भारतीय राजनीति
लद्दाख द्वारा पूर्ण राज्य की मांग
प्रिलिम्स के लिये:केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख, छठी अनुसूची, अनुच्छेद 370, अनुच्छेद 3, अनुच्छेद 3 के तहत शर्तें, अनुच्छेद 244(2), स्वायत्त ज़िले मेन्स के लिये:लद्दाख से संबंधित प्राथमिक मांगें, लद्दाख की वर्तमान केंद्रशासित प्रदेश के दर्जे के कारण, छठी अनुसूची के उद्देश्य |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख में छठी अनुसूची के तहत राज्य का दर्जा और संवैधानिक संरक्षण की मांगों को लेकर कामकाज पूरी तरह ठप्प रहा।
लद्दाख की प्राथमिक मांगें क्या हैं?
- पृष्ठभूमि: अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त किये जाने और राज्य को दो अलग-अलग केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित करने के बाद जम्मू तथा कश्मीर का पूर्ववर्ती हिस्सा लद्दाख एक केंद्रशासित प्रदेश बन गया।
- ऐसे में इस क्षेत्र में नई प्रशासनिक दर्जे को लेकर काफी समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं, तब से लद्दाख अपनी सांस्कृतिक एवं जनसांख्यिकीय पहचान की अधिक स्वायत्तता और सुरक्षा की मांग कर रहा है।
- प्राथमिक मांगें: आंदोलन का नेतृत्व करने वाले दो सामाजिक-राजनीतिक संगठनों की मांग है कि अनुच्छेद 370 और 35A के तहत केंद्रशासित प्रदेश के लिये सुरक्षा की व्यवस्था की जाए। उनकी प्राथमिक मांगों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा: अधिक राजनीतिक स्वायत्तता और निर्णय लेने की शक्तियों के संदर्भ में लद्दाख को उसके वर्तमान केंद्रशासित प्रदेश के दर्जे के स्थान पर एक पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान करने की मांग।
- 6वीं अनुसूची के तहत सुरक्षा उपाय: स्वदेशी आबादी के सांस्कृतिक, भाषाई और भूमि संबंधी अधिकारों की रक्षा के लिये 6वीं अनुसूची के तहत संवैधानिक प्रावधानों के क्रियान्वयन की मांग।
- नौकरियों में आरक्षण: लद्दाख के युवाओं के लिये रोज़गार के अवसरों में आरक्षण का समावेश, आर्थिक संसाधनों एवं अवसरों तक समान पहुँच सुनिश्चित किया जाना।
- पृथक संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों का निर्माण: प्रत्येक क्षेत्र की विशिष्ट जनसांख्यिकीय और भौगोलिक विशेषताओं को दर्शाने वाले लेह व कारगिल के लिये अलग संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों की स्थापना का प्रस्ताव।
- गृह मंत्रालय ने लद्दाख के प्रतिनिधियों के साथ संवाद करने के लिये एक उच्चाधिकार समिति का गठन किया है।
नोट:
- अनुच्छेद 35A (वर्तमान में अप्रभावी) जम्मू और कश्मीर राज्य की विधायिका को राज्य के "स्थायी निवासियों" को परिभाषित करने तथा उन्हें विशेषाधिकार प्रदान करने का अधिकार देता है जो सामान्य तौर पर भारतीय नागरिकों के लिये उपलब्ध नहीं थे।
वर्तमान में लद्दाख केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा प्रदान किये जाने के क्या कारण हैं?
- सांस्कृतिक और जनसांख्यिकीय भिन्नताएँ: केंद्रशासित प्रदेश के रूप में नामित होने से पूर्व लद्दाख जम्मू और कश्मीर राज्य का हिस्सा था।
- लद्दाख में बौद्ध धर्म की बहुलता पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर की मुस्लिम-बहुल आबादी से काफी भिन्न है।
- यह अंतर अक्सर संसाधन आवंटन, राजनीतिक प्रतिनिधित्त्व और सांस्कृतिक संरक्षण को लेकर चिंताएँ उत्पन्न करता है।
- सुरक्षा संबंधी दृष्टिकोण: लद्दाख की सीमा पाकिस्तान और चीन जैसे संवेदनशील क्षेत्रों से लगती है, ऐसे में रणनीतिक महत्त्व इस क्षेत्र का एक महत्त्वपूर्ण कारक है।
- केंद्रशासित प्रदेश के रूप में स्थापित किये जाने से इसे सुरक्षा मामलों में केंद्र सरकार से अधिक प्रत्यक्ष और सुव्यवस्थित प्रशासन व मदद मिली।
- विकासात्मक परिप्रेक्ष्य: भारत सरकार ने संभवतः लंबे समय से चली आ रही शिकायतों को दूर करने, प्रशासनिक दक्षता में सुधार करने और इस क्षेत्र में विकास को गति प्रदान करने के उद्देश्य से केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख का निर्माण सर्वोचित तरीका माना।
भारत में राज्यों के गठन से संबंधित संवैधानिक प्रावधान क्या हैं?
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 3 संसद को राज्यों के गठन, परिवर्तन अथवा विघटन के संबंध में विभिन्न कार्रवाई करने का अधिकार देता है। इन कार्रवाइयों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- नए राज्यों का गठन: संसद मौजूदा राज्य से क्षेत्र को अलग करके, दो अथवा दो से अधिक राज्यों को मिलाकर अथवा किसी क्षेत्र को मौजूदा राज्य के एक हिस्से के साथ जोड़कर एक नए राज्य का निर्माण कर सकती है।
- राज्य क्षेत्र का विस्तार अथवा संकुचन: संसद के पास किसी भी राज्य के क्षेत्र में वृद्धि करने अथवा उसे कम करने की शक्ति है।
- राज्य की सीमाओं में परिवर्तन: संसद किसी भी राज्य की सीमाओं में परिवर्तन कर सकती है।
- राज्य का नाम परिवर्तन: संसद किसी भी राज्य के नाम में परिवर्तन सकती है।
- अनुच्छेद 3 के तहत शर्तें:
- इस प्रकार के परिवर्तनों के प्रस्ताव के साथ एक विधेयक राष्ट्रपति की पूर्व अनुशंसा के साथ ही संसद के किसी भी सदन में पेश किया जाना आवश्यक है।
- विधेयक की सिफारिश करने से पूर्व, राष्ट्रपति के लिये अनिवार्य है कि वह एक निर्दिष्ट अवधि के भीतर अपने विचार व्यक्त करने के लिये इसे संबद्ध राज्य विधानमंडल के पास प्रेषित करें।
- अतिरिक्त विमर्श:
- नए राज्य के निर्माण के संसद की शक्ति के अंतर्गत किसी राज्य अथवा केंद्रशासित प्रदेश के एक हिस्से को दूसरे राज्य अथवा केंद्रशासित प्रदेश के साथ मिलाकर एक नए राज्य या केंद्रशासित प्रदेश का निर्माण करने की शक्ति भी शामिल है।
- संसद राज्य विधायिका के विचारों का पालन करने के लिये बाध्य नहीं है और समयबद्ध तरीके से प्राप्त होने पर भी उन्हें स्वीकार अथवा अस्वीकार कर सकती है।
- केंद्रशासित प्रदेशों के मामले में, संबंधित विधायिका के समक्ष किसी भी प्रकार का कारण अथवा संदर्भ प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं है, संसद कोई भी उचित कार्रवाई कर सकती है।
- अतएव भारत राज्यों का एक संघ है जिसे विघटित एवं पुनर्गठित किया जा सकता है।
छठी अनुसूची क्या है?
