भारतीय इतिहास
न्यू इंडिया में गांधीवाद की प्रासंगिकता
- 03 Oct 2020
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इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में न्यू इंडिया में गांधीवाद की प्रासंगिकता व उससे संबंधित विभिन्न पहलूओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
“एक देश में बांध संकुचित करो न इसको
गांधी का कर्तव्य क्षेत्र, दिक् नहीं, काल है
गांधी है कल्पना जगत के अगले युग की
गांधी मानवता का अगला उद्विकास है”
महात्मा गांधी के विचारों ने दुनिया भर के लोगों को न सिर्फ प्रेरित किया बल्कि करुणा, सहिष्णुता और शांति के दृष्टिकोण से भारत और दुनिया को बदलने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। गांधी ने अपने जीवनकाल में सिद्धांतों और प्रथाओं को विकसित करने पर ज़ोर दिया और दुनिया भर में हाशिये पर स्थित समूहों और उत्पीड़ित समुदायों की आवाज़ उठाने में भी अतुलनीय योगदान दिया। न्यू इंडिया के निर्माण में महात्मा गांधी की भूमिका और उनका प्रभाव निर्विवाद है। वर्तमान इक्कीसवीं सदी में भी एक व्यक्ति और एक दार्शनिक के रूप में गांधीजी उतने ही प्रासंगिक है जितने कि वह पहले थे। गांधीजी द्वारा स्वीकृत 'सर्वधर्म समभाव' अर्थात् सभी धर्म समान है तथा 'सर्वधर्म सदभाव' अर्थात् सभी धर्मों के प्रति सद्भावना, इस वैश्विक एवं तकनीकी युग में सद्भाव और करुणा का वातावरण बनाए रखने और 'वसुधैव कुटुम्बकम' (विश्व एक परिवार है) के विचार को साकार करने के लिये आवश्यक है।
महात्मा गांधी ने विश्व के बड़े नैतिक और राजनीतिक नेताओं जैसे- मार्टिन लूथर किंग जूनियर, नेल्सन मंडेला और दलाई लामा आदि को प्रेरित किया तथा लैटिन अमेरिका, एशिया, मध्य पूर्व तथा यूरोप में सामाजिक एवं राजनीतिक आंदोलनों को भी प्रभावित किया।
महात्मा गांधी : एक सामान्य परिचय
- गांधी जी का जन्म पोरबंदर की रियासत में 2 अक्तूबर, 1869 में हुआ था। उनके पिता करमचंद गांधी, पोरबंदर रियासत के दीवान थे और उनकी माँ का नाम पुतलीबाई था।
- गांधी जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा राजकोट से प्राप्त की और बाद में वे वकालत की पढ़ाई करने के लिये लंदन चले गए। उल्लेखनीय है कि लंदन में ही उनके एक दोस्त ने उन्हें भगवद् गीता से परिचित कराया और इसका प्रभाव गांधी जी की अन्य गतिविधियों पर स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है।
- वर्ष 1893 में दादा अब्दुल्ला (एक व्यापारी जिनका दक्षिण अफ्रीका में शिपिंग का व्यापार था) ने गांधी जी को दक्षिण अफ्रीका में मुकदमा लड़ने के लिये आमंत्रित किया, जिसे गांधी जी ने स्वीकार कर लिया और गांधी जी दक्षिण अफ्रीका के लिये रवाना हो गए। विदित है कि गांधी जी के इस निर्णय ने उनके राजनीतिक जीवन को काफी प्रभावित किया।
- दक्षिण अफ्रीका में गांधी ने अश्वेतों और भारतीयों के प्रति नस्लीय भेदभाव को महसूस किया। उन्हें कई अवसरों पर अपमान का सामना करना पड़ा जिसके कारण उन्होंने नस्लीय भेदभाव से लड़ने का निर्णय लिया।
- उस समय दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों और अश्वेतों को वोट देने तथा फुटपाथ पर चलने तक का अधिकार नहीं था, गांधी ने इसका कड़ा विरोध किया और अंततः वर्ष 1894 में 'नटाल इंडियन कांग्रेस' (Natal India Congress) नामक एक संगठन स्थापित करने में सफल रहे। दक्षिण अफ्रीका में 21 वर्षों तक रहने के बाद वे वर्ष 1915 में वापस भारत लौट आए।
गांधी और सत्याग्रह
