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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

बहुपक्षीय विश्व व्यवस्था में भारत की भूमिका

  • 09 May 2020
  • 15 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में बहुपक्षीय विश्व व्यवस्था में भारत की भूमिका व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

कोरोना वायरस के प्रसार ने न केवल स्वास्थ्य क्षेत्र में चुनौतियाँ उत्पन्न की हैं बल्कि विश्व व्यवस्था के समक्ष चुनौतियों की भिन्न-भिन्न प्रकृति भी उत्पन्न कर दी है। इन चुनौतियों की प्रकृति कुछ इस तरह से है कि इनके समाधान का मार्ग विभिन्न देशों के आपसी सहयोग व समन्वय से ही प्रशस्त होगा। अब तक की परिस्थितियों से एक बात स्पष्ट हो गई है कि इस विकट चुनौती से निपटने की क्षमता व संसाधन किसी एक देश के पास नहीं हैं।

हमें इस तथ्य कि ओर गौर करना चाहिये कि जिस प्रकार दार्शनिक या मनोवैज्ञानिक समस्याओं का समाधान दर्शन या मनोविज्ञान के स्तर पर ही हो सकता है ठीक उसी प्रकार वैश्विक स्तर पर उत्पन्न हुई इस समस्या का समाधान भी वैश्विक प्रयासों के माध्यम से ही हो सकता है। सहयोग व समन्वय के यह प्रयास ‘बहुपक्षीय दृष्टिकोण’ (Multilateral Approach) के ही उपकरण हैं। इस बहुपक्षीय दृष्टिकोण की महत्ता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भारतीय प्रधानमंत्री ने इस महामारी का मुकाबला करने में ‘सहयोग से सृजन’ के विकल्प को कारगर माना है।

इस आलेख में बहुपक्षवाद, उससे संबंधित मुद्दे, बहुपक्षीय विश्व व्यवस्था में भारत की भूमिका जैसे विषयों पर विमर्श किया जाएगा।

बहुपक्षवाद से तात्पर्य 

  • बहुपक्षवाद तीन या अधिक हितधारकों के समूहों के बीच संबंधों को व्यवस्थित करने की एक प्रक्रिया है। यह अवधारणा न केवल मात्रात्मक सिद्धांतों बल्कि गुणात्मक सिद्धांतों को भी समाहित करती है, जिससे किसी व्यवस्था का प्रारूप तय करने में सहायता प्राप्त होती है।
  • बहुपक्षवाद के दो प्रमुख सिद्धांत हैं-
    • हितधारकों के बीच हितों की अविभाज्यता,
    • विवाद निपटान की एक व्यवहार्य प्रणाली, जो समस्या समाधान में तार्किक दृष्टिकोण का पालन करती है। 

बहुपक्षवाद के मार्ग में चुनौतियाँ 

कानून का दुरुपयोग 

  • वैश्विक महामारी से पूर्व व इसके दौरान भी कई देशों द्वारा (मौजूदा प्रौद्योगिकी आवश्यकताओं, बौद्धिक संपदा अधिकारों के उल्लंघन, और सब्सिडी के माध्यम से) अन्य देशों पर अनुचित लाभ हासिल करने के लिये मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय कानूनों का दुरुपयोग किया गया। जैसे-
    • व्यापार के मुद्दे पर विकसित और विकासशील देशों के मध्य तनाव में विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization-WTO) की उदासीन भूमिका। 
    • संयुक्त राज्य अमेरिका के द्वारा लगाए गए क्षेत्रीय प्रतिबंधों (Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act-CAATSA) के कारण भारत व चीन जैसे देशों में विकास की गति प्रभावित हुई है
    • अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध ने मौजूदा वैश्विक व्यापार को चुनौती दी है।

वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला का दुरुपयोग 

  • विकसित देशों में से कुछ देशों के पास वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं की अधिकता और नियंत्रण है। जिससे ये देश वाणिज्यिक हितों के साथ रणनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये इस वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला का दोहरा लाभ उठाने का प्रयास कर रहे हैं। जैसे-
    • बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना के माध्यम से चीन विश्व आर्थिक प्रशासन में अपनी भूमिका को बढ़ा रहा है। इस परियोजना के माध्यम से चीन अपने आर्थिक हितों की पूर्ति के साथ ही अपने रणनीतिक लक्ष्यों को भी साधने का प्रयास कर रहा है।
    • कई शक्तिशाली देश अपनी बेहतर नेटवर्किंग क्षमता का लाभ उठाते हुए अन्य देशों की व्यापक तौर पर गुप्त रूप से निगरानी कर रहे हैं।
    • इसके अतिरिक्त, औद्योगिक क्रांति 4.0 के दोहरे उपयोग (वाणिज्यिक संव्यवहार और सैन्य अनुप्रयोग) से भी विश्व भयभीत है।

