डेली न्यूज़ (14 Feb, 2025)



पेरिस AI शिखर सम्मेलन 2025

प्रिलिम्स के लिये:

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), पेरिस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) एक्शन समिट 2025, हिंद प्रशांत क्षेत्र, भारत-फ्राँस संबंध

मेन्स के लिये:

भारत-फ्राँस संबंध, भारत और फ्राँस के बीच सहयोग के प्रमुख क्षेत्र

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

भारत के प्रधानमंत्री (PM) ने पेरिस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) एक्शन समिट 2025 की सह-अध्यक्षता करने के लिये फ्राँस का दौरा किया। 

  • इसके अतिरिक्त, शिखर सम्मेलन के दौरान द्वितीय भारत-फ्राँस AI नीति गोलमेज़ सम्मेलन भी आयोजित किया गया।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) एक्शन समिट:

  • AI एक्शन समिट एक वैश्विक मंच है जिसमें विश्व के विभिन्न नेता, नीति निर्माता, प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ और उद्योग प्रतिनिधि AI विनियमन, नैतिकता और समाज में इसकी भूमिका पर चर्चा करने हेतु शामिल होते हैं।
  • पेरिस में AI एक्शन शिखर सम्मेलन, ब्लेचली पार्क शिखर सम्मेलन (UK 2023) और सियोल शिखर सम्मेलन (दक्षिण कोरिया 2024) के बाद तीसरा शिखर सम्मेलन है।
    • ब्लेचली पार्क घोषणा (28 देश): इसमें सुरक्षित, मानव-केंद्रित और उत्तरदायित्वपूर्ण AI की वकालत की गई।
    • सियोल शिखर सम्मेलन (27 राष्ट्र): अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की पुष्टि की गई और AI सुरक्षा संस्थानों के एक नेटवर्क का प्रस्ताव रखा गया।

पेरिस AI एक्शन समिट 2025 के मुख्य विषय:

  • लोक हित AI: सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय लाभों के लिये खुले AI बुनियादी ढाँचे का विकास करना।
  • कार्य का भविष्य: निरंतर सामाजिक संवाद के माध्यम से AI का उत्तरदायित्वपूर्ण उपयोग सुनिश्चित करना।
  • नवाचार एवं संस्कृति: विशेष रूप से रचनात्मक उद्योगों के लिये सतत् AI पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना।
  • AI में विश्वास: AI सुरक्षा और संरक्षा पर वैज्ञानिक सहमति स्थापित करना।
  • वैश्विक AI विनियमन: एक समावेशी और प्रभावी अंतर्राष्ट्रीय AI शासन ढाँचे को आकार देना।

AI शिखर सम्मेलन 2025 के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

  • समावेशी और सतत् कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर संयुक्त घोषणा: अमेरिका और ब्रिटेन के (AI पर अत्यधिक विनियमन से संबंधित चिंताओं को व्यक्त करते हुए) अतिरिक्त 'लोगों और ग्रह के लिये समावेशी और सतत् कृत्रिम बुद्धिमत्ता' पर संयुक्त वक्तव्य पर भारत, चीन, यूरोपीय संघ सहित 58 देशों द्वारा हस्ताक्षर किये गए।
  • पब्लिक इंटरेस्ट AI प्लेटफॉर्म और इनक्यूबेटर: पब्लिक इंटरेस्ट AI प्लेटफॉर्म और इनक्यूबेटर को सार्वजनिक-निजी AI प्रयासों को एक साथ लाने और डेटा, पारदर्शिता और वित्तपोषण में क्षमता निर्माण के माध्यम से एक विश्वासनीय AI पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने के लिये लॉन्च किया गया था।
  • मानव-केंद्रित AI और वैश्विक प्राथमिकताएँ: शिखर सम्मेलन में नैतिक, सुरक्षित और समावेशी AI की आवश्यकता पर बल दिया गया, तथा AI-चालित असमानताओं को संबोधित करते हुए मानवाधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित की गई। 
    • AI से संबंधित वैश्विक प्राथमिकताओं में AI पहुँच, पारदर्शिता, रोज़गार सृजन, स्थिरता और अंतर्राष्ट्रीय शासन शामिल हैं। 
    • इसमें डिजिटल विभाजन को कम करने, AI सुरक्षा सुनिश्चित करने, ग्रीन AI को बढ़ावा देने और वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देने पर ज़ोर दिया गया।
  • मौजूदा बहुपक्षीय AI पहलों के साथ संरेखण: शिखर सम्मेलन में वैश्विक AI पहलों के साथ संरेखण पर ज़ोर दिया गया, जिसमें संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव, वैश्विक डिजिटल कॉम्पैक्ट, यूनेस्को AI नैतिकता सिफारिशें, अफ्रीकी संघ AI रणनीति और OECD, G-7 और G-20 की रूपरेखाएँ शामिल हैं। 
  • भारत का दृष्टिकोण: भारत ने ओपन-सोर्स और सतत् AI की वकालत की, स्वच्छ ऊर्जा और कार्यबल के कौशल विकास पर ज़ोर दिया। 
    • AI पर वैश्विक भागीदारी (GPAI) के वर्ष 2024 के प्रमुख अध्यक्ष के रूप में, इसका उद्देश्य GPAI को ज़िम्मेदार AI विकास के लिये केंद्रीय मंच के रूप में स्थापित करना है।

द्वितीय भारत-फ्राँस AI नीति गोलमेज सम्मेलन के मुख्य परिणाम क्या हैं ?

