इज़रायल-फि़लिस्तीन संबंध

चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में इज़रायल की सरकार ने वेस्ट बैंक स्थित बस्तियों का विस्तार करने की घोषणा की है।
  • इजरायल की सरकार द्वारा की गई यह घोषणा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के एक प्रस्ताव के पश्चात् की गई है। इस प्रस्ताव में सुरक्षा परिषद् ने यह घोषणा की थी कि इन बस्तियों की कोई कानूनी वैधता नहीं है।

कालानुक्रम


इस संघर्ष की शुरुआत वर्ष 1917 में उस समय हुई जब तत्कालीन ब्रिटिश विदेश सचिव आर्थर जेम्स बल्फौर ने ‘बल्फौर घोषणा’ (Balfour Declaration) के तहत फिलिस्तीन में एक यहूदी ‘राष्ट्रीय घर’ (National Home) के निर्माण के लिये ब्रिटेन का आधिकारिक समर्थन किया था। परंतु इसमें ‘मौजूदा गैर-यहूदी समुदायों के अधिकारों’ (rights of existing Non-Jewish Communities) के संबंध में कोई चिंता व्यक्त नहीं की गई थी। उदाहरणस्वरूप- इस क्षेत्र में अरब समुदाय लंबे समय से हिंसक गतिविधियों में संलग्न था।

अरब और यहूदी हिंसा को समाप्त करने में असफल रहे ब्रिटेन ने वर्ष 1948 में फिलिस्तीन से अपने सुरक्षा बलों को हटा लिया और अरब तथा यहूदियों के दावों का समाधान करने के लिये इस मुद्दे को नवनिर्मित संगठन संयुक्त राष्ट्र के विचारार्थ रख दिया था। संयुक्त राष्ट्र ने फिलिस्तीन में स्वतंत्र यहूदी और अरब राज्यों की स्थापना करने के लिये एक विभाजन योजना (partition plan) प्रस्तुत की। हालाँकि, फिलिस्तीन में रह रहे कई यहूदियों ने तो इस विभाजन को स्वीकार कर लिया परंतु अधिकांश अरबों ने इस पर अपनी सहमति प्रकट नहीं की।

वर्ष 1948 में यहूदियों ने इज़रायल के आस-पास के स्वतंत्र अरब देशों पर आक्रमण की घोषणा की थी। परंतु युद्ध के अंत में इज़रायल ने संयुक्त राष्ट्र की विभाजन योजना के आदेशानुसार प्राप्त भूमि से भी अधिक भूमि पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया। इस युद्ध के पश्चात् जॉर्डन ने वेस्ट बैंक व जेरूसलम के पवित्र स्थानों पर तथा मिस्र ने गाजा पट्टी पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया था।

1964 : फि़लिस्तीन मुक्ति संगठन (PLO) का गठन

1967: अरब-इजरायल युद्ध के छह दिनों की समयावधि में इजरायली सेना ने सीरिया से गोलन हाइट्स, जॉर्डन से वेस्ट बैंक तथा पूर्वी जेरूसलम को अपने अधिकार क्षेत्र में कर लिया।

1975: संयुक्त राष्ट्र ने फिलिस्तीन मुक्ति संगठन को पर्यवेक्षक का दर्जा दिया और फिलिस्तीनियों के आत्मनिर्णय के अधिकार को मान्यता प्रदान की।

कैंप डेविड अकॉर्ड्स (1978): इज़रायल और इसके पड़ोसियों के मध्य शांति वार्त्ता कराने के उद्देश्य से अमेरिका द्वारा मध्य-पूर्व में शांति की स्थापना के लिये एक ढाँचा तैयार किया गया तथा फिलिस्तीनी समस्या के समाधान हेतु एक प्रस्ताव भी पारित किया गया। हालाँकि, यह कार्य पूर्ण नहीं हो सका।

1981: इज़रायल ने प्रभावी रूप से गोलन हाइट्स पर अधिकार कर लिया परंतु इसके पश्चात् भी इसे ब्रिटेन अथवा अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा मान्यता प्रदान नहीं की गई।

1987: हमास का गठन। यह मुस्लिम भाईचारे की मांग हेतु फिलिस्तीन का एक हिंसक संगठन है। इसका गठन हिंसक जिहाद के माध्यम से फिलिस्तीन के प्रत्येक भाग पर मुस्लिम धर्म का विस्तार करने के उद्देश्य से किया गया था।