- परिचय: छठी अनुसूची में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 244(2) के तहत चार पूर्वोत्तर राज्यों असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम में जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन के लिये विशेष प्रावधान शामिल हैं।
- उद्देश्य: इसका उद्देश्य जनजातीय भूमि और संसाधनों की सुरक्षा करना तथा इनका गैर-जनजातीय संस्थाओं को हस्तांतरण को रोकना है। यह जनजातीय समुदायों को शोषण से भी सुरक्षा प्रदान करता है, यह उनकी सांस्कृतिक व सामाजिक अस्मिता को बरकरार रखने में तथा उनका प्रोत्साहन सुनिश्चित करता है।
- स्वायत्त ज़िले और क्षेत्र: इन राज्यों के जनजातीय क्षेत्रों का प्रशासन स्वायत्त ज़िलों के रूप में किया जाता है।
- ऐसे मामलों में जहाँ एक स्वायत्त ज़िले में विभिन्न अनुसूचित जनजातियाँ निवास करती हैं, राज्यपाल इन ज़िलों को स्वायत्त क्षेत्रों में विभाजित कर सकता है।
- राज्यपाल के पास स्वायत्त ज़िलों को व्यवस्थित करने, पुनर्गठित करने और सीमाओं अथवा नामों में परिवर्तन करने की शक्ति है।
- ज़िला और क्षेत्रीय परिषद: इसके तहत प्रत्येक स्वायत्त ज़िले के लिये अधिकतम 30 सदस्यों वाले एक ज़िला परिषद का गठन किया जाना आवश्यक है।
- इनमें से राज्यपाल द्वारा नामित सदस्यों की अधिकतम संख्या 4 है, जबकि शेष का चयन वयस्क मताधिकार के आधार पर किया जाता है।
- इसी प्रकार, स्वायत्त क्षेत्र के रूप में नामित प्रत्येक क्षेत्र के लिये एक अलग क्षेत्रीय परिषद की स्थापना की जाती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न 1. भारतीय संविधान के निम्नलिखित में से कौन-से प्रावधान शिक्षा पर प्रभाव डालते हैं? (2012)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) प्रश्न 2. भारत के संविधान की किस अनुसूची के अधीन जनजातीय भूमि का, खनन के लिये निजी पक्षकारों को अंतरण अकृत और शून्य घोषित किया जा सकता है? (2019) (a) तीसरी अनुसूची उत्तर: (b) |
सामाजिक न्याय
जलवायु और आपदा अंतर्दृष्टि पर रिपोर्ट
प्रिलिम्स के लिये:जलवायु और आपदा अंतर्दृष्टि, 2024, प्राकृतिक आपदाएँ, प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये सेंडाई फ्रेमवर्क वर्ष 2015-2030 मेन्स के लिये:जलवायु और आपदा अंतर्दृष्टि, 2024, आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये रणनीतियाँ। |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जोखिम न्यूनीकरण सेवा प्रदाता Aon PLC ने जलवायु और आपदा अंतर्दृष्टि रिपोर्ट, 2024 प्रकाशित की है, जिसमें वर्ष 2023 में प्राकृतिक आपदाओं के कारण हुए भारी नुकसान के विषय में बताया गया है।
- Aon PLC 120 से अधिक देशों और संप्रभु राज्यों में वाणिज्यिक, पुनर्बीमा, सेवानिवृत्ति, स्वास्थ्य तथा डेटा एवं विश्लेषणात्मक सेवाओं के लिये सलाह व समाधान प्रदान करने में अग्रणी है।
- इसका मिशन विश्व भर के लोगों को बेहतर जीवन, सुरक्षा एवं समृद्धि के लिये निर्णय लेने में मदद करना है।
रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु क्या हैं?
- क्षति में वृद्धि तथा अनगिनत प्राकृतिक घटनाएँ:
- वर्ष 2023 में विश्वभर में 398 उल्लेखनीय प्राकृतिक आपदाएँ घटित हुई, जिसके परिणामस्वरूप 380 बिलियन अमरीकी डालर का आर्थिक नुकसान हुआ।
- ये नुकसान वर्ष 2022 में अनुमानित आर्थिक नुकसान से काफी अधिक थे और विगत वर्ष रिकॉर्ड गर्म वर्ष रहा। यह आपदा जोखिमों से बचाव हेतु बेहतर तैयारियों, जोखिम न्यूनीकरण और अनुकूलनीयता की तत्कालिकता को रेखांकित करता है।
- मौसम संबंधी कारक और सुभेद्यताएँ:
- वर्ष 2023 में घटित 95% प्राकृतिक आपदाओं के कारण 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की क्षति का कारण मौसम-संबंधी कारक थे।
- अत्यधिक गर्मी से लेकर भयंकर तूफान और भूकंप जैसी घटनाएँ हमारे जीवन तथा आजीविका के लिये आपदा जोखिम से उत्पन्न खतरे को उजागर करती हैं।
- सुरक्षा संबंधी अंतर और बीमा कवरेज:
- बीमा की सहायता से कुल नुकसान का केवल 118 बिलियन अमरीकी डॉलर अर्थात् 31% का भुगतान किया जा सका, यह वर्ष 2022 में 58% की तुलना में 69% के रूप में "सुरक्षा संबंधी एक बड़े अंतर" को दर्शाता है।
- अमेरिका में अधिकांश आपदा नुकसान कवर कर लिये गए थे, जबकि तीन अन्य क्षेत्रों - अमेरिका (गैर-संयुक्त राज्य), यूरोप, मध्य पूर्व और अफ्रीका (EMEA) तथा एशिया व प्रशांत (APAC) में अधिकांश नुकसान बीमाकृत नहीं थे।
- APAC क्षेत्र में लगभग 91% का सबसे बड़ा सुरक्षा अंतर पाया गया, इसके बाद गैर-अमेरिकी तथा EMEA क्षेत्र के लिये यह आँकड़ा 87% था।
- वैश्विक और क्षेत्रीय अंतर्दृष्टि:
- अमेरिका: प्राकृतिक आपदाओं के कारण 114 अरब अमेरिकी डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ, जिसमें 70% नुकसान को बीमा की सहायता से कवर कर लिया गया। गंभीर संवहनी तूफानों (SCS) के कारण भी काफी वित्तीय नुकसान हुआ।
- संवहनी तूफान अथवा आकाशीय विद्युत भारी बारिश, ओलावृष्टि, तेज़ हवाओं और अचानक तापमान परिवर्तन से जुड़े गंभीर स्थानीय तूफ़ान हैं। वे पूरे वर्ष भर घटित हो सकते हैं किंतु गर्मियों के मौसम में यह सबसे सामान्य है।
- अमेरिका (गैर-अमेरिकी राज्य): बीमा की सहायता से 45 बिलियन अमेरिकी डॉलर के आर्थिक नुकसान में से केवल 6 बिलियन अमेरिकी डॉलर को कवर किया जा सका।
- मेक्सिको के दक्षिणी प्रशांत तट पर आया तूफान ओटिस सबसे विनाशकारी घटना थी।
- सूखे के कारण दक्षिण अमेरिका के कई क्षेत्र प्रभावित हुए।
- यूरोप, मध्य पूर्व और अफ्रीका (EMEA): विनाशकारी भूकंपों के रूप में प्राकृतिक आपदाओं के कारण इस क्षेत्र को 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ।
- तुर्किये और सीरिया में आए भूकंप का यहाँ की अर्थव्यवस्था पर काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ा।
- एशिया और प्रशांत:
- 91% के सुरक्षा अंतर के साथ आर्थिक घाटा 65 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया, क्योंकि बीमा घाटा 6 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।
- बाढ़ की घटनाओं के परिणामस्वरूप चीन में 1.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर और न्यूज़ीलैंड में 1.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का बीमा नुकसान हुआ। कई सप्ताह तक चलने वाली ‘हीटवेव’ ने दक्षिण और दक्षिणपूर्वी एशिया के कई देशों को प्रभावित किया।
- अमेरिका: प्राकृतिक आपदाओं के कारण 114 अरब अमेरिकी डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ, जिसमें 70% नुकसान को बीमा की सहायता से कवर कर लिया गया। गंभीर संवहनी तूफानों (SCS) के कारण भी काफी वित्तीय नुकसान हुआ।
- सिफारिशें:
- जलवायु विश्लेषण को उत्प्रेरक के रूप में उपयोग करने की आवश्यकता है जो विभिन्न चरम घटनाओं के लिये भविष्योन्मुखी निदान प्रदान कर सकता है।
- बीमाकर्त्ताओं से लेकर निर्माण, कृषि और रियल एस्टेट जैसे अत्यधिक प्रभावित क्षेत्रों तक के संगठनों को जलवायु रुझानों का विश्लेषण करने तथा जोखिम को कम करने में मदद करने के साथ-साथ अपने स्वयं के कार्यबल की सुरक्षा के लिये दूरंदेशी निदान का उपयोग करने की आवश्यकता है।
- बीमा उद्योग नवीन जोखिम हस्तांतरण कार्यक्रमों के माध्यम से हरित निवेश और अस्थिरता प्रबंधन में पूंजी के प्रवाह को अनलॉक करने तथा तेज़ करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
आपदा तैयारी, जोखिम प्रबंधन और लचीलापन-निर्माण का महत्त्व क्या है?
