अटलांटिक मेरिडिनल ओवरटर्निंग करंट
प्रिलिम्स के लियेअटलांटिक मेरिडिनल ओवरटर्निंग करंट, कोरिओलिस प्रभाव, अंटार्कटिक सर्कम्पोलर करंट , अल नीनो मेन्स के लियेअटलांटिक मेरिडिनल ओवरटर्निंग करंट कम होते प्रभाव का परिणाम |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जारी IPCC की रिपोर्ट के अनुसार, अटलांटिक मेरिडिनल ओवरटर्निंग करंट (AMOC) अपनी स्थिरता खो रहा है और 21वीं सदी में इसके कम होने की संभावना है।
- महासागर में हवा, ज्वार, पृथ्वी के घूर्णन (कोरिओलिस प्रभाव), सूर्य (सौर ऊर्जा) और जल घनत्व अंतर एक अंतःस्थापित धारा या परिसंचरण द्वारा संचालित प्रणाली है।
प्रमुख बिंदु
AMOC के बारे में:
- यह महासागरीय धाराओं की एक बड़ी प्रणाली है।
- यह महासागरीय कन्वेयर बेल्ट या थर्मोहैलाइन सर्कुलेशन (THC) की अटलांटिक शाखा है और दुनिया भर की महासागरीय घाटियों में ऊष्मा तथा पोषक तत्त्व वितरित करती है।
AMOC के कार्य:
- AMOC उष्ण कटिबंध से उत्तरी गोलार्द्ध की ओर गर्म सतही जल ले जाता है, जहाँ यह ठंडा होकर समाहित हो जाता है।
- यह फिर उष्णकटिबंधीय और उसके बाद दक्षिण अटलांटिक में नीचे की धारा के रूप में वापस आता है। वहाँ से इसे अंटार्कटिक सर्कम्पोलर करंट के माध्यम से सभी महासागरीय घाटियों में वितरित किया जाता है।
- अंटार्कटिक सर्कम्पोलर धारा (Antarctic Circumpolar Current) दक्षिणी महासागर की सबसे महत्त्वपूर्ण धारा है, यह एकमात्र धारा है जो पृथ्वी के चारों ओर बहती है ।
AMOC की गिरावट के निहितार्थ:
- AMOC और गल्फ स्ट्रीम के कमज़ोर पड़ने से यूरोप को भीषण ठंड का सामना करना होगा।
- गल्फ स्ट्रीम (गर्म धारा), AMOC का एक हिस्सा, यह उत्तरी अमेरिका के पूर्वी तट के साथ-साथ यूरोप की जलवायु के लिये एक ज़िम्मेदार कारक है।
- AMOC के कमज़ोर होने से उत्तरी गोलार्द्ध ठंडा हो जाएगा तथा यूरोप में वर्षा कम होगी।
- इसका प्रभाव अल नीनो पर भी पड़ सकता है।
- अल नीनो एक जलवायु पैटर्न है जो पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में सतही जल के असामान्य रूप से तापन की स्थिति को दर्शाता है।
- यह दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका में भी मानसून को स्थानांतरित कर सकता है।
कारण
- जलवायु मॉडल ने लंबे समय से भविष्यवाणी की है कि ग्लोबल वार्मिंग दुनिया की प्रमुख महासागर प्रणालियों के कमज़ोर होने का कारण बन सकता है।
- ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर के पिघलने से ताज़े पानी का प्रवाह।
- जुलाई 2021 में शोधकर्त्ताओं ने देखा कि आर्कटिक की बर्फ का एक हिस्सा जिसे "लास्ट आइस एरिया" कहा जाता है, भी पिघल गया है।
- पिघलने वाली बर्फ से निर्मित ताज़ा जल दूसरे जल की लवणता और घनत्व को कम करता है।
- अब पानी पहले की तरह बहने में असमर्थ है और AMOC प्रवाह को कमज़ोर करता है।
- यह हिंद महासागर में भी AMOC को धीमा करने में मदद कर सकता है।
- बढ़ती वर्षा और नदी अपवाह।
AMOC का महत्त्व:
- यह दुनिया भर में गर्मी के पुनर्वितरण और मौसम के पैटर्न को नियंत्रित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
चिंताएँ:
- AMOC की गिरावट केवल एक उतार-चढ़ाव या बढ़ते तापमान के साथ एक रैखिक प्रतिक्रिया नहीं है, बल्कि इसका अर्थ है एक महत्त्वपूर्ण सीमा तक पहुँचना जिसके आगे संचलन प्रणाली बाधित हो सकती है।
महासागरीय धाराएँ:
परिचय:
- महासागरीय धाराएँ समुद्र की सतह पर और गहरे पानी में 300 मीटर से नीचे स्थित होती हैं। ये जल को क्षैतिज और लंबवत रूप से स्थानांतरित कर सकती हैं तथा स्थानीय एवं वैश्विक दोनों पैमानों पर उत्पन्न हो सकती हैं।
सतही धाराएँ:
- महासागर में सतही धाराएँ वैश्विक पवन प्रणालियों द्वारा संचालित होती हैं जो सूर्य की ऊर्जा द्वारा संचालित होती हैं। सतही धाराओं का पैटर्न, वायु की दिशा, पृथ्वी के घूर्णन से कोरिओलिस बलों और भू-आकृतियों की स्थिति से निर्धारित होता है।
- सतही वायु से चलने वाली धाराएँ भू-आकृतियों के साथ ऊपर की ओर उठती धाराएँ उत्पन्न करती हैं, जिससे गहरे पानी की धाराएँ बनती हैं।
- अपवेलिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें गहरा, ठंडा पानी सतह की ओर ऊपर उठता है।
- अमेरिका के पूर्वी तट के साथ गल्फ स्ट्रीम भूमध्यरेखीय क्षेत्र से उत्तरी अटलांटिक महासागर तक गर्म पानी ले जाती है, जिससे दक्षिण-पूर्वी तट अपेक्षाकृत गर्म रहता है।
- अमेरिका के पश्चिमी तट के साथ कैलिफ़ोर्निया धारा ध्रुवीय क्षेत्र से दक्षिण की ओर ठंडा जल ले जाती है, जिससे पश्चिमी तट, पूर्वी तट की तुलना में अपेक्षाकृत ठंडा रहता है।
- घूर्णन (Gyre), एक विशाल गोलाकार प्रणाली है जो समुद्र की धाराओं से बनी होती है जो सर्पिल होती है।
- जैसे अटलांटिक महासागर में गल्फ स्ट्रीम-नॉर्थ अटलांटिक-नॉर्वे करंट और प्रशांत महासागर में कुरोशियो-नॉर्थ पैसिफिक धारा।
गहरे पानी की धाराएँ:
- तापमान (थर्मो) और लवणता (हलाइन) भिन्नताओं के कारण पानी के द्रव्यमान में घनत्व अंतर के कारण भी धाराएँ उत्पन्न हो सकती हैं, जिसे थर्मोहेलिन परिसंचरण के रूप में जाना जाता है।
- ये धाराएँ अपने साथ पोषक तत्त्व, ऑक्सीजन और ऊष्मा को गहरे समुद्र में पानी के द्रव्यमान में ले जाती हैं।
कन्वेयर बेल्ट:
- समुद्र के पानी में घनत्व अंतर वैश्विक स्तर पर परिसंचरण प्रणाली में योगदान देता है जिसे वैश्विक कन्वेयर बेल्ट भी कहा जाता है। इसमें सतह और गहरे समुद्र की धाराएँ शामिल हैं जो 1,000 वर्ष के चक्र में दुनिया का चक्कर लगाती हैं।
- वैश्विक कन्वेयर बेल्ट का संचलन एक साथ दो प्रक्रियाओं का परिणाम है: गर्म सतह की धाराएँ कम घने पानी को भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर ले जाती हैं और ठंडी गहरी समुद्री धाराएँ ध्रुवों से दूर भूमध्य रेखा की ओर सघन पानी ले जाती हैं।
- महासागर की वैश्विक परिसंचरण प्रणाली गर्मी, ऊर्जा के वितरण, मौसम एवं जलवायु को विनियमित करने और पोषक तत्त्वों तथा गैसों के चक्रण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
मौद्रिक नीति रिपोर्ट: भारतीय रिज़र्व बैंक
प्रिलिम्स के लिये:मौद्रिक नीति रिपोर्ट, मौद्रिक नीति समीक्षा में प्रयुक्त प्रमुख शब्दावलियाँ, मौद्रिक नीति समिति मेन्स के लिये:मौद्रिक नीति समीक्षा का उद्देश्य |
चर्चा में क्यों?
