भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत @75:भाग lll
- 24 Sep 2022
- 49 min read
प्रिलिम्स के लिये:पंचवर्षीय योजनाएंँ, हरित क्रांति, 1991 आर्थिक सुधार, GST, ISRO और पहल, CSIR और संबंधित नवाचार, एकीकृत निर्देशित मिसाइल कार्यक्रम, विशालकाय मीटरवेव रेडियो टेलीस्कोप, LAC तेजस, DRDO, मिशन शक्ति, PSLV, GSLV, स्टॉकहोम सम्मेलन, पर्यावरण और जैवविविधता से संबंधित अधिनियम और नियम। मेन्स के लिये:स्वतंत्रता के बाद से भारत का आर्थिक विकास, स्वतंत्रता के बाद से भारत की वैज्ञानिक प्रगति, पर्यावरण की रक्षा के लिये भारत की पहल। |
संदर्भ:
पिछले सात दशकों में भारतीय अर्थव्यवस्था ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। स्वतंत्रता के समय देश की GDP केवल 2.7 लाख करोड़ रुपए थी, जो अब 150 लाख करोड़ रुपए के करीब पहुँच गई है। कभी "तीसरी दुनिया का देश" कहे जाने वाला भारत अब दुनिया की पांँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।
- इतना ही नहीं, भारत ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी बड़ी प्रगति की है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के साथ स्वतंत्र भारत का प्रथम प्रयास पं. जवाहरलाल नेहरू द्वारा इस क्षेत्र में सार्वजनिक निवेश के माध्यम से किया गया।
- आइए हम समझते हैं कि स्वतंत्रता के बाद से भारत ने आर्थिक, वैज्ञानिक और पर्यावरण की दृष्टि से कैसे प्रगति की है।
भारत ने आर्थिक रूप से कैसे प्रगति की है?
- उदारीकरण से पूर्व भारत का दृष्टिकोण: स्वतंत्रता के बाद भारत की आर्थिक नीति औपनिवेशिक अनुभव से प्रभावित थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री; पंडित जवाहरलाल नेहरू चाहते थे कि भारत सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों द्वारा भारी उद्योगों के तेज़ी से विकास के परिणाम के रूप में फले-फूले।
- 1948 के औद्योगिक नीति प्रस्ताव ने मिश्रित अर्थव्यवस्था का प्रस्ताव रखा।
- प्रभावशाली उद्योगपतियों द्वारा प्रस्तावित बॉम्बे योजना में स्वदेशी उद्योगों की रक्षा के लिये राज्य के हस्तक्षेप और विनियमों के साथ एक पर्याप्त सार्वजनिक क्षेत्र की परिकल्पना की गई थी।
- योजना आयोग और FYPs: योजना आयोग की स्थापना वर्ष 1950 में योजना की पूरी शृंखला की देख-रेख के लिये की गई थी, जिसमें संसाधन आवंटन, कार्यान्वयन और पंचवर्षीय योजनाओं (FYP) का मूल्यांकन शामिल है। पंचवर्षीय योजनाएँ केंद्रीकृत आर्थिक और सामाजिक विकास कार्यक्रम थीं।
- पहली FYP (1951-55), कृषि उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये कृषि और सिंचाई पर केंद्रित थी क्योंकि भारत खाद्यान्न आयात पर निर्भर था।
- दूसरी FYP (1956-60) ने भारत की दीर्घकालिक विकास अनिवार्यताओं को बेहतर ढंग से पूरा करने के लिये आर्थिक आधुनिकीकरण की नींव रखी।
- इसने भारी उद्योगों और पूंजीगत वस्तुओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए तेज़ी से औद्योगीकरण की वकालत की।
- कंपनियों/उद्योगों का राष्ट्रीयकरण: वर्ष 1950 से 1991 तक सरकार द्वारा कई उद्योगों और कंपनियों का राष्ट्रीयकरण किया गया।
- वायु निगम अधिनियम 1953 के तहत संसद ने नौ एयरलाइनों का राष्ट्रीयकरण करने के लिये मतदान किया और उन्हें इंडियन एयरलाइंस तथा एयर इंडिया इंटरनेशनल में रूपांतरित कर दिया।
- इस अधिनियम की राजनीतिक सफलता ने कई अन्य क्षेत्रों जैसे- बैंकिंग, जीवन बीमा, सामान्य बीमा और खनन के राष्ट्रीयकरण की गति निर्धारित की।
- वर्ष 1969 में भारत सरकार ने 14 प्रमुख बैंकों के राष्ट्रीयकरण की घोषणा की।
- हरित क्रांति का आगमन: देश के तेज़ी से औद्योगीकरण के प्रयास ने कृषि क्षेत्र से धन के एक बड़े हिस्से का पुनर्वितरण किया जिसके परिणामस्वरूप भोजन की कमी के साथ ही मुद्रास्फीति बढ़ी।
- वर्ष 1964 में लगातार बढती मुद्रास्फीति, भोजन की कमी और चीन के साथ युद्ध के बीच सरकार को केंद्रीकृत योजना एवं मूल्य अनियंत्रण तथा कृषि पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता महसूस हुई।
- इसके कारण आनुवंशिकीविद् एमएस स्वामीनाथन और अन्य वैज्ञानिकों ने गेहूँ के उच्च उपज वाले किस्म के बीजों के साथ कदम रखा, जिससे हरित क्रांति की शुरुआत हुई।
- उदारीकरण: 1991 में सोवियत संघ के पतन और खाड़ी युद्ध के परिणामस्वरूप तेल की कीमतों में वृद्धि हुई और भारत ने खुद को एक प्रमुख भुगतान संतुलन संकट की स्थिति में पाया तथा IMF से 1.8 बिलियन डॉलर का ऋण लेने के लिये संपर्क किया।
