रेसिपी फॉर अ लिवेबल प्लेनेट रिपोर्ट: विश्व बैंक
प्रिलिम्स के लिये:कार्बन सीक्वेस्ट्रेशन/पृथक्करण, कृषि के कारण उत्सर्जन, ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन, UNFCCC, कार्बन क्रेडिट, शुद्ध शून्य उत्सर्जन, पर्यावरण पारिस्थितिकी से संबंधित सामान्य मुद्दे, जलवायु परिवर्तन, कृषि के कारण ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन मेन्स के लिये:कृषि के कारण उत्सर्जन, कृषि खाद्य उत्सर्जन का न्यूनीकरण |
स्रोत: वर्ल्ड बैंक
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व बैंक ने एक “रेसिपी फॉर अ लिवेबल प्लेनेट” नामक एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें स्पष्ट किया गया है कि वर्ष 2030 तक कृषि खाद्य उत्सर्जन को आधा करने के साथ ही वर्ष 2050 तक शुद्ध शून्य लक्ष्य प्राप्त करने के लिये 260 बिलियन अमेरिकी डॉलर का वार्षिक निवेश आवश्यक है।
- रिपोर्ट में स्पष्ट किया है कि यह आँकड़ा वर्तमान में कृषि सब्सिडी पर व्यय की जाने वाली राशि का दोगुना है।
रिपोर्ट की मुख्य बातें क्या हैं?
- परिचय:
- "रेसिपी फॉर अ लिवेबल प्लेनेट रिपोर्ट" जलवायु परिवर्तन पर कृषि खाद्य प्रणाली के प्रभाव को कम करने हेतु एक वैश्विक रणनीतिक ढाँचा प्रदान करती है।
- यह रेखांकित करती है कि कैसे विश्व का खाद्य उत्पादन वैश्विक खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए ग्रीनहाउस गैस (GHGs) उत्सर्जन को कम किया जा सकता है।
- कृषि खाद्य प्रणाली सुधार की संभावनाएँ एवं लाभ:
- कमी की संभावना: वैश्विक कृषि खाद्य प्रणाली व्यवहार्य एवं सुलभ उपायों के माध्यम से वैश्विक रूप से GHG उत्सर्जन का लगभग एक तिहाई कम कर सकती है।
- ये उपाय खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के साथ-साथ खाद्य प्रणाली पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम कर सकते है, जिससे सुभेद्य समुदायों की सुरक्षा प्राप्त होगी।
- कमी की संभावना: वैश्विक कृषि खाद्य प्रणाली व्यवहार्य एवं सुलभ उपायों के माध्यम से वैश्विक रूप से GHG उत्सर्जन का लगभग एक तिहाई कम कर सकती है।
- जलवायु परिवर्तन में कृषि खाद्य की भूमिका:
- उत्सर्जन में योगदानः कृषि खाद्य वैश्विक GHG उत्सर्जन में लगभग एक तिहाई का योगदान देते है, जो विश्व की कुल ऊष्मा एवं बिजली उत्सर्जनों से अधिक है।
- उत्सर्जन के मुख्य योगदानकर्त्ता: इनमें से लगभग तीन-चौथाई उत्सर्जन विकासशील देशों से उत्पन्न होता है, जिससे क्षेत्र की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुसार, लक्षित शमन कार्रवाई की आवश्यकता होती है।
- खाद्य मूल्य शृंखला से उत्सर्जन: भूमि उपयोग परिवर्तन सहित संपूर्ण खाद्य मूल्य शृंखला से उत्सर्जन को संबोधित करना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि आधे से अधिक उत्सर्जन कृषि स्तर से परे होते हैं।
रिपोर्ट की मुख्य बातें क्या हैं?
- आर्थिक और पर्यावरणीय लाभ:
- अप्रयुक्त क्षमता: कृषि खाद्य क्षेत्र जलवायु कार्रवाई के लिये महत्त्वपूर्ण, लागत प्रभावी अवसर प्रदान करती है, जिसमें उन्नत भूमि प्रबंधन के माध्यम से वातावरण से कार्बन प्रग्रहण भी शामिल है।
- निवेश पर रिटर्न: वर्ष 2030 तक कृषि खाद्य उत्सर्जन को आधा करने के लिये आवश्यक वित्तीय परिव्यय से पर्याप्त रिटर्न प्राप्त होगा, जो स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण पर लाभकारी प्रभाव के साथ लागत से कहीं अधिक होगा।
- देशों और विश्व स्तर पर कार्रवाई के अवसर:
- उच्च आय वाले देशों की भूमिका: इन देशों को अपनी कृषि खाद्य ऊर्जा माँगों को कम करना चाहिये, वित्तपोषण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के माध्यम से निम्न आय वाले देशों का समर्थन करना चाहिये तथा उच्च उत्सर्जन वाले खाद्य पदार्थों से दूर उपभोक्ता आहार को संशोधित करना चाहिये।
- मध्य-आय वाले देशों की भूमिका: ये देश बेहतर भूमि उपयोग प्रबंधन और कृषि पद्धतियों के माध्यम से महत्त्वपूर्ण उत्सर्जन में कमी ला सकते हैं।
- निम्न आय वाले देशों की भूमिका: उच्च उत्सर्जन वाले बुनियादी ढाँचे के बोझ के बिना सतत् विकास पर ध्यान केंद्रित करना, उत्पादकता और लचीलेपन को बढ़ावा देने के लिये कृषि वानिकी जैसी रणनीतियों का भी लाभ प्राप्त होना चाहिये।
- देश और वैश्विक स्तर पर कार्रवाई:
- निवेश और नीति पहल: कृषि खाद्य शमन में निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ाना, सब्सिडी का पुनर्वितरण करना तथा न्यून उत्सर्जन प्रौद्योगिकियों के उपयोग की नीतियों को लागू करना।
- नवाचार और संस्थागत समर्थन: उत्सर्जन डेटा के लिये डिजिटल प्रौद्योगिकियों का उपयोग करना तथा कृषि खाद्य प्रणाली को बदलने के लिये नई प्रौद्योगिकियों में निवेश करना, जिससे उचित परिवर्तन के लिये समावेशी हितधारक भागीदारी सुनिश्चित हो सके।
रिपोर्ट में भारत से संबंधित मुख्य बिंदु क्या हैं?
