प्रिलिम्स फैक्ट: 29 अप्रैल, 2021
उन्नत चैफ प्रौद्योगिकी
Advanced Chaff Technology
हाल ही में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation) ने नौसैनिक पोतों को शत्रु के मिसाइल हमले से बचने के लिये एक उन्नत चैफ प्रौद्योगिकी (Advanced Chaff Technology) का विकास किया है।
- यह आत्मनिर्भर भारत (Atmanirbhar Bharat) की दिशा में एक अन्य महत्त्वपूर्ण कदम है।
प्रमुख बिंदु
चैफ प्रौद्योगिकी के विषय में:
- यह एक इलेक्ट्रॉनिक रक्षात्मक प्रौद्योगिकी (Electronic Countermeasure Technology) है, जिसका उपयोग विश्व भर में नौसैनिक पोतों को शत्रु के रडार और रेडियो फ्रीक्वेंसी मिसाइलों से बचाने के लिये किया जाता है।
- इस प्रौद्योगिकी को हवा में तैनात किया जाता है जो अपनी तरफ आ रही शत्रु की मिसाइल को भ्रम में डालकर विक्षेपित कर देती है। इस प्रकार यह अपनी संपत्ति की रक्षा करती है।
- डीआरडीओ ने शॉर्ट रेंज चैफ रॉकेट (SRCR), मीडियम रेंज चैफ रॉकेट (MRCR) और लॉन्ग रेंज चैफ रॉकेट (LRCR) जैसे महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकी के तीन प्रकार विकसित किये हैं।
चैफ और फ्लेयर के बीच अंतर:
- यह दोनों सैन्य विमानों द्वारा तैनात रक्षात्मक उपाय हैं। इसका उद्देश्य रडार-गाइडेड या इन्फ्रारेड-गाइडेड एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइलों को भ्रमित करके दूसरी दिशा में मोड़ना है।
- चैफ कई छोटे एल्यूमीनियम या जस्ता लेपित तंतुओं से बना होता है, जो ट्यूबों में विमान में संग्रहित होते हैं। यदि विमान को किसी भी रडार ट्रैकिंग मिसाइलों से खतरा महसूस होता है तो चैफ को बाहर कर दिया जाता है।
- फ्लेयर्स हवा से हवा में मार करने वाली एंटी-मिसाइलों को एक वैकल्पिक मज़बूत इन्फ्रारेड (Infrared) स्रोत प्रदान करती हैं ताकि वे विमान से दूर रहें।
रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन
- यह भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन कार्य करता है।
- DRDO अत्याधुनिक और महत्त्वपूर्ण रक्षा प्रौद्योगिकियों एवं प्रणालियों में आत्मनिर्भरता की स्थिति हासिल करने के लिये भारत को सशक्त बनाने की दृष्टि से कार्य करता है तथा तीनों सेवाओं द्वारा निर्धारित आवश्यकताओं के अनुसार हमारे सशस्त्र बलों को अत्याधुनिक हथियार प्रणालियों और उपकरणों से लैस करता है।
- इसकी स्थापना वर्ष 1958 में रक्षा विज्ञान संगठन (Defence Science Organisation- DSO) के साथ भारतीय सेना के तकनीकी विकास प्रतिष्ठान (Technical Development Establishment- TDEs) तथा तकनीकी विकास और उत्पादन निदेशालय (Directorate of Technical Development & Production- DTDP) के संयोजन के बाद की गई थी।
- यह एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (Integrated Guided Missile Development Programme) के अंतर्गत लक्षित उद्देश्यों को पूरा करने के लिये उत्तरदायी है।
DRDO के कुछ हाल के परीक्षण
सीटी वैल्यू (CT Value) : कोविड -19 परीक्षण
Ct Value: Covid-19 Test
चर्चा में क्यों?