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने अगस्त 2021 के महीने के लिये मौद्रिक नीति रिपोर्ट (Monetary Policy Report- MPR) जारी की है।
- इसने लगातार सातवीं बार नीतिगत दर को अपरिवर्तित रखा और केंद्र तथा राज्यों से मुद्रास्फीति के दबाव को कम करने के लिये ईंधन पर कर कम करने की अपील की।
मौद्रिक नीति रिपोर्ट
- MPR को RBI की मौद्रिक नीति समिति (MPC) द्वारा प्रकाशित किया जाता है।
- MPC विकास के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए मूल्य स्थिरता बनाए रखने के लिये RBI अधिनियम, 1934 के तहत एक वैधानिक और संस्थागत ढाँचा है।
- MPC, 4% के मुद्रास्फीति लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये आवश्यक नीति ब्याज दर (रेपो दर) निर्धारित करती है, जिसमें दोनों तरफ 2% अंक होते हैं।
- RBI का गवर्नर MPC का पदेन अध्यक्ष है।
प्रमुख बिंदु
अपरिवर्तित रेट/दर:
- रेपो दर - 4%.
- रिवर्स रेपो दर - 3.35%.
- सीमांत स्थायी सुविधा (MSF) - 4.25%.
- बैंक दर- 4.25%.
GDP आकलन:
- वर्ष 2021-22 के लिये वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की वृद्धि दर 9.5% पर बरकरार रखी गई है।
मुद्रास्फीति:
- RBI ने उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) आधारित मुद्रास्फीति के अनुमान को 5.1% से संशोधित कर 5.7% कर दिया है।
परिवर्तनीय दर प्रतिवर्ती रेपो (Variable Rate Reverse Repos):
- अतिरिक्त तरलता को अवशोषित करने के लिये RBI ने फिक्स्ड रेट ओवरनाइट रिवर्स रेपो की तुलना में अधिक यील्ड की संभावनाओं के कारण एक परिवर्तनीय दर रिवर्स रेपो (VRRR) कार्यक्रम आयोजित करने की घोषणा की।
- RBI ने चरणबद्ध तरीके से VRRR के तहत राशि को बढ़ाकर 4 लाख करोड़ रुपए करने का फैसला किया है।
- इसने तनावग्रस्त व्यवसायों को ऋण देने के लिये बैंकों को तरलता सहायता अवधि बढ़ाकर 31 दिसंबर, 2021 कर दिया।
ब्याज़ दर:
- मुद्रास्फीति का ऊँचा स्तर और अर्थव्यवस्था में देरी से सुधार ने पैनल को दरों को स्थिर रखने के लिये प्रेरित किया है। बैंकिंग प्रणाली में ब्याज दरें अगले कुछ महीनों में स्थिर रहने की आशा है।
- राज्यों में कोविड की दूसरी लहर और लॉकडाउन के कारण रिकवरी की खराब स्थिति का सामना करना पड़ा
अनुकूल रुख:
- इसने टिकाऊ आधार पर विकास को पुनर्जीवित करने और बनाए रखने के लिये आवश्यक लंबे समय तक एक समायोजन रुख को जारी रखने का फैसला किया और अर्थव्यवस्था पर कोविड-19 के प्रभाव को कम करना जारी रखा, जबकि यह भी सुनिश्चित किया कि मुद्रास्फीति आगे बढ़ने वाले लक्ष्य के भीतर बनी रहे।
- एक उदार रुख का अर्थ है कि एक केंद्रीय बैंक ज़रूरत पड़ने पर वित्तीय प्रणाली में पैसा लगाने के लिये दरों में कटौती करेगा।
रिकवरी के लिये आशावाद:
- लचीली मांग:
- आर्थिक पैकेज:
- हालाँकि निवेश की मांग अभी भी कमज़ोर है, क्षमता उपयोग में सुधार, इस्पात की बढ़ती खपत, पूंजीगत वस्तुओं के उच्च आयात, अनुकूल मौद्रिक और वित्तीय स्थिति तथा केंद्र सरकार द्वारा घोषित आर्थिक पैकेजों से लंबे समय से प्रतीक्षित पुनरुद्धार कार्य शुरू होने की उम्मीद है।
- उच्च आवृत्ति संकेतक:
- उच्च आवृत्ति संकेतक (बिजली की खपत, रात्रि प्रकाश की तीव्रता और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड उत्सर्जन) सुझाव देते हैं कि उपभोग (निजी और सरकारी दोनों), निवेश और बाहरी मांग सभी आकर्षण का केंद्र हैं।
चिंताएँ:
- मुद्रास्फीति प्रबंधन एक गंभीर चुनौती पेश कर सकता है जब ईंधन की ऊँची कीमत पास-थ्रू होने लगती है तो इस प्रकार के मुद्रास्फीति परिवर्तन के परिभाषित रूप से अस्थायी होने की संभावना नहीं होती।
सुझाव:
- कर में कमी द्वारा :
- कच्चे तेल की कीमतें ऊँचे स्तर पर होने से केंद्र और राज्यों द्वारा पंप की कीमतों के अप्रत्यक्ष कर घटक की एक अंशांकित कमी, लागत दबाव को काफी हद तक कम करने में मदद कर सकती है।
- आर्थिक प्रोत्साहन:
- आर्थिक गतिविधियों पर तेज़ी के बावजूद यह महत्त्वपूर्ण है कि सरकार द्वारा उपभोग पर ज़ोर देने के लिये प्रोत्साहन प्रदान किया जाए। इस तरह के उपायों के लिये इस समय यह उपयुक्त होगा क्योंकि फेस्टिवल सीज़न शुरू होने वाला है।
- नीति उपयोग:
- राजकोषीय, मौद्रिक और क्षेत्रीय नीति उत्तोलक के माध्यम से प्रारंभिक और लंबित बहाली को पोषित करने की आवश्यकता है।
महत्त्वपूर्ण मामले
रेपो और रिवर्स रेपो दर:
- रेपो दर वह दर है जिस पर किसी देश का केंद्रीय बैंक (भारत के मामले में भारतीय रिज़र्व बैंक) किसी भी तरह की धनराशि की कमी होने पर वाणिज्यिक बैंकों को धन देता है। इस प्रक्रिया में केंद्रीय बैंक प्रतिभूति खरीदता है।
- रिवर्स रेपो दर वह दर है जिस पर RBI देश के भीतर वाणिज्यिक बैंकों से धन उधार लेता है।
बैंक दर:
- यह वाणिज्यिक बैंकों को निधियों को उधार देने के लिये RBI द्वारा प्रभारित दर है।
सीमांत स्थायी दर (MSF):
- MSF ऐसी स्थिति में अनुसूचित बैंकों के लिये आपातकालीन स्थिति में RBI से ओवरनाइट ऋण लेने की सुविधा है जब अंतर-बैंक तरलता पूरी तरह से कम हो जाती है।
- अंतर-बैंक ऋण के तहत बैंक निर्दिष्ट अवधि के लिये एक-दूसरे को धन उधार देते हैं।
मुद्रास्फीति:
- मुद्रास्फीति का तात्पर्य दैनिक या आम उपयोग की अधिकांश वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में वृद्धि से है, जैसे कि भोजन, कपड़े, आवास, मनोरंजन, परिवहन, उपभोक्ता स्टेपल इत्यादि।
- मुद्रास्फीति समय के साथ वस्तुओं और सेवाओं की बास्केट में औसत मूल्य परिवर्तन को मापती है।
- मुद्रास्फीति किसी देश की मुद्रा की एक इकाई की क्रय शक्ति में कमी का संकेत है। इससे अंततः आर्थिक विकास में मंदी आ सकती है।
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक:
- यह खुदरा खरीदार के दृष्टिकोण से मूल्य परिवर्तन को मापता है। यह राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा जारी किया जाता है।