- वैश्विक कृषि खाद्य उत्सर्जन में भारत का योगदान:
- रिपोर्ट में भारत को चीन और ब्राज़ील के साथ कुल वार्षिक कृषि खाद्य प्रणाली उत्सर्जन के मामले में शीर्ष 3 देशों में से एक के रूप में पहचान मिली है।
- भारत में लागत प्रभावी शमन क्षमता:
- रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत जैसे देशों में कृषि में लगभग 80% तकनीकी शमन क्षमता अकेले लागत-बचत उपायों को अपनाकर प्राप्त की जा सकती है।
- यह भारत के लिये उत्सर्जन को कम करने के साथ-साथ कृषि उत्पादकता एवं आय में सुधार करने का एक बड़ा अवसर है।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत जैसे देशों में कृषि में लगभग 80% तकनीकी शमन क्षमता अकेले लागत-बचत उपायों को अपनाकर प्राप्त की जा सकती है।
- भारत के लिये प्रमुख शमन विकल्प:
- भारत के लिये प्रमुख शमन विकल्पों में बेहतर पशुधन आहार (हरित धारा, एक एंटी-मिथेनोज़ेनिक चारा) और प्रजनन, उर्वरक प्रबंधन तथा जल सघन फसलों में बेहतर जल प्रबंधन शामिल हैं।
- भारत के कृषि क्षेत्र के लिये सीमांत उपशमन लागत वक्र से पता चलता है कि ये कुछ सबसे अधिक लागत प्रभावी उपाय हैं जिन्हें भारत वर्ष 2030 तक कृषि खाद्य उत्सर्जन में काफी हद तक कमी करने के लिये अपना सकता है।
- भारत को कृषि उत्पादन से मीथेन उत्सर्जन पर अंकुश लगाने की ज़रूरत है।
- धीरे-धीरे सिंचाई करने जैसी पद्धतियों को अपनाने तथा कम मीथेन उत्सर्जित करने वाली फसल किस्मों को वृद्धि करने से उत्सर्जन शमन के अवसर मिलते हैं।
- भारत में भोजन हानि और बर्बादी की दर उच्च है। खाद्य अपशिष्ट सूचकांक रिपोर्ट 2021 के अनुसार, भारतीय परिवार प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष 50 किलोग्राम खाद्य अपशिष्ट उत्पन्न करते हैं।
- भारत में खाद्य हानि और बर्बादी को कम करने के साथ-साथ अन्य उच्च प्रभाव वाले अवसरों से आर्थिक रूप से लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
- भारत के लिये प्रमुख शमन विकल्पों में बेहतर पशुधन आहार (हरित धारा, एक एंटी-मिथेनोज़ेनिक चारा) और प्रजनन, उर्वरक प्रबंधन तथा जल सघन फसलों में बेहतर जल प्रबंधन शामिल हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय समर्थन की आवश्यकता: भारत को अपनी कृषि-खाद्य शमन क्षमता के लिये अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय और तकनीकी सहायता की आवश्यकता होगी।
आगे की राह
- निवेश: सरकारों और व्यवसायों को मिश्रित वित्त, कॉर्पोरेट जवाबदेही तथा विस्तारित कार्बन बाज़ारों के माध्यम से कृषि खाद्य में निजी जलवायु निवेश को जोखिम से मुक्त करना चाहिये।
- प्रोत्साहन: नीति निर्माताओं को कृषि खाद्य प्रणाली परिवर्तन जैसे हानिकारक सब्सिडी का पुन: उपयोग करना और नीति सुसंगतता सुनिश्चित करने में तेज़ी लाने के लिये उपायों को लागू करना चाहिये।
- जानकारी: डिजिटल प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके GHG निगरानी, रिपोर्टिंग और सत्यापन (MRV) प्रणालियों में सुधार करने से क्षेत्र के लिये जलवायु वित्त को उपलब्ध कराने में सहायता मिल सकती है।
- नवाचार: लागत प्रभावी शमन प्रौद्योगिकियों का विस्तार और अनुसंधान एवं विकास निवेश में वृद्धि से कृषि खाद्य प्रणालियों के भविष्य में परिवर्तन को बढ़ावा मिल सकता है।
- संस्थाएँ: अंतर्राष्ट्रीय ढाँचे, राष्ट्रीय नीतियों और उपराष्ट्रीय पहलों को समन्वित तरीके से कृषि खाद्य शमन के अवसरों को सुविधाजनक बनाना चाहिये।
- समावेशन: परिवर्तन को हितधारक जुड़ाव, लाभ साझाकरण और सामाजिक सशक्तीकरण के माध्यम से छोटे किसानों जैसे कमज़ोर समूहों की रक्षा करके एक उचित परिवर्तन सुनिश्चित करना चाहिये।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: विश्व स्तर पर शीर्ष उत्सर्जकों में से एक होने की स्थिति को देखते हुए, भारत कृषि खाद्य प्रणाली से अपने उत्सर्जन को कैसे कम कर सकता है? स्थिरता और खाद्य सुरक्षा के लिये संभावित रणनीतियों तथा उनके निहितार्थों पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. कभी-कभी सामाचारों में आने वाली 'गाडगिल समिति रिपोर्ट' और 'कस्तूरीरंगन समिति रिपोर्ट' संबंधित हैं: (2016) (a) संवैधानिक सुधारों से उत्तर: (d) प्रश्न. निम्नलिखित कथनाें पर विचार कीजिये- (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (c) |
कोविड-19 वैक्सीन के दुष्प्रभाव
प्रिलिम्स के लिये:वैक्सीन के प्रकार, वायरस स्ट्रेन और उत्परिवर्तन, कोविशील्ड और कोवैक्सीन, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO)। मेन्स के लिये:वायरल संक्रमण के इलाज में वैक्सीन प्रणाली, वैक्सीन के प्रकार। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन के साइड-इफेक्ट्स को लेकर काफी विवाद उत्पन्न हुआ है, इसे भारत में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) द्वारा "कोविशील्ड" ब्रांड नाम के तहत बेचा जाता है।
- इसे थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम (TTS) के साथ थ्रोम्बोसिस नामक एक दुर्लभ प्रतिकूल दुष्प्रभाव से जोड़ा जा रहा है।
थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम क्या है?
