सामाजिक न्याय
केंद्र द्वारा समलैंगिक विवाह का विरोध
- 15 Mar 2023
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प्रिलिम्स के लिये:नवतेजी सिंह जौहर केस, मौलिक अधिकार, पर्सनल लॉ, LGBTQIA+ के अधिकार। मेन्स के लिये:समलैंगिक विवाह के पक्ष में तर्क, समलैंगिक विवाह के विरुद्ध तर्क। |
चर्चा में क्यों?
केंद्र ने सर्वोच्च न्यायालय में समलैंगिक विवाह का विरोध करते हुए कहा है कि जैविक पुरुष और महिला के बीच विवाह भारत में एक पवित्र मिलन, संस्कार और परंपरा है।
- भारत के मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्त्व वाली खंडपीठ ने कानूनी रूप से समलैंगिक विवाहों को मान्यता दिये जाने की याचिकाओं को सर्वोच्च न्यायालय के पाँच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को भेज दिया।
समलैंगिक विवाह के संदर्भ में सरकार का पक्ष:
- सरकार ने तर्क दिया कि न्यायालय ने नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ के 2018 के अपने फैसले में समलैंगिक व्यक्तियों के बीच यौन संबंधों को केवल अपराध की श्रेणी से बाहर किया था, न कि इस ‘आचरण’ को वैध ठहराया था।
- न्यायालय ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करते हुए इसे संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और गरिमा के मौलिक अधिकार के हिस्से के रूप में स्वीकार नहीं किया।
- सरकार का तर्क है कि विवाह रीति-रिवाजों, प्रथाओं, सांस्कृतिक लोकाचार और सामाजिक मूल्यों पर निर्भर करता है।
- समलैंगिक विवाह की तुलना पति, पत्नी और बच्चों की भारतीय परिवार इकाई की अवधारणा से नहीं की जा सकती।
- संसद ने देश में केवल एक पुरुष और महिला के मिलन को मान्यता देने हेतु विवाह कानूनों का प्रारूप तैयार किया है।
- समलैंगिक व्यक्तियों के विवाह का पंजीकरण मौजूदा व्यक्तिगत, साथ ही संहिताबद्ध कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन होगा।
- विशेष विवाह अधिनियम, 1954 उन युगल के लिये विवाह का नागरिक अधिकार प्रदान करता है जो अपने व्यक्तिगत कानून के तहत शादी नहीं कर सकते।
- समलैंगिक व्यक्तियों के विवाह का पंजीकरण मौजूदा व्यक्तिगत, साथ ही संहिताबद्ध कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन होगा।
- सरकार ने तर्क दिया कि इस मानदंड से कोई भी परिवर्तन केवल विधायिका के माध्यम से किया जा सकता है, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नहीं।
समलैंगिक विवाह के पक्ष में तर्क:
- कानून के तहत समान अधिकार और संरक्षण: यौन अभिविन्यास की परवाह किये बिना, हर किसी को विवाह करने और परिवार बसाने का अधिकार है।
- समान-लिंग वाले जोड़ों के पास विपरीत-लिंगी जोड़ों के समान कानूनी अधिकार और सुरक्षा होनी चाहिये।
- समलैंगिक विवाह की गैर-मान्यता भेदभाव युक्त थी जो LGBTQIA+ जोड़ों की गरिमा और आत्म-संतुष्टि पर प्रहार करती थी।
- परिवारों और समुदायों को मज़बूती प्रदान करना: विवाह संस्कार जोड़ों और उनके परिवारों को सामाजिक एवं आर्थिक लाभ प्रदान करता है। समान-लिंग वाले जोड़ों को विवाह की अनुमति दिये जाने से उनकी स्थिरता और सुरक्षा को बढ़ावा देकर परिवारों एवं समुदायों को मज़बूती प्रदान की जा सकती है।
- वैश्विक स्वीकृति: विश्व के कई देशों में समलैंगिक विवाह की कानूनी मान्यता प्राप्त है, और एक लोकतांत्रिक समाज में व्यक्तियों को इस अधिकार से वंचित करना वैश्विक सिद्धांतों के खिलाफ है।
- समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता प्रदान करने वाले देश:
- 133 देशों में समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है, लेकिन उनमें से केवल 32 देशों में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता प्राप्त है।
समलैंगिक विवाह के खिलाफ तर्क:
- धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएँ: कई धार्मिक और सांस्कृतिक समूहों का मानना है कि विवाह केवल पुरुष और महिला के मध्य ही होना चाहिये।
- उनका तर्क है कि विवाह की पारंपरिक परिभाषा को बदलना उनके विश्वासों और मूल्यों के मूलभूत सिद्धांतों के खिलाफ होगा।
- प्रजनन: कुछ लोग तर्क देते हैं कि विवाह का प्राथमिक उद्देश्य संतानोत्पत्ति है और समलैंगिक जोड़ों के जैविक बच्चे नहीं हो सकते।
- इसलिये उनका मानना है कि समलैंगिक विवाह की अनुमति नहीं दी जानी चाहिये क्योंकि यह प्रकृति के नियमों के खिलाफ है।
- कानूनी मुद्दे: ऐसी चिंताएँ हैं कि समलैंगिक विवाह की अनुमति देने से कानूनी समस्याएँ उत्पन्न होंगी जैसे कि विरासत, कर और संपत्ति का अधिकार।
- कुछ लोगों का तर्क है कि समलैंगिक विवाह को समायोजित करने के लिये सभी विधियों और विनियमों को परिवर्तित करना बहुत कठिन होगा।
आगे की राह
- सांस्कृतिक संवेदनशीलता: भारत विभिन्न धार्मिक और सामाजिक मूल्यों के साथ सांस्कृतिक विविधता वाला देश है।
- समलैंगिक विवाह पर किसी भी विधायी या न्यायिक निर्णय को लेकर विभिन्न समुदायों की सांस्कृतिक संवेदनशीलता पर विचार किया जाना चाहिये, साथ ही यह भी सुनिश्चित करना चाहिये कि व्यक्तियों के मूल अधिकारों की रक्षा हो।
- सामाजिक स्वीकृति और शिक्षा: LGBTQIA+ समुदाय की सामाजिक स्वीकृति के मामले में भारत को अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है।
- विषम लैंगिकता की स्वीकृति और समझ को बढ़ावा देने के लिये शिक्षा एवं जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिये, साथ ही समलैंगिक विवाह पर विचार किया जाना चाहिये।
- अंतर्राष्ट्रीय दायित्त्व: भारत विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संधियों और सम्मेलनों का हस्ताक्षरकर्त्ता है, जिसके लिये LGBTQIA+ समुदाय सहित सभी व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करना आवश्यक है।
- कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे कई अन्य देशों ने समलैंगिक विवाह को मान्यता दी है, यह अनिवार्य है कि भारत सभी व्यक्तियों के लिये समान अधिकार और अवसर सुनिश्चित करने के लिये उनके यौन रूचि की परवाह किये बिना इसे वैधता प्रदान करे।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नQ. भारत के संविधान का कौन-सा अनुच्छेद अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने के अधिकार की रक्षा करता है? (2019) (a) अनुच्छेद 19 उत्तर: (b) |