प्रीलिम्स फैक्ट्स : 26 फरवरी, 2018
रुस्तम 2 फ्लाइट
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (Defence Research & Development Organisation - DRDO) द्वारा देश में बने सबसे बड़े ड्रोन ‘रुस्तम-2’ का सफल परीक्षण किया गया। हाल ही में हाई पावर इंजन के साथ कर्नाटक के चित्रदुर्ग से इसका परीक्षण किया गया।
विशेषताएँ
- वज़न 1.8 टन, स्पीड 225 kmph
- यह सिंथेटिक अपर्चर रडार, मेरीटाइम पेट्रोल रडार एवं टक्कर रोधी प्रणाली से युक्त है।
- यह एक मध्यम ऊँचाई वाला मानवरहित विमान है।
- यह निगरानी के साथ लक्ष्य पर सटीक निशाना लगाने में सक्षम है।
- यह मीडियम रेंज में 24 घंटे तक हथियारों के साथ उड़ान भर सकता है।
- दुश्मन की टोह लेने, निगरानी रखने, लक्ष्य पर सटीक निशाना लगाने तथा सिग्नल इंटेलिजेंस के रूप में इसका इस्तेमाल किया जाएगा।
- तीनों भारतीय सेनाओं द्वारा इसका प्रयोग किया जाएगा।
- इस मानवरहित यान को अमेरिका के प्रिडेटर ड्रोन की भाँति मानवरहित लड़ाकू यान के रूप में उपयोग में लाया जा सकता है।
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन
वर्ष 1958 में भारतीय सेना के प्रौद्योगिकी विकास अधिष्ठान (Technical Development Establishment -TDEs) तथा रक्षा विज्ञान संस्थान (Defence Science Organisation - DSO) के साथ प्रौद्योगिकी विकास और उत्पादन निदेशालय (Directorate of Technical Development & Production - DTDP) का एकीकरण करके डीआरडीओ (Defence Research & Development Organisation - DRDO) का गठन किया गया। उस समय डीआरडीओ 10 प्रतिष्ठानों अथवा प्रयोगशालाओं वाला एक छोटा संगठन था।
- परंतु वर्तमान में यह 50 से अधिक प्रयोगशालाओं का एक समूह है जो भिन्न प्रकार के शिक्षणों जैसे- वैमानिकी, आयुध, इलेक्ट्रॉनिक्स, युद्धक वाहन, इंजीनियरिंग प्रणाली, उपकरण, मिसाइल, उन्नत कंप्यूटिंग और सिमुलेशन, विशेष सामग्री, नौसेना प्रणालियों, जीवन विज्ञान, प्रशिक्षण, सूचना प्रणालियों और कृषि को सुरक्षा देने वाली रक्षा प्रौद्योगिकियों का विकास करने में संलग्न है।
- इसके अंतर्गत मिसाइलों, हथियारों, हल्के लड़ाकू विमानों, रडार, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणालियों इत्यादि के विकास के लिये अनेक प्रमुख परियोजनाओं के संबंध में कार्य किया जा रहा है।
लक्ष्य
- इसका लक्ष्य "विश्वस्तरीय विज्ञान और प्रोद्यौगिकी आधार की स्थापना द्वारा भारत को समृद्ध बनाना और अंतराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी प्रणालियों तथा समाधान से सुसज्जित कर हमारी रक्षा सेवा में निर्णायक बढ़त प्रदान करना है।
- देश की सुरक्षा सेवाओं के लिये स्टेट-ऑफ-द-आर्ट सेंसर (state-of-the-art sensors), शस्त्र प्रणाली (weapon systems), प्लेटफॉर्म और संबद्ध उपकरणों के उत्पादन का डिज़ाइन, विकास और नेतृत्व करना।
- अधिकतम प्रभाव का मुकाबला करने के लिये सेवाओं को प्रोद्यौगिकीय समाधान प्रदान करना।
- बुनियादी सुविधाओं का विकास करना तथा योग्य जनशक्ति एवं स्वदेशी प्रोद्यौगिकी आधार को मज़बूत बनाना।
डीआरडीओ के साझेदार कौन-कौन हैं?