- परिचय:
- TTS को वैक्सीन-प्रेरित प्रोथ्रोम्बोटिक इम्यून थ्रोम्बोसाइटोपेनिया (VIPIT) अथवा वैक्सीन-प्रेरित इम्यून थ्रोम्बोटिक थ्रोम्बोसाइटोपेनिया (VITT) भी कहा जाता है।
- यह दुर्लभ सिंड्रोम उन व्यक्तियों में देखा गया है जिन्होंने एडेनोवायरल वेक्टर का उपयोग करके कोविड-19 वैक्सीन प्राप्त की हैं।
- आम तौर पर यह माना जाता है कि यह इन वैक्सीन में प्रयुक्त एडेनोवायरस, वेक्टर द्वारा उत्पन्न प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के कारण होता है।
- एडेनोवायरस गैर-आच्छादित, डबल-स्ट्रैंडेड DNA वायरस हैं जो जन्मजात और अनुकूली प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं को प्रेरित करने की क्षमता के कारण स्तनधारी को टारगेट एंटीजन पहुँचाने के लिये उत्कृष्ट वेक्टर माने जाते हैं।
- लक्षण:
- TTS कई लक्षणों से जुड़ा है, जिनमें साँस लेने में परेशानी, सीने या अंग में दर्द, इंजेक्शन स्थल के बाहर छोटे लाल धब्बे अथवा चोट जैसी त्वचा, सिरदर्द, शरीर के अंगों में सुन्नता आदि शामिल हैं।
- थ्रोम्बोसिस रक्त के थक्कों के निर्माण को संदर्भित करता है, जबकि थ्रोम्बोसाइटोपेनिया को कम प्लेटलेट काउंट की विशेषता है।
- TTS कई लक्षणों से जुड़ा है, जिनमें साँस लेने में परेशानी, सीने या अंग में दर्द, इंजेक्शन स्थल के बाहर छोटे लाल धब्बे अथवा चोट जैसी त्वचा, सिरदर्द, शरीर के अंगों में सुन्नता आदि शामिल हैं।
- जोखिम-लाभ विश्लेषण:
- जोखिम:
- TTS आमतौर पर लगभग तीस वर्ष की आयु की स्वस्थ युवा महिलाओं में प्रति 100,000 में लगभग एक से दो मिलते हैं।
- सामान्य जनसंख्या स्तर पर, प्रति दस लाख टीकाकरण वाले लोगों पर केवल दो से तीन मामले होने का अनुमान है।
- TTS का वार्षिक जोखिम अभी भी सड़क दुर्घटना में मरने के वार्षिक जोखिम से बहुत कम है।
- TTS आमतौर पर लगभग तीस वर्ष की आयु की स्वस्थ युवा महिलाओं में प्रति 100,000 में लगभग एक से दो मिलते हैं।
- लाभ:
- विभिन्न अध्ययनों में कोविशील्ड ने गंभीर कोविड-19 संक्रमण के विरुद्ध 80% से अधिक सुरक्षा तथा कोविड के डेल्टा वेरियंट लहर के समय भी संक्रमणों से होने वाली मृत्यु के विरुद्ध 90% से अधिक सुरक्षित पाया गया है।
- कोविड-19 होने की 50% संभावना तथा मृत्यु के 0.1% जोखिम के लिये, यह टीका एक महत्त्वपूर्ण प्रतिरक्षा प्रदान करता है, जो जोखिमों से कहीं अधिक है।
- इसने न केवल बीमारी की गंभीरता को कम किया है बल्कि रोगी की तात्कालिक पीड़ा और स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों पर दबाव को कम किया है, तथा दीर्घकालिक विकलांगता एवं समय से पूर्व दिल के दौरे के जोखिम को भी कम किया है।
- इस जोखिम को महामारी के आरंभ में ही, वैक्सीन उपलब्ध होने से पहले ही नोट कर लिया गया था, और टीकाकरण से इस जोखिम को कम होते देखा गया है।
- जोखिम:
- कोविड-19 वैक्सीन के अन्य दुर्लभ दुष्प्रभाव:
- 99 मिलियन लोगों पर किये गए एक अध्ययन में पाया गया कि कोविड-19 के लिये mRNA और ChAdOX1 (या कोविशील्ड) वैक्सीन प्राप्त करने के बाद गुइलेन बैरे सिंड्रोम, मायोकार्डिटिस, पेरीकार्डिटिस और सेरेब्रल वेनस साइनस थ्रोम्बोसिस (CVST) के मामले अपेक्षा से कम से कम 1.5 गुना अधिक थे।.
- अध्ययन ने पुष्टि की कि इन बीमारियों को कोविड-19 टीकाकरण के बाद 'दुर्लभ' दुष्प्रभावों के रूप में वर्गीकृत किया गया था।
- CVST, “सेरेब्रल वेनस साइनस थ्रोम्बोसिस” को संदर्भित करता है, जो मस्तिष्क में रक्त के थक्कों की उपस्थिति है।
- गुइलेन-बैरे सिंड्रोम एक प्रतिरक्षा प्रणाली विकार है जो तंत्रिकाओं पर आक्रमण करता है, जिससे मांसपेशियों को नुकसान होता है और लंबे समय तक उपचार की आवश्यकता होती है।
- मायोकार्डिटिस और पेरीकार्डिटिस हृदय के ऊतकों के सूजन से जुड़ी स्थितियां हैं।
भारत में कोविड-19 टीकाकरण से संबंधित नियम और चिंताएँ क्या थीं?
- भारत में कोविड-19 वैक्सीन से संबंधित नियम:
- भारत ने अपनी लगभग 80% टीकाकृत आबादी का पुनः टीकाकरण करने के लिये लगभग 1.75 बिलियन मात्रा का उपयोग किया है।
- चरण-3 परीक्षणों को पूरा किये बिना ही कोविड-19 वैक्सीन लगाए गए और निर्माताओं के पास संभावित अल्पकालिक या दीर्घकालिक दुष्प्रभावों या मृत्यु से संबंधित पूर्ण जानकारी नहीं थी।
- जैसे; कोवैक्सीन (भारत बायोटेक द्वारा) के लिये चरण 3 प्रोटोकॉल को चरण 2 के पूरा होने से पूर्व ही अनुमोदित किया गया था और अंतिम वैक्सीन उम्मीदवार को चरण 2 परीक्षण डेटा पर विचार किये बिना ही चुना गया था।
- कॉर्बेवैक्स वैक्सीन (बायोलॉजिकल E द्वारा) को 12-14 वर्ष के बच्चों के टीकाकरण के लिये ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) से आपातकालीन उपयोग अनुमति प्राप्त हुई।
- कोविड-19 वैक्सीन से संबंधित चिंताएँ:
- मार्च 2021 में कई यूरोपीय देशों ने रक्त के थक्के जमने के कथित मामलों के कारण एस्ट्राज़ेनेका के वैक्सीन के उपयोग को अस्थायी रूप से रोक दिया था।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा कि कोविशील्ड और वैक्सज़ेवरिया के टीकाकरण के बाद भी कुछ मामलों में TTS के मामले मिल रहे थे, लेकिन इस बात पर ज़ोर दिया कि उपलब्ध आँकड़ों के आधार पर जोखिम काफी कम है।
- UK सहित कई यूरोपीय देशों, USA और ऑस्ट्रेलिया ने भी TTS रिपोर्ट के कारण कोविशील्ड के उपयोग को रोक दिया गया, हालाँकि इसके द्वारा होने वाले लाभ जोखिमों से अधिक थे।
- उनके पास पर्याप्त mRNA (जैसे फाइज़र-बायोएनटेक और मॉडर्ना कोविड-19) वैक्सीन उपलब्ध थे, जो अधिक इम्युनोजेनिक थे तथा TTS से जुड़े नहीं थे, हालाँकि इस कारण गैर-घातक मायोकार्डिटिस के मामले देखे गए थे।