- CPI खाद्य, चिकित्सा देखभाल, शिक्षा, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि उन वस्तुओं और सेवाओं की कीमत में अंतर की गणना करता है, जिन्हें भारतीय उपभोक्ता द्वारा उपभोग के लिये खरीदा जाता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
इंडिया प्लास्टिक पैक्ट
प्रिलिम्स के लिये:इंडिया प्लास्टिक पैक्ट, भारतीय उद्योग परिसंघ, वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर, स्वच्छ भारत अभियान मेन्स के लिये:इंडिया प्लास्टिक पैक्ट एवं इसका महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
इंडिया प्लास्टिक पैक्ट, भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) और वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (WWF) के सहयोग से एशिया में पहली बार सितंबर में लॉन्च किया जाएगा।
- हाल ही में प्लास्टिक सर्कुलर गैप को बंद करने पर प्रकाशित एक रिपोर्ट ने सुझाव दिया कि प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन हेतु बड़े पैमाने पर वैश्विक हस्तक्षेप करने की सख्त आवश्यकता है।
प्लास्टिक पैक्ट:
- प्लास्टिक समझौते, व्यवसाय के नेतृत्त्व वाली पहलें हैं और सभी प्रारूपों एवं उत्पादों के लिये प्लास्टिक पैकेजिंग मूल्य शृंखला को बदलते हैं।
- समझौते व्यावहारिक समाधानों को लागू करने के लिये प्लास्टिक मूल्यशृंखला से संबंधित सभी लोगों को एक साथ लाते हैं।
- सभी समझौतों के चार साझा लक्ष्य हैं:
- रिडिज़ाइन और इनोवेशन के ज़रिये अनावश्यक और समस्याग्रस्त प्लास्टिक पैकेजिंग को खत्म करना;
- यह सुनिश्चित करना कि सभी प्लास्टिक पैकेजिंग पुन: प्रयोज्य हों,
- प्लास्टिक पैकेजिंग के पुन: उपयोग, संग्रह और पुनर्चक्रण को बढ़ाना,
- प्लास्टिक पैकेजिंग में पुनर्नवीनीकरण सामग्री को बढ़ाना।
- पहला प्लास्टिक समझौता वर्ष 2018 में यूके में लॉन्च किया गया था।
प्रमुख बिंदु
परिचय:
- इंडिया प्लास्टिक पैक्ट एक महत्त्वाकांक्षी, सहयोगात्मक पहल है जिसका उद्देश्य संपूर्ण मूल्य शृंखला में व्यवसायों, सरकारों और गैर-सरकारी संगठनों को एक साथ लाना है ताकि प्लास्टिक को कम करने के लिये समयबद्ध प्रतिबद्धताएँ निर्धारित की जा सकें।
- जब इंडिया प्लास्टिक पैक्ट भारत में सक्रिय होगा तो यह विश्व स्तर पर अन्य प्लास्टिक संधियों के साथ जुड़ जाएगा।
- यह समझौता मार्गदर्शन हेतु एक रोडमैप विकसित करेगा, जिसके आधार पर सदस्यों के साथ मिलकर एक्शन ग्रुप बनाया जाएगा और इनोवेशन प्रोजेक्ट शुरू होगा।
- इसके तहत महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों और वार्षिक डेटा रिपोर्टिंग के माध्यम से सदस्यों की जवाबदेही सुनिश्चित की जाती है।
- इंडिया प्लास्टिक पैक्ट का विज़न, लक्ष्य और महत्त्वाकांक्षा ‘एलेन मैकआर्थर फाउंडेशन’ की ‘न्यू प्लास्टिक इकाॅनमी’ के ‘सर्कुलर इकाॅनमी’ सिद्धांतों के अनुरूप है।
लक्ष्य:
- संधि का उद्देश्य वर्तमान रैखिक प्लास्टिक प्रणाली को एक सर्कुलर प्लास्टिक अर्थव्यवस्था में बदलना है, अन्य उद्देश्य हैं:
- समस्याग्रस्त प्लास्टिक का उपयोग कम करना,
- अन्य उत्पादों में उपयोग के लिये अर्थव्यवस्था में मूल्यवान सामग्री को बनाए रखना,
- भारत में प्लास्टिक प्रणाली में रोज़गार, निवेश और अवसर पैदा करना।
- इसका उद्देश्य सार्वजनिक-निजी सहयोग को बढ़ावा देना है जो प्लास्टिक को खत्म करने वाले समाधानों को सक्षम बनाता है, पैकेजिंग डिज़ाइन में नवाचार लाता है और हमारे द्वारा उपयोग किये जाने वाले प्लास्टिक मूल्यों को ग्रहण करता है।
प्लास्टिक समझौते की आवश्यकता:
- भारतीय परिदृश्य:
- भारत वार्षिक तौर पर 9.46 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न करता है।
- 40% प्लास्टिक कचरा बिना संग्रहण के चला जाता है।
- भारत में उत्पादित सभी प्लास्टिक का 43% पैकेजिंग के लिये उपयोग किया जाता है, उनमें से अधिकांश का एकल उपयोग होता है।
- हालाँकि आजीविका के दृष्टिकोण से देखा जाए तो उपभोक्ता के बाद के अलगाव, प्लास्टिक का संग्रह और निपटान भारत में 1.5-4 मिलियन कचरा बीनने वालों की आय का लगभग आधा है।
- वैश्विक परिदृश्य:
- अगले 20 वर्षों में वैश्विक स्तर पर 7.7 बिलियन मीट्रिक टन से अधिक प्लास्टिक कचरे के कुप्रबंधन की संभावना है, जो मानव आबादी के वज़न के 16 गुना के बराबर है।
- प्लास्टिक के कई अनुप्रयोगों में प्लास्टिक पैकेजिंग सबसे बड़ा है।
- सेंटर फॉर इंटरनेशनल एन्वायरनमेंटल लॉ ( Center for International Environmental Law) की वर्ष 2019 की एक रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2050 तक प्लास्टिक से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन 56 गीगाटन से अधिक हो सकता है, शेष कार्बन बजट का 10-13%।
- अगले 20 वर्षों में वैश्विक स्तर पर 7.7 बिलियन मीट्रिक टन से अधिक प्लास्टिक कचरे के कुप्रबंधन की संभावना है, जो मानव आबादी के वज़न के 16 गुना के बराबर है।
अपेक्षित परिणाम:
- इसके चलते पुनर्नवीनीकरण सामग्री की मांग को बढ़ावा देने, पुनर्चक्रण बुनियादी ढाँचे में निवेश, अपशिष्ट क्षेत्र में नौकरियों और उससे अधिक की उम्मीद की जा सकती है।
- यह फ्रेमवर्क सरकार के विस्तारित उत्पादक जवाबदेहिता ढाँचे का समर्थन करेगा और स्वच्छ भारत अभियान में परिकल्पित ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार करेगा।
- समझौते के फ्रेमवर्क का अभिन्न अंग अनौपचारिक अपशिष्ट क्षेत्र की भागीदारी है जो उपभोक्ता के बाद के अलगाव, प्लास्टिक कचरे के संग्रह और प्रसंस्करण के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- समाज और अर्थव्यवस्था को लाभ के अलावा, लक्ष्यों को पूरा करने से प्लास्टिक के पुर्नचक्रण में वृद्धि होगी और प्रदूषण से निपटने में मदद मिलेगी।
- वे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में उल्लेखनीय कमी करेंगे।
चक्रीय अर्थव्यवस्था
