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जैव विविधता और पर्यावरण

ओज़ोन प्रदूषण

  • 11 Jul 2019
  • 14 min read

संदर्भ

हाल ही में गैर-सरकारी संस्था विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र ने एक रिपोर्ट जारी की है, जिसके अनुसार देश की राजधानी दिल्ली के वातावरण में बीते सालभर में ओज़ोन के प्रदूषक कणों की मात्रा डेढ़ गुना तक बढ़ गई है। पिछले वर्ष 1 अप्रैल से 5 जून के बीच 17 दिन ऐसे थे जब हवा में ओज़ोन की मात्रा मानकों से अधिक थी, जबकि इस वर्ष 28 दिन ऐसे रहे जब ओज़ोन प्रदूषण की मात्रा निर्धारित मानक से काफी ज़्यादा रही। पिछले साल 8 घंटे के औसत में ओज़ोन की मात्रा 106 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर थी, जबकि इस वर्ष यह 122 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर रही।

क्या है ओज़ोन?

ओज़ोन (Ozone-O3) ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं से मिलकर बनने वाली एक गैस है जो वायुमंडल में बेहद कम मात्रा में पाई जाती हैं। पृथ्वी की सतह से 30-32 किमी. की ऊँचाई पर इसकी सांद्रता अधिक होती है। यह हल्के नीले रंग की तीव्र गंध वाली विषैली गैस है। है।

अच्छा व बुरा ओज़ोन (Good & Bad Ozone)

  • ओज़ोन गैस समतापमंडल (Stratosphere) में अत्यंत पतली एवं पारदर्शी परत के रूप में पाई जाती है। यह वायुमंडल में मौज़ूद समस्त ओज़ोन का कुल 90 प्रतिशत है, इसे अच्छा ओज़ोन माना जाता है।
  • वायुमंडल में ओज़ोन का कुल प्रतिशत अन्य गैसों की तुलना में बहुत ही कम है। प्रत्येक दस लाख वायु अणुओं में दस से भी कम ओज़ोन अणु होते हैं।
  • ओज़ोन की कुछ मात्रा निचले वायुमंडल (क्षोभमंडल-Troposphere) में भी पाई जाती है। यह ओज़ोन सामान्यत: मानव निर्मित होती है जिसे बुरा ओज़ोन (Bad Ozone) कहा जाता है।
  • रासायनिक रूप से समान होने पर भी दोनों स्थानों पर ओज़ोन की भूमिका अलग-अलग है।
  • समतापमंडल में यह पृथ्वी को हानिकारक पराबैंगनी विकिरण (Utra-violet Radiation) से बचाती है।
  • क्षोभमंडल में ओज़ोन हानिकारक संदूषक (Pollutants) के रूप में कार्य करती है और बहुत कम मात्रा में होने के बावजूद मानव के फेफड़ों, तंतुओं तथा पेड़-पौधों को नुकसान पहुँचा सकती है।

वायुमंडल में ओज़ोन परत का महत्त्व

हमारे वायुमंडल में ओज़ोन परत का बहुत महत्त्व है क्योंकि यह सूर्य से आने वाले अल्ट्रा-वॉयलेट रेडिएशन यानी पराबैंगनी विकिरण को सोख लेती है। लेकिन इन किरणों का पृथ्वी तक पहुँचने का मतलब है अनेक तरह की खतरनाक और जानलेवा बीमारियों का जन्म लेना। इसके अलावा यह पेड़-पौधों और जीवों को भी भारी नुकसान पहुँचाती है। पराबैंगनी विकिरण मनुष्य, जीव जंतुओं और वनस्पतियों के लिये अत्यंत हानिकारक है।

कैसे बनते हैं ओज़ोन प्रदूषक कण?

  • नाइट्रोजन ऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन जब तीखी धूप के साथ प्रतिक्रिया करते हैं तो ओज़ोन प्रदूषक कणों का निर्माण होता है।
  • वाहनों और फैक्टरियों से निकलने वाली कार्बन मोनोऑक्साइड व अन्य गैसों की रासायनिक क्रिया भी ओज़ोन प्रदूषक कणों का निर्माण करती है।
  • आज हमारी लपारवाहियों और बढ़ते औद्योगिकरण के साथ ही गाड़ियों और कारखानों से निकलने वाली खतरनाक गैसों के कारण ओज़ोन परत को भारी नुकसान हो रहा है और इसकी वज़ह से ओज़ोन प्रदूषण लगातार बढ़ता जा रहा है। साथ ही इसका दुष्प्रभाव भी देखने को मिल रहा है।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार, 8 घंटे के औसत में ओज़ोन प्रदूषक की मात्रा 100 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर से अधिक नहीं होनी चाहिये।