- गांधी जी ने अपनी संपूर्ण अहिंसक कार्य पद्धति को ‘सत्याग्रह’ का नाम दिया। उनके लिये सत्याग्रह का अर्थ सभी प्रकार के अन्याय, अत्याचार और शोषण के खिलाफ शुद्ध आत्मबल का प्रयोग करने से था।
- गांधी जी का मानना था कि सत्याग्रह को कोई भी अपना सकता है, उनके विचारों में सत्याग्रह उस बरगद के वृक्ष के समान था जिसकी असंख्य शाखाएँ होती हैं। चंपारण और बारदोली सत्याग्रह गांधी जी द्वारा केवल लोगों के लिये भौतिक लाभ प्राप्त करने हेतु नहीं किये गए थे, बल्कि तत्कालीन ब्रिटिश शासन के अन्यायपूर्ण रवैये का विरोध करने हेतु किये गए थे।
- सविनय अवज्ञा आंदोलन, दांडी सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन ऐसे प्रमुख उदाहरण थे जिनमें गांधी जी ने आत्मबल को सत्याग्रह के हथियार के रूप में प्रयोग किया।
गांधी के धर्म संबंधी विचार
- विदित है कि गांधी जी का जन्म एक हिंदू परिवार में हुआ था और चूँकि उनके पिता दीवान थे, इसलिये उन्हें अन्य धर्मों के लोगों से मिलने का भी काफी अवसर मिला, उनके कई ईसाई और मुस्लिम दोस्त थे। साथ ही गांधी जी अपनी युवा अवस्था में जैन धर्म से भी काफी प्रभावित थे। कई विश्लेषकों का मानना है कि गांधी जी ने ‘सत्याग्रह’ की अवधारणा हेतु जैन धर्म के प्रचलित सिद्धांत ‘अहिंसा’ से प्रेरणा ली थी।
- गांधी जी ने ‘भगवान’ को ‘सत्य’ के रूप में उल्लेखित किया था। उनका कहना था कि “मैं लकीर का फकीर नहीं हूँ।” वे संसार के सभी धर्मों को सत्य और अहिंसा की कसौटी पर कसकर देखते थे, जो भी उसमें खरा नहीं उतरता वे उसे अस्वीकार कर देते और जो उसमें खरा उतरता वे उसे स्वीकार कर लेते थे।
सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था
- गांधी यह मानते थे कि आर्थिक व्यवस्था का व्यक्ति और समाज पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है और उससे उत्पन्न हुई आर्थिक और सामाजिक मान्यताएँ राजनीतिक व्यवस्था को जन्म देती हैं।
- उत्पादन केंद्रित प्रणाली से केंद्रीभूत पूंजी उत्पन्न होती है जिसके फलस्वरूप समाज के कुछ ही लोगों के हाथों में आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था केंद्रित हो जाती है। ऐसे में गांधी के समाज की रचना विकेंद्रीकरण पर आधारित मानी जा सकती है।
- गांधी के आर्थिक-सामाजिक दर्शन में विक्रेंद्रित उत्पादन प्रणाली, उत्पादन के साधनों का विकेंद्रित होना और पूंजी विकेंद्रित होने की बात कही गई है, ताकि समाज जीवन के लिये आवश्यक पदार्थों की उपलब्धि में स्वावलंबी हो और उसे किसी का मुखापेक्षी न बनना पड़े।
गांधी और स्वच्छता
- गांधीजी स्वच्छता को स्वतंत्रता से भी अधिक महत्त्वपूर्ण मानते थे। भारत में स्वच्छता एक बड़ा मुद्दा है जिसे केवल एक रेल यात्रा के दौरान स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
- देश में कई लोगों के लिये स्वच्छता एक दिवास्वप्न है और इनकी स्वच्छता में उनकी सहायता करने के लिये, सरकार ने पिछले पाँच वर्षों में 11 करोड़ से अधिक शौचालयों का निर्माण किया है और 2 अक्तूबर 2019 को ग्रामीण भारत को खुले में शौच से मुक्त घोषित किया है।
- हालाँकि उनमें से कई शौचालय कार्यरत अवस्था में नहीं हैं या उनमें जल की सुविधा नहीं है; किन्तु यहाँ इस बात पर विशेष बल दिया जाना चाहिये की इस प्रयास ने अभूतपूर्व जन जागरूकता का सृजन किया है।
गांधी और स्वराज
