अंतर्राष्ट्रीय संबंध
म्याँमार में सैन्य तख्तापलट
- 05 Feb 2021
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में म्याँमार में सैन्य तख्तापलट के बाद सेना ने सत्ता हासिल कर ली, ज्ञात हो कि वर्ष 1948 में ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से यह म्याँमार में तीसरा तख्तापलट है।
- म्याँमार में एक वर्ष की अवधि के लिये आपातकाल लागू कर दिया गया है और लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित नेता आंग सान सू की को हिरासत में लिया गया है।
- प्रायः ‘तख्तापलट’ का अर्थ हिंसक और अवैध रूप से लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार की शक्तियों को हथियाने से है।
म्याँमार
- अवस्थिति
- म्याँमार जिसे बर्मा के नाम से भी जाना जाता है, दक्षिण पूर्व एशिया में अवस्थित एक देश है, जो कि थाईलैंड, लाओस, बांग्लादेश, चीन और भारत आदि देशों के साथ अपनी सीमा साझा करता है।
- जनसांख्यिकी
- म्याँमार की आबादी लगभग 54 मिलियन है, जिनमें से अधिकांश बर्मी भाषी हैं, हालाँकि यहाँ कई अन्य भाषाएँ बोलने वाले लोग भी रहते हैं।
- धर्म
- यहाँ का मुख्य धर्म बौद्ध धर्म है। इसके अलावा देश में कई जातीय समूह भी हैं, जिनमें रोहिंग्या मुसलमान भी शामिल हैं।
- राजव्यवस्था
- म्याँमार को वर्ष 1948 में ब्रिटेन से स्वतंत्रता प्राप्त हुई थी। इसे वर्ष 1962 से वर्ष 2011 तक सशस्त्र बलों द्वारा शासित किया जाता रहा, वर्ष 2011 में नई सरकार के साथ नागरिक शासन की वापसी की शुरुआत हुई।
- 2010 के दशक में सैन्य शासन ने देश को लोकतंत्र की ओर स्थानांतरित करने का निर्णय लिया। हालाँकि नई व्यवस्था के तहत सशस्त्र बल के अधिकारी सत्ता में बने रहे, लेकिन राजनीतिक विरोधियों को मुक्त कर दिया गया और चुनाव आयोजित करने की अनुमति दे दी गई।
- वर्ष 2015 के चुनावों में आंग सान सू की के दल राजनीतिक नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (NLD) को जीत हासिल हुई, यह देश के पहला स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव था, जिसमें कई दलों ने हिस्सा लिया था, इन चुनावों के बाद यह उम्मीद जगी थी कि म्याँमार लोकतांत्रिक व्यवस्था की और बढ़ रहा है।
प्रमुख बिंदु
सैन्य तख्तापलट के बारे में
- नवंबर 2020 में हुए संसदीय चुनाव में आंग सान सू की के राजनीतिक नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (NLD) को अधिकांश सीटें हासिल हुईं।
- वर्ष 2008 में सेना द्वारा तैयार किये गए संविधान के मुताबिक, म्याँमार की संसद में सेना के पास कुल सीटों का 25 प्रतिशत हिस्सा है और कई प्रमुख मंत्री पद भी सैन्य नियुक्तियों के लिये आरक्षित हैं।
- वर्ष 2021 की शुरुआत में जब नव निर्वाचित संसद का पहला सत्र आयोजित किया जाना था, तभी सेना द्वारा संसदीय चुनावों में भारी धोखाधड़ी का हवाला देते हुए एक वर्ष की अवधि के लिये आपातकाल लागू कर दिया गया।
वैश्विक प्रतिक्रिया
- चीन: चीन ने इस मामले पर स्पष्ट किया है कि म्याँमार में सभी पक्ष राजनीतिक और सामाजिक स्थिरता बनाए रखने के लिये संविधान और कानूनी ढाँचे के तहत अपने मतभेदों को जल्द ही समाप्त कर लेंगे।
- अमेरिका: अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ने देश के सैन्य प्रतिनिधियों द्वारा तख्तापलट किये जाने के बाद म्याँमार पर प्रतिबंधों को फिर से लागू करने की धमकी दी और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से इस मामले पर एकजुटता की मांग की है।
- आसियान देश: आसियान की अध्यक्षता कर रहे ब्रुनेई ने म्याँमार में सभी पक्षों के बीच संवाद और सामंजस्य का आह्वान किया है तथा उनसे पुनः सामान्य स्थिति बहाल करने का आग्रह किया है।
- भारत की प्रतिक्रिया
- भारत भी म्याँमार में लोकतांत्रिक परिवर्तन की प्रक्रिया का समर्थन करता है।
- यद्यपि भारत ने म्याँमार के हालिया घटनाक्रम पर गहरी चिंता व्यक्त की है, किंतु म्याँमार की सेना से अपने संबंध खराब करना एक व्यवहार्य विकल्प नहीं होगा , क्योंकि म्याँमार के साथ भारत के कई महत्त्वपूर्ण आर्थिक और सामरिक हित जुड़े हैं।
म्याँमार में भारत के सामरिक हित
- म्याँमार की सेना के साथ भारत के संबंध
