अंतर्राष्ट्रीय संबंध
इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष
यह एडिटोरियल 09/10/2023 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “ISRAEL'S MOMENT OF RECKONING” लेख पर आधारित है। इसमें हमास द्वारा हाल ही में इज़राइल पर किये गए हमलों के असर के बारे में चर्चा की गई है और विचार किया गया है कि इन हमलों ने किस प्रकार इज़राइल की सुरक्षा कमज़ोरियों को उजागर कर दिया है।
प्रिलिम्स के लिये:प्रथम विश्व युद्ध, बाल्फोर घोषणा, इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष से जुड़े महत्वपूर्ण स्थल, ओस्लो समझौता, भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा, संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद (ECOSOC), टू स्टेट सॉल्यूशन। मेन्स के लिये:भारत के हितों पर देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव, इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष: इतिहास, दोनों देशों की मांगें, भारत पर इसका प्रभाव, इस संदर्भ में भारत का दृष्टिकोण और इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष का समाधान। |
7 अक्टूबर 2023 का दिन इज़राइल के लिये एक असामान्य दिन था। सुबह के समय गाजा पट्टी से हमास द्वारा इज़राइल पर हज़ारों रॉकेट दागे गए और उसके सैकड़ों उग्रवादी विभिन्न स्थानों पर सुरक्षा घेरे को तोड़ते हुए इज़राइल में घुस आए। उन्होंने सीमा के निकट बसे इज़राइली नागरिकों पर अंधाधुंध गोलियाँ बरसाईं और 100 से अधिक लोगों को बंधक बना लिया। रॉकेटों की बौछार इतनी तीव्र थी कि इनमें से कुछ रॉकेट प्रसिद्ध ‘आयरन डोम’ को भेदने में सफल रहे और यरुशलम जैसे अंदरूनी हिस्से तक इसके दायरे आ गए।
ऐतिहासिक दृष्टि से 7 अक्टूबर की सुबह को हर दृष्टि से ‘विफलता’ के रूप में दर्ज किया जाएगा। इससे सुरक्षा की यह इज़राइली अवधारणा ध्वस्त हो गई कि फ़िलिस्तीनी समूह ऐसा युद्ध नहीं छेड़ेंगे जिसे वे जीत न सकें।
इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष का इतिहास:
- इज़राइल का निर्माण:
- इस संघर्ष की उत्पत्ति 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी के आरंभ से देखी जा सकती है जब फिलिस्तीन में यहूदियों के आप्रवासन की वृद्धि हुई, जिससे यहूदी आगंतुकों और अरब आबादी के बीच तनाव उत्पन्न होने लगा।
- वर्ष 1917 में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार ने बाल्फोर घोषणा (Balfour Declaration) जारी की थी जिसमें फिलिस्तीन में ‘यहूदी लोगों के लिये राष्ट्रीय गृह’ (national home for the Jewish people) की स्थापना के लिये समर्थन व्यक्त किया गया था।
- द्वितीय विश्व युद्ध के बाद वर्ष 1947 में संयुक्त राष्ट्र (UN) ने एक विभाजन योजना का प्रस्ताव रखा था जो फिलिस्तीन को दो अलग-अलग यहूदी और अरब राज्यों में विभाजित करता, जिसमें यरूशलेम को एक अंतर्राष्ट्रीय शहर का दर्जा दिया जाता। इस योजना को यहूदी नेताओं ने तो स्वीकार कर लिया था लेकिन अरब नेताओं ने इसे अस्वीकार कर दिया, जिससे हिंसा भड़क उठी।