- इसके बदले में IMF ने डी-रेगुलेशन की मांग की जिसके कारण 1991 के आर्थिक सुधार हुए।
- इन सुधारों का उद्देश्य लाइसेंस राज को समाप्त करके अर्थव्यवस्था को उदार बनाना था।
- उन्होंने टैरिफ और ब्याज दरों को भी कम कर दिया तथा कई सार्वजनिक एकाधिकरों को समाप्त कर दिया, जिससे कई क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की स्वत: मंज़ूरी मिल गई।
- इसके बदले में IMF ने डी-रेगुलेशन की मांग की जिसके कारण 1991 के आर्थिक सुधार हुए।
- GST और विमुद्रीकरण: विमुद्रीकरण और वस्तु एवं सेवा कर (GST) की शुरुआत शायद 21वीं सदी के भारत में दो सबसे विवादास्पद आर्थिक घटनाएं हैं।
- नवंबर 2016 में भारत के प्रधानमंत्री ने सभी 500 और 1,000 रुपए के उच्च मूल्य के नोटों को अमान्य घोषित कर दिया।
- इस कदम का मकसद टैक्समैन से छिपाए गए काले धन को बाहर निकालना था।
- इस घोषणा के कारण आधी रात तक प्रचलन में मौजूद लगभग 86 प्रतिशत मुद्रा अमान्य हो गई।
- GST परिषद ने CGST विधेयक 2017, IGST विधेयक 2017, UTGST विधेयक 2017 और मुआवज़ा विधेयक 2017 को मंज़ूरी देने के बाद वर्ष 2017 में GST शासन शुरू किया था।
- इसके बाद विभिन्न राज्यों के राज्य विधानसभाओं ने संबंधित राज्य के माल और सेवा कर विधेयकों को पारित किया।
- विभिन्न GST कानूनों के लागू होने के बाद 1 जुलाई, 2017 से पूरे भारत में GST लागू किया गया था।
- नवंबर 2016 में भारत के प्रधानमंत्री ने सभी 500 और 1,000 रुपए के उच्च मूल्य के नोटों को अमान्य घोषित कर दिया।
- उद्योगों में प्रगति:
- चमड़ा उद्योग का विकास: स्वतंत्रता के समय चमड़ा उद्योग में 25,000 से कम लोग कार्यरत थे, हालाँकि वर्ष 1970 के दशक में एक बड़ा मोड़ आया जब सरकार ने कच्चे माल और खाल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने और अर्द्ध तैयार चमड़े के उत्पाद पर 25% निर्यात शुल्क लगाने का फैसला किया।
- तब से 50 से अधिक वर्षों में चमड़ा उद्योग में अब 4.5 मिलियन से अधिक का कार्यबल है, उसमें एक बड़ा प्रतिशत महिलाओं का है एवं दुनिया भर में भारतीय चमड़े के उत्पादों के लिये एक संपन्न बाज़ार है।
- इस क्षेत्र में भारतीय निर्यात करीब 6 अरब डॉलर का है।
- डेयरी क्षेत्र में विकास: सरदार पटेल, मोरारजी देसाई और त्रिभुवनदास पटेल जैसे नेताओं के मार्गदर्शन में कैरा ज़िला सहकारी दुग्ध उत्पादक संघ लिमिटेड (KDCMPUL) का गठन किया गया था (जिसे अब अमूल के नाम से जाना जाता है)।
- अमूल का समावेश भारतीय अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख मील का पत्थर है क्योंकि इसने देश को दूध और दूध उत्पादों का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक बना दिया है।
- चमड़ा उद्योग का विकास: स्वतंत्रता के समय चमड़ा उद्योग में 25,000 से कम लोग कार्यरत थे, हालाँकि वर्ष 1970 के दशक में एक बड़ा मोड़ आया जब सरकार ने कच्चे माल और खाल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने और अर्द्ध तैयार चमड़े के उत्पाद पर 25% निर्यात शुल्क लगाने का फैसला किया।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ):प्रिलिम्सप्रश्न 1. 1991 में आर्थिक नीतियों के उदारीकरण के बाद भारत में निम्नलिखित में से क्या प्रभाव उत्पन्न हुआ है? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (A) केवल 1 और 4 उत्तर: (B) प्रश्न 2. निम्नलिखित में से कौन-सा/से तेरहवें वित्त आयोग की सिफारिशों की उल्लेखनीय विशेषता/विशेषताएंँ है/हैं? (2012)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (A) केवल 1 उत्तर: (C) प्रश्न 3. 1991 के आर्थिक उदारीकरण के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (A) केवल 1 और 2 उत्तर: (B) मेन्सप्रश्न 1. क्या 1991 में शुरू हुए उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की मांगों के लिये भारत सरकार की व्यवस्था ने पर्याप्त रूप से प्रतिक्रिया दी है? इस महत्त्वपूर्ण परिवर्तन के प्रति उत्तरदायी होने के लिये सरकार क्या कर सकती है? (2016) प्रश्न 2 उदारीकरण के बाद की अवधि के दौरान बजट बनाने के संदर्भ में सार्वजनिक व्यय प्रबंधन भारत सरकार के लिये एक चुनौती है। स्पष्ट कीजिये। (2019) प्रश्न 3. भारतीयों के स्वामित्व वाली कंपनियों पर उदारीकरण के प्रभाव का परीक्षण कीजिये। क्या वे बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ संतोषजनक रूप से प्रतिस्पर्द्धा कर रहे हैं? चर्चा कीजिये। (2013) प्रश्न 4. संविधान (101 संशोधन) अधिनियम, 2016 की मुख्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये। क्या आपको लगता है कि यह "करों के व्यापक प्रभाव को दूर करने और वस्तुओं एवं सेवाओं के लिये सामान्य राष्ट्रीय बाज़ार प्रदान करने" के लिये पर्याप्त रूप से प्रभावशाली है? (2017) प्रश्न 5. 