- आपदा तैयारी: इसका तात्पर्य आपदा घटित होने से पहले तैयारी और प्रतिक्रिया को बढ़ाने के लिये किये गए सक्रिय उपायों से है।
- प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली: तैयारी में कुशल प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली स्थापित करना शामिल है। ये प्रणालियाँ आसन्न आपदाओं (जैसे– चक्रवात, बाढ़, भूकंप) के बारे में समय पर अलर्ट प्रदान करती हैं, जिससे लोगों को बाहर निकलने और आवश्यक सावधानी बरतने में मदद मिलती है।
- प्रशिक्षण और अभ्यास: नियमित प्रशिक्षण सत्र और मॉक ड्रिल आपातकालीन उत्तरदाताओं, स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों तथा जनता को संकटों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये तैयार करते हैं।
- भंडारण आपूर्तियाँ: तैयारी में आपदाओं के दौरान तत्काल आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये आवश्यक आपूर्ति (भोजन, पानी, दवाएँ) का भंडारण शामिल है।
- सामुदायिक जागरूकता: समुदायों को आपदा जोखिमों और तैयारियों के उपायों के बारे में शिक्षित करने से सुरक्षा तथा लचीलेपन की संस्कृति को बढ़ावा मिलता है।
- जोखिम प्रबंधन: इसमें आपदाओं से जुड़े जोखिमों की पहचान करना, उनका आकलन करना और उन्हें कम करना शामिल है।
- जोखिम न्यूनीकरण रणनीतियाँ: संरचनात्मक (जैसे– बिल्डिंग कोड) और गैर-संरचनात्मक (जैसे– भूमि-उपयोग योजना) उपायों को लागू करने से भेद्यता कम हो जाती है।
- वित्तीय सुरक्षा: बीमा और जोखिम वित्तपोषण तंत्र नुकसान के खिलाफ वित्तीय लचीलापन प्रदान करते हैं।
- जलवायु अनुकूलन: जोखिम प्रबंधन उभरते जोखिमों से निपटने के लिये जलवायु परिवर्तन अनुकूलन रणनीतियों को एकीकृत करता है।
- लचीलापन-निर्माण: लचीलापन किसी समुदाय की आपदा के बाद वापस लौटने की क्षमता को संदर्भित करता है।
- सामाजिक और मनोवैज्ञानिक लचीलापन: सामाजिक नेटवर्क, सामुदायिक एकजुटता और आपसी सहयोग को मज़बूत करने से लचीलापन बढ़ता है। मानसिक स्वास्थ्य सहायता और मुकाबला तंत्र व्यक्तियों को आघात से उबरने में मदद करते हैं।
- आर्थिक और बुनियादी ढाँचागत लचीलापन: आजीविका में विविधता लाना, स्थानीय व्यवसायों को बढ़ावा देना और रोज़गार के अवसर पैदा करना आर्थिक लचीलेपन में योगदान देता है। झटके (Shocks) झेलने में सक्षम मज़बूत बुनियादी ढाँचे (सड़कें, पुल) का निर्माण महत्त्वपूर्ण है।
- पर्यावरणीय लचीलापन: पारिस्थितिक तंत्र (वन, आर्द्रभूमि) का संरक्षण समग्र लचीलेपन में योगदान देता है।
आर्थिक घाटे को कम करने में बीमा कवरेज की क्या भूमिका है?
- कठिन समय में सुरक्षा स्वरुप:
- उच्च मुद्रास्फीति और आर्थिक अस्थिरता के कारण अप्रत्याशित वित्तीय नुकसान हो सकता है और इस प्रकार की अवधि के दौरान, बीमा एक सुरक्षा जाल के रूप में कार्य करता है।
- उदाहरण के लिये, निर्माण सामग्री और सेवाओं की बढ़ती लागत के कारण क्षतिग्रस्त संपत्ति की मरम्मत अथवा पुनर्निर्माण अब अधिक महंगा हो गया हुआ है। श्रमिकों की कमी तथा बाधित आपूर्ति शृंखलाओं के कारण मरम्मत में और विलंब होने की काफी संभावना होती है।
- बीमा होने से यह गारंटी सुनिश्चित होती है कि लोग और कंपनियाँ इस प्रकार की हानि से वित्तीय रूप से सुरक्षित हैं। यदि आपके पास अपर्याप्त अथवा कोई कवरेज नहीं है तो यह आपके लिये वित्तीय रूप से असुरक्षित हो सकता है।
- जोखिम संबंधी जागरूकता में वृद्धि:
- वित्तीय उथल-पुथल उपभोक्ताओं को जोखिमों के प्रति अधिक सतर्क और जागरूक बनने के लिये प्रेरित करती हैं।
- बीमा कंपनियाँ मुद्रास्फीति जोखिम के प्रबंधन और वित्तीय सुरक्षा प्रदान करने में अपने मूल्य पर ज़ोर देकर इसका लाभ उठा सकती हैं।
- समय पर भुगतान की पेशकश करके, बीमाकर्त्ता व्यवसायों और व्यक्तियों को तीव्रता से उभरने में सहायता करते हैं, जिससे जोखिमों के बाद आर्थिक गतिविधियों को पुनः प्रारंभ करने की अनुमति मिलती है।
- आर्थिक विकास एवं स्थिरता:
- बीमा संचित पूंजी को उत्पादक निवेश में परिवर्तित करता है। यह व्यवसायों को घाटे को कम करने, वित्तीय स्थिरता बनाए रखने और व्यापार एवं वाणिज्य गतिविधियों को बढ़ावा देने में सक्षम बनाता है।
- एक मज़बूत बीमा क्षेत्र सतत् आर्थिक विकास में योगदान देता है।
- आपदा शमन और जोखिम न्यूनीकरण:
- बीमा कंपनियाँ पॉलिसीधारकों को जोखिम कम करने के उपायों में निवेश करने के लिये प्रोत्साहित करके आपदा न्यूनीकरण में तेज़ी से योगदान कर रही हैं। दीर्घकालिक सोच को प्रोत्साहित करके, बीमाकर्त्ता समग्र जोखिमों को कम करने में भूमिका निभाते हैं।
- उदाहरण के लिये PMFBY (प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना) किसानों को सूखे, बाढ़, चक्रवात, कीट और बीमारियों जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कारण फसल हानि की स्थिति में वित्तीय सुरक्षा प्रदान करती है।
- फसल क्षति के लिये समय पर मुआवज़ा प्रदान करके PMFBY किसानों को होने वाली हानि को नियंत्रित करने में सहायता करती है और आपदाओं से उत्पन्न आर्थिक उतार-चढ़ाव के प्रति उनकी संवेदनशीलता को कम करती है।
आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये क्या पहल हैं?
