शासन व्यवस्था
सिलिकोसिस
प्रिलिम्स के लिये:सिलिकोसिस रोग मेन्स के लिये:खनन सुरक्षा से जुड़े मुद्दे, सिलिकोसिस रोग, इसकी रोकथाम के प्रयास एवं चुनैतियाँ |
चर्चा में क्यों?
भारत में खदानों, निर्माण कार्यों और कारखानों में कार्यरत अनगिनत श्रमिक धूल के संपर्क में आने के कारण धीरे-धीरे मृत्यु की ओर बढ़ रहे हैं। इसे सिलिकोसिस (Silicosis) के रूप में जाना जाता है।
- धूल के संपर्क में आने के कारण सिलिकोसिस को एक व्यावसायिक बीमारी या खतरे के रूप में वर्णित किया जा सकता है। यह लाइलाज है और स्थायी विकलांगता का कारण बन सकती है।
- हालाँकि उपलब्ध नियंत्रण उपायों और प्रौद्योगिकी द्वारा इसे पूरी तरह से रोका जा सकता है।
प्रमुख बिंदु
- सिलिकोसिस के बारे में:
- सिलिकोसिस आमतौर पर उत्खनन, निर्माण और भवन निर्माण उद्योगों में काम करने वाले लोगों में होता है।
- सिलिका (SiO2/सिलिकॉन डाइऑक्साइड) एक क्रिस्टल/धातु जैसा खनिज है जो रेत, चट्टान और क्वार्ट्ज़ में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
- यह एक फेफड़ों की बीमारी है जो लंबे समय तक सिलिका के छोटे-छोटे कणों के साँस के माध्यम से शरीर के भीतर प्रवेश करने से होती है, जिसके सामान्य लक्षणों में साँस लेने में परेशानी होना, खाँसी, बुखार और त्वचा का रंग नीला पड़ना शामिल है।
- यह दुनिया में सबसे अधिक प्रचलित व्यावसायिक स्वास्थ्य बीमारियों में से एक है। औद्योगिक और गैर-औद्योगिक स्रोतों से उत्पन्न सिलिका धूल के जोखिम का प्रभाव गैर-व्यावसायिक क्षेत्रों की आबादी पर भी देखा जाता है।
- बड़ी मात्रा में मुक्त सिलिका के संपर्क पर ध्यान नहीं दिया जा सकता है क्योंकि सिलिका गंधहीन, गैर-उत्तेजक है और इसका तत्काल स्वास्थ्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, लेकिन लंबे समय तक इसके संपर्क में आने पर एक्सपोज़र न्यूमोकोनियोसिस, फेफड़ों का कैंसर, फुफ्फुसीय तपेदिक और अन्य फेफड़ों से संबंधित रोग उत्पन्न होते हैं।
- न्यूमोकोनियोसिस (Pneumoconiosis) फेफड़ों से संबंधित रोगों के समूह में से एक है जो कुछ प्रकार के धूल कणों में साँस लेने के कारण होता है और ये फेफड़ों को नुकसान पहुँचाते हैं।
- इसके निदान के संदर्भ में सबसे बड़ी चुनौती यह है कि इसका पता लगाना कठिन हो जाता है कि रोगी तपेदिक (Tuberculosis) या सिलिकोसिस से ग्रसित है या नहीं।
- ग्रंथियाँ जो एक समूह निर्मित करने के लिये एकत्र होती हैं, उन्हें छाती के एक्स-रे द्वारा पहचानने में 20 वर्ष तक का समय लग सकता है और पीड़ित को कई वर्षों तक सिलिका के संपर्क में रहने के बाद ही लक्षण दिखाई देते हैं।
- सामान्यत: सिलिकोटिक नोड्यूल दृढ़, असंतत, गोल घाव होते हैं जिनमें काले वर्णक की एक चर मात्रा होती है।
- नोड्यूल श्वसन ब्रोन्किओल्स (Bronchioles) और छोटी फुफ्फुसीय (Pulmonary) धमनियों के आसपास होते हैं।
- भारत में निर्माण और खनन श्रमिकों के बीच गुजरात, राजस्थान, पुद्दुचेरी, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में सिलिकोसिस का प्रभाव अधिक देखा गया है।
- सिलिकोसिस आमतौर पर उत्खनन, निर्माण और भवन निर्माण उद्योगों में काम करने वाले लोगों में होता है।
- सरकार द्वारा उठाए गए कदम:
- कानूनी सुरक्षा: सिलिकोसिस को खान अधिनियम (Mines Act), 1952 और फैक्ट्री अधिनियम, 1948 के तहत अधिसूचित बीमारी के रूप में शामिल किया गया है।
- इसके अलावा फैक्ट्री अधिनियम, 1948 के तहत हवादार कामकाजी वातावरण, धूल से सुरक्षा, भीड़भाड़ में कमी और बुनियादी व्यावसायिक स्वास्थ्य देखभाल के प्रावधान को अनिवार्य किया गया है।
- सिलिकोसिस पोर्टल: सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग द्वारा एक 'सिलिकोसिस पोर्टल' की शुरुआत की गई है।
- स्व-पंजीकरण: ज़िला स्तरीय न्यूमोकोनियोसिस बोर्डों के माध्यम से यह कार्यकर्त्ता स्व-पंजीकरण और निदान की एक प्रणाली है जिसके आधार पर ज़िला खनिज फाउंडेशन ट्रस्ट (DMFT) निधि से मुआवज़ा दिया जाता है, इसमें खदान मालिक योगदान करते हैं।
- व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यस्थल स्थिति संहिता 2020 (OSHWC):
- यह संहिता सभी नियोक्ताओं के लिये सरकार द्वारा निर्धारित उपयुक्त वार्षिक स्वास्थ्य जाँच मुफ्त प्रदान करना अनिवार्य बनाती है।
- कानूनी सुरक्षा: सिलिकोसिस को खान अधिनियम (Mines Act), 1952 और फैक्ट्री अधिनियम, 1948 के तहत अधिसूचित बीमारी के रूप में शामिल किया गया है।
- संबद्ध चुनौतियाँ:
- अधिसूचना का अभाव: खनन क्षेत्र द्वारा सिलिकोसिस के संबंध में अधिसूचना के अभाव के कारण अधिकांशतः सिलिकोसिस का निदान तपेदिक के रूप में किया जाता है।
