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डेली न्यूज़

  • 10 Sep, 2021
  • 45 min read
सामाजिक न्याय

भारत की बदलती खाद्य प्रणालियाँ

प्रिलिम्स के लिये:

NFHS-5, हरित क्रांति, खाद्य एवं कृषि संगठन, संयुक्त राष्ट्र

मेन्स के लिये:

खाद्य प्रणालियों की स्थिरता और भविष्य की चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाले वर्षों में खाद्य प्रणालियों की स्थिरता महत्त्वपूर्ण होने जा रही है।

  • भारत को अपनी खाद्य प्रणालियों में भी परिवर्तन करना होगा, जिन्हें उच्च कृषि आय और पोषण सुरक्षा के लिये समावेशी और टिकाऊ होना चाहिये।
  • इससे पहले खाद्य प्रणाली पर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में बताया गया था कि वर्तमान खाद्य प्रणालियाँ शक्ति असंतुलन और असमानता के कारण अत्यधिक प्रभावित हैं और अधिकांश महिलाओं के पक्ष में नहीं  हैं।

प्रमुख बिंदु

  • खाद्य प्रणाली:
    • खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के अनुसार, खाद्य प्रणालियों में कारकों की पूरी शृंखला शामिल है:
      • कृषि, वानिकी या मत्स्य पालन से प्राप्त खाद्य उत्पादों का उत्पादन, एकत्रीकरण, प्रसंस्करण, वितरण, खपत, निपटान और व्यापकता आर्थिक, सामाजिक एवं प्राकृतिक वातावरण के कुछ हिस्सों में अंतर्निहित है।
  • भारतीय खाद्य प्रणालियों के सम्मुख उपस्थित विभिन्न चुनौतियाँ:
    • हरित क्रांति का प्रभाव:
      • यद्यपि हरित क्रांति के कारण देश के कृषि विकास में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई है, लेकिन इसने जल-जमाव, मिट्टी का कटाव, भू-जल की कमी और कृषि की अस्थिरता जैसी समस्याओं को भी जन्म दिया है।
    • वर्तमान नीतियाँ:
      • वर्तमान नीतियाँ अभी भी 1960 के दशक की घाटे की मानसिकता पर आधारित हैं। खरीद, सब्सिडी और जल नीतियाँ चावल और गेहूँ के पक्ष में हैं।
        • तीन फसलों (चावल, गेहूँ और गन्ना) की सिंचाई में 75 से 80% पानी का प्रयोग होता है।
    • कुपोषण:
      • NFHS-5 से पता चलता है कि वर्ष 2019-20 में भी कई राज्यों में कुपोषण में कमी नहीं आई है। इसी तरह मोटापा भी बढ़ रहा है।
      • ग्रामीण भारत के लिये EAT-Lancet आहार संबंधी सिफारिशों के आधार पर प्रति व्यक्ति लागत प्रतिदिन 3 अमेरिकी डॉलर और 5 अमेरिकी डॉलर के बीच है। इसके विपरीत वास्तविक आहार लागत प्रति व्यक्ति प्रतिदिन लगभग 1 अमेरिकी डॉलर है।
  • भारत की खाद्य प्रणालियों को बदलने के लिये आवश्यक कदम:
    • फसल विविधीकरण:
      • पानी के अधिक समान वितरण, टिकाऊ और जलवायु-लचीली कृषि हेतु बाजरा, दलहन, तिलहन, बागवानी के लिये फसल पैटर्न के विविधीकरण की आवश्यकता है।
    • कृषि क्षेत्र में संस्थागत परिवर्तन:
      • किसान उत्पादक संगठनों (FPO) को छोटे भूमि धारकों को इनपुट और आउटपुट के बेहतर मूल्य की प्राप्ति में मदद करनी चाहिये।
        • ई-चौपाल जैसी पहल छोटे किसानों को लाभान्वित करने वाली प्रौद्योगिकी का एक उदाहरण है।
      • महिला सशक्तीकरण विशेष रूप से आय और पोषण बढ़ाने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
        • केरल में महिला सहकारी समितियाँ और कुदुम्बश्री जैसे समूह इसमें मददगार होंगे।
    • सतत् खाद्य प्रणाली:
      • अनुमान बताते हैं कि खाद्य क्षेत्र विश्व के लगभग 30% ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करता है।
      • उत्पादन, मूल्य शृंखला और खपत में स्थिरता हासिल करनी होगी।
    • स्वास्थ्य अवसंरचना और सामाजिक सुरक्षा:
    • गैर-कृषि क्षेत्र:
      • टिकाऊ खाद्य प्रणालियों के लिये गैर-कृषि क्षेत्र की भूमिका समान रूप से महत्त्वपूर्ण है। श्रम प्रधान विनिर्माण और सेवाएँ कृषि पर दबाव को कम कर सकती हैं क्योंकि कृषि से होने वाली आय छोटे भूमि धारकों और अनौपचारिक श्रमिकों हेतु पर्याप्त नहीं है।
      • इसलिये ग्रामीण सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम आकार के उद्यमों (MSME) और खाद्य प्रसंस्करण को मजबूत करना समाधान का हिस्सा है।

