मार्ट फेंसिंग परियोजनाएँ:

  • भारत का पहला 'स्मार्ट फेंस' पायलट प्रोजेक्ट वर्ष 2018 में भारत-पाकिस्तान सीमा पर शुरू किया गया था।
  • बाद में वर्ष 2019 में भारत-बांग्लादेश सीमा पर कॉम्प्रिहेंसिव इंटीग्रेटेड बॉर्डर मैनेजमेंट सिस्टम (CIBMS) के तहत प्रोजेक्ट बॉर्डर इलेक्ट्रॉनिकली डॉमिनेटेड QRT इंटरसेप्शन टेकनीक (BOLD-QIT) लॉन्च की गई।
  • CIBMS की भारत-पाकिस्तान सीमा (10 किलोमीटर) और भारत-बांग्लादेश सीमा (61 किलोमीटर) पर लगभग 71 किलोमीटर की दो पायलट परियोजनाएँ पूरी हो चुकी हैं।
    • CIBMS में अत्‍याधुनिक निगरानी प्रौद्योगिकियों की एक शृंखला की तैनाती शामिल है जिसमें थर्मल इमेजर्स, इन्‍फ्रा-रेड और लेज़र-आधारित इंट्रूडर अलार्म, हवाई निगरानी हेतु एयरोस्‍टैट्स, अनअटेंडेड (जिसकी रखवाली करने की आवश्यकता ना हो) ग्राउंड सेंसर्स शामिल है, जो घुसपैठ की कोशिशों का पता लगाने में सहायता कर सकता है, नदी की सीमाओं को सुरक्षित करने हेतु रडार, सोनार सिस्टम, फाइबर-ऑप्टिक सेंसर और एक कमांड तथा नियंत्रण प्रणाली जो वास्तविक समय में सभी निगरानी उपकरणों से डेटा प्राप्त करेगी।
सीमा अवसंरचना विकास का सार
प्रमुख खतरे आवश्यक कदम

बीते समय में किये गए प्रयास

पकिस्तान युद्ध, विद्रोह, तस्करी अच्छी तरह से प्रशिक्षित और वृहत BOLD-QIT के साथ C.I.B.M.S. निगरानी, दूरदराज़ के क्षेत्रों, विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर को जोड़ने वाले एक से अधिक मार्ग C.I.B.M.S., कुछ हिस्सों में लेह का तीसरा मार्ग वर्ष 2023 तक खोला जाना अपेक्षित
चीन युद्ध बख्तरबंद वाहन सक्षम बुनियादी ढाँचा, उच्च ऊँचाई वाले हवाई क्षेत्र डौलेट बेग ओल्डी हवाई परिचालन जारी, कुछ पुल और सुरंगें बख्तरबंद वाहन सक्षम
बांग्लादेश तस्करी, मानव तस्करी नदी के पूरे विस्तृत क्षेत्र में C.I.B.M.S. और BOLD-QIT निगरानी ब्रह्मपुत्र नदी क्षेत्र कवर किया जा चुका है, अत्यंत छोटी नदी क्षेत्र अभी बाकी
नेपाल तस्करी, मानव तस्करी BOLD-QIT के साथ C.I.B.M.S. निगरानी नियोजन के स्तर में
भूटान तस्करी भूटान-चीन सीमा तक बख्तरबंद वाहन सक्षम सड़क संपर्क सीमा सड़क संगठन द्वारा इस दिशा में कार्य जारी
म्याँमार तस्करी, विद्रोह उग्रवाद से निपटने के लिये बड़े और अधिक कुशल BOLD-QIT के साथ C.I.B.M.S. निगरानी, सैनिकों की त्वरित आवाजाही के लिये सड़कें कुछ सड़कें मौजूद हैं, C.I.B.M.S. नियोजन के स्तर पर

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. सीमा प्रबंधन विभाग निम्नलिखित में से किस केंद्रीय मंत्रालय का एक विभाग है? (2008)

(a) रक्षा मंत्रालय
(b) गृह मंत्रालय
(c) नौवहन, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय
(d) पर्यावरण और वन मंत्रालय

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • जनवरी 2004 में अंतर्राष्ट्रीय भूमि और तटीय सीमाओं के प्रबंधन से संबंधित मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने हेतु गृह मंत्रालय के तहत सीमा प्रबंधन विभाग बनाया गया था।
  • यह सीमा पुलिसिंग और रखवाली, सड़कों, बाड़ लगाने तथा फ्लड लाइटिंग जैसे बुनियादी ढाँचे का निर्माण करने एवं भारत-पाकिस्तान, भारत-बांग्लादेश, भारत-चीन, भारत-नेपाल व भारत-भूटान सीमाओं के साथ बॉर्डर आउट पोस्ट (Border Out Posts- BOP) तथा कंपनी ऑपरेटिंग बेस (Company Operating Bases- COB) पर सीमा क्षेत्र विकास कार्यक्रम चलाने का प्राधिकारी है।
  • भारत के पास 15,106.7 किमी. की भूमि सीमा और द्वीप क्षेत्रों सहित 7,516.6 किमी. की तटरेखा है। 

अतः विकल्प (b) सही है।


मेन्स:

प्रश्न: भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिये बाह्य राज्य और गैर-राज्य कारकों द्वारा प्रस्तुत बहुआयामी चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये। इन संकटों का मुकाबला करने के लिये आवश्यक उपायों पर भी चर्चा कीजिये। (2021)

प्रश्न: प्रभावी सीमावर्ती क्षेत्र प्रबंधन हेतु हिंसावादियों को स्थानीय समर्थन से वंचित करने के आवश्यक उपायों की विवेचना कीजिये और स्थानीय लोगों में अनुकूल धारणा प्रबंधन के तरीके भी सुझाइये। (2020)

प्रश्न: आंतरिक सुरक्षा खतरों तथा नियंत्रण रेखा (LoC) सहित म्याँमार, बांग्लादेश और पाकिस्तान सीमाओं पर सीमा पार अपराधों का विश्लेषण कीजिये। विभिन्न सुरक्षा बलों द्वारा इस संदर्भ में निभाई गई भूमिका की भी चर्चा कीजिये। (2020)

प्रश्न: दुर्गम क्षेत्र एवं कुछ देशों के साथ शत्रुतापूर्ण संबंधों के कारण सीमा प्रबंधन एक कठिन कार्य है। प्रभावशाली सीमा प्रबंधन की चुनौतियों एवं रणनीतियों पर प्रकाश डालिये। ( 2016)


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