उत्तर-पूर्व भारत के वर्षा पैटर्न में परिवर्तन
प्रिलिम्स के लिये:जलवायु परिवर्तन, मानसूनी वर्षा, बाढ़, जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना मेन्स के लिये:वर्षा पैटर्न को प्रभावित करने वाले कारक एवं प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एक विश्लेषण ने जलवायु परिवर्तन के कारण उत्तर-पूर्व (NE) भारत में वर्षा पैटर्न के बदलते स्वरूप को प्रदर्शित किया है।
- जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAPCC) को वर्ष 2008 में प्रधानमंत्री-जलवायु परिवर्तन परिषद नामक समिति द्वारा शुरू किया गया था। यह उन उपायों की पहचान करता है जो जलवायु परिवर्तन से प्रभावी ढंग से निपटने के साथ-साथ भारत के विकास उद्देश्यों को बढ़ावा देते हैं।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- उत्तर-पूर्व (NE) सामान्य रूप से मानसून के महीनों (जून-सितंबर) के दौरान भारी वर्षा प्राप्त करता है, लेकिन हाल के वर्षों में इसका वर्षा का पैटर्न परिवर्तित हो गया है।
- तीव्र बारिश के साथ बादल फटने जैसी घटनाओं के कारण इस क्षेत्र में बाढ़ आ जाती है, जिसके बाद सूखे की स्थिति लंबे समय तक शुष्क/कमज़ोर पड़ जाती है।
- 2018 में प्रकाशित एक शोध-पत्र में पाया गया कि वर्ष 1979 और 2014 के बीच उत्तर-पूर्व (NE) में मानसूनी वर्षा में 355 मिमी की कमी आई है।
- इसमें से 30-50 मिमी की कमी स्थानीय नमी के स्तर में गिरावट के कारण हुई।
- अपनी अनोखी टोपोलॉजी (Topology) और खड़ी ढलानों के कारण त्वरित मैदानी इलाकों में जल के प्रवेश के कारण इस क्षेत्र में नदी के प्रवाह पैटर्न में बदलाव की संभावना है।
- उत्तर-पूर्व (NE) का क्षेत्र ज़्यादातर पहाड़ी है और इसमें भारत-गंगा के मैदानों का विस्तार है, यह क्षेत्र क्षेत्रीय एवं वैश्विक जलवायु में परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है।
- पूर्वोत्तर भारत में मानसून-पूर्व (Pre-monsoon) और मानसून के समय को वर्षा ऋतु की संज्ञा दी जाती हैं।
- अधिकांश उत्तर-पूर्वी राज्यों में मानसून के दौरान होने वाली वर्षा दो दशकों में लंबी अवधि के औसत (LPA) से कम हो गई है।
- ब्रह्मपुत्र की उत्तरी दिशा के अधिकांश ज़िलों में वर्षा के दिनों की संख्या में कमी आई है।
- इसका आशय है कि अब कम दिनों में ही भारी बारिश देखने को मिलती है अर्थात् 'भारी वर्षा दिवस' बढ़ रहे हैं जिससे नदी में बाढ़ आने की संभावना काफी बढ़ जाती है।
- वर्षा पैटर्न को बदलने वाले कारक:
- नमी/आर्द्रता और सूखा दोनों एक साथ:
- वार्मिंग (Warming) का एक पहलू जो वर्षा को प्रभावित करता है, वह है भूमि का सूखना, जिससे शुष्क अवधि और सूखे की आवृत्ति एवं तीव्रता बढ़ जाती है।
- आर्द्रता की मात्रा में वृद्धि और सूखे की स्थिति का एक साथ होना वर्षा के पैटर्न को अप्रत्याशित तरीके से बदल देता है।
- यूरेशियाई क्षेत्र में हिमपात में वृद्धि:
- यूरेशियाई क्षेत्र में बढ़ी हुई बर्फबारी भी पूर्वोत्तर भारत में मानसूनी वर्षा को प्रभावित करती है क्योंकि यूरेशिया में अत्यधिक हिमपात के कारण इस क्षेत्र का वातावरण ठंडा हो जाता है, जो उत्तर-पूर्व भारत के वर्षा पैटर्न में परिवर्तन को और अधिक प्रभावित करता है जो अंततः इस क्षेत्र में कमज़ोर ग्रीष्मकालीन मानसून का कारण बनता है।
- प्रशांत दशकीय दोलन (PDO) में परिवर्तन:
- उपोष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर पर समुद्र की सतह का तापमान, जो एक चक्र में भिन्न होता है और जिसका प्रत्येक चरण एक दशक तक रहता है। इसका पीक हर 20 वर्ष में आता है जिसे प्रशांत दशकीय दोलन (POD) के रूप में जाना जाता है।
- इसका प्रभाव पूर्वोत्तर में मानसूनी बारिश पर पड़ सकता है।
- PDO भी ग्लोबल वार्मिंग से प्रभावित हो रहा है क्योंकि यह समुद्र की परतों के मध्य तापमान के अंतर को कम करता है।
- सौर कलंक अवधि:
- मानसून के दौरान उत्तर-पूर्व में वर्षा पैटर्न एक सौर कलंक अवधि से दूसरे सौर कलंक अवधि में काफी भिन्न होता है, जो देश में कम दबाव के मौसमी गर्त की अंतर गहनता को प्रदर्शित करता है।
- सौर कलंक अवधि सूर्य की सतह पर बढ़ती और घटती गतिविधि की क्रमोत्तर अवधि है जो पृथ्वी की जलवायु को प्रभावित करती है।
- मानसून के दौरान उत्तर-पूर्व में वर्षा पैटर्न एक सौर कलंक अवधि से दूसरे सौर कलंक अवधि में काफी भिन्न होता है, जो देश में कम दबाव के मौसमी गर्त की अंतर गहनता को प्रदर्शित करता है।
- नमी/आर्द्रता और सूखा दोनों एक साथ:
- प्रभाव:
- बदलते वर्षा पैटर्न (विशेष रूप से मानसून के मौसम के दौरान) नदियों के प्रवाह, हिमावरण की सीमा और पर्वतीय झरनों के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं, जो बदले में आजीविका, विशेष रूप से कृषि और मछली पकड़ने, वन वनस्पति विकास, पशु और पक्षी आवास तथा अन्य पारिस्थितिक तंत्र संबंधी पहलुओं पर प्रभाव डालते हैं।
- सुबनसिरी, दिबांग (ब्रह्मपुत्र की सहायक नदियाँ) और ब्रह्मपुत्र आदि नदियों के अप्रत्याशित तरीके से पैटर्न बदलने के कुछ प्रमाण हैं।