- वर्ष 1948 में इज़राइल ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी जिससे पड़ोसी अरब राज्यों के साथ उसका युद्ध शुरू हो गया। इस संघर्ष के परिणामस्वरूप हज़ारों फिलिस्तीनियों का विस्थापन हुआ, जिसने भविष्य के तनाव की नींव रखी।
- आरंभिक संबंध और हमास का उदय:
- इज़राइल-हमास संघर्ष के वर्तमान स्वरूप के बीज 1980 के दशक के उत्तरार्द्ध में देखे जा सकते हैं जब पहला इंतिफ़ादा (फिलिस्तीनी विद्रोह) भड़क उठा था।
- इसी अवधि में एक इस्लामी संगठन ‘हमास’ (Hamas) का उदय हुआ। इसने जल्द ही इज़राइली कब्ज़े और फिलिस्तीनी राजनीतिक गुट ‘फ़तह’ के विरुद्ध एक प्रतिरोध आंदोलन के रूप में लोकप्रियता हासिल कर ली।
- इज़राइल ने आरंभ में तो ‘फ़तह’ के लिये एक प्रतिसंतुलनकारी शक्ति के रूप ‘हमास’ के अस्तित्व को बर्दाश्त किया, लेकिन जैसे-जैसे हमास का प्रभाव बढ़ता गया, इज़राइल के दृष्टिकोण में भी परिवर्तन आया।
- ओस्लो समझौता और दूसरा इंतिफ़ादा:
- 1990 के दशक के आरंभ में ओस्लो समझौते (Oslo Accords) से फिलिस्तीनी प्राधिकरण (Palestinian Authority- PA) की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हुआ और वेस्ट बैंक एवं गाजा पट्टी के कुछ क्षेत्रों से इज़राइल की आंशिक वापसी देखने को मिली।
- हालाँकि आगे यह शांति प्रक्रिया रुक गई, जिससे निराशा और हिंसा का प्रसार हुआ तथा इसकी परिणति दूसरे इंतिफ़ादा (2000-2005) के रूप में हुई।
- इस अवधि के दौरान हमास ने इज़राइली नागरिकों के विरुद्ध आत्मघाती बमबारी और रॉकेट हमले तेज़ कर दिए।
- गाजा पर कब्ज़ा और नाकेबंदी:
- वर्ष 2006 में फिलिस्तीनी विधायी चुनाव में हमास की जीत हुई, जिससे फतह के प्रभुत्व वाले PA के साथ तनाव बढ़ गया।
- वर्ष 2007 में हमास ने बलपूर्वक गाजा पट्टी पर कब्ज़ा कर लिया, जबकि वेस्ट बैंक पर फतह का नियंत्रण बना रहा।
- इज़राइल ने हथियारों की तस्करी और हमलों को रोकने के लिये गाजा की नाकेबंदी कर रखी है जिसने गाजा के निवासियों के लिये मानवीय चिंताओं और आर्थिक कठिनाइयों को जन्म दिया है।
- बारंबार संघर्ष और युद्धविराम:
- इज़राइल और हमास के बीच बार-बार गंभीर झड़पों की स्थिति बनी है जिनमें ऑपरेशन कास्ट लीड (2008-2009), ऑपरेशन पिलर ऑफ डिफेंस (2012) और ऑपरेशन प्रोटेक्टिव एज (2014) शामिल हैं। इन संघर्षों के परिणामस्वरूप दोनों पक्षों को भारी क्षति उठानी पड़ी है।
- येरूशलेम में इज़राइली नीतियों (जिनमें शेख जर्राह से फिलिस्तीनी परिवारों की योजनाबद्ध बेदखली और अल-अक्सा मस्जिद परिसर तक पहुँच को प्रतिबंधित करना शामिल था) ने वर्ष 2021 में तनावों को बढ़ाया।
- हमास ने यरुशलम और अन्य इजरायली शहरों पर रॉकेट दागे, जबकि इज़राइल ने गाजा पर हवाई हमले किये। इन कार्रवाइयों में 250 से अधिक फिलिस्तीनी और 12 इज़राइली मारे गए। अमेरिका और अन्य अंतर्राष्ट्रीय अभिकर्ताओं के समर्थन से मिस्र द्वारा दोनों पक्षों के बीच युद्धविराम कराया गया।
- वर्तमान में जारी इज़राइल-हमास संघर्ष:
- वर्तमान में जारी इज़राइल-हमास संघर्ष भूमि, संप्रभुता और सुरक्षा को लेकर दोनों पक्षों के बीच लंबे समय से जारी और जटिल विवाद का ही एक अंग है।
- इस संघर्ष का आरंभ 7 अक्टूबर 2023 को हुआ जब हमास ने अचानक इज़राइल पर हमला कर दिया। हमास द्वारा इज़राइली क्षेत्रों पर हज़ारों रॉकेट दागे गए और उसके सशस्त्र उग्रवादी इज़राइल की सीमा में घुस आए।
- इज़राइल ने गाजा पर भारी हवाई हमलों के साथ जवाब दिया है और एक संभावित ज़मीनी आक्रमण के लिये अपने सैनिकों की लामबंदी की है।
- इस संघर्ष के परिणामस्वरूप दोनों पक्षों के सैकड़ों लोग हताहत हुए हैं और गाजा में व्यापक तबाही देखी जा रही है।
इज़राइल-फ़िलिस्तीन संघर्ष से जुड़े प्रमुख स्थल
- अल अक़्सा मस्जिद:
- यह इस्लामी आस्था के सबसे पवित्र स्थलों में से एक है जिसे मुस्लिम हरम अल-शरीफ (Noble Sanctuary) और यहूदी ‘टेम्पल माउंट’ के रूप में चिह्नित करते हैं।
- यह स्थल येरूशलेम के पुराने शहर का अंग है जो ईसाइयों, यहूदियों और मुसलमानों- तीनों के लिये ही पवित्र है।
- शेख जर्राह:
- शेख जर्राह पूर्वी यरुशलम के पुराने शहर के उत्तरी पड़ोस में स्थित है।
- वर्ष 1948 में जब ऐतिहासिक फिलिस्तीनी भूभाग में इज़राइल राज्य की स्थापना की गई तो लाखों फिलिस्तीनियों को उनके घरों से बेदखल कर दिया गया।
- उन फिलिस्तीनी परिवारों में से अट्ठाईस परिवार पूर्वी यरुशलम के शेख जर्राह में जाकर बस गए थे।
- शेख जर्राह पूर्वी यरुशलम के पुराने शहर के उत्तरी पड़ोस में स्थित है।
- वेस्ट बैंक:
- वेस्ट बैंक एक स्थलरुद्ध क्षेत्र है। इसमें पश्चिमी मृत सागर का एक बड़ा भाग भी शामिल है।
- अरब-इज़राइल युद्ध (1948) के बाद इस पर जॉर्डन ने कब्ज़ा कर लिया था लेकिन वर्ष 1967 के छह-दिवसीय युद्ध के दौरान इज़राइल ने इसे वापस छीन लिया और तब से इस पर नियंत्रण रखता है।
- वेस्ट बैंक इज़राइल और जॉर्डन के बीच स्थित है।
- गाजा पट्टी:
- गाजा पट्टी इज़राइल और मिस्र के बीच स्थित है। इज़राइल ने वर्ष 1967 के बाद इस पट्टी पर कब्ज़ा कर लिया था, लेकिन ओस्लो शांति प्रक्रिया के दौरान गाजा शहर और इसके अधिकांश भूभाग के दिन-प्रतिदिन के प्रशासन पर नियंत्रण छोड़ दिया था।
- वर्ष 2005 में इज़राइल ने एकतरफा तरीके से इस भूभाग से यहूदी बस्तियों को हटा लिया, हालाँकि इसने यहाँ तक अंतर्राष्ट्रीय पहुँच को नियंत्रित करना जारी रखा है।
- गोलन हाइट्स:
- गोलन हाइट्स एक रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण पठार है जिसे इज़राइल ने वर्ष 1967 के युद्ध में सीरिया से जीत लिया था। इज़राइल ने वर्ष 1981 में इस क्षेत्र पर प्रभावी रूप से कब्ज़ा कर लिया।
- वर्ष 2017 में संयुक्त राज्य अमेरिका ने आधिकारिक तौर पर यरुशलम और गोलन हाइट्स को इज़राइल के अंग के रूप में मान्यता प्रदान कर दी।
क्या हैं इज़राइल और फिलिस्तीन की मांगें?
इज़राइल |
फिलिस्तीन |
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इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष का भारत पर क्या असर पड़ सकता है?