  • परिचय:
    • द्वितीय भारत-फ्राँस AI नीति गोलमेज सम्मेलन पेरिस में AI एक्शन समिट 2025 के साथ आयोजित किया गया।
    • इसका आयोजन भारत के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार कार्यालय, IISc बंगलूरू, इंडियाAI मिशन और साइंसेज पो पेरिस द्वारा किया गया था
  • मुख्य निष्कर्ष:
    • AI शासन और नैतिकता: ज़िम्मेदार AI, समान लाभ-साझाकरण, तकनीकी-कानूनी ढाँचे और AI सुरक्षा पर ज़ोर।
      • चर्चा में AI के लिये डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI), AI फाउंडेशन मॉडल, वैश्विक AI शासन और वैश्विक चुनौतियों से निपटने में AI की भूमिका को शामिल किया गया।
    • सीमा-पार AI सहयोग: डेटा संप्रभुता, अंतर-संचालनीय AI अवसंरचना और संप्रभु AI मॉडल पर ध्यान केंद्रित करना, सीमा-पार डेटा प्रवाह के लिये मध्यस्थता तंत्र की कमी को दूर करना।
    • वैश्विक चुनौतियों के लिये AI: बहुभाषी मॉडल, फेडरेटेड कंप्यूटिंग और वैश्विक मुद्दों के समाधान में AI का एकीकरण।
    • सतत् AI: AI के उच्च ऊर्जा पदचिह्न को कम करने के लिये ऊर्जा-कुशल AI मॉडल और कंप्यूटिंग प्रथाओं को बढ़ावा देना।

प्रधानमंत्री ने सावरकर और भारत के स्वतंत्रता संग्राम के साथ मार्सिले कनेक्शन को याद किया:

  • वर्ष 1910 में, भारत लाते समय वीर सावरकर ने मार्सिले में भागने का प्रयास किया लेकिन उन्हें फिर से पकड़ लिया गया। 
  • उनके प्रत्यर्पण से फ्रेंको-ब्रिटिश कानूनी विवाद उत्पन्न हुआ, जिसे स्थायी मध्यस्थता न्यायालय (1911) द्वारा ब्रिटेन के पक्ष में सुलझाया गया। 
  • उन्हें दो आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई और अंडमान की सेलुलर जेल में कैद कर दिया गया। 

AI के विकास से संबंधित कौन-सी चुनौतियाँ हैं?

  • उच्च ऊर्जा उपभोग: AI की बढ़ती ऊर्जा मांग से वर्ष 2030 तक डेटा केंद्रों का विद्युत उपभोग 1-2% से 3-4% तक बढ़ सकता है और यह संभवतः वैश्विक ऊर्जा खपत का 21% तक पहुँच सकता है।
    • ऊर्जा की बढ़ती मांग के कारण कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में अपेक्षित वृद्धि के परिणामस्वरूप 125-140 बिलियन अमेरिकी डॉलर की "सामाजिक लागत" का अनुमान है।
    • IEA के अनुसार ChatGPT क्वेरी में गूगल सर्च की तुलना में 10 गुना अधिक ऊर्जा का उपभोग होता है।
    • AI डेटा सेंटर भारत की कुल वर्तमान खपत (1,580 टेरावाट-घंटे: आर्थिक समीक्षा 2024-25) जितना विद्युत उपभोग कर सकते हैं।
  • जन-केंद्रित AI बनाम AI-केंद्रित विकास का मुद्दा: जन-केंद्रित AI (नैतिक, समावेशी और मानव-केंद्रित) को AI-केंद्रित विकास (स्वचालन-संचालित) के साथ संतुलित करना एक प्रमुख चुनौती है क्योंकि AI पर अत्यधिक निर्भरता से नौकरी खोने के साथ डेटा गोपनीयता के मुद्दे और डिजिटल विभाजन का खतरा रहता है।
  • असुरक्षित और कम लागत वाले AI मॉडल: DeepSeek जैसे असुरक्षित और कम लागत वाले AI मॉडल से डेटा उल्लंघन, फेक न्यूज़, डीपफेक और साइबर सुरक्षा खतरों का जोखिम पैदा होता है। 
    • कमज़ोर नियामक निगरानी एवं नैतिक सुरक्षा उपायों के कारण पूर्वाग्रह एवं सुरक्षा संबंधी चिंताएँ बढ़ जाती हैं, जिसके कारण मज़बूत AI शासन की आवश्यकता पर प्रकाश पड़ता है।

भारत के समक्ष जनरेटिव AI से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?