- ग्लोबल वार्मिंग के कारण होने वाली अत्यधिक वर्षा की घटनाएँ वनरहित पहाड़ी ढलानों के साथ त्वरित मृदा क्षरण जैसी घटनाओं में वृद्धि करती हैं। इससे नदियों का सतही बहाव बढ़ जाता है और उनका मार्ग बदल जाता है।
- बदलते वर्षा पैटर्न (विशेष रूप से मानसून के मौसम के दौरान) नदियों के प्रवाह, हिमावरण की सीमा और पर्वतीय झरनों के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं, जो बदले में आजीविका, विशेष रूप से कृषि और मछली पकड़ने, वन वनस्पति विकास, पशु और पक्षी आवास तथा अन्य पारिस्थितिक तंत्र संबंधी पहलुओं पर प्रभाव डालते हैं।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
यूएस-इंडिया स्ट्रेटेजिक क्लीन एनर्जी पार्टनरशिप (SCEP)
प्रिलिम्स के लिये:पेरिस समझौता, यूएस-इंडिया स्ट्रेटेजिक क्लीन एनर्जी पार्टनरशिप, SCEP, लीडर्स समिट ऑन क्लाइमेट मेन्स के लिये:अमेरिका एवं भारत के बीच जलवायु परिवर्तन संबंधी विभिन्न पहलें तथा ‘यूएस-इंडिया स्ट्रेटेजिक क्लीन एनर्जी पार्टनरशिप’ का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अमेरिकी ऊर्जा मंत्रालय के साथ पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय की मंत्रिस्तरीय बैठक के दौरान संशोधित ‘यूएस-इंडिया स्ट्रेटेजिक क्लीन एनर्जी पार्टनरशिप’ (SCEP) को लॉन्च किया गया।
SCEP को वर्ष 2021 की शुरुआत में आयोजित ‘लीडर्स समिट ऑन क्लाइमेट’ में दोनों देशों द्वारा घोषित ‘यूएस-इंडिया क्लाइमेट एंड क्लीन एनर्जी एजेंडा 2030 पार्टनरशिप’ के तहत लॉन्च किया गया था।
प्रमुख बिंदु
- यूएस-इंडिया एजेंडा 2030 पार्टनरशिप:
- इसका उद्देश्य पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने के लिये मौजूदा दशक में इन कार्यों पर मज़बूत द्विपक्षीय सहयोग स्थापित करना है।
- यह साझेदारी दो मुख्य मार्गों के साथ आगे बढ़ेगी: सामरिक स्वच्छ ऊर्जा भागीदारी और जलवायु कार्रवाई एवं वित्त संग्रहण संवाद।
- भारत ने वर्ष 2018 में भारत-अमेरिका ऊर्जा वार्ता को ‘रणनीतिक ऊर्जा साझेदारी’ तक बढ़ा दिया।
- संशोधित सामरिक स्वच्छ ऊर्जा भागीदारी (SCEP):
- उभरते ईंधन (स्वच्छ ऊर्जा ईंधन) पर पाँचवें स्तंभ को जोड़ना।
- इसके साथ SCEP अंतर-सरकारी गठबंधन अब सहयोग के पाँच स्तंभों पर आधारित है- शक्ति और ऊर्जा दक्षता, तेल और गैस, नवीकरणीय ऊर्जा, सतत विकास, उभरते ईंधन।
- वर्ष 2030 तक 450 गीगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता स्थापित करने के लक्ष्य को प्राप्त करने में भारत का समर्थन करना है।
- जैव ईंधन पर एक नए भारत-अमेरिका कार्य बल (Task Force) की भी घोषणा की गई।
- भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु ऊर्जा सहयोग की समीक्षा:
- वर्ष 2008 में भारत-अमेरिका परमाणु सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे।
- भारत-अमेरिका परमाणु समझौते का एक प्रमुख पहलू यह था कि परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (NSG) ने भारत को एक विशेष छूट दी, जिसने उसे एक दर्जन देशों के साथ सहयोग समझौतों पर हस्ताक्षर करने में सक्षम बनाया।
- ‘गैस टास्क फोर्स’ का रूपांतरण:
- ‘यूएस-इंडिया गैस टास्क फोर्स’ को अब ‘यूएस-इंडिया लो एमिशन गैस टास्क फोर्स’ के रूप में जाना जाएगा।
- यह भारत की बढ़ती ऊर्जा मांग को पूरा करने और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी के लक्ष्यों को प्राप्त करने के उद्देश्य से कुशल एवं बाज़ार संचालित समाधानों को बढ़ावा देकर भारत की प्राकृतिक गैस नीति के साथ प्रौद्योगिकी एवं नियामक बाधाओं को दूर करने पर ध्यान केंद्रित करेगा।
- ‘इंडिया एनर्जी मॉडलिंग फोरम’ का संस्थानीकरण:
- विभिन्न क्षेत्रों में अनुसंधान और मॉडलिंग के लिये छह टास्क फोर्स का गठन किया गया है।
- इसमें कोयला क्षेत्र में एनर्जी डेटा मैनेजमेंट, लो कार्बन टेक्नोलॉजी और ऊर्जा ट्रांज़िशन पर विचार-विमर्श किया जाएगा।
- ‘(PACE)-R’ पहल के दायरे का विस्तार:
- विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा भारत की ओर से उन्नत स्वच्छ ऊर्जा (PACE)-R पहल के लिये साझेदारी के दूसरे चरण के हिस्से के रूप में स्मार्ट ग्रिड और ग्रिड स्टोरेज को शामिल करने पर सहमति व्यक्त की गई है।
- अमेरिका-भारत संबंधों पर हालिया पहल:
- मालाबार अभ्यास: ‘क्वाड’ समूह में शामिल देशों (भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया) की नौसेनाओं ने अभ्यास के 25वें संस्करण में भाग लिया।
- ALUAV पर भारत-अमेरिका समझौता: भारत और अमेरिका ने एक एयर-लॉन्च मानव रहित हवाई वाहन (ALUAV) या ड्रोन को संयुक्त रूप से विकसित करने हेतु एक परियोजना समझौते (PA) पर हस्ताक्षर किये हैं जिसे एक विमान से लॉन्च किया जा सकता है।
- मुक्त व्यापार समझौते का मुद्दा: अमेरिकी प्रशासन ने यह संकेत दिया है कि भारत के साथ द्विपक्षीय मुक्त व्यापार समझौता (FTA) को बनाए रखने में उसकी अब कोई दिलचस्पी नहीं है।