- व्यापार संबंध: संघर्ष बढ़ने से इज़राइल के साथ भारत के व्यापार पर असर पड़ सकता है, विशेष रूप से रक्षा उपकरण जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में। इज़राइल भारत के लिये रक्षा प्रौद्योगिकी का एक महत्त्वपूर्ण आपूर्तिकर्ता है और इस व्यापार संबंध में कोई भी व्यवधान भारत की रक्षा तैयारियों को प्रभावित कर सकता है।
- कूटनीतिक चुनौतियाँ: भारत ने परंपरागत रूप से इज़राइल और अरब देशों के प्रति अपनी विदेश नीति में एक संतुलित दृष्टिकोण बनाए रखा है। यदि संघर्ष बढ़ता है और अन्य अरब देश भी इससे संलग्न होते हैं तो यह भारत के लिये राजनयिक चुनौतियाँ पैदा कर सकता है। इस परिदृश्य में इज़राइल के साथ अपने संबंधों को संतुलित करना और अरब देशों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखना भारत के लिये जटिल सिद्ध हो सकता है।
- मध्य-पूर्व के साथ आर्थिक और रणनीतिक संबंध: भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे (India-Middle East-Europe economic corridor) जैसी पहलों के संदर्भ में मध्य-पूर्व के साथ भारत के आर्थिक एवं रणनीतिक संबंध अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो गए हैं। यदि संघर्ष बढ़ता है और इसमें हिज़बुल्लाह और ईरान जैसे अन्य क्षेत्रीय खिलाड़ी भी संलग्न होते हैं तो यह पश्चिम एशियाई क्षेत्र को अस्थिर कर सकता है।
- ऊर्जा आपूर्ति: पश्चिम एशियाई क्षेत्र भारत के लिये ऊर्जा आयात का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। क्षेत्र की स्थिरता में कोई भी व्यवधान संभावित रूप से भारत की ऊर्जा आपूर्ति को प्रभावित कर सकता है, जिससे आर्थिक चुनौतियाँ पैदा हो सकती हैं।
- भारतीय प्रवासियों के हित: भारत की एक बड़ी प्रवासी आबादी विभिन्न मध्य-पूर्वी देशों में कार्यरत है। यदि संघर्ष बढ़ता है तो इन भारतीय नागरिकों के हित एवं सुरक्षा के लिये खतरा उत्पन्न हो सकता है और भारत के लिये उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना आवश्यक हो जाता है।
भारत का रुख:
- भारत नवंबर 1947 में संयुक्त राष्ट्र की विभाजन योजना का विरोध करने वाले कुछ देशों में से एक था, जिसने कुछ माह पहले ही स्वतंत्रता के दौरान अपने स्वयं के अनुभव से यह दृष्टिकोण अपनाया था। इसके बाद के दशकों में भारतीय राजनीतिक नेतृत्व ने सक्रिय रूप से फिलिस्तीनी मुद्दे का समर्थन किया और इज़राइल के साथ पूर्ण राजनयिक संबंधों से परहेज किया।
- भारत ने वर्ष 1950 में इज़राइल को मान्यता दे दी थी लेकिन वह फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (PLO) को फिलिस्तीन के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में मान्यता देने वाला पहला गैर-अरब देश भी था। भारत वर्ष 1988 में फिलिस्तीन के राज्य के दर्जे को मान्यता देने देने वाले पहले देशों में से भी एक था।
- वर्ष 2014 में भारत ने गाजा में इज़राइल के मानवाधिकार उल्लंघनों की जाँच के लिये UNHRC के प्रस्ताव का समर्थन किया था। इस जाँच का समर्थन करने के बावजूद भारत ने वर्ष 2015 में UNHRC में इज़राइल के विरुद्ध मतदान से परहेज किया।
- ‘लिंक वेस्ट पॉलिसी’ के एक हिस्से के रूप में भारत ने वर्ष 2018 में इज़राइल और फिलिस्तीन के साथ अपने संबंधों को अलग-अलग देखने का दृष्टिकोण अपनाया ताकि दोनों देशों से परस्पर स्वतंत्र और विशिष्ट संबंध विकसित कर सके।
- भारत ने संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद (ECOSOC) में इज़राइल द्वारा पेश किये गए एक निर्णय के पक्ष में मतदान किया, जिसमें एक फिलिस्तीनी गैर-सरकारी संगठन को सलाहकार का दर्जा देने पर आपत्ति जताई गई थी।
- अभी तक भारत ने एक ओर फिलिस्तीनी आत्मनिर्णय (Palestinian self-determination) के प्रति अपनी ऐतिहासिक नैतिक समर्थक की छवि को बनाए रखने की कोशिश की है, तो दूसरी ओर इज़राइल के साथ सैन्य, आर्थिक एवं अन्य रणनीतिक संबंधों में संलग्न बने रहने का प्रयास किया है।
- भारत संघर्ष को हल करने के एकमात्र व्यवहार्य साधन के रूप में संवाद एवं कूटनीति की वकालत करता है। भारत इज़राइल और फिलिस्तीन के बीच शांति वार्ता को सुविधाजनक बनाने में अमेरिका, रूस, यूरोपीय संघ एवं संयुक्त राष्ट्र के क्वार्टेट (Quartet) के साथ ही अन्य क्षेत्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय अभिकर्ताओं की भूमिका का समर्थन करता है।
इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष का क्या समाधान हो सकता है?