और पढ़ें: AI व्यवधान संबंधी चुनौतियाँ

आगे की राह

  • धारणीय AI अवसंरचना: AI संबंधी कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिये ऊर्जा-कुशल AI मॉडल, नवीकरणीय ऊर्जा संचालित डेटा केंद्र एवं अनुकूलित एल्गोरिदम को बढ़ावा देना चाहिये।
    • स्थिरता के लिये ग्रीन कंप्यूटिंग और AI-संचालित स्मार्ट ग्रिड को प्रोत्साहित करना चाहिये।
  • नैतिक और समावेशी AI नीतियाँ: AI में समानता, पारदर्शिता और जवाबदेहिता को बढ़ावा देना चाहिये।
    • जन-केंद्रित और AI-केंद्रित के बीच संतुलन बनाने के क्रम में डेटा गोपनीयता, पूर्वाग्रह शमन और एल्गोरिदम संबंधी निष्पक्षता को मज़बूत करना चाहिये।
  • AI विनियमन और सुरक्षा को मज़बूत करना: साइबर खतरों, फेक न्यूज़ और डीपफेक का मुकाबला करने के क्रम में AI मॉडल (विशेष रूप से DeepSeek जैसे असुरक्षित मॉडलों) पर सख्त निगरानी रखनी चाहिये। 
  • क्षमता निर्माण और कार्यबल तत्परता: कुशल कार्यबल का निर्माण करने और रोज़गार विस्थापन को कम करने के लिये AI शिक्षा, कौशल कार्यक्रमों एवं अनुसंधान संस्थानों को मज़बूत करना चाहिये।
  • सार्वजनिक कल्याण के लिये AI: जोखिम को न्यूनतम करते हुए आर्थिक एवं सामाजिक प्रगति को बढ़ावा देने के क्रम में स्वास्थ्य सेवा, कृषि, शासन और आपदा प्रबंधन में AI का उपयोग करना चाहिये।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भारत में AI के कार्यान्वयन से संबंधित प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा करते हुए उन्हें दूर करने हेतु नीतिगत उपाय बताइये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)

  1. अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन को 2015 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में लॉन्च किया गया था।
  2.  गठबंधन में संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश शामिल हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d)  न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (a)


दोषी राजनेताओं पर आजीवन प्रतिबंध के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय में याचिका

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय (SC), लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (RP अधिनियम, 1951), निर्वाचन आयोग (EC), संसद, प्रशासनिक सुधार आयोग, विधि आयोग  

मेन्स के लिये:

राजनीति के अपराधीकरण के उपाय

 स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

सर्वोच्च न्यायालय (SC) राजनीति को अपराधमुक्त करने के क्रम में दोषी व्यक्तियों के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है।

  • इन याचिकाओं में लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (RP अधिनियम, 1951) में संशोधन की मांग की गई है, जिसमें दोषी व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से रोकने हेतु विधिक प्रावधान हैं।

दोषी व्यक्तियों द्वारा चुनाव लड़ने से संबंधित विधिक प्रावधान और सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय क्या हैं?

विधिक प्रावधान:

  • धारा 8(3): इसके तहत सज़ा की अवधि के आधार पर अयोग्यता का निर्धारण किया गया है। 
    • यदि किसी व्यक्ति को किसी अपराध का दोषी पाया जाता है और दो वर्ष या उससे अधिक के कारावास की सज़ा सुनाई जाती है तो वह कारावास की अवधि के दौरान और रिहाई के बाद छह वर्ष तक चुनाव लड़ने के लिये अयोग्य हो जाता है।
  • धारा 8(1): इसके तहत विशिष्ट अपराधों हेतु अयोग्यता का निर्धारण किया गया है, जिसके कारण सजा की अवधि और रिहाई के छह साल बाद भी तत्काल अयोग्यता हो सकती है।
    • इन अपराधों में बलात्कार और अन्य जघन्य अपराध, अस्पृश्यता, आतंकवाद और भ्रष्टाचार से संबंधित अपराध शामिल हैं।
  • धारा 11: निर्वाचन आयोग (EC) किसी दोषी व्यक्ति की अयोग्यता अवधि को समाप्त कर सकता है या कम कर सकता है।
    • उदाहरण के लिये, वर्ष 2019 में निर्वाचन आयोग ने विवादास्पद रूप से प्रेम सिंह तमांग (सिक्किम के सीएम) की अयोग्यता अवधि को 6 साल से घटाकर 13 माह कर दिया, जिससे भ्रष्टाचार के दोषी होने के बावजूद उनका चुनाव लड़ना संभव हो गया।

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय:

  • एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) मामला, 2002: इसके तहत चुनाव लड़ने वाले सभी उम्मीदवारों के लिये अपने आपराधिक रिकॉर्ड को सार्वजनिक करना अनिवार्य कर दिया गया।
  • CEC बनाम जन चौकीदार मामला, 2013: सर्वोच्च न्यायालय ने पटना उच्च न्यायालय के इस दृष्टिकोण को बरकरार रखा कि कारागार में बंद व्यक्ति लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 62(5) के तहत अपना 'निर्वाचक' दर्जा खो देते हैं, जिसके आधार पर विचाराधीन कैदी चुनाव लड़ने के लिये अयोग्य हो गए।
    • हालाँकि, संसद ने वर्ष 2013 में लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में संशोधन कर इस निर्णय को पलट दिया, जिससे विचाराधीन कैदियों को चुनाव लड़ने की अनुमति मिल गई।
  • लिली थॉमस केस, 2013: सर्वोच्च न्यायालय ने लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8(4) को रद्द कर दिया, जो पहले दोषी विधायकों को अपील दायर करने पर पद पर बने रहने की अनुमति देता था।
    • इस निर्णय के बाद, किसी भी वर्तमान सांसद/विधायक को दोषसिद्धि होने पर तत्काल अयोग्य घोषित कर दिया जाता है।
  • पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन केस, 2018: सर्वोच्च न्यायालय ने राजनीतिक दलों को अपने उम्मीदवारों के आपराधिक रिकॉर्ड अपनी वेबसाइटों, सोशल मीडिया और समाचार पत्रों पर प्रकाशित करने का निर्देश दिया।

भारत में राजनीति के अपराधीकरण की स्थिति

  • ADR की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2024 में निर्वाचित 543 सांसदों में से 251 (46%) के खिलाफ आपराधिक मामले हैं, और 171 (31%) पर बलात्कार, हत्या, हत्या का प्रयास और अपहरण सहित गंभीर आपराधिक आरोप हैं।
  • आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार की जीत की संभावना 15.4 % थी, जबकि स्वच्छ पृष्ठभूमि  वाले उम्मीदवार की जीत की संभावना मात्र 4.4% थी।

दोषी राजनेताओं पर आजीवन प्रतिबंध के पक्ष और विपक्ष में क्या तर्क हैं?

पक्ष में तर्क

विपक्ष में तर्क

  • वोहरा समिति (वर्ष 1993) ने पृष्ठभूमि की सख्त जाँच की सिफारिश की तथा गंभीर आपराधिक आरोपों वाले उम्मीदवारों को अयोग्य घोषित करने की सिफारिश की।
  • राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी न्यायिक प्रक्रिया का फायदा उठाकर विरोधियों को अयोग्य ठहराने के लिये झूठे मामले दायर कर सकते हैं।
  • जिस तरह सरकारी कर्मचारियों को दोषी पाए जाने पर बर्खास्त कर दिया जाता है, उसी तरह राजनेताओं को भी अयोग्य घोषित किया जाना चाहिये।
  • सांसदों और विधायकों को सरकारी कर्मचारियों जैसी 'सेवा शर्तें' नहीं मिलतीं। सजा के बाद छह वर्ष की अयोग्यता पर्याप्त है।
  • निर्वाचित प्रतिनिधि सरकारी कर्मचारियों से भिन्न होते हैं क्योंकि उन्हें सेवा नियमों के माध्यम से नियुक्त नहीं किया जाता बल्कि जनता द्वारा चुना जाता है।
  • नौकरशाहों के विपरीत, सांसदों और विधायकों का कार्यकाल 5 वर्ष का निश्चित होता है और उन्हें पुनः चुनाव लड़ना पड़ता है, जिससे वे मतदाताओं के प्रति सीधे जवाबदेह हो जाते हैं।

 

  • सुधार की संभावना की अनदेखी करता है और व्यक्तियों को सेवा का दूसरा मौका देने से इनकार करता है। राजनेताओं के विरुद्ध मामलों की त्वरित सुनवाई जैसे उपाय अधिक प्रभावी हो सकते हैं।

आगे की राह

  • निरर्हता संबंधी मानदंड का सुदृढ़ीकरण: भ्रष्टाचार, आतंकवाद और लैंगिक अपराध जैसे गंभीर अपराधों के लिये निरर्हता की अवधि को छह वर्ष से अधिक बढ़ाया जाना चाहिये
  • चुनाव आयोग का सशक्तीकरण: उम्मीदवारों के आपराधिक रिकॉर्ड और वित्तीय खुलासों को सत्यापित करने के लिये निर्वाचन आयोग को अधिक सुदृढ़ विनियामक शक्तियाँ प्रदान कर इसका सशक्तीकरण करने की आवश्यकता है।
    • निर्वाचन आयोग ने सिफारिश की है कि जिन व्यक्तियों के खिलाफ किसी सक्षम न्यायालय द्वारा ऐसे अपराध के लिये आरोप तय किये गए हों, जिसके लिये पाँच वर्ष से अधिक की सज़ा का प्रावधान हो, उन्हें भी चुनाव में भाग लेने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिये।
  • न्यायिक सुधार: समयबद्ध न्याय सुनिश्चित करने हेतु सांसदों/विधायकों के मामलों की विशेष अदालतों में त्वरित सुनवाई की जानी चाहिये और लंबी विधिक कार्रवाई का परिवर्जन करने की आवश्यकता है जिसके कारण अपराधियों को चुनाव में भाग लेने का अवसर मिल जाता है।
  • राजनेताओं हेतु आचार संहिता का क्रियान्वन: सार्वजनिक जीवन में नैतिक व्यवहार, उत्तरदायित् और अनुशासन सुनिश्चित करने के उद्देश्य से राजनीतिक नेताओं के लिये एक अनिवार्य आचार संहिता लागू करने की आवश्यकता है। 
    • नैतिक मानकों के उल्लंघन की निगरानी के लिये निर्वाचन आयोग के अधीन एक राजनीतिक नैतिकता समिति की स्थापना की जानी चाहिये। 