वैश्विक फ्रेमवर्क की कमी

  • आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन और साइबर अपराध जैसे मुद्दों पर वैश्विक समुदाय एक मंच पर आकर एक उभयनिष्ठ वैश्विक एजेंडे के निर्माण की दिशा में सक्रिय नहीं हो पा रहा है।
  • इसके साथ ही सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक सामान्य स्वास्थ्य फ्रेमवर्क की कमी के कारण ही COVID-19 जैसी महामारी ने पूरे विश्व को अपनी चपेट में ले लिया है।

‘अवर कंट्री फर्स्ट’ की अवधारणा 

  • ‘अवर कंट्री फर्स्ट’ के दृष्टिकोण को वैश्विक स्तर पर कई लोकप्रिय राष्ट्रवादी आंदोलनों द्वारा बढ़ावा दिया जा रहा है और ऐसा लगता है कि वोट बैंक के लालच में विभिन्न देशों की सरकारें वैश्विक सहयोग को कम करके अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को अस्वीकार करना प्रारंभ कर रही हैं। 
  • बहुपक्षीयता के मार्ग में चुनौती के रूप में ब्रिटेन का यूरोपीय संघ को छोड़ने का निर्णय एक ज्वलंत उदाहरण है। इतना ही नहीं वैश्विक स्तर पर बहुपक्षीय सहयोग की भावना को भी चुनौती मिल रही है। विशेषकर उस समय जब सतत विकास की दिशा में बढ़ने के लिये सहयोग व संलग्नता की बात आती है, तो वैश्विक राजनीतिक परिवर्तनों और राष्ट्रीय आन्दोलनों के कारण बहुपक्षीय व्यवस्था गतिरोध में फँसती दिखती है। संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा पेरिस जलवायु समझौते से बाहर निकलना बहुपक्षीय सहयोग की भावना में कमी ‘अवर कंट्री फर्स्ट’ की संकीर्ण मानसिकता का सटीक उदाहरण है।  

सुरक्षा परिषद की सदस्यता में वृद्धि न हो पाना

  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उठती सुधारों की मांगों के बावज़ूद विकासशील देशों को प्रतिनिधित्व न देना बहुपक्षीय दृष्टिकोण के सर्वथा विपरीत है। 

अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं का विकसित देशों की ओर झुकाव 

  • यूक्रेन के क्रीमिया राज्य पर रूस का सैन्य नियंत्रण, सीरिया में बशर-अल-असद शासन के विरुद्ध संयुक्त राज्य अमेरिका की सैन्य लामबंदी तथा दक्षिण चीन सागर के मामले में अंतर्राष्ट्रीय  न्यायालय के निर्णय पर चीन की अस्वीकृति जैसे मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र संघ की उदासीन भूमिका बहुपक्षीयता के मार्ग में रुकावट है। 
  • COVID-19 महामारी के दौरान चीन के दबाव में विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation-WHO) द्वारा अपनी भूमिका का निष्पक्ष रूप से निर्वहन न किये जाने से बहुपक्षीय अवधारणा को लेकर स्थापित किये गए इन अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के प्रति संशय उत्पन्न हो गया है। 

