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शासन व्यवस्था

लोकसभा अध्यक्ष का कार्यालय

  • 18 May 2021
  • 13 min read

परिचय

  • लोकसभा अध्यक्ष के कार्यालय के विषय में:
    • भारत में अध्यक्ष (Speaker) का कार्यालय एक जीवंत और गतिशील संस्था है जो संसद की वास्तविक ज़रूरतों तथा समस्याओं को हल करती है।
    • अध्यक्ष सदन का संवैधानिक और औपचारिक प्रमुख होता है।
    • संसद के प्रत्येक सदन का अपना पीठासीन अधिकारी होता है।
      • लोकसभा के लिये एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष तथा राज्यसभा हेतु एक सभापति एवं एक उपसभापति होता है।

इतिहास:

  • भारत में वर्ष 1921 में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पद का सृज़न भारत सरकार अधिनियम, 1919 (मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार) के प्रावधानों के अंतर्गत किया गया था।
  • उस समय अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को क्रमशः प्रेसिडेंट (President) और डिप्टी प्रेसिडेंट (Deputy President) कहा जाता था, यह प्रथा वर्ष 1947 तक चलती रही।
  • भारत सरकार अधिनियम, 1935 के अंतर्गत प्रेसिडेंट और डिप्टी प्रेसिडेंट के नामों को क्रमशः अध्यक्ष और उपाध्यक्ष में बदल दिया गया।

लोकसभा का अध्यक्ष

  • लोकसभा जो कि देश में सर्वोच्च विधायी निकाय है, अपने अध्यक्ष का चुनाव करती है जो सदन के दिन-प्रतिदिन के कामकाज की अध्यक्षता करता है।
  • लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव प्रत्येक नवगठित सदन के प्राथमिक कार्यों में से एक है।

अध्यक्ष का निर्वाचन:

  • मानदंड: भारतीय संविधान के अनुसार अध्यक्ष को सदन का सदस्य होना चाहिये।
    • हालाँकि अध्यक्ष चुने जाने के लिये कोई विशिष्ट योग्यता निर्धारित नहीं की गई है, फिर भी इस पद के लिये संविधान और देश के कानूनों की समझ रखने वाले व्यक्ति को वरीयता क्रम में रखा जाता है।
    • सामान्यतः सत्ताधारी दल के सदस्य को अध्यक्ष चुना जाता है। यह प्रक्रिया एक परंपरा के रूप में विकसित हुई है, जिसके अंतर्गत सत्तारूढ़ दल सदन में अन्य दलों और समूहों के नेताओं के साथ अनौपचारिक परामर्श के बाद अपने उम्मीदवार को नामित करता है।
    • यह परंपरा सुनिश्चित करती है कि एक बार निर्वाचित होने के बाद अध्यक्ष को सदन के सभी दलों का सम्मान प्राप्त हो।
  • मतदान: अध्यक्ष (उपसभापति के साथ) का चुनाव लोकसभा सदस्यों में से सदन में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के साधारण बहुमत से होता है।
    • एक बार उम्मीदवार पर निर्णय हो जाने के बाद उसके नाम का प्रस्ताव आमतौर पर प्रधानमंत्री या संसदीय कार्य मंत्री द्वारा किया जाता है।
  • अध्यक्ष का कार्यकाल: अध्यक्ष अपने चुनाव की तारीख से अगली लोकसभा की पहली बैठक के ठीक पहले तक (5 वर्ष तक) पद धारण करता है।
    • अध्यक्ष पुनर्निर्वाचित होने के लिये पात्र होता है।
    • जब लोकसभा भंग होती है, अध्यक्ष अपना पद तुरंत खाली नहीं करता है, वह अपने पद पर नवनिर्वाचित लोकसभा की पहली बैठक तक बना रहता है।

अध्यक्ष की भूमिका और शक्तियाँ:

  • व्याख्या: वह सदन के अंदर भारत के संविधान के प्रावधानों, लोकसभा की प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियमों तथा संसदीय मामलों का अंतिम व्याख्याकार होता है।
    • वह इन प्रावधानों की व्याख्या के मामलों में अक्सर ऐसे निर्णय देता है जिनका सदस्यों द्वारा सम्मान किया जाता है और जो प्रकृति में बाध्यकारी होते हैं।
  • दोनों सदनों की संयुक्त बैठक: वह संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक (Joint Sitting) की अध्यक्षता करता है।
    • ऐसी बैठकें किसी विधेयक पर दोनों सदनों के बीच गतिरोध को दूर करने के लिये राष्ट्रपति द्वारा बुलाई जाती हैं।
  • सदन का स्थगन: वह सदन को स्थगित कर सकता है या सदन की कुल संख्या का दसवाँ हिस्सा (जिसे गणपूर्ति कहा जाता है) की अनुपस्थिति में बैठक को स्थगित कर सकता है।
  • निर्णायक मत: अध्यक्ष पहली बार में मत नहीं देता लेकिन बराबरी की स्थिति में (जब किसी प्रश्न पर सदन समान रूप से विभाजित हो जाता है) अध्यक्ष को मत देने का अधिकार होता है।
    • ऐसे मत को निर्णायक मत (Casting Vote) कहा जाता है, जिसका उद्देश्य गतिरोध का समाधान करना होता है।
  • धन विधेयक: वह किसी विधेयक के धन विधेयक होने या नहीं होने का फैसला करता है और इस प्रश्न पर उसका निर्णय अंतिम होता है।
  • सदस्यों की अयोग्यता: दसवीं अनुसूची (Tenth Schedule) के प्रावधानों के तहत दल बदल के आधार पर उत्पन्न होने वाले लोकसभा के किसी सदस्य की अयोग्यता के प्रश्न पर निर्णय अध्यक्ष ही करता है।
    • यह शक्ति भारतीय संविधान में 52वें संशोधन द्वारा अध्यक्ष में निहित है।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 1992 में फैसला सुनाया कि इस संबंध में अध्यक्ष का निर्णय न्यायिक समीक्षा (Judicial Review) के अधीन है।
  • आईपीजी की अध्यक्षता: अध्यक्ष भारतीय संसदीय समूह (Indian Parliamentary Group- IPG) के पदेन अध्यक्ष के रूप में कार्य करता है, यह समूह भारत की संसद और विश्व की विभिन्न संसदों के बीच एक कड़ी है।
    • वह देश में विधायी निकायों के पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन के पदेन अध्यक्ष के रूप में भी कार्य करता है।
  • समितियों का गठन: लोकसभा की समितियाँ अध्यक्ष द्वारा गठित की जाती है और इसके निर्देशन में कार्य करती हैं।
    • इसके द्वारा सभी संसदीय समितियों के अध्यक्ष मनोनीत किये जाते हैं।
    • इसकी अध्यक्षता में कार्य सलाहकार समिति (Business Advisory Committee), सामान्य प्रयोजन समिति (General Purposes Committee) और नियम समिति (Rules Committee) जैसी समितियाँ सीधे काम करती हैं।
  • अध्यक्ष के विशेषाधिकार: अध्यक्ष सदन, उसकी समितियों और सदस्यों के अधिकारों तथा विशेषाधिकारों का संरक्षक होता है।
    • विशेषाधिकार के किसी भी प्रश्न को परीक्षा, जाँच और प्रतिवेदन के लिये विशेषाधिकार समिति को सौंपना अध्यक्ष पर निर्भर करता है।

अध्यक्ष को हटाना:

  • अपवाद: सामान्यतः लोकसभा अध्यक्ष लोकसभा के कार्यकाल तक अपने पद पर बना रहता है। हालाँकि निम्नलिखित शर्तों के अंतर्गत अध्यक्ष को लोकसभा के कार्यकाल से पहले अपने पद को खाली करना पड़ सकता है:
    • यदि वह लोकसभा का सदस्य नहीं रहता है।
    • यदि वह उपाध्यक्ष को पत्र लिखकर इस्तीफा दे देता है।
    • यदि उसे लोकसभा के सभी सदस्यों के बहुमत से पारित प्रस्ताव द्वारा हटा दिया जाता है।
  • अधिसूचना: ऐसा प्रस्ताव अध्यक्ष को 14 दिन की अग्रिम सूचना देने के बाद ही पेश किया जा सकता है।
    • जब अध्यक्ष को हटाने का प्रस्ताव सदन के विचाराधीन हो, तो वह बैठक में उपस्थित हो सकता है लेकिन अध्यक्षता नहीं कर सकता।