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने कोविड-19 पॉज़िटिव मरीजों के लिये एक एकल सीटी वैल्यू कट ऑफ निर्धारित करने का फैसला किया है।
- सीटी वैल्यू आरटी-पीसीआर परीक्षणों के दौरान उभरता है अर्थात् आरटी पीसीआर टेस्ट में सीटी वैल्यू मरीज में वायरल लोड को दर्शाती है। 35 से कम सीटी वैल्यू वाले सभी रोगियों को सकारात्मक (positive) माना जाता है जबकि 35 से ऊपर के सीटी वैल्यू वाले लोगों को नकारात्मक (Negative) माना जाता है।
प्रमुख बिंदु:
आरटी-पीसीआर परीक्षण (RT-PCR Tests):
- रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन पॉलीमरेज़ चेन रिएक्शन (Reverse Transcription Polymerase Chain Reaction-RT-PCR) यदि परीक्षण सकारात्मक है तो स्वाब (Swab) एकत्र किया जाता है और पॉलीमरेज़ चेन रिएक्शन (Polymerase Chain Reaction- PCR) किट का उपयोग करके एक राइबोन्यूक्लिक एसिड (Ribonucleic Acid- RNA) परीक्षण किया जाता है। जब यह परिलक्षित होती है तो डीएनए (डिऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड) में परिवर्तित कर दिया जाता है।
- प्रवर्द्धन आनुवंशिक सामग्री की कई प्रजातियाँ बनाने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है जैसे -डी.एन.ए. प्रक्रिया ।
- यह वायरस की उपस्थिति का पता लगाने के लिये परीक्षण की क्षमता में सुधार करता है।
- प्रवर्द्धन चक्रीय श्रृंखला के माध्यम से होता है - एक संख्या दो में और दो संख्या चार में बदल जाती है, और इसी तरह यह कई चक्रों के बाद वायरल लोड को निर्धारित करती है।
सीटी वैल्यू:
- सीटी, साइकिल थ्रेशोल्ड (Cycle Threshold) का संक्षिप्त रूप है।
- वैज्ञानिक रूप से एक सीटी वैल्यू किसी सैंपल में वायरस की संख्या की जानकारी देती है।
- यदि चक्र की अधिक संख्या में आवश्यकता होती है, तो इसका अर्थ है कि जब चक्र की संख्या कम होगी तो वायरस को निर्धारित करना मुश्किल होगा।
- न्यून सीटी वैल्यू, उच्च वायरल लोड को प्रदर्शित करता है क्योंकि वायरस की पहचान कम चक्रों में ही हो गई।
- इससे यह पता चलता है कि लक्षणों की शुरुआत के समय में रोग की गंभीरता की तुलना में सीटी वैल्यू एक मज़बूत संबंध स्थापित करता है।
वायरल लोड:
- यह आनुवंशिक सामग्री की संख्या को संदर्भित करता है, आमतौर पर एक संक्रमित व्यक्ति के रक्त में मौजूद वायरस के RNA रुप की पहचान करती है।
- यह रक्त के प्रत्येक मिलीलीटर में मौजूद वायरल कणों की कुल संख्या के रूप में व्यक्त किया जाता है।
- रक्त में उच्च वायरल लोड का अर्थ है कि वायरस सक्रिय है और संक्रमण बढ़ रहा है।
- एक उच्च वायरल लोड वाले संक्रमित व्यक्ति द्वारा अधिक वायरस कणों को प्रसारित करने की संभावना होती है जिसे "वायरल शेडिंग" के रूप में जाना जाता है अर्थात् जब कोई व्यक्ति वायरस से उच्च संक्रमित होता है, तो वायरस शरीर में गुणा करता है और हो सकता है छींकने, खाँसने या यहाँ तक कि बोलने के माध्यम से पर्यावरण में जारी किया जाता है तो इस प्रक्रिया को "वायरल शेडिंग" के रूप में जाना जाता है ।
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 29 अप्रैल, 2021
मनोज दास
28 अप्रैल, 2021 को ओडिशा के प्रख्यात शिक्षाविद और जाने-माने द्विभाषी लेखक मनोज दास का 87 वर्ष की आयु में निधन हो गया है। वर्ष 1934 में ओडिशा में जन्मे मनोज दास ने ओडिया और अंग्रेज़ी दोनों ही भाषाओं में महत्त्वपूर्ण साहित्यिक रचनाएँ कीं। मनोज दास ने छोटी उम्र में ही लेखन कार्य शुरू कर दिया था और ओडिया भाषा में उनकी कविता की पहली किताब वर्ष 1949 में तब प्रकाशित हुई थी, जब वे हाई स्कूल में पढ़ते थे, इसके बाद उन्होंने एक साहित्यिक पत्रिका और लघु कथाओं का संग्रह भी प्रकाशित किया। एक विपुल द्विभाषी लेखक के रूप में मनोज दास अपनी नाटकीय अभिव्यक्ति के साथ-साथ बेहतरीन व्यंग्य के लिये भी जाने जाते थे। दास ने अपनी रचनाओं में विभिन्न सामाजिक और मनोवैज्ञानिक समस्याओं जैसे विस्थापन, प्राकृतिक आपदाएँ (बाढ़, भूकंप और सुनामी आदि), अलौकिक चीज़ों पर मानवों का विश्वास, राजनेताओं का दोहरे व्यवहार और मनोवैज्ञानिक विकार आदि को शामिल किया। मनोज दास को साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिये वर्ष 2001 में पद्मश्री और वर्ष 2020 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार फैलोशिप से भी सम्मानित किया गया था।