पृथ्वी का सुरक्षा कवच है ओज़ोन

ओज़ोन परत को पृथ्वी का सुरक्षा कवच कहा जाता है, लेकिन पृथ्वी पर लगातार बढ़ रहे प्रदूषण के कारण इस कवच की मज़बूती लगातार कम होती जा रही है। जैसा कि हम बता चुके हैं कि ओज़ोन का एक अणु ऑक्सीजन के तीन अणुओं के जुड़ने से बनता है। इसका रंग हल्का नीला होता है और इससे एक विशेष प्रकार की तीव्र गंध आती है। भूतल से लगभग 50 किलोमीटर की ऊँचाई पर वायुमंडल में ऑक्सीजन, हीलियम, ओज़ोन, और हाइड्रोजन गैसों की परतें होती हैं, जिनमें ओज़ोन परत पृथ्वी के लिये एक सुरक्षा कवच का काम करती है क्योंकि यह परत सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैगनी किरणों से पृथ्वी पर मानव जीवन की रक्षा करती है। मानव शरीर की कोशिकाओं में सूर्य से आने वाली इन पराबैगनी किरणों को सहने की शक्ति नहीं होती।

ओज़ोन परत में छिद्र (Ozone Hole)

  • कई अध्ययनों में यह पाया गया है कि वायुमंडल में सूर्य से आने वाली पैराबैंगनी किरणों का 99 प्रतिशत वहीं अवशोषित कर लेने वाली ओज़ोन की मात्रा धीरे-धीरे कम होती जा रही है।
  • ओज़ोन परत के क्षय की जानकारी सर्वप्रथम वर्ष 1960 में मिली थी। एक अनुमान के अनुसार, वायुमंडल में ओज़ोन की मात्रा प्रतिवर्ष 0.5 प्रतिशत की दर से कम हो रही है।
  • वर्ष 1985 में वैज्ञानिकों ने यह भी पता लगाया कि अंटार्कटिका महाद्वीप के ऊपर ओज़ोन परत में एक बड़ा छिद्र हो गया है और यह लगातार बढ़ रहा है। इससे अंटार्कटिका के ऊपर वायुमंडल में ओज़ोन की मात्रा 20 से 30 प्रतिशत कम हो गई है।
  • अंटार्कटिका के अलावा ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड आदि देशों के ऊपर भी वायुमंडल में ओज़ोन परत में छिद्र देखे गए हैं।

क्यों हो रहा ओज़ोन परत का क्षरण?

ओज़ोन परत में होने वाले क्षरण का कारण मनुष्य खुद है, जिसके क्रियाकलापों से जीव-जगत की रक्षा करने वाली इस परत को नुकसान पहुँच रहा है। मानवीय क्रियाकलापों ने वायुमंडल में कुछ ऐसी गैसों की मात्रा को बढ़ा दिया है जो पृथ्वी पर जीवन की रक्षा करने वाली ओज़ोन परत को नष्ट कर रही हैं।

ओज़ोन परत में हो रहे क्षरण के लिये क्लोरो फ्लोरो कार्बन गैस प्रमुख रूप से उत्तरदायी है। इसके अलावा हैलोजन, मिथाइल क्लोरोफॉर्म, कार्बन टेट्राक्लोराइड आदि रासायनिक पदार्थ भी ओज़ोन को नष्ट करने में योगदान दे रहे हैं। क्लोरो फ्लोरो कार्बन गैस का उपयोग हम मुख्यत: अपनी दैनिक सुख सुविधाओं के उपकरणों में करते हैं, जिनमें एयर कंडीशनर, रेफ्रिजरेटर, फोम, रंग, प्लास्टिक इत्यादि शामिल हैं।

ओज़ोन परत क्षय के दुष्प्रभाव

ओज़ोन परत के क्षरण की वज़ह से सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणें पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश कर सकती हैं और पेड़-पौधों तथा जीव-जंतुओं के लिये हानिकारक भी होती हैं। मानव शरीर में इन किरणों की वज़ह से त्वचा का कैंसर, श्वास रोग, अल्सर, मोतियाबिंद जैसी बीमारियाँ हो सकती हैं। साथ ही ये किरणें मानव शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को भी प्रभावित करती हैं।

वियना सम्मेलन

ओज़ोन क्षरण के मुद्दे पर अंतर्राष्ट्रीय समझौते हेतु अंतर-सरकारी वार्ता वर्ष 1981 में प्रारंभ हुई। मार्च, 1985 में ओज़ोन परत के संरक्षण के लिये वियना में एक विश्वस्तरीय सम्मेलन हुआ, जिसमें ओज़ोन संरक्षण से संबंधित अनुसंधान पर अंतर-सरकारी सहयोग, ओज़ोन परत का सुव्यवस्थित तरीके से निरीक्षण, क्लोरो फ्लोरो कार्बन गैसों की निगरानी और सूचनाओं के आदान-प्रदान जैसे मुद्दों पर गंभीरता से चर्चा की गई। इस सम्मेलन में मानव स्वास्थ्य और ओज़ोन परत में परिवर्तन करने वाली मानवीय गतिविधियों की रोकथाम करने के लिये प्रभावी उपाय अपनाने पर सदस्य देशों ने प्रतिबद्धता व्यक्त की।

क्या है मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल?