- वर्ष 2023 में WHO ने थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम (TTS) के साथ थ्रोम्बोसिस के वर्गीकरण में वैक्सीन-प्रेरित प्रतिरक्षा थ्रोम्बोटिक थ्रोम्बोसाइटोपेनिया (VITT) को शामिल किया गया।
- भारत का रुख:
- भारत में कोविड-19 वैक्सीन शुरू होने से पूर्व, भारत सरकार ने जनवरी 2021 में एक तथ्य पत्र जारी किया था जिसमें कम प्लेटलेट्स काउंट वाले व्यक्तियों के लिये कोविशील्ड के उपयोग की चेतावनी दी गई थी।
- मई 2021 में भारत सरकार ने प्रति मिलियन मात्रा पर 0.61 मामलों की दर के साथ, कोविशील्ड वैक्सीन से संबंधित रक्त के थक्कों के 26 संभावित मामलों की सूचना दी।
- सरकार द्वारा स्पष्ट किया गया है, कि इससे जोखिम न्यूनतम है और साथ ही यह कोविशील्ड के सकारात्मक लाभ का जोखिम पार्श्वचित्र भी है। हालाँकि स्वदेशी वैक्सीन, कोवैक्सिन (भारत बायोटेक द्वारा) के लिये ऐसी कोई घटना रिपोर्ट नहीं की गई।
- स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि यूरोपीय मूल के लोगों की तुलना में दक्षिण एवं दक्षिण पूर्व एशियाई मूल के व्यक्तियों में रक्त के थक्के जमने का जोखिम काफी कम है।
FLiRT-कोविड-19 का एक नवीन संस्करण:
- यह ओमिक्रॉन JN.1 का एक नवीन संस्करण है।
- यह अमेरिका में पाया गया है और तीव्रता से फैल रहा है।
- यह वैरिएंट स्पाइक (S) प्रोटीन संरचना में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन और मौजूदा वैक्सीन के प्रति प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि दर्शाता है।
- इसके लक्षण ओमिक्रॉन के समान हैं, जिनमें गले में खराश, खाँसी, कंजेशन, थकान, सिरदर्द, मांसपेशियों या शरीर में दर्द, नाक बहना, बुखार या ठंड लगना, गंध और स्वाद की हानि तथा गंभीर परिस्थितियों में साँस फूलना शामिल हैं।
- यह वैरिएंट अत्यधिक संक्रामक है और श्वसन बूंदों या संक्रमित सतहों को छूने से फैल सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. कोविड-19 विश्वमहामारी को रोकने के लिये बनाई जा रही वैक्सीनों के प्रसंग में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2022)
उपर्युक्त कथनों में कौन-से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) |
LPG के मूल्य में वृद्धि का सामाजिक-पारिस्थितिक प्रभाव
प्रिलिम्स के लिये:प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY), तरलीकृत पेट्रोलियम गैस, बायोगैस, नवीकरणीय ऊर्जा, PAHAL योजना, प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना मेन्स के लिये:काष्ठ ईंधन पर निर्भरता के सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभाव, LPG के प्रयोग को बढ़ावा देने हेतु पहल। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा मे क्यों?
हाल ही में किये गए एक अध्ययन में पाया गया है कि तरलीकृत पेट्रोलियम गैस (Liquefied Petroleum Gas - LPG) के प्रयोग को बढ़ावा देने के सरकार के प्रयासों के बावज़ूद पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी में बड़ी संख्या में परिवार ईंधन के रूप में लकड़ी के प्रयोग पर निर्भर हैं।
- यह LPG की अत्यधिक कीमतों और काष्ठ ईंधन पर निर्भरता के पर्यावरणीय प्रभाव को उजागर करता है, सतत् विकास लक्ष्यों की पूर्ति संबंधी चिंताजनक प्रगति पर पुनर्विचार करने के लिये बाध्य करता है, साथ ही, सुलभ विकल्पों की उपलब्धता सुनिश्चित करने पर भी ज़ोर देता है।
अध्ययन के प्रमुख बिंदु क्या हैं?
- काष्ठ ईंधन के लिये वनों पर निर्भरता: जलपाईगुड़ी में स्थानीय समुदाय खाना पकाने के वैकल्पिक ईंधन तक सीमित पहुँच के कारण काष्ठ ईंधन के लिये जंगलों पर बहुत अधिक निर्भर हैं।
- आर्थिक बाधाएँ: 1500 रुपए से अधिक कीमत वाले LPG सिलेंडर की कीमत कई परिवारों के लिये काफी अधिक है, खासकर गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों के लिये।
- सरकारी पहल: प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY) जैसी सरकारी योजनाओं ने प्रारंभिक समय में काष्ठ ईंधन से प्रयोग को LPG में स्थानांतरित करने की सुविधा प्रदान की, किंतु इसके बाद LPG की कीमतों में वृद्धि ने एक बड़ी चुनौती उत्पन्न की।
- ग्रामीण क्षेत्रों में LPG की पहुँच और वितरण बढ़ाने के प्रयासों के बावज़ूद, कई परिवार इसकी उच्च कीमत के कारण अपने सिलेंडर को नियमित रूप से रिफिल नहीं करा पाते हैं।
- पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव: काष्ठ ईंधन पर निर्भरता के कारण वनों के क्षरण में वृद्धि होती है, साथ ही यह मानव-वन्यजीव संघर्ष, विशेषकर हाथियों के साथ मुठभेड़ का जोखिम भी बढ़ाती है।
- काष्ठ ईंधन का प्रयोग में लाया जाना वन पारितंत्र, वन्यजीव आवास और स्थानीय आजीविका को जोखिम में डालता है।
- संधारणीय विकल्प: पश्चिम बंगाल वन विभाग और संयुक्त वन प्रबंधन समितियों के साथ सहयोगात्मक प्रयासों का उद्देश्य सतत् वन प्रबंधन प्रथाओं को बढ़ावा देना है।
- इन पहलों में गाँवों में ईंधन के लिये वृक्षारोपण करना, खाना पकाने के लिये उर्जादक्ष स्टोव के उपयोग को बढ़ावा देना, चाय बागानों में छायादार वृक्षों के घनत्व को बढ़ाना तथा प्रशासन के लिये बहु-हितधारक योजनाओं को बढ़ावा देना शामिल है।
- स्थानीय रूप से स्वीकार्य समाधान: वनों, वन्य जीवन तथा आजीविका को सुरक्षित करने के लिये, काष्ठ ईंधन के लिये स्थानीय रूप से स्वीकार्य और स्थायी विकल्प विकसित करना अनिवार्य है।
- खाना पकाने के लिये वैकल्पिक ईंधन तथा वन संरक्षण प्रयासों की सफलता के लिये सामुदायिक भागीदारी तथा हितधारकों के साथ जुड़ाव महत्त्वपूर्ण है।
क्या सरकार ने LPG के उपयोग पर ज़ोर दिया है?