लोकसभा का उपाध्यक्ष

  • निर्वाचन:
    • लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव होने के ठीक बाद उपाध्यक्ष (Deputy Speaker) का चुनाव भी लोकसभा द्वारा अपने सदस्यों में से किया जाता है।
    • उपाध्यक्ष के चुनाव की तिथि अध्यक्ष द्वारा (अध्यक्ष के चुनाव की तिथि राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित की जाती है) निर्धारित की जाती है।
    • 10वीं लोकसभा तक अध्यक्ष और उपाध्यक्ष दोनों आमतौर पर सत्ताधारी दल से चुने जाते थे।
      • 11वीं लोकसभा के बाद से यह आम सहमति रही है कि अध्यक्ष का पद सत्ता पक्ष/गठबंधन को और उपाध्यक्ष का पद मुख्य विपक्षी दल को दिया जाता है।
  • कार्यकाल की अवधि और पदमुक्ति:
    • अध्यक्ष की तरह ही उपाध्यक्ष भी आमतौर पर लोकसभा के कार्यकाल (5 वर्ष) तक अपने पद पर बना रहता है।
    • उपाध्यक्ष निम्नलिखित तीन मामलों में अपना पद पहले खाली कर सकता है:
      • यदि वह लोकसभा का सदस्य नहीं रहता है।
      • यदि वह अध्यक्ष को पत्र लिखकर इस्तीफा दे देता है।
      • यदि उसे लोकसभा के सभी तत्कालीन सदस्यों के बहुमत से पारित प्रस्ताव द्वारा हटा दिया जाता है।
    • ऐसा प्रस्ताव उपाध्यक्ष को 14 दिन की अग्रिम सूचना देने के बाद ही पेश किया जा सकता है।
  • ज़िम्मेदारियाँ और शक्तियाँ:
    • उपाध्यक्ष, अध्यक्ष का पद रिक्त होने पर उसके कर्तव्यों का पालन करता है।
      • उपाध्यक्ष सदन की बैठक से अध्यक्ष के अनुपस्थित रहने की स्थिति में उसके रूप में कार्य करता है।
      • वह दोनों ही मामलों में अध्यक्ष की सभी शक्तियों का प्रयोग करता है।
    • यदि अध्यक्ष ऐसी बैठक से अनुपस्थित रहता है तो वह संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की भी अध्यक्षता करता है।
    • उपसभापति जब अध्यक्ष के रूप में कार्य कर रहा होता है तब वह मत बराबरी की स्थिति में निर्णायक मत डाल सकता है।
    • उपाध्यक्ष के पास एक विशेष विशेषाधिकार होता है अर्थात् जब भी उसे संसदीय समिति के सदस्य के रूप में नियुक्त किया जाता है तो वह स्वतः ही उसका अध्यक्ष बन जाता है।

नोट: उपाध्यक्ष, अध्यक्ष का अधीनस्थ नहीं होता है। वह सीधे सदन के प्रति उत्तरदायी होता है।

प्रोटेम स्पीकर:

  • जब पिछली लोकसभा का अध्यक्ष नवनिर्वाचित लोकसभा की पहली बैठक से ठीक पहले अपना पद खाली कर देता है, तो राष्ट्रपति लोकसभा के एक सदस्य को प्रोटेम स्पीकर (Speaker Pro Tem) के रूप में नियुक्त करता है।
    • सामान्यतः इस पद पर सबसे वरिष्ठ सदस्य का चयन किया जाता है।
    • प्रोटेम स्पीकर को राष्ट्रपति स्वयं शपथ दिलाता है।
  • वह नवनिर्वाचित लोकसभा की पहली बैठक की अध्यक्षता करता है और उसके पास अध्यक्ष की सभी शक्तियाँ होती हैं।
  • इसका प्रमुख कार्य नए सदस्यों को शपथ दिलाना और सदन को नए अध्यक्ष का चुनाव करने में सक्षम बनाना है।
  • जब सदन द्वारा नए अध्यक्ष का चुनाव कर लिया जाता है तब प्रोटेम स्पीकर का कार्यकाल समाप्त हो जाता है।
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