जैव विविधता और पर्यावरण
लीडर्स समिट ऑन क्लाइमेट
- 26 Apr 2021
- 8 min read
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘लीडर्स समिट ऑन क्लाइमेट’ (Leaders' Summit on Climate) वर्चुअल तरीके से संपन्न किया गया।
- भारतीय प्रधानमंत्री सहित विश्व के 40 नेताओं को इस सम्मेलन में आमंत्रित किया गया, ताकि वे मज़बूत जलवायु कार्रवाई (Stronger Climate Action) को रेखांकित करने हेतु अपना योगदान दे सके।
- इस शिखर सम्मेलन को नवंबर 2021 में स्कॉटलैंड के ग्लासगो में होने वाले संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन सम्मेलन, कॉन्फ्रेंस ऑफ द पार्टीज़-26 (COP-26) के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण मील के पत्थर के रूप में देखा जा रहा है।
प्रमुख बिंदु:
भारत-अमेरिका स्वच्छ ऊर्जा एजेंडा 2030 भागीदारी:
- भारत-अमेरिका स्वच्छ ऊर्जा एजेंडा 2030 भागीदारी के बारे में:
- यह भारत और अमेरिका की जलवायु और स्वच्छ ऊर्जा हेतु एक संयुक्त पहल है
- यह इस बात को प्रदर्शित करेगा कि राष्ट्रीय परिस्थितियों और सतत् विकास प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए वैश्विक स्तर पर समावेशी और लचीले आर्थिक विकास के साथ तीव्र जलवायु कार्रवाई को किस प्रकार रेखांकित किया जा सकता है?
- उद्देश्य:
- स्वच्छ ऊर्जा एजेंडा-2030 निवेश को जुटाने, स्वच्छ प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देने तथा भारत में हरित सहयोग को बढ़ाने के साथ अन्य विकासशील देशों हेतु सतत् विकास का खाका तैयार करने में सहायक होगा।
- इस पहल के दो मुख्य पक्ष:
- सामरिक स्वच्छ ऊर्जा भागीदारी।
- द क्लाइमेट एक्शन एंड फाइनेंस मोबलाइज़ेशन डायलॉग।
अमेरिका का पक्ष:
- अमेरिकी प्रतिबद्धता:
- अमेरिका द्वारा वर्ष 2030 तक ग्रीनहाउस गैस (GreenHouse Gas- GHG) के उत्सर्जन को आधा करने हेतु और अन्य देशों से ‘उच्च जलवायु महत्त्वाकांक्षाओं को निर्धारित करने" का आह्वान किया गया है जिससे देश में ही रोज़गार सृजन और नवीन प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा मिलेगा साथ ही जलवायु परिवर्तन के अनुकूल प्रभाव को कम करने में देशों की मदद मिलेगी।
- विकासशील देशों हेतु अपने सार्वजनिक जलवायु वित्तपोषण को दोगुना करना और वर्ष 2024 तक विकासशील देशों में जलवायु अनुकूलन के लिये सार्वजनिक वित्तपोषण को तीन गुना बढ़ाना।
- राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित अंशदान (NDC):
- रास्ट्रीय स्तर पर निर्धारित अंशदान के अनुसार, GHG उत्सर्जन को वर्ष 2005 के स्तर से 50-52% कम करना है।
- अमेरिका पेरिस समझौते (Paris Agreement) में फिर से शामिल हो गया है।
- रास्ट्रीय स्तर पर निर्धारित अंशदान के अनुसार, GHG उत्सर्जन को वर्ष 2005 के स्तर से 50-52% कम करना है।
- भारत की प्रतिबद्धता:
- भारत ने अमेरिका के साथ मिलकर अपनी जलवायु परिवर्तन प्रतिबद्धता को आगे बढ़ाया है जिसमें भारत द्वारा जलवायु कार्रवाई और स्वच्छ ऊर्जा के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु अमेरिका के साथ मिलकर 450 गीगावाट अक्षय ऊर्जा के लक्ष्य को प्राप्त करना शामिल है।
चीन का रुख:
- कार्बन न्यूट्रैलिटी:
- वर्ष 2030 तक चीन द्वारा कार्बन उत्सर्जन अपनी चरम सीमा पर होगा तथा वर्ष 2060 तक यह कार्बन न्यूट्रैलिटी (Carbon Neutrality) की स्थिति प्राप्त प्राप्त कर लेगा।
- चीन द्वारा अपनी ग्रीन बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (Belt and Road Initiative) को बढ़ावा देने, कोयला आधारित बिजली उत्पादन परियोजनाओं को सख्ती से नियंत्रित करने और कोयले की खपत को कम करने के प्रयासों की घोषणा की गई है।
- वर्ष 2030 तक चीन द्वारा कार्बन उत्सर्जन अपनी चरम सीमा पर होगा तथा वर्ष 2060 तक यह कार्बन न्यूट्रैलिटी (Carbon Neutrality) की स्थिति प्राप्त प्राप्त कर लेगा।
- सामान्य परंतु विभेदित ज़िम्मेदारियाँ:
- इसने सामान्य लेकिन विभेदित ज़िम्मेदारियों के सिद्धांत पर भी ज़ोर दिया, जो लंबे समय तक प्रदूषक रहे विकसित देशों के लिये अधिक ज़िम्मेदारियाँ निर्धारित करता है।
भारत का रुख:
- उत्सर्जन:
- भारत द्वारा पहले ही NDC के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त करते हुए देश में प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन लक्ष्य को वैश्विक औसत से 60% कम निर्धारित किया गया है।
- प्रतिबद्धता:
- भारत द्वारा वर्ष 2030 तक 450 गीगावाट (GW) के महत्त्वाकांक्षी नवीकरणीय ऊर्जा को प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया है।
- विकास संबंधी चुनौतियों के बावजूद भारत ने स्वच्छ ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता, वनीकरण और जैव विविधता हेतु कई साहसिक कदम उठाए हैं। भारत उन कुछ गिने-चुने देशों में शामिल हैं, जिसका NDCs 2°C के संगत स्तर पर बना हुआ है।
- भारत का मुख्य ज़ोर:
- भारत द्वारा अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance) और आपदा प्रबंधन संरचना जैसी वैश्विक पहलों को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध कुछ भारतीय पहलें:
- राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP)
- भारत स्टेज-VI (BS-VI) उत्सर्जन मानदंड
- उजाला योजना
- जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC)
आगे की राह:
- प्रत्येक देश, शहर, व्यापार और वित्तीय संस्थान को नेट-शून्य कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है।
- सरकारों के लिये यह और भी ज़रूरी है कि वे इस दीर्घकालिक महत्त्वाकांक्षा को ठोस कार्य-योजना के साथ समन्वित करे , क्योंकि कोविड -19 महामारी को दूर करने हेतु अरबों डॉलर खर्च किये जा चुके हैं। ऐसे समय में अर्थव्यवस्था को पुन: पटरी पर लाकर हम भविष्य को फिर से पुनर्जीवित कर सकते हैं।
- जून 2021 में होने वाला जी-7 शिखर सम्मेलन विश्व के सबसे धनी देशों को आवश्यक वित्तीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करने का अवसर प्रदान करेगा जो COP-26 की सफलता को सुनिश्चित करने में एक महत्त्वपूर्ण कदम साबित होगा।