- भारत सरकार ने ग्रामीण परिवारों में LPG का प्रयोग बढ़ाने के प्रयास किये हैं:
- दूरदराज़ के क्षेत्रों में LPG वितरण का विस्तार करने के लिये भारत सरकार ने वर्ष 2009 में राजीव गांधी ग्रामीण LPG वितरक योजना शुरू की।
- वर्ष 2015 में 'पहल' योजना के तहत LPG के लिये प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण की शुरुआत की गई।
- वर्ष 2016 में सीधे होम-रिफिल डिलीवरी और 'गिव इट अप' कार्यक्रम लागू किया गया।
- गरीबी रेखा से नीचे रह रहे 80 मिलियन परिवारों में LPG कनेक्शन स्थापित करने के लिये वर्ष 2016 में प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY) की शुरुआत की गई।
- यह योजना प्रत्येक 14.2 किलोग्राम सिलेंडर के लिये 200 रुपए की सब्सिडी भी प्रदान करती है, जो अक्तूबर 2023 में बढ़कर 300 रुपए हो गई।
- हालाँकि, इन प्रयासों के बावज़ूद भारत में LPG की कीमतें कथित तौर पर 2022 में 54 देशों में सबसे अधिक, लगभग ₹300/लीटर थीं।
नोट:
- भारत में LPG, पेट्रोल और डीज़ल की कीमतें विश्व में सर्वाधिक हैं। इसके मँहगे होने में बाह्य कारक और वैश्विक स्तर पर ऊँची कीमतें शामिल हैं, परंतु क्रय शक्ति तथा सामर्थ्य में अंतर के कारण भारत में वास्तविक प्रभाव अधिक है।
- क्रय शक्ति समता (PPP) डॉलर का उपयोग करते हुए, भारत वैश्विक स्तर पर पेट्रोल की कीमतों के मामले में सूडान और लाओस के बाद तीसरे स्थान पर है।
- भारत में LPG की कीमतें विश्व में सबसे ज़्यादा हैं। भारत में डीज़ल की कीमतें वैश्विक स्तर पर 8वीं सर्वाधिक कीमतें हैं।
- ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद द्वारा आयोजित वर्ष 2014-2015 ACCESS सर्वेक्षण के डेटा में पाया गया कि LPG की लागत ग्रामीण गरीब परिवारों में इसे अपनाने तथा इसके निरंतर उपयोग में सबसे बड़ी बाधा है।
- इस प्रकार, 750 मिलियन भारतीय हर दिन खाना पकाने के लिये ईंधन (लकड़ी, गोबर, कृषि अवशेष, कोयला और लकड़ी का कोयला) का उपयोग करते हैं।
- इस प्रकार के खाना पकाने वाले ईंधन असंख्य स्वास्थ्य खतरों एवं सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभावों से जुड़े हैं।
भारत में LPG की ऊँची कीमतें किस कारण से बढ़ रही हैं?
- आयात पर निर्भरता:
- भारत LPG के लिये आयात पर अत्यधिक निर्भर है, इसकी 60% से अधिक ज़रूरतें आयात से पूर्ण होती हैं।
- यह आयात निर्भरता देश में LPG की मूल्य निर्धारण गतिशीलता में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है।
- भारत में LPG की कीमतें प्रोपेन और ब्यूटेन के औसत सऊदी अनुबंध मूल्य (CP) द्वारा प्रभावित होती हैं।
- LPG गैसों का मिश्रण है, जिसमें ब्यूटेन और प्रोपेन मुख्य होते हैं, इसमें ब्यूटेन का प्रतिशत सीमित होता है।
- CP, LPG व्यापार के लिये सऊदी अरामको(Aramco) द्वारा निर्धारित अंतर्राष्ट्रीय मूल्य है।
- औसत सऊदी CP वित्त वर्ष 20 में USD 454 प्रतिटन से बढ़कर वित्त वर्ष 2023 में USD 710 हो गया, जिससे LPG की कीमतों में बढ़ोतरी हुई।
- विश्लेषकों का कहना है कि इस वृद्धि का कारण एशियाई बाज़ारों, विशेषकर पेट्रोकेमिकल, जहाँ प्रोपेन एक महत्त्वपूर्ण फीडस्टॉक के रूप में कार्य करता है, की बेहतर माँग है।
- आयात गतिकी:
- अप्रैल-सितंबर 2022 में भारत की कुल खपत 13.8 मिलियन टन में से 8.7 मिलियन टन LPG का आयात आयातित LPG पर उसकी निर्भरता को रेखांकित करता है।
- भारत में LPG का मूल्य निर्धारण फॉर्मूला वैश्विक बाज़ार के रुझान पर निर्भर है, खासकर मध्य पूर्व में, जो भारत का सबसे बड़ा LPG आपूर्तिकर्त्ता है।
- उपभोक्ताओं पर प्रभाव:
- मार्च 2023 में प्रति सिलेंडर 50 रुपए की हालिया बढ़ोतरी से दिल्ली में 14.2 किलोग्राम भार वाले घरेलू LPG सिलेंडर की कीमत में 4.75% की वृद्धि हुई है।
- करों और डीलर कमीशन का सिलेंडर की खुदरा कीमत में केवल 11% ही योगदान होता है, जिसमें लगभग 90% LPG की लागत के लिये ज़िम्मेदार होता है, इसका मुख्य कारण पेट्रोल व डीज़ल की कीमतें न होकर, करों में बढ़ोतरी है।
काष्ठ ईंधन पर निर्भरता कम करने के संभावित समाधान क्या हैं?
- नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देना: सौर, पवन और जल विद्युत जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को अपनाने को प्रोत्साहित करने से काष्ठ ईंधन पर निर्भरता कम करने में सहायता मिल सकती है।
- कई देशों ने नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देने के लिये फीड-इन टैरिफ, टैक्स क्रेडिट और सब्सिडी जैसी नीतियाँ एवं प्रोत्साहन लागू किये हैं।
- उन्नत कुकस्टोव: पारंपरिक स्टोवों के प्रयोग से अत्यधिक ऊर्जा हानि होती है। काष्ठ ईंधन को अधिक कुशलता से जलाने वाले उन्नत कुकस्टोव (ICS) वितरित करने से इनकी खपत में काफी कमी आ सकती है।
- उदाहरण के लिये, नेपाल में परियोजनाओं से पता चला है कि ICS का उपयोग काष्ठ ईंधन की ज़रूरतों को 50% तक कम कर सकता है।
- ग्लोबल अलायंस फॉर क्लीन कुकस्टोव नामक एक सार्वजनिक-निजी भागीदारी ने वर्ष 2010 में अपनी स्थापना के बाद से विकासशील देशों में 80 मिलियन से अधिक बेहतर और कुशल कुकस्टोव वितरित करने के लिये कार्य किया है।
- वैकल्पिक ईंधन: कृषि अपशिष्ट से बने बायोगैस, पेलेट या ब्रिकेट जैसे वैकल्पिक ईंधन के उपयोग को बढ़ावा देने से काष्ठ ईंधन की मांग कम हो सकती है और अधिक सतत् ऊर्जा स्रोतों का उपयोग किया जा सकता है।
- सतत् वन प्रबंधन प्रथाएँ: सतत् वन प्रबंधन प्रथाएँ सुनिश्चित करने से काष्ठ ईंधन की निकासी और वन पुनर्जनन के बीच संतुलन बनाए रखने में सहायता मिल सकती है, जिससे काष्ठ ईंधन की खपत के पर्यावरणीय प्रभाव को कम किया जा सकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. काष्ठ ईंधन पर निर्भरता के पर्यावरणीय और सामाजिक परिणाम भारत में LPG की उच्च कीमतें बढ़ाने वाले कारकों के साथ कैसे मेल खाते हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत की जैव-ईंधन की राष्ट्रीय नीति के अनुसार, जैव-ईंधन के उत्पादन के लिये निम्नलिखित में से किनका उपयोग कच्चे माल के रूप में हो सकता है? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये- (a) केवल 1, 2, 5 और 6 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. “वहनीय (एफोर्डेबल), विश्वसनीय, धारणीय तथा आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच संधारणीय (सस्टेनेबल) विकास लक्ष्यों (एस.डी.जी.) को प्राप्त करने के लिये अनिवार्य हैं।” भारत में इस संबंध में हुई प्रगति पर टिप्पणी कीजिये। (2018) |
रुपए की मज़बूती
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय रुपए का मूल्यह्रास, REER, NEER, मुद्रा मूल्यह्रास, मुद्रास्फीति, मूल्यह्रास बनाम अवमूल्यन, अधिमूल्यन बनाम मूल्यह्रास मेन्स के लिये:अर्थव्यवस्था पर भारतीय रुपए के मूल्यह्रास का प्रभाव, भारतीय रुपए की मज़बूती और कमज़ोरी को प्रभावित करने वाले कारक |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
पिछले 10 वर्षों में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया लगभग 27.6% कमज़ोर हुआ है।
- प्रमुख वैश्विक मुद्राओं के मुकाबले इसकी विनिमय दर पर विचार करने पर मुद्रा को वास्तविक मूल्य प्राप्त हुआ है।
भारतीय रुपए की दशकीय यात्रा कैसी है?
- वर्ष 2004 से 2014 तक अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 44.37 रुपए से गिरकर 60.34 रुपए (26.5%) हो गया।
- वर्ष 2014 से 2024 के बीच अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 60.34 रुपए से गिरकर 83.38 रुपए (27.6%) हो गया है।
- मुद्रा का अधिमूल्यन और मूल्यह्रास विदेशी मुद्रा बाज़ार में अन्य मुद्राओं के सापेक्ष मुद्रा के मूल्य में परिवर्तन को संदर्भित करता है।
- वर्ष 2004 और 2024 के बीच, 40-मुद्रा बास्केट NEER के अनुसार रुपए में 32.2% (133.77 से 90.76 तक) की गिरावट आई तथा 6-मुद्रा बास्केट NEER के अनुसार 40.2% (139.77 से 83.65 तक) की गिरावट आई।
- अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपए की औसत विनिमय दर 45.7% गिरकर 44.9 रुपए से 82.8 रुपए हो गई।
- इसलिये, वर्ष 2004 और 2024 के बीच, केवल अमेरिकी डॉलर के मुकाबले इसके मूल्यह्रास की तुलना में, भारत के प्रमुख व्यापारिक साझेदारों की मुद्राओं के मुकाबले रुपए में थोड़ी गिरावट आई है।
- इसके अलावा 40-मुद्रा और 6-मुद्रा बास्केट दोनों के लिये रुपए का व्यापार-भारित REER पिछले 20 वर्षों में बढ़ा है, जो दर्शाता है कि वर्ष 2004-05 तथा वर्ष 2023-24 के बीच रुपया मज़बूत हुआ है।
- समय के साथ रुपया वास्तविक रूप से मज़बूत हुआ है, जबकि पिछले 10 वर्षों में अधिकांश समय यह 100 या उससे ऊपर रहा है।
विनिमय दर क्या है?
- परिचय:
- विनिमय दर ,वह दर है जिस पर एक मुद्रा का विनिमय दूसरी मुद्रा से किया जा सकता है। यह किसी अन्य मुद्रा के संदर्भ में एक मुद्रा के मूल्य को दर्शाता है।
- विनिमय दरों को आमतौर पर एक मुद्रा की दूसरी मुद्रा की एक इकाई खरीदने के लिये आवश्यक राशि के रूप में व्यक्त किया जाता है।
- प्रकार:
- निश्चित विनिमय दर: सरकारें अथवा केंद्रीय बैंक अन्य मुद्राओं के संबंध में अपनी मुद्रा का मूल्य निर्धारित करते हैं और विदेशी मुद्रा बाज़ारों में अपनी मुद्रा खरीद या बेचकर उस मूल्य को बनाए रखते हैं।
- लचीली विनिमय दर: किसी मुद्रा का मूल्य आपूर्ति और मांग के आधार पर विदेशी मुद्रा बाज़ार द्वारा निर्धारित किया जाता है। अधिकांश प्रमुख मुद्राएँ इसी प्रणाली के अंतर्गत संचालित होती हैं।
- प्रबंधित विनिमय दर: निश्चित और लचीली विनिमय दरों का मिश्रण जहाँ सरकारें अपनी मुद्रा के मूल्य को स्थिर करने के लिये कभी-कभी हस्तक्षेप करती हैं।
- विनिमय दर को प्रभावित करने वाले कारक:
- ब्याज दरें: किसी देश में ऊँची ब्याज दरें विदेशी निवेश को आकर्षित करती हैं, जिससे उस देश की मुद्रा की मांग बढ़ती है और उसकी विनिमय दर मज़बूत होती है।
- मुद्रास्फीति: यदि किसी देश में उसके व्यापारिक साझेदारों की तुलना में मुद्रास्फीति अधिक है, तो उसकी मुद्रा कमज़ोर हो जाती है क्योंकि उसकी क्रय शक्ति कम हो जाती है।
- आर्थिक विकास: एक मज़बूत और बढ़ती अर्थव्यवस्था किसी देश की मुद्रा में विश्वास को बढ़ावा देती है, जिससे विनिमय दर मज़बूत होती है।
- राजनीतिक स्थिरता: राजनीतिक अस्थिरता विदेशी निवेश को रोक सकती है और देश की मुद्रा को कमज़ोर कर सकती है।
- आपूर्ति एवं मांग: आपूर्ति एवं मांग का मूलभूत सिद्धांत एक प्रमुख भूमिका निभाता है। यदि अधिक लोग किसी विशेष मुद्रा (उच्च मांग) को खरीदना चाहते हैं, तो इसकी विनिमय दर मज़बूत हो जाती है।
प्रभावी विनिमय दर (EER) क्या है?