- चक्रीय अर्थव्यवस्था उत्पादन और उपभोग का वह मॉडल है, जिसमें यथासंभव वर्तमान सामग्रियों और उत्पादों को साझा करना, पट्टे पर देना, पुन: उपयोग करना, मरम्मत करना, नवीनीकरण और पुनर्चक्रण करना शामिल है। इस प्रकार उत्पादों का जीवन चक्र बढ़ाया जाता है।
- व्यावहारिक रूप में इसका तात्पर्य कचरे को न्यूनतम करना है। जब कोई उत्पाद अपने जीवन के अंत तक पहुँच जाता है, तो उसकी सामग्री को जहाँ भी संभव हो अर्थव्यवस्था के भीतर रखा जाता है। इन्हें बार-बार उत्पादक द्वारा उपयोग किया जा सकता है, जिससे आगे मूल्य अर्जित किया जा सके।
एलेन मैकआर्थर (Ellen MacArthur) फाउंडेशन की नई प्लास्टिक अर्थव्यवस्था का सिद्धांत:
- यह तीन सिद्धांतों पर आधारित है:
- कचरे और प्रदूषण को डिज़ाइन करें।
- उत्पादों और सामग्रियों को उपयोग में रखें।
- प्राकृतिक प्रणालियों को पुनर्जीवित करें।
स्रोत : द हिंदू
गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस
प्रिलिम्स के लियेद ग्रीन गोल्ड कलेक्शन, गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस, मेक इन इंडिया मेन्स के लियेगवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस : महत्त्व एवं चुनौतियाँ, ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा मूल देश के नाम को प्रदर्शित करने के प्रावधान से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस (GeM) सिस्टम के परिणामस्वरूप पाँच वर्षों में सार्वजनिक खरीद लागत में 10% की बचत हुई है, लेकिन अभी भी यह भारत की कुल सरकारी खरीद का केवल 5% लगभग 20 लाख करोड़ रुपए प्रतिवर्ष है।
- GeM पोर्टल के माध्यम से संसाधित ऑर्डर मूल्य का 56% सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) द्वारा वितरित किया गया है, जिसमें सात लाख लघु उद्यम/ फर्में शामिल हैं।
प्रमुख बिंदु
परिचय :
- GeM विभिन्न केंद्रीय और राज्य सरकारों के विभागों/संगठनों/सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSU) द्वारा आवश्यक सामान्य उपयोग की वस्तुओं और सेवाओं की ऑनलाइन खरीद की सुविधा के लिये वन-स्टॉप राष्ट्रीय सार्वजनिक खरीद पोर्टल है।
- GeM पर उपलब्ध वस्तुओं और सेवाओं के लिये मंत्रालयों व केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (CPSEs) द्वारा वस्तुओं एवं सेवाओं की खरीद करना अनिवार्य है।
- यह सरकारी उपयोगकर्त्ताओं को उनके पैसे का सर्वोत्तम मूल्य प्राप्त करने की सुविधा के लिये ई-बोली और रिवर्स ई-नीलामी जैसे उपकरण भी प्रदान करता है।
- वर्तमान में GeM के पास 30 लाख से अधिक उत्पाद हैं, इसके पोर्टल पर अब तक 10 लाख करोड़ रुपए का लेन-देन हो चुका है।
लॉन्च:
- इसे वर्ष 2016 में सरकारी खरीद प्रक्रिया में पारदर्शिता और दक्षता लाने के लिये लॉन्च किया गया था।
नोडल मंत्रालय:
- वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय
हालिया अद्यतन:
- बम्बू (Bamboo) मार्केट विंडो (द ग्रीन गोल्ड कलेक्शन)।
- उत्पादों के मूल देश का होना अनिवार्य : GeM ने सभी विक्रेताओं को ई-मार्केटप्लेस (Government e-Marketplace- GeM) पर नए उत्पादों को पंजीकृत करते समय ‘मूल देश’ को सूचीबद्ध करने के लिये अनिवार्य किया है।
- इसे पोर्टल पर सक्षम किया गया है ताकि खरीदार केवल उन्हीं उत्पादों को खरीदने के लिये चुन सकें जो न्यूनतम 50% स्थानीय सामग्री मानदंडों को पूरा करते हों।
महत्त्व:
- पारदर्शी और लागत प्रभावी खरीद: GeM त्वरित, कुशल, पारदर्शी और लागत प्रभावी खरीद को सक्षम बना रहा है, खासकर जब सरकारी संगठनों को कोविड-19 महामारी से लड़ने के लिये उत्पादों और सेवाओं की तत्काल आवश्यकता होती है।
- आत्मनिर्भर भारत का प्रचार: GeM आत्मनिर्भर भारत नीति को बढ़ावा दे रहा है, जिसे कोविड-19 महामारी के मद्देनज़र पेश किया गया है, जिसका उद्देश्य आत्मनिर्भरता को प्रोत्साहित करना और छोटे भारतीय विनिर्माताओं को बढ़ावा देना है।
- छोटे स्थानीय विक्रेताओं का प्रवेश: बाज़ार ने सरकार की 'मेक इन इंडिया' और एमएसएमई खरीद वरीयता नीतियों को सही मायने में लागू करते हुए सार्वजनिक खरीद में छोटे स्थानीय विक्रेताओं के प्रवेश की सुविधा प्रदान की है।
- एक ही स्थान पर कई संस्थाएँ: ऑनलाइन मार्केटप्लेस समान उत्पादों के लिये कई संस्थाओं से मांग कर सकता है और राज्य सरकारों द्वारा छोटे उद्यमों को प्रदान की गई प्राथमिकताओं के आधार पर निर्माण कर सकता है।
चुनौतियाँ:
- एकाधिक पोर्टल:
- केंद्र सरकार के विभागों में कई पोर्टल हैं, जैसे- रक्षा खरीद पोर्टल और भारतीय रेलवे ई-प्रोक्योरमेंट सिस्टम जो राष्ट्रीय सार्वजनिक खरीद पोर्टल के रूप में अपने जनादेश को प्राप्त करने के लिये GeM के प्रयास को सीमित कर सकते हैं और पैमाने व दक्षता की अर्थव्यवस्थाओं का लाभ प्रदान कर सकते हैं।
- अनुपालन की कमी:
- यह सभी केंद्रीय संगठनों हेतु सामान्य वित्तीय नियम (GFR) 2017 के नियम 149 का अनुपालन करने की एक चुनौती का भी सामना करता है, जिसमें यह अनिवार्य है कि सभी सामान्य उपयोग की वस्तुएँ और सेवाएँ जो कि GEM पोर्टल पर उपलब्ध हैं, मंच पर आवश्यक रूप से खरीदी जानी चाहिये।
आगे की राह:
- GeM की महत्त्वाकांक्षा आकार में वृद्धि और खरीदारों तथा विक्रेताओं दोनों के लिये वन-स्टॉप शॉप बनने की है। इसने एक शानदार शुरुआत की है और यह धीरे-धीरे एक कुशल व विश्वसनीय मार्केटप्लेस इकोसिस्टम का निर्माण कर रहा है।
- यदि यह अपने विकास को सीमित करने वाली चुनौतियों को प्रभावी ढंग से दूर करता है तो एक चमकदार खनिज क्रिस्टल जितना कीमती हो सकता है, जिसे इसके नाम से ही पुकारा जाता है।
स्रोत: द हिंदू
विश्व आदिवासी दिवस, 2021
प्रिलिम्स के लिये:विश्व आदिवासी दिवस, संयुक्त राष्ट्र, स्वदेशी भाषाओं का दशक, स्वदेशी मुद्दों पर स्थायी संयुक्त राष्ट्र फोरम मेन्स के लिये:विश्व आदिवासी दिवस की प्रासंगकिता एवं आदिवासियों की स्थिति तथा उनका योगदान |
चर्चा में क्यों?