- अमानवीय चक्र: वर्तमान प्रणाली को खनन क्षेत्र में श्रमिकों का उपयोग करने और कम मुआवज़े के साथ उसे सक्षम श्रमिकों के साथ स्थापित करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- OSHWC संहिता में खामियाँ: संहिता खदान मालिक पर खदान में वैकल्पिक रोज़गार और किसी भी प्रकार के पुनर्वास या चिकित्सकीय रूप से अनुपयुक्त पाए गए कर्मचारी के लिये विकलांगता भत्ता/एकमुश्त मुआवज़े के भुगतान का कोई दायित्व नहीं डालती है।
- फंड का कम उपयोग: जिला खनिज फाउंडेशन ट्रस्ट (DMFT) के फंड का कम उपयोग किया जाता है और पूरी तरह से तदर्थ तरीके से व्यय किया जाता है।
आगे की राह
- राजस्थान मॉडल: राजस्थान देश में खनिज उत्पादन में 17% से अधिक का योगदान देता है जो शीर्ष भागीदारों में से एक है और नागरिक समाज की सक्रियता का इसका एक लंबा इतिहास है।
- इसे संज्ञान में लेते हुए राजस्थान वर्ष 2015 में सिलिकोसिस को 'महामारी' के रूप में अधिसूचित करने वाला पहला राज्य बन गया।
- इसके अलावा 2019 में इसने एक औपचारिक न्यूमोकोनियोसिस नीति की घोषणा की, जो अब तक केवल हरियाणा द्वारा लागू की गई थी।
- यह मॉडल अन्य खनिज उत्पादक राज्यों द्वारा भी लागू किया जा सकता है।
- OSHWC का उचित कार्यान्वयन: OSHWC संहिता के तहत राज्य द्वारा नियमों में यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि प्रतिष्ठानों में सभी श्रमिकों की स्वास्थ्य जाँच की जाए, चाहे उनकी उम्र कुछ भी हो।
- स्थानीय उत्पादकों को प्रोत्साहित करना: स्थानीय उत्पादकों को कम लागत वाली धूल-दमनकारी और वेट-ड्रिलिंग तंत्र विकसित करने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये, जिसके लिये या तो सब्सिडी दी जा सकती है या यह खान मालिकों को मुफ्त प्रदान किया जा सकता है।
स्रोत: द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक 2021
प्रिलिम्स के लिये:वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक, उष्णकटिबंधीय चक्रवात, चक्रवात फानी मेन्स के लिये:जलवायु परिवर्तन संबंधी मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण थिंक टैंक 'जर्मनवॉच' ने वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक 2021 (Global Climate Risk Index 2021) जारी किया।
- यह इस सूचकांक का 16वाँ संस्करण है। यह प्रतिवर्ष प्रकाशित होता है।
- बॉन और बर्लिन (जर्मनी) में स्थित जर्मनवाच एक स्वतंत्र विकास और पर्यावरण संगठन है जो सतत् वैश्विक विकास के लिये कार्यरत है।
प्रमुख बिंदु
- सूचकांक के बारे में :
- सूचकांक इस बात का विश्लेषण करता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न मौसम संबंधित घटनाओं (तूफान, बाढ़, हीट वेव आदि) के प्रभावों से देश और क्षेत्र किस हद तक प्रभावित हुए हैं।
- इसके अंतर्गत घातक मानवीय प्रभावों और प्रत्यक्ष आर्थिक नुकसान दोनों का विश्लेषण किया जाता है।
- इसमें वर्ष 2019 के उपलब्ध नवीनतम आँकड़ों और 2000-2019 के दशक के आँकड़ों का विश्लेषण किया गया है।
- वर्ष 2021 के सूचकांक में संयुक्त राज्य अमेरिका केआँकड़ों को शामिल नहीं किया गया है।
- जलवायु जोखिम सूचकांक स्पष्ट रूप से संकेत देता है कि किसी भी महाद्वीप या किसी भी क्षेत्र में बढ़ते जलवायु परिवर्तन के नतीजों को अब नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता है।
- चरम मौसम की घटनाएँ सबसे गरीब देशों को अधिक प्रभावित करती हैं क्योंकि ये विशेष रूप से खतरे के हानिकारक प्रभावों के प्रति संवेदनशील होते हैं, इनकी प्रतिरोधी क्षमता कम होती है और इन्हें पुनर्निर्माण तथा पुनर्प्राप्ति के लिये अधिक समय की आवश्यकता हो सकती है।
- जलवायु परिवर्तन से उच्च आय वाले देश भी प्रचंड रूप से प्रभावित हो रहे हैं।
- वर्ष 2021 के प्रमुख निष्कर्ष:
- मोज़ाम्बिक, ज़िम्बाब्वे और बहामास वर्ष 2019 में सबसे अधिक प्रभावित देश थे।
- 2000 से 2019 की अवधि के लिये प्यूर्टो रिको, म्याँमार और हैती सर्वोच्च स्थान पर हैं।
- तूफान और उनके प्रत्यक्ष प्रभाव- वर्षा, बाढ़ एवं भूस्खलन, वर्ष 2019 में नुकसान और क्षति के प्रमुख कारण थे।
- वर्ष 2019 में दस सबसे अधिक प्रभावित देशों में से छह उष्णकटिबंधीय चक्रवातों से प्रभावित हुए थे। हाल के तकनीकों से पता चलता है कि वैश्विक औसत तापमान वृद्धि के प्रत्येक दसवें हिस्से के साथ गंभीर उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की संख्या में वृद्धि होगी।
- वर्ष 2019 में चरम मौसमी घटनाओं के मात्रात्मक प्रभावों से सबसे अधिक प्रभावित दस में से आठ देश निम्न से निम्न-मध्यम आय वर्ग के हैं। इनमें से आधे सबसे कम विकसित देश हैं।
- भारत की स्थिति:
- भारत ने पिछले वर्ष की तुलना में अपनी रैंकिंग में सुधार किया है। वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक-2021 में भारत 7वें स्थान पर है, जबकि वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक-2020 में भारत 5वें स्थान पर था।
- भारतीय मानसून वर्ष 2019 में सामान्य अवधि से एक माह अधिक समय तक जारी रहा, इसके चलते अतिरिक्त बारिश के कारण काफी कठिनाई हुई। इस दौरान बारिश सामान्य से 110 फीसदी तक हुई, जो वर्ष 1994 के बाद सबसे अधिक है।