- परिचय:
- किसी मुद्रा की प्रभावी विनिमय दर (EER) अन्य मुद्राओं के मुकाबले उसकी विनिमय दरों का भारित औसत है, जिसे मुद्रास्फीति एवं व्यापार प्रतिस्पर्द्धात्मकता हेतु समायोजित किया जाता है।
- मुद्रा भार भारत के कुल विदेशी व्यापार में अलग-अलग देशों की हिस्सेदारी से प्राप्त होता है।
- मुद्रा की शक्ति पर प्रभाव:
- किसी मुद्रा की मज़बूती या कमज़ोरी सभी व्यापारिक साझेदारों की मुद्रा के साथ उस मुद्रा की विनिमय दर पर निर्भर करती है।
- भारत के लिये, रुपए की मज़बूती या कमज़ोरी, न केवल अमेरिकी डॉलर, बल्कि अन्य वैश्विक मुद्राओं के साथ इसकी विनिमय दर पर भी निर्भर करती है।
- इस मामले में, यह देश के सबसे महत्त्वपूर्ण व्यापारिक भागीदारों की मुद्राओं की एक टोकरी के विरुद्ध होगा, जिसे रुपए की "प्रभावी विनिमय दर" अथवा EER कहा जाता है।
- प्रभावी विनिमय दर के प्रकार (EER):
- नाममात्र प्रभावी विनिमय दर (NEER): NEER घरेलू मुद्रा और प्रमुख व्यापारिक साझेदारों की मुद्राओं के बीच द्विपक्षीय विनिमय दरों का एक सरल औसत है, जो संबंधित व्यापार शेयरों द्वारा भारित होता है।
- NEER मुद्रास्फीति को समायोजित किये बिना अन्य मुद्राओं की एक टोकरी के सापेक्ष मुद्रा की समग्र मज़बूती या कमज़ोरी को मापता है।
- NEER सूचकांक 100 के आधार मूल्य और वर्ष 2015-16 के आधार मूल्य के संदर्भ में हैं।
- भारतीय रिज़र्व बैंक ने मुद्राओं की 2 अलग-अलग टोकरी के मुकाबले रुपए के NEER सूचकांक का निर्माण किया है:
- 6 मुद्रा टोकरी: यह एक व्यापार-भारित औसत दर है जिस पर रुपया मूल मुद्रा टोकरी के साथ विनिमय योग्य होता है, जिसमें अमेरिकी डॉलर, यूरो, चीनी युआन, ब्रिटिश पाउंड, जापानी येन और हाॅन्गकाॅन्ग डॉलर शामिल होते हैं।
- 40 मुद्राओं की टोकरी: इसमें देशों की 40 मुद्राओं की एक बड़ी टोकरी शामिल है जो भारत के वार्षिक व्यापार प्रवाह का लगभग 88% हिस्सा है।
- वास्तविक प्रभावी विनिमय दर (REER):
- REER घरेलू अर्थव्यवस्था और उसके व्यापारिक भागीदारों के बीच मुद्रास्फीति दरों में अंतर के लिये NEER को समायोजित करता है। यह वस्तुओं और सेवाओं के सापेक्ष मूल्य स्तरों में परिवर्तन को दर्शाता है।
- REER मूल्य स्तरों में बदलावों को ध्यान में रखते हुए किसी मुद्रा की व्यापार प्रतिस्पर्धात्मकता का अधिक सटीक माप प्रदान करता है।
- REER की गणना घरेलू अर्थव्यवस्था के लिये NEER को मूल्य अपस्फीति (जैसे उपभोक्ता मूल्य सूचकांक) द्वारा विभाजित करके तथा 100 से गुणा करके की जाती है।
- नाममात्र प्रभावी विनिमय दर (NEER): NEER घरेलू मुद्रा और प्रमुख व्यापारिक साझेदारों की मुद्राओं के बीच द्विपक्षीय विनिमय दरों का एक सरल औसत है, जो संबंधित व्यापार शेयरों द्वारा भारित होता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था पर मुद्रा अवमूल्यन के क्या प्रभाव हैं?
- सकारात्मक प्रभाव:
- निर्यात को बढ़ावा: विदेशी खरीदारों के लिये भारतीय निर्यात किफायती हो गया है, अतः संभावित रूप से मांग बढ़ रही है तथा निर्यात आय में वृद्धि हो रही है।
- आवक प्रेषण: रुपया कमज़ोर होने से विदेशों में श्रमिकों को रुपए के विदेशी मुद्रा आय में परिवर्तित करने पर अधिक रुपए प्राप्त होंगें।
- इससे भारत में प्रयोज्य आय में वृद्धि हो सकती है।
- नकारात्मक प्रभाव:
- उच्च आयात लागत: तेल और मशीनरी जैसी आवश्यक वस्तुओं सहित आयातित सामान अधिक महँगे हो जाते हैं।
- इससे मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ सकता है, जहाँ वस्तुओं और सेवाओं का सामान्य मूल्य बढ़ जाता है, जिससे सामान्य व्यक्ति की क्रय शक्ति प्रभावित होती है।
- महँगा विदेशी ऋण: यदि भारत ने विदेशी मुद्राओं में पैसा उधार लिया है, तो कमज़ोर रुपए का मतलब है कि ऋणग्राही को ऋण चुकाने के लिये अधिक धनराशि देनी होगी।
- इससे सरकार की वित्तीय स्थिति पर दबाव पड़ सकता है।
- विदेशी निवेश को हतोत्साहन: रुपए के मूल्य में गिरावट को आर्थिक अस्थिरता के संकेत के रूप में देखा जा सकता है, जो संभावित रूप से विदेशी निवेशकों को भारत में निवेश करने से हतोत्साहित कर सकता है।
- उच्च आयात लागत: तेल और मशीनरी जैसी आवश्यक वस्तुओं सहित आयातित सामान अधिक महँगे हो जाते हैं।
मुद्रा का मूल्य ह्रास एवं अवमूल्यन:
लक्षण |
अवमूल्यन |
मूल्य ह्रास |
कारण |
शासन की नीतियाँ |
बाज़ार की शक्तियाँ (माँग एवं आपूर्ति) |
विनिमय दर प्रणाली |
निश्चित |
अनिश्चित |
वैचारिकता |
आर्थिक लाभ के लिये मुद्रा को कमज़ोर करने की जानबूझकर की गई कार्रवाई |
मूल्य में स्वाभाविक गिरावट |
नियंत्रण |
सरकारी नियंत्रण विनिमय दर |
बाज़ार विनिमय दर निर्धारित करता है, |
दृष्टि मेन्स प्रश्न: भारतीय अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति और विनिमय दरों के बीच संबंध का विश्लेषण करें। इस संबंध से उत्पन्न चुनौतियों पर चर्चा करें तथा उन्हें प्रबंधित करने के लिये नीतिगत उपाय सुझाएँ। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारतीय रुपए की गिरावट रोकने के लिये निम्नलिखित में से कौन-सा एक सरकार/भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा किया जाने वाला सर्वाधिक संभावित उपाय नहीं है? (2019) (a) गैर-ज़रूरी वस्तुओं के आयात पर नियंत्रण और निर्यात को प्रोत्साहन प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. विश्व व्यापार में संरक्षणवाद और मुद्रा चालबाज़ियों की हाल की परिघटनाएँ भारत की समष्टि-आर्थिक स्थिरता को किस प्रकार से प्रभावित करेंगी? (2018) |
RBI ने FEMA नियमों को सरल बनाया
स्रोत: बिज़नेस लाइन
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक ने डेरिवेटिव में विदेशी निवेश की सुविधा के लिये विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (FEMA) नियमों को सरल बना दिया है।
- डेरिवेटिव एक प्रकार की वित्तीय सुरक्षा है जो दो या दो से अधिक पक्षों के बीच निर्धारित की जाती है। डेरिवेटिव स्टॉक और बॉण्ड डेरिवेटिव से लेकर आर्थिक संकेतक डेरिवेटिव तक कई रूप ले सकते हैं।
हाल के FEMA विनियम क्या हैं?