आगे की राह

संयुक्त राष्ट्र (UN) के महासचिव ने सतत् विकास के लिये वर्ष 2030 एजेंडा के दृष्टिकोण को साकार करने और दुनिया में कृषि-खाद्य प्रणालियों में सकारात्मक बदलाव हेतु रणनीति विकसित करने के लिये पहले संयुक्त राष्ट्र खाद्य प्रणाली शिखर सम्मेलन के आयोजन का आह्वान किया है, जिसे सितंबर 2021 में आयोजित किया जाएगा। यह सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) को प्राप्त करने के लिये नीतियों को बढ़ावा देने का एक शानदार अवसर है।

इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये विज्ञान और प्रौद्योगिकी महत्त्वपूर्ण चालक हैं। भारत को खाद्य प्रणाली परिवर्तन का भी लक्ष्य रखना चाहिये जो समावेशी और टिकाऊ हो, जिससे कृषि आय में वृद्धि तथा पोषण सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

नए कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों की अव्यवहार्यता

प्रिलिम्स के लिये:

केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण, अक्षय ऊर्जा 

मेन्स के लिये:

कोयला आधारित बिजली संयंत्रों की तुलना में सौर ऊर्जा के अधिक उपयोग हेतु उत्तरदायी कारक

चर्चा में क्यों? 

दो स्वतंत्र थिंक टैंक, ईएमबीईआर (EMBER) और क्लाइमेट रिस्क होराइज़न्स (Climate Risk Horizons) द्वारा तैयार की गई एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत को वित्तीय वर्ष 2030 तक बिजली की अपेक्षित वृद्धि को पूरा करने हेतु अतिरिक्त नई कोयला क्षमता (Additional New Coal Capacity) की आवश्यकता नहीं है।

प्रमुख बिंदु

  • रिपोर्ट की मुख्य बातें:
    • वर्ष 2030 तक भारत की बिजली की चरम मांग 301 गीगावाट तक पहुंँच जाएगी, अगर यह 5% की वार्षिक वृद्धि दर (जो केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण द्वारा किये गए अनुमानों के अनुरूप भी है) से बढ़ती है, तो भारत की नियोजित सौर क्षमता इसमें से अधिकांश को कवर कर सकती है।
    • इसलिये नए कोयला संयंत्रों को शामिल करने के उद्देश्य से ‘ज़ोंबीयूनिट्स’ (zombie units) स्थापित की जाएँगी- जो मौजूद तो होंगी, लेकिन क्रियान्वयन में नहीं होंगी।
    • इसके अलावा भारत इन अधिशेष संयंत्रों में निवेश न करके लगभग 2.5 लाख करोड़ रुपए बचा सकता है।
    • एक बार व्यय करने के बाद यह निवेश डिस्कॉम (बिजली वितरण कंपनियों) और उपभोक्ताओं को महंँगे अनुबंधों से बाँध देगा तथा सिस्टम को आवश्यकता से अधिक दक्षता से जोड़कर भारत के अक्षय ऊर्जा लक्ष्यों को भी खतरे में डाल सकता है।
    • इसके अलावा इससे 43,219 करोड़ रुपए का वार्षिक नुकसान होगा जिसे भारत नवीकरणीय और भंडारण में निवेश कर सकता है।
    • इस प्रकार रिपोर्ट का निष्कर्ष है कि वित्त वर्ष 2030 तक कुल मांग वृद्धि को पूरा करने के लिये पहले से निर्माणाधीन क्षमता से अधिक कोयला क्षमता की आवश्यकता नहीं है।
  • कोयला आधारित बिजली संयंत्रों की तुलना में सौर ऊर्जा के अधिक उपयोग हेतु उत्तरदायी कारक:
    • सौर ऊर्जा आधारित उत्पादन, थर्मल आधारित ऊर्जा उत्पादन को प्रतिस्थापित कर रहा है, जिसके साथ ही सौर पैनलों की लागत में भी गिरावट आ रही है, इसके परिणामस्वरूप ऊर्जा क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण बदलाव आ सकता है।
      • इसके अलावा बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणालियों जैसे नए प्रौद्योगिकी विकल्प सौर ऊर्जा को और अधिक बढ़ावा दे रहे हैं।
    • दुनिया भर में पर्यावरण के मुद्दों, विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है और इसी के साथ सतत् विकास की अवधारणा ने विश्व स्तर पर केंद्रीय स्थान प्राप्त कर लिया है।
      • कार्बन मुक्त ऊर्जा के उद्देश्य को साकार करने के लिये भारत ने मार्च 2022 तक नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों (RE) से 175 गीगावाट की स्थापित क्षमता का लक्ष्य रखा है।
      • इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु भारत ने ‘अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन’ की स्थापना की है और ‘वन सन वन वर्ल्ड वन ग्रिड’ का प्रस्ताव रखा है।
    • सरकार द्वारा ‘पीएम कुसुम’ और ‘रूफटॉप सोलर स्कीम’ जैसी योजनाओं के माध्यम से सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने हेतु महत्त्वपूर्ण प्रयास किये जा रहे हैं।
  • कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों को जारी रखने का महत्त्व:
    • बीपी एनर्जी आउटलुक 2019 के अनुसार, भारत की प्राथमिक ऊर्जा खपत में कोयले की हिस्सेदारी वर्ष 2017 के 56% से घटकर वर्ष 2040 में 48% हो जाएगी।
      • हालाँकि यह अभी भी कुल ऊर्जा मिश्रण का लगभग आधा है और ऊर्जा के किसी भी अन्य स्रोत से काफी आगे है। इस प्रकार कोयले का प्रतिस्थापन करना आसान नहीं है।
    • भूमि अधिग्रहण, वित्तपोषण और नीति से जुड़े मुद्दे अक्षय ऊर्जा योजनाओं के आड़े आ रहे हैं। 
    • बिजली क्षेत्र के अलावा स्टील और एल्यूमीनियम जैसे अन्य महत्त्वपूर्ण क्षेत्र भी कोयला आधारित बिजली पर निर्भर हैं।
    • इसके अलावा कोयला आधारित बिजली संयंत्रों की क्षमता तात्कालिक पीक लोड को पूरा करने के लिये और नवीकरणीय ऊर्जा अनुपलब्धता की स्थिति में लोड को पूरा करने हेतु महत्त्वपूर्ण है।
    • इसके अलावा भारत ने शुरू में सल्फर डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में कटौती करने वाली फ्लू गैस डिसल्फराइज़ेशन (FGD) इकाइयों को स्थापित करने के लिये थर्मल पावर प्लांट हेतु वर्ष 2017 तक की समय-सीमा निर्धारित की थी लेकिन इसे विभिन्न क्षेत्रों हेतु वर्ष 2022 में समाप्त होने वाली अलग-अलग समय-सीमा के लिये स्थगित कर दिया गया था।