- अधिक वर्षा के कारण आने वाली बाढ़ से लगभग 1800 लोगों की मौत हुई और लगभग 1.8 मिलियन लोगों को पलायन करना पड़ा।
- कुल मिलाकर 11.8 मिलियन लोग तीव्र मानसून के मौसम से प्रभावित हुए थे और इससे अनुमानतः 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर की आर्थिक क्षति हुई।
- भारत में कुल 8 उष्णकटिबंधीय चक्रवातआए, जिनमें से चक्रवात फानी (मई 2019) के कारण सबसे ज़्यादा नुकसान हुआ।
- भारत में हिमालय के ग्लेशियर, समुद्र तट और रेगिस्तान ग्लोबल वार्मिंग से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।
- यह रिपोर्ट भारत में ग्रीष्म लहर की संख्या में वृद्धि, चक्रवातों की तीव्रता एवं आवृत्ति में वृद्धि और ग्लेशियरों के पिघलने की बढ़ी हुई दर की ओर भी इशारा करती है।
- सुझाव:
- वैश्विक कोविड-19 महामारी ने इस तथ्य को दोहराया है कि जोखिम और भेद्यता दोनों प्रणालीगत व परस्पर जुड़े हुए हैं। इसलिये विभिन्न प्रकार के जोखिमों (जलवायु, भू-भौतिकीय, आर्थिक या स्वास्थ्य संबंधी) से सबसे कमज़ोर लोगों की सुरक्षा करना महत्त्वपूर्ण है।
- कोविड-19 महामारी के कारण वर्ष 2020 में अंतर्राष्ट्रीय जलवायु नीति प्रक्रिया बाधित होने के बाद दीर्घकालिक प्रगति एवं अनुकूलन के लिये वर्ष 2021 और 2022 में पर्याप्त वित्तीय समर्थन की उम्मीद है।
- प्रक्रिया को प्रभावी बनाने के लिये निम्नलिखित कदम उठाए जाने की आवश्यकता है:
- भविष्य में होने वाले नुकसान और क्षति के संबंध में कमज़ोर देशों को समर्थन प्रदान करने के बारे में निर्णय निरंतरता के आधार पर निर्धारित किया जाना है।
- इन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराने हेतु आवश्यक कदम उठाना।
- जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन हेतु उपायों के कार्यान्वयन को मज़बूत करना।
- संभावित नुकसान को रोकने या कम करने के लिये प्रभावी जलवायु परिवर्तन शमन और अनुकूलन पर ध्यान देना।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय राजव्यवस्था
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, मानवाधिकार दिवस मेन्स के लिये:राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के कार्य और शक्तियाँ |
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) की 28वीं वर्षगाँठ 12 अक्तूबर, 2021 को मनाई गई।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- यह देश में मानवाधिकारों का प्रहरी है, यानी भारतीय संविधान द्वारा गारंटीकृत या अंतर्राष्ट्रीय अनुबंधों में शामिल और भारत में अदालतों द्वारा लागू कानून के तहत व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता, समानता और गरिमा से संबंधित अधिकार शामिल हैं।
- स्थापना:
- मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम (PHRA), 1993 के प्रावधानों के तहत 12 अक्तूबर, 1993 को राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (National Human Rights Commission-NHRC) की स्थापना की गई। इसे मानवाधिकार संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2006 और मानवाधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2019 द्वारा संशोधित किया गया था।
- यह पेरिस सिद्धांतों के अनुरूप स्थापित किया गया था, जिसे पेरिस (अक्तूबर 1991) में मानवाधिकारों के प्रचार और संरक्षण के लिये अपनाया गया था तथा दिसंबर 1993 में संयुक्त राष्ट्र की महासभा द्वारा अनुमोदित किया गया था।
- संरचना:
- प्रमुख सदस्य:
- यह एक बहु-सदस्यीय निकाय है जिसमें एक अध्यक्ष और चार सदस्य होते हैं। एक व्यक्ति जो भारत का मुख्य न्यायाधीश या सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश रहा हो, वह अध्यक्ष होता है।
- नियुक्ति:
- इसके अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली छह सदस्यीय समिति, जिसमें प्रधानमंत्री सहित लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा का उप-सभापति, संसद के दोनों सदनों के मुख्य विपक्षी नेता तथा केंद्रीय गृहमंत्री शामिल होते हैं, की सिफारिशों के आधार पर की जाती है।
- कार्यकाल:
- राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों का कार्यकाल 3 वर्ष या वे 70 वर्ष की आयु (जो भी पहले हो) तक पद धारण करते हैं।
- राष्ट्रपति कुछ परिस्थितियों में अध्यक्ष या किसी सदस्य को पद से हटा सकता है।
- प्रमुख सदस्य:
- भूमिका और कार्य:
- आयोग के पास दीवानी अदालत की सभी शक्तियाँ हैं और इसकी कार्यवाही एक न्यायिक विशेषता है।
- यह मानवाधिकारों के उल्लंघन की शिकायतों की जाँच के उद्देश्य से केंद्र सरकार या राज्य सरकार के किसी अधिकारी या जाँच एजेंसी की सेवाओं का उपयोग करने के लिये अधिकृत है।