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. दोषारोपित राजनेताओं की निरर्हता पर बल देते हुए भारत में राजनीति के अपराधीकरण की समस्या का समाधान करने में सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये।

  

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये- (2021)

  1. भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है जो प्रत्याशियों को किसी एक लोकसभा चुनाव में तीन निर्वाचन-क्षेत्रों से लड़ने से रोकता है। 
  2. 1991 में लोकसभा चुनाव में श्री देवी लाल ने तीन लोकसभा निर्वाचन-क्षेत्रों से चुनाव लड़ा था।  
  3. वर्तमान नियमों के अनुसार, यदि कोई प्रत्याशी किसी एक लोकसभा चुनाव में कई निवार्चन-क्षेत्रों से चुनाव लड़ता है, तो उसकी पार्टी को उन निर्वाचन-क्षेत्रों के उप-चुनावों का खर्च उठाना चाहिये, जिन्हें उसने खाली किया है बशर्ते वह सभी निर्वाचन-क्षेत्रों से विजयी हुआ हो।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1      
(b)  केवल 2
(c) 1 और 3      
(d) 2 और 3

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. लोक प्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951 के अंतर्गत संसद अथवा राज्य विधायिका के सदस्यों के चुनाव से उभरे विवादों के निर्णय की प्रक्रिया का विवेचन कीजिये। किन आधारों पर किसी निर्वाचित घोषित प्रत्याशी के निर्वाचन को शून्य घोषित किया जा सकता है? इस निर्णय के विरुद्ध पीड़ित पक्ष को कौन-सा उपचार उपलब्ध है? वाद विधियों का संदर्भ दीजिये। (2022)


आतंकवाद का बदलता स्वरूप

प्रिलिम्स के लिये:

साहेल, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC), अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ), डीपफेक, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, क्रिप्टोकरेंसी, FATF, BIMSTEC, SAARC, UAPA, NIA

मेन्स के लिये:

आतंकवाद का बदलता स्वरूप और उनका मुकाबला करने के तरीके

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

भू-राजनीतिक अस्थिरता, डिजिटल अतिवाद और चरमपंथी समूहों की उभरती रणनीतियों के परिणामस्वरुप आतंकवादी हमले और आतंकवाद के नए तरीके विकसित हो रहे हैं।

आतंकवाद के स्वरूप में किस प्रकार परिवर्तन हो रहा है?

  • अपूर्वानुमेयता: आतंकवाद की प्रवृत्ति अप्रत्याशित अथवा अपूर्वानुमेय होती है, जिससे हमास और हयात सैयद अल-शाम (HTS) (सीरियाई आतंकवादी संगठन) जैसे निष्क्रिय समूह व्यापक प्रभुत्व के साथ फिर से सक्रिय हो जाते हैं।
    • पहले यह माना जाता था कि आतंकवादी समूह पूर्ण रूप से होने वाले युद्ध में शामिल नहीं होते, लेकिन अक्तूबर 2023 में हमास द्वारा इज़रायल पर हमला किये जाने के बाद यह पूर्वधारणा गलत सिद्ध हो गई है।
    • स्व-प्रशिक्षित और कट्टरपंथी युवा अप्रत्याशित लोन-वुल्फ हमलों को बढ़ावा दे रहे हैं। उदाहरण के लिये अमेरिका में वर्ष 2025 में न्यू ऑरलियन्स हमला हुआ।
  • राज्य प्रायोजित: सीरिया और अफगानिस्तान दोनों अब आतंकवादी समूहों (क्रमशः HTS और तालिबान) द्वारा शासित हैं, जो आतंकवाद को बढ़ावा दे रहे हैं।
  • विकसित होती रणनीति: आधुनिक आतंकवाद समर्थकों, स्लीपर सेल, हिंसा के इस्तेमाल पर वैचारिक वाद, वाहन को टक्कर मारने जैसे अपरंपरागत हमलों और चरमपंथी नेटवर्क में शामिल होने वाले शिक्षित पेशेवरों की बढ़ती संख्या पर निर्भर करता है।
  • भौगोलिक पहुँच में विस्तार: अफगानिस्तान में ISIS-K की बढ़ती मौजूदगी दक्षिण एशिया के लिए खतरा है।
  • शक्ति गुणक के रूप में प्रौद्योगिकी: आतंकवादी अपनी क्षमताओं को बढ़ाने के लिये ड्रोन, 3D प्रिंटिंग और साइबर टूल जैसी उन्नत प्रौद्योगिकी का उपयोग कर रहे हैं, जिससे संभावित रूप से उच्च-स्तरीय हमले संभव हो रहे हैं, जो दुष्प्रचार को बढ़ावा देते हैं।
    • उदाहरण के लिये, वर्ष 2019 में सऊदी अरामको की तेल क्षेत्रों पर हौथी हमले ने सटीक ड्रोन के उपयोग को प्रदर्शित किया।
  • क्रॉस-ग्रुप सहयोग: आतंकवादी समूह अपने प्रभाव क्षेत्र को बढ़ाने तथा क्षेत्रीय स्थिरता को खतरे में डालने के लिये सहयोग कर रहे हैं। 
    • उदाहरण के लिये, ईरान की एक्सिस ऑफ रेजिस्टेंस (हिज़बुल्लाह, हमास और इराकी मिलिशिया) इजरायल के खिलाफ काम कर रही है।
  • पश्चिम में घरेलू आतंकवाद: अमेरिका और यूरोप में राजनीतिक ध्रुवीकरण चरमपंथ को बढ़ावा दे रहा है, जबकि आव्रजन तनाव से हिंसा का खतरा है, जैसा कि अमेरिका में वर्ष 2019 में एल पासो गोलीबारी में देखा गया था।