- निसार (NISAR): राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन (National Aeronautics and Space Administration- NASA) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation- ISRO) संयुक्त रूप से NISAR नामक SUV के आकार के उपग्रह को विकसित करने हेतु कार्य कर रहे हैं। यह उपग्रह एक टेनिस कोर्ट के लगभग आधे क्षेत्र में 0.4 इंच से भी छोटी किसी वस्तु की गतिविधि का अवलोकन करने में सक्षम होगा।
स्रोत: द हिंदू
स्वच्छ सर्वेक्षण ग्रामीण 2021
प्रिलिम्स के लिये:स्वच्छ सर्वेक्षण ग्रामीण 2021 मेन्स के लिये:SBM के भाग के रूप में अन्य योजनाएँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जल शक्ति मंत्रालय ने स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) चरण- II के तहत स्वच्छ सर्वेक्षण ग्रामीण 2021 या ग्रामीण स्वच्छता सर्वेक्षण 2021 की शुरुआत की।
- इससे पहले मंत्रालय द्वारा वर्ष 2018 और 2019 में स्वच्छ सर्वेक्षण ग्रामीण का आयोजन किया गया था।
- वर्ष 2016 में आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (MoHUA) द्वारा प्रस्तुत किये गए स्वच्छ सर्वेक्षण शहरी 2021 की घोषणा की जानी है।
प्रमुख बिंदु
- स्वच्छ सर्वेक्षण ग्रामीण 2021:
- परिचय:
- गाँवों को खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) प्लस का दर्जा देने की केंद्र की पहल के एक हिस्से के रूप में यह ग्रामीण भारत में स्वच्छता, सफाई और स्वच्छता की स्थिति का आकलन करता है।
- ओडीएफ-प्लस स्थिति का उद्देश्य ठोस और तरल कचरे का प्रबंधन सुनिश्चित करना है तथा यह ओडीएफ स्थिति का उन्नयन है जिसमें पर्याप्त शौचालयों के निर्माण की आवश्यकता थी ताकि लोगों को खुले में शौच न करना पड़े।
- यह कार्य एक विशेषज्ञ एजेंसी द्वारा किया जाता है।
- कवरेज़:
- वर्ष 2021 के ग्रामीण स्वच्छता सर्वेक्षण के हिस्से के रूप में इसमें 698 ज़िलों में फैले 17,475 गाँवों को कवर किया जाएगा।
- विभिन्न तत्त्वों को वेटेज:
- सार्वजनिक स्थानों पर स्वच्छता का प्रत्यक्ष निरीक्षण- 30%
- नागरिकों की प्रतिक्रिया- 35%
- स्वच्छता संबंधी मानकों पर सेवा स्तर की प्रगति- 35%
- परिचय:
- स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) चरण- II:
- परिचय:
- यह चरण-I के तहत उपलब्धियों की स्थिरता और ग्रामीण भारत में ठोस/तरल एवं प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (SLWM) के लिये पर्याप्त सुविधाएँ प्रदान करने पर ज़ोर देता है।
- सार्वभौमिक स्वच्छता कवरेज प्राप्त करने के प्रयासों में तेज़ी लाने के लिये भारत के प्रधानमंत्री ने 2 अक्तूबर, 2014 को स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत की थी।
- मिशन के तहत भारत के सभी गाँवों, ग्राम पंचायतों, ज़िलों, राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने ग्रामीण इलाकों में 100 मिलियन से अधिक शौचालयों का निर्माण करके महात्मा गांधी की 150वीं जयंती 2 अक्तूबर, 2019 तक खुद को "खुले में शौच मुक्त" (ओडीएफ) घोषित किया।
- SBM को क्रमशः शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के लिये आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय तथा जल शक्ति मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
- केंद्रीय बजट 2021-22 में स्वच्छ भारत मिशन (शहरी) 2.0 को पाँच साल, वर्ष 2021 से 2026 तक 1.41 लाख करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ लागू करने की घोषणा की गई थी।
- कार्यान्वयन:
- इसे 2020-21 से 2024-25 तक मिशन मोड में 1,40,881 करोड़ रुपए के कुल परिव्यय के साथ लागू किया जाएगा।
- फंडिंग पैटर्न:
- उत्तर-पूर्वी राज्यों, हिमालयी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के लिये केंद्र और राज्यों के बीच फंड शेयरिंग पैटर्न 90:10, अन्य राज्यों के लिये 60:40 और अन्य केंद्रशासित प्रदेशों के मामले में 100% वित्तपोषण केंद्र द्वारा किया जाएगा।
- SLWM के लिये वित्तपोषण मानदंडों को युक्तिसंगत बनाया गया है और परिवारों की संख्या के स्थान पर प्रति व्यक्ति आधार पर बदल दिया गया है।
- उत्तर-पूर्वी राज्यों, हिमालयी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के लिये केंद्र और राज्यों के बीच फंड शेयरिंग पैटर्न 90:10, अन्य राज्यों के लिये 60:40 और अन्य केंद्रशासित प्रदेशों के मामले में 100% वित्तपोषण केंद्र द्वारा किया जाएगा।
- परिचय:
- SBM के भाग के रूप में अन्य योजनाएँ:
- गोबर-धन योजना:
- इसे जल शक्ति मंत्रालय द्वारा वर्ष 2018 में लॉन्च किया गया था। इस योजना का उद्देश्य बायोडिग्रेडेबल कचरे को संपीड़ित बायोगैस (CBG) में परिवर्तित करके किसानों की आय में वृद्धि करना है।
- व्यक्तिगत घरेलू शौचालय:
- घरेलू शौचालय निर्माण के लिये 15000 रुपए दिये जाते हैं।
- स्वच्छ विद्यालय अभियान:
- शिक्षा मंत्रालय ने एक वर्ष के भीतर सभी सरकारी स्कूलों में बालक और बालिकाओं के लिये अलग-अलग शौचालय उपलब्ध कराने के उद्देश्य से स्वच्छ विद्यालय अभियान शुरू किया।
- गोबर-धन योजना:
स्रोत: पी.आई.बी.