बहुपक्षीय दृष्टिकोण की पुनर्स्थापना में भारत की भूमिका

  • विशेषज्ञों द्वारा ऐसा माना जा रहा है कि बहुपक्षवाद की पुनर्स्थापना में भारत की प्रभावी भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता है क्योंकि भारत ने समय के साथ अपनी गुटनिरपेक्ष नीति में बदलाव लाते हुए बहुपक्षवाद की नीति (भारत लगभग सभी बड़ी शक्तियों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध रखते हुए उसका लाभ उठा रहा है) का पालन कर रहा है। 
  • वर्तमान में भारत एक वैश्विक मध्यस्थ बनने और वैश्विक मुद्दों पर एक रूपरेखा विकसित करने हेतु विभिन्न हितधारकों के मध्य समन्वय कर सकता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सक्रियतावाद और नियम-आधारित बहुपक्षवाद को बढ़ावा देने वाली लंबी परंपरा के साथ ही भारत एक प्रमुख जी -20 सदस्य देश और दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था (क्रय शक्ति समता के आधार पर तीसरा सबसे बड़ा) वाला देश है।
  • भारत की विदेश नीति ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ और ‘गुड समैरिटन’ (किसी की सहायता करने की भावना) के लोकाचार पर आधारित है ।
  • बहुपक्षवाद के प्रति भारत की दीर्घकालिक प्रतिबद्धता संयुक्त राष्ट्र संघ में सुधारों के आह्वान के रूप में परिलक्षित हो सकती है।   
  • भारत ने अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance-ISA) जैसी विभिन्न बहुपक्षीय पहलों को बढ़ावा देने , आतंकवाद का मुकाबला करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक अभिसमय (CCIT) का प्रस्ताव देने, एशिया-अफ्रीका विकास गलियारे को बढ़ावा देने के लिये लगातार प्रयास किये हैं
  • भारत पूरे विश्व के लिये फार्मेसी (दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक और लागत प्रभावी जेनेरिक दवाओं का निर्यातक) का हब है। 
  • विकसित और विकासशील देशों के समूह के साथ मिलकर काम करने की क्षमता ने भारत के कद को बढ़ाया है, परिणामस्वरूप विश्व के तमाम देश भारत द्वारा रखे गए प्रस्तावों का समर्थन करते हैं। 
  • भारत अलायंस फॉर मल्टीलैट्रलिज़्म (Alliance for Multilateralism) के साथ मिलकर काम कर सकता है ताकि दोनों बड़े पैमाने पर सुधार के एजेंडे को आकार दे सकें।

अलायंस फॉर मल्टीलैट्रलिज़्म

  • फ्रांस और जर्मन विदेश मंत्रियों द्वारा शुरू किया गया ‘अलायंस फॉर मल्टीलैट्रलिज़्म’  अंतर्राष्ट्रीय स्थिरता और शांति के लिये नियमों पर आधारित बहुपक्षीय जनादेश को बढ़ावा देने और आम चुनौतियों को संबोधित करने का एक अनौपचारिक नेटवर्क है।
  • अलायंस का उद्देश्य नियमों पर आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को स्थिर करने के लिये वैश्विक प्रतिबद्धता को नवीनीकृत कर इसके सिद्धांतों को बनाए रखना है और जहाँ आवश्यक हो, इसे अनुकूलित करना है।
  • इसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों, समझौतों और संस्थानों की सुरक्षा और संरक्षण करना है जो, दबाव या संकट में हैं।
  • यह ऐसे क्षेत्रों जहाँ प्रभावी शासन की कमी होती है और नई चुनौतियों के लिये  सामूहिक कार्रवाई की आवश्यकता होती है, में नीतिगत सक्रिय एजेंडे को आगे बढ़ाने का प्रयास करता है।  

निष्कर्ष 

कठिनाइयों के बावजूद, भारत को बहुपक्षवाद की अवधारणा को मज़बूत करने तथा विश्व के सभी देशों को एक साथ एक मंच पर लाने के लिये प्रयास करना होगा। यह सर्वविदित है कि भारत ने हमेशा मानवता को प्राथमिकता देने वाले  सामान्य हितों को संकीर्ण राष्ट्रीय हितों से ऊपर रखा है। इस संदर्भ में, भारत ने महामारी से लड़ने व सार्क के सदस्य देशों को एक साथ लाने के लिये एक संयुक्त प्रतिक्रिया विकसित करने की पहल की है। निश्चित रूप से भारत की यह पहल विश्व के समक्ष बहुपक्षवाद को बढ़ावा देने में एक बेहतरीन उदाहरण साबित हो सकती है।  

प्रश्न- बहुपक्षवाद से आप क्या समझते हैं? बहुपक्षवाद के मार्ग में उत्पन्न चुनौतियों का उल्लेख करते हुए बहुपक्षीय विश्व व्यवस्था के निर्माण में भारत की भूमिका का विश्लेषण कीजिये। 

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