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डेली न्यूज़

  • 14 Jul, 2023
  • 54 min read
शासन व्यवस्था

स्वच्छ भारत मिशन-शहरी

प्रिलिम्स के लिये:

स्वच्छ भारत मिशन-शहरी, खुले में शौच, कचरा मुक्त स्टार रेटिंग

मेन्स के लिये:

स्वच्छ भारत मिशन, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय (Ministry of Housing and Urban Affairs- MoHUA) ने देश भर में स्वच्छ भारत मिशन-शहरी (SBM-U 2.0) के दूसरे चरण के योजना निर्माण और कार्यान्वयन के मूल्यांकन तथा इसमें तेज़ी लाने के लिये एक समीक्षा-सह-कार्यशाला का आयोजन किया।

  • वर्ष 2022 के लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन और संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (United Nations Children's Fund- UNICEF) द्वारा जल, साफ-सफाई और स्वच्छता पर संयुक्त निगरानी कार्यक्रम (JMP) द्वारा जारी की गई हालिया रिपोर्ट के बाद खुले में शौच का मुद्दा एक बार फिर से चर्चा का विषय बन गया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में कुल आबादी के लगभग 17% लोग खुले में शौच करते हैं।

स्वच्छ भारत मिशन-शहरी: 

  • परिचय:
    • शहरी क्षेत्रों में साफ-सफाई, स्वच्छता और उचित अपशिष्ट प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिये एक राष्ट्रीय अभियान के रूप में आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय द्वारा 2 अक्तूबर, 2014 को स्वच्छ भारत मिशन-शहरी (SBM-U) शुरू किया गया था।
  • इसका उद्देश्य पूरे भारत के शहरों और कस्बों को स्वच्छ एवं खुले में शौच से मुक्त बनाना है।
  • स्वच्छ भारत मिशन-शहरी 1.0:
    • SBM-U का पहला चरण शौचालयों तक पहुँच प्रदान करके और व्यवहार में परिवर्तन को बढ़ावा देकर शहरी भारत को खुले में शौच मुक्त बनाने के लक्ष्य को प्राप्त करने पर केंद्रित था।
    • SBM-U 1.0 अपने लक्ष्य को हासिल करने में सफल रहा और 100% शहरी भारत को ODF घोषित किया गया।
  • स्वच्छ भारत मिशन-शहरी 2.0 (2021-2026):
    • वर्ष 2021-22 के बजट में घोषित SBM-U 2.0, इसी योजना के पहले चरण की निरंतरता है।
    • इसके दूसरे चरण का लक्ष्य ODF के लक्ष्यों के साथ ही ODF+ और ODF++ के लक्ष्य की ओर अग्रसर होना है तथा शहरी भारत को कचरा-मुक्त बनाने पर ध्यान केंद्रित करना है।
    • इसमें स्थायी स्वच्छता प्रथाओं, अपशिष्ट प्रबंधन और एक चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने पर ज़ोर दिया गया है।
  • उपलब्धियाँ:
    • खुले में शौच से मुक्त (ODF):
      • शहरी भारत खुले में शौच से मुक्त हो गया है, सभी 4,715 शहरी स्थानीय निकाय (Urban Local Bodies- ULB) पूरी तरह से ODF हो गए हैं।
      • 3,547 शहरी स्थानीय निकाय कार्यात्मक और स्वच्छ सामुदायिक तथा सार्वजनिक शौचालयों की सुविधा के साथ ODF+ की श्रेणी में हैं तथा 1,191ULB मल कीचड़ के संपूर्ण प्रबंधन के साथ अब ODF++ की श्रेणी में आ गए हैं।
  • 14 शहर WATER+ प्रमाणित हैं, जिसका अर्थ है कि यहाँ अपशिष्ट जल का उपचार और इसका इष्टतम पुन: उपयोग किया जाता है।
  • अपशिष्ट प्रसंस्करण:
    • 97% वार्डों में 100% डोर-टू-डोर अपशिष्ट संग्रहण और देश के सभी ULB में 90% से अधिक वार्डों में नागरिकों द्वारा उत्पन्न किये जा रहे कचरे का स्रोत पर पृथक्करण से सहायता मिली है, इस कारण भारत में अपशिष्ट प्रसंस्करण वर्ष 2014 के 17% से 4 गुना बढ़कर वर्ष 2023 में 75% हो गया है।
  • अपशिष्ट मुक्त शहर:
    • जनवरी 2018 में लॉन्च किया गया अपशिष्ट मुक्त शहर (GFC)-स्टार रेटिंग प्रोटोकॉल पहले वर्ष में केवल 56 शहरों से बढ़कर अब तक 445 शहरों तक पहुँच गया है, अक्तूबर 2024 तक कम-से-कम 1,000 3-स्टार GFC बनाने का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य रखा गया है।
      • वर्ष 2023-24 के बजट में सूखे और गीले अपशिष्ट के वैज्ञानिक प्रबंधन पर अधिक ध्यान देकर एक चक्रीय अर्थव्यवस्था के निर्माण की भारत की प्रतिबद्धता को और मज़बूत किया गया है।

खुले में शौच से मुक्त भारत की स्थिति: 

  • ODF: किसी क्षेत्र को ODF के रूप में अधिसूचित अथवा घोषित किया जा सकता है यदि दिन के किसी भी समय एक भी व्यक्ति खुले में शौच करते हुए नहीं पाया जाता है।
  • ODF+: यह दर्जा तब प्रदान किया जाता है जब दिन के किसी भी समय, एक भी व्यक्ति खुले में शौच और/या पेशाब करते हुए नहीं पाया जाता है तथा सभी सामुदायिक एवं सार्वजनिक शौचालय अच्छी तरह से बनाए गए हों, उनका अच्छा रखरखाव किया जा रहा हो और वे अच्छे से कार्य कर रहे हों।
  • ODF++: यह दर्जा तब दिया जाता है जब कोई क्षेत्र पहले से ही ओडीएफ+ की श्रेणी में आता हो और मल कीचड़/सेप्टेज तथा सीवेज को सुरक्षित रूप से प्रबंधित एवं उपचारित किया जाता है, जिसमें अनुपचारित मल कीचड़ और सीवेज को खुली नालियों, जल निकायों अथवा क्षेत्रों में छोड़ा या डंप नहीं किया जाता हो।