आपदा जोखिम न्यूनीकरण हेतु पहल:
- वैश्विक:
- आपदा जोखिम न्यूनीकरण हेतु सेंदाई फ्रेमवर्क 2015-2030
- जलवायु जोखिम और पूर्व चेतावनी प्रणाली (CREWS)
- अंतर्राष्ट्रीय आपदा जोखिम न्यूनीकरण दिवस- 13 अक्तूबर
- जलवायु सूचना और प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली पर हरित जलवायु कोष के क्षेत्रीय दिशा-निर्देश
- भारत की पहल:
निष्कर्ष:
आपदा संबंधी तैयारियों, जोखिम प्रबंधन एवं लचीले-विनिर्माण में निवेश न केवल अल्पावधि में जीवन और आजीविका सुनिश्चित करने के लिये प्रतिबद्ध है, बल्कि अनिश्चित विश्व में तेज़ी से समुदायों की दीर्घकालिक स्थिरता और समृद्धि सुनिश्चित करने के लिये भी महत्त्वपूर्ण है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से किस समूह के सभी चारों देश G20 के सदस्य हैं? (2020) (a) अर्जेंटीना, मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका और तुर्की उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. आपदा प्रबंधन में पूर्ववर्ती प्रतिक्रियात्मक उपागम से हटते हुए भारत सरकार द्वारा आरंभ किये गए अभिनूतन उपायों की विवेचना कीजिये। (2020) प्रश्न. आपदा प्रभावों और लोगों के लिये इसके खतरे को परिभाषित करने हेतु भेद्यता एक आवश्यक तत्त्व है। आपदाओं के प्रति भेद्यता का किस प्रकार और किन-किन तरीकों के साथ चरित्र-चित्रण किया जा सकता है? आपदाओं के संदर्भ में भेद्यता के विभिन्न प्रकारों की चर्चा कीजिये। (2019) प्रश्न. भारत में आपदा जोखिम न्यूनीकरण (डी.आर.आर.) के लिये 'सेंदाई आपदा जोखिम न्यूनीकरण प्रारूप (2015-30)' हस्ताक्षरित करने से पूर्व एवं उसके बाद किये गए विभिन्न उपायों का वर्णन कीजिये। यह प्रारूप 'ह्योगो कार्यवाही प्रारूप, 2005' से किस प्रकार भिन्न है? (2018) |
भारतीय अर्थव्यवस्था
वर्ष 2020-21 और वर्ष 2021-22 के लिये ASI परिणाम
प्रिलिम्स के लिये:उद्योगों का वार्षिक सर्वेक्षण, सकल वर्द्धित मूल्य, सकल घरेलू उत्पाद (GDP), निवल वर्द्धित मूल्य, राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) मेन्स के लिये:सकल वर्द्धित मूल्य और आर्थिक विकास का आकलन करने में इसका महत्त्व, उद्योगों का वार्षिक सर्वेक्षण (ASI), संवृद्धि और विकास |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (Ministry of Statistics and Programme Implementation- MoSPI) ने वर्ष 2020-21 और वर्ष 2021-22 की संदर्भ अवधि के लिये उद्योगों के वार्षिक सर्वेक्षण (Annual Survey of Industries- ASI) के परिणाम जारी किये जिन्हें ASI 2020-21 और ASI 2021-22 कहा जाता है।
ASI 2020-21 और ASI 2021-22 परिणामों की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- सकल वर्द्धित मूल्य (GVA) में वृद्धि:
- वर्ष 2019-20 की तुलना में वर्ष 2020-21 में GVA में 8.8% की वृद्धि हुई है जो कि मुख्य रूप से इनपुट में तेज़ गिरावट (4.1%) के कारण, जो कि कोविड द्वारा प्रभावित वर्ष के दौरान सेक्टर में आउटपुट के संक्षेपण (1.9%) की भरपाई के कारण हुआ है।
- वर्ष 2021-22 में औद्योगिक उत्पादन में उच्च वृद्धि के कारण, GVA में विगत वर्ष की तुलना में 26.6% की उल्लेखनीय वृद्धि हुई, जो मूल्य के संदर्भ में 35% से अधिक बढ़ी।
- वर्ष 2021-22 में क्षेत्र द्वारा पंजीकृत निवेशित पूंजी, इनपुट, आउटपुट, GVA, निवल आय और निवल लाभ जैसे अधिकांश महत्त्वपूर्ण आर्थिक मापदंडों के स्तर के साथ-साथ विकास में भी तीव्र वृद्धि देखी गई तथा इसने पूर्ण मूल्य के संदर्भ में महामारी-पूर्व स्तर को भी पार कर लिया है।
- प्रमुख उद्योग चालक:
- वर्ष 2021-22 में इस वृद्धि के मुख्य चालक मूल धातु, कोक और परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पाद, फार्मास्युटिकल उत्पाद, मोटर वाहन, खाद्य उत्पाद तथा रासायनिक एवं रसायन उत्पादों की विनिर्माण जैसे उद्योग थे।
- इन उद्योगों ने कुल मिलाकर वर्ष 2020-21 की तुलना में 34.4% की GVA वृद्धि और 37.5% की आउटपुट वृद्धि के साथ, क्षेत्र के कुल GVA में लगभग 56% का योगदान दिया।
- वर्ष 2021-22 में इस वृद्धि के मुख्य चालक मूल धातु, कोक और परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पाद, फार्मास्युटिकल उत्पाद, मोटर वाहन, खाद्य उत्पाद तथा रासायनिक एवं रसायन उत्पादों की विनिर्माण जैसे उद्योग थे।
- क्षेत्रीय प्रदर्शन:
- GVA के संदर्भ में गुजरात वर्ष 2020-21 में शीर्ष पर तथा वर्ष 2021-22 में दूसरे स्थान पर रहा जबकि महाराष्ट्र वर्ष 2021-22 में पहले और वर्ष 2020-21 में दूसरे स्थान पर रहा।
- तमिलनाडु, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश ने विनिर्माण GVA में योगदान देने वाले शीर्ष पाँच राज्यों में निरंतर अपना स्थान बनाए रखा है।
- GVA के संदर्भ में गुजरात वर्ष 2020-21 में शीर्ष पर तथा वर्ष 2021-22 में दूसरे स्थान पर रहा जबकि महाराष्ट्र वर्ष 2021-22 में पहले और वर्ष 2020-21 में दूसरे स्थान पर रहा।
- रोज़गार रुझान:
- महामारी के कारण वर्ष 2020-21 में रोज़गार में मामूली गिरावट के बावजूद वर्ष 2021-22 में क्षेत्र में कुल अनुमानित रोज़गार में वर्ष-प्रति-वर्ष (Y-o-Y) 7.0% की वृद्धि देखी गई।
- वर्ष 2021-22 में इस क्षेत्र में नियोजित व्यक्तियों की अनुमानित संख्या महामारी-पूर्व स्तर से 9.35 लाख से अधिक हो गई और साथ ही इस सेक्टर में प्रत्येक कर्मचारी द्वारा अर्जित औसत वेतन विगत वर्षों की तुलना में वर्ष 2020-21 में 1.7% तथा वर्ष 2021-22 में 8.3% की वृद्धि हुई।
- वर्ष 2020-21 और वर्ष 2021-22 दोनों में विनिर्माण क्षेत्र में सबसे अधिक लोगों को रोज़गार प्रदान करने वाले शीर्ष पाँच राज्यों में तमिलनाडु, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और हरियाणा शामिल हैं।
- महामारी के कारण वर्ष 2020-21 में रोज़गार में मामूली गिरावट के बावजूद वर्ष 2021-22 में क्षेत्र में कुल अनुमानित रोज़गार में वर्ष-प्रति-वर्ष (Y-o-Y) 7.0% की वृद्धि देखी गई।
सकल वर्द्धित मूल्य (GVA)
- उत्पादन के दौरान उत्पादक द्वारा वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य में किया संवर्द्धन GVA द्वारा आँका जाता है।
- इसकी गणना कुल आउटपुट से इनपुट (मध्यवर्ती खपत) की लागत घटाकर की जाती है।
- यह सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का एक प्रमुख घटक है, जो आर्थिक विकास को दर्शाता है। GVA वृद्धि दरें क्षेत्रीय प्रदर्शन में अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं जो आर्थिक विश्लेषण तथा नीति निर्माण में सहायता करती हैं।
- GVA = GDP + उत्पादों पर सब्सिडी - उत्पादों पर कर।
- GVA से मूल्यह्रास घटाने पर निवल वर्द्धित मूल्य (Net Value Added- NVA) प्राप्त होता है।
- NVA मध्यवर्ती खपत तथा स्थिर पूंजी की खपत दोनों के मूल्यों को घटाकर आउटपुट का मूल्य है।
उद्योगों का वार्षिक सर्वेक्षण (ASI) क्या है ?