विश्व आदिवासी दिवस या विश्व के स्वदेशी लोगों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस हर वर्ष 9 अगस्त को मनाया जाता है।
- इसका उद्देश्य दुनिया की स्वदेशी आबादी के अधिकारों को बढ़ावा देना और उनकी रक्षा करना है तथा उन योगदानों को स्वीकार करना है जो स्वदेशी लोग वैश्विक मुद्दों जैसे पर्यावरण संरक्षण हेतु करते हैं।
प्रमुख बिंदु
पृष्ठभूमि:
- यह दिन वर्ष 1982 में जिनेवा में स्वदेशी आबादी पर संयुक्त राष्ट्र कार्य समूह की पहली बैठक को मान्यता देता है।
- यह संयुक्त राष्ट्र की घोषणा के अनुसार वर्ष 1994 से हर वर्ष मनाया जाता है।
- आज भी कई स्वदेशी लोग अत्यधिक गरीबी, वंचन और अन्य मानवाधिकारों के उल्लंघन का अनुभव करते हैं।
थीम 2021:
- "किसी को पीछे नहीं छोड़ना: स्वदेशी लोग और एक नए सामाजिक अनुबंध का आह्वान।"
स्वदेशी लोग:
- स्वदेशी लोग अद्वितीय संस्कृतियों, लोगों और पर्यावरण समर्थित परंपराओं के उत्तराधिकारी व अभ्यासी हैं। उन्होंने सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक विशेषताओं को बरकरार रखा है जो उन प्रमुख समाजों से अलग हैं जिनमें वे रहते हैं।
- दुनिया भर के 90 देशों में 476 मिलियन से अधिक स्वदेशी लोग रहते हैं, जो वैश्विक आबादी का 6.2% हिस्सा है।
महत्त्व:
- महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा:
- विश्व की लगभग 80% जैव विविधता स्वदेशी आबादी द्वारा आबाद और संरक्षित है।
- महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र तथा प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये भूमि, प्रकृति और इनके विकास के बारे में उनका सहज, विविध ज्ञान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
- भाषाओं का संरक्षण:
- दुनिया की अधिकांश सांस्कृतिक विविधता का प्रतिनिधित्व करने वाले 370-500 मिलियन स्वदेशी लोगों के साथ वे दुनिया में लगभग 7000 भाषाओं में सर्वाधिक भाषाएँ बोलते हैं।
- शून्य भूख लक्ष्य में योगदान:
- स्वदेशी लोगों द्वारा उगाई जाने वाली फसलें अत्यधिक अनुकूलनीय होती हैं। वे सूखा, ऊँचाई, बाढ़ और तापमान किसी भी प्रकार की आपदा से भी बच सकती हैं। नतीजतन ये फसलें खेतों को पर्यावरण अनुकूल बनाने में मदद करती हैं।
- इसके अलावा क्विनोआ, मोरिंगा और ओका कुछ ऐसी देशी फसलें हैं जो हमारे खाद्य आधार का विस्तार एवं विविधता लाने की क्षमता रखती हैं। ये ज़ीरो हंगर लक्ष्य हासिल करने में योगदान देंगे।
अन्य वैश्विक प्रयास:
- स्वदेशी भाषाओं का दशक (2022-2032): इसका उद्देश्य स्थानीय/स्वदेशी भाषाओं का संरक्षण करना है, जो उनकी संस्कृतियों, विश्व के विचारों और दृष्टिकोणों के साथ-साथ आत्मनिर्णय की अभिव्यक्ति को संरक्षित करने में मदद करता है।
- स्वदेशी लोगों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र घोषणा (UNDRIP): यह दुनिया के स्वदेशी लोगों के अस्तित्व, सम्मान और कल्याण हेतु न्यूनतम मानकों का एक सार्वभौमिक ढाँचा प्रस्तुत करता है।
- स्वदेशी मुद्दों पर स्थायी संयुक्त राष्ट्र फोरम: इसकी स्थापना आर्थिक और सामाजिक विकास, संस्कृति, पर्यावरण, शिक्षा, स्वास्थ्य और मानवाधिकारों से संबंधित स्वदेशी मुद्दों से निपटने के लिये की गई थी। यह संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद हेतु एक सलाहकार निकाय है।
भारत में जनजातियांँ:
डेटा विश्लेषण:
- भारत में जनजाति की लगभग 104 मिलियन (जो देश की आबादी का लगभग 8.6% है) आबादी है।
- यद्यपि 705 ऐसे जातीय समूह हैं जिनकी औपचारिक रूप से पहचान गई है, इनमें से लगभग 75 विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह (PVTGs) हैं।
- गोंड भारत का सबसे बड़ा जनजातीय समूह है।
- सबसे अधिक संख्या में जनजातीय समुदाय (62) ओडिशा में पाए जाते हैं।
- केंद्रीय जनजातीय बेल्ट जिसमें भारत के पूर्वोत्तर राज्य शामिल हैं (राजस्थान से लेकर पश्चिम बंगाल तक के क्षेत्र सहित), सबसे अधिक स्वदेशी आबादी (Indigenous Population) का क्षेत्र है।
प्रमुख संवैधानिक प्रावधान:
- अनुच्छेद 342 (1)- राष्ट्रपति किसी भी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के संबंध में, राज्यपाल के परामर्श के बाद एक सार्वजनिक अधिसूचना द्वारा उस राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के संबंध में अनुसूचित जनजाति के रूप में जनजातीय या आदिवासी समुदायों या जनजातियों के उप- समूह या समूहों को निर्दिष्ट कर सकता है।
- अनुच्छेद 15- केवल धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध करता है।
- अनुच्छेद 16- लोक नियोजन के मामलों में अवसरों की समानता पर बल।
- अनुच्छेद 46- अनुसूचित जातियों, जनजातियों और अन्य कमज़ोर वर्गों के शैक्षिक और आर्थिक हितों को बढ़ावा देना।
- अनुच्छेद 335- अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों संबंधी सेवाओं और पदों पर दावा।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 338-A के तहत राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की स्थापना की गई है।
- 5वीं और 6वीं अनुसूची- अनुसूचित और जनजातीय क्षेत्रों का प्रशासन व नियंत्रण।
कानूनी प्रावधान:
- अस्पृश्यता के खिलाफ नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955।
- अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के खिलाफ अत्याचार के अपराधों को रोकने के लिये।
- पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, 1996, पंचायतों से संबंधित संविधान के भाग IX के प्रावधानों को अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तारित करने के लिये आधार प्रदान करता है।
- अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006, वन भूमि में रहने वाले अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वन निवासियों के वन अधिकारों और कब्ज़े को मान्यता प्रदान करता है।
पहलें:
- ट्राइफेड एक राष्ट्रीय स्तर का शीर्ष संगठन है जो जनजातीय मामलों के मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्य करता है। यह MFP और ट्राइफूड ( TRIFOOD) के लिये MSP जैसी योजनाओं में शामिल है।
- प्रधानमंत्री वन धन योजना: यह जनजातीय स्वयं सहायता समूहों (SHG) के गठन और उन्हें जनजातीय उत्पादक कंपनियों को मज़बूत करने के लिये एक बाज़ार से जुड़े आदिवासी उद्यमिता विकास कार्यक्रम है।