आतंकवाद के स्वरूप में परिवर्तन के क्या कारण हैं?

  • कमज़ोर वैश्विक शासन: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) और अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) जैसी संस्थाएँ आतंकवादी समूहों को खत्म करने और उनके वित्तपोषण को रोकने में अप्रभावी साबित हो रही हैं, जिससे वैश्विक आतंकवाद-रोधी प्रयास कमज़ोर हो रहे हैं।
  • आतंकवादी शासन का उदय: सीरिया में असद शासन का पतन और HTS का उदय राजनीतिक बदलावों के कारण आतंकवादी बुनियादी ढाँचे के मज़बूत होने की संभावना का संकेत देता है।
  • वैश्विक आतंकवादी नेटवर्क: बढ़ते वैश्वीकरण ने सीमाओं के पार लोगों, धन और हथियारों की आवाजाही को सुगम बना दिया है।
    • उदाहरण के लिये, मध्य पूर्व से परे अफ्रीका, दक्षिण एशिया और यूरोप में अल-कायदा और ISIS की उपस्थिति।
  • वैचारिक प्रेरणाओं में बदलाव: आतंकवाद अब केवल राजनीतिक लक्ष्यों से नहीं, बल्कि धार्मिक उग्रवाद, पहचान संबंधी शिकायतों और व्यक्तिगत उद्देश्यों से उपजा है।
    • उदाहरण के लिये, वर्ष 2019 में क्राइस्टचर्च गोलीबारी श्वेत वर्चस्ववादी उग्रवाद से प्रेरित थी।
  • प्रॉक्सी वारफेयर: राज्य समर्थित आतंकवादी समूह प्रतिद्वंद्वी देशों में अस्थिरता को बढ़ावा देकर आतंकवाद को जटिल बनाते हैं। उदाहरण के लिये, जैश-ए-मोहम्मद ने पाकिस्तान के समर्थन से भारत में हमले किये।

आतंकवाद का बदलता स्वरूप भारत को कैसे प्रभावित कर रहा है?

  • घरेलू कट्टरवाद: कई संगठनों ने भारतीय युवाओं को भर्ती किया है, तथा केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक में कट्टरपंथीकरण के मामले सामने आए हैं।
    • उदाहरण के लिये, भारत ने ISIS से जुड़े 62 स्थानीय और 68 प्रवासी भारतीयों की पहचान की, जिनमें से 95% दक्षिण भारत से थे।
  • कम लागत वाले हमले: कम लागत वाले, उच्च प्रभाव वाले हमले बढ़ रहे हैं, उदाहरण के लिये, कोयंबटूर कार ब्लास्ट 2022 जैसे कम महत्त्वपूर्ण हमले, जिसके लिये संसाधनों की व्यवस्था स्थानीय स्तर पर की जा सकती है।
  • स्थानीय बोलियों में कट्टरता: आतंकवादी दुष्प्रचार, भर्ती और योजना के लिये सोशल मीडिया और एन्क्रिप्टेड ऐप्स का उपयोग करते हैं, जबकि डीपफेक तकनीक और AI स्थानीय बोलियों में गलत सूचना के बढ़ते खतरे को जन्म देते हैं, जिन्हें औपचारिक सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर पहचानना कठिन होता है।
  • UAV-आधारित आतंकवाद: अब ड्रोन का उपयोग भारत-पाकिस्तान सीमा पर हथियार, विस्फोटक और ड्रग्स में किया जाता है।
    • उदाहरण के लिये, वर्ष 2021 में जम्मू में भारतीय वायु सेना स्टेशन पर विस्फोटकों से लैस दो ड्रोन दुर्घटनाग्रस्त हो गए।
  • हवाला लेनदेन: आतंकवाद को वित्तपोषित करने के लिये जाकिर नाइक जैसे भगोड़े लोगों द्वारा चलाए जा रहे हवाला नेटवर्क, क्रिप्टोकरेंसी लेनदेन और फेक एनजीओ पर निर्भरता बढ़ गई है।
    • उदाहरण के लिये, वर्तमान में प्रतिबंधित पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) द्वारा गैर-कानूनी गतिविधियों के लिये विदेशी धन का उपयोग गया। 