2017 के वस्तु एवं सेवा कर (राज्यों को मुआवज़ा) अधिनियम के पीछे के औचित्य की व्याख्या कीजिये। COVID-19 ने GST क्षतिपूर्ति कोष को कैसे प्रभावित किया है और नए संघीय तनाव पैदा किये हैं? (2020) प्रश्न 6. नीति आयोग द्वारा अनुसरण किये जाने वाले सिद्धांत भारत में तत्कालीन योजना आयोग द्वारा अपनाए गए सिद्धांतों से कैसे भिन्न हैं? (2018) |
भारत की वैज्ञानिक प्रगति:
भारत की वैज्ञानिक प्रगति के मील के पत्थर:
- 1950 का दशक:
- वर्ष 1951 की पहली FYP में "वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान" पर एक समर्पित अध्याय था।
- वर्ष 1953-54 भारत का पहला स्वदेशी इलेक्ट्रॉनिक एनालॉग कंप्यूटर भारतीय सांख्यिकी संस्थान, कलकत्ता में बनाया गया था।
- वर्ष 1954 में पहला क्वांटम त्वरक साइक्लोट्रॉन चालू हुआ।
- उसी वर्ष होमी जे. भाभा ने परमाणु ऊर्जा प्रतिष्ठान की स्थापना की जिसे उनकी मृत्यु के बाद भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र का नाम दिया गया।
- वर्ष 1959 में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च, बॉम्बे ने भारत का पहला डिजिटल कंप्यूटर TIFRAC (TIFR ऑटोमैटिक कंप्यूटर) नाम से बनाया।
- 1960 का दशक:
- वर्ष 1962 में जवाहरलाल नेहरू ने अंतरिक्ष अनुसंधान के लिये भारतीय राष्ट्रीय समिति (INCOSPAR) की स्थापना की, जिसका नाम बदलकर वर्ष 1969 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) कर दिया गया।
- वर्ष 1963 में जीएन रामचंद्रन (और टीम) ने "रामचंद्रन प्लॉट" विकसित किया, जिसका उपयोग प्रोटीन संरचना के क्षेत्र में सार्वभौमिक रूप से किया जाता है।
- उसी वर्ष, विक्रम साराभाई ने तिरुवनंतपुरम के पास थुंबा में भारत का पहला रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन स्थापित किया।
- वर्ष 1964 में कोलार गोल्ड फील्ड्स में कॉस्मिक किरण प्रयोग शुरू हुए, जिन्हें वायुमंडलीय न्यूट्रिनो की खोज का श्रेय दिया जाता है।
- 1970 का दशक:
- वर्ष 1974 में पोखरण-1, भारत का पहला परमाणु परीक्षण, आयोजित किया गया था।
- वर्ष 1975 में 'आर्यभट्ट' का प्रक्षेपण देखा गया - भारत का पहला स्वदेशी रूप से डिज़ाइन और निर्मित उपग्रह।
- 1980 का दशक:
- वर्ष 1983 में डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के नेतृत्व में एकीकृत निर्देशित मिसाइल कार्यक्रम शुरू हुआ।
- इस कार्यक्रम के तहत मिसाइलों - पृथ्वी, त्रिशूल, आकाश, नाग और अग्नि को विकसित किया गया है।
- उसी वर्ष भारत ने अंटार्कटिक में अपना वैज्ञानिक बेस स्टेशन- दक्षिण गंगोत्री स्थापित किया, जिसे बाद में वर्ष 1988 में इसको मैत्री- भारत के पहले स्थायी स्टेशन से रूपांतरित कर दिया गया।
- वर्ष 1986 में भारत का पहला समानांतर कंप्यूटिंग सुपरकंप्यूटर, फ्लोसोल्वर चालू हो गया।
- सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी ने वर्ष 1988 में डीएनए फिंगरप्रिंटिंग तकनीक विकसित की जिसके साथ भारत ऐसा करने वाला तीसरा देश बन गया।
- वर्ष 1983 में डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के नेतृत्व में एकीकृत निर्देशित मिसाइल कार्यक्रम शुरू हुआ।
- 1990 का दशक:
- वर्ष 1994 में विशालकाय मीटरवेव रेडियो टेलीस्कोप का निर्माण पूरा हुआ।
- इसने एंटीना डिज़ाइन में नई तकनीकों का बीड़ा उठाया और दुनिया में सबसे बड़ी एवं सबसे संवेदनशील कम आवृत्ति रेंज रेडियो दूरबीनों में से एक है।
- 2000 का दशक:
- स्वदेश में डिज़ाइन और निर्मित हल्के लड़ाकू विमान - तेजस की 2001 में पहली उड़ान।
- इसे रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) द्वारा डिज़ाइन किया गया था और अब इसे वायु सेना तथा नौसेना में शामिल किया गया है।
- वर्ष 2008 ISRO ने चंद्रमा पर पहला मिशन भेजा था।
- वर्ष 2009 ने अरिहंत - श्रेणी की पहली परमाणु-संचालित बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बियों के प्रक्षेपण को चिह्नित किया।
- इसे एडवांस्ड टेक्नोलॉजी वेसल प्रोजेक्ट के तहत विकसित किया गया था।
- अरिहंत पहली बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी है जिसे UNSC के P5 के अलावा किसी अन्य देश द्वारा बनाया गया है।