आगे की राह

  • विद्युत उत्पादन में इष्टतम ऊर्जा मिश्रण: ऊर्जा के विभिन्न स्रोतों जैसे- कोयला, हाइड्रो, प्राकृतिक गैस और नवीकरणीय (सौर, पवन) के माध्यम से विद्युत उत्पन्न होती है। एक इष्टतम ऊर्जा मिश्रण वह है जो इन उत्पादन स्रोतों के मिश्रण का सबसे कुशल तरीके से उपयोग करता है। यह इसलिये भी अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि भविष्य में उत्पादन क्षमता मिश्रण लागत प्रभावी होने के साथ-साथ पर्यावरण के अनुकूल भी होना चाहिये।
  • कोयला आधारित इकाइयों के लिये नई प्रौद्योगिकियाँ: सरकार ने अधिक कुशल सुपरक्रिटिकल कोयला आधारित इकाइयों को चालू किया है और पुरानी व अक्षम कोयला आधारित इकाइयों को समाप्त किया जा रहा है। कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों को पर्यावरण के अनुकूल बनाने हेतु कई नई तकनीकों (जैसे कोयला गैसीकरण, कोयला लाभकारी आदि) का इस्तेमाल किया जा सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

इंडिया रैंकिंग्स- 2021

प्रिलिम्स के लिये 

राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क, इंडिया रैंकिंग्स, 2021

मेन्स के लिये

राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क का महत्त्व और आवश्यकता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में शिक्षा मंत्रालय ने ‘राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क’ (NIRF) द्वारा स्थापित ‘इंडिया रैंकिंग्स, 2021’ जारी की है।

