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भारतीय अर्थव्यवस्था

मौद्रिक नीति रिपोर्ट: RBI

  • 10 Apr 2021
  • 11 min read

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) ने अप्रैल 2021 के लिये मौद्रिक नीति रिपोर्ट जारी की है।

प्रमुख बिंदु:

अपरिवर्तित नीतिगत दरें:

  • रेपो रेट: 4%
  • रिवर्स रेपो रेट: 3.35%
  • सीमांत स्थायी दर: 4.25%
  • बैंक दर: 4.25%

सकल घरेलू उत्पाद अनुमान:

  • वर्ष 2021-22 के लिये वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 10.5% की वृद्धि के पूर्ववर्ती अनुमान अपरिवर्तित रखा गया है।

मुद्रास्फीति:

  • RBI ने उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) मुद्रास्फीति संबंधी अनुमानों को संशोधित किया है:
    • 2020-21 की चौथी तिमाही में 5.0%।
    • 2021-22 की पहली तिमाही में 5.2%।
    • 2021-22 की दूसरी तिमाही में 5.2%।
    • 2021-22 की तिमाही में 4.4%।
    • 2021-22 की चौथी तिमाही में 5.1%।

समायोजित दृष्टिकोण:

  • RBI ने सतत् आधार पर विकास को बनाए रखने हेतु आवश्यक रूप से लंबे समय तक समायोजित दृष्टिकोण को जारी रखने का निर्णय लिया है और अर्थव्यवस्था पर कोविड-19 के प्रभाव को सीमित करते हुए यह सुनिश्चित किया है कि मुद्रास्फीति अग्रगामी लक्ष्य के भीतर बनी रहे।
    • एक समायोजित दृष्टिकोण का अर्थ है कि एक केंद्रीय बैंक को जब भी ज़रूरत हो, वह वित्तीय प्रणाली में पैसा लगाने के लिये दरों में कटौती करेगा।

वित्तीय संस्थानों को सहायता:

  • RBI वित्तीय वर्ष 2021-22 में नए ऋण देने के लिये अखिल भारतीय वित्तीय संस्थानों को प्रदान किये जा रहे आर्थिक समर्थन प्रयासों के क्रम में 50,000 करोड़ रुपए का नया समर्थन प्रदान किया है।
    • राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (NABARD) को कृषि और संबद्ध गतिविधियों, ग्रामीण गैर-कृषि क्षेत्र और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC), माइक्रो-फाइनेंस इंस्टीट्यूशंस (MFIs) का समर्थन करने के लिये एक वर्ष हेतु 25,000 करोड़ रुपए की विशेष तरलता सुविधा (SLF) प्रदान की जाएगी। 
    • आवासन क्षेत्र का समर्थन करने के लिये एक वर्ष के लिये राष्ट्रीय आवास बैंक में 10,000 करोड़ रुपए का SLF बढ़ाया जाएगा।
    • लघु उद्योग विकास बैंक (SIDBI) को सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) के वित्तपोषण के लिये इस सुविधा के तहत 15,000 करोड़ रुपये प्रदान किये जाएंगे।
  • यह तीनों सुविधाएँ प्रचलित नीति रेपो दर पर उपलब्ध होंगी।

ARC हेतु समीक्षा समिति:

  • बैड लोन से निपटने हेतु ‘परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनियों (ARCs) के महत्त्व को इंगित करते हुए RBI वित्तीय क्षेत्र के पारि तंत्र में ARCs के काम की व्यापक समीक्षा हेतु एक समिति का गठन करेगी।
  • समिति वित्तीय क्षेत्र की बढ़ती आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये ऐसी संस्थाओं को सक्षम करने हेतु उपयुक्त उपायों की सिफारिश करेगी।

प्राथमिकता क्षेत्र ऋण का विस्तार:

  • निर्यात और रोज़गार के मामले में अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाले क्षेत्रों के लिये तथा ऑन-लेंडिंग प्राथमिकता क्षेत्र ऋण (PSL) वर्गीकरण की समय-सीमा सितंबर 30,2021 में छह महीने के विस्तार को मंज़ूरी दी गई है।
    • ऑन-लेंडिंग का तात्पर्य किसी थर्ड पार्टी को उधार (उधार दिया हुआ पैसा) देना है।
  • यह निम्न स्तर पर स्थित संस्थाओं को ऋण प्रदान करने वाले NBFCs को प्रोत्साहन प्रदान करेगा।

सरकारी प्रतिभूति अधिग्रहण कार्यक्रम (G-SAP) 1.0:

  • RBI ने वर्ष 2021-22 के लिये एक द्वितीयक बाज़ार सरकारी प्रतिभूति (G-sec) अधिग्रहण कार्यक्रम या G-SAP 1.0 लागू करने का निर्णय लिया है।
    • यह RBI की ‘खुली बाज़ार प्रक्रियाओं’ का हिस्सा है।
  • इस कार्यक्रम के तहत RBI सरकारी प्रतिभूतियों की खुली बाज़ार खरीद का संचालन करेगी।
  • G-SAP 1.0 के तहत 25,000 करोड़ की कुल राशि के लिये सरकारी प्रतिभूतियों की पहली खरीद 15 अप्रैल, 2021 को की जाएगी। 

उद्देश्य:

  • सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों में अवधि संरचना और जारीकर्त्ताओं को ध्यान में रखते हुए अन्य वित्तीय बाज़ार  साधनों के मूल्य निर्धारण में इसकी केंद्रीय भूमिका को देखते हुए सरकारी प्रतिभूति बाज़ार में अस्थिरता से बचना।