- स्वदेश में डिज़ाइन और निर्मित हल्के लड़ाकू विमान - तेजस की 2001 में पहली उड़ान।
- 2010 का दशक:
- वर्ष 2013 में ISRO ने अपना मंगलयान (मार्स ऑर्बिटर मिशन) लॉन्च किया और एक अंतरिक्षयान को मंगल की कक्षा में भेजने वाली चौथी अंतरिक्ष एजेंसी बन गई तथा अपने पहले प्रयास में ऐसा करने वाली पहली एजेंसी बन गई।
- वर्ष 2015-16 में ISRO ने भारत का पहला स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन विकसित किया।
- मिशन शक्ति:
- 2019 में अपनी तरह के पहले प्रयास में DRDO अपनी एंटी-सैटेलाइट (ASAT) मिसाइल के साथ अंतरिक्ष में एक उपग्रह को सफलतापूर्वक बेअसर करने में कामयाब रहा।
- यह DRDO द्वारा किये गए सबसे महत्त्वपूर्ण और जटिल मिशनों में से एक था तथा इसे मिशन शक्ति नाम दिया गया।
- इसने अंतरिक्ष में भारतीय संपत्तियों की रक्षा करने की DRDO की क्षमता का प्रदर्शन किया।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन का योगदान
- स्थापना: डॉ. विक्रम साराभाई ने वर्ष 1962 में भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (INCOSPAR) का गठन किया। डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम भी रॉकेट इंजीनियरों की प्रारंभिक टीम में शामिल थे जिन्होंने INCOSPAR का गठन किया था।
- जैसे-जैसे INCOSPAR धीरे-धीरे बढ़ता गया, यह 15 अगस्त, 1969 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) बन गया, जो अब दुनिया की छह सबसे बड़ी अंतरिक्ष एजेंसियों में से एक है।
- ISRO के प्रारंभिक नवाचार:
- आर्यभट्ट: यह भारत का पहला उपग्रह था। यह ISRO द्वारा बनाया गया था और सोवियत संघ द्वारा सोवियत इंटरकोस्मोस कार्यक्रम के एक भाग के रूप में लॉन्च किया गया था।
- SLV-3: सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल-3 (SLV-3) भारत का पहला प्रायोगिक सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल था, जो चार चरणों वाला यान था।
- SLV-3 ने रोहिणी (उपग्रहों की एक शृंखला) को कक्षा में स्थापित किया और इस तरह भारत को अंतरिक्ष-उत्साही देशों के एक विशेष क्लब का छठा सदस्य बना दिया।
- SLV-3 परियोजना की सफल परिणति ने उन्नत प्रक्षेपण यान परियोजनाओं - ASLV, PSLV और GSLV के लिये मार्ग प्रशस्त किया।
- PSLV: ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV) भारत की तीसरी पीढ़ी का प्रक्षेपण यान है।
- यह लिक्विड स्टेज से लैस भारत का पहला लॉन्च व्हीकल था।
- वर्ष 1994 में लॉन्च होने के बाद से PSLV ने जून 2017 तक लगातार 39 सफल मिशन लॉन्च किये हैं।
- इसने दो अंतरिक्षयान- वर्ष 2008 में चंद्रयान-1 और 2013 में मार्स ऑर्बिटर स्पेसक्राफ्ट को सफलतापूर्वक लॉन्च किया।
- GSLV: जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV) भी एक अंतरिक्ष प्रक्षेपण यान है जिसे उपग्रहों और अन्य अंतरिक्ष वस्तुओं को जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट में लॉन्च करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- स्ट्रैप-ऑन मोटर्स के साथ एक तीन-चरण लांचर जिससे GSLV में PSLV की तुलना में कक्षा में भारी पेलोड वहन की क्षमता है।
- GSLV-D5 स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन का उपयोग करते हुए GSLV की पहली सफल उड़ान थी।
- चंद्रयान- I: यह भारत का पहला चंद्र मिशन था और चंद्रयान कार्यक्रम के तहत पहला मानव रहित चंद्र मिशन था।
- अंतरिक्ष यान में एक चंद्र ऑर्बिटर और एक प्रभावक शामिल था।
- हालाँकि अंतरिक्षयान के साथ संचार खो जाने के बाद मिशन समाप्त हो गया था, फिर भी यह भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को बड़ा बढ़ावा देने में कामयाब रहा।
- मार्स ऑर्बिटर मिशन: यह भारत का पहला इंटरप्लेनेटरी मिशन था।
- रोस्कोस्मोस, नासा और ESA के बाद ISRO मंगल की कक्षा में पहुँचने वाली दुनिया की चौथी अंतरिक्ष एजेंसी बन गई है।
- ISRO में हाल के घटनाक्रम:
- इन-स्पेस: इन-स्पेस को निजी कंपनियों को भारतीय अंतरिक्ष बुनियादी ढाँचे का उपयोग करने के लिये एक समान अवसर प्रदान करने हेतु लॉन्च किया गया था।
- यह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और अंतरिक्ष से संबंधित गतिविधियों में भाग लेने या भारत के अंतरिक्ष संसाधनों का उपयोग करने वाले सभी लोगों के बीच एकल-बिंदु इंटरफ़ेस के रूप में कार्य करता है।