CRISPR द्वारा मच्छरों की आबादी पर नियंत्रण
प्रिलिम्स के लिये:आनुवंशिक नियंत्रण प्रणाली, जेनेटिक इंजीनियरिंग, डेंगू, मलेरिया मेन्स के लिये:क्लस्टर्ड रेग्युलरली इंटरस्पेस्ड शॉर्ट पैलिनड्रॉमिक रिपीट्स का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में शोधकर्त्ताओं ने एक ऐसी प्रणाली विकसित की है जो क्लस्टर्ड रेग्युलरली इंटरस्पेस्ड शॉर्ट पैलिनड्रॉमिक रिपीट्स (Clustered Regularly Interspaced Short Palindromic Repeats- CRISPR) जो कि जेनेटिक इंजीनियरिंग पर आधारित है, का उपयोग कर मच्छरों की आबादी को नियंत्रित करती है।
हर साल लाखों लोग मच्छर से होने वाली डेंगू और मलेरिया जैसी दुर्लभ बीमारियों से संक्रमित होते हैं।
प्रमुख बिंदु
- बाँझ कीट तकनीक (Sterile Insect Technique):
- SIT मच्छरों की जंगली आबादी (wild populations) को रोकने हेतु पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित और प्रमाणित तकनीक है।
- प्रिसिशन गाइडेड स्टेराइल टेकनीक (precision-guided Sterile Insect Technique- pgSIT) जो कि CRISPR आधारित एक टेकनीक/तकनीक है, इसकी उपयोगिता को और अधिक बढ़ा देती है।
- pgSIT:
- यह एक नई स्केलेबल जेनेटिक कंट्रोल सिस्टम/प्रणाली (Scalable Genetic Control System) है जो तैनात मच्छरों की आबादी को नियंत्रित करने के लिये CRISPR आधारित प्रणाली पर कार्य करती है।
- नर मच्छर बीमारियों को प्रसारित नहीं करते हैं, अत: यह तकनीक अधिक- से-अधिक नर मच्छरों को बाँझ बनाने पर आधारित है।
- इसमें हानिकारक रसायनों और कीटनाशकों का उपयोग किये बिना मच्छरों की आबादी को नियंत्रित किया जा सकता है।
- pgSIT तकनीक पुरुष प्रजनन क्षमता से संबंधित जीन को परिवर्तित कर देती है जो बाँझ संतान पैदा करने तथा उड़ने वाली मादा एडीज़ एजिप्टी मच्छर जो कि डेंगू बुखार, चिकनगुनिया और जीका आदि बीमारियों को फैलाने के लिये ज़िम्मेदार मच्छर की एक प्रजाति है।
- PgSIT यांत्रिक रूप से एक प्रमुख आनुवंशिक तकनीक पर निर्भर करती है जो एक साथ सेक्सिंग (Sexing) और नसबंदी (Sterilization) को सक्षम बनाती है, इससे पर्यावरण में अंडों को छोड़ने की सुविधा मिलती है जिससे केवल बाँझ वयस्क नर मच्छर ही उत्पन्न होते हैं।
- दो सुरक्षा विशेषताएँ जो इस तकनीक को स्वीकृति प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण हैं, इस प्रकार हैं- पहली यह प्रणाली स्वयं सीमित है और दूसरी इसकी पर्यावरण में बने रहने या फैलने की संभावना नहीं है।
- pgSIT अंडों को मच्छर जनित बीमारी वाले स्थान पर भेजा जा सकता है या एक साइट पर विकसित किया जा सकता है, इस प्रकार उनका उत्पादन आस-पास के स्थानों पर अंडों को छोड़ने के लिये किया जा सकता है।
- इन pgSIT अंडों को जंगल में छोड़ दिया जाता है और इनसे बाँझ pgSIT नर मच्छर उत्पन्न होते हैं जो अंततः मादाओं के साथ संभोग कर जंगली आबादी को आवश्यकतानुसार कम करने में मददगार साबित होंगे।
- यह एक नई स्केलेबल जेनेटिक कंट्रोल सिस्टम/प्रणाली (Scalable Genetic Control System) है जो तैनात मच्छरों की आबादी को नियंत्रित करने के लिये CRISPR आधारित प्रणाली पर कार्य करती है।
- CRISPR:
- यह एक जीन एडिटिंग तकनीक है, जो Cas9 नामक एक विशेष प्रोटीन का उपयोग करके वायरस के हमलों से लड़ने के लिये बैक्टीरिया में प्राकृतिक रक्षा तंत्र की प्रतिकृति का निर्माण करती है।
- CRISPR-CAS9 तकनीक आनुवंशिक सूचना धारण करने वाले DNA के सिरा (Strands) या कुंडलित धागे को हटाने और चिपकाने (Cut and Paste) की क्रियाविधि की भाँति कार्य करती है। DNA सिरा के जिस विशिष्ट स्थान पर आनुवंशिक कोड को बदलने या एडिट करने की आवश्यकता होती है, सबसे पहले उसकी पहचान की जाती है। इसके पश्चात् CAS-9 के प्रयोग से (CAS-9 कैंची की तरह कार्य करता है) उस विशिष्ट हिस्से को हटाया जाता है। यह कैंची की एक जोड़ी की तरह काम करता है।
- एक DNA स्ट्रैंड जब टूट जाता है, तो खुद को ठीक करने की उसकी स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है। वैज्ञानिक इस स्व-मरम्मत प्रक्रिया के दौरान हस्तक्षेप करते हैं, आनुवंशिक कोड के वांछित अनुक्रम की आपूर्ति करते हैं और स्व-विलगित DNA को जोड़ते हैं।
- CRISPR-Cas9 एक सरल, प्रभावी और अविश्वसनीय रूप से सटीक तकनीक है जिसमें भविष्य में मानव अस्तित्त्व में क्रांति लाने की क्षमता है।
- फ्राँस के इमैनुएल चारपेंटियर और यूएसए की जेनिफर ए डोडना को CRISPR/Cas9 आनुवंशिक कैंची विकसित करने के लिये रसायन विज्ञान में वर्ष 2020 के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
महाकवि सुब्रमण्यम भारती