JMP रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ: 

  • खुले में शौच के आँकड़े:
    • रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत में 17% ग्रामीण आबादी अभी भी खुले में शौच करती है।
  • बुनियादी स्वच्छता सुविधाओं तक पहुँच:
    • भारत में एक-चौथाई ग्रामीण आबादी की "न्यूनतम बुनियादी" स्वच्छता सुविधाओं तक पहुँच नहीं है।
      • बुनियादी सेवाओं को बेहतर स्वच्छता सुविधाओं के रूप में परिभाषित किया गया है जिन्हें एक परिवार दूसरों के साथ साझा नहीं करते हैं।
  • वर्ष 2015 के बाद हुई प्रगति:
    • यह रिपोर्ट वर्ष 2015 के बाद से प्रगति पर नज़र रखती है जब स्वच्छता के लक्ष्य निर्धारित किये गए थे।
    • वर्ष 2015 में लगभग 41% ग्रामीण आबादी खुले में शौच करती थी, जो वर्ष 2022 में घटकर 17% रह गई।
    • स्वच्छता सुविधाओं के संदर्भ में वर्ष 2015 में 51% घरों में न्यूनतम बुनियादी स्वच्छता थी, जो वर्ष 2022 में बढ़कर 75% हो गई।
  • खुले में शौच के आँकड़ों में गिरावट की दर: 
    • भारत में खुले में शौच के आँकड़ों में 3.39% की वार्षिक औसत गिरावट दर्ज की गई है।
    • यदि यह गिरावट दर जारी रही, तो खुले में शौच-मुक्त स्थिति हासिल करने में लगभग चार से पाँच वर्ष लगेंगे।
  • सिफारिशें:
    • खुले में शौच के स्थान पर शौचालय के उपयोग को बढ़ावा देने के लिये व्यवहार परिवर्तन के महत्त्व पर बल देना ।
    • ODF स्थिति का सटीक पता लगाने के लिये शौचालयों के उपयोग के प्रति व्यावहारिक परिवर्तन की दर निर्धारित करना और उसे मापना।
    • इसके उन्मूलन की दिशा में कार्य कर खुले में शौच के सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रभावों को संबोधित करना।
    • सुधार के क्षेत्रों की पहचान करने और निरंतर प्रगति सुनिश्चित करने के लिये स्वच्छता प्रथाओं की निरंतर निगरानी और मूल्यांकन करना ।
    • JMP रिपोर्ट के निष्कर्षों के आधार पर मील के पत्थर के रूप में भारत में ODF का पुनर्मूल्यांकन करना और खुले में शौच को संबोधित करना तथा स्वच्छता सुविधाओं में सुधार के लिये व्यापक उपाय करना।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. "जल, स्वच्छता और स्वच्छता आवश्यकताओं को संबोधित करने वाली नीतियों के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये लाभार्थी वर्गों की पहचान को प्रत्याशित परिणामों के साथ समन्वित किया जाना है।" WASH योजना के संदर्भ में कथन का परीक्षण कीजिये। (2017) 

प्रश्न. सामाजिक प्रभाव, स्वच्छ भारत अभियान की सफलता में कैसे योगदान दे सकता है? (2016) 

स्रोत: डाउन टू अर्थ


शासन व्यवस्था

उपासना स्थल अधिनियम, 1991

प्रिलिम्स के लिये:

उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991

मेन्स के लिये:

भारतीय संविधान, उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991, संबंधित प्रावधान

चर्चा में क्यों?  

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने उपासना स्थल अधिनियम, 1991 की वैधता के मामले को स्थगित करते हुए केंद्र को इस मामले पर अपना रुख स्पष्ट करने के लिये 31 अक्तूबर, 2023 तक का समय दिया है

उपासना स्थल अधिनियम: 