आगे की राह

  • वैश्विक सहयोग: आतंकवादी वित्तपोषण एवं अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क पर अंकुश लगाने के लिये UNSC और FATF सहित अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद-रोधी ढाँचे को मज़बूत करना चाहिये।
    • भारत को BIMSTEC और SAARC के माध्यम से पड़ोसियों के साथ खुफिया जानकारी प्रणाली मज़बूत करनी चाहिये।
  • AI और साइबर सुरक्षा उपाय: स्थानीय भाषाओं में ऑनलाइन कट्टरपंथ तथा फर्जी सूचना का मुकाबला करने के लिये AI-संचालित निगरानी और डीपफेक पहचान उपकरण विकसित करना चाहिये।
    • एन्क्रिप्टेड ऐप्स के माध्यम से फैलने वाली चरमपंथी सामग्री एवं दुष्प्रचार को रोकने के लिये तकनीकी कंपनियों के साथ मिलकर कार्य करना चाहिये।
  • NGO की निगरानी: आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकने के लिये विदेशी धन प्राप्त करने वाले NGO पर कड़ी निगरानी रखनी चाहिये।
  • आतंकवाद विरोधी कानून: वन-वोल्फ हमले जैसे आधुनिक खतरों को रोकने के लिये UAPA और NIA अधिनियम जैसे कानूनों को अद्यतन किया जाना चाहिये।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: वैश्विक स्तर पर आतंकवाद की प्रकृति किस प्रकार विकसित हो रही है? आधुनिक आतंकवाद को आकार देने में प्रौद्योगिकी तथा भू-राजनीति की भूमिका पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)  

मेन्स

प्रश्न: भारत की आंतरिक सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए, सीमा पार से होने वाले साइबर हमलों के प्रभाव का विश्लेषण कीजिये। साथ ही, इन परिष्कृत हमलों के विरुद्ध रक्षात्मक उपायों की चर्चा कीजिये। (2021)

प्रश्न. आतंकवादी गतिविधियों और परस्पर अविश्वास ने भारत-पाकिस्तान संबंधों को धूमिल बना दिया है। खेलों और सांस्कृतिक आदान-प्रदान जैसी मृदु शक्ति किस सीमा तक दोनों देशों के बीच सद्भाव उत्पन्न करने में सहायक हो सकती है। उपयुक्त उदाहरणों के साथ चर्चा कीजिये। (2015)


भारत में अश्लीलता संबंधी कानून

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

एक यूट्यूब इन्फ्लुएंसर पर कथित तौर पर एक व्यापक रूप से देखे जाने वाले शो के दौरान अश्लील टिप्पणी करने के लिये जाँच की जा रही है। भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 296 के तहत "अश्लील कृत्यों" के लिये शिकायत दर्ज की गई है।

  • इससे विशेष रूप से डिजिटल युग में अश्लीलता की विधिक परिभाषा पर सवाल उठते हैं।

अश्लीलता के विनियमन से संबंधित कानून कौन-से हैं?

  • BNS 2023 की धारा 294: यह पूर्व की भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 292 है जिसके तहत डिजिटल मीडिया सहित अश्लील सामग्री की बिक्री, विज्ञापन अथवा सार्वजनिक प्रदर्शन प्रतिबंधित है।
    • इसके अंतर्गत अश्लीलता से अभिप्राय ऐसी सामग्री से है जो लैंगिक रूप से विचारोत्तेजक हो, जिसका उद्देश्य लैंगिक विचारों का प्रकोपन करना हो, अथवा व्यक्तियों की नैतिकता या व्यवहार को नुकसान पहुँचाने की संभावना हो।
    • पहली बार अपराध करने वालों को 2 वर्ष तक का कारावास और 5,000 रुपए का जुर्माना हो सकता है। दोबारा अपराध करने वालों को 5 वर्ष तक का कारावास और 10,000 रुपए का जुर्माना हो सकता है।
  • BNS की धारा 296: इसमें सार्वजनिक रूप से अश्लील कृत्य करने, साथ ही सार्वजनिक रूप से अश्लील गीत, गाथागीत या शब्द कहने, सुनाने या बोलने या दूसरों को परेशान करने के उद्देश्य से ऐसा करने पर दंड का प्रावधान किया गया है। 
    • लोक नैतिकता अथवा शिष्टता को ठेस पहुँचाने वाले सार्वजनिक आचार का विनियमन कर, इस अनुभाग का उद्देश्य सामाजिक मानदंडों को बनाए रखना है।
  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 67: इसमें इलेक्ट्रॉनिक रूप से अश्लील सामग्री प्रकाशित या प्रसारित करने पर दंड का प्रावधान किया गया है।
    • अश्लील सामग्री की परिभाषा BNS की धारा 294 के अंतर्गत दी गई परिभाषा के समान है।
    • इसमें BNS की तुलना में अधिक कठोर दंड का प्रावधान है, जिसमें पहली बार अपराध करने पर 3 वर्ष तक का कारावास और 5 लाख रुपए का जुर्माना शामिल है।
  • स्त्री अशिष्ट रूपण (प्रतिषेध) अधिनियम, 1986: इसके तहत महिलाओं के ऐसे अभद्र चित्रण पर रोक लगाने का प्रावधान है जो अपमानजनक होने के साथ लोक नैतिकता के विपरीत हो।
  • POCSO अधिनियम, 2012 (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम): इस अधिनियम के तहत ऑनलाइन बाल यौन सामग्री निर्मित करने, संग्रहीत करने, साझा करने या उस तक पहुँचने पर प्रतिबंध लगाया गया है तथा इस संबंध में अपराधियों के लिये कठोर दंड का प्रावधान किया गया है।

न्यायालय 'अश्लीलता' को किस प्रकार निर्धारित करते हैं?

