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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

तालिबान पर संकल्प 2593: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद

  • 02 Sep 2021
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये 

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, अफगानिस्तान की भौगोलिक स्थिति 

मेन्स के लिये 

अफगानिस्तान में अशांति संबंधी मुद्दे 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में तालिबान पर लाए गए एक संकल्प 2593 को भारत द्वारा अपनाया गया।

  • फ्राँस, ब्रिटेन और अमेरिका द्वारा प्रायोजित इस संकल्प के पक्ष में भारत सहित 13 सदस्यों ने मतदान किया, जबकि इसके विपक्ष में कोई भी वोट नहीं पड़ा।
    • दो स्थायी और वीटो-धारक सदस्य रूस और चीन ने मतदान में भाग नहीं लिया।
  • संकल्प को स्वीकार किया जाना सुरक्षा परिषद और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के अफगानिस्तान के प्रति उनके दृष्टिकोण को प्रदर्शित करता है।

प्रमुख बिंदु

  •  संकल्प 2593 के बारे में:
    • संकल्प 1267 (1999) के अनुसार, नामित व्यक्तियों और संस्थाओं सहित यह अफगानिस्तान में आतंकवाद का मुकाबला करने के महत्त्व को दोहराता है।
    • तालिबान से अफगानिस्तान छोड़ने के इच्छुक लोगों के लिये सुरक्षित मार्ग की सुविधा प्रदान करने, मानवतावादियों को देश में प्रवेश की अनुमति देने, महिलाओं और बच्चों सहित मानवाधिकारों को बनाए रखने तथा समावेशी एवं बातचीत के ज़रिये राजनीतिक समझौता करने का आह्वान किया गया है।
  • रूस और चीन की तटस्थता:
    • रूस ने इस संकल्प से स्वयं को अलग रखा क्योंकि इसमें आतंकी खतरों के बारे में पर्याप्त और विशिष्ट विवरण नहीं था, इसके अतिरिक्त संकल्प में अफगानों को निकालने से "ब्रेन ड्रेन" प्रभाव की बात नहीं की गई थी। साथ ही तालिबान के अधिग्रहण के बाद अफगान सरकार के अमेरिकी खातों को फ्रीज करने संबंधी अमेरिका के आर्थिक और मानवीय परिणामों को भी संकल्प के विवरण में संबोधित नहीं किया।
    • चीन ने रूस की कुछ चिंताओं को साझा किया। वह मानता है कि वर्तमान अराजकता पश्चिमी देशों की "अव्यवस्थित वापसी" का प्रत्यक्ष परिणाम थी।
      • चीन का विचार है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिये तालिबान के साथ जुड़ना और उसे  सक्रिय रूप से मार्गदर्शन प्रदान करना आवश्यक है।
    • इसके अतिरिक्त रूस और चीन चाहते थे कि सभी आतंकवादी समूहों, विशेष रूप से इस्लामिक स्टेट (ISIS) और उइगर ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ETIM) को विशेष रूप से दस्तावेज़ में नामित किया जाए।
  • भारत के हालिया कदम:
    • भारत ने विदेश मंत्री, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) और वरिष्ठ अधिकारियों के एक उच्च-स्तरीय समूह को भारत की तात्कालिक प्राथमिकताओं पर ध्यान केंद्रित करने का निर्देश दिया है।
      • इस समूह द्वारा अफगानिस्तान में फँसे भारतीयों की सुरक्षित वापसी और अफगानिस्तान के क्षेत्र का उपयोग भारत के खिलाफ निर्देशित आतंकवाद के लिये न होने देने संबंधी मुद्दों पर प्रतिबद्धता व्यक्त की गई।
    • हाल ही में कतर में भारत के राजदूत ने तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख से मुलाकात की।
      • यह पहली बार है जब सरकार ने सार्वजनिक रूप से ऐसी बैठक को स्वीकार किया है जो तालिबान के अनुरोध पर बुलाई गई थी।
      • तालिबान नेता ने आश्वासन दिया कि सभी मुद्दों को सकारात्मक रूप से संबोधित किया जाएगा।
  • बहुपक्षीय संगठनों में अफगानिस्तान का प्रतिनिधित्व:
    • तालिबान के तहत अफगानिस्तान के अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधित्व पर अनिश्चितता के साथ दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) में देश की सदस्यता को लेकर सवाल खड़ा हो गया है।
      • सार्क में अफगानिस्तान के प्रतिनिधित्व का प्रश्न विशेष रूप से तब आया है जब संयुक्त राष्ट्र द्वारा इसी तरह के मुद्दे को संबोधित किया जाना बाकी है।
      • सार्क पहले से ही कई मुद्दों का सामना कर रहा है तथा अफगानिस्तान की मौजूदा स्थिति ने इसके लिये मुश्किलें और बढ़ा दी हैं।
      • अफगानिस्तान को सार्क में 2007 में आठवें सदस्य के रूप में शामिल किया गया था।
    • परंपरागत रूप से घरेलू राजनीतिक परिवर्तन के कारण देशों, क्षेत्रीय या वैश्विक प्लेटफार्मों की सदस्यता समाप्त नहीं होती है।
    • हालाँकि काठमांडू स्थित अंतर-सरकारी संगठन एकीकृत पर्वतीय विकास के लिये अंतर्राष्ट्रीय केंद्र (International Centre for Integrated Mountain Development-ICIMOD) में भी इसी तरह का सवाल उठने की संभावना है।

आगे की राह:

  • भारत द्वारा 1988 प्रतिबंध समिति की अध्यक्षता किये जाने की उम्मीद है जो तालिबान प्रतिबंधों की निगरानी करती है और अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन (UNAMA) के जनादेश का विस्तार करने संबंधी निर्णयन में भाग लेती है। इस दौरान भारत को रूस और चीन के खिलाफ अमेरिका, ब्रिटेन तथा फ्राँस ब्लॉक की प्रतिस्पर्द्धी मांगों को भी संतुलित करना होगा।
  • भारत की अफगान नीति एक बड़े व्यवधान की स्थिति में है; वहाँ अपनी संपत्ति की रक्षा करने के साथ-साथ अफगानिस्तान में और उसके आसपास होने वाले 'ग्रेट गेम' में प्रासंगिक बने रहने के लिये भारत को तद्नुसार अपनी अफगानिस्तान नीति का पुनरावलोकन करना होगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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