प्रिलिम्स के लियेमहाकवि सुब्रमण्यम भारती मेन्स के लियेस्वतंत्रता संग्राम में दक्षिण भारत का साहित्यिक योगदान, सुब्रमण्यम भारती का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उपराष्ट्रपति ने महाकवि ‘सुब्रमण्यम भारती’ को उनकी 100वीं पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित की।
प्रमुख बिंदु
- जन्म: सुब्रमण्यम भारती का जन्म 11 दिसंबर, 1882 को मद्रास प्रेसीडेंसी के ‘एट्टायपुरम’ में हुआ था।
- संक्षिप्त परिचय: वे राष्ट्रवादी काल (1885-1920) के भारतीय लेखक थे, जिन्हें आधुनिक तमिल शैली का जनक माना जाता है।
- उन्हें 'महाकवि भारथियार' के नाम से भी जाना जाता है।
- सामाजिक न्याय को लेकर उनकी मज़बूत भावना ने उन्हें आत्मनिर्णय और सम्मान हेतु लड़ने के लिय प्रेरित किया।
- राष्ट्रवादी काल के दौरान भागीदारी:
- वर्ष 1904 के बाद वह तमिल दैनिक समाचार पत्र ‘स्वदेशमित्रन’ से जुड़ गए।
- राजनीतिक मामलों के साथ उनके इस जुड़ाव के कारण वे जल्द ही ‘भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस’ (INC) के चरमपंथी विंग का हिस्सा बन गए।
- सुब्रमण्यम भारती ने अपने क्रांतिकारी विचारों का प्रचार करने हेतु लाल कागज़ पर 'इंडिया' नाम का साप्ताहिक समाचार पत्र छापा।
- यह तमिलनाडु में राजनीतिक कार्टून प्रकाशित करने वाला पहला पेपर था।
- उन्होंने ‘विजय’ जैसी कुछ अन्य पत्रिकाओं का प्रकाशन और संपादन भी किया।
- उन्होंने कॉन्ग्रेस के वार्षिक सत्रों में हिस्सा लिया और बिपिन चंद्र पाल, बी.जी. तिलक तथा वी.वी.एस. अय्यर जैसे चरमपंथी नेताओं के साथ राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा की।
- भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के बनारस सत्र (1905) और सूरत सत्र (1907) के दौरान उनकी भागीदारी एवं देशभक्ति के प्रति उनके उत्साह ने कई राष्ट्रीय नेताओं को प्रभावित किया।
- वर्ष 1908 में उन्होंने ‘स्वदेश गीतांगल’ प्रकाशित किया।
- वर्ष 1917 की रूसी क्रांति को लेकर सुब्रमण्यम भारती की प्रतिक्रिया ‘पुड़िया रूस’ (द न्यू रशिया) नामक कविता मौजूद है, जो कि उनके राजनीतिक दर्शन का एक आकर्षक उदाहरण प्रस्तुत करती है।
- उन्हें एक फ्राँसीसी उपनिवेश ‘पांडिचेरी’ (अब पुद्दुचेरी) भागने के लिये मज़बूर होना पड़ा, जहाँ वे वर्ष 1910 से वर्ष 1919 तक निर्वासन में रहे।
- इस अवधि के दौरान की सुब्रमण्यम भारती की राष्ट्रवादी कविताएँ और निबंध काफी लोकप्रिय थे।
- वर्ष 1904 के बाद वह तमिल दैनिक समाचार पत्र ‘स्वदेशमित्रन’ से जुड़ गए।
- महत्त्वपूर्ण रचनाएँ: ‘कण पाणु’ (वर्ष 1917; कृष्ण के लिये गीत), ‘पांचाली सपथम’ (वर्ष 1912; पांचाली का व्रत), ‘कुयिल पाउ’ (वर्ष 1912; कुयिल का गीत), ‘पुड़िया रूस’ और ‘ज्ञानारथम’ (ज्ञान का रथ)।
- उनकी कई अंग्रेज़ी कृतियों को ‘अग्नि’ और अन्य कविताओं तथा अनुवादों एवं निबंधों व अन्य गद्य अंशों (1937) में एकत्र किया गया था।
- मृत्यु: 11 सितंबर, 1921
- अंतर्राष्ट्रीय भारती महोत्सव:
- सुब्रमण्यम भारती की 138वीं जयंती के अवसर पर ‘वनाविल कल्चरल सेंटर’ (तमिलनाडु) द्वारा ‘अंतर्राष्ट्रीय भारती महोत्सव-2020’ का आयोजन किया गया था।
- विद्वान श्री सेनी विश्वनाथन को वर्ष 2020 का भारती पुरस्कार प्राप्त हुआ।
स्रोत: द हिंदू
भारत-ऑस्ट्रेलिया के बीच प्रथम 2+2 वार्ता
प्रिलिम्स के लिये:भारत-ऑस्ट्रेलिया 2+2 मंत्रिस्तरीय वार्ता, UNCLOS, क्वाड, सप्लाई चेन रेज़ीलियेंस इनीशिएटिव, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, ‘अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक अभिसमय, भारत-ऑस्ट्रेलिया संयुक्त नौसैनिक अभ्यास
भारत और ऑस्ट्रेलिया संबंध |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत और ऑस्ट्रेलिया के विदेश एवं रक्षा मंत्रियों ने नई दिल्ली में पहली भारत-ऑस्ट्रेलिया 2+2 मंत्रिस्तरीय वार्ता में हिस्सा लिया।
- उद्घाटन संवाद 2021 में भारत-ऑस्ट्रेलिया वर्चुअल लीडर्स समिट के दौरान दोनों देशों के नेता भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंधों को एक व्यापक रणनीतिक साझेदारी तक बढ़ाने के लिये सहमत हुए।
प्रमुख बिंदु
- इंडो-पैसिफिक पर फोकस: एक खुला, मुक्त, समृद्ध और नियम-आधारित इंडो-पैसिफिक क्षेत्र [यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑन द लॉ ऑफ द सी (UNCLOS) के अनुरूप] बनाए रखने हेतु सहमति व्यक्त की गई।
- भारत की हिंद-प्रशांत महासागर पहल का समर्थन करना।
- क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिये क्वाड सदस्य देशों द्वारा नए सिरे से प्रयास करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया।