प्रमुख बिंदु

  • राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क:
    • लॉन्च: ‘राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क’ (NIRF) को सितंबर 2015 में शिक्षा मंत्रालय (तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्रालय) द्वारा अनुमोदित किया गया था।
      • यह देश में उच्च शिक्षण संस्थानों (HEI) को रैंक प्रदान करने के लिये भारत सरकार का पहला प्रयास है।
      • वर्ष 2018 में देश भर के सभी सरकारी शिक्षण संस्थानों के लिये ‘राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क’ में हिस्सा लेना अनिवार्य कर दिया गया था।
    • पाँच मापदंडों पर मूल्यांकन:
      • शिक्षण, शिक्षा और संसाधन (Teaching, Learning and Resources), 
      • अनुसंधान और व्यावसायिक अभ्यास (Research and Professional Practices), 
      • स्नातक परिणाम (Graduation Outcomes), 
      • आउटरीच और समावेशिता (Outreach and Inclusivity) 
      • अनुभूति (Perception)
    • श्रेणियाँ: कुल 11 श्रेणियों में सर्वश्रेष्ठ संस्थानों को सूचीबद्ध किया गया है- समग्र राष्ट्रीय रैंकिंग, विश्वविद्यालय, इंजीनियरिंग, कॉलेज, चिकित्सा, प्रबंधन, फार्मेसी, विधि, वास्तुकला, दंत चिकित्सा और अनुसंधान।
    • लॉन्च करने का कारण: ‘क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग’ और ‘टाइम्स हायर एजुकेशन वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग’ द्वारा विकसित रैंकिंग पद्धति में व्यक्तिपरकता ने भारत को शंघाई रैंकिंग की तर्ज पर भारतीय संस्थानों के लिये अपनी रैंकिंग प्रणाली शुरू करने हेतु प्रेरित किया है।
      • ‘राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क’ अपने छठे वर्ष में है, किंतु अभी भी यह केवल भारतीय संस्थानों को ही रैंक प्रदान करता है, जबकि शंघाई रैंकिंग अपने पहले वर्ष से ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रैंकिंग प्रदान कर रहा है।
      • हालाँकि ‘राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क’ की दीर्घकालिक योजना इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहुँचाना है।
    • वर्ष 2021 में भाग लेने वाले संस्थानों की संख्या: इस वर्ष राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क में 6,000 से अधिक संस्थानों ने भाग लिया है।
  • इंडिया रैंकिंग्स 2021 की मुख्य विशेषताएँ:
    • समग्र: IIT-मद्रास, IISc-बंगलूरू और IIT-बॉम्बे देश के शीर्ष तीन उच्च शिक्षा संस्थानों के रूप में उभरे हैं।
    • विश्वविद्यालय: IISc, बंगलूरू इस श्रेणी में सबसे ऊपर है।
    • अनुसंधान संस्थान: IISc, बंगलूरू को भारत रैंकिंग 2021 में पहली बार शामिल की गई श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ शोध संस्थान का दर्जा दिया गया।
    • कॉलेज: मिरांडा कॉलेज लगातार पाँचवें वर्ष कॉलेजों में शीर्ष स्थान पर है, इसके बाद लेडी श्रीराम कॉलेज फॉर विमेन और लोयोला कॉलेज का स्थान आता है।
    • इंजीनियरिंग: इंजीनियरिंग संस्थानों में IIT-मद्रास नंबर वन पर रहा।
    • प्रबंधन: भारतीय प्रबंधन संस्थान अहमदाबाद को पहला स्थान मिला।
    • चिकित्सा: अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली लगातार चौथे वर्ष चिकित्सा में शीर्ष स्थान पर है।
    • फार्मेसी: जामिया हमदर्द फार्मेसी विषय में लगातार तीसरी बार सूची में सबसे ऊपर है।
    • वास्तुकला: IIT रुड़की वास्तुकला (Architecture) विषय में पहली बार शीर्ष स्थान पर है।
    • कानून: नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी, बंगलूरू ने लगातार चौथे वर्ष कानून में पहला स्थान बरकरार रखा है।
    • दंत चिकित्सा: मणिपाल कॉलेज ऑफ डेंटल साइंसेज़, मणिपाल ने "दंत चिकित्सा" श्रेणी में पहला स्थान हासिल किया।

स्रोत: पीआईबी


भारतीय अर्थव्यवस्था

निर्यात को बढ़ावा देने हेतु प्रोत्साहन योजनाएँ

प्रिलिम्स के लिये:

चालू खाता घाटा, मर्चेंडाइज़ एक्सपोर्ट्स फ्रॉम इंडिया स्कीम, RoDTEP

मेन्स के लिये:

निर्यात को बढ़ावा देने हेतु प्रोत्साहन योजनाएँ एवं उनका महत्त्व

चर्चा में क्यों?

सरकार ने वित्त वर्ष 2021-22 में विभिन्न निर्यात प्रोत्साहन योजनाओं के तहत व्यापार के साथ-साथ सेवा निर्यात के लिये 56,027 करोड़ रुपए के लंबित दावों को जारी करने का निर्णय लिया है। 

  • अप्रैल-अगस्त, 2021 के लिये मर्चेंडाइज़ निर्यात लगभग 164 बिलियन डॉलर का था जो वित्त वर्ष 2020-21 की तुलना में 67 प्रतिशत तथा 2019-20 की तुलना में 23 प्रतिशत अधिक था।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • ये लाभ 45,000 से अधिक निर्यातकों के बीच वितरित किये जाएंगे, जिसमें से लगभग 98 प्रतिशत MSME वर्ग के छोटे निर्यातक हैं।
    • विकसित देशों में भारतीय सामानों की बढ़ती मांग के बीच सरकार ने वित्त वर्ष 2021-22 में 400 अरब डॉलर के व्यापारिक निर्यात को हासिल करने का लक्ष्य रखा है।
    • निर्यातकों को निम्नलिखित योजनाओं के तहत प्रोत्साहन दिया जाएगा:
  • महत्त्व:
    • विदेशी मुद्रा लाने में मदद:
      • एक निर्यातक राष्ट्र के रूप में चीन की सफलता उसके निर्माताओं को विदेशी बाज़ारों के लिये विशेष रूप से उत्पादन करने हेतु सरकारी प्रोत्साहन (भारी कर छूट सहित) की एक विस्तृत शृंखला प्राप्त करने में निहित है।
    • कम चालू खाता घाटा:
      • प्रोत्साहन योजनाओं से चालू खाता घाटे को कम करने में मदद मिलेगी, जो कि उस घाटे का कारण है जब कोई देश निर्यात से अधिक आयात करता है।
      • पिछले एक दशक में भारत का चालू खाता घाटा जीडीपी का औसतन 2.2% रहा है (जुलाई-सितंबर 2020 में लगभग 15 बिलियन डॉलर)।
    • तरलता:
      • यह लाभ व्यापारिक क्षेत्रों (कृषि और संबद्ध क्षेत्रों, ऑटो और ऑटो घटकों) को नकदी प्रवाह बनाए रखने एवं अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में निर्यात मांग को पूरा करने में मदद करेगा, जिसमें इस वित्तीय वर्ष में तेज़ी से सुधार हो रहा है।

