रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन

 Last Updated: July 2022 

परिचय:

  • रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation- DRDO) भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन कार्य करता है।
  • DRDO अत्याधुनिक और महत्त्वपूर्ण रक्षा प्रौद्योगिकियों एवं प्रणालियों में आत्मनिर्भरता की स्थिति हासिल करने के लिये भारत को सशक्त बनाने की दृष्टि से कार्य करता है तथा तीनों सेवाओं द्वारा निर्धारित आवश्यकताओं के अनुसार हमारे सशस्त्र बलों को अत्याधुनिक हथियार प्रणालियों और उपकरणों से लैस करता है।
  • वर्तमान में डॉ. जी. सतीश रेड्डी DRDO के चेयरमैन हैं।

उत्पत्ति और विकास

  • DRDO की स्थापना वर्ष 1958 में रक्षा विज्ञान संगठन (Defence Science Organisation- DSO) के साथ भारतीय सेना के तकनीकी विकास प्रतिष्ठान (Technical Development Establishment- TDEs) तथा तकनीकी विकास और उत्पादन निदेशालय (Directorate of Technical Development & Production- DTDP) के संयोजन के बाद की गई थी।
  • DRDO वर्तमान में 52 प्रयोगशालाओं का एक समूह है जो रक्षा प्रौद्योगिकी के विभिन्न क्षेत्रों  जैसे- वैमानिकी, शस्त्र, इलेक्ट्रॉनिक्स, लड़ाकू वाहन, इंजीनियरिंग प्रणालियाँ, इंस्ट्रूमेंटेशन, मिसाइलें, उन्नत कंप्यूटिंग और सिमुलेशन, विशेष सामग्री, नौसेना प्रणाली, लाईफ साइंस, प्रशिक्षण, सूचना प्रणाली तथा कृषि में कार्य कर रहा है।

लक्ष्य

  • देश की सुरक्षा सेवाओं के लिये स्टेट-ऑफ-द-आर्ट सेंसर (state-of-the-art sensors), शस्त्र प्रणाली (weapon systems), प्लेटफॉर्म और संबद्ध उपकरणों का उत्पादन, डिज़ाइनिंग, विकास और नेतृत्व प्रदान करना।
  • युद्ध की प्रभावशीलता का अनुकूलन और सैनिकों के हित को बढ़ावा देने संबंधी सेवाओं का प्रोद्यौगिकीय समाधान प्रदान करना।
  • बुनियादी ढाँचा और प्रतिबद्ध गुणवत्तापूर्ण जनशक्ति का विकास करना एवं स्वदेशी प्रौद्योगिकी आधार को मज़बूत बनाना।

एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (IGMDP)

  • इसकी स्थापना का विचार प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा दिया गया था।
  • इसका उद्देश्य मिसाइल प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करना था।
  • रक्षा बलों द्वारा विभिन्न प्रकार की मिसाइलों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए इस कार्यक्रम के तहत पाँच मिसाइल प्रणालियों को विकसित करने की आवश्यकता को मान्यता दी गई।
  • IGMDP को औपचारिक रूप से 26 जुलाई, 1983 को भारत सरकार की मंज़ूरी मिली।
  • इसने देश के वैज्ञानिक समुदाय, शैक्षणिक संस्थानों, अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशालाओं, उद्योगों और तीन रक्षा सेवाओं को रणनीतिक, स्वदेशी मिसाइल प्रणालियों को आकार देने हेतु एकत्रित किया है।

IGMDP के तहत विकसित मिसाइलें हैं:

  • पृथ्वी - सतह-से-सतह पर मार करने में सक्षम कम दूरी वाली बैलिस्टिक मिसाइल।
  • अग्नि – सतह-से-सतह पर मार करने में सक्षम मध्यम दूरी वाली बैलिस्टिक मिसाइल।
  • त्रिशूल – सतह-से-आकाश में मार करने में सक्षम कम दूरी वाली मिसाइल।
  • आकाश – सतह-से-आकाश में मार करने में सक्षम मध्यम दूरी वाली मिसाइल।
  • नाग -  तीसरी पीढ़ी की  टैंक भेदी मिसाइल।
    • अग्नि मिसाइल की कल्पना शुरुआती दौर में पुन: प्रवेश वाहन के रूप में एक प्रौद्योगिकी प्रदर्शक परियोजना के रूप में की गई थी। बाद में इसे विभिन्न दूरी वाली बैलिस्टिक मिसाइल में अपग्रेड कर दिया गया था। डॉ. कलाम ने अग्नि और पृथ्वी मिसाइलों के विकास और संचालन में प्रमुख भूमिका निभाई।
    • 8 जनवरी, 2008 को DRDO ने भारत को मिसाइल प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लक्ष्य को प्राप्त करने के बाद औपचारिक रूप से IGPDP के सफल समापन की घोषणा की।
    • जून 2021 में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) द्वारा एक नई पीढ़ी की परमाणु सक्षम बैलिस्टिक मिसाइल अग्नि-पी (प्राइम) का ओडिशा के बालासोर तट पर डॉ एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप से सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया।
      • अग्नि-P, एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (Integrated Guided Missile Development Program- IGMDP) के तहत अग्नि वर्ग का एक नई पीढ़ी का उन्नत संस्करण है।

भारत की मिसाइल प्रणाली

मिसाइल 

विशेषताएँ

अग्नि- I

  • सिंगल स्टेज, ठोस ईंधन, मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल (MRBM)।
  • ठोस प्रणोदन बूस्टर और एक तरल प्रणोदन ऊपरी चरण का उपयोग करना।
  • 700-800 किमी. की मारक दूरी।

अग्नि- II

  • मध्यम दूरी वाली बैलिस्टिक मिसाइल (IRBM)।
  • 2000 किमी. से अधिक की मारक दूरी।

अग्नि- III

  • दो चरणों वाली मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल (IRBM)।
  • वारहेड कॉन्फिगरेशन की एक विस्तृत शृंखला को सपोर्ट करती है।
  • 2,500 किलोमीटर से अधिक की मारक दूरी।

अग्नि- IV 

  • ठोस प्रणोदक द्वारा संचालित दो चरणों वाली मिसाइल।
  • रोड मोबाइल लॉन्चर से फायर कर सकते हैं।
  • 3,500 किमी. से अधिक की मारक दूरी है।
  • यह स्वदेशी रूप से विकसित रिंग लेज़र गायरो और समग्र रॉकेट मोटर से लैस है।

अग्नि- V 

  • तीन चरणों वाली ठोस ईंधन, स्वदेशी अंतर-महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (ICBM)।
  • 1.5 टन परमाणु वारहेड ले जाने में सक्षम।
  • नेविगेशन और मार्गदर्शन, वारहेड और इंजन के संदर्भ में नवीनतम एवं सबसे उन्नत संस्करण।
  • इसके सेना में शामिल होने के बाद भारत भी अमेरिका, रूस, चीन, फ्राँस और ब्रिटेन जैसे देशों के एक विशेष क्लब में शामिल हो जाएगा, जिनके पास अंतर-महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल क्षमता है।
  • 5,000 किमी. से अधिक की मारक दूरी।

अग्नि-P

  • कनस्तर-आधारित प्रणाली की मिसाइल, जिसकी मारक क्षमता 1,000 से 2,000 किमी के बीच है।
  • इसमें कंपोज़िट, प्रणोदन प्रणाली, नवीन मार्गदर्शन और नियंत्रण तंत्र तथा अत्याधुनिक नेविगेशन सिस्टम सहित कई उन्नत प्रौद्योगिकियाँ प्रस्तुत की गई हैं।
  • यह मिसाइल भविष्य में भारत की विश्वसनीय प्रतिरोधक क्षमता को और मज़बूत करेगी।

त्रिशूल

  • सभी मौसम में सतह-से-आकाश में मार करने में सक्षम कम दूरी, त्वरित प्रतिक्रिया वाली मिसाइल को निम्न स्तर के हमले का मुकाबला करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।