- क्षमता निर्माण पहल: आदिवासी पंचायती राज संस्थान (PRI) को सशक्त बनाना।
- GIS आधारित स्प्रिंग एटलस पर 1000 स्प्रिंग्स इनिशिएटिव और ऑनलाइन पोर्टल: हार्नेसिंग स्प्रिंग्स, जो भूजल निर्वहन के प्राकृतिक संसाधन हैं।
- जनजातीय स्कूलों का डिजिटल परिवर्तन: पहले चरण में 250 एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों (EMRS) को माइक्रोसॉफ्ट द्वारा अपनाया गया है, जिसमें से 50 EMRS स्कूलों को गहन प्रशिक्षण दिया जाएगा और 500 मास्टर प्रशिक्षकों को प्रशिक्षित किया जाएगा।
जनजातीय समुदायों से संबंधित समितियाँ:
- शाशा समिति (2013)
- भूरिया आयोग (2002-2004)
- लोकुर समिति (1965)
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
पीएम दक्ष योजना
प्रिलिम्स के लिये:पीएम-दक्ष योजना, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना 3.0, राष्ट्रीय कॅरियर सेवा परियोजना मेन्स के लिये:पीएम दक्ष योजना का समाजिक न्याय के क्षेत्र में योगदान |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने लक्षित समूहों- पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और सफाई कर्मचारियों के लिये कौशल विकास योजनाओं को सुलभ बनाने हेतु 'पीएम-दक्ष' (प्रधानमंत्री दक्ष और कुशलता संपन्न हितग्राही) पोर्टल और 'पीएम-दक्ष' मोबाइल एप लॉन्च किया है।
प्रमुख बिंदु
परिचय:
- पीएम-दक्ष योजना वर्ष 2020-21 से लागू की जा रही है।
- इसके तहत पात्र लक्ष्य समूहों को कौशल विकास पर अल्पावधि प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रदान किया जाता है; अप-स्किलिंग/रिस्किलिंग; उद्यमिता विकास कार्यक्रम और दीर्घकालिक प्रशिक्षण कार्यक्रम।
- ये प्रशिक्षण कार्यक्रम सरकारी प्रशिक्षण संस्थानों, कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय द्वारा गठित क्षेत्र कौशल परिषदों एवं अन्य विश्वसनीय संस्थानों के माध्यम से कार्यान्वित किये जा रहे हैं।
अर्हता:
- अनुसूचित जाति, ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग), आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग, विमुक्त जनजाति, कचरा बीनने वाले, हाथ से मैला ढोने वाले, ट्रांसजेंडर और अन्य समान श्रेणियों के हाशिये पर रहने वाले व्यक्ति।
कार्यान्वयन:
- यह मंत्रालय के तहत तीन निगमों द्वारा कार्यान्वित किया जाता है:
- राष्ट्रीय अनुसूचित जाति वित्त और विकास निगम (NSFDC),
- राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग वित्त एवं विकास निगम ((NBCFDC),
- राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी वित्त और विकास निगम (NSKFDC)।
लक्षित समूहों के कौशल विकास प्रशिक्षण की स्थिति:
- पिछले 5 वर्षों में लक्षित समूहों के 2,73,152 लोगों को कौशल विकास प्रशिक्षण दिया गया है।
- वर्ष 2021-22 के दौरान इन तीनों निगमों के माध्यम से लक्षित समूहों के लगभग 50,000 लोगों को कौशल विकास प्रशिक्षण प्रदान करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
योजना का महत्त्व:
- लक्षित समूहों के अधिकांश व्यक्तियों के पास न्यूनतम आर्थिक संपत्ति है इसलिये, हाशिये पर स्थित इन लक्षित समूहों के आर्थिक सशक्तीकरण / उत्थान हेतु प्रशिक्षण का प्रावधान करना और उनकी दक्षताओं को बढ़ाना आवश्यक है।
- लक्षित समूहों के कई व्यक्ति ग्रामीण कारीगरों की श्रेणी से संबंधित हैं जो बाज़ार में बेहतर तकनीकों के आने के कारण हाशिये पर चले गए हैं।
- महिलाओं को उनकी समग्र घरेलू मजबूरियों के कारण मज़दूरी रोज़गार में शामिल नहीं किया जा सकता है जिसमें आमतौर पर लंबे समय तक काम करने के घंटे और कभी-कभी दूसरे शहरों में प्रवास करना शामिल होता है, इन लक्षित समूहों के मध्य महिलाओं को सशक्त बनाने की आवश्यकता है।
कौशल विकास से संबंधित पहलें:
- प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना 3.0: इसे कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय (MSDE) द्वारा वर्ष 2021 में 300 से अधिक कौशल पाठ्यक्रम उपलब्ध कराकर भारत के युवाओं को रोज़गार योग्य कौशल के साथ सशक्त बनाने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
- राष्ट्रीय कॅरियर सेवा परियोजना: इसे वर्ष 2015 में शुरू किया गया था, योजना के तहत पंजीकृत रोज़गार चाहने वाले युवाओं को मुफ्त ऑनलाइन कॅरियर कौशल प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। यह परियोजना ‘केंद्रीय रोज़गार एवं श्रम मंत्रालय’ के महानिदेशालय द्वारा कार्यान्वित की जा रही है।
- आजीविका संवर्द्धन हेतु कौशल अधिग्रहण और ज्ञान जागरूकता (SANKALP) योजना: यह योजना अभिसरण एवं समन्वय के माध्यम से ज़िला-स्तरीय कौशल पारिस्थितिकी तंत्र पर ध्यान केंद्रित करती है। यह विश्व बैंक के सहयोग से शुरू की गई एक केंद्र प्रायोजित योजना है।
- कौशल्याचार्य पुरस्कार: इस पुरस्कार को कौशल प्रशिक्षकों द्वारा दिये गए योगदान को मान्यता देने और अधिक प्रशिक्षकों को कौशल भारत मिशन में शामिल होने के लिये प्रेरित करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
- उच्च शिक्षा प्राप्त युवाओं के प्रशिक्षण एवं कौशल विकास के लिये श्रेयस (SHREYAS): मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय शिक्षुता प्रोत्साहन योजना (National Apprenticeship Promotional Scheme-NAPS) के माध्यम से आगामी सत्र के सामान्य स्नातकों को उद्योग शिक्षुता अवसर प्रदान करने के लिये उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिये प्रशिक्षण और कौशल (SHREYAS) योजना शुरू की गई है।
- आत्मनिर्भर कुशल कर्मचारी-नियोक्ता मानचित्रण यानी ‘असीम’ (ASEEM) पोर्टल: वर्ष 2020 में शुरू किया गया यह पोर्टल कुशल लोगों को स्थायी आजीविका के अवसर खोजने में मदद करता है।
स्रोत: पी.आई. बी
पीएम-किसान
प्रिलिम्स के लिये:पीएम-किसान, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, पोषक तत्त्व आधारित सब्सिडी (NBS) कार्यक्रम, राष्ट्रीय गोकुल मिशन, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, परंपरागत कृषि विकास योजना मेन्स के लिये:पीएम-किसान योजना का कृषि क्षेत्र में योगदान |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रधानमंत्री ने ‘प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि’ (Pradhan Mantri Kisan Samman Nidhi- PM-KISAN) के तहत वित्तीय लाभ की 9वीं किस्त जारी की। इसके अलावा प्रधानमंत्री ने कार्यक्रम के दौरान किसान लाभार्थियों से भी बातचीत की।