- सप्लाई चेन रेज़ीलियेंस इनीशिएटिव पर ध्यान देना: महत्त्वपूर्ण स्वास्थ्य, प्रौद्योगिकी तथा अन्य वस्तुओं एवं सेवाओं के लिये विश्वसनीय व भरोसेमंद व्यापारिक भागीदारों के बीच आपूर्ति शृंखला में विविधता लाने हेतु बहुपक्षीय और क्षेत्रीय तंत्र के माध्यम से मिलकर काम करना।
- इस संदर्भ में भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान के व्यापार मंत्रियों द्वारा सप्लाई चेन रेज़ीलियेंस इनीशिएटिव के शुभारंभ का स्वागत किया गया।
- गति को बनाए रखना: इसकी निरंतरता को बनाए रखने के लिये इस प्रारूप के तहत प्रत्येक दो वर्षों में कम-से-कम एक बार मिलने का फैसला लिया गया।
- अफगानिस्तान पर साझा दृष्टिकोण: हाल ही में अफगानिस्तान पर तालिबान द्वारा कब्ज़ा किये जाने के बाद अफगान संकट के संदर्भ में दोनों देशों द्वारा एकसमान दृष्टिकोण प्रदर्शित किया गया।
- भारत ने माना कि इस नीति का सार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 2593 में निहित है।
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का प्रस्ताव 2593 इस बात पर ज़ोर देता है कि अफगानिस्तान को किसी भी तरह के आतंकवाद के लिये अपनी ज़मीन का इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं देनी चाहिये।
- आतंकवाद का मुकाबला करना: आतंकवाद और कट्टरपंथ का मुकाबला करने के लिये तथा ‘अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक अभिसमय’ (Comprehensive Convention on International Terrorism- CCIT) पर एक साथ मिलकर काम करना जारी रखना।
- द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करना: द्विपक्षीय व्यापार, वैक्सीन, रक्षा उत्पादन, सामुदायिक संपर्क, समुद्री सुरक्षा, साइबर और जलवायु सहयोग जैसे क्षेत्रों में संबंधों को मज़बूत करने पर चर्चा की गई।
- कोविड-19 पर सहयोग: क्वाड फ्रेमवर्क के तहत वैक्सीन निर्माण में सहयोग को और मज़बूत करने तथा इंडो-पैसिफिक भागीदारों को गुणवत्तापूर्ण वैक्सीन प्रदान करने हेतु समझौता किया गया।
- दोनों देशों के शोधकर्त्ता ऑस्ट्रेलिया-भारत रणनीतिक अनुसंधान कोष द्वारा वित्तपोषित परियोजनाओं के माध्यम से कोविड-19 स्क्रीनिंग को आगे बढ़ाने और वायरस का भविष्य के स्वास्थ्य प्रभावों का अध्ययन करने के लिये मिलकर काम कर रहे हैं।
- रक्षा संबंध: ऑस्ट्रेलिया ने भारत को भविष्य के टैलिसमैन सेबर अभ्यासों (Talisman Sabre Exercises) में भाग लेने के लिये आमंत्रित किया है जो अंतर-संचालनीयता को बढ़ाएगा, जबकि दोनों पक्ष रसद समर्थन के मामले में दीर्घकालिक पारस्परिक व्यवस्था का पता लगाएंगे।
- आर्थिक समझौते: द्विपक्षीय व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते को अंतिम रूप देने के लिये नए सिरे से समर्थन व्यक्त किया गया।
- इसके अलावा दोनों देशों ने भारत ऑस्ट्रेलिया दोहरा कराधान अपवंचन समझौता (Double Taxation Avoidance Agreement- DTAA) के तहत भारतीय फर्मों की अपतटीय आय के कराधान के मुद्दे के शीघ्र समाधान के लिये भी पैरवी की।
- अन्य: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता हेतु भारतीय उम्मीदवारी के समर्थन की पुष्टि करते हुए अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन को ऑस्ट्रेलियाई 1 मिलियन डॉलर और आपदा अनुकूल अवसंरचना के लिये गठबंधन को ऑस्ट्रेलियाई 10 मिलियन डॉलर का अनुदान (दोनों भारत के नेतृत्व वाली पहल)।
टू-प्लस-टू वार्ता
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भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंध
- भू-राजनीतिक संबंध: पिछले कुछ वर्षों में दक्षिण चीन सागर में व्यापक द्वीप निर्माण सहित चीन की कार्रवाइयों ने विश्व के कई देशों की चिंता बढ़ा दी है।
- इससे क्वाड (भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका) समूह का गठन हुआ है।
- रक्षा संबंध: भारत-ऑस्ट्रेलिया संयुक्त नौसैनिक अभ्यास (AUSINDEX), Ex AUSTRA HIND (सेना के साथ द्विपक्षीय अभ्यास) पिच ब्लैक सैन्य अभ्यास (ऑस्ट्रेलिया का बहुपक्षीय हवाई युद्ध प्रशिक्षण अभ्यास) और मालाबार अभ्यास।
- देशों के मध्य म्यूचुअल लॉजिस्टिक सपोर्ट अरेंजमेंट (MLSA) पर हस्ताक्षर किये गए हैं।
- बहुपक्षीय सहयोग:
- दोनों देश क्वाड, कॉमनवेल्थ, हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA), आसियान क्षेत्रीय मंच, जलवायु और स्वच्छ विकास पर एशिया प्रशांत साझेदारी के सदस्य हैं और दोनों ने पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में भाग लिया है।
- दोनों देश विश्व व्यापार संगठन के संदर्भ में पाँच इच्छुक पार्टियों के सदस्यों के रूप में भी सहयोग कर रहे हैं।
- ऑस्ट्रेलिया ‘एशिया प्रशांत आर्थिक सहयोग’ (APEC) का एक महत्त्वपूर्ण देश है और इस संगठन में भारत की सदस्यता का समर्थन करता है।