- परिचय:
- उद्योगों का वार्षिक सर्वेक्षण (ASI) भारत में औद्योगिक आँकड़ों का प्रमुख स्रोत है। इसकी शुरुआत वर्ष 1960 में वर्ष 1959 को आधार वर्ष मानकर की गई थी साथ ही वर्ष 1953 के सांख्यिकी संग्रह अधिनियम के तहत वर्ष 1972 को छोड़कर यह सर्वेक्षण वार्षिक रूप से जारी किया जाता है।
- ASI 2010-11 से सर्वेक्षण सांख्यिकी संग्रह अधिनियम, 2008 के तहत आयोजित किया जा रहा है।
- सांख्यिकी संग्रहण अधिनियम, 2008 को वर्ष 2017 में सांख्यिकी संग्रहण (संशोधन) अधिनियम, 2017 के रूप में संशोधित किया गया है, जो संपूर्ण भारत में लागू है।
- राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) ASI का संचालन करता है। NSO, MoSPI का हिस्सा है।
- MoSPI जारी आँकड़ों एवं गुणवत्ता के लिये ज़िम्मेदार है।
- विस्तार एवं कवरेज:
- ASI फैक्ट्री अधिनियम, 1948 की धारा 2(m)(i) और 2(m)(ii) के तहत पंजीकृत कारखानों को कवर करता है।
- बीड़ी और सिगार विनिर्माण प्रतिष्ठान, बीड़ी और सिगार श्रमिक (रोजगार की शर्तें) अधिनियम, 1966 के तहत पंजीकृत हैं।
- विद्युत के उत्पादन, पारेषण और वितरण में लगे विद्युत उपक्रम, केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA) के साथ पंजीकृत नहीं हैं।
- 100 या उससे अधिक कर्मचारियों वाले व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के व्यवसाय रजिस्टर (BRE) में शामिल हैं, जिसे राज्य सरकारों द्वारा अद्यतन रखा जाता है, जब भी राज्य सरकारें ऐसी सूची प्रदान करती हैं।
- डेटा संग्रहण तंत्र:
- ASI के लिये डेटा वर्ष 2017 में संशोधित सांख्यिकी संग्रह अधिनियम 2008 तथा वर्ष 2011 में इसके तहत बनाए गए नियमों के तहत चयनित कारखानों से एकत्र किये जाते है।
भारत का औद्योगिक क्षेत्र
- भारत ने अपनी विनिर्माण गतिशीलता में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव देखा है। परंपरागत रूप से कपड़ा, हस्तशिल्प और कृषि-आधारित उद्योगों में अपनी प्रगति के लिये जाना जाने वाले इस देश ने अपने विनिर्माण पोर्टफोलियो में विविधता दर्शायी है।
- कोविड-19 महामारी के बाद औद्योगिक उत्पादन में लगातार सुधार हो रहा है।
- वित्त वर्ष 2021-22 में कोविड महामारी से उबरने के बाद औद्योगिक उत्पादन में 11.4% की दोहरे अंक की वृद्धि दर्ज की गई। वित्त वर्ष 2022-23 में औद्योगिक उत्पादन में 5.2% की वृद्धि हुई।
- वित्त वर्ष 2023-24 की अप्रैल से अक्तूबर की अवधि के दौरान औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) ने पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 6.9% की संचयी वृद्धि दर्ज की।
- उपरोक्त अवधि के दौरान विनिर्माण, खनन और विद्युत क्षेत्र के सूचकांक में क्रमशः 6.4%, 9.4% तथा 8.0% की वृद्धि हुई।
- वित्त वर्ष 2021-22 में कोविड महामारी से उबरने के बाद औद्योगिक उत्पादन में 11.4% की दोहरे अंक की वृद्धि दर्ज की गई। वित्त वर्ष 2022-23 में औद्योगिक उत्पादन में 5.2% की वृद्धि हुई।
- 'मेक इन इंडिया' जैसी पहल ने एक अनुकूल कारोबारी वातावरण बनाया और साथ ही निवेश तथा स्वदेशी विनिर्माण को प्रोत्साहित किया है।
- उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन (PLI) विभिन्न क्षेत्रों को बढ़ावा दे रहे हैं और भारत को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने का लक्ष्य रख रहे हैं।
- आठ प्रमुख उद्योगों का संयुक्त सूचकांक अक्तूबर 2022 के सूचकांक की तुलना में अक्तूबर 2023 में 12.1% (अनंतिम) बढ़ गया।
- सभी आठ प्रमुख उद्योगों (अर्थात् सीमेंट, कोयला, कच्चा तेल, विद्युत, उर्वरक, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी उत्पाद और इस्पात) के उत्पादन में वर्ष 2022 के इसी महीने की तुलना में अक्तूबर 2023 में सकारात्मक वृद्धि दर्ज की गई।
- जैसे-जैसे उद्योग 4.0, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, रोबोटिक्स और इंटरनेट ऑफ थिंग्स जैसी प्रौद्योगिकियों को अपनी विनिर्माण प्रक्रियाओं में एकीकृत करना महत्त्वपूर्ण है तथा इसके लिये एक कुशल एवं अनुकूलनीय कार्यबल की आवश्यकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न 1. 'आठ मूल उद्योगों के सूचकांक (इंडेक्स ऑफ एट कोर इंडस्ट्रीज़)' में निम्नलिखित में से किसको सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है? (2015) (a) कोयला उत्पादन उत्तर: (b) प्रश्न 2. भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2015)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न.1 "सुधारोत्तर अवधि में सकल-घरेलू-उत्पाद (जी.डी.पी.) की समग्र संवृद्धि में औद्योगिक संवृद्धि दर पिछड़ती गई है।" कारण बताइए। औद्योगिक नीति में हाल में किये गए परिवर्तन औद्योगिक संवृद्धि दर को बढ़ाने में कहाँ तक सक्षम हैं? (2017) प्रश्न. 2 सामान्यतः देश कृषि से उद्योग और बाद में सेवाओं को अंतरित होते हैं, पर भारत सीधे कृषि से सेवाओं को अंतरित हो गया है। देश में उद्योग के मुकाबले सेवाओं की विशाल संवृद्धि के क्या कारण हैं? क्या भारत सशक्त औद्योगिक आधार के बिना एक विकसित देश बन सकता है? (2014) |
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
लाल सागर व्यवधान और भारत की तेल आयात गतिशीलता
प्रिलिम्स के लिये:लाल सागर, फारस की खाड़ी, अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी, भारत की तेल आयात गतिशीलता, PTA (प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार), इथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम, फेम योजना मेन्स के लिये:तेल आयात की स्थिति, बढ़ती तेल मांग को नियंत्रित करने के लिये सरकार की हाल में की गई पहल |
स्रोत:इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
लाल सागर में हाल की अशांति से भारत के तेल आयात की गतिशीलता प्रभावित हुई है, जिससे संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे पारंपरिक आपूर्तिकर्त्ताओं पर इसकी निर्भरता में महत्त्वपूर्ण बदलाव आया है।
भारत अपने तेल आयात को अमेरिका से कम क्यों कर रहा है?
- कुछ समय के लिये, अमेरिका लगातार भारत के शीर्ष पाँच कच्चे आपूर्तिकर्त्ताओं में स्थान पर रहा है, घरेलू रिफाइनरों ने वर्ष 2023 में औसतन 205,000 बैरल प्रति दिन (bpd) कच्चे तेल की खरीद की है।
- हालाँकि आँकड़ों से संकेत प्राप्त होता है कि भारतीय रिफाइनरों ने जनवरी 2024 में किसी भी अमेरिकी क्रूड का अधिग्रहण नहीं किया।
- लाल सागर की समस्याओं के कारण माल ढुलाई दरें बढ़ गईं, जिससे भारतीय रिफाइनरों के लिये अमेरिकी कच्चा तेल आर्थिक रूप से अव्यवहार्य हो गया। परिणामस्वरूप, भारतीय रिफाइनर फारस की खाड़ी (पश्चिम एशिया) में पारंपरिक आपूर्तिकर्त्ताओं से अपनी ज़रूरतें पूरी करने लगे।
- हाल ही में गुजरात के तट से लगभग 200 समुद्री मील दूर, रासायनिक टैंकर MV केम प्लूटो पर ड्रोन हमला किया गया था।
- MV केम प्लूटो एक लाइबेरिया-ध्वजांकित, जापानी स्वामित्व वाला और नीदरलैंड द्वारा संचालित रासायनिक टैंकर है।
- इसने सऊदी अरब के अल जुबैल से कच्चा तेल लेकर अपनी यात्रा शुरू की थी और इसके भारत के न्यू मैंगलोर पहुँचने की आशा थी।
- माना जा रहा है कि गाज़ा में इज़रायल की कार्रवाई के विरोध का हवाला देते हुए यमन स्थित हूती विद्रोहियों ने इस हमले को अंज़ाम दिया है।
- हाल ही में गुजरात के तट से लगभग 200 समुद्री मील दूर, रासायनिक टैंकर MV केम प्लूटो पर ड्रोन हमला किया गया था।
भारत के लिये शीर्ष कच्चे तेल आपूर्तिकर्ता कौन हैं?