- यह किसी मामले को उसके घटित होने के एक वर्ष के भीतर देख सकता है, अर्थात् आयोग को मानवाधिकारों का उल्लंघन किये जाने की तारीख से एक वर्ष की समाप्ति के बाद किसी भी मामले की जाँच करने का अधिकार नहीं है।
- आयोग के कार्य मुख्यतः सिफारिशी प्रकृति के हैं।
- इसके पास मानवाधिकारों के उल्लंघन करने वालों को दंडित करने की शक्ति नहीं है और न ही पीड़ित को आर्थिक सहायता सहित कोई राहत देने की शक्ति है।
- सशस्त्र बलों के सदस्यों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन के संबंध में इसकी भूमिका, शक्तियाँ और अधिकार क्षेत्र सीमित हैं।
- जब निजी पार्टियों के माध्यम से मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है तो उसे कार्रवाई करने का अधिकार नहीं है।
स्रोत: हिन्दुस्तान टाइम्स
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
CICA विदेश मंत्रियों की 6वीं बैठक
प्रिलिम्स के लिये:कॉन्फ्रेंस ऑन इंटरेक्शन एंड कॉन्फिडेंस-बिल्डिंग मेज़र्स मेन्स के लिये:विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर भारत की स्थिति |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विदेश मंत्री ने कज़ाखस्तान के ‘नूर-सुल्तान’ में ‘कॉन्फ्रेंस ऑन इंटरेक्शन एंड कॉन्फिडेंस-बिल्डिंग मेज़र्स’ (CICA) की 6वीं मंत्रिस्तरीय बैठक को संबोधित किया।
- कज़ाखस्तान ने पिछले वर्ष CICA की अध्यक्षता ग्रहण की थी।
- CICA के विदेश मंत्रियों की 5वीं बैठक वर्ष 2016 में बीजिंग में आयोजित की गई थी।
प्रमुख बिंदु
- बैठक में भारत का पक्ष:
- वैक्सीन मैत्री:
- भारत का अंतर्राष्ट्रीयवाद (वसुधैव कुटुम्बकम) देश की ‘वैक्सीन मैत्री’ पहल का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण चालक है।
- जनवरी 2021 में भारत ने ‘वैक्सीन मैत्री’ पहल शुरू की थी, जो मुख्यतः वैश्विक स्तर पर कम आय वाले एवं विकासशील देशों को भारत में बने टीकों की आपूर्ति करने का एक प्रमुख कूटनीतिक प्रयास था।
- सीमा पार आतंकवाद:
- भारत द्वारा इस फोरम को आतंकवाद, हथियारों की तस्करी, नशीले पदार्थों के व्यापार और अंतर्राष्ट्रीय अपराधों के अन्य रूपों से निपटने हेतु सामूहिक संकल्प को मज़बूत करने की सलाह दी गई।
- बहुपक्षवाद:
- एशिया के साथ-साथ अफ्रीका और लैटिन अमेरिका को भी संयुक्त राष्ट्र (UN) की निर्णयन प्रक्रिया में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिला है।
- कोविड-19 महामारी के प्रति बहुपक्षीय प्रतिक्रिया काफी हद तक सीमित थी। यह सुधारित बहुपक्षवाद को और अधिक आवश्यक बनाता है।
- अफगानिस्तान:
- भारत ने ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ के प्रस्ताव 2593 में वर्णित अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की अपेक्षाओं को पूरा करने वाले तालिबान शासन के महत्त्व को रेखांकित किया।
- UNSC प्रस्ताव 2593 स्पष्ट करता है कि अफगानिस्तान की भूमि का उपयोग आतंकवादियों को आश्रय देने, प्रशिक्षण देने, आतंक की योजना बनाने या उसके वित्तपोषण के लिये नहीं किया जाना चाहिये; यह प्रस्ताव विशेष तौर पर लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद सहित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा प्रतिबंधित आतंकवादी समूहों को संदर्भित करता है।
- भारत ने ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ के प्रस्ताव 2593 में वर्णित अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की अपेक्षाओं को पूरा करने वाले तालिबान शासन के महत्त्व को रेखांकित किया।
- कनेक्टिविटी:
- कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने के साथ ही अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के सबसे बुनियादी सिद्धांत- संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का भी सम्मान किया जाना चाहिये।
- इसके माध्यम से भारत द्वारा ‘चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे’ (CPEC) के तहत पाकिस्तान में चीन की महत्त्वाकांक्षी बुनियादी अवसंरचना विकास योजनाओं को भी संदर्भित किया गया।
- CPEC, जो कि बलूचिस्तान में ग्वादर पोर्ट को चीन के शिनजियांग प्रांत से जोड़ता है, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की महत्त्वाकांक्षी ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (BRI) की प्रमुख परियोजना है।
- CPEC को लेकर भारत ने चीन के सामने विरोध जताया है, क्योंकि इसे पाक-अधिकृत कश्मीर तक विस्तृत किया जा रहा है।
- वैक्सीन मैत्री:
CICA के बारे में:
- CICA एक अंतर-सरकारी मंच है जिसका उद्देश्य क्षेत्रीय सहयोग को मज़बूत करना और एशिया में शांति, सुरक्षा एवं स्थिरता सुनिश्चित करना है।
- संयुक्त राष्ट्र महासभा के 47वें सत्र में 5 अक्तूबर, 1992 को कज़ाखस्तान गणराज्य के पहले राष्ट्रपति नूरसुल्तान नज़रबायेव (Nursultan Nazarbayev) द्वारा CICA के आयोजन का विचार पहली बार प्रस्तावित किया गया था। पहला CICA शिखर सम्मेलन जून 2002 में आयोजित किया गया था।