प्रमुख बिंदु
पीएम-किसान:
- परिचय:
- इस योजना के तहत केंद्र प्रतिवर्ष 6,000 रुपए की राशि तीन समान किश्तों में सीधे सभी भूमिधारक किसानों के बैंक खातों में स्थानांतरित करता है, भले ही उनकी जोत का आकार कुछ भी हो।
- इसे फरवरी 2019 में लॉन्च किया गया था।
- वित्तपोषण और कार्यान्वयन:
- यह भारत सरकार के 100% वित्तपोषण के साथ एक केंद्रीय क्षेत्रक योजना है।
- इसे कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा क्रियान्वित किया जा रहा है।
- लाभार्थियों की पहचान:
- लाभार्थी किसान परिवारों की पहचान की पूरी ज़िम्मेदारी राज्य/केंद्रशासित प्रदेश सरकारों की होती है।
- उद्देश्य:
- इसका उद्देश्य प्रत्येक फसल चक्र के अंत में प्रत्याशित कृषि आय के अनुरूप, उचित फसल स्वास्थ्य और उचित पैदावार सुनिश्चित करने के लिये विभिन्न आदानों की खरीद संबंधी छोटे और सीमांत किसानों की वित्तीय ज़रूरतों को पूरा करना है।
- इस तरह के खर्चों को पूरा करने के लिये उन्हें साहूकारों के चंगुल में पड़ने से बचाना और खेती की गतिविधियों में उनकी निरंतरता सुनिश्चित करना।
प्रधानमंत्री के अभिभाषण की मुख्य बातें:
- प्रधानमंत्री ने खाद्य तेल में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लक्ष्य के रूप में एक राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन-ऑयल पाम (NMEO-OP) की शुरुआत की है।
- भारत ने पहली बार कृषि निर्यात के मामले में विश्व के टॉप-10 देशों में अपनी उपस्थिति दर्ज की है।
- न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर किसानों से अब तक की सबसे बड़ी खरीद के तहत 1,70,000 करोड़ रुपए सीधे चावल की खेती करने वाले किसानों के खाते में और लगभग 85,000 करोड़ रुपए गेहूँ की खेती करने वाले किसानों के खाते में स्थानांतरित की गई है।
- देश की कृषि नीतियों में अब छोटे किसानों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जा रही है।
- फूड पार्क, किसान रेल और किसान अवसंरचना कोष जैसी पहल से छोटे किसानों को मदद मिलेगी।
- ये कदम छोटे किसानों की बाज़ार तक पहुँच और किसान उत्पादक संगठनों (FPO) के माध्यम से उनकी सौदेबाज़ी की शक्ति को बढ़ाते हैं।
- प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन फेडरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (National Agricultural Cooperative Marketing Federation of India Limited) की दुकानों में मिशन हनी-बी और जम्मू-कश्मीर में केसर उत्पादन जैसी पहलों की भी चर्चा की।
- वर्ष 2047 में देश की आज़ादी के 100 वर्ष पूरे होने पर भारत की स्थिति को निर्धारित करने में भारतीय कृषि और किसानों की बड़ी भूमिका है
किसानों के लिये अन्य पहलें:
- सतत् कृषि के लिये राष्ट्रीय मिशन
- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना
- राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY)
- पोषक तत्त्व आधारित सब्सिडी (NBS) कार्यक्रम
- राष्ट्रीय गोकुल मिशन
- प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना
- परंपरागत कृषि विकास योजना
स्रोत: पीआईबी
जलवायु परिवर्तन 2021 रिपोर्ट: IPCC
प्रिलिम्स के लिये:जलवायु परिवर्तन 2021 रिपोर्ट के मुख्य बिंदु मेन्स के लिये:जलवायु परिवर्तन और संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) ने अपनी छठी आकलन रिपोर्ट (AR6) का पहला भाग क्लाइमेट चेंज 2021: द फिजिकल साइंस बेसिस शीर्षक से जारी किया।
- इसे वर्किंग ग्रुप- I के वैज्ञानिकों ने तैयार किया है। शेष दो भाग वर्ष 2022 में जारी किये जाएंगे।
- यह नोट किया गया कि वर्ष 2050 तक वैश्विक शुद्ध-शून्य तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक बनाए रखने के लिये न्यूनतम आवश्यकता है।
- यह नवंबर 2021 में कॉप (COP) 26 सम्मेलन के लिये मंच तैयार करता है।
प्रमुख बिंदु:
औसत सतही तापमान:
- पृथ्वी की सतह का औसत तापमान अगले 20 वर्षों (2040 तक) में पूर्व-औद्योगिक स्तरों (1.5 डिग्री सेल्सियस) और उत्सर्जन में तीव्र कमी के बिना सदी के मध्य तक 2 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाएगा।
- वर्ष 2018 में IPCC की 1.5 डिग्री सेल्सियस की ग्लोबल वार्मिंग की विशेष रिपोर्ट ने अनुमान लगाया था कि वैश्विक आबादी का 2-5वाँ हिस्सा 1.5 डिग्री सेल्सियस से ऊपर के तापमान वाले क्षेत्रों में रहता है।
- पिछला दशक पिछले 1,25,000 वर्षों में किसी भी अवधि की तुलना में अधिक गर्म था। वैश्विक सतह का तापमान 2011-2020 के दशक में 1850-1900 की तुलना में 1.09 डिग्री सेल्सियस अधिक था।
- यह पहली बार है जब IPCC ने कहा है कि सबसे अच्छी स्थिति में भी 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान अपरिहार्य था।
कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) सांद्रता:
- यह कम-से-कम दो मिलियन वर्षों में सबसे अधिक है। 1800 के दशक के अंत से मनुष्य ने 2,400 बिलियन टन CO2 का उत्सर्जन किया है।
- इसमें से अधिकांश को मानवीय गतिविधियों, विशेष रूप से जीवाश्म ईंधन के जलने के लिये ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है।
- मानवीय गतिविधियों के प्रभाव ने 2,000 वर्षों में अभूतपूर्व दर से जलवायु को गर्म कर दिया है।
- विश्व अपने उपलब्ध कार्बन बजट का 86 प्रतिशत पहले ही समाप्त कर चुका है।
ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव:
- समुद्र स्तर में वृद्धि:
- वर्ष 1901-1971 की तुलना में समुद्र स्तर में तीन गुना वृद्धि हो गई है। आर्कटिक सागर की बर्फ 1,000 वर्षों में सबसे कम है।
- तटीय क्षेत्रों में 21वीं सदी के दौरान समुद्र के स्तर में निरंतर वृद्धि देखी जाएगी, जिसके परिणामस्वरूप तटीय कटाव और निचले इलाकों में अधिक लगातार और गंभीर बाढ़ आएगी।
- समुद्र के स्तर में लगभग 50% वृद्धि तापीय विस्तार के कारण होती है (जब पानी गर्म होता है, तो यह फैलता है, इस प्रकार गर्म महासागर अधिक जगह घेर लेते हैं)।
- वर्षा और सूखा:
- हर अतिरिक्त 0.5 °C तापीय वृद्धि से गर्म चरम सीमा, अत्यधिक वर्षा और सूखे में वृद्धि होगी। अतिरिक्त तापीय वृद्धि पौधों, मिट्टी और समुद्र में मौजूद पृथ्वी के कार्बन सिंक को भी कमज़ोर कर देगी।