महत्त्व:

  • यह बॉण्ड बाज़ार सहभागियों को वित्त वर्ष 2022 में RBI के समर्थन की प्रतिबद्धता के संबंध में निश्चितता प्रदान करेगा।
  • इस संरचित कार्यक्रम की घोषणा से रेपो दर और 10 वर्ष के सरकारी बॉण्ड यील्ड के बीच के अंतर को कम करने में मदद मिलेगी। यह बदले में वित्त वर्ष 2021-22 में केंद्र और राज्यों की उधार लेने की कुल लागत को कम करने में मदद करेगा।
  • यह व्यवस्थित तरलता की स्थिति के बीच ‘यील्ड कर्व’ (Yield Curve) के स्थिर और व्यवस्थित विकास को सक्षमता प्रदान करेगा।
    • ‘यील्ड कर्व’ (Yield Curve) एक ऐसी रेखा है जो समान क्रेडिट गुणवत्ता वाले, लेकिन परिपक्वता तिथियों वाले बॉण्ड की ब्याज दर देती है।
    • ‘यील्ड कर्व’ का ढलान भविष्य की ब्याज दर में बदलाव और आर्थिक गतिविधि को आधार प्रदान करता है।

प्रमुख तथ्य:

रेपो और रिवर्स रेपो दर:

  • रेपो दर वह दर है जिस पर किसी देश का केंद्रीय बैंक (भारत के मामले में भारतीय रिज़र्व बैंक) किसी भी तरह की धनराशि की कमी होने पर वाणिज्यिक बैंकों को धन देता है। इस प्रक्रिया में केंद्रीय बैंक प्रतिभूति खरीदता है।
  • रिवर्स रेपो दर वह दर है जिस पर RBI देश के भीतर वाणिज्यिक बैंकों से धन उधार लेता है।

बैंक दर:

  • यह वाणिज्यिक बैंकों को निधियों को उधार देने के लिये RBI द्वारा प्रभारित दर है।

सीमांत स्थायी दर (MSF):

  • MSF ऐसी स्थिति में अनुसूचित बैंकों के लिये आपातकालीन स्थिति में RBI से ओवरनाइट ऋण लेने की सुविधा है जब अंतर-बैंक तरलता पूरी तरह से कम हो जाती है।
  • अंतर-बैंक ऋण के तहत बैंक एक निर्दिष्ट अवधि के लिये एक दूसरे को धन उधार देते हैं।

खुले बाज़ार की क्रियाएँ:

  • ये RBI द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों की बिक्री/खरीद के माध्यम से बाज़ार से रुपए की तरलता की स्थिति को समायोजित करने के उद्देश्य से किये गए बाजार संचालन हैं।
  • यदि अतिरिक्त तरलता है, तो RBI प्रतिभूतियों की बिक्री का समर्थन करता है और रुपए की तरलता को कम कर देता है।
  • इसी तरह जब तरलता की स्थिति कठोर होती है तो RBI बाज़ार से प्रतिभूतियाँ खरीदता है, जिससे बाज़ार में तरलता बढ़ती है।
  • यह मात्रात्मक (धन की कुल मात्रा को विनियमित या नियंत्रित करने के लिये) मौद्रिक नीति उपकरण है जो देश के केंद्रीय बैंक द्वारा अर्थव्यवस्था में धन की आपूर्ति को नियंत्रित करने के लिये नियोजित किया जाता है।

सरकारी प्रतिभूतियाँ:

  • सरकारी प्रतिभूति केंद्र सरकार या राज्य सरकारों द्वारा जारी किया जाने वाला एक पारंपरिक उपकरण है।
  • यह सरकार के ऋण दायित्व को स्वीकार करता है। ऐसी प्रतिभूतियाँ अल्पकालिक (आमतौर पर ट्रेज़री बिल कहा जाता है, एक वर्ष से कम की मूल परिपक्वता के साथ वर्तमान में तीन अवधियों में जारी की जाती है, अर्थात् 91 दिन, 182 दिन और 364 दिन) या दीर्घकालिक (आमतौर पर मूल रूप से सरकारी बॉण्ड या दिनांकित प्रतिभूतियाँ कहा जाता है, एक वर्ष या उससे अधिक की परिपक्वता) होती हैं।

मुद्रास्फीति:

  • मुद्रास्फीति का तात्पर्य दैनिक या आम उपयोग की अधिकांश वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में वृद्धि से है, जैसे कि भोजन, कपड़े, आवास, मनोरंजन, परिवहन, उपभोक्ता स्टेपल इत्यादि।
  • मुद्रास्फीति समय के साथ वस्तुओं और सेवाओं की बास्केट में औसत मूल्य परिवर्तन को मापती है।
  • मुद्रास्फीति किसी देश की मुद्रा की एक इकाई की क्रय शक्ति में कमी का संकेत है। इससे अंततः आर्थिक विकास में मंदी आ सकती है।

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक

  • यह खुदरा खरीदार के दृष्टिकोण से मूल्य परिवर्तन को मापता है। यह राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा जारी किया जाता है।
  • CPI खाद्य, चिकित्सा देखभाल, शिक्षा, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि वस्तुओं और सेवाओं की कीमत में अंतर की गणना करता है, जिसे भारतीय उपभोक्ता उपभोग के लिये खरीदते हैं।

स्रोत-इंडियन एक्सप्रेस

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