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कृषि

कृषि लाभ और किसानों की आय

  • 10 Sep 2020
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये

रेटिंग एजेंसी क्रिसिल, खरीफ फसल

मेन्स के लिये

किसानों की आय से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

रेटिंग एजेंसी क्रिसिल द्वारा बागवानी फसलों और 25 प्रमुख क्षेत्रों के एक विस्तृत विश्लेषण में यह संकेत दिया गया है कि खरीफ (ग्रीष्मकालीन फसल) के सीज़न (वर्ष 2020) में प्रति हेक्टेयर लाभप्रदता में सुधार होगा 

प्रमुख बिंदु

  • कृषि क्षेत्र में लाभ की संभावना: COVID-19 के कारण अर्थव्यवस्था को भारी क्षति पहुँची है, ऐसे में केवल कृषि ही एक ऐसा क्षेत्र रहा है, जिसे सबसे कम नुकसान हुआ है। मानसून सत्र में अच्छी बारिश की उम्मीद जताई जा रही है, जिससे उत्पादन और मुनाफे को बढ़ावा मिलेगा, विशेषकर धान की फसल को।
    • किसानों की सहायतार्थ सरकार द्वारा नाबार्ड के माध्यम से 30,000 करोड़ रुपए अतिरिक्त आपातकालीन कार्यशील पूंजी कोष के रूप में और 2 लाख करोड़ रुपए रियायती ऋण के रूप में उपलब्ध कराए गए हैं।
    • कृषि क्षेत्र में 2019-2020 की अंतिम तिमाही में 5.9% की वृद्धि देखी गई।
  • किसानों की आय पर प्रभाव: कुछ अर्थशास्त्रियों के अनुसार, कुल लाभ में वृद्धि के बावजूद, प्रति व्यक्ति (प्रति किसान) आय में गिरावट होने की संभावना है।
    • COVID-19 के कारण कृषि क्षेत्र में विपरीत प्रवास ‘रिवर्स माइग्रेशन’ देखने को मिला है, जिसके परिणामस्वरूप कृषि क्षेत्र में कार्यरत लोगों की संख्या में वृद्धि हो सकती है।
    • सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के आँकड़ों के अनुसार, अप्रैल-जुलाई 2020 की अवधि में कृषि क्षेत्र में 14.9 मिलियन रोज़गार उत्पन्न हुए।
  • किसानों की कम आय के पीछे संभावित कारण:
    • रिवर्स माइग्रेशन: COVID महामारी के दौरान लगाए गए लॉकडाउन के कारण, बड़ी संख्या में लोग अपने ग्रामीण क्षेत्रों में वापस लौट गए, ऐसे में मनरेगा एवं कृषि के अलावा उनके पास कोई महत्त्वपूर्ण काम नहीं है।
    • रोज़गार के विकल्प के रूप में कृषि: सामान्य तौर पर, लोग बेहतर भुगतान वाले रोज़गार की तलाश में (ज़्यादातर लोग स्वेच्छा से) खेती छोड़कर शहरों की ओर रूख करते हैं। लेकिन, ऐसे लोग जिनका गैर-कृषि रोज़गार COVID के कारण नष्ट हो गया है, उनके कृषि क्षेत्र की ओर रूख करने की संभावना अधिक है।
      • CMIE आँकड़ों से पता चलता है कि 2019-20 में 111.3 मिलियन लोगों ने कृषि को अपने मुख्य व्यवसाय के रूप में घोषित किया है। मार्च 2020 तक यह संख्या बढ़कर 117 मिलियन हो गई, जबकि जून में यह 130 मिलियन तक पहुँच गई।
    • श्रम की मांग: अगस्त में बुवाई का मौसम समाप्त होने तक, कृषि क्षेत्र में श्रम की मांग निरंतर बनी रही।
      • इसका अर्थ है, भले ही कृषि लाभ में वृद्धि हो, लेकिन इससे ग्रामीण मांग को पुनर्जीवित करने में कोई विशेष मदद नहीं मिलेगी, क्योंकि इस वर्ष बहुत अधिक संख्या में लोग कृषि आय पर निर्भर हैं।
    • ग्रामीण भारत में COVID-19 के मामलों में वृद्धि: इससे फसलों की कटाई और आपूर्ति शृंखला पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

  • कृषि उत्पादों की कीमतों में कमी:
    • क्या कृषि उत्पादन में वृद्धि का अर्थ किसानों की आय में वृद्धि भी है, इस प्रश्न का उत्तर बहुत सी बातों पर निर्भर करता है। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इस प्रश्न का उत्तर बहुत हद तक किसानों द्वारा बेचे जाने वाले कृषि उत्पादों से प्राप्त कीमतों पर निर्भर करता है।
    • जहाँ एक ओर अनाज की कीमतों में सकारात्मक मुद्रास्फीति देखने को मिली हैं, वहीं दूसरी ओर अधिकांश अन्य खाद्य समूहों, जैसे कि फल और सब्ज़ियाँ, अंडे, मुर्गी और मछली आदि की कीमतों में लगातार गिरावट आ रही है।
  • सरकार द्वारा उठाए गए कदम:
    • मई 2020 में आत्मनिभर भारत योजना के तहत लाए गए तीन अध्यादेशों- किसानों की उपज के व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन और सुविधा) का अध्यादेश, कृषि सेवाओं एवं मूल्य आश्वासन पर किसानों की सहमति (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) संबंधी अध्यादेश तथा आवश्यक वस्तु (संशोधन) अध्यादेश; किसानों को 'मेरी फसल, मेरा अधिकार' का लाभ देंगे और उनकी उपज के लिये उच्च मूल्य प्राप्त करने में मदद करेंगे।
    • कोल्ड चेन (शीत शृंखला), प्रशीतित परिवहन आदि की स्थापना के लिये प्रधान मंत्री द्वारा 1 लाख करोड़ रुपए के कृषि अवसंरचना कोष *Agriculture Infrastructure Fund) का शुभारंभ किया गया है ताकि किसानों को उनकी उपज के लिये बेहतर कीमत प्रदान की जा सके।
      • हालाँकि अभी इन संरचनात्मक सुधारों को भारत के ग्रामीण परिवेश को पुनर्जीवित करने में एक लंबा मार्ग तय करना होगा।

आगे की राह

  • ITC लिमिटेड जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा शुरू की गई ‘ई-चौपाल’ जैसी पहल, जो ग्रामीण भारत को तकनीकी ज्ञान प्रदान करने के पक्षों पर बल देती है ताकि एक प्रभावी कृषि परिवेश तैयार करते हुए कृषि उपज के लिये मूल्य निर्धारण जैसी सुविधाओं को पारदर्शी बनाया जा सके साथ ही इस कार्य में तकनीकी के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जा सके, को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिये।
  • सरकार को CSC (कॉमन सर्विस सेंटर) पैन इंडिया नेटवर्क को समेकित करने के प्रयास करने चाहिये। साथ ही सरकार को स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा, सड़क नेटवर्क, संचार और बिजली जैसी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति सुनिश्चित करते हुए कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिये ताकि ग्रामीण आबादी भी शहरी क्षेत्र के बराबर गुणवत्तापूर्ण जीवन जी सके। इससे रोज़गार के अवसरों की तलाश में शहरों की ओर पलायन में भी कमी आएगी।

स्रोत: द हिंदू

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