  • परिचय:  
    • यह किसी भी उपासना स्थल के रूपांतरण को प्रतिबंधित करने और उसके धार्मिक स्वरूप के रखरखाव और उससे संबंधित या उसके आनुषंगिक मामलों के लिये एक अधिनियम के रूप में वर्णित किया गया है जैसा कि यह 15 अगस्त, 1947 को था।
  • अधिनियम के प्रमुख प्रावधान:
    • धर्मांतरण पर रोक (धारा 3):
      • यह धारा किसी भी उपासना स्थल के परिवर्तन पर रोक लगाने का प्रावधान करती है अर्थात् कोई भी व्यक्ति किसी भी धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी वर्ग के उपासना स्थल को उसी धार्मिक संप्रदाय के किसी भिन्न वर्ग या किसी भिन्न धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी वर्ग के उपासना स्थल में परिवर्तित नहीं करेगा।
    • धार्मिक प्रकृति का रखरखाव (धारा 4-1):
      • यह घोषणा करती है कि 15 अगस्त, 1947 तक अस्तित्व में आए उपासना स्थलों की धार्मिक प्रकृति पूर्ववत् बनी रहेगी।
    • लंबित मामलों का निवारण (धारा 4-2):
      • इसमें कहा गया है कि 15 अगस्त, 1947 को मौजूद किसी भी उपासना स्थल की धार्मिक प्रकृति के परिवर्तन के संबंध में किसी भी न्यायालय के समक्ष लंबित कोई भी मुकदमा या कानूनी कार्यवाही समाप्त हो जाएगी और कोई नया मुकदमा या कानूनी कार्यवाही शुरू नहीं की जाएगी।
    • अधिनियम के अपवाद (धारा 5): 
      • यह अधिनियम प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारकों, पुरातात्त्विक स्थलों तथा प्राचीन स्मारक एवं पुरातत्त्व स्थल अवशेष अधिनियम, 1958 के अंतर्गत आने वाले अवशेषों पर लागू नहीं होता है।
      • वे मामले भी इसमें शामिल नहीं हैं जो पहले ही लागू हो चुके हैं या सुलझे हुए हैं और इस तरह के विवादों में सिद्धांत लागू होने से पहले तय किये गए रूपांतरण शामिल हैं।
      • यह अधिनियम अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के नाम से पहचाने जाने वाले विशिष्ट उपासना स्थल तक विस्तारित नहीं है, जिसमें इससे जुड़ी कोई कानूनी कार्यवाही भी शामिल है।
    • दंड (धारा 6):
      • यह धारा अधिनियम का उल्लंघन करने पर अधिकतम तीन वर्ष  की कैद और ज़ुर्माने सहित दंड निर्दिष्ट करती है।
  • आलोचना: 
    • न्यायिक समीक्षा पर रोक:
      • आलोचकों का तर्क है कि अधिनियम न्यायिक समीक्षा को रोकता है, जो संविधान का एक मूलभूत पहलू है।
      • उनका मानना है कि यह प्रतिबंध नियंत्रण और संतुलन प्रणाली को कमज़ोर करता है तथा संवैधानिक अधिकारों की रक्षा में न्यायपालिका की भूमिका को सीमित करता है।
    • पूर्वव्यापी कटऑफ तिथि:
      • धार्मिक स्थलों की स्थिति निर्धारित करने के लिये एक मनमानी तिथि (स्वतंत्रता दिवस, 1947) का उपयोग करने के लिये इस अधिनियम की आलोचना की जाती है।
      • विरोधियों का तर्क है कि यह अंतिम तिथि ऐतिहासिक अन्यायों की उपेक्षा करती है और उस तिथि से पहले अतिक्रमणों के निवारण को अस्वीकृत करती है।
    • धर्म के अधिकार का उल्लंघन: 
      • आलोचकों का दावा है कि यह अधिनियम हिंदुओं, जैनियों, बौद्धों और सिखों के धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
      • उनका तर्क है कि यह उनके उपासना स्थलों पर दावा करने और पुनर्स्थापित करने की उनकी क्षमता को प्रतिबंधित करता है जिससे धर्म का पालन करने की उनके अनुयायियों की स्वतंत्रता में बाधा उत्पन्न होती है।
    • धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन: 
      • इस अधिनियम का विरोध करने वालों का तर्क है कि यह अधिनियम धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करता है और एक समुदाय को दूसरे समुदाय से अधिक महत्त्व/प्राथमिकता प्रदान करता है।
      • उनका तर्क है कि यह कानून के तहत सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार की भावना को कमज़ोर करता है।
    • अयोध्या विवाद मामले को अलग रखा जाना: 
      • अयोध्या विवाद मामले को अलग रखा जाना भी इस अधिनियम की आलोचना  का एक अन्य कारण है।
      • इस अधिनियम का विरोध करने वाले इसकी निरंतरता पर सवाल उठाते हैं और धार्मिक स्थलों के साथ हो रहे भेदभावपूर्ण व्यवहार को लेकर चिंता व्यक्त करते हैं।
  • अधिनियम पर सर्वोच्च न्यायालय का रुख:
    • उपासना स्थल अधिनियम को सर्वोच्च न्यायालय भारतीय संविधान की धर्मनिरपेक्षता के प्रति प्रतिबद्धता को बनाए रखने वाले एक विधायी कार्रवाई के रूप में देखता है।
    • यह अधिनियम सभी धर्मों के बीच समानता सुनिश्चित करने के राज्य के संवैधानिक दायित्व को लागू करता है। यह प्रत्येक धार्मिक समुदाय के उपासना स्थलों के संरक्षण की गारंटी देता है। 

आगे की राह 

  • मामले से संबंधित आलोचनाओं और कमियों को दूर करने के लिये उपासना स्थल अधिनियम की गहन समीक्षा किये जाने की आवश्यकता है।
  • यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि यह अधिनियम संवैधानिक अधिकारों को बनाए रखने में न्यायपालिका की भूमिका को संरक्षित करते हुए न्यायिक समीक्षा को प्रतिबंधित नहीं करता है।
  • धार्मिक विशिष्टता के संरक्षण और विभिन्न समुदायों के अधिकारों का सम्मान करने के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है।
  • निष्पक्षता और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिये सार्वजनिक परामर्श को शामिल कर पारदर्शिता सुनिश्चित करने के साथ ही विशिष्ट साइट्स के मामले को इस अधिनियम से अलग रखे जाने के कारणों की समीक्षा की जानी चाहिये। 

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत निवेश के लिये सबसे आकर्षक उभरता बाज़ार

प्रिलिम्स के लिये:

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, उभरता हुआ बाज़ार, 'ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस'  

मेन्स के लिये:

निवेश के लिये उभरते बाज़ार के रूप में भारत का विकास, उभरते बाज़ारों में निवेश से जुड़ी चुनौतियाँ और जोखिम

चर्चा में क्यों?

Invesco (एक स्वतंत्र वैश्विक निवेश प्रबंधन फर्म) द्वारा Invesco ग्लोबल सॉवरेन एसेट मैनेजमेंट अध्ययन के अनुसार, भारत वर्ष 2023 में निवेश के लिये सबसे आकर्षक उभरते बाज़ार के रूप में चीन से आगे निकल गया है।

  • रिपोर्ट अपनी मज़बूत जनसांख्यिकी, राजनीतिक स्थिरता और सक्रिय विनियमन के कारण संप्रभु कोष के प्रति भारत के आकर्षण पर ज़ोर देती है।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:

  • भारत को ऋण निवेश के लिये सबसे आकर्षक उभरता बाज़ार माना जाता है।
  • भारत ऋण निवेशकों के लिये आकर्षक प्रतिफल,अनुकूल मुद्रा दृष्टिकोण और मज़बूत व्यापक आर्थिक बुनियादी सिद्धांत प्रदान करता है। 
  • सार्वजनिक तथा निजी दोनों बाज़ारों में कवरेज बढ़ाने के मामले में भारत को शीर्ष स्थलों में स्थान दिया गया है।
  • सार्वजनिक शेयर में कवरेज बढ़ाने के लिये भारत और दक्षिण कोरिया सबसे पसंदीदा बाज़ार हैं।
  • निजी शेयर में कवरेज बढ़ाने के लिये भारत और ब्राज़ील सबसे पसंदीदा बाज़ार हैं।
  • भारत, मैक्सिको और ब्राज़ील के साथ चालू खाते के घाटे को वित्तपोषित करते हुए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में वृद्धि के साथ सहायक मुद्राओं तथा घरेलू परिसंपत्तियों से लाभान्वित हो रहा है।
  • रिपोर्ट ने उभरते बाज़ारों में निवेश की चुनौतियों और जोखिमों को स्वीकार किया तथा संप्रभु निवेशकों का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन एवं प्रबंधन करने की सलाह दी।

भारत निवेशकों के लिये आकर्षक:

  • व्यापार और राजनीतिक स्थिरता: बेहतर व्यापार और राजनीतिक स्थिरता के कारण भारत को संप्रभु निवेशकों के लिये एक स्थिर गंतव्य माना जाता है।
  • 'ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस' : भारत ने व्यापार परिस्थितियों को आसान बनाने के लिये सुधारों को लागू किया है, जिसमें कॉर्पोरेट कर दरों को कम करना और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश मानदंडों को उदार बनाना शामिल है।
  • प्रोडक्शन-लिंक्ड प्रोत्साहन योजनाएँ: भारत ने विभिन्न क्षेत्रों में विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिये प्रोडक्शन-लिंक्ड प्रोत्साहन योजनाएँ प्रारंभ की हैं।
  • तीव्र जनसांख्यिकी वृद्धि: भारत का विस्तृत और नया उपभोक्ता बाज़ार, कुशल श्रम शक्ति तथा नवाचार एवं उद्यमिता की क्षमता इसे निवेशकों के लिये एक आकर्षक गंतव्य बनाती है।
  • सक्रिय विनियमन: भारत ने संप्रभु निवेशकों के सामने आने वाली चुनौतियों, जैसे- कराधान, मुद्रा अस्थिरता तथा कानूनी विवादों से निपटने के लिये कदम उठाए हैं।
  • अनुकूल निवेश वातावरण: भारत अपने खुलेपन और संप्रभु निवेशकों के साथ जुड़ने की इच्छा, सहयोग एवं निवेश के लिये विभिन्न अवसरों को प्रस्तुत करने के लिये जाना जाता है।

भारत में निवेश की चुनौतियाँ एवं जोखिम:

  • मुद्रास्फीति: मुद्रास्फीति का बढ़ता दबाव एक अल्पकालिक जोखिम उत्पन्न करता है, जिससे भारत जैसे उभरते बाज़ारों में सख्त मौद्रिक नीति, उच्च ब्याज दरें, संपत्ति की कम कीमतें एवं मुद्रा का मूल्यह्रास की स्थिति देखी जाती है।
  • भू-राजनीतिक जोखिम: बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव के परिणामस्वरूप व्यापार युद्ध, प्रतिबंध, संघर्ष या साइबर हमले हो सकते हैं, जिससे व्यापार प्रवाह, आपूर्ति शृंखला, ऊर्जा सुरक्षा और बाज़ार की धारणा प्रभावित हो सकती है।
  • आपूर्ति शृंखला में व्यवधान: कोविड-19 महामारी ने वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं की कमज़ोरियों को उजागर किया है, जिससे कच्चा माल, मध्यवर्ती वस्तुओं और अंतिम उत्पादों की उपलब्धता एवं लागत प्रभावित हुई है, जो आर्थिक गतिविधि और मुद्रास्फीति को प्रभावित कर सकती है।
  • जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन बुनियादी ढाँचे, कृषि, स्वास्थ्य और जैवविविधता के लिये भौतिक जोखिम प्रस्तुत करता है, साथ ही ऊर्जा स्रोतों, उद्योगों, नियमों एवं नीतियों के लिये संक्रमण जोखिम भी प्रस्तुत करता है। इन जोखिमों का भारत में निवेश पर प्रभाव पड़ सकता है।

आगे की राह  

  • राजनयिक संबंधों को मज़बूत करने और व्यापार, निवेश एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को बढ़ावा देने के लिये द्विपक्षीय तथा बहुपक्षीय साझेदारी में शामिल होना, जिससे वैश्विक निवेश गंतव्य के रूप में भारत का आकर्षण और बढ़े।
  • व्यापार में आसानी और सुधार लाने, नौकरशाही बाधाओं को कम करने, प्रक्रियाओं को सरल बनाने, विदेशी निवेश को सुविधाजनक बनाने एवं पारदर्शिता बढ़ाने के लिये सुधारों को लागू करना जारी रखना चाहिये।
  • पर्यावरणीय जोखिमों को कम करने और सामाजिक रूप से ज़िम्मेदार संप्रभु निवेशकों को आकर्षित करने के लिये टिकाऊ प्रथाओं को अपनाने तथा नवीकरणीय ऊर्जा, स्वच्छ प्रौद्योगिकियों एवं जलवायु लचीलेपन उपायों में निवेश किया जाना चाहिये।
  • अत्यधिक कुशल कार्यबल के विकास और नवाचार को बढ़ावा देने के लिये कौशल विकास कार्यक्रमों तथा शिक्षा में निवेश करना आवश्यक है ताकि भारत के प्रतिस्पर्द्धी लाभ में वृद्धि हो और दीर्घकालिक निवेश आकर्षित हो।
  • कर सुधार, मुद्रा अस्थिरता प्रबंधन और कुशल विवाद समाधान तंत्र सहित संप्रभु निवेशकों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने के लिये सक्रिय विनियमन जारी रखना

  UPSC सिविल सेवा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. सरकार द्वारा उठाए जा सकने वाले निम्नलिखित कार्रवाइयों पर विचार कीजिये: (2011) 

