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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

G-7 समिट

  • 28 May 2020
  • 5 min read

प्रीलिम्स के लिये 

G-7 में शामिल देश 

मेन्स के लिये

G-7 का महत्त्व व चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से 46वें G-7 शिखर सम्मेलन की मेज़बानी करने की घोषणा की। 

प्रमुख बिंदु:

मूल रूप से, G-7 शिखर सम्मेलन की वार्षिक बैठक 10-12 जून, 2020 को संयुक्त राज्य अमेरिका के कैंप डेविड (Camp David) में आयोजित होने वाली थी।

G-7 में शामिल देश:

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  • G-7 फ्राँस, जर्मनी, इटली, यूनाइटेड किंगडम, जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा जैसे देशों का एक समूह है।
  • यह एक अंतर सरकारी संगठन है जिसका गठन वर्ष 1975 में हुआ था।
  • वैश्विक आर्थिक शासन, अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा और ऊर्जा नीति जैसे सामान्य हित के मुद्दों पर चर्चा करने के लिये यह समूह वार्षिक बैठक करता है।
  • वर्ष 1997 में रूस के इस समूह में शामिल होने के बाद कई वर्षों तक G-7 को 'G- 8' के रूप में जाना जाता था।
  • वर्ष 2014 में यूक्रेन के क्रीमिया क्षेत्र के सैन्य अधिग्रहण के बाद रूस को सदस्य के रूप में इस समूह से निष्कासित किये जाने के बाद समूह को फिर से G-7 कहा जाने लगा।

शिखर सम्मेलन में भागीदारी

  • इसके शिखर सम्मेलन का आयोजन प्रतिवर्ष किया जाता है और समूह के सदस्यों द्वारा इसकी मेज़बानी बारी-बारी से की जाती है। मेज़बान देश न केवल G-7 की अध्यक्षता करता है, बल्कि उस वर्ष के कार्य-विषय/एजेंडा का भी निर्धारण करता है।
  • मेज़बान देश द्वारा वैश्विक नेताओं को शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिये विशेष आमंत्रण दिया जाता है। चीन, भारत, मेक्सिको और ब्राज़ील जैसे देशों ने विभिन्न अवसरों पर इसके शिखर सम्मेलनों में भाग लिया है। 

  • G-7 के शिखर सम्मेलन में यूरोपीय संघ, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक और संयुक्त राष्ट्र संघ जैसे महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के नेताओं को भी आमंत्रित किया जाता है।

चुनौतियाँ

  • आंतरिक रूप से G-7 में असहमति के कई उदाहरण हैं, जैसे कि जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर अन्य सदस्यों के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका का टकराव। 
  • आलोचकों का मत है कि G-7 की छोटी और अपेक्षाकृत समरूप सदस्यता सामूहिक निर्णयन को तो बढ़ावा देती है, लेकिन इसमें प्रायः उन निर्णयों को अंतिम परिणाम तक पहुँचाने की इच्छाशक्ति का अभाव होता है और साथ ही इसकी सदस्यता से महत्त्वपूर्ण उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं को वंचित रखना इसकी एक बड़ी कमी है।
  • G-20 (जो भारत, चीन, ब्राज़ील जैसी उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करता है) के उभार ने G-7 जैसे पश्चिमी देशों के वर्चस्व वाले समूह को चुनौती दी है।

भारत और G-7 समूह

  • 45वें G-7 शिखर सम्मेलन की मेज़बानी फ्राँस ने अगस्त 2019 में नौवेल्ले-एक्विटेन के बियारित्ज़ (Biarritz in Nouvelle-Aquitaine) में की।
  • फ्रांस के राष्ट्रपति ने लोकतंत्रात्मक व्यवस्था को बढ़ावा देने और महत्तवपूर्ण क्षेत्रीय प्रभाव रखने वाले चार भागीदार देशों (ऑस्ट्रेलिया, चिली, भारत और दक्षिण अफ्रीका); पाँच अफ्रीकी भागीदारों (बुर्किना फासो, सेनेगल, रवांडा एवं दक्षिण अफ्रीका और अफ्रीकी संघ आयोग (AUC) के अध्यक्ष) तथा नागरिक समाज के प्रतिनिधियों को इस सम्मेलन में आमंत्रित किया था। 
  • G-7 के शिखर सम्मेलन में भारत की उपस्थिति से प्रमुख आर्थिक शक्ति के रूप में भारत का बढ़ता महत्व चिह्नित होता है। 

आगे की राह 

  • G-7 को आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, व्यापार और विभिन्न देशों के बीच आंतरिक संघर्ष जैसे प्रमुख अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर ध्यान देना चाहिये।
  • एक मंच के रूप में इसे गरीबी और बीमारियों के उन्मूलन जैसे वैश्विक चिंताओं के समाधान को प्रतिबिंबित करना चाहिये। 

स्रोत: द हिंदू

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