  • हिक्लिन परीक्षण: रंजीत डी. उदेशी बनाम महाराष्ट्र राज्य, 1964 मामले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हिक्लिन परीक्षण का प्रयोग किया, जिसे ब्रिटिशों ने क्वीन बनाम हिक्लिन, 1868 के मामले में अपनाया था। 
    • इसमें सबसे कम सामान्य विभाजक मानक लागू किया गया, जिसका अर्थ है कि संबंधित सामग्री का मूल्यांकन बच्चों या कमज़ोर वयस्कों पर इसके प्रभाव के आधार पर किया गया, न कि औसत व्यक्ति पर।
    • इस परीक्षण से यह निर्धारित किया गया कि यदि किसी सामग्री में ऐसे लोगों को भ्रष्ट करने की संभावना है, जिनका मन ऐसे अनैतिक प्रभावों के प्रति उन्मुख है, तो वह सामग्री अश्लील है।
  • आलोचना: इसे परंपरागत और अत्यधिक प्रतिबंधात्मक माना गया। इस परीक्षण में संपूर्ण कार्य के बजाय विषय-वस्तु के पृथक भागों पर ध्यान केंद्रित किया गया।
  • सामुदायिक मानक परीक्षण: अवीक सरकार बनाम पश्चिम बंगाल राज्य, 2014 में भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने अश्लीलता निर्धारित करने के क्रम में हिक्लिन परीक्षण को “सामुदायिक मानक” परीक्षण (CST) से स्थापित किया।
    • न्यायालय अब समकालीन सामाजिक मानदंडों के आधार पर अश्लीलता का फैसला करते हैं। ये मूल्यांकन करते हैं कि क्या समग्र रूप से संबंधित सामग्री का समग्र विषय कामुक रुचियों (अर्थात कलात्मक, साहित्यिक या सामाजिक मूल्य के बजाए यौन रूप से उत्तेजक सामग्री) पर आधारित है।
    • न्यायालय मूल अधिकारों (अनुच्छेद 19(1)(a) भाषण की स्वतंत्रता) को उचित प्रतिबंधों (अनुच्छेद 19(2)) के साथ संतुलित करने का प्रयास करते हैं।
  • न्यायिक मिसाल:  बोरिस बेकर न्यूड फोटो मामला, 2014 सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि नग्नता अकेले अश्लील नहीं है अगर उसमें कलात्मक या सामाजिक योग्यता हो।
    • न्यायालय किसी कार्य की अश्लीलता निर्धारित करने से पहले इस बात पर विचार करते हैं कि क्या वह कार्य साहित्यिक, कलात्मक, राजनीतिक या वैज्ञानिक उद्देश्य से कार्य करता है।
    • वर्ष 2024 कॉलेज रोमांस वेब सीरीज मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि अश्लील भाषा तब तक अश्लील नहीं है जब तक कि वह यौन विचार उत्पन्न न करे।
  • कमियाँ: CST व्यक्तिपरक है और क्षेत्र के अनुसार भिन्न होता है (भौगोलिक, संस्कृति और सामाजिक मानदंडों के आधार पर), जिसके कारण असंगत निर्णय सामने आते हैं। यह उभरते सामाजिक मानदंडों के साथ तालमेल बिठाने में संघर्ष करता है तथा इसमें स्पष्ट परिभाषाओं का अभाव है, जिसके कारण कानूनी व्याख्याओं में अस्पष्टता उत्पन्न होती है।

सार्वजनिक नैतिकता, शालीनता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

  • नैतिकता: यह सिद्धांतों का समूह है जो नैतिकता और न्याय के बारे में सामाजिक, सांस्कृतिक या व्यक्तिगत मान्यताओं के आधार पर सही और गलत व्यवहार को परिभाषित करता है।
    • नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ, 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि संवैधानिक नैतिकता सार्वजनिक नैतिकता से ऊपर है, तथा सामाजिक मानदंडों पर न्याय पर ज़ोर दिया गया।
  • शालीनता: अश्लील भाषा और हाव-भाव से बचना (बी. मनमोहन एवं अन्य बनाम मैसूर राज्य एवं अन्य, 1965)
  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अश्लीलता: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अनुच्छेद 19(2) के तहत उचित प्रतिबंधों के अधीन है, जिसमें अश्लीलता को रोकना और सामाजिक नैतिकता को बनाए रखना शामिल है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत में अश्लीलता कानून के विकास और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर इसके प्रभाव पर चर्चा कीजिये?

और पढ़ें: भारत में अश्लीलता कानून

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स

प्रश्न. निजता के अधिकार पर उच्चतम न्यायालय के नवीनतम निर्णय के आलोक में, मौलिक अधिकारों के विस्तार का परीक्षण कीजिये। (2017)