  1. घरेलू मुद्रा का अवमूल्यन करना।
  2. निर्यात सब्सिडी में कमी लाना।
  3. FDI और FIIs से अधिक वित्त आकर्षित करने के लिये उपयुक्त नीतियाँ अपनाना। 

उपर्युक्त में से कौन-सी कार्रवाई/कार्रवाइयाँ चालू खाता घाटे को कम करने में मदद कर सकती है?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) केवल 1 और 3

उत्तर: (d)

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

भारत में डेटा गवर्नेंस

प्रिलिम्स के लिये:

DPDP 2022, GDPR, सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता), नियम 2021, 'डिजिटल इंडिया अधिनियम', 2023 का प्रस्ताव

मेन्स के लिये:

भारत में डेटा गवर्नेंस 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने कुछ महत्त्वपूर्ण बदलावों के साथ संसद के मानसून सत्र में पेश करने हेतु ड्राफ्ट डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल (DPDP), 2022 को स्वीकृति दी है, जिसमें डेटा प्रोसेसिंग के लिये सहमति की उम्र कम करना तथा कुछ कंपनियों के लिये छूट प्रदान करना शामिल है।

  • यदि यह पारित हो जाता है तो सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निजता को मौलिक अधिकार घोषित करने के छह वर्ष पश्चात् यह कानून भारत का मुख्य डेटा प्रशासन ढाँचा बन जाएगा।
  • यह विधेयक तेज़ी से बढ़ते डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र की रूपरेखा प्रदान करने के लिये आईटी और दूरसंचार क्षेत्रों में प्रस्तावित चार कानूनों में से एक है। अन्य तीन विधेयक इस प्रकार हैं:

अपेक्षित परिवर्तन:

  • सहमति की आयु न्यूनतम करना:
    • विधेयक में सहमति की उम्र 18 वर्ष तय की गई थी, जिससे 18 वर्ष से कम उम्र के व्यक्तियों के डेटा के प्रसंस्करण के लिये माता-पिता की सहमति की आवश्यकता होगी।
    • आगामी विधेयक एक श्रेणीबद्ध दृष्टिकोण अपनाएगा, जिससे सहमति की उम्र के लिये मामले-दर-मामले निर्धारण की अनुमति मिलेगी
      • यह परिवर्तन सोशल मीडिया कंपनियों द्वारा व्यक्त की गई चिंताओं को संबोधित करता है, जिन्होंने यह तर्क दिया था कि सहमति की एक निश्चित आयु उनके संचालन को बाधित करेगी जो 18 वर्ष से कम उम्र के उपयोगकर्त्ताओं पर लक्षित सेवाओं में बाधा उत्पन्न करेगी।
    • यह यूरोपीय संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका में डेटा सुरक्षा नियमों के अनुरूप है, जहाँ सहमति की न्यूनतम उम्र निर्धारित है।
  • बच्चे और छूट की परिभाषा: 
    • बच्चे की परिभाषा में केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित 18 वर्ष या उससे कम आयु के व्यक्ति शामिल हो सकते हैं।
      • वर्ष 2022 के मसौदे में बच्चे की परिभाषा "वह व्यक्ति जिसने अठारह वर्ष की आयु पूरी नहीं की हो" थी।
    • बच्चों के डेटा से जुड़ी गतिविधियों वाली कुछ संस्थाओं को माता-पिता की सहमति प्राप्त करने से छूट दी जा सकती है यदि वे सत्यापन योग्य सुरक्षित डेटा प्रोसेसिंग प्रथाओं का प्रदर्शन कर सकें।
      • महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, IT मंत्रालय के सहयोग से बच्चों को छूट देने के लिये प्लेटफाॅर्मों के गोपनीयता मानकों का मूल्यांकन करेगा।
  • सीमा पार डेटा प्रवाह पर छूट:
    • आगामी विधेयक में सीमा पार डेटा प्रवाह में और अधिक छूट प्रदान की गई है, जो एक वाइट लिस्टिंग से ब्लैक लिस्टिंग प्रणाली में स्थानांतरित हो गया है।
      • बिल वैश्विक डेटा को उन देशों की निर्दिष्ट नकारात्मक सूची के अलावा सभी न्यायालयों में डिफाॅल्ट रूप से प्रवाहित करने की अनुमति देता है जहाँ ऐसे हस्तांतरण प्रतिबंधित होंगे।
    • इस परिवर्तन का उद्देश्य व्यवसायों के लिये प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करते हुए अंतर्राष्ट्रीय न्यायालयों में डेटा स्थानांतरण की सुविधा प्रदान करना है।

डेटा गवर्नेंस के संबंध में वैश्विक नियम:

  • यूरोपीय संघ (EU) के सामान्य डेटा संरक्षण विनियम (GDPR):
    • GDPR व्यक्तिगत डेटा के प्रसंस्करण के लिये एक व्यापक डेटा संरक्षण कानून पर केंद्रित है।
    • यूरोपीय संघ में निजता का अधिकार एक मौलिक अधिकार के रूप में निहित है जो किसी व्यक्ति की गरिमा और उसके द्वारा उत्पन्न डेटा पर उसके अधिकार की रक्षा करना चाहता है।
    • GDPR द्वारा लगाए गए ज़ुर्माने ने विश्व भर के संगठनों को अनुपालन को प्राथमिकता देने के लिये प्रेरित किया है। गूगल, व्हाट्सएप्प, ब्रिटिश एयरवेज़ और मैरियट सहित प्रसिद्ध कंपनियों को पर्याप्त ज़ुर्माने का सामना करना पड़ा है।
    • इसके अलावा तीसरे देशों में डेटा ट्रांसफर के संबंध में GDPR के सख्त मानदंडों का यूरोपीय संघ से परे डेटा सुरक्षा ढाँचे पर गहरा प्रभाव पड़ा है।
  • अमेरिका में डेटा गवर्नेंस:
    • अमेरिका में गोपनीयता अधिकारों या सिद्धांतों का कोई व्यापक सेट नहीं है, जो EU के GDPR की तरह डेटा के उपयोग, संग्रह और प्रकटीकरण को संबोधित करता हो।
      • इसके बजाय क्षेत्र-विशिष्ट विनियमन सीमित है। सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों का डेटा सुरक्षा के प्रति दृष्टिकोण अलग-अलग है।
    • गोपनीयता अधिनियम, इलेक्ट्रॉनिक संचार गोपनीयता अधिनियम आदि जैसे व्यापक कानून, व्यक्तिगत जानकारी के संबंध में सरकार के कार्यों और प्राधिकार को स्पष्ट रूप से परिभाषित करते हैं।
    • निजी क्षेत्र के लिये कुछ क्षेत्र-विशिष्ट मानदंड निर्धारित किये गए हैं। 
  • चीन में डेटा गवर्नेंस: 
    • व्यक्तिगत सूचना संरक्षण कानून (Personal Information Protection Law- PIPL) चीनी व्यक्तियों को व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा संबंधी नवीन अधिकार प्रदान करता है।
    • डेटा सुरक्षा कानून व्यावसायिक डेटा को उनके महत्त्व के आधार पर वर्गीकृत करता है और सीमा पार हस्तांतरण पर प्रतिबंध लगाता है। इन कानूनों का उद्देश्य व्यक्तिगत डेटा के दुरुपयोग को रोकना है। 

भारत में डेटा गवर्नेंस से संबंधित चुनौतियाँ: 

  • अपर्याप्त जागरूकता:
    • डेटा सुरक्षा के महत्त्व और डेटा उल्लंघनों से जुड़े संभावित जोखिमों के बारे में व्यक्तियों तथा संगठनों के बीच सीमित समझ
  • कमज़ोर प्रवर्तन तंत्र:
    • भारत में डेटा सुरक्षा से संबंधित मौजूदा कानूनी ढाँचे में अनुपालन को लागू करने के लिये मज़बूत तंत्र का अभाव है। इस कारण डेटा उल्लंघनों और डेटा सुरक्षा नियमों का अनुपालन न करने वाले संगठनों को ज़िम्मेदार ठहराना मुश्किल हो जाता है।
  • मानकीकरण का अभाव:
    • भारत में डेटा सुरक्षा नियमों को लागू करने में सबसे बड़ी बाधा संगठनों के बीच मानकीकृत प्रथाओं की अनुपलब्धता है। डेटा सुरक्षा प्रोटोकॉल में एकरूपता की कमी लगातार डेटा सुरक्षा प्रथाओं को स्थापित करने और उनका पालन करने में चुनौतियाँ उत्पन्न करती हैं।
  • संवेदनशील डेटा के लिये अपर्याप्त सुरक्षा उपाय:
    • भारत में मौजूदा डेटा सुरक्षा ढाँचा संवेदनशील डेटा, जैसे- स्वास्थ्य डेटा और बायोमेट्रिक डेटा के लिये पर्याप्त सुरक्षा उपाय प्रदान करने में विफल है।
    • जैसे-जैसे संगठन तेज़ी से इस प्रकार के डेटा एकत्र कर रहे हैं, पर्याप्त सुरक्षा उपायों की कमी चिंता का विषय बनती जा रही है। 

भारत में डेटा प्रशासन संबंधी नियम: 

आगे की राह 

  • सरकार को डेटा सुरक्षा को प्राथमिकता देने में उदाहरण प्रस्तुत करने चाहिये क्योंकि यह डेटा प्रत्ययी और प्रोसेसर के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • प्रभावी प्रशासन के साथ डेटा सुरक्षा नियमों को लागू करने के लिये संसदीय या न्यायिक निगरानी के साथ एक स्वतंत्र और सशक्त डेटा सुरक्षा बोर्ड बनाना महत्त्वपूर्ण है।
  • व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा और नवाचार को बढ़ावा देने के लिये सख्त नियमों के बीच सही संतुलन बनाना आवश्यक है। अत्यधिक निर्देशात्मक एवं प्रतिबंधात्मक मानदंड नवाचार तथा सीमा पार डेटा प्रवाह को बाधित कर सकते हैं।

  UPSC सिविल सेवा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. 'निजता का अधिकार' भारत के संविधान के किस अनुच्छेद के तहत संरक्षित है?(2021) 

(a) अनुच्छेद 15
(b) अनुच्छेद 19
(c) अनुच्छेद 21 
(d) अनुच्छेद 29 

उत्तर: (c) 

व्याख्या: 

पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ मामला, 2017 में निजता के अधिकार को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के आंतरिक भाग के रूप में एक मौलिक अधिकार घोषित किया गया था।

अत: विकल्प (C) सही उत्तर है। 


प्रश्न. निजता का अधिकार जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्भूत भाग के रूप में संरक्षित किया जाता है। भारत के संविधान में निम्नलिखित में से कौन-सा उपर्युक्त कथन सही और समुचित ढंग से अर्थित होता है? (2018) 

(a) अनुच्छेद 14 और संविधान के 42वें संशोधन के अधीन उपबंध।
(b) अनुच्छेद 17 और भाग IV में राज्य के नीति निदेशक तत्त्व।
(c) अनुच्छेद 21 और भाग III में गारंटी की गई स्वतंत्रताएँ।
(d) अनुच्छेद 24 और संविधान के 44वें संशोधन के अधीन उपबंध।

उत्तर: (c) 


मेन्स:

प्रश्न. निजता के अधिकार पर सर्वोच्च न्यायालय के नवीनतम निर्णय के आलोक में मौलिक अधिकारों के दायरे का परीक्षण कीजिये। (2017) 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय राजनीति

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission- NHRC) की भूमिका और कार्य, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद का महत्त्व 

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने बालासोर ट्रेन हादसे को लेकर ओडिशा सरकार से कार्रवाई रिपोर्ट की मांग की है।  