आकाश 

  • एक साथ कई लक्ष्यों को भेदने की क्षमता के साथ सतह-से-आकाश में मार करने वाली मध्यम दूरी की मिसाइल है।
  • एक से अधिक वारहेड ले जाने में सक्षम है।
  • उच्च-ऊर्जा ठोस प्रणोदक और रैम-रॉकेट प्रणोदक प्रणाली।

नाग

  • यह तीसरी पीढ़ी की ‘दागो और भूल जाओ’ (Fire and Forget), 4-8 किमी. की मारक दूरी की क्षमता के साथ टैंक भेदी मिसाइल है।
  • स्वदेशी रूप से इसे एक एंटी-वेपन के रूप में विकसित किया गया है जो उड़ान मार्गदर्शन के लिये सेंसर फ्यूजन प्रौद्योगिकियों को नियोजित करती है।
  • हेलीना (HELINA) नाग का हवा से सतह पर मार करने वाला संस्करण है जो ध्रुव हेलीकाप्टर के साथ एकीकृत है।

पृथ्वी

  • IGMDP के तहत स्वदेशी तौर पर निर्मित पहली बैलिस्टिक मिसाइल।
  • सतह-से-सतह पर मार करने वाली बैटल फील्ड मिसाइल।
  • 150 किमी. से 300 किमी. तक की मारक दूरी की क्षमता।

ब्रह्मोस

  • सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल।
  • इसे निजी संयुक्त उद्यम के रूप में रूस के साथ विकसित किया गया है।
  • मल्टी-प्लेटफॉर्म क्रूज़ विभिन्न प्रकार के प्लेटफार्मों से आक्रमण कर सकता है।
  • 2.5-2.8 मैक की गति के साथ विश्व की सबसे तेज़ सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइलों में से एक है।
  • एक बार लक्ष्य साधने के बाद इसे कंट्रोल केंद्र से मार्गदर्शन की आवश्यकता नही होती है इसलिये इसे ‘दागो और भूल जाओ’ (Fire and Forget) मिसाइल भी कहा जाता है। 

निर्भय

  • सबसोनिक मिसाइल, ब्रह्मोस का पूरक।
  • भूमि, समुद्र और वायु पर कई प्लेटफाॅर्मो से लॉन्च किये जाने में सक्षम।
  • 1,000 किमी. तक की पहुँच है।

सागरिका

  • पनडुब्बी-लॉन्च बैलिस्टिक मिसाइल (SLBM)।
  • भारत की परमाणु ऊर्जा संचालित अरिहंत श्रेणी की पनडुब्बी के साथ एकीकृत है।
  • 700 किमी. की मारक दूरी।

शौर्य

  • K-15 सागरिका का एक प्रकार है।
  • पनडुब्बी- परमाणु-सक्षम मिसाइल।
  • भारत की दूसरी,आक्रमण क्षमता को बढ़ाने का लक्ष्य।

धनुष

  • सी-बेस्ड, कम दूरी, तरल प्रणोदक बैलिस्टिक मिसाइल।
  • पृथ्वी II का नौसेना संस्करण।
  • अधिकतम 350 किमी. की मारक दूरी।

अस्त्र 

  • ठोस-प्रणोदक का उपयोग करते हुए दृश्य-रेंज से परे हवा-से-हवा में मार करने वाली मिसाइल।
  • आकार और वज़न के मामले में DRDO द्वारा विकसित सबसे छोटे हथियारों में से एक है।
  • लक्ष्य खोजने के लिये सक्रिय रडार साधक।
  • इलेक्ट्रॉनिक काउंटर-माप क्षमता।
  • 80 किमी. की रेंज में हेड-ऑन मोड में सुपरसोनिक गति से दुश्मन के विमान को रोकने और नष्ट करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।

प्रहार

  • यह भारत की नवीनतम 150 किमी. की दूरी की मारक क्षमता के साथ सतह-से-सतह पर मार करने वाली मिसाइल है।
  • इसका प्राथमिक उद्देश्य अन-गाइडेड पिनाका मल्टी-बैरल रॉकेट लॉन्चर और निर्देशित पृथ्वी मिसाइल वेरिएंट के मध्य की खाई को पाटना है।
  • इसकी उच्च गतिशीलता, त्वरण और सटीकता है।

DRDO के अन्य कार्यक्रम: 