- न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL): NSIL, ISRO की वाणिज्यिक शाखा है, जिसकी प्राथमिक ज़िम्मेदारी भारतीय उद्योगों को उच्च प्रौद्योगिकी अंतरिक्ष संबंधी गतिविधियों को करने में सक्षम बनाना है।
- इंडियन स्पेस एसोसिएशन (ISPA): ISPA भारतीय अंतरिक्ष उद्योग की सामूहिक आवाज बनने की इच्छा रखता है।
- अमेज़ोनिया-1: अमेज़ोनिया-1 एक ऑप्टिकल पृथ्वी अवलोकन उपग्रह है जो उपयोगकर्त्ताओं को अमेज़न क्षेत्र में वनों की कटाई की निगरानी के लिये रिमोट सेंसिंग डेटा प्रदान करेगा।
- बज़ील के अमेज़ोनिया-1 को PSLV-C51 की 53वीं उड़ाना में लॉन्च किया गया था।
- गगनयान: यह ISRO द्वारा वर्ष 2023 में लॉन्च किया जाने वाला एक मिशन है।
- इस मिशन के तहत:
- तीन उड़ानें कक्षा में भेजी जाएंगी।
- दो मानव रहित उड़ानें और एक मानव अंतरिक्ष उड़ान होगी।
- ISRO 2022 में गगनयान मिशन के दौरान चालक दल की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये दो मानव रहित 'क्रू मिशन' भी आयोजित करेगा।।
- इस मिशन के तहत:
- अन्य आगामी मिशन:
- चंद्रयान-3
- शुक्रयान मिशन
- भारत का अपना अंतरिक्ष स्टेशन
- XpoSat - कॉस्मिक एक्स-रे का अध्ययन करने के लिये अंतरिक्ष वेधशाला
- आदित्य एल1 मिशन
- इन-स्पेस: इन-स्पेस को निजी कंपनियों को भारतीय अंतरिक्ष बुनियादी ढाँचे का उपयोग करने के लिये एक समान अवसर प्रदान करने हेतु लॉन्च किया गया था।
वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) का योगदान:
- स्थापना: नए स्वतंत्र भारत में लोगों को शिक्षित करने, लोगों की खाद्य सुरक्षा, लोकतंत्र को लागू करने, उद्योग और व्यापार को बढ़ावा देने और देश की सुरक्षा सुनिश्चित करने की चुनौतियांँ थीं।
- इस पृष्ठभूमि के खिलाफ, विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को विकसित करने की ज़िम्मेदारी वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) पर आ गई, जिसकी स्थापना वर्ष 1942 में हुई थी।
- CSIR की प्रारंभिक भूमिकाएँ:
- CSIR की तत्काल प्राथमिकता राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं की स्थापना करना और समान संगठनों को स्वतंत्र रूप से बढ़ावा देना था।
- स्वतंत्रता के प्रारंभिक वर्षों में, निष्पक्ष लोकतांत्रिक चुनाव कराने के लिये दोहरे मतदान की धोखाधड़ी को रोकने हेतु CSIR की राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला ने सिल्वर नाइट्रेट से बनी अमिट स्याही विकसित की जो आज भी उपयोग की जाती है और कई देशों को निर्यात की जाती है।
- स्वतंत्र भारत में कई क्षेत्रों में सुस्थापित उद्योग नहीं थे और अनौपचारिक कार्य क्षेत्र भी अत्यधिक असंगठित था।
- CSIR का एक प्रमुख अधिदेश समकालीन प्रौद्योगिकियों को उपलब्ध कराकर और अपेक्षित जनशक्ति को प्रशिक्षण देकर स्थानीय उद्योगों को विकसित करने में मदद करना था।
- इस संदर्भ में CSIR के योगदान का एक प्रमुख उदाहरण चमड़ा उद्योग के विकास का रहा है।
- प्रौद्योगिकी में सफलता:
- हरित क्रांति विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार की प्रमुख उपलब्धियों में से एक रही है।
- क्रांति के दौरान कृषि रसायनों के विकास और कृषि के मशीनीकरण में CSIR के प्रयास देखे जा सकते थे।
- CSIR-सेंट्रल मैकेनिकल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीएमईआरआई) में स्वराज ट्रैक्टर के स्वदेशी विकास के माध्यम से कृषि का मशीनीकरण किया गया था।
- इसी तरह CSIR प्रयोगशालाओं में विकसित प्रक्रियाओं द्वारा एचआईवी-विरोधी दवाओं के उत्पादन ने जेनेरिक दवा कंपनियों के विकास को आवश्यक प्रोत्साहन प्रदान किया।
- CSIR का एक महत्त्वपूर्ण प्रभाव खाद्य और पोषण उद्योग में, एयरोस्पेस क्षेत्र में, स्वास्थ्य और जैव प्रौद्योगिकी उद्योग में, भारत की पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों की रक्षा करने तथा किसानों की आय बढ़ाने के लिये फसलों को बढ़ावा देने में भी देखा जा सकता है।
- CSIR ने भैंस के दूध को पाउडर में बदलने के लिये प्रौद्योगिकियों का विकास किया जिससे 1950 के दशक में शिशु आहार की समस्या को हल करने में मदद मिली।
- हरित क्रांति विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार की प्रमुख उपलब्धियों में से एक रही है।
- CSIR के हालिया नवाचार:
- सुगंध मिशन:
- CSIR के अरोमा मिशन ने देश भर के हज़ारों किसानों के जीवन को बदल दिया है। केंद्रशासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर में लैवेंडर की खेती भारत की 'बैंगनी क्रांति' के रूप में दुनिया भर में ध्यान आकर्षित कर रही है।