- तेल आयात की स्थिति: भारत वर्तमान में अमेरिका और चीन के बाद तेल का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है। यह अपनी तेल ज़रूरतों का 85% आयात करता है तथा घरेलू उत्पादन कम होने के साथ यह निर्भरता बढ़ने की संभावना है।
- भारत वर्ष 2027 में वैश्विक तेल मांग के सबसे बड़े चालक के रूप में चीन से आगे निकल जाएगा। डीज़ल मांग वृद्धि का सबसे बड़ा स्रोत होगा, जो देश की मांग (अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी) में लगभग आधी वृद्धि के लिये ज़िम्मेदार होगा।
- प्रमुख तेल आपूर्तिकर्त्ता:
- रूस: रूस वर्तमान में भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्त्ता है। जनवरी 2024 में भारत में रूसी तेल आयात बढ़कर 1.53 मिलियन बैरल प्रति दिन (bpd) हो गया।
- रूस पर पश्चिमी प्रतिबंधों (रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण) के बाद भारत ने पारंपरिक आपूर्तिकर्त्ताओं को विस्थापित करते हुए रियायती रूसी प्रस्तावों का लाभ उठाया।
- रूस का यूराल कच्चा तेल ग्रेड भारत के ऊर्जा विविधीकरण प्रयासों की आधारशिला बन गया है।
- इराक: यह भारत को कच्चे तेल की आपूर्ति करने वाला दूसरा सबसे बड़ा स्रोत है, जनवरी 2024 में आयात 1.19 मिलियन bpd तक पहुँच गया, जो अप्रैल 2022 के बाद सबसे अधिक है।
- तेल खरीद चैनलों में विविधता लाने के भारत के प्रयासों का उद्देश्य भू-राजनीतिक जोखिमों को कम करना और स्थिर ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करना है।
- सऊदी अरब: सऊदी अरब भारत का तीसरा सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्त्ता है और उसने जनवरी, 2024 में भारत को लगभग 690,172 bpd कच्चे तेल का निर्यात किया तथा भारत के ऊर्जा सुरक्षा परिदृश्य में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में अपनी स्थिति बरकरार रखी।
- संयुक्त अरब अमीरात: जनवरी, 2024 में UAE से तेल आयात 81% बढ़कर लगभग 326,500 bpd तक पहुँच गया।
- अबू धाबी भारत का चौथा सबसे बड़ा कच्चे तेल का आपूर्तिकर्त्ता है।
- रूस: रूस वर्तमान में भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्त्ता है। जनवरी 2024 में भारत में रूसी तेल आयात बढ़कर 1.53 मिलियन बैरल प्रति दिन (bpd) हो गया।
बढ़ती तेल माँगों को नियंत्रित करने के लिये सरकार की हालिया पहल क्या हैं?
- मांग का प्रबंधन:
- ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देना: प्रदर्शन उपलब्धि और व्यापार (PAT) जैसी योजनाएँ उद्योगों को ऊर्जा खपत कम करने के लिये प्रोत्साहित करती हैं।
- उपकरणों के लिये स्टार लेबलिंग से उपभोक्ताओं को कुशल विकल्प चुनने में मदद मिलती है।
- ईंधन विविधीकरण: इथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम (EBP) जैसी पहल का लक्ष्य 2025 तक गैसोलीन के साथ 20% इथेनॉल मिश्रण करना है, जिससे गैसोलीन पर निर्भरता कम हो जाएगी।
- इसी तरह वाहनों के लिये संपीड़ित प्राकृतिक गैस (CNG) को बढ़ावा दिया जाता है।
- विद्युत गतिशीलता: FAME योजना एक सब्सिडी कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य सार्वजनिक और साझा परिवहन के विद्युतीकरण का समर्थन करना है।
- वर्ष 2030 तक, सरकार का इरादा इलेक्ट्रिक वाहन (EV) की बिक्री को निजी कारों के लिये 30%, वाणिज्यिक वाहनों हेतु 70% और दोपहिया तथा तिपहिया वाहनों के लिये 80% तक पहुँचाने का है।
- ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देना: प्रदर्शन उपलब्धि और व्यापार (PAT) जैसी योजनाएँ उद्योगों को ऊर्जा खपत कम करने के लिये प्रोत्साहित करती हैं।
- घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना:
- आकर्षक अन्वेषण नीतियाँ: उत्पादन साझाकारण अनुबंध (PSC) व्यवस्था, खोजे गए लघु क्षेत्र नीति तथा हाइड्रोकार्बन अन्वेषण और लाइसेंसिंग नीति (HELP) का उद्देश्य तेल व गैस संबंधी अन्वेषण में निवेश को आकर्षित करना है।
- तकनीकी प्रगति: ONGC मौजूदा क्षेत्रों से अधिक तेल निष्कर्षण के उद्देश्य से संवर्द्धित तेल पुनर्प्राप्ति (Enhanced Oil Recovery- EOR) तकनीकों में निवेश कर रही है।
आगे की राह
- जैव-ईंधन विकास में विविधता लाना: इथेनॉल मिश्रण के अतिरिक्त सरकार शैवाल, कृषि अपशिष्ट तथा नगरपालिका ठोस अपशिष्ट से प्राप्त उन्नत जैव-ईंधन के अनुसंधान और विकास में निवेश कर सकती है।
- इन जैव-ईंधन का उपयोग परिवहन और औद्योगिक क्षेत्रों में किया जा सकता है जिससे जीवाश्म ईंधन की आवश्यकता कम हो जाएगी।
- सार्वजनिक परिवहन और सक्रिय आवागमन को बढ़ावा देना: अंतिम बिंदु तक कुशल कनेक्टिविटी के साथ एकीकृत सार्वजनिक परिवहन प्रणाली अधिक लोगों को यात्रा के सतत् तरीकों को अपनाने के लिये प्रोत्साहित कर सकती है और साथ ही तेल-आधारित परिवहन ईंधन की मांग को कम कर सकती है।
- हरित भवन मानक: आवासीय और वाणिज्यिक विनिर्माणों के लिये हरित भवन मानकों को अनिवार्य करने से तापन, कूलिंग और प्रकाश व्यवस्था में उपयोग की जाने वाली ऊर्जा की खपत को कम किया जा सकता है।
- भवनों में ऊर्जा-कुशल डिज़ाइन और सामग्री के उपयोग से विद्युत तथा तापन संबंधी उद्देश्यों के लिये आवश्यक जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम हो सकती है।
- हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था की ओर: भारत को हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था के रूप में विकसित करना पारंपरिक जीवाश्म ईंधन का एक स्वच्छ विकल्प प्रदान कर सकता है।
- हाइड्रोजन ईंधन सेल का उपयोग परिवहन, विनिर्माण तथा विद्युत उत्पादन सहित विभिन्न क्षेत्रों में किया जा सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न: कभी-कभी समाचारों में पाया जाने वाला शब्द 'वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट' निम्नलिखित में से किसे संदर्भित करता है: (वर्ष 2020) (a) कच्चा तेल उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. परंपरागत ऊर्जा की कठिनाईयों को कम करने के लिये भारत की ‘हरित ऊर्जा पट्टी’ पर एक लेख लिखिये। (2013) प्रश्न. "वहनीय (एफोर्डेबल), विश्वसनीय, धारणीय तथा आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच संधारणीय (सस्टेनबल) विकास लक्ष्यों (एस.डी.जी.) को प्राप्त करने के लिये अनिवार्य है।" भारत में इस संबंध में हुई प्रगति पर टिप्पणी कीजिये। (2018) |
भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत बना खिलौनों का शुद्ध निर्यातक
प्रिलिम्स के लिये:मेक इन इंडिया पहल, लाइसेंस राज, शुद्ध निर्यात मेन्स के लिये:भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये खिलौना उद्योग का योगदान और महत्त्व। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय खिलौना उद्योग ने वित्त वर्ष 2014-15 से वित्त वर्ष 2022-23 के बीच उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की जिसमें आयात में 52% की भारी गिरावट तथा निर्यात में 239% की उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, जिससे भारत शुद्ध निर्यातक बन गया।
- खिलौना उद्योग चीन में उच्च लागत से जूझ रहे हैं और अपने उत्पादन को स्थानांतरित करने के लिये सस्ते स्थान खोजने हेतु संघर्ष कर रहे हैं।
भारत के खिलौना उद्योग की स्थिति क्या है?
- खिलौना उद्योग पर फोकस:
- नीतिगत चर्चाएँ पुराने "परमिट लाइसेंस राज" युग से लेकर वर्तमान 'मेक इन इंडिया' पहल तक फैली हुई हैं।
- एक अध्ययन उद्योग की हालिया सफलता का श्रेय 'मेक इन इंडिया' पहल को देता है।
- व्यापार संतुलन में सकारात्मक बदलाव:
- वर्ष 2014-15 में व्यापार संतुलन नकारात्मक 1,500 करोड़ रुपए था, लेकिन वर्ष 2020-21 से सकारात्मक हो गया है।
- इस बदलाव को निम्नलिखित हेतु ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है:
- फरवरी 2020 में आयात शुल्क 20% से बढ़ाकर 60% कर दिया गया।
- गैर-टैरिफ बाधाएँ गुणवत्ता नियंत्रण आदेश (QCO) और अनिवार्य नमूना परीक्षण की तरह हैं।
- COVID-19 के समय हुए व्यवधानों ने वैश्विक स्तर पर आयात को प्रभावित किया।
- वर्ष 2022-23 में शुद्ध निर्यात में गिरावट:
- उच्च आयात शुल्क के बावजूद, शुद्ध निर्यात 1,614 करोड़ रुपए से गिरकर 1,319 करोड़ रुपए हो गया।
- यह गिरावट सभी खिलौनों (18%) की तुलना में खिलौनों (31%) के लिये अधिक महत्त्वपूर्ण है।
भारत को शुद्ध निर्यातक बनने हेतु क्या प्रेरित किया?
- टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाएँ: फरवरी 2020 में खिलौनों पर सीमा शुल्क में 20% से 60% की वृद्धि और उसके बाद मार्च 2023 में 70% की वृद्धि ने खिलौना आयात के लिये एक महत्त्वपूर्ण बाधा के रूप में काम किया।
- जनवरी 2021 से गुणवत्ता नियंत्रण आदेश (QCO) एवं प्रत्येक आयात खेप के अनिवार्य नमूना परीक्षण जैसी गैर-टैरिफ बाधाओं ने आयात को और प्रतिबंधित कर दिया है।
- इन उपायों का उद्देश्य आयातित खिलौनों की मांग को कम करना और घरेलू उद्योग की रक्षा करना है।
- वैश्विक आपूर्ति शृंखला व्यवधान: कोविड-19 महामारी ने वर्ष 2020-21 में वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं को बाधित कर दिया, जिससे आयात पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। जैसे ही वर्ष 2022-23 में वैश्विक आपूर्ति शृंखला बहाल हुई, शुद्ध निर्यात कम हो गया, जो आपूर्ति शृंखला व्यवधानों और भारत के शुद्ध निर्यात प्रदर्शन के बीच संबंध का संकेत देता है।
चुनौतियाँ क्या हैं?
- सीमित घरेलू उत्पादक क्षमताएँ: उद्योगों के वार्षिक सर्वेक्षण (ASI) के आँकड़ों के विश्लेषण से यह संकेत मिलता है कि प्रति श्रमिक निश्चित पूंजी, उत्पादन के सकल मूल्य और श्रम उत्पादकता में गिरावट में शायद ही कोई स्थिर वृद्धि हो।
- इससे पता चलता है कि घरेलू उद्योग ने विचाराधीन अवधि (2014-15 से 2019-20) के दौरान अपनी उत्पादक क्षमताओं में पर्याप्त सुधार का अनुभव नहीं किया होगा।
- श्रम उत्पादकता में गिरावट: श्रम उत्पादकता में लगातार गिरावट आ रही है, जो वर्ष 2014-15 के प्रति श्रमिक 7.5 लाख रुपए से घटकर वर्ष 2019-20 में प्रति श्रमिक 5 लाख रुपए हो गई है। यह गिरावट उद्योग की दक्षता एवं प्रतिस्पर्द्धात्मकता के बारे में चिंता पैदा करती है, जो उत्पादकता बढ़ाने में संभावित चुनौतियों का संकेत देती है।
- कच्चे माल की प्राप्ति के लिये विदेशों पर निर्भरता: भारतीय विनिर्माता बोर्ड गेम, सॉफ्ट टॉयज एवं प्लास्टिक के खिलौने और पज़ल्स आदि के निर्माण में विशेषज्ञता रखते हैं। हालाँकि कंपनियों को इन खिलौनों के निर्माण के लिये दक्षिण कोरिया और जापान से सामग्री आयात करनी पड़ती है।
- प्रौद्योगिकी का अभाव: यह भारतीय खिलौना उद्योग के लिये बाधक है। अधिकांश घरेलू विनिर्माता पुरानी तकनीक और मशीनरी का उपयोग करते हैं, जिससे खिलौनों की गुणवत्ता एवं डिज़ाइन प्रभावित होती है।
- करों की उच्च दरें: खिलौनों पर उच्च जीएसटी दरें भारत में खिलौना उद्योग के लिये एक अन्य चुनौती है। वर्तमान में इलेक्ट्रॉनिक खिलौनों पर 18% जबकि गैर-इलेक्ट्रॉनिक खिलौनों पर 12% जीएसटी अधिरोपित किया जाता है।
- सस्ते विकल्प उपलब्ध होना: चीन जैसे देशों से सस्ते और निम्न गुणवत्तापूर्ण आयात से उत्पन्न प्रतिस्पर्द्धा भारतीय खिलौना उद्योग के लिये एक अन्य चुनौती है। भारत के खिलौना आयात में चीन की 80% हिस्सेदारी है, जिससे घरेलू खिलौना निर्माताओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- इस क्षेत्र का असंगठित होना: भारतीय खिलौना उद्योग अभी भी व्यापक (लगभग 90%) रूप से असंगठित है जिससे अधिकतम लाभ प्राप्त करना अत्यंत कठिन हो जाता है।
खिलौनों के लिये राष्ट्रीय कार्य योजना (National Action Plan for Toys- NAPT)
- खिलौनों के लिये राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPT) भारत सरकार द्वारा पारंपरिक हस्तशिल्प और हस्तनिर्मित खिलौनों सहित भारतीय खिलौना उद्योग को बढ़ावा देने के लिये वर्ष 2020 में शुरू की गई एक व्यापक योजना है, जिसका उद्देश्य भारत को वैश्विक खिलौना केंद्र के रूप में स्थापित करना है।
- NAPT में 21 विशिष्ट कार्य बिंदु शामिल हैं, जो औद्योगिक नीति एवं संवर्द्धन विभाग (DPIIT) द्वारा समन्वित है और इसे कई केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों द्वारा कार्यान्वित किया जाता है।
- NAPT डिजाइन, गुणवत्ता नियंत्रण, नवाचार, विपणन, ई-कॉमर्स, कौशल विकास और स्वदेशी खिलौना समूहों को बढ़ावा देने जैसे विभिन्न पहलुओं को संबोधित करता है।
आगे की राह:
- संरक्षणवाद और प्रतिस्पर्द्धात्मकता में संतुलन:
- यह सुनिश्चित करने के लिये कि वे दीर्घकालिक निर्भरता को बढ़ावा दिये बिना उद्योग को अस्थायी प्रोत्साहन प्रदान करते हैं, संरक्षणवादी उपायों और टैरिफ की प्रभावशीलता का मूल्यांकनकिया जा सकता है।
- निवेश को प्रोत्साहित करने, नवाचार को बढ़ावा देने तथा समग्र प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार करने वाली नीतियों के साथ-साथ संरक्षणवाद को लागू करने पर विचार किया जाना चाहिये।
- घरेलू क्षमताओं में निवेश:
- ऐसी निवेश नीतियों का विकास और कार्यान्वयन करना जो खिलौना उद्योग को उत्पादकता व गुणवत्ता बढ़ाने हेतु आधुनिक प्रौद्योगिकी, अनुसंधान एवं विकास तथा कौशल विकास में निवेश करने के लिये प्रोत्साहित करें।
- उद्योग की वृद्धि को प्रोत्साहित करने के लिये वित्तीय और गैर-वित्तीय सहायता प्रदान की जानी चाहिये, जैसे सब्सिडी, कर प्रोत्साहन और किफायती ऋण तक पहुँच आदि।
- गुणवत्ता नियंत्रण और मानक:
- यह सुनिश्चित करने के लिये कि घरेलू स्तर पर उत्पादित खिलौने अंतर्राष्ट्रीय मानकों को पूरा करते हैं, गुणवत्ता नियंत्रण आदेश (QCO) जैसे गुणवत्ता नियंत्रण उपायों को लागू करना जारी रखना चाहिये।
- वैश्विक बाज़ार में भारतीय खिलौनों की प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिये उद्योग-विशिष्ट मानकों की स्थापना और प्रचार में निवेश करना चाहिये।
- संपूर्ण खिलौना मूल्य शृंखला में पर्यावरण-अनुकूल प्रथाओं को लागूकिया जा सकता है, जिसमें पुनर्नवीनीकरण सामग्री का उपयोग, धारणीय पैकेजिंग के साथ पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देने के लिये पुन: उपयोग तथा पुनः साझाकरण योग्य मॉडल को अपनाना शामिल है।
- बुनियादी ढाँचा विकास:
- खिलौना विनिर्माण समूहों को समर्थन देने के लिये स्थानीय, उद्योग-विशिष्ट सार्वजनिक बुनियादी ढाँचा विकसित किया जा सकता है। इसमें कुशल परिवहन, लॉजिस्टिक्स और उत्पादन सुविधाएँ भी शामिल हो सकती हैं।
- खिलौना उद्योग में विकास को बढ़ावा देने के लिये कौशल विकास, वित्तीय सहायता एवं अन्य प्रकार के समर्थन के माध्यम से छोटे और मध्यम उद्यमों (SMEs) का समर्थन किया जाना चाहिये।
- अवसंरचनात्मक खामियों को चिह्नित करने के साथ उन्हें दूर करने के लिये उद्योग हितधारकों, शिक्षा जगत और सरकार के बीच सहयोग को सुविधाजनक बनाना चाहिये।
- खिलौना विनिर्माण समूहों को समर्थन देने के लिये स्थानीय, उद्योग-विशिष्ट सार्वजनिक बुनियादी ढाँचा विकसित किया जा सकता है। इसमें कुशल परिवहन, लॉजिस्टिक्स और उत्पादन सुविधाएँ भी शामिल हो सकती हैं।
शासन व्यवस्था
FSSAI द्वारा खाद्य सुरक्षा विनियमों को सुव्यवस्थित करने पर विचार
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI), भारतीय मानक ब्यूरो (BIS), कृषि विपणन (AGMARK) मेन्स के लिये:भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण, खाद्य और पोषण असुरक्षा, सुव्यवस्थित खाद्य सुरक्षा विनियम |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI ) ने नई दिल्ली में आयोजित बैठक में व्यापार में सुगमता की सुविधा प्रदान करते हुए खाद्य सुरक्षा और मानक नियमों को सरल एवं कारगर बनाने के लिये विभिन्न संशोधनों को मंज़ूरी दी।
- FSSAI इस संबंध में एक मसौदा अधिसूचना जारी करेगा और संशोधनों को अंतिम रूप देने से पहले हितधारकों से टिप्पणियाँ प्राप्त कर उन पर विचार करेगा।
खाद्य सुरक्षा और मानक विनियमों में प्रस्तावित संशोधन क्या हैं?