DRDO के समक्ष मुद्दे

  • वर्ष 2016-17 के दौरान रक्षा संबंधी स्थायी समिति ने DRDO की परियोजनाओं के लिये अपर्याप्त राशि के बजटीय समर्थन पर अपनी चिंता व्यक्त की।
  • समिति ने कहा कि वर्ष 2011-12 के कुल रक्षा बजट में DRDO का हिस्सा 5.79 प्रतिशत था, जो वर्ष 2013-14 में घटकर 5.34 प्रतिशत रह गया।
  • DRDO के प्रति सरकार की सुस्त राजस्व प्रतिबद्धताओं के कारण भविष्य की प्रौद्योगिकी से जुड़ी कई प्रमुख परियोजनाएँ अधर में पड़ी हैं।
  • DRDO महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में अपर्याप्त जनशक्ति के चलते सशस्त्र बलों के साथ उचित तालमेल की कमी से भी ग्रस्त है।
  • लागत में वृद्धि और परियोजना कार्यों में देरी ने DRDO की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाया है।
  • DRDO की स्थापना के 60 वर्ष बाद भी भारत अपने रक्षा उपकरणों का एक बड़ा हिस्सा आयात करता है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार, वर्ष 2013-17 की अवधि में वैश्विक स्तर पर हथियारों और रक्षा उपकरणों के आयात में भारत की हिस्सेदारी 12 फीसदी रही है।
  • DRDO की सफलताओं की सूची संक्षिप्त है- मुख्य रूप से अग्नि और पृथ्वी मिसाइलें। इसकी विफलताओं की सूची बहुत लंबी है। कावेरी इंजन परियोजना 16 वर्षों से विलंबित है और इसकी लागत लगभग 800 प्रतिशत बढ़ गई है।
  • DRDO अत्याधुनिक तकनीक पर काम करने के बजाय सिर्फ द्वितीय विश्व युद्ध के उपकरणों की मरम्मत कर रहा है।

आगे की राह 

  • फरवरी 2007 में एजेंसी की बाह्य समीक्षा के लिये गठित पी. रामा राव की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा दिये गए सुझावों के अनुसार, DRDO को एक मज़बूत संगठन में पुनर्गठित किया जाना चाहिये।
  • समिति ने परियोजनाओं को पूरा करने में देरी पर कटौती करने के अलावा इसे एक लाभदायक इकाई बनाने के लिये संगठन की एक वाणिज्यिक शाखा स्थापित करने की भी सिफारिश की।
  • DRDO के पूर्व प्रमुख वी.के. सारस्वत ने एजेंसी द्वारा विकसित उत्पादों के लिये उत्पादक भागीदारों को चुनने में रक्षा प्रौद्योगिकी आयोग के गठन के साथ-साथ DRDO की बड़ी भूमिका का आह्वान किया है।
  • यदि आवश्यक हो तो DRDO को शुरुआत से ही निजी क्षेत्र में सक्षम भागीदार कंपनी का चयन करने में समर्थ होना चाहिये।
  • DRDO भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी विक्रेताओं जैसे कि टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज़ लिमिटेड (TCS) के साथ रक्षा परियोजनाओं के लिये सॉफ्टवेयर समाधान सुनिश्चित करने के लिये दीर्घकालिक अनुबंधों पर विचार कर रहा है। DRDO अपनी अल्पकालिक परियोजनाओं पर सबसे कम की बोली लगाने वालों को पुरस्कृत करने की अपनी रणनीति में बदलाव ला रहा है।
  • DRDO का आउटसोर्स करने का कदम एक सही कदम है और इससे भारतीय कंपनियों को बहुत सारे अवसर मिलेंगे।
  • इसके दस्तावेज़ "2021 में DRDO: HR Perspectives'', में DRDO ने एक HR नीति की परिकल्पना की है, जिसमें स्वतंत्र, निष्पक्ष और निर्भीक नॉलेज शेयरिंग, ओपन बुक मैनेजमेंट स्टाइल और पार्टिसिपेंट मैनेजमेंट पर ज़ोर दिया गया है। यह सही दिशा में एक बड़ा कदम है।