निर्यात प्रोत्साहन योजनाएंँ

  • भारत से पण्य वस्तु निर्यात योजना:
    • MEIS को विदेश व्यापार नीति (FTP) 2015-20 में पेश किया गया था। इसके तहत सरकार उत्पाद और देश के आधार पर शुल्क लाभ प्रदान करती है।
    • इस योजना में पुरस्कार के तहत देय फ्री-ऑन-बोर्ड वेल्यू (2%, 3% और 5% का) के प्रतिशत के रूप में दी जाती है तथा MEIS  ड्यूटी क्रेडिट स्क्रिप को स्थानांतरित किया जा सकता है या मूल सीमा शुल्क सहित कई कार्यों के भुगतान हेतु उपयोग किया जा सकता है।
  • भारत योजना से सेवा निर्यात:
    • इसे भारत की विदेश व्यापार नीति 2015-2020 के तहत अप्रैल 2015 में 5 वर्षों के लिये  लॉन्च किया गया था।
      • इससे पहले वित्तीय वर्ष 2009-2014 के लिये इस योजना को भारत योजना (SFIS योजना) से सेवा के रूप में नामित किया गया था।
    • इसके तहत वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा भारत में स्थित सेवा निर्यातकों को भारत से सेवाओं के निर्यात को बढ़ावा देने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है।
  • निर्यात उत्पादों पर शुल्क और करों की छूट (RoDTEP)
    • यह भारत में निर्यात बढ़ाने में मदद करने हेतु जीएसटी (वस्तु और सेवा कर) में इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) के लिये पूरी तरह से स्वचालित मार्ग है।
      • ITC कच्चे माल, उपभोग्य सामग्रियों, वस्तुओं या सेवाओं की खरीद पर दिये जाने वाले कर पर  प्रदान किया जाता है जिसका उपयोग वस्तुओं या सेवाओं के निर्माण में किया जाता था। यह दोहरे कराधान और करों के व्यापक प्रभाव से बचने में मदद करता है।
    • इसे जनवरी 2021 में  MEIS  जो विश्व व्यापार संगठन के नियमों के अनुरूप नहीं था, के स्थान पर शुरू किया गया था। 
    • विभिन्न क्षेत्रों के लिये टैक्स रिफंड दरें 0.5% से 4.3% तक होती हैं।
    • छूट का दावा माल ढुलाई के प्रतिशत के रूप में निर्यात की बोर्ड वेल्यू पर करना होगा।
  • राज्य एवं केंद्रीय करों और लेवी की छूट
    • मार्च 2019 में घोषित RoSCTL को एम्बेडेड स्टेट (Embedded State) और केंद्रीय ज़िम्मेदारियों (Central Duties) तथा उन करों के लिये पेश किया गया था जो माल एवं सेवा कर (GST) के माध्यम से वापस प्राप्त नहीं होते हैं।
    • यह केवल कपड़ों और बने हुए सामान के लिये उपलब्ध था। इसे कपड़ा मंत्रालय द्वारा पेश किया गया था।
    • इससे पहले यह राज्य लेवी के लिये छूट (ROSL) थी।

स्रोत- पी.आई.बी.


भारतीय अर्थव्यवस्था

आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) का त्रैमासिक बुलेटिन

प्रिलिम्स के लिये

आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण, राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय

मेन्स के लिये

आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण की वार्षिक रिपोर्ट

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) ने अक्तूबर-दिसंबर 2020 के लिये आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) का त्रैमासिक बुलेटिन जारी किया।

प्रमुख बिंदु

  • त्रैमासिक बुलेटिन के मुख्य बिंदु:
    • अक्तूबर-दिसंबर 2020 के दौरान शहरी क्षेत्रों में 15 वर्ष और उससे अधिक आयु वर्ग के लिये बेरोज़गारी दर बढ़कर 10.3% हो गई, जबकि एक वर्ष पूर्व इसी अवधि के दौरान यह 7.9% थी।
    • वर्ष 2020 की अक्तूबर-दिसंबर तिमाही में शहरी क्षेत्रों में 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के लिये श्रम बल भागीदारी दर 47.3% रही, जबकि एक वर्ष पूर्व इसी अवधि में यह दर 47.8% थी।
    • शहरी क्षेत्रों में 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के लिये वर्ष 2020 की अक्तूबर-दिसंबर तिमाही में श्रमिक जनसंख्या अनुपात 42.4% था, जबकि एक वर्ष पूर्व इसी अवधि के दौरान यह दर 44.1% थी।
  • आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण के विषय में: 
    • अधिक नियत समय अंतराल पर श्रम बल डेटा की उपलब्धता के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) ने अप्रैल 2017 में आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) की शुरुआत की।
    • PLFS के मुख्य उद्देश्य हैं:
      • 'वर्तमान साप्ताहिक स्थिति' (CWS) में केवल शहरी क्षेत्रों के लिये तीन माह के अल्‍पकालिक अंतराल पर प्रमुख रोज़गार और बेरोज़गारी संकेतकों (अर्थात् श्रमिक-जनसंख्या अनुपात, श्रम बल भागीदारी दर, बेरोज़गारी दर) का अनुमान लगाना।
      • प्रतिवर्ष ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में सामान्य स्थिति (पीएस + एसएस) और CWS दोनों में रोज़गार एवं बेरोज़गारी संकेतकों का अनुमान लगाना।
    • PLFS में एकत्रित आँकड़ों के आधार पर PLFS की तीन वार्षिक रिपोर्टें जुलाई 2017 - जून 2018, जुलाई 2018 - जून 2019 और जुलाई 2019 - जून 2020 की अवधि के अनुरूप हैं।
    • दिसंबर 2018 से दिसंबर 2020 को समाप्त होने वाली तिमाहियों के लिये PLFS के नौ त्रैमासिक बुलेटिन जारी किये गए हैं।