- अत्यधिक गर्मी:
- चरम गर्मी में वृद्धि हुई है, जबकि सर्दी में कमी आई है और ये रुझान आने वाले दशकों में एशिया में जारी रहेंगे।
- घटती हिमरेखा और पिघलते ग्लेशियर:
- ग्लोबल वार्मिंग का हिमालय सहित दुनिया भर की पर्वत शृंखलाओं पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा।
- पहाड़ों के हिमांक के स्तर में बदलाव की संभावना है और आने वाले दशकों में हिमरेखाएँ पीछे हट जाएंगी।
- हिमरेखाओं का पीछे हटना और ग्लेशियरों का पिघलना चिंता का विषय है क्योंकि इससे जल चक्र में बदलाव, वर्षा के पैटर्न में बदलाव, बाढ़ में वृद्धि तथा साथ ही भविष्य में हिमालय के राज्यों में पानी की कमी में वृद्धि हो सकती है।
- पहाड़ों में तापमान वृद्धि और हिमनदों के पिघलने का स्तर 2,000 वर्षों में अभूतपूर्व है। हिमनदों के पिघलने का कारण अब मानवजनित कारकों एवं मानव प्रभाव को बताया जाता है।
भारतीय उपमहाद्वीप के विशिष्ट परिणाम:
- ग्रीष्म लहर: दक्षिण एशिया में 21वीं सदी के दौरान ग्रीष्म लहर और आर्द्र ग्रीष्म तनाव अधिक तीव्र और निरंतर घटित होगा।
- मानसून: मानसूनी वर्षा में परिवर्तन की भी उम्मीद है, वार्षिक और ग्रीष्मकालीन मानसूनी वर्षा दोनों में वृद्धि का अनुमान है।
- एरोसोल की वृद्धि के कारण पिछले कुछ दशकों में दक्षिण-पश्चिम मानसून में गिरावट आई है, लेकिन एक बार एरोसोल के कम हो जाने पर हम पुन: भारी मानसूनी वर्षा प्राप्त करेंगे।
- समुद्री तापमान: हिंद महासागर, जिसमें अरब सागर और बंगाल की खाड़ी शामिल हैं, वैश्विक औसत से अधिक तेज़ी से गर्म हुआ है।
- हिंद महासागर में समुद्र की सतह का तापमान ग्लोबल वार्मिंग (1.5°C से 2°C ) होने पर 1 से 2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने की संभावना है।
- हिंद महासागर में समुद्र का तापमान अन्य क्षेत्रों की तुलना में अधिक तीव्र गति से गर्म हो रहा है और इसलिये अन्य क्षेत्रों को प्रभावित कर सकता है।
नेट ज़ीरो उत्सर्जन :
- परिचय :
- 'नेट ज़ीरो उत्सर्जन' से तात्पर्य है सभी मानवजनित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (जैसे जीवाश्म-ईंधन वाले वाहनों और कारखानों से) को यथासंभव शून्य के करीब लाया जाना चाहिये। दूसरा, किसी भी शेष GHGs को कार्बन को अवशोषित (प्राकृतिक और कृत्रिम सिंक के माध्यम से) कर (जैसे- जंगलों की पुनर्स्थापना द्वारा) संतुलित किया जाना चाहिये।
- इस तरह मानवजनित कार्बन न्यूट्रल होगा और वैश्विक तापमान स्थिर होगा।
- वर्तमान स्थिति :
- 100 से अधिक देशों ने पहले ही 2050 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने के अपनी प्रतिबद्धता की घोषणा कर दी है। इनमें संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन और यूरोपीय संघ जैसे प्रमुख उत्सर्जक शामिल हैं।
- भारत, दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है, यह तर्क देते हुए स्थिर है कि यह पहले से ही अन्य देशों की तुलना में तुलनात्मक रूप से बेहतर प्रदर्शन कर रहा है अर्थात् वैश्विक रूप से निर्धारित मानक से कहीं अधिक कमी कर रहा है।
- किसी भी प्रकार का बोझ उसके लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकालने के सतत् प्रयासों को खतरे में डालेगा।
- आईपीसीसी ने सूचित किया है कि तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक बनाए रखने के लिये वर्ष 2050 तक न्यूनतम वैश्विक नेट-शून्य आवश्यक था। भारत के बिना यह संभव नहीं होगा।
- यहाँ तक कि दुनिया के सबसे बड़े उत्सर्जक चीन ने भी वर्ष 2060 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य घोषित किया हुआ है।
जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल
- यह जलवायु परिवर्तन से संबंधित विज्ञान का आकलन करने वाली अंतर्राष्ट्रीय संस्था है।
- IPCC की स्थापना संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) और विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organisation- WMO) द्वारा वर्ष 1988 में की गई थी। यह जलवायु परिवर्तन पर नियमित वैज्ञानिक आकलन, इसके निहितार्थ और भविष्य के संभावित जोखिमों के साथ-साथ अनुकूलन तथा शमन के विकल्प भी उपलब्ध कराता है।
- IPCC आकलन जलवायु संबंधी नीतियों को विकसित करने हेतु सभी स्तरों पर सरकारों के लिये एक वैज्ञानिक आधार प्रदान करते हैं और वे संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन- जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क (United Nations Framework Convention on Climate Change- UNFCCC) में इस पर बातचीत करते हैं।
IPCC आकलन रिपोर्ट
- हर कुछ वर्षों (लगभग 7 वर्ष) की IPCC मूल्यांकन रिपोर्ट तैयार करता है जो पृथ्वी की जलवायु की स्थिति का सबसे व्यापक वैज्ञानिक मूल्यांकन है।
- अब तक पाँच मूल्यांकन रिपोर्ट तैयार की गई हैं, पहली वर्ष 1990 में जारी की गई है। पाँचवीं मूल्यांकन रिपोर्ट 2014 में पेरिस में जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के लिये जारी की गई थी।
- वैज्ञानिकों के तीन कार्य समूहों द्वारा मूल्यांकन रिपोर्ट।
- कार्यकारी समूह- I : जलवायु परिवर्तन के वैज्ञानिक आधार से संबंधित है।
- कार्यकारी समूह- II : संभावित प्रभावों, कमज़ोरियों और अनुकूलन मुद्दों को देखता है।
- कार्यकारी समूह-III : जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये की जा सकने वाली कार्रवाइयों से संबंधित है।
आगे की राह
- कई लोगों ने जलवायु परिवर्तन को इसके अपरिवर्तनीय प्रभावों के कारण कोविड-19 की तुलना में मानवता के लिये कहीं अधिक बड़ा खतरा बताया है। इसके कारण समुद्र के स्तर में वृद्धि और ग्लेशियरों के पिघलने जैसे कई प्रभाव कई वर्षों तक जारी रहेंगे।
- कार्बन उत्सर्जन में भारी और तत्काल कटौती की आवश्यकता है यह देखते हुए कि पहले से किये गए जलवायु में परिवर्तन प्रतिवर्ती नहीं हैं।
- सभी देशों विशेष रूप से G20 व अन्य प्रमुख उत्सर्जकों को स्कॉटलैंड के ग्लासगो में COP26 से पहले शुद्ध-शून्य उत्सर्जन गठबंधन में शामिल होने और विश्वसनीय, ठोस तथा राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान एवं नीतियों के साथ अपनी प्रतिबद्धताओं को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है।