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शासन व्यवस्था

उपासना स्थल अधिनियम, 1991

  • 14 Oct 2022
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991

मेन्स के लिये:

भारतीय संविधान, उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991, संबंधित प्रावधान

चर्चा में क्यों?

सॉलिसिटर जनरल ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि उपासना स्थल अधिनियम, 1991 की वैधता अयोध्या मामले में उसकी पाँच न्यायाधीशों की संविधान पीठ की राय द्वारा "कवर नहीं की जा सकती है"।

उपासना स्थल अधिनियम:

  • विषय: यह किसी भी उपासना स्थल के रूपांतरण को प्रतिबंधित करने और उसके धार्मिक स्वरुप के रखरखाव और उससे संबंधित या उसके आनुषंगिक मामलों के लिये के एक अधिनियम के रूप में वर्णित किया गया है जैसा कि यह 15 अगस्त, 1947 को था।
  • छूट:
    • अयोध्या में विवादित स्थल को इस अधिनियम से छूट दी गई थी। इस छूट के चलते अयोध्या मामले में इस कानून के लागू होने के बाद भी सुनवाई चलती रही।
    • अयोध्या विवाद के अलावा इस अधिनियम में इन्हें भी छूट दी गई है:
      • कोई भी पूजा स्थल जो एक प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारक है, या एक पुरातात्त्विक स्थल है जो प्राचीन स्मारक और पुरातत्त्व स्थल एवं अवशेष अधिनियम, 1958 द्वारा संरक्षित है।
      • एक ऐसा वाद जो अंतत: निपटा दिया गया हो।
      • कोई भी विवाद जो पक्षों द्वारा सुलझाया गया हो या किसी स्थान का स्थानांतरण जो अधिनियम के शुरू होने से पहले सहमति से हुआ हो।
  • दंड:
    • अधिनियम की धारा 6 अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर जुर्माने के साथ अधिकतम तीन वर्ष के कारावास की सज़ा का प्रावधान करती है।
  • आलोचना:
    • इस कानून को इस आधार पर चुनौती दी गई है कि यह न्यायिक समीक्षा पर रोक लगाता है, जो कि संविधान की एक बुनियादी विशेषता है, साथ ही यह एक "मनमाना तर्कहीन पूर्वव्यापी कटऑफ तिथि" आरोपित करता है जो हिंदू, जैन, बौद्ध एवं सिखों के धार्मिक अधिकारों को सीमित करता है।
    • धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन: यह न्यायिक समीक्षा के उपचार की शक्ति को सीमित करता है जो संविधान की एक बुनियादी विशेषता है और इसलिये संसद की विधायी क्षमता से बाहर है।
      • इसका परिणाम यह होगा कि हिंदू उपासक दीवानी न्यायालय में कोई मुकदमा दायर करके या भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र का उपयोग कर अपनी शिकायत दर्ज़ नहीं करा सकेंगे। यदि अतिवादी 15 अगस्त, 1947 से पहले इस तरह की संपत्ति पर अतिक्रमण कर चुके हैं, तो हिंदू उपासक हिंदू बंदोबस्ती, मंदिरों, मठों और अन्य संपत्तियों के धार्मिक स्वरुप को वापस पाने में भी असमर्थ होंगे, और इस तरह की अवैध संपत्ति की अवस्थिति यथावत बनी रहेगी।
      • अधिनियम ने उस भूमि को अपने दायरे से बाहर रखा था जो अयोध्या विवाद का विषय था।

प्रावधान:

  • धारा 3: इस अधिनियम की धारा 3 उपासना स्थलों के परिवर्तन पर रोक लगाने का प्रावधान करती है अर्थात् कोई भी व्यक्ति किसी भी धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी वर्ग के पूजा स्थल को उसी धार्मिक संप्रदाय के किसी भिन्न वर्ग या किसी भिन्न धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी वर्ग के पूजा स्थल में परिवर्तित नहीं करेगा।
  • धारा 4(1): यह घोषणा करती है कि 15 अगस्त, 1947 तक अस्तित्व में आए पूजा स्थलों की धार्मिक प्रकृति "पूर्ववत् बनी रहेगी।
  • धारा 4(2): इसमें कहा गया है कि 15 अगस्त, 1947 को मौजूद किसी भी पूजा स्थल की धार्मिक प्रकृति के परिवर्तन के संबंध में किसी भी न्यायालय के समक्ष लंबित कोई भी मुकदमा या कानूनी कार्यवाही समाप्त हो जाएगी और कोई नया मुकदमा या कानूनी कार्यवाही शुरू नहीं की जाएगी।
    • इस उपखंड का प्रावधान उन मुकदमों, अपीलों और कानूनी कार्यवाही से बचाता है जो अधिनियम के प्रारंभ होने की तिथि पर लंबित हैं, यदि वे कट-ऑफ तिथि के बाद पूजा स्थल के धार्मिक प्रकृति के रूपांतरण से संबंधित हैं।
  • धारा 5: यह निर्धारित करती है कि अधिनियम रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले और इससे संबंधित किसी भी मुकदमे, अपील या कार्यवाही पर लागू नहीं होगा।

अयोध्या फैसले के दौरान सर्वोच्च न्यायालय की राय:

  • वर्ष 2019 के अयोध्या निर्णय में संविधान पीठ ने कानून का हवाला दिया और कहा कि यह संविधान के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को प्रकट करता है तथा प्रतिगमन पर रोक लगाता है।
  • इसलिये कानून भारतीय राजनीति की धर्मनिरपेक्ष विशेषताओं की रक्षा के लिये बनाया गया एक विधायी साधन है, जो संविधान की बुनियादी विशेषताओं में से एक है।

आगे की राह

  • अधिनियम से जुड़ी कमियों के बावजूद हम पूजा स्थल अधिनियम के महत्त्व को नज़रअंदाज नहीं कर सकते। यह एक महत्त्वपूर्ण विधायी हस्तक्षेप है जो गैर-प्रतिगमन को हमारे धर्मनिरपेक्ष मूल्यों की एक अनिवार्य विशेषता के रूप में संरक्षित करता है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न:

प्रिलिम्स:

प्रश्न निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)

  1. भारत का संविधान संघवाद, धर्मनिरपेक्षता, मौलिक अधिकारों और लोकतंत्र के संदर्भ में अपनी बुनियादी संरचना को परिभाषित करता है।
  2. भारत का संविधान नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा और उन आदर्शों को संरक्षित करने के लिये 'न्यायिक समीक्षा' का प्रावधान करता है, जिन पर संविधान आधारित है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d)


मेन्स

प्रश्न. धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हमारी सांस्कृतिक प्रथाओं के लिये क्या चुनौतियाँ हैं? (2019)

प्रश्न.  धर्मनिरपेक्षता की भारतीय अवधारणा धर्मनिरपेक्षता के पश्चिमी मॉडल से किस प्रकार भिन्न है? विचार-विमर्श कीजिये। (2018)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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