प्रमुख  शब्दावलियाँ

  • श्रम बल भागीदारी दर (LFPR): LFPR को कुल आबादी में श्रम बल के अंतर्गत आने वाले व्‍यक्तियों (अर्थात् कार्यरत या काम की तलाश में या काम के लिये उपलब्‍ध) के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया जाता है।
  • कामगार-जनसंख्‍या अनुपात (WPR): WPR को कुल आबादी में रोज़गार प्राप्‍त व्‍यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया जाता है।
  • बेरोज़गारी दर (UR): इसे श्रम बल में शामिल कुल लोगों में से बेरोज़गार व्‍यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया जाता है।
  • कार्यकलाप की स्थिति: किसी व्यक्ति की गतिविधि की स्थिति एक निर्दिष्ट संदर्भ अवधि के दौरान व्यक्ति द्वारा की गई गतिविधियों के आधार पर निर्धारित की जाती है।
    • सामान्य स्थिति: सर्वेक्षण की तारीख से पहले पिछले 365 दिनों की संदर्भ अवधि के आधार पर निर्धारित गतिविधि की स्थिति को व्यक्ति की सामान्य गतिविधि स्थिति के रूप में जाना जाता है।
    • वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (CWS): सर्वेक्षण की तारीख से पहले पिछले 7 दिनों की संदर्भ अवधि के आधार पर निर्धारित गतिविधि की स्थिति को व्यक्ति की वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (सीडब्ल्यूएस) के रूप में जाना जाता है।

स्रोत: पीआईबी


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

कोरोनल मास इजेक्शन

प्रिलिम्स के लिये:

कोरोनल मास इजेक्शन, सूर्य की संरचना

मेन्स के लिये:

हत्त्वपूर्ण नहीं

चर्चा में क्यों?

भारतीय वैज्ञानिकों ने अंतर्राष्ट्रीय सहयोगियों के साथ सूर्य के वायुमंडल (Solar Corona) से विस्फोट के चुंबकीय क्षेत्र को मापा है, जो सूर्य के आंतरिक भाग की एक दुर्लभ झलक प्रस्तुत करता है।

  • कोरोनल मास इजेक्शन (Coronal Mass Ejection- CME) सूर्य की सतह पर सबसे बड़े विस्फोटों में से एक है जिसमें अंतरिक्ष में कई मिलियन मील प्रति घंटे की गति से एक अरब टन पदार्थ हो सकता है।

प्रमुख बिंदु:

  • अनुसंधान के संदर्भ में:
    • इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (Indian Institute of Astrophysics- IIA) के वैज्ञानिकों ने पहली बार विस्फोटित प्लाज़्मा से जुड़े कमज़ोर थर्मल रेडियो उत्सर्जन का अध्ययन किया, जो चुंबकीय क्षेत्र और विस्फोट की अन्य भौतिक स्थितियों को मापता है।
    • टीम ने 1 मई, 2016 को हुए कोरोनल मास इजेक्शन (CME) से प्रवाहित प्लाज़्मा का अध्ययन किया।
      • प्लाज़्मा को पदार्थ की चौथी अवस्था के रूप में भी जाना जाता है। उच्च तापमान पर इलेक्ट्रॉन परमाणु के नाभिक से अलग हो जाते हैं और प्लाज़्मा या पदार्थ की आयनित अवस्था बन जाते हैं।
    • कुछ अंतरिक्ष-आधारित दूरबीनों के साथ-साथ IIA के रेडियो दूरबीनों की मदद से उत्सर्जन का पता लगाया गया, जो सूर्य को अत्यधिक पराबैंगनी और सफेद प्रकाश में देखते थे।
    • वे इस उत्सर्जन के ध्रुवीकरण को मापने में भी सक्षम थे, जो उस दिशा का संकेत है जिसमें तरंगों के विद्युत और चुंबकीय घटक दोलन करते हैं।
  • ‘कोरोनल मास इजेक्शन’ के विषय में: 
    • सूर्य एक अत्यंत सक्रिय निकाय है, जहाँ कई हिंसक और विनाशकारी घटनाओं के ज़रिये भारी मात्रा में गैस और प्लाज़्मा बाहर निकालता है।
      • इसी प्रकार के विस्फोटों का एक वर्ग ‘कोरोनल मास इजेक्शन’ (CMEs) कहा जाता है।
      • ‘कोरोनल मास इजेक्शन’ सौरमंडल में होने वाले सबसे शक्तिशाली विस्फोट हैं।
    • ‘कोरोनल मास इजेक्शन’ के अंतर्निहित कारणों को अभी भी बेहतर तरीके से समझा नहीं जा सका है। हालाँकि खगोलविद इस बात से सहमत हैं कि सूर्य का चुंबकीय क्षेत्र इसमें एक प्रमुख भूमिका निभाता है।
    • यद्यपि ‘कोरोनल मास इजेक्शन’ सूर्य पर कहीं भी हो सकता है, किंतु सूर्य की ‘दृश्यमान सतह’ (जिसे फोटोस्फीयर कहा जाता है) के केंद्र के पास उत्पन्न ‘कोरोनल मास इजेक्शन’ अध्ययन की दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण होते हैं, क्योंकि इनका प्रभाव पृथ्वी पर प्रत्यक्ष देखने को मिलता है।
      • इसका अध्ययन वैज्ञानिकों को अंतरिक्ष मौसम को समझने में मदद करता है।
    • जब एक मज़बूत ‘कोरोनल मास इजेक्शन’ पृथ्वी के करीब होता है, तो यह पृथ्वी के आसपास मौजूद उपग्रहों में इलेक्ट्रॉनिक्स को नुकसान पहुँचा सकता है और पृथ्वी पर रेडियो संचार नेटवर्क को बाधित कर सकता है।
    • जब प्लाज़्मा बादल हमारे ग्रह से टकराता है, तो एक भू-चुंबकीय तूफान आता है।  
      • भू-चुंबकीय तूफान पृथ्वी के मैग्नेटोस्फीयर (पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र द्वारा नियंत्रित अंतरिक्ष) की एक बड़ी गड़बड़ी है जो तब होती है जब सौर हवा से पृथ्वी के आसपास के अंतरिक्ष वातावरण में ऊर्जा का एक बहुत ही कुशल आदान-प्रदान होता है।
    • वे पृथ्वी पर आकाश से तीव्र प्रकाश उत्पन्न कर सकते हैं, जिसे औरोरा (Auroras) कहा जाता है।
      • कुछ ऊर्जा और छोटे कण पृथ्वी के वायुमंडल में उत्तरी एवं दक्षिणी ध्रुवों पर चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं की यात्रा करते हैं।
      • वहाँ कण वातावरण में गैसों के साथ परस्पर क्रिया करते हैं जिसके परिणामस्वरूप आकाश में प्रकाश का सुंदर प्रदर्शन होता है।
      • पृथ्वी के उत्तरी वातावरण में औरोरा को उरोरा बोरेलिस या उत्तरी रोशनी कहा जाता है। इसके दक्षिणी समकक्ष को औरोरा ऑस्ट्रेलिया या दक्षिणी रोशनी कहा जाता है।

सूर्य की संरचना

  • सूर्य का कोर- ऊर्जा थर्मोन्यूक्लियर प्रतिक्रियाओं के माध्यम से उत्पन्न होती है जो सूर्य के कोर के भीतर अत्यधिक तापमान का निर्माण करती है।
  • विकिरण क्षेत्र (Radiative Zone) - ऊर्जा धीरे-धीरे बाहर की ओर जाती है, सूर्य की इस परत के माध्यम से विकिरण करने में 1,70,000 से अधिक वर्ष लगते हैं।
  • संवहन क्षेत्र (Convection Zone)- गर्म और ठंडी गैस की संवहन धाराओं के माध्यम से ऊर्जा सतह की ओर बढ़ती रहती है।
  • क्रोमोस्फीयर (Chromosphere)- सूर्य की यह अपेक्षाकृत पतली परत चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं द्वारा निर्मित है जो विद्युत आवेशित सौर प्लाज़्मा को नियंत्रित करती है। कभी-कभी बड़े प्लाज़्मा लक्षण, जो विशिष्ठ होते हैं, बहुत ही कमज़ोर और गर्म कोरोना में निर्मित होते हैं और कभी-कभी सूर्य से दूर सामग्री को बाहर निकालते हैं।
  • कोरोना (Corona)- कोरोना (या सौर वातावरण) के भीतर आयनित तत्त्व एक्स-रे और अत्यधिक पराबैंगनी तरंगदैर्ध्य में चमकते हैं। अंतरिक्ष उपकरण इन उच्च ऊर्जाओं पर सूर्य के कोरोना की छवि बना सकते हैं क्योंकि इन तरंगदैर्ध्य में फोटोस्फीयर (सौर वातावरण की सबसे निचली परत) काफी मंद होता है।
  • कोरोनल स्ट्रीमर (Coronal Streamer)- कोरोना के बाहर प्रवाहित प्लाज़्मा को चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं द्वारा कोरोनल स्ट्रीमर नामक पतले रूपों में आकार दिया जाता है, जो अंतरिक्ष में लाखों मील तक फैला होता है।
  • सौर कलंक या सनस्पॉट ऐसे क्षेत्र होते हैं जो सूर्य की सतह पर काले दिखाई देते हैं। ये सूर्य की सतह के अन्य भागों की तुलना में ठंडे होते हैं, इसलिये काले दिखाई देते हैं।

Internal-structure

स्रोत: पीआईबी


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

13वाँ ब्रिक्स शिखर सम्मेलन

प्रिलिम्स के लिये

ब्रिक्स, संयुक्त राष्ट्र 

मेन्स के लिये

ब्रिक्स शिखर सम्मेलन संबंधी प्रमुख बिंदु

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री ने 13वें ब्रिक्स वार्षिक शिखर सम्मेलन की अध्यक्षता की, जो कि वर्चुअल माध्यम से आयोजित किया गया था।