संयुक्त राष्ट्र के तत्त्वावधान में ओज़ोन परत में हो रहे क्षरण से उत्पन्न चिंताओं के निवारण हेतु कनाडा के मॉन्ट्रियल में 16 सितंबर, 1987 को विभिन्न देशों के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए जिसे मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल कहा जाता है। इसका क्रियान्वयन 1 जनवरी, 1989 को हुआ। इस प्रोटोकॉल में ऐसा माना गया है कि वर्ष 2050 तक ओज़ोन परत को नुकसान पहुँचाने वाले तत्त्वों के उत्पादन पर नियंत्रण कर लिया जाएगा। इस सम्मेलन में यह भी तय किया गया कि ओज़ोन परत को नष्ट करने वाले क्लोरो फ्लोरो कार्बन जैसी गैसों के उत्पादन एवं उपयोग को सीमित किया जाएगा। भारत ने भी इस प्रोटोकाल पर हस्ताक्षर किये हैं। वर्ष 1990 में मॉन्ट्रियल संधि पर हस्ताक्षर करने वाले देशों ने वर्ष 2000 तक क्लोरो फ्लोरो कार्बन और टेट्रा क्लोराइड जैसी गैसों के प्रयोग को भी पूरी तरह से बंद करने की शुरुआत की थी। मॉन्ट्रियल प्रोटोकाल वस्तुतः ओज़ोन परत के संदर्भ में एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है जिसमें ओज़ोन परत को नुकसान पहुँचाने वाले पदार्थों को कम करने पर ज़ोर दिया जाता है।

वायुमंडल स्वस्थ तो हम भी स्वस्थ

पृथ्वी को चारों ओर से घेरे हुए वायु को ‘वायुमंडल’ कहते हैं। वायुमंडल अनेक प्रकार की गैसों का मिश्रण है और यह गुरुत्वाकर्षण शक्ति की वज़ह से पृथ्वी से बंधा हुआ है। वायुमंडल में वायु एवं गैसों की अनेक संकेंद्रित परतें हैं, जो घनत्व, तापमान, एवं स्वभाव की दृष्टि से एक-दूसरे से पूर्णत: भिन्न हैं। वायुमंडल की वज़ह से ही पृथ्वी पर जीवन संभव है। वायुमंडल पृथ्वी के सभी प्राणियों के लिये सुरक्षा कवच का काम करता है। यह सूर्य की तेज़ किरणों को फिल्टर करने के बाद धरती पर आने देता है। यह पृथ्वी पर तापमान के संतुलन और जलवायु नियंत्रण में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

विश्व ओज़ोन दिवस

ओज़ोन एक प्राकृतिक गैस है, जो वायुमंडल में बहुत कम मात्रा में पाई जाती है। पृथ्वी पर ओज़ोन दो क्षेत्रों में पाई जाती है- ओज़ोन अणु वायुमंडल की ऊपरी सतह में एक बेहद पतली परत बनाते हैं। इसी को ओज़ोन परत कहते हैं तथा वायुमंडल की कुल ओज़ोन का 90 प्रतिशत यहीं होता है। इसी ओज़ोन परत के क्षरण की समस्या पर विश्व का ध्यान आकर्षित करने हेतु संयुक्त राष्ट्र ने 16 दिसंबर का दिन विश्व ओज़ोन दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। वर्ष 1987 में इसी दिन ओज़ोन क्षरण कारक पदार्थों के निर्माण और खपत में कमी संबंधी मांसहमति पर विभिन्न देशों ने मॉन्ट्रियल में हस्ताक्षर किये थे। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा गठित समिति ने क्लोरो फ्लोरो कार्बन में चरणबद्ध कमी करने के लिये समझौते का मसौदा तैयार किया, जिसे मॉन्ट्रियल प्रोटोकाल कहा जाता है। यह वर्ष 1987 से प्रभावी है और अब तक लगभग 150 देश इस पर हस्ताक्षर कर चुके हैं तथा इसके नियमों को स्वीकार कर चुके हैं।

अभ्यास प्रश्न: ओज़ोन गैस के अभाव में मनुष्य और जीव-जगत का अस्तित्व संभव नहीं है। तर्क सहित व्याख्या कीजिये।

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