1987: पश्चिमी किनारे और गाजा पट्टी के अधिगृहीत किये गए क्षेत्रों में तनाव व्याप्त हो गया जिसके परिणामस्वरूप प्रथम इन्तिफादा (Intifida) अथवा फिलिस्तीन विद्रोह हुआ। यह विद्रोह फिलिस्तीनी सैनिकों और इजरायली सेना के मध्य एक छोटे युद्ध में परिवर्तित हो गया।

1988: जॉर्डन ने फिलिस्तीन मुक्ति संगठन तथा पश्चिमी किनारे और पूर्वी जेरूसलम के संबंध में किये गए अपने सभी दावों का त्याग कर दिया।

1993: ओस्लो समझौते के अंतर्गत इज़रायल और फिलिस्तीन मुक्ति संगठन ने एक-दूसरे को आधिकारिक मान्यता देने तथा हिंसक गतिविधियों को त्यागने पर अपनी सहमति प्रकट की। ओस्लो समझौते के तहत एक फिलिस्तीनी प्राधिकरण की भी स्थापना की गई थी। हालाँकि इस प्राधिकरण को गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक के भागों में सीमित स्वायत्तता ही प्राप्त हुई थी।

2005: इज़रायल ने गाजा की बस्तियों से यहूदियों की एकतरफा वापसी कराई। हालाँकि इसके बावजूद इज़रायल ने सभी नाकाबंदियों (blockade)पर कठोर नियंत्रण भी बनाए रखा।

2006: हमास ने फिलिस्तीनी प्राधिकरण चुनावों में जीत हासिल की। इसके परिणामस्वरूप फिलिस्तीनी ‘फतह आंदोलन’ (जिसका प्रतिनिधित्व राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने किया) और ‘हमास’ (जो कैबिनेट और संसद पर नियंत्रण रखेगा) के मध्य विभाजित हो गए।

2007: फतह एवं हमास की संयुक्त सरकार के गठन के कुछ माह पश्चात् ही फिलिस्तीनी आंदोलन का विभाजन हो गया। हमास सैनिकों ने गाजा से फतह का समर्थन किया। फिलिस्तीनी प्राधिकृत राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने रामल्लाह (वेस्ट बैंक पर स्थित) में एक नई सरकार का गठन किया जिसे शीघ्र ही संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ द्वारा मान्यता प्रदान कर दी गई। गाजा हमास के नियंत्रण में ही रहा।

2012: संयुक्त राष्ट्र ने फिलिस्तीन के प्रतिनिधित्व को ‘गैर-सदस्य पर्यवेक्षक राष्ट्र’ (non-member observer state) में परिवर्तित कर दिया।

2014: इज़रायल ने अनेक हमास सदस्यों को गिरिफ़्तार करके वेस्ट बैंक में अपह्यत अपने तीन यहूदी नवयुवकों की मौत का प्रतिशोध लिया।

2014: फतह और हमास ने एक संयुक्त सरकार का गठन किया, यद्यपि इन दोनों गुटों के मध्य अभी भी अविश्वास बना हुआ है।

प्रादेशिक विवाद

वेस्ट बैंक

वेस्ट बैंक इज़रायल और जॉर्डन के मध्य अवस्थित है। इसका एक सबसे बड़ा शहर ‘रामल्लाह’ (Ramallah) है। यह शहर फिलिस्तीन की वास्तविक प्रशासनिक राजधानी है। इज़रायल ने वर्ष 1967 के युद्ध में इस पर अपना नियंत्रण स्थापित किया।

गाजा

गाजा पट्टी इज़रायल और मिस्र के मध्य स्थित है। इज़रायल ने 1967 के पश्चात् इस पट्टी का अधिग्रहण किया था परंतु गाजा शहर के अधिकांश क्षेत्रों के नियंत्रण तथा इनके प्रतिदिन के प्रशासन पर नियंत्रण का निर्णय ओस्लो शांति प्रक्रिया के दौरान किया गया था। वर्ष 2005 में इज़रायल ने इस क्षेत्र से यहूदी बस्तियों को हटा दिया यद्यपि उसने इन पर अंतर्राष्ट्रीय पहुँच के माध्यम से नियंत्रण बनाए रखा।

गोलन हाइट्स

गोलन हाइट्स एक सामरिक पठार है जिसे इज़रायल ने वर्ष 1967 के युद्ध में सीरिया से छीन लिया था। इज़रायल ने वर्ष 1981 में इस क्षेत्र पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था परंतु उसके इस कदम को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्रदान नहीं की गई।