- सामरिक:
- CSIR ने भारतीय LAC - तेजस के लिये स्वदेशी हेड-अप-डिस्प्ले (HUD) विकसित किया है जो पायलट को विमान उड़ाने और उड़ान युद्धाभ्यास में सहायता करता है।
- ऊर्जा और पर्यावरण:
- सोलर ट्री: यह स्वच्छ ऊर्जा पैदा करने के लिये न्यूनतम स्थान घेरता है।
- लिथियम आयन बैटरी:0V/14 H मानक सेल बनाने के लिये स्वदेशी नॉवेल कंटेंट पर आधारित भारत की पहली लिथियम-आयन बैटरी निर्माण सुविधा।
- कृषि:
- सांबा ब्लाइट प्रतिरोधी महसूरी जीवाणुरोधी चावल की किस्म विकसित की।
- मुक्ताश्री: चावल की एक किस्म विकसित की गई है जो अनुमेय सीमा के भीतर आर्सेनिक को आत्मसात करने को प्रतिबंधित करती है।
- सफेद मक्खी प्रतिरोधी कपास किस्म: एक ट्रांसजेनिक कपास लाइन विकसित की जो सफेद मक्खियों के लिये प्रतिरोधी है।
- भोजन और पोषण: यह 10 पैसे की कीमत पर 45 सेकंड में दूध में मिलावट और मिलावट के स्तर का पता लगाता है।
- डबल-फोर्टिफाइड नमक: लोगों में एनीमिया को दूर करने के लिये विकसित और परीक्षण किये गए बेहतर गुणों वाले आयोडीन तथा आयरन से युक्त नमक।
- सुगंध मिशन:
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्रश्न 1. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016) ISRO द्वारा लॉन्च किया गया मंगलयान
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (A) केवल 1 उत्तर: (C) प्रश्न 2. भारत के उपग्रह प्रक्षेपण वाहनों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (A) केवल 1 उत्तर: (A) मेन्सप्रश्न 1. भारत ने चंद्रयान और मार्स ऑर्बिटर मिशन सहित मानव रहित अंतरिक्ष मिशन में उल्लेखनीय सफलता हासिल की है, लेकिन मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन में प्रवेश नहीं किया है। प्रौद्योगिकी और लॉजिस्टिक्सस दोनों के मामले में मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन शुरू करने में मुख्य बाधाएंँ क्या हैं? आलोचनात्मक जाँच कीजिये। (2017) प्रश्न 2. अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों की चर्चा कीजिये। इस तकनीक के अनुप्रयोग ने भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में किस प्रकार सहायता की है? (2016) प्रश्न 3. भारत का अपना अंतरिक्ष स्टेशन बनाने की क्या योजना है और इससे हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम को क्या लाभ होगा? (2019) |
पिछले 75 वर्षों में भारत में पर्यावरण की स्थिति:
औपनिवेशिक युग के पर्यावरण कानून राजस्व लाभ या उच्च वर्ग के हितों की रक्षा के लिये उन्मुख थे। पहला बदलाव वर्ष 1972 में आया जब स्टॉकहोम सम्मेलन ने पर्यावरण के संरक्षण और संरक्षण की दिशा में वैश्विक दृष्टिकोण को स्थानांतरित कर दिया।
भारत ने वनों और वन्यजीवों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये प्रशासनिक तथा कानूनी ढाँचे का निर्माण किया। पर्यावरण की रक्षा के लिये भारत की पहलों में शामिल हैं:
- 1970 का दशक:
- 1972 में वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम अधिनियमित किया गया था जिसके तहत चार वैधानिक निकायों की स्थापना की गई थी।
- वन्यजीव और राज्य वन्यजीव सलाहकार बोर्ड के लिये राष्ट्रीय बोर्ड
- केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण
- वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो
- राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण
- वर्ष 1973 में उत्तराखंड के चमोली और टिहरी-गढ़वाल ज़िलों में जंगलों की कटाई के खिलाफ चिपको आंदोलन शुरू किया गया था।
- जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम 1974 में पेश किया गया था।
- वर्ष 1978 में एक सदाबहार उष्णकटिबंधीय जंगल, साइलेंट वैली में कुंतीपुझा नदी पर एक जलविद्युत बाँध के प्रस्ताव के खिलाफ केरल में साइलेंट वैली आंदोलन शुरू किया गया था।
- 1972 में वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम अधिनियमित किया गया था जिसके तहत चार वैधानिक निकायों की स्थापना की गई थी।
- 1980 का दशक:
- वन (संरक्षण) अधिनियम 1980 पेश किया गया था जो वनों के गैर-आरक्षण को प्रतिबंधित और नियंत्रित करता है तथा वन भूमि के गैर-वन उपयोग को रोकता है।
- वर्ष 1981 में वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम पेश किया गया था।
- वर्ष 1985 में नर्मदा नदी पर बड़े बाँधों के निर्माण के खिलाफ नर्मदा बचाओ आंदोलन का नेतृत्व किया गया था।