- गांधीजी ने ऐसे रामराज्य का स्वप्न देखा था, जहाँ पूर्ण सुशासन और पारदर्शिता हो। उन्होंने यंग इंडिया (19 सितंबर 1929) में लिखा, रामराज्य से मेरा मतलब हिंदू राज नहीं है। मेरे रामराज्य का अर्थ है- ईश्वर का राज्य। मेरे लिये, राम और रहीम एक ही हैं; मैं सत्य और धार्मिकता के ईश्वर के अलावा किसी और ईश्वर को स्वीकार नहीं करता। चाहे मेरी कल्पना के राम कभी इस धरती पर रहे हो या न रहे हो, रामायण का प्राचीन आदर्श निस्संदेह सच्चे लोकतंत्र में से एक है, जिसमें एक बहुत बुरा नागरिक भी एक जटिल और महंगी प्रक्रिया के बिना त्वरित न्याय को लेकर आश्वस्त हो।
- 2 अगस्त 1934 को अमृत बाज़ार पत्रिका में उन्होंने कहा, 'मेरे सपनों की रामायण, राजा और निर्धन दोनों के लिये समान अधिकार सुनिश्चित करती है।' फिर 2 जनवरी 1937 को हरिजन में उन्होंने लिखा, 'मैंने रामराज्य का वर्णन किया है, जो नैतिक अधिकार के आधार पर लोगों की संप्रभुता है।’
- सुशासन की दिशा में सभी मंत्रालयों द्वारा सभी नियमित जानकारी और डेटा का सक्रिय प्रकाशन ऑनलाइन उपलब्ध कराया जा रहा है। सरकारी अधिकारियों और राजनीतिक कार्यपालिका की भूमिका और उत्तरदायित्व बहुत स्पष्ट रूप से परिभाषित किये गए है।
- सरकार ने देश में आकांक्षीपूर्ण ज़िलों (Aspirational Districts) की पहचान की है और नीति आयोग 39 संकेतकों पर इनकी निगरानी करता है। इस पहल का उद्देश्य है कि इन ज़िलों को अन्य ज़िलों के बराबर या बेहतर स्थिति में लाया जाए। यह पहल गांधीजी की समाज के पिछले वर्ग के लोगो के उत्थान के प्रयासों के अनुरूप हैं।
पंचायती राज और ग्रामीण अर्थव्यवस्था
- इस मुद्दे पर गांधी के विचार बहुत स्पष्ट थे। उनका कहना था कि यदि हिंदुस्तान के प्रत्येक गाँव में कभी पंचायती राज कायम हुआ, तो मैं अपनी इस तस्वीर की सच्चाई साबित कर सकूंगा, जिसमें सबसे पहला और सबसे आखिरी दोनों बराबर होंगे, अर्थात् न कोई पहला होगा और न आखिरी। इस बारे में उनका मानना था कि जब पंचायती राज स्थापित हो जाएगा तब लोकतंत्र ऐसे भी अनेक काम कर दिखाएगा, जो हिंसा कभी नहीं कर सकती।
- गांधी भलीभाँति जानते थे कि भारत की वास्तविक आत्मा देश के गाँवों में बसती है। अत: जब तक गाँव विकसित नहीं होंगे, तब तक देश के वास्तविक विकास की कल्पना करना बेमानी है।
- गांधी के दर्शन में देश के आर्थिक आधार के लिये गाँवों को ही तैयार करने की कल्पना की गई है। गांधी का विचार था कि भारी कारखाने स्थापित करने के साथ-साथ दूसरा स्तर भी बचाए रखना ज़रूरी है, जो कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था है।
गांधी और अश्पृश्यता
- गांधी अस्पृश्यता या छुआछूत के विरुद्ध संघर्ष को साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष से भी कहीं अधिक विकराल मानते थे। इसकी वजह यह थी कि साम्राज्यवाद के विरुद्ध संघर्ष में तो उन्हें बाहरी ताकतों से लड़ना था, लेकिन अस्पृश्यता से संघर्ष में उनकी लड़ाई अपनों से थी। वे कहते थे कि मेरा जीवन अस्पृश्यता उन्मूलन के लिये उसी प्रकार समर्पित है, जैसे अन्य बहुत सी बातों के लिये है।
- गांधी ने अस्पृश्यता को समाज का कलंक तथा घातक रोग माना, जो न केवल स्वयं को अपितु संपूर्ण समाज को नष्ट कर देता है। गांधी का कहना था कि इसी अस्पृश्यता के कारण हिंदू समाज पर कई संकट आए।
- वे कुछ हिंदुओं के इस तर्क से भी सहमत नहीं थे कि अस्पृश्यता हिंदू धर्म का एक अंग है, जिसे समाप्त करना संभव नहीं है।
सतत कृषि