- म्याँमार के साथ भारत के सैन्य-राजनयिक संबंध भारत की ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।
- वर्ष 2020 में म्याँमार में सेनाध्यक्ष और विदेश सचिव के हालिया दौरे की पूर्व संध्या पर म्याँमार ने सीमा पार से आने वाले 22 भारतीय विद्रोहियों को वापस भारत को सौंपा था, साथ ही भारत की और से म्याँमार को सैन्य हार्डवेयर, जिसमें 105 mm लाइट आर्टिलरी गन, नौसेनिक गनबोट और हल्के टॉरपीडो आदि की बिक्री बढ़ाने का भी निर्णय लिया गया था।
- दोनों देशों के बीच सहयोग का हालिया उदाहरण देखें तो म्याँमार द्वारा अपने टीकाकरण अभियान में भारत से भेजे गए कोरोना वायरस के टीके की 1.5 मिलियन खुराक का प्रयोग किया जा रहा है, जबकि वहाँ चीन की 3,00,000 खुराक पर फिलहाल के लिये रोक लगा दी गई है।
- म्याँमार में भारत के हित
- अवसंरचना और कनेक्टिविटी: भारत ने म्याँमार के साथ कई अवसंरचना और विकास संबंधी परियोजनाओं की शुरुआत की है, क्योंकि भारत म्याँमार को पूर्वी एशिया और आसियान देशों में प्रवेश के द्वार के रूप में देखता है।
- म्याँमार के राखीन प्रांत में वर्ष 2021 तक महत्त्वपूर्ण सित्वे बंदरगाह का परिचालन शुरू होने की उम्मीद जताई जा रही है।
- भारत द्वारा त्रिपक्षीय राजमार्ग (भारत-म्याँमार-थाईलैंड) और कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांज़िट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट जैसे बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में सहायता की जा रही है।
- कलादान परियोजना कोलकाता को म्याँमार के सित्वे और फिर म्याँमार की कलादान नदी से भारत के उत्तर-पूर्व को जोड़ेगी।
- दोनों देशों ने वर्ष 2018 में भूमि सीमा पार समझौते पर हस्ताक्षर किये थे, जिसके माध्यम से भारत-म्याँमार सीमा पर प्रवेश/निकास के दो अंतर्राष्ट्रीय बिंदुओं पर सीमा पार करने के लिये वैध दस्तावेज़ों वाले यात्रियों को यात्रा की अनुमति दी गई थी।
- अवसंरचना और कनेक्टिविटी: भारत ने म्याँमार के साथ कई अवसंरचना और विकास संबंधी परियोजनाओं की शुरुआत की है, क्योंकि भारत म्याँमार को पूर्वी एशिया और आसियान देशों में प्रवेश के द्वार के रूप में देखता है।
- सुरक्षा: भारत, म्याँमार में शरण ले रहे यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (UNLF) और नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (NDFB) जैसे उत्तर-पूर्व क्षेत्र के कुछ उग्रवादी समूहों को लेकर चिंतित है।
- भारत को उत्तर-पूर्व सीमा क्षेत्रों में सुरक्षा और स्थिरता बनाए रखने के लिये म्याँमार के समर्थन और उसके साथ समन्वय करने की आवश्यकता है।
- रोहिंग्या मुद्दा: भारत और बांग्लादेश के शरणार्थी शिविरों में मौजूद रोहिंग्या शरणार्थियों की सुरक्षित, स्थायी और शीघ्र वापसी सुनिश्चित करने के लिये भारत ने अपनी प्रतिबद्धता ज़ाहिर की है।
- ‘रखाइन राज्य विकास कार्यक्रम’ (RSDP) के तहत की गई प्रगति के आधार पर भारत ने हाल ही में कार्यक्रम के चरण-III के तहत परियोजनाओं को अंतिम रूप देने का प्रस्ताव किया है, जिसमें कौशल प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना और कृषि तकनीक का उन्नयन शामिल है।
- निवेश: 1.2 बिलियन डॉलर के निवेश संबंधी आँकड़ों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि म्याँमार दक्षिण एशिया के किसी भी अन्य देश की तुलना में भारत के लिये काफी अधिक महत्त्व रखता है।
- ऊर्जा: दोनों देश ऊर्जा सहयोग के क्षेत्र में भी साझेदारी का विस्तार कर रहे हैं।
- हाल ही में भारत ने म्याँमार की श्वे तेल और गैस परियोजना में 120 मिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक के निवेश को मंज़ूरी दी है।
आगे की राह
भारत को दोनों देशों (भारत और म्याँमार) के लोगों के पारस्परिक विकास को सुनिश्चित करने लिये म्याँमार की वर्तमान सत्ता के साथ अपने संबंधों को बनाए रखना चाहिये, साथ ही यह भी आवश्यक है कि भारत, म्याँमार के मौजूदा प्रचलित गतिरोध को समाप्त करने में सहायता करने के लिये संवैधानिकता और संघवाद से संबंधित अपने अनुभव साझा करे, जिससे इस समस्या को जल्द-से-जल्द हल किया जा सके।