- CICA का सर्वोच्च निर्णय लेने वाला अंग CICA राष्ट्राध्यक्षों और शासनाध्यक्षों (शिखर सम्मेलन) की बैठक है। CICA की गतिविधियों के लिये परामर्श करने, प्रगति की समीक्षा करने और प्राथमिकताओं को निर्धारित करने हेतु हर चार वर्ष में CICA शिखर सम्मेलन आयोजित किया जाता है।
- प्रति दो वर्ष में इसके विदेश मंत्रियों की बैठक होनी चाहिये।
- CICA के सदस्यों में 27 एशियाई देश शामिल हैं, जिनमें अज़रबैजान, बहरीन, चीन, मिस्र, भारत, ईरान, इज़रायल, रूस, दक्षिण कोरिया और तुर्की, नौ पर्यवेक्षक राज्य व पाँच अंतर्राष्ट्रीय संगठन शामिल हैं।
- भारत 'परिवहन गलियारों के सुरक्षित और प्रभावी प्रणालियों के विकास' तथा 'ऊर्जा सुरक्षा' पर दो CICA CBM (विश्वास निर्माण उपाय) की सह-अध्यक्षता करता है।
- CICA सचिवालय जून 2006 से अल्माटी (कज़ाखस्तान) में स्थित है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय अर्थव्यवस्था
प्रधानमंत्री गति शक्ति योजना
प्रिलिम्स के लिये:प्रधानमंत्री गति शक्ति योजना, राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन, औद्योगिक गलियारा, मेक इन इंडिया मेन्स के लिये:प्रधानमंत्री गति शक्ति योजना का महत्त्व और संबंधित चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत सरकार ने लॉजिस्टिक्स लागत को कम करने के लिये समन्वित और बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं के निष्पादन हेतु महत्त्वाकांक्षी गति शक्ति योजना या ‘नेशनल मास्टर प्लान फॉर मल्टी-मॉडल कनेक्टिविटी प्लान’ लॉन्च किया है।
प्रमुख बिंदु
- योजना के विषय में:
- उद्देश्य: ज़मीनी स्तर पर काम में तेज़ी लाना, लागत में कमी करना और रोज़गार पैदा करने पर ध्यान देने के साथ-साथ आगामी चार वर्षों में बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं की एकीकृत योजना और कार्यान्वयन सुनिश्चित करना।
- गति शक्ति योजना के तहत वर्ष 2019 में शुरू की गई 110 लाख करोड़ रुपए की ‘राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन’ को समाहित किया जाएगा।
- लॉजिस्टिक्स लागत में कटौती के अलावा इस योजना का उद्देश्य कार्गो हैंडलिंग क्षमता को बढ़ाना और व्यापार को बढ़ावा देने हेतु बंदरगाहों पर टर्नअराउंड समय को कम करना है।
- इसका लक्ष्य 11 औद्योगिक गलियारे और दो नए रक्षा गलियारे (एक तमिलनाडु में और दूसरा उत्तर प्रदेश में) बनाना भी है। इसके तहत सभी गाँवों में 4G कनेक्टिविटी का विस्तार किया जाएगा। साथ ही गैस पाइपलाइन नेटवर्क में 17,000 किलोमीटर की क्षमता जोड़ने की योजना बनाई जा रही है।
- यह वर्ष 2024-25 के लिये सरकार द्वारा निर्धारित महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों को पूरा करने में मदद करेगा, जिसमें राष्ट्रीय राजमार्ग नेटवर्क की लंबाई को 2 लाख किलोमीटर तक विस्तारित करना, 200 से अधिक नए हवाई अड्डों, हेलीपोर्ट और वाटर एयरोड्रोम का निर्माण करना शामिल है।
- एकीकृत दृष्टिकोण: यह बुनियादी अवसंरचना से संबंधित 16 मंत्रालयों को एक साथ लाने पर ज़ोर देता है।
- यह लंबे समय से चली आ रही समस्याओं जैसे- असंबद्ध योजना, मानकीकरण की कमी, मंज़ूरी संबंधी चुनौतियाँ दूर करने के साथ-साथ समय पर बुनियादी अवसंरचना की क्षमता के निर्माण एवं उपयोग में मदद करेगा।
- गति शक्ति डिजिटल प्लेटफॉर्म: इसमें एक अम्ब्रेला प्लेटफॉर्म का निर्माण शामिल है, जिसके माध्यम से विभिन्न मंत्रालयों/विभागों के बीच वास्तविक समय पर समन्वय के माध्यम से बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं का निर्माण कर उन्हें प्रभावी तरीके से लागू किया जा सकता है।
- अपेक्षित परिणाम:
- यह योजना मौजूदा और प्रस्तावित कनेक्टिविटी परियोजनाओं की मैपिंग में मदद करेगी।
- साथ ही इसके माध्यम से देश में विभिन्न क्षेत्रों और औद्योगिक केंद्रों को जोड़ने संबंधी योजना भी स्पष्ट हो सकेगी।
- एक समग्र एवं एकीकृत परिवहन कनेक्टिविटी रणनीति ‘मेक इन इंडिया’ का समर्थन करेगी और परिवहन के विभिन्न तरीकों को एकीकृत करेगी।
- इससे भारत को विश्व की व्यापारिक राजधानी बनने में मदद मिलेगी।
- उद्देश्य: ज़मीनी स्तर पर काम में तेज़ी लाना, लागत में कमी करना और रोज़गार पैदा करने पर ध्यान देने के साथ-साथ आगामी चार वर्षों में बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं की एकीकृत योजना और कार्यान्वयन सुनिश्चित करना।
- एकीकृत बुनियादी अवसंरचना के विकास की आवश्यकता:
- समन्वय एवं उन्नत सूचना साझाकरण की कमी के कारण मैक्रो नियोजन और माइक्रो कार्यान्वयन के बीच एक व्यापक अंतर मौजूद है, क्योंकि विभाग प्रायः अलगाव की स्थिति में कार्य करते हैं।
- एक अध्ययन के अनुसार, भारत में लॉजिस्टिक लागत सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 13% है, जो कि विकसित देशों की तुलना में काफी अधिक है।