- महात्मा गांधी मानव और प्रकृति के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध मानते थे। वह आत्मनिर्भर कृषि में विश्वास करते थे। लेकिन आज हमारा कृषि क्षेत्र संकट में है। हमारे पास 70 मिलियन टन खाद्यान्न का भंडार है, लेकिन कीमत इतनी अधिक है कि हम इसका निर्यात नहीं कर सकते।
- इस तथ्य के बावजूद कि हमारे देश में बहुत सारे कुपोषित लोग हैं, हम लागत बढ़ाने और न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने के लिये बाध्य हैं। भारत में कम-से-कम 43 से 45 फीसदी कामकाजी आबादी कृषि में संलग्न है और इस क्षेत्र का सकल घरेलू उत्पाद में योगदान 14-16% है। अत: भारतीय कृषि निम्न उत्पादकता से ग्रस्त है।
- विदर्भ के अमरावती ज़िले के सुभाष पालेकर के दिमाग की उपज, ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग पर नीति आयोग द्वारा बहुत ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग (ZBNF) हमारी खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करने और एक स्वस्थ और समृद्ध भारत सुनिश्चित करने में सक्षम है। पारंपरिक भारतीय कृषि प्रणाली में रासायनिक आगतों का कम-से-कम प्रयोग किया जाता है।
वर्तमान में गांधी की प्रासंगिकता
- सांप्रदायिक कट्टरता और आतंकवाद के इस वर्तमान दौर में गांधी तथा उनकी विचारधारा की प्रासंगिकता और बढ़ गई है, क्योंकि उनके सिद्धांतों के अनुसार सांप्रदायिक सद्भावना कायम करने के लिये सभी धर्मों-विचारधारों को साथ लेकर चलना ज़रूरी है।
- आज के दौर में उनके सिद्धांत बेहद ज़रूरी हैं, क्योंकि इससे पहले उनकी इतनी अधिक ज़रूरत कभी महसूस नहीं की गई। लेकिन इसके साथ एक विरोधाभास यह है कि इतना सब होने के बावजूद कोई भी उनके सिद्धांतों का अनुकरण करने के लिये तैयार नहीं है।
- गांधी जी प्रयोगधर्मी व्यक्ति माना जाता है, लेकिन यह प्रयोग केवल बौद्धिक स्तर तक सीमित नहीं था; बल्कि इसे उन्होंने अपने जीवन में भी उतारा, जिसकी कुछ लोग आज के दौर में आलोचना भी करते हैं। लेकिन उनके चिंतन और प्रयोगों में ‘लोग क्या कहेंगे’ जैसे शब्दों का स्थान नहीं था।
- 20वीं शताब्दी के प्रभावशाली लोगों में नेल्सन मंडेला, दलाई लामा, मिखाइल गोर्बाचोव, अल्बर्ट श्वाइत्ज़र, मदर टेरेसा, मार्टिन लूथर किंग (जू.), आंग सान सू की, पोलैंड के लेख वालेसा आदि ऐसे लोग हैं जिन्होंने अपने-अपने देश में गांधी की विचारधारा का उपयोग किया और अहिंसा को अपना हथियार बनाकर अपने इलाकों, देशों में परिवर्तन लाए।
- यह प्रमाण है इस बात का कि गांधी के बाद और भारत के बाहर भी अहिंसा के ज़रिये अन्याय के खिलाफ सफलतापूर्वक लड़ाई लड़ी गई और उसमें विजय भी प्राप्त हुई।
निष्कर्ष
महात्मा गांधी 20वीं शताब्दी के दुनिया के सबसे बड़े राजनीतिक और आध्यात्मिक नेताओं में से एक माने जाते हैं। वे पूरी दुनिया में शांति, प्रेम, अहिंसा, सत्य, ईमानदारी, मौलिक शुद्धता और करुणा तथा इन उपकरणों के सफल प्रयोगकर्त्ता के रूप में याद किये जाते हैं, जिसके बल पर उन्होंने उपनिवेशवादी सरकार के खिलाफ पूरे देश को एकजुट कर आज़ादी की अलख जगाई। आज दुनिया के किसी भी देश में जब कोई शांति मार्च निकलता है या अत्याचार व हिंसा का विरोध किया जाता है या हिंसा का जवाब अहिंसा से दिया जाना हो, तो ऐसे सभी अवसरों पर पूरी दुनिया को गांधी याद आते हैं। अत: यह कहने में अतिशयोक्ति नहीं कि गांधी के विचार, दर्शन तथा सिद्धांत कल भी प्रासंगिक थे, आज भी हैं तथा आने वाले समय में भी रहेंगे।
प्रश्न- न्यू इंडिया के विकास में गांधीवादी दृष्टिकोण का उल्लेख करते हुए वर्तमान में इसकी प्रासंगिकता का मूल्यांकन कीजिये।