  • इसके साथ ही भारत ने हाल ही में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में पेश एक मसौदा प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया, जिसमें पवित्र कुरान के अपमान के कृत्य की निंदा की गई
  • 'भेदभाव, शत्रुता या हिंसा को बढ़ावा देने वाली धार्मिक घृणा का मुकाबला” शीर्षक वाले मसौदा प्रस्ताव को बांग्लादेश, चीन, क्यूबा, ​​मलेशिया, पाकिस्तान, कतर, यूक्रेन और संयुक्त अरब अमीरात सहित कई देशों से समर्थन प्राप्त हुआ है। यह प्रस्ताव धार्मिक घृणा के कृत्यों की निंदा पर बल देता है और अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के अनुसार, इस संदर्भ में जवाबदेही का आह्वान करता है। 

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग:

  • परिचय: 
    • यह व्यक्तियों के जीवन, स्वतंत्रता, समानता और सम्मान से संबंधित अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है। 
      • भारतीय संविधान द्वारा गारंटीकृत अधिकार और भारतीय न्यायालयों द्वारा लागू किये जाने योग्य अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध।
  • स्थापना: 
  • संघटन: 
  • नियुक्ति और कार्यकाल: 
    • छह सदस्यीय समिति की अनुशंसा पर राष्ट्रपति द्वारा अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति की जाती है।
      • समिति में प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा का उपाध्यक्ष, संसद के दोनों सदनों में विपक्ष के नेता और केंद्रीय गृह मंत्री शामिल हैं।
    • अध्यक्ष और सदस्य तीन वर्ष की अवधि के लिये या 70 वर्ष की आयु तक पद पर बने रहते हैं।
  • भूमिका और कार्य: 
    • न्यायिक कार्यवाही के साथ सिविल न्यायालय की शक्तियाँ रखता है।
    • मानवाधिकार उल्लंघनों की जाँच हेतु केंद्र या राज्य सरकार के अधिकारियों या जाँच एजेंसियों की सेवाओं का उपयोग करने का अधिकार है।
    • यह घटित होने के एक वर्ष के भीतर मामलों की जाँच कर सकता है।
    • इसका कार्य मुख्यतः अनुशंसात्मक प्रकृति का होता है।
  • सीमाएँ:
    • आयोग कथित मानवाधिकार उल्लंघन की तारीख से एक वर्ष के पश्चात् किसी भी मामले की जाँच नहीं कर सकता है।
    • सशस्त्र बलों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामलों में सीमित क्षेत्राधिकार।
    • निजी पक्षों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामलों में कार्रवाई करने का अधिकार नहीं है।

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद:

  • परिचय: 
    • यह संयुक्त राष्ट्र का एक अंतर-सरकारी निकाय है जो विश्व भर में मानवाधिकारों को बढ़ावा देने और उनकी रक्षा करने के लिये ज़िम्मेदार है।
    • इसे वर्ष 2006 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा मानवाधिकार पर पूर्व संयुक्त राष्ट्र आयोग के स्थान पर स्थापित किया गया।
    • मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR) का मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में स्थित है।
  • सदस्यता:
    • इसमें संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा चुने गए 47 संयुक्त राष्ट्र सदस्य देश शामिल हैं।
    • विभिन्न क्षेत्रों को आवंटित सीटों के साथ समान भौगोलिक वितरण पर आधारित सदस्यता।
    • सदस्य तीन वर्ष  के कार्यकाल के लिये कार्य करते हैं और लगातार दो वर्ष के कार्यकाल के बाद तत्काल पुन: चुनाव के लिये पात्र नहीं होते हैं।
  • प्रक्रियाएँ और तंत्र:
    • संयुक्त राष्ट्र की सार्वभौमिक सामयिक समीक्षा (UPR) संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों में मानवाधिकार स्थितियों का आकलन करती है।
    • सलाहकार समिति विषयगत मानवाधिकार मुद्दों पर विशेषज्ञता और सलाह प्रदान करती है।
    • शिकायत प्रक्रिया व्यक्तियों और संगठनों के मानवाधिकार उल्लंघनों को परिषद के ध्यान में लाने की अनुमति देती है।
    • संयुक्त राष्ट्र की विशेष प्रक्रियाएँ देशों में मानवाधिकार की स्थिति के विशिष्ट विषयगत मुद्दों की निगरानी और रिपोर्ट करती हैं।
  • समस्याएँ: 
    • सदस्यता की संरचना चिंता उत्पन्न करती है, क्योंकि मानवाधिकारों के हनन के आरोपी कुछ देशों को इसमें शामिल किया गया है।
    • इज़रायल जैसे कुछ देशों पर असंगत फोकस (Disproportionate Focus) की आलोचना की गई है।
  • भारत की भागीदारी:
    • वर्ष 2020 में भारत के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने यूनिवर्सल पीरियोडिक रिव्यू (UPR) प्रक्रिया के तीसरे दौर के एक भाग के रूप में इसे प्रस्तुत किया।
    • भारत को 1 जनवरी, 2019 से शुरू होने वाली तीन वर्ष की अवधि हेतु परिषद के लिये चुना गया था।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. मौलिक अधिकारों के अलावा भारत के संविधान का निम्नलिखित में से कौन-सा भाग मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (1948) के सिद्धांतों और प्रावधानों को दर्शाता है या प्रतिबिंबित करता है? (2020)

  1. प्रस्तावना 
  2. राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत 
  3. मौलिक कर्तव्य

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


प्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2011) 

  1. शिक्षा का अधिकार
  2. सार्वजनिक सेवा तक समान पहुँच का अधिकार
  3. भोजन का अधिकार

उपरोक्त में से कौन-सा/से "मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा" के अंतर्गत मानवाधिकार है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (d)

स्रोत: द हिंदू 


सुरक्षा

सियाचिन ग्लेशियर

प्रिलिम्स के लिये:

सियाचिन ग्लेशियर, भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI), ऑपरेशन मेघदूत,1984, कराची युद्धविराम समझौता, शिमला समझौता 

मेन्स के लिये:

सियाचिन ग्लेशियर 

चर्चा में क्यों? 