- स्टॉकहोम सम्मेलन और वर्ष 1984 की भोपाल गैस त्रासदी के बाद 1986 में पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम पेश किया गया था।
- वर्ष 1988 में राष्ट्रीय वन नीति पेश की गई थी जिसमें मैदानी इलाकों के लिये 33% और पहाड़ी क्षेत्रों में 67% वन कवर की सिफारिश की गई थी।
- 1990 का दशक:
- वर्ष 1991: EPA के तहत तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ) अधिसूचना जारी की गई।
- वर्ष 1995: राष्ट्रीय पर्यावरण न्यायाधिकरण अधिनियम 1992 के रियो शिखर सम्मेलन के परिणाम के रूप में अधिनियमित किया गया था।
- वर्ष 1998: बायोमेडिकल वेस्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) नियम अधिसूचित।
- 2000 का दशक:
- वर्ष 2000: म्युनिसिपल सॉलिड वेस्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) नियम अधिसूचित।
- उसी वर्ष ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम भी अधिसूचित किये गए थे।
- वर्ष 2001: ऊर्जा संरक्षण अधिनियम पेश किया गया जिसके तहत ऊर्जा दक्षता ब्यूरो की स्थापना की गई।
- वर्ष 2002: जैविक विविधता अधिनियम अधिनियमित।
- अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 को मानव अधिकारों के साथ संरक्षण को संतुलित करने के उद्देश्य से अधिनियमित किया गया था।
- 2010: राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण अधिनयम को 1995 के अधिनियम में संशोधन के रूप में पेश किया गया।
- राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण की स्थापना की गई थी।
- वर्ष 2000: म्युनिसिपल सॉलिड वेस्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) नियम अधिसूचित।
- 2010 का दशक:
- वर्ष 2011: ई-कचरा (प्रबंधन) नियम अधिसूचित किया गया था जिसे वर्ष 2016 में संशोधित किया गया था ताकि केवल अधिकृत विघटनकर्त्ता ही ई-कचरे के निराकरण में काम कर सकें।
- प्लास्टिक कचरा (प्रबंधन) नियम 2016 में अधिसूचित किये गए थे, जिसमें प्लास्टिक कैरी बैग की न्यूनतम मोटाई 40 से 50 माइक्रोन और प्लास्टिक शीट के लिये न्यूनतम मोटाई 50 माइक्रोन तक बढ़ानेे कोअनिवार्य किया गया था।
- वर्ष 2021 में नियमों में संशोधन किया गया ताकि 2022 तक एकल-उपयोग वाली प्लास्टिक की वस्तुओं को प्रतिबंधित किया जा सके, जिनमें कम उपयोगिता और उच्च कूड़े की क्षमता हो।
- वर्ष 2016 में सॉलिड वेस्ट (मैनेजमेंट) रूल्स ने म्युनिसिपल सॉलिड वेस्ट रूल्स 2000 की जगह ले ली।
- वर्ष 2017 में आर्द्रभूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियमों को आर्द्रभूमि के प्रबंधन को विकेंद्रीकृत करने के लिये अधिसूचित किया गया था, जिससे राज्यों को उनकी पहचान करने तथा उनकी निगरानी करने की शक्ति मिली।
- वर्ष 2022: वन (संरक्षण) नियमों को 1980 के नियमों में संशोधन के रूप में अधिसूचित किया गया।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न 1. निम्नलिखित में से किसके तहत जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (2015) गठित की गई है? (A) खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 उत्तर: (C) प्रश्न 2. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019) पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 भारत सरकार को अधिकार देता है:
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (A) केवल 1 उत्तर: (B) प्रश्न 3. यदि किसी विशेष पौधे की प्रजाति को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची VI के तहत रखा गया है, तो इसका क्या निहितार्थ है? (2020) (A) उस पौधे की खेती के लिये लाइसेंस की आवश्यकता होती है। उत्तर: (A) मेन्सप्रश्न 1. जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के पार्टियों के सम्मेलन (COP) के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिये। इस सम्मेलन में भारत ने क्या प्रतिबद्धताएंँ की हैं? (2021) प्रश्न 2. पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) अधिसूचना, 2020 का मसौदा मौजूदा EIA अधिसूचना, 2006 से कैसे भिन्न है? (2020) प्रश्न 3. भारत सरकार द्वारा शुरू किये गए राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) की प्रमुख विशेषताएंँ क्या हैं? (2020) |
विकास को गति प्रदान करने हेतु उपाय