- इस उच्च लॉजिस्टिक लागत के कारण भारत के निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता बहुत कम हो जाती है।
- यह विश्व स्तर पर स्वीकार किया जाता है कि सतत् विकास के लिये गुणवत्तापूर्ण बुनियादी अवसंरचना का निर्माण काफी महत्त्वपूर्ण है, जो विभिन्न आर्थिक गतिविधियों के माध्यम से व्यापक पैमाने पर रोज़गार पैदा करता है।
- यह योजना का कार्यान्वयन ‘राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन’ (NMP) के साथ समन्वय स्थापित कर किया जाएगा।
- ‘राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन’ को मुद्रीकरण हेतु एक स्पष्ट ढाँचा प्रदान करने और संभावित निवेशकों को बेहतर रिटर्न की प्राप्ति के लिये संपत्तियों की एक सूची निर्मित करने हेतु शुरू की गई है।
- संबद्ध चिंताएँ:
- लो क्रेडिट ऑफ-टेक: हालाँकि सरकार ने बैंकिंग क्षेत्र की मज़बूती के लिये कई सुधार किये और दिवाला एवं दिवालियापन संहिता ने खराब ऋणों पर लगभग 2.4 लाख करोड़ रुपए की वसूली की थी, फिर भी ऋण लेने की प्रवृत्ति में गिरावट संबंधी चिंताएँ हैं।
- मांग में कमी: कोविड-19 के बाद के परिदृश्य में निजी मांग और निवेश की कमी देखी गई है।
- संरचनात्मक समस्याएँ: भूमि अधिग्रहण में देरी और मुकदमेबाज़ी के मुद्दों के कारण देश में वैश्विक मानकों की तुलना में परियोजनाओं के कार्यान्वयन की दर बहुत धीमी है।
- इसके अतिरिक्त भूमि प्रयोग और पर्यावरण मंज़ूरी के मामले में विलंब, अदालत में लंबे समय तक चलने वाले मुकदमे आदि अवसंरचना परियोजनाओं में देरी के कुछ प्रमुख कारण हैं।
- लो क्रेडिट ऑफ-टेक: हालाँकि सरकार ने बैंकिंग क्षेत्र की मज़बूती के लिये कई सुधार किये और दिवाला एवं दिवालियापन संहिता ने खराब ऋणों पर लगभग 2.4 लाख करोड़ रुपए की वसूली की थी, फिर भी ऋण लेने की प्रवृत्ति में गिरावट संबंधी चिंताएँ हैं।
आगे की राह
- PM गति शक्ति सही दिशा में उठाया गया एक कदम है। हालाँकि इसे उच्च सार्वजनिक व्यय से उत्पन्न संरचनात्मक और व्यापक आर्थिक स्थिरता संबंधी चिंताओं को दूर करने की आवश्यकता है।
- इस प्रकार आवश्यक है कि यह पहल एक स्थिर और पूर्वानुमेय नियामक एवं संस्थागत ढाँचे पर आधारित हो।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
मसौदा क्षेत्रीय योजना 2041: एनसीआर
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, मसौदा क्षेत्रीय योजना-2041 मेन्स के लिये:मसौदा क्षेत्रीय योजना-2041 : शहरी विकास एवं प्राकृतिक संरक्षण |
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र योजना बोर्ड (NCRPB) ने हाल ही में 'मसौदा क्षेत्रीय योजना -2041' को मंज़ूरी दी है जिसके अनुसार राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) के विस्तार में कमी की संभावना है।
- राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र योजना बोर्ड (NCRPB) की स्थापना 1985 में NCR के संतुलित विकास को बढ़ावा देने और अव्यवस्थित विकास से बचने के लिये की गई थी।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- नई सीमा:
- क्षेत्र का भौगोलिक आकार राजघाट (दिल्ली) से 100 किमी. तक के दायरे का एक सन्निहित गोलाकार क्षेत्र होगा। 100 किमी. के दायरे के क्षेत्र को कोर एरिया के रूप में विकसित किया जा सकता है।
- NCR 1985 में दिल्ली और उसके आसपास समन्वित शहरी विकास के लिये परिकल्पित क्षेत्र है।
- 100 किमी. की सीमा से बाहर के क्षेत्रों और मौजूदा एनसीआर सीमा तक, सभी अधिसूचित शहरों/कस्बों के साथ-साथ एक्सप्रेसवे/राष्ट्रीय राजमार्गों/राज्य राजमार्गों/क्षेत्रीय रैपिड ट्रांज़िट सिस्टम को जोड़ने के लिये दोनों ओर एक किमी. का कॉरिडोर शामिल किया जाएगा।
- वर्तमान में NCR में उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान के 24 ज़िले तथा संपूर्ण दिल्ली क्षेत्र शामिल है, जो 55,083 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है।
- क्षेत्र का भौगोलिक आकार राजघाट (दिल्ली) से 100 किमी. तक के दायरे का एक सन्निहित गोलाकार क्षेत्र होगा। 100 किमी. के दायरे के क्षेत्र को कोर एरिया के रूप में विकसित किया जा सकता है।
- प्राकृतिक संरक्षण क्षेत्र के नाम में बदलाव:
- प्राकृतिक संरक्षण क्षेत्र का नाम, जैसा कि क्षेत्रीय योजना-2021 में शुरू किया गया था, को आगामी क्षेत्रीय योजना-2041 में "प्राकृतिक क्षेत्र" में कर दिया जाएगा।
- सशक्त राज्य:
- राज्यों को यह तय करने का अधिकार होगा कि NCR सीमा के भीतर आंशिक रूप से आने वाली तहसीलें उसमें रहेंगी या नहीं।
- स्लम मुक्त एनसीआर:
- मसौदा क्षेत्रीय योजना 2041 (DRP 2041): यह योजना भविष्य के झुग्गी-झोपड़ी मुक्त राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिये एक एयर एम्बुलेंस सुविधा और हेलिटैक्सी, सड़क, रेल एवं अंतर्देशीय जलमार्ग के माध्यम से उच्च गति कनेक्टिविटी का मार्ग प्रशस्त करेगी।