- परिचय:
- हालिया संशोधनों का उद्देश्य भारत के भीतर और बाहर दोनों जगह अनुमत डेरिवेटिव में व्यापार के लिये मार्जिन प्रबंधन की सुविधा प्रदान करना है।
- भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा FEMA नियमों में संशोधन के बाद विदेशी निवेशकों के लिये डेरिवेटिव उपकरणों में निवेश करना सरल हो जाएगा।
- वर्तमान तंत्र:
- RBI ब्याज दर डेरिवेटिव (ब्याज दर स्वैप, फॉरवर्ड रेट समझौता, ब्याज दर भविष्य और विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव, विदेशी मुद्रा फॉरवर्ड, मुद्रा स्वैप एवं मुद्रा विकल्प) को अनुमत डेरिवेटिव अनुबंधों के रूप में सूचीबद्ध करता है।
- क्रमानुसार इक्विटी में, चार प्रकार के डेरिवेटिव में वायदा अनुबंध, विकल्प अनुबंध और स्वैप अनुबंध शामिल हैं।
- हालिया परिवर्तन:
- प्राधिकृत डीलर (AD) को ब्याज वाले खातों को स्वीकार करने की अनुमति: भारत में अधिकृत डीलर (AD) भारत के बाहर रहने वाले व्यक्तियों को अनुमत व्युत्पन्न अनुबंधों से भारत में मार्जिन एकत्र करने के लिये भारतीय रुपए या विदेशी मुद्रा में ब्याज आधारित खाते खोलने, रखने और बनाए रखने की अनुमति दे सकता है।
- मौजूदा व्यवस्था में भी RBI ने अनुमत डेरिवेटिव (व्युत्पन्न) अनुबंधों को पिछले प्रावधानों के समान ही रखा है।
- अनिवासियों के लिये लाभ:
- अनिवासी मार्जिन-संबंधित उद्देश्यों के लिये भारत में AD के साथ ब्याज आधारित खाते खोल सकते हैं और उन्हें बनाए रख सकते हैं तथा इन खातों को निष्क्रिय रखने के बजाय उन पर ब्याज अर्जित कर सकते हैं।
- मार्जिन आवश्यकताओं के लिये समर्पित खाता होने से गैर-निवासियों के लिये भारत में अनुमत डेरिवेटिव अनुबंधों से संबंधित अपने मार्जिन दायित्वों तथा फंडों का प्रबंधन करना सरल हो जाता है।
- प्राधिकृत डीलर (AD) को ब्याज वाले खातों को स्वीकार करने की अनुमति: भारत में अधिकृत डीलर (AD) भारत के बाहर रहने वाले व्यक्तियों को अनुमत व्युत्पन्न अनुबंधों से भारत में मार्जिन एकत्र करने के लिये भारतीय रुपए या विदेशी मुद्रा में ब्याज आधारित खाते खोलने, रखने और बनाए रखने की अनुमति दे सकता है।
विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 क्या है?
- भारत में विदेशी मुद्रा लेनदेन के प्रशासन के लिये कानूनी ढाँचा विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 द्वारा प्रदान किया गया है।
- FEMA के तहत, विदेशी मुद्रा से जुड़े सभी लेनदेन को पूंजी या चालू खाता लेनदेन के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- चालू खाता लेन-देन:
- भारत के बाहर किसी निवासी द्वारा किये गए सभी लेन-देन जो उसकी संपत्ति या देनदारियों में बदलाव नहीं करते हैं, चालू खाता लेनदेन हैं।
- उदाहरण: विदेशी व्यापार के संबंध में भुगतान, विदेश यात्रा, शिक्षा आदि के संबंध में व्यय।
- पूंजी खाता लेन-देन:
- इसमें वे लेन-देन शामिल होते हैं जो भारत के निवासी द्वारा किये जाते हैं जैसे कि भारत के बाहर किसी नागरिक की संपत्तियों या देनदारियों का परिवर्तित होना।
- उदाहरण: विदेशी प्रतिभूतियों में निवेश, भारत के बाहर अचल संपत्ति का अधिग्रहण आदि।
- चालू खाता लेन-देन:
- निवासी भारतीय:
- FEMA, 1999 की धारा 2(v) में 'भारत में निवासी व्यक्ति' को इस प्रकार परिभाषित किया गया है।
- पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान 182 दिनों से अधिक समय तक भारत में रहने वाला व्यक्ति।
- भारत में पंजीकृत या निगमित कोई भी व्यक्ति या निकाय।
- FEMA, 1999 की धारा 2(v) में 'भारत में निवासी व्यक्ति' को इस प्रकार परिभाषित किया गया है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत की विदेशी मुद्रा आरक्षित निधि में निम्नलिखित में से कौन-सा एक मद समूह सम्मिलित है? (2013) (a) विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति, विशेष आहरण अधिकार (एस.डी.आर.) तथा विदेशों से ऋण उत्तर: (b) मेन्सप्रश्न. चर्चा कीजिये कि किस प्रकार उभरती प्रौद्योगिकियाँ और वैश्वीकरण मनी लॉन्ड्रिंग में योगदान करते हैं। राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर मनी लॉन्ड्रिंग की समस्या से निपटने के लिये किये जाने वाले उपायों को विस्तार से समझाइये। (2021) प्रश्न. विश्व के दो सबसे बड़े अवैध अफीम उत्पादक राज्यों से भारत की निकटता ने भारत की आंतरिक सुरक्षा चिंताओं को बढ़ा दिया है। नशीली दवाओं के अवैध व्यापार एवं बंदूक बेचने, गुपचुप धन विदेश भेजने और मानव तस्करी जैसी अवैध गतिविधियों के बीच कड़ियों को स्पष्ट कीजिये। इन गतिविधियों को रोकने के लिये क्या-क्या प्रतिरोधी उपाय किये जाने चाहिये? (2018) |