- टू स्टेट सॉल्यूशन: टू स्टेट सॉल्यूशन (Two-State Solution) सबसे व्यापक रूप से समर्थित प्रस्तावों में से एक है, जो पारस्परिक रूप से सहमत और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर इज़राइल के साथ ही एक स्वतंत्र एवं संप्रभु फिलिस्तीनी राज्य के निर्माण की परिकल्पना करता है।
- टू स्टेट सॉल्यूशन का उद्देश्य संघर्ष के मुख्य मुद्दों—जैसे यरूशलेम, शरणार्थी, बसावट, सुरक्षा और जल बँटवारा आदि को संबोधित करना भी है।
- इसका भारत, अमेरिका, चीन सहित विभिन्न प्रमुख देशों ने समर्थन किया है।
- हालाँकि, टू स्टेट सॉल्यूशन के समक्ष कई चुनौतियों और बाधाएँ मौजूद हैं, जैसे:
- शांति के लिये आवश्यक सुलह उपायों एवं रियायतों के प्रति इज़राइल और फिलिस्तीन के बीच (और उनके घरेलू जनमत के बीच) राजनीतिक इच्छाशक्ति एवं भरोसे की कमी।
- वेस्ट बैंक एवं गाजा पट्टी के बीच और फतह एवं हमास के बीच फिलिस्तीनी नेतृत्व और क्षेत्र का विभाजन एवं विखंडन।
- ईरान, तुर्की, मिस्र और अमेरिका जैसे बाहरी तत्वों का प्रभाव एवं हस्तक्षेप, जिनके इस क्षेत्र में अपने हित और एजेंडे हैं।
- दोनों ओर से हिंसा और अतिवाद की वृद्धि, जो आबादी के बीच घृणा एवं असंतोष को बढ़ाती है और संवाद एवं सह-अस्तित्व की संभावनाओं को नष्ट कर देती है।
- टू स्टेट सॉल्यूशन का उद्देश्य संघर्ष के मुख्य मुद्दों—जैसे यरूशलेम, शरणार्थी, बसावट, सुरक्षा और जल बँटवारा आदि को संबोधित करना भी है।
अन्य समाधान: टू स्टेट सॉल्यूशन इज़रायल-फ़िलिस्तीन संघर्ष का एकमात्र संभावित समाधान नहीं है। ऐसे अन्य विकल्प भी हैं जिन्हें विभिन्न समूहों या व्यक्तियों द्वारा प्रस्तावित या समर्थित किया गया है, जैसे:
o वन स्टेट सॉल्यूशन: यह दृष्टिकोण एक एकल, द्वि-राष्ट्रीय राज्य की कल्पना करता है जहाँ इज़राइलियों और फिलिस्तीनियों दोनों को समान अधिकार एवं प्रतिनिधित्व प्राप्त हो।
इस समाधान में यह चुनौती मौजूद है कि दोनों समुदायों की चिंताओं को दूर किया जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि कोई भी पक्ष अधिकारहीन न महसूस करे।
o कॉन्फेडरेशन मॉडल: कुछ लोग सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और संसाधनों जैसे क्षेत्रों में साझा संस्थानों एवं सहयोग के साथ दो अलग-अलग राज्यों के एक परिसंघ (Confederation) का प्रस्ताव करते हैं। यह मॉडल सहयोग बनाए रखते हुए एक हद तक स्वायत्तता प्रदान कर सकता है।
o अंतर्राष्ट्रीय ट्रस्टीशिप: इस विकल्प के तहत एक अंतर्राष्ट्रीय निकाय या गठबंधन का प्रस्ताव किया जाता है जो उस अवधि तक इस क्षेत्र की देखरेख और शासन कर सकता है जब तक कि अधिक स्थिर एवं पारस्परिक रूप से सहमत समाधान तक नहीं पहुँचा जा सके। इस दृष्टिकोण की पूर्ति के लिये अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के सहयोग की आवश्यकता होगी।
अभ्यास प्रश्न: भारत की विदेश नीति पर, विशेष रूप से इज़राइल और अरब देशों के साथ इसके संबंधों के दृष्टिकोण से, इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष के प्रभाव की चर्चा कीजिये।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में "टू स्टेट सॉल्यूशन" शब्द का उल्लेख किस संदर्भ में किया जाता है? (2018) (a) चीन उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. “भारत के इज़रायल के साथ संबंधों ने हाल ही में एक ऐसी गहराई और विविधता हासिल की है, जिसकी पुनर्वापसी नहीं की जा सकती है।” विवेचना कीजिये। (2018) |