- एकाधिक प्रमाण-पत्रों का उन्मूलन:
- इसके स्थान पर, निर्दिष्ट परिवर्तनों को अंतिम रूप दिये जाने के बाद केवल FSSAI से प्रामाणीकरण अनिवार्य होगा।
- इन संशोधनों का उद्देश्य खाद्य उत्पादों के लिये भारतीय मानक ब्यूरो और कृषि विपणन प्रमाणन से प्रमाणन की अनिवार्यता को समाप्त करना है।
- इसके स्थान पर, निर्दिष्ट परिवर्तनों को अंतिम रूप दिये जाने के बाद केवल FSSAI से प्रामाणीकरण अनिवार्य होगा।
- व्यापार में सुगमता की सुविधा:
- ये संशोधन सरकार के 'एक राष्ट्र, एक वस्तु, एक नियामक' के दृष्टिकोण के अनुरूप हैं, जिसका उद्देश्य खाद्य क्षेत्र से जुड़े व्यवसायों के लिये नियमों और प्रशासनिक प्रक्रियाओं को सरल बनाना है।
- मानकों का विस्तार:
- प्रमाणन प्रक्रिया के सरलीकरण के अतिरिक्त अन्य स्वीकृतियों में मीड (हनी वाइन) और अल्कोहलिक रेडी-टू-ड्रिंक (RTD) पेय पदार्थों के मानक, दूध वसा उत्पादों के मानकों में संशोधन, हलीम (दालें, अनाज और अन्य सामग्री से बना) के मानक आदि शामिल हैं। दालें, अनाज और अन्य सामग्री।
- वर्तमान में हलीम निर्दिष्ट गुणवत्ता मापदंडों के अनुरूप नहीं है।
- प्रमाणन प्रक्रिया के सरलीकरण के अतिरिक्त अन्य स्वीकृतियों में मीड (हनी वाइन) और अल्कोहलिक रेडी-टू-ड्रिंक (RTD) पेय पदार्थों के मानक, दूध वसा उत्पादों के मानकों में संशोधन, हलीम (दालें, अनाज और अन्य सामग्री से बना) के मानक आदि शामिल हैं। दालें, अनाज और अन्य सामग्री।
भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण क्या है?
- परिचय:
- FSSAI खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के तहत स्थापित एक स्वायत्त वैधानिक निकाय है।
- वर्ष 2006 के अधिनियम में खाद्य पदार्थों से संबंधित विभिन्न कानून शामिल हैं, जैसे कि खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम, 1954, फल उत्पाद आदेश, 1955, मांस खाद्य उत्पाद आदेश, 1973 और विभिन्न मंत्रालयों और विभागों द्वारा प्रबंधित अन्य अधिनियम।
- इस अधिनियम का उद्देश्य बहु-स्तरीय, बहु-विभागीय नियंत्रण के स्थान पर एकल नियंत्रण स्थापित करते हुए खाद्य सुरक्षा एवं मानकों से संबंधित सभी मामलों हेतु एक एकल संदर्भ बिंदु स्थापित करना है।
- वर्ष 2006 के अधिनियम में खाद्य पदार्थों से संबंधित विभिन्न कानून शामिल हैं, जैसे कि खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम, 1954, फल उत्पाद आदेश, 1955, मांस खाद्य उत्पाद आदेश, 1973 और विभिन्न मंत्रालयों और विभागों द्वारा प्रबंधित अन्य अधिनियम।
- स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत कार्य करते हुए FSSAI भारत में खाद्य सुरक्षा तथा गुणवत्ता का विनियमन व पर्यवेक्षण करके सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा एवं प्रोत्साहन के लिये उत्तरदायी है।
- FSSAI का मुख्यालय नई दिल्ली में है और इसके देश भर के आठ क्षेत्रों में क्षेत्रीय कार्यालय हैं।
- FSSAI के अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी की नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा की जाती है। इसका अध्यक्ष भारत सरकार के सचिव के पद के सामान पर पर आसीन व्यक्ति होता है।
- FSSAI खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के तहत स्थापित एक स्वायत्त वैधानिक निकाय है।
- कार्य एवं शक्तियाँ:
- खाद्य उत्पादों और योजकों के लिये विनियमों तथा मानकों का निर्धारण।
- खाद्य व्यवसायों को लाइसेंस और रजिस्ट्रीकरण प्रदान करना।
- खाद्य सुरक्षा कानूनों और विनियमों का प्रवर्तन।
- खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता की निगरानी तथा पर्यवेक्षण।
- खाद्य सुरक्षा मुद्दों पर जोखिम मूल्यांकन और वैज्ञानिक अनुसंधान का संचालन करना।
- खाद्य सुरक्षा और स्वच्छता पर प्रशिक्षण तथा जागरूकता बढ़ाना।
- खाद्य सुदृढ़ीकरण और जैविक खाद्य पदार्थों को प्रोत्साहन।
- खाद्य सुरक्षा मामलों पर अन्य एजेंसियों और हितधारकों के साथ समन्वय करना।
- कार्यक्रम और अभियान:
- विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस
- ईट राईट इंडिया
- ईट राईट स्टेशन
- ईट राईट मेला
- राज्य खाद्य सुरक्षा सूचकांक
- RUCO (प्रयुक्त खाद्य तेल का पुन: उपयोग)
- खाद्य सुरक्षा मित्र
- 100 फूड स्ट्रीट
भारतीय मानक ब्यूरो (BIS)
- यह BIS अधिनियम 2016 के तहत स्थापित भारत का राष्ट्रीय मानक निकाय है। यह उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के तहत संचालित होता है।
- BIS वस्तुओं के मानकीकरण, अंकन और गुणवत्ता प्रमाणन के सामंजस्यपूर्ण विकास के लिये उत्तरदायी है।
- BIS का मुख्यालय नई दिल्ली में है।
- BIS अधिनियम, 2016, सरकार को मानकों के प्रमाणीकरण और प्रवर्तन के लिये BIS के अतिरिक्त एजेंसियों को अधिकृत करने का अधिकार प्रदान करता है।
- इसमें उपभोक्ता संरक्षण उपाय जैसे उत्पाद वापस लेना, मुआवज़ा और गैर-अनुरूप मानक-चिह्नित उत्पादों के लिये सख्त दंड आदि शामिल हैं।
कृषि विपणन(AGMARK)
- एगमार्क कृषि उपज के लिये एक प्रमाणन चिह्न है, जो यह सुनिश्चित करता है कि वे कृषि उपज (ग्रेडिंग मार्किंग) अधिनियम, 1937 के तहत विपणन और निरीक्षण निदेशालय (DMI), कृषि, सहयोग तथा किसान कल्याण विभाग, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा अधिसूचित ग्रेड मानक के अनुरूप हैं।)
- ये मानक गुणवत्ता के बीच अंतर की पहचान करते हुए प्रत्येक वस्तु के लिये 2-3 ग्रेड निर्धारित करते हैं।
- अब तक, 222 कृषि पण्यों के लिये ग्रेड मानक अधिसूचित किये जा चुके हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की चुनौतियों का सामना करने के लिये भारत सरकार द्वारा अपनाई गई नीतियों के बारे में विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिये। (2021) |