फिलिस्तीनी प्राधिकरण

इसका सृजन वर्ष 1994 के ओस्लो समझौते से किया गया था। यह फतह गुट के राष्ट्रपति महमूद अब्बास के नेतृत्व में चलने वाला फिलिस्तीनी लोगों का आधिकारिक शासी निकाय है। भ्रष्टाचार और राजनीतिक कलहों के कारण फिलिस्तीनी प्राधिकरण एक ऐसा स्थाई संस्था बनने में असफल रहा है जैसी इसके सृजनकर्ताओं ने अपेक्षा की थी।

फतह

इसका गठन स्व. यासिर अराफात ने 1950 के दशक में किया था। फतह सबसे बड़ा फिलिस्तीनी राजनीतिक गुट है।

हमास

हमास को अमेरिकी सरकार द्वारा गठित एक आतंकवादी संगठन के रूप में मान्यता प्राप्त है। वर्ष 2006 में हमास ने फिलिस्तीनी प्राधिकरण के विधायी चुनावों में अपनी जीत दर्ज की। इसने वर्ष 2007 में गाजा से फतह को निष्कासित कर दिया तथा फिलिस्तीनी आंदोलन का भी भौगोलिक रूप से विभाजन कर दिया।

द्विराज्यीय समाधान (two-state solution)

द्विराज्यीय समाधान 1974 के संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव पर आधारित है। इसके अंतर्गत यह प्रस्तावित किया गया था कि इन दोनों में से एक राज्य में यहूदी तथा अन्य में फिलिस्तीनी अरब बहुसंख्यक स्थिति में होंगे। हालाँकि इस विचार को अरबों द्वारा अस्वीकृत कर दिया गया था।

दशकों से अंतर्राष्ट्रीय समुदायों द्वारा इजरायल-फिलिस्तानी संघर्ष को समाप्त करने वाला यह एकमात्र वास्तविक समझौता था। परंतु प्रश्न यह उठता है कि इस समस्या का समाधान करना इतना मुश्किल क्यों था?

सीमाएँ :


वेस्ट बैंक के उन क्षेत्रों में जो वास्तविक सीमा रेखा का सृजन करते हैं, इज़रायल की निर्माणाधीन बस्तियों के कारण अवरोध की स्थिति उत्पन्न हो गई है जिस कारण इन समुदायों में सीमा रेखा के निर्धारण को लेकर कोई आम सहमति नहीं है।

जेरुसलम

दोनों पक्षों ने जेरुसलम का दावा अपनी राजधानी के रूप में किया है तथा इसे धार्मिक स्थल और सांस्कृतिक विरासत का केंद्र माना है। अतः जेरुसलम का विभाजन कठिन हो गया है।

शरणार्थी

बड़ी संख्या में ऐसे फिलिस्तीनी लोग जो युद्ध के दौरान अपने घरों तथा परिवार के सदस्यों को खो चुके हैं यह विश्वास करते हैं कि उनके पास ‘वापसी का अधिकार’ (Right to Return) है परंतु इज़रायल इन लोगों के वक्तव्यों के विरुद्ध है।

दोनों पक्षों पर विभाजित राजनीतिक नेतृत्व

फिलिस्तीनी नेतृत्व विभाजित है। वेस्ट बैंक के फिलिस्तीनी नेतृत्व ने द्विराज्यीय समाधान का समर्थन किया है जबकि गाजा के नेताओं ने इज़रायल को मान्यता तक प्रदान नहीं की है। यद्यपि इज़रायल के प्रधानमंत्रियों यथा-एहुद बराक, एरियल शेरोन, एहुद ओल्मर्ट और बेंजामिन नेतान्याहू ने फिलिस्तीनी राज्य के विचार को स्वीकृति दी तथापि ये इन विचारों में भिन्न थे कि इसका सृजन वास्तव में किस प्रकार होना चाहिये।

इजरायल के प्रधानमंत्री की हाल ही में हुई अमेरिकी यात्रा के दौरान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सार्वजनिक रूप से यह वक्तव्य दिया कि वह फिलिस्तीन में द्विराज्यीय समाधान के माध्यम से इस विचलन का समर्थन कर सकते हैं। वह संभवतः ऐसे प्रथम अमेरिकी राष्ट्रपति हैं जिन्होंने लंबे समय से चली आ रही अमेरिकी नीति से पृथव्फ़ रुख अपनाकर इज़रायल और फिलिस्तीनियों के लिये द्विराज्यीय समाधान का समर्थन किया है।