- बेहतर रेल संपर्क:
- योजना में एनसीआर की निकटतम सीमा से दिल्ली तक 30 मिनट के मास ट्रांज़िट रेल सिस्टम (MTRS) की व्यवहार्यता का विस्तार करने का प्रस्ताव है।
- नई सीमा:
- प्रयास के निहितार्थ:
- इसके लागू होने पर हरियाणा में पानीपत और उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर के कुछ हिस्सों को नए NCR मानचित्र से हटा दिया जाएगा।
- इसका उद्देश्य एक कॉम्पैक्ट क्षेत्र का निर्माण करना है ताकि विकास की योजना बेहतर तरीके से बनाई जा सके।
- इससे ग्रामीण क्षेत्रों को लाभ होगा क्योंकि राज्य सरकारें उनके विकास के लिये बेहतर तरीके से योजना बना सकेंगीं।
- शामिल मुद्दे:
- वर्तमान में NCR का क्षेत्र लगभग 150-175 किलोमीटर तक फैला है, जो दिल्ली-NCR के कई दूर-दराज़ वाले गाँवों को कवर करता है लेकिन क्षेत्रीय योजना 2041 के मुताबिक, इस क्षेत्र को 100 किलोमीटर तक सीमित कर दिया जाएगा।
- क्षेत्र में पानी, स्वच्छता और अन्य सुविधाओं जैसी बुनियादी सेवाओं की पहुँच का अभाव।
- अन्य मुद्दों में संपत्तियों की वैधता, संकरी सड़कें, भीड़भाड़, वाणिज्यिक एवं आवासीय उपयोग को लेकर संघर्ष, पेयजल की गुणवत्ता और जलभराव आदि शामिल हैं।
- आग, भूकंप आदि जैसी आपदाओं से संबंधित सुभेद्यता और जोखिम।
- DDA, दिल्ली जल बोर्ड, बाढ़ एवं सिंचाई विभाग और विभिन्न नगर निगमों की बहुलता के बीच समन्वय का अभाव।
आगे की राह
- एजेंसियों की बहुलता की चुनौती से सरकार को निपटने की आवश्यकता है। इससे इन एजेंसियों के बीच समन्वय और सहयोग बढ़ेगा।
- जल निकायों और नालों की सफाई की योजनाओं का कड़ाई से लागू किया जाना चाहिये, यह कार्य दिल्ली में एजेंसियों के लिये वर्षों से एक चुनौती रही है। यमुना नदी में अपशिष्ट की डंपिंग को भी सख्ती से नियंत्रित करने की आवश्यकता है।
स्रोत: द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
जैव विविधता पर कुनमिंग घोषणा
प्रिलिम्स के लिये:जैव विविधता पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन, कार्टाजेना प्रोटोकॉल, क्योटो प्रोटोकॉल मेन्स के लिये:जैव विविधता संरक्षण संबंधित वैश्विक पहल |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कुनमिंग घोषणा (Kunming Declaration) को चीन में 100 से अधिक देशों द्वारा जैव विविधता पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के पक्षकारों के सम्मलेन की 15वीं बैठक में अपनाया गया।
- इस घोषणा को अपनाने से एक नए वैश्विक जैव विविधता समझौते के लिये आधार निर्मित होगा।
- पिछले समझौते जिसमें जैव विविधता के लिये रणनीतिक योजना 2011-2020 पर 2010 में जापान के आइची में हस्ताक्षर किये गए, में सरकारों ने 2020 तक जैव विविधता के नुकसान को कम करने और प्राकृतिक आवासों की रक्षा के लिये 20 लक्ष्यों पर सहमति व्यक्त की।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- यह वैश्विक अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में जैव विविधता के विचार को प्रतिबिंबित करने के लिये तत्काल और एकीकृत कार्रवाई का आह्वान करता है, लेकिन महत्त्वपूर्ण मुद्दों, जैसे- गरीब देशों में धन के संरक्षण और जैव विविधता के अनुकूल आपूर्ति शृंखलाओं के मुद्दों को भविष्य में चर्चा करने के लिये छोड़ दिया गया है।
- यह कोई बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय समझौता नहीं है।
- यह पक्षों से निर्णय लेने में जैव विविधता संरक्षण को मुख्यधारा में लाने और मानव स्वास्थ्य की रक्षा में संरक्षण के महत्त्व को पहचानने का आह्वान करता है।
- इस घोषणा का मुख्य विषय है- पारिस्थितिक सभ्यता : पृथ्वी पर सभी जीवों के लिये एक साझा भविष्य का निर्माण।
- राष्ट्रों ने इसे अपनाकर जैव सुरक्षा पर कार्टाजेना प्रोटोकॉल के लिये क्षमता निर्माण कार्य योजना, 2020 के बाद एक प्रभावी कार्यान्वयन योजना के विकास, अंगीकरण और कार्यान्वयन का समर्थन करने हेतु स्वयं को प्रतिबद्ध किया है।
- प्रोटोकॉल आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी के परिणामस्वरूप जीवित संशोधित जीवों द्वारा उत्पन्न संभावित जोखिमों से जैव विविधता की रक्षा करेगा।
- इस घोषणा के अनुसार, हस्ताक्षरकर्त्ता राष्ट्र यह सुनिश्चित करेंगे कि महामारी के बाद की रिकवरी नीतियाँ, कार्यक्रम और योजनाएँ जैव विविधता के संरक्षण एवं सतत् उपयोग में योगदान दें, धारणीय तथा समावेशी विकास को बढ़ावा दें।
- यह वैश्विक अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में जैव विविधता के विचार को प्रतिबिंबित करने के लिये तत्काल और एकीकृत कार्रवाई का आह्वान करता है, लेकिन महत्त्वपूर्ण मुद्दों, जैसे- गरीब देशों में धन के संरक्षण और जैव विविधता के अनुकूल आपूर्ति शृंखलाओं के मुद्दों को भविष्य में चर्चा करने के लिये छोड़ दिया गया है।