  • इस वर्ष ब्रिक्स शिखर सम्मेलन का विषय 'ब्रिक्स@15: निरंतरता, समेकन और आम सहमति हेतु ब्रिक्स के बीच सहयोग' था।

Other-Key-Takeways

प्रमुख बिंदु

  • प्रधानमंत्री का संबोधन
    • प्रधानमंत्री ने इस वर्ष (2021) भारत की अध्यक्षता के दौरान शुरू की गई कई नई पहलों की उपलब्धियों पर प्रकाश डाला, जिसमें रिमोट-सेंसिंग उपग्रहों के क्षेत्र में सहयोग पर समझौता; एक आभासी ब्रिक्स वैक्सीन अनुसंधान एवं विकास केंद्र; हरित पर्यटन पर ब्रिक्स गठबंधन आदि शामिल हैं। 
    • इसके अलावा प्रधानमंत्री ने ‘कोविड-19’ महामारी के बाद वैश्विक रिकवरी प्रकिया में ब्रिक्स देशों की महत्त्वपूर्ण एवं अग्रणी भूमिका पर भी प्रकाश डाला, उन्होंने 'बिल्ड-बैक रेजिलिएंटली, इनोवेटिवली, क्रेडिबली एवं सस्टेनेबली’ के आदर्श वाक्य के तहत ब्रिक्स सहयोग को बढ़ाने का आह्वान किया।
  • ब्रिक्स आतंकवाद विरोधी कार्ययोजना
    • यह आतंकवाद विरोधी सहयोग के क्षेत्रों के प्रति ब्रिक्स देशों के दृष्टिकोण और कार्यों को परिभाषित करती है जिसमें शामिल हैं: कट्टरता और ऑनलाइन आतंकवादी खतरों का मुकाबला, सीमा प्रबंधन, सूचना/खुफिया साझाकरण आदि।
  • स्वीकृत दिल्ली घोषणा:
    • घोषणा में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) सहित संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख अंगों में सुधार का आह्वान किया गया।
      • यह पहली बार है कि ब्रिक्स ने 'बहुपक्षीय प्रणालियों को मज़बूत करने और सुधारने' पर सामूहिक रुख अपनाया है।
    • अफगानिस्तान के अलावा ब्रिक्स नेताओं ने म्याँमार, सीरिया में संघर्ष, कोरियाई प्रायद्वीप में तनाव, इज़रायल-फिलिस्तीन हिंसा और अन्य क्षेत्रीय विवादों को भी उठाया।
      • इसने अफगानिस्तान में स्थिरता के लिये "समावेशी अंतर-अफगान वार्ता" का भी आह्वान किया।
  • कोविड-19 संबंधी:
    • विश्व में कोविड-19 वैक्सीन उत्पादन का तेज़ी से विस्तार सुनिश्चित करने के लिये बौद्धिक संपदा अधिकारों (TRIPS) के व्यापार-संबंधित पहलुओं पर छूट हेतु विश्व व्यापार संगठन (WTO) में भारत और दक्षिण अफ्रीका द्वारा किये गए प्रस्तावों पर भी विचार किया गया।

ब्रिक्स

  • ब्रिक्स दुनिया की पाँच अग्रणी उभरती अर्थव्यवस्थाओं- ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के समूह के लिये एक संक्षिप्त शब्द (Abbreviation) है।
    • BRICS की चर्चा वर्ष 2001 में Goldman Sachs के अर्थशास्री जिम ओ’ नील द्वारा ब्राज़ील, रूस, भारत और चीन की अर्थव्यवस्थाओं के लिये विकास की संभावनाओं पर एक रिपोर्ट में की गई थी।
    • वर्ष 2006 में चार देशों ने संयुक्त राष्ट्र महासभा की सामान्य बहस के अंत में विदेश मंत्रियों की वार्षिक बैठक के साथ एक नियमित अनौपचारिक राजनयिक समन्वय शुरू किया।
    • दिसंबर 2010 में दक्षिण अफ्रीका को BRIC में शामिल होने के लिये आमंत्रित किया गया और इसे BRICS कहा जाने लगा।
  • ब्रिक्स विश्व के पाँच सबसे बड़े विकासशील देशों को एक साथ लाता है, जो वैश्विक आबादी का 41%, वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 24% और वैश्विक व्यापार का 16% प्रतिनिधित्व करता है।
  • ब्रिक्स शिखर सम्मलेन की अध्यक्षता प्रतिवर्ष B-R-I-C-S के क्रमानुसार सदस्य देशों के सर्वोच्च नेता द्वारा की जाती है।
    • भारत वर्ष 2021 के सम्मलेन का अध्यक्ष है।
  • वर्ष 2014 में ब्राज़ील के फोर्टालेजा में छठे ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान BRICS नेताओं ने न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) की स्थापना के लिये समझौते पर हस्ताक्षर किये। उन्होंने सदस्यों को अल्पकालिक लिक्विडिटी सहायता प्रदान करने हेतु ब्रिक्स आकस्मिक रिज़र्व व्यवस्था (BRICS Contingent Reserve Arrangement) पर भी हस्ताक्षर किये।

स्रोत: द हिंदू


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