भारत और ब्रिटेन के बीच सीमा शुल्क सहयोग समझौते को मंज़ूरी
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल ने सीमा शुल्क सहयोग और सीमा शुल्क के मामलों में पारस्परिक प्रशासनिक सहायता को लेकर भारत सरकार और यूनाइटेड किंगडम की सरकार के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर को मंज़ूरी दी है। इस समझौते से सीमा शुल्क से संबंधित अपराधों की रोकथाम और जाँच के लिये उपयोगी जानकारी की उपलब्धता में मदद मिलेगी। साथ ही इस समझौते से व्यापार को आसान बनाने और दोनों देशों के बीच व्यापार किये गए माल का आसान क्लीयरेंस सुनिश्चित किया जा सकेगा। संबंधित सरकारों द्वारा अनुमोदित किये जाने के बाद दोनों देशों की सरकारों की ओर से इस समझौते पर हस्ताक्षर किये जाएंगे। यह समझौता दोनों देशों के सीमा शुल्क अधिकारियों के बीच सूचना एवं खुफिया जानकारी साझा करने का एक कानूनी ढाँचा प्रदान करेगा और सीमा शुल्क कानूनों के उपयुक्त अमल और सीमा शुल्क अपराधों की रोकथाम एवं जाँच और वैध व्यापार को सहज बनाने में मदद करेगा। इस समझौते में सीमा शुल्क मूल्य, टैरिफ वर्गीकरण और दोनों देशों के बीच व्यापार किये गए माल के स्रोत के बारे में जानकारी के आदान-प्रदान से जुड़ी आवश्यकताओं का विशेष रूप से ध्यान रखा गया है।
‘ऑक्सीजन कंसंट्रेटर’
कोरोना वायरस संक्रमण के बढ़ते मामलों और ऑक्सीजन की कमी के मद्देनज़र विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भारत को 4,000 ‘ऑक्सीजन कंसंट्रेटर’ प्रदान करने की घोषणा की है। ‘ऑक्सीजन कंसंट्रेटर’ एक चिकित्सा उपकरण है, जो परिवेशी वायु से ऑक्सीजन को संकेंद्रित करता है। विदित हो कि वायुमंडल में लगभग 78 प्रतिशत नाइट्रोजन और 21 प्रतिशत ऑक्सीजन है तथा अन्य गैसों का हिस्सा 1 प्रतिशत है। ‘ऑक्सीजन कंसंट्रेटर’ वायुमंडल में मौजूद वायु को ‘फिल्टर’ के माध्यम से साफ करता है और नाइट्रोजन को अलग कर उसे वापस वायुमंडल में छोड़ देता है। इस प्रक्रिया के माध्यम से प्राप्त ऑक्सीजन 90-95 प्रतिशत तक शुद्ध होता है। यद्यपि इसे प्राप्त ऑक्सीजन पूर्णतः शुद्ध नहीं होती है, किंतु विशेषज्ञों की मानें तो यह 85% या उससे अधिक ऑक्सीजन सेचुरेशन स्तर वाले हल्के और मध्यम कोविड-19 रोगियों के लिये पर्याप्त होता है। ‘ऑक्सीजन कंसंट्रेटर’ में मौजूद दबाव वाल्व ऑक्सीजन की आपूर्ति को 1-10 लीटर प्रति मिनट तक सीमित कर उसे विनियमित करने में मदद करता है। ‘ऑक्सीजन कंसंट्रेटर’ को निरंतर संचालन के लिये डिज़ाइन किया जाता है और वह तकरीबन 5 वर्ष अथवा उससे लंबी अवधि तक चौबीसों घंटे ऑक्सीजन का उत्पादन कर सकता है।
‘झुरोंग’ रोवर
चीन की सरकार ने हाल ही में चीन के पहले मंगल रोवर का नाम पारंपरिक अग्नि देवता के नाम पर ‘झुरोंग’ (Zhurong) रखने की घोषणा की है। यह रोवर ‘तियानवेन-1’ प्रोब पर मौजूद है, जो कि बीते दिनों 24 फरवरी को मंगल ग्रह की कक्षा में पहुँचा था और जीवन के साक्ष्य की तलाश के लिये मई माह में मंगल ग्रह की सतह पर उतरेगा। यह परियोजना चीन की अंतरिक्ष योजनाओं का एक हिस्सा है, जिसमें एक ऑर्बिट स्टेशन को लॉन्च करना और चंद्रमा पर मानव को उतारना भी शामिल है। वर्ष 2019 में चीन चंद्रमा की सतह पर सुदूर क्षेत्र में लैंड करने वाला पहला देश बना था, साथ ही 1970 के दशक के बाद पहली बार पृथ्वी पर चंद्रमा की चट्टानों को वापस था। चीन के मुताबिक, ‘तियानवेन-1’ मिशन के तहत मंगल ग्रह की सतह और भूविज्ञान का विश्लेषण और मानचित्रण करना, पानी की खोज करना और जलवायु तथा पर्यावरण का अध्ययन करना शामिल है। चीन, पूर्ववर्ती सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद मंगल ग्रह पर रोबोट रोवर लैंड करने वाला तीसरा देश बन जाएगा।