- पर्यावरण के अनुकूल प्रगति: भले ही हम विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार के नेतृत्व वाले विकास के लिये भारतीय समाज की बढ़ती संपन्नता को श्रेय देते हैं, लेकिन भविष्य के लिये महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ डराने वाली हैं।
- प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भरता कम करना, सभी औद्योगिक प्रक्रियाओं को चक्रीय बनाना ताकि मानव गतिविधियों का न्यूनतम दुष्प्रभाव पड़े, प्रौद्योगिकियों को पर्यावरण के अनुकूल बनाना, सभी को शहरों या गांँवों में रहने के लिये पर्याप्त अवसर प्रदान करना विज्ञान और प्रौद्योगिकी की प्राथमिकता रहेगी।
- इसके अलावा मानव मन और आत्मा के साथ प्रकृति की हमारी समझ को बढ़ाकर विज्ञान एवं आध्यात्मिकता को एकीकृत करने का प्राचीन ज्ञान भारत के विज्ञान और प्रौद्योगिकी समुदाय की आशातीत सफलता होगी।
- अनुसंधान और विकास हेतु बजट में बढ़ोतरी: भारत की आकांक्षा अगले 75 वर्षों में हर नागरिक के लिये उच्च जीवन स्तर के साथ एक जीवंत युग का निर्माण करना है। इस लक्ष्य को प्राप्त करना संभव है बशर्ते विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर ध्यान केंद्रित किया जाए।
- हालाँकि अनुसंधान और विकास (R&D) पर भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 0.7% जैसे मामूली खर्च किये जाने के कारण यह संभव नहीं है। सरकार को संक्रमण को सुधारने के लिये कुछ मौलिक नीतिगत बदलाव करने की ज़रूरत है।
- इनमें R&D बजट को देश के सकल घरेलू उत्पाद के 4% तक बढ़ाना, यह सुनिश्चित करना कि व्यक्तिगत संस्थान बड़े बजट को समायोजित करने के लिये प्रक्रियाओं को लागू करते हैं, व्यक्तिगत उद्यमियों को प्रोत्साहित करते हैं और विज्ञान को समाज से जोड़ते हैं।
- इज़रायल और दक्षिण कोरिया प्रमुख उदाहरण हैं जो अपनी अर्थव्यवस्थाओं में R&D पर अपने सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 5% खर्च करते हैं।
- बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करना: नवाचार के लिये विज्ञान के बजट में वृद्धि उचित मैक्रो-स्तरीय नीतिगत परिवर्तनों से पहले होना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित हो कि पैसा कैसे और कहाँ खर्च किया जाना चाहिये।
- इस वृद्धि का एक हिस्सा देश भर में, विशेष रूप से विश्वविद्यालयों में भौतिक और बौद्धिक बुनियादी ढाँचे के निर्माण के लिये निर्धारित करने की आवश्यकता है।
- प्रथम श्रेणी के बुनियादी ढाँचे के साथ अच्छी तरह से प्रशिक्षित, विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी संस्थागत प्रशासक और प्रक्रियाएंँ होनी चाहिये।
- भारत वैश्विक मंच पर तब तक प्रतिस्पर्द्धा नहीं कर सकता जब तक उसके विश्वविद्यालयों के घटते बुनियादी ढाँचे को उन्नत नहीं किया जाता।
- संस्थानों की भूमिका: किसी भी नीतिगत परिवर्तन के प्रभावी होने से पहले व्यक्तिगत संस्थानों को बड़े बजट को समायोजित करने के लिये प्रक्रियाओं को लागू करना चाहिये।
- उदाहरण के लिये प्रत्येक अनुदान प्राप्त करने वाले संस्थान के पास प्रभावी अकादमिक-उद्योग सहयोग को सुविधाजनक बनाने के लिये अपने वैज्ञानिकों के अनुरोधों के लिये आंतरिक प्रक्रियााएँं होनी चाहिये।
- फंडिंग एजेंसियों में अपर्याप्त स्टाफिंग, फंड डिस्बर्सल में पारदर्शिता की कमी, कठोर अंतर्राष्ट्रीय मानक समीक्षा और फीडबैक प्रक्रिया की कमी, फंड डिस्बर्सल में अत्यधिक देरी और एक पुरानी मूल्यांकन प्रणाली हमारे वैज्ञानिक गतिविधियों को पीछे खींच रही है।
- उदाहरण के लिये प्रत्येक अनुदान प्राप्त करने वाले संस्थान के पास प्रभावी अकादमिक-उद्योग सहयोग को सुविधाजनक बनाने के लिये अपने वैज्ञानिकों के अनुरोधों के लिये आंतरिक प्रक्रियााएँं होनी चाहिये।
- विज्ञान में उद्यमिता को बढ़ावा देना: विज्ञान और प्रौद्योगिकी के प्रतिफल को जन-जन तक पहुँचाने के लिये व्यक्तिगत उद्यमियों को बढ़ावा देने एवं सुविधा प्रदान करने से बेहतर कोई तरीका नहीं है।
- हमारे विश्वविद्यालय प्रयोगशालाओं की तुलना में रचनात्मक विचारों के लिये कोई बेहतर स्थान नहीं है।
- हमारे समाज के लिये नवीन विचारों, उत्पादों और समाधानों को संदर्भित करने के लिये उद्यमियों के साथ प्रयोगशालाओं को जोड़ने हेतु एक मज़बूत प्रणाली की आवश्यकता है।
- भारत में उद्यमिता तभी सफल होगी जब उसे विचारों का एक परिक्षेत्र और उन विचारों को विश्वविद्यालय की प्रयोगशालाओं से बाहर निकालने की उदार प्रक्रिया का समर्थन प्राप्त हो।
- हमारे विश्वविद्यालय प्रयोगशालाओं की तुलना में रचनात्मक विचारों के लिये कोई बेहतर स्थान नहीं है।