- अन्य राजनयिक जुड़ाव: एक असैन्य परमाणु सहयोग समझौते पर सितंबर 2014 में हस्ताक्षर किये गए थे।
- पारस्परिक कानूनी सहायता संधि (एमएलएटी) और प्रत्यर्पण संधि, जिस पर जून 2008 में हस्ताक्षर किये गए थे।
- इसके अलावा हाल ही में भारत-ऑस्ट्रेलिया सर्कुलर इकॉनमी हैकथॉन (I-ACE) का भी आयोजन किया गया।
स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस
आचार्य विनोबा भावे
प्रिलिम्स के लिये:आचार्य विनोबा भावे, महात्मा गांधी, भूदान आंदोलन, असहयोग आंदोलन, महाराष्ट्र धर्म मेन्स के लिये:आचार्य विनोबा भावे का राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान एवं उनके सामाजिक सुधार संबंधी कार्यक्रम |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रधानमंत्री ने आचार्य विनोबा भावे की जयंती पर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
प्रमुख बिंदु
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जन्म:
- विनायक नरहरि भावे का जन्म 11 सितंबर, 1895 को गागोडे, बॉम्बे प्रेसीडेंसी (वर्तमान महाराष्ट्र) में हुआ था।
- नरहरि शंभू राव और रुक्मिणी देवी के ज्येष्ठ पुत्र थे।
- उन पर उनकी माँ का अत्यधिक प्रभाव था, इसी कारण वह उनसे 'गीता' पढ़ने के लिये प्रेरित हुए।
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संक्षिप्त परिचय:
- वे भारत के सबसे प्रसिद्ध समाज सुधारकों में से एक और महात्मा गांधी के एक व्यापक रूप से सम्मानित शिष्य थे।
- साथ ही भूदान आंदोलन के संस्थापक (भूमि-उपहार आंदोलन) थे।
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गांधी के साथ जुड़ाव:
- वे महात्मा गांधी के सिद्धांतों व विचारधारा से आकर्षित होकर राजनीतिक और आध्यात्मिक दोनों दृष्टिकोण से गांधी को अपना गुरु मानते थे।
- उन्होंने वर्ष 1916 में अहमदाबाद के पास साबरमती में गांधीजी के आश्रम (तपस्वी समुदाय) में शामिल होने के लिये अपनी हाईस्कूल की पढ़ाई छोड़ दी।
- गांधी की शिक्षाओं ने भावे को भारतीय ग्रामीण जीवन को बेहतर बनाने के लिये समर्पित जीवन की ओर अग्रसर किया।
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स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका:
- उन्होंने असहयोग आंदोलन के कार्यक्रमों में हिस्सा लिया और विशेष रूप से आयातित विदेशी वस्तुओं के स्थान पर स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग का आह्वान किया।
- वर्ष 1940 में उन्हें भारत में गांधीजी द्वारा ब्रिटिश राज के खिलाफ पहले व्यक्तिगत सत्याग्रही (सामूहिक कार्रवाई के बजाय सत्य के लिये खड़े होने वाले व्यक्ति) के रूप में चुना गया था।
- 1920 और 1930 के दशक के दौरान भावे को कई बार बंदी बनाया गया तथा ब्रिटिश शासन के खिलाफ अहिंसक प्रतिरोध के लिये 40 के दशक में पांँच साल की जेल की सज़ा दी गई थी। उन्हें आचार्य (शिक्षक) की सम्मानित उपाधि दी गई थी।
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सामाजिक कार्यों में भूमिका:
- उन्होंने समाज में व्याप्त असमानता जैसी सामाजिक बुराइयों को समाप्त करने की दिशा में अथक प्रयास किया।
- गांधीजी द्वारा स्थापित उदाहरणों से प्रभावित होकर उन्होंने उन लोगों का मुद्दा उठाया जिन्हें गांधीजी द्वारा हरिजन कहा जाता था।
- उन्होंने गांधीजी के सर्वोदय शब्द को अपनाया जिसका अर्थ है "सभी के लिये प्रगति" (Progress for All)।
- इनके नेतृत्व में 1950 के दशक के दौरान सर्वोदय आंदोलन ने विभिन्न कार्यक्रमों को लागू किया गया जिनमें प्रमुख भूदान आंदोलन है।
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भूदान आंदोलन:
- वर्ष 1951 में तेलंगाना के पोचमपल्ली (Pochampalli) गाँव के हरिजनों ने उनसे जीविकोपार्जन के लिये लगभग 80 एकड़ भूमि प्रदान कराने का अनुरोध किया।
- विनोबा ने गाँव के ज़मींदारों को इस आंदोलन में आगे आने और हरिजनों की सहायता करने के लिये कहा। उसके बाद एक ज़मींदार ने आगे बढ़कर आवश्यक भूमि प्रदान करने की पेशकश की। इस घटना ने बलिदान और अहिंसा के इतिहास मेंएक नया अध्याय जोड़ दिया।
- यह भूदान (भूमि का उपहार) आंदोलन की शुरुआत थी।
- यह आंदोलन 13 वर्षों तक जारी रहा और इस दौरान विनोबा भावे ने देश के विभिन्न हिस्सों (कुल 58,741 किलोमीटर की दूरी) का भ्रमण किया।
- वह लगभग 4.4 मिलियन एकड़ भूमि एकत्र करने में सफल रहे, जिसमें से लगभग 1.3 मिलियन को गरीब भूमिहीन किसानों के बीच वितरित किया गया।
- इस आंदोलन ने दुनिया भर से प्रशंसको को आकर्षित किया तथा स्वैच्छिक सामाजिक न्याय को जागृत करने हेतु इस तरह के एकमात्र प्रयोग के कारण इसकी सराहना की गई।
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क्षेत्रीय कार्य:
- वर्ष 1923 में उन्होंने मराठी में एक मासिक 'महाराष्ट्र धर्म' का प्रकाशन किया, जिसमें उपनिषदों पर उनके निबंध छापे गए थे।
- उन्होंने जीवन के एक सरल तरीके को बढ़ावा देने के लिये कई आश्रम स्थापित किये, जो विलासिता से रहित थे, क्योंकि यह लोगों का ध्यान ईश्वर की भक्ति से हटा देता है।
- महात्मा गांधी की शिक्षाओं की तर्ज पर आत्मनिर्भरता के उद्देश्य से उन्होंने वर्ष 1959 में महिलाओं के लिये ‘ब्रह्म विद्या मंदिर’ की स्थापना की।
- उन्होंने गोहत्या पर कड़ा रुख अपनाया और इसके प्रतिबंधित होने तक उपवास करने की घोषणा की।
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साहित्यक रचना:
- उनकी महत्त्वपूर्ण पुस्तकों में शामिल हैं: स्वराज्य शास्त्र, गीता प्रवचन और तीसरी शक्ति आदि।
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मृत्यु
- वर्ष 1982 में वर्द्धा, महाराष्ट्र में उनका निधन हो गया।
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पुरस्कार
- विनोबा भाबे वर्ष 1958 में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले अंतर्राष्ट्रीय और भारतीय व्यक्ति थे। उन्हें 1983 में मरणोपरांत भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया था।
स्रोत: पीआईबी
कंटेनर की कमी
प्रिलिम्स के लिये:अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, आर्थिक सुधार, केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड मेन्स के लिये:कंटेनर की कमी के कारण एवं अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कंटेनर की व्यापक कमी का प्रभाव अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में बड़े पैमाने पर देखा गया।
प्रमुख बिंदु
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कमी का कारण:
- शिपिंग जहाज़ों की कम संख्या:
- कोविड-19 महामारी के परिणामस्वरूप संचालित शिपिंग जहाज़ों की संख्या में कमी के चलते खाली कंटेनरों को कम संख्या में उठाया गया।
- भीड़/जमाव:
- चीनी बंदरगाहों पर भीड़भाड़ के कारण अमेरिका जैसे प्रमुख बंदरगाहों पर लंबी प्रतीक्षा अवधि भी कंटेनरों के लिये टर्नअराउंड समय में वृद्धि करने में योगदान दे रही है।
- शिपिंग जहाज़ों की कम संख्या:
- वैश्विक प्रभाव:
- एक सतत् वैश्विक आर्थिक सुधार ने व्यापार को गति प्रदान की है। कंटेनरों की उपलब्धता में कमी और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अपेक्षा से अधिक गति से रिकवरी ने परिवहन लागत दरों में काफी वृद्धि की है।
- इससे परिवहन लागत दरों में 300% से अधिक की वृद्धि हुई है।
- एक सतत् वैश्विक आर्थिक सुधार ने व्यापार को गति प्रदान की है। कंटेनरों की उपलब्धता में कमी और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अपेक्षा से अधिक गति से रिकवरी ने परिवहन लागत दरों में काफी वृद्धि की है।
- भारत पर प्रभाव:
- भारतीय निर्यातकों को अपने शिपमेंट में अधिक देरी का सामना करने के परिणामस्वरूप तरलता के मुद्दों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि उन्हें निर्यात की गई वस्तुओं हेतु भुगतान प्राप्त करने के लिये लंबा इंतजार करना पड़ता है।
- तरलता से तात्पर्य उस सहजता से है जिसके साथ किसी परिसंपत्ति या सुरक्षा को उसके बाज़ार मूल्य को प्रभावित किये बिना तैयार नकदी में परिवर्तित किया जा सकता है।
- भारत में जहाज़ों के लिये उच्च टर्नअराउंड समय जैसी संरचनात्मक समस्याएँ भी समस्या को बढ़ाती हैं।
- भारतीय निर्यातकों को अपने शिपमेंट में अधिक देरी का सामना करने के परिणामस्वरूप तरलता के मुद्दों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि उन्हें निर्यात की गई वस्तुओं हेतु भुगतान प्राप्त करने के लिये लंबा इंतजार करना पड़ता है।
- सरकार द्वारा उठाए गए कदम:
- केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड ने अपने अधिकारियों को निर्यातकों के लिये कंटेनरों की उपलब्धता को आसान बनाने के उद्देश्य से लावारिस (Unclaimed) रखे गए कंटेनर्स, अस्पष्ट और ज़ब्त की गई वस्तुओं का शीघ्र निपटान करने का निर्देश दिया है।
आगे की राह
- सरकार खाली कंटेनरों के निर्यात को नियंत्रित कर सकती है। यह वित्तीय वर्ष के अंत तक सभी निर्यातों के लिये माल ढुलाई सहायता योजना को भी अधिसूचित कर सकती है, हालाँकि भारतीय निर्यात संगठनों के संघ (Federation of IndianExport Organisations) के अनुरोध पर माल ढुलाई दरों के सामान्य होने की उम्मीद है।
- सरकार उच्च दरों पर प्राथमिकता के आधार पर बुकिंग की पेशकश करने के लिये शिपिंग लाइनों को एक कदम पीछे धकेल सकती है, यह कहते हुए कि शिपिंग लाइनें पहले आओ पहले पाओ के आधार पर बुकिंग कर सकती हैं।