- 30x30 संरक्षण लक्ष्य:
- इस घोषणा ने '30x30 संरक्षण लक्ष्य' की अवधारणा प्रस्तुत की है, जो कि COP15 में प्रस्तुत किया गया एक प्रमुख प्रस्ताव है, यह वर्ष 2030 तक पृथ्वी पर भूमि और महासागरों की संरक्षित स्थिति का 30% वहन करेगा।
- इसके अतिरिक्त कृषि में रसायनों के इस्तेमाल को आधा करने और प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पन्न करने पर रोक लगाने के लक्ष्य पर भी चर्चा की गईI
- इस घोषणा ने '30x30 संरक्षण लक्ष्य' की अवधारणा प्रस्तुत की है, जो कि COP15 में प्रस्तुत किया गया एक प्रमुख प्रस्ताव है, यह वर्ष 2030 तक पृथ्वी पर भूमि और महासागरों की संरक्षित स्थिति का 30% वहन करेगा।
- कुनमिंग जैव विविधता कोष:
- चीन ने विकासशील देशों में जैव विविधता की रक्षा के लिये एक नए कोष में 233 मिलियन अमेरिकी डाॅलर के योगदान का वादा किया है। इस फंड को चीन द्वारा कुनमिंग बायोडायवर्सिटी फंड के रूप में संदर्भित किया जा रहा है।
- इस दिशा में यह सही कदम है। हालाँकि कुछ देशों ने इस फंड को लेकर आपत्ति जताई है।
- कुछ देशों ने इस फंड को "बाल्टी में एक बूँद" कहा है, यह देखते हुए कि चीन दुनिया का सबसे बड़ा प्रदूषक है।
- इसके अलावा कुछ अमीर देशों के निवेशकों का कहना है कि संरक्षण के लिये एक नया फंड अनावश्यक है क्योंकि संयुक्त राष्ट्र की वैश्विक पर्यावरण सुविधा पहले से ही विकासशील देशों को हरित परियोजनाओं के वित्तपोषण में मदद करती है।
- जैव विविधता संरक्षण संबंधित वैश्विक पहल:
- जैविक विविधता अभिसमय:
- जैविक विविधता अभिसमय (Convention on Biological Diversity- CBD), जैव विविधता के संरक्षण हेतु कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि है जो वर्ष 1993 से लागू है।
- भारत इस सम्मेलन/अभिसमय का एक पक्षकार सदस्य है।
- जैविक विविधता अभिसमय (Convention on Biological Diversity- CBD), जैव विविधता के संरक्षण हेतु कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि है जो वर्ष 1993 से लागू है।
- वन्यजीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन:
- यह सार्वजनिक, निजी एवं गैर-सरकारी संगठनों को ज्ञान तथा युक्तियाँ प्रदान करता है ताकि मानव प्रगति, आर्थिक विकास और प्रकृति संरक्षण को सुनिश्चित किया जा सके।
- भारत इस कन्वेंशन का सदस्य है।
- यह सार्वजनिक, निजी एवं गैर-सरकारी संगठनों को ज्ञान तथा युक्तियाँ प्रदान करता है ताकि मानव प्रगति, आर्थिक विकास और प्रकृति संरक्षण को सुनिश्चित किया जा सके।
- प्रकृति के संरक्षण हेतु विश्वव्यापी कोष
- यह प्राकृतिक पर्यावरण के संरक्षण, अनुसंधान एवं रख-रखाव संबंधी विषयों पर कार्य करने के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन है।
- वैश्विक जैव विविधता आकलन:
- यह जैव विविधता के मुख्य पहलुओं के संबंध में वर्तमान मुद्दों, सिद्धांतों और विचारों का एक स्वतंत्र, आलोचनात्मक, समीक्षात्मक वैज्ञानिक विश्लेषण है।
- मैन एंड बायोस्फीयर रिज़र्व प्रोग्राम:
- यह वर्ष 1970 में शुरू किया गया था और इसने विविधता एवं प्रकृति द्वारा प्रदत्त संसाधनों, जैव विविधता पर मनुष्यों के प्रभावों के साथ-साथ जैव विविधता मानव गतिविधियों को कैसे प्रभावित करती है, पर ध्यान केंद्रित करते हुए कार्यक्रमों और गतिविधियों की शुरुआत की है।
- जैविक विविधता अभिसमय:
जलवायु वित्त
- परिचय:
- जलवायु वित्त ऐसे स्थानीय, राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय वित्तपोषण को संदर्भित करता है, जो सार्वजनिक, निजी और वैकल्पिक वित्तपोषण स्रोतों से प्राप्त किया गया हो। यह शमन और अनुकूलन संबंधी कार्यों का समर्थन करता है।
- कुछ वैश्विक जलवायु कोष:
- हरित जलवायु कोष (GCF):
- यह विकासशील देशों में ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन को कम करने और कमजोर समाजों को जलवायु परिवर्तन के अपरिहार्य प्रभावों के अनुकूल बनाने में मदद करने के लिये स्थापित किया गया था।
- अनुकूलन कोष (AF):
- यह वर्ष 2001 में क्योटो प्रोटोकॉल के तहत स्थापित किया गया था और इसने जलवायु अनुकूलन एवं लचीली गतिविधियों के लिये 532 मिलियन अमेरिकी डॉलर की प्रतिबद्धता जताई है।
- वैश्विक पर्यावरण कोष (GEF):
- वर्ष 1994 में कन्वेंशन लागू होने के बाद से वैश्विक पर्यावरण कोष (Global Environment Fund- GEF) ने वित्तीय तंत्र की एक परिचालन इकाई के रूप में कार्य किया है।
- यह एक निजी इक्विटी फंड है जो जलवायु परिवर्तन के तहत स्वच्छ ऊर्जा में निवेश द्वारा दीर्घकालिक वित्तीय रिटर्न प्राप्त करने पर केंद्रित है।
- अतिरिक्त फंड: GEF और GCF को मार्गदर्शन प्रदान करने के अलावा पार्टियों ने दो विशेष फंड स्थापित किये हैं:
- विशेष जलवायु परिवर्तन कोष (SCCF) और सबसे कम विकसित देशों का कोष (LDCF)।
- हरित जलवायु कोष (GCF):
- दोनों फंड का प्रबंधन GEF द्वारा किया जाता है।