NJ9842 भारत और पाकिस्तान के बीच ज्ञात सीमा क्षेत्र है लेकिन 5Q 131 05 084 के बारे में कम लोग जानते हैं। यह भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) द्वारा सियाचिन ग्लेशियर के लिये निर्धारित नंबर हैं और यह वर्ष 1984 से ही दोनों देशों के बीच एक विवादित क्षेत्र है। 

  • NJ 9842 नामक बिंदु वर्ष 1949 के कराची युद्धविराम समझौते के अनुसार भारत और पाकिस्तान के बीच अंतिम पारस्परिक रूप से सीमांकित बिंदु है और यह वह बिंदु भी है जहाँ शिमला समझौते के अनुसार नियंत्रण रेखा (Line of Control) समाप्त होती है। 

सियाचिन ग्लेशियर का पहला GSI सर्वेक्षण:

  • GSI सर्वेक्षण: 
    • सियाचिन ग्लेशियर का पहला GSI सर्वेक्षण जून 1958 में GSI के सहायक भूविज्ञानी वी.के. रैना द्वारा किया गया था। इस सर्वेक्षण का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय भू-भौतिकीय गतिविधियों के हिस्से के रूप में हिमालय ग्लेशियर प्रणालियों का अध्ययन करना था।
    • GSI टीम ने ग्लेशियर में विभिन्न अध्ययन और सर्वेक्षण करने हेतु लगभग तीन महीने तक कार्य किया। 
  • भारत के लिये महत्त्व: 
    • यह सर्वेक्षण भारत के लिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह सियाचिन ग्लेशियर की आधिकारिक भारतीय खोज का प्रतीक है, यह एक ऐसा क्षेत्र है जो बाद में भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद का कारण बन गया।
    • वर्ष 1958 में किया गया शांतिपूर्ण वातावरण सर्वेक्षण एक संघर्ष क्षेत्र में बदल गया जब भारत ने इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिये वर्ष 1984 में ऑपरेशन मेघदूत शुरू किया।
    • GSI सर्वेक्षण शुरू से ही पाकिस्तानी नियंत्रण के किसी भी दावे का खंडन करते हुए ग्लेशियर के साथ भारत के प्रारंभिक ज्ञान और वैज्ञानिक जुड़ाव का ऐतिहासिक साक्ष्य प्रदान करता है।
  • पाकिस्तान का दावा: 
    • प्रारंभ में वर्ष 1958 में GSI सर्वेक्षण के दौरान पाकिस्तान ने ग्लेशियर पर भारतीय उपस्थिति को लेकर कोई विरोध या आपत्ति नहीं जताई। इसका श्रेय दोनों देशों द्वारा वर्ष 1949 के कराची युद्धविराम समझौते की शर्तों का पालन करने को दिया जा सकता है, जिसमें ग्लेशियरों तक युद्धविराम रेखा को रेखांकित किया गया था और आपसी सीमांकन का आह्वान किया गया था। 
    • हालाँकि क्षेत्र में वैज्ञानिक दौरों और अन्वेषणों में पाकिस्तान की रुचि की कमी ने भी एक भूमिका निभाई होगी।
    • केवल 25 वर्ष बाद अगस्त 1983 में पाकिस्तान ने यथास्थिति को चुनौती देते हुए अपने विरोध नोट में NJ9842 से काराकोरम दर्रे तक नियंत्रण रेखा (LOC) को एकतरफा बढ़ा दिया।
      • इस कदम ने भारत में चिंताएँ बढ़ा दीं, जिसके परिणामस्वरूप अप्रैल 1984 में भारतीय सेनाओं द्वारा रणनीतिक साल्टोरो हाइट्स पर पूर्व-नियंत्रित कब्ज़ा कर लिया गया।
    • तब से पाकिस्तान के दावे और कार्रवाइयाँ कराची युद्धविराम समझौते तथा शिमला समझौते जैसे ऐतिहासिक समझौतों की अलग-अलग व्याख्याओं पर आधारित हैं।

सियाचिन ग्लेशियर:

  • सियाचिन ग्लेशियर हिमालय में पूर्वी काराकोरम रेंज में स्थित है, जो प्वाइंट NJ9842 के उत्तर-पूर्व में है, यहाँ भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा समाप्त होती है।
    • पूरा सियाचिन ग्लेशियर वर्ष 1984 (ऑपरेशन मेघदूत) में भारत के प्रशासनिक नियंत्रण में आ गया था।
  • सियाचिन ग्लेशियर उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की ओर स्थित है। इसका उद्गम इंदिरा कोल वेस्ट में 6,115 मीटर की ऊँचाई पर होता है, जो इंदिरा कटक पर एक कोल (निचला बिंदु) 3,570 मीटर की ऊँचाई तक आता है
  • ताजिकिस्तान के ‘यज़्गुलेम रेंज’ में स्थित ‘फेडचेंको ग्लेशियर’ दुनिया के गैर-ध्रुवीय क्षेत्रों का दूसरा सबसे लंबा ग्लेशियर है।
  • सियाचिन ग्लेशियर उस जल निकासी विभाजन क्षेत्र के दक्षिण में स्थित है, जो काराकोरम के व्यापक हिमाच्छादित हिस्से में यूरेशियन प्लेट को भारतीय उपमहाद्वीप से अलग करता है, जिसे कभी-कभी ‘तीसरा ध्रुव’ भी कहा जाता है।
  • नुब्रा नदी सियाचिन ग्लेशियर से निकलती है।
  • सियाचिन ग्लेशियर विश्व का सबसे ऊँचा युद्धक्षेत्र है।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. सियाचिन ग्लेशियर स्थित है: (वर्ष 2020)

(a) अक्साई चिन के पूर्व में
(b) लेह के पूर्व में
(c) गिलगित के उत्तर में
(d) नुब्रा घाटी के उत्तर में

उत्तर: (D)

स्रोत: द हिंदू  


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