- प्राथमिक रूप से निम्नलिखित एजेंसियों को परिवर्ती मात्रा में रक्षा अनुसंधान तथा विकास विभाग के साझेदारों/ग्राहकों के रूप में सूचीबद्ध किया गया है-
► रक्षा मंत्रालय। ► विदेश मंत्रालय। ► गृह मंत्रालय/अन्य मंत्रालय। ► सेना। ► नौसेना। ► वायुसेना। ► अन्य सरकारी विभाग, सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के अनुसंधान एवं विकास केंद्र ► शैक्षणिक संस्थान। ► आयुध निर्मात्री, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम एवं औद्योगिक साझेदार। ► देश के नागरिक।
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एकीकृत गाइडेड मिसाइल विकास कार्यक्रम
एकीकृत गाइडेड मिसाइल विकास कार्यक्रम ((Integrated Guided Missile Develoment Program – IGMDP) की शुरुआत वर्ष 1983 में की गई थी। मार्च 2012 में इस कार्यक्रम में लक्षित उद्देश्यों को पूर्ण कर लिया गया। इसकी स्थापना का विचार डॉ. एपीजी अब्दुल कलाम द्वारा दिया गया था।
मुख्य बिंदु
- इस कार्यक्रम के तहत स्वदेशी मिसाइल के बुनियादी ढाँचे को विकसित करने के उद्देश्य के साथ-साथ आईजीएमडीपी को लाया गया था।
- इसके तहत विकसित की गई पाँच मिसाइलें- पृथ्वी, अग्नि, त्रिशूल, आकाश और नाग हैं।
► पृथ्वी - सतह-से-सतह मार करने में सक्षम कम दूरी वाली बैलिस्टिक मिसाइल। ► अग्नि – सतह-से-सतह मार करने में सक्षम मध्यम दूरी वाली बैलिस्टिक मिसाइल। ► त्रिशूल – सतह-से-आकाश में मार करने में सक्षम कम दूरी वाली मिसाइल। ► आकाश – सतह-से-आकाश में मार करने में सक्षम मध्यम दूरी वाली मिसाइल। ► नाग - तीसरी पीढ़ी की टैंक भेदी मिसाइल।
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बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा (BMD) कार्यक्रम
बैलिस्टिक मिसाइल हवा में एक अर्द्धचंद्राकार पथ (Ballistic Trajectory) का अनुसरण करती है और रॉकेट के साथ इसका संपर्क खत्म होने पर इसमें लगा हुआ बम गुरुत्व के प्रभाव से ज़मीन पर गिरता है। इसलिये एक बार प्रक्षेपित करने के बाद इसके लक्ष्य पर कोई नियंत्रण नहीं होता है।
- बैलिस्टिक मिसाइल का उपयोग परमाणु, रासायनिक, जैविक या पारंपरिक हथियारों की बैलिस्टिक पथ पर डिलीवरी के लिये किया जाता है।
बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा (BMD) कार्यक्रम
- इस पहल का उद्देश्य एक बहु-स्तरीय बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा प्रणाली को विकसित और तैनात करना है। बीएमडी सिस्टम में दो इंटरसेप्टर मिसाइलें शामिल हैं।
- पृथ्वी डिफेंस व्हीकल (पीडीवी) - यह वायुमंडल के बाहर (Exo-Atmospheric) अथवा पृथ्वी से 50-150 किलोमीटर की ऊँचाई के लिये इंटरसेप्टर मिसाइल है।
- यह मौजूदा पृथ्वी वायु रक्षा (Pruthvi Air Defence-PAD) प्रणाली (प्रद्युम्न) का स्थान लेगी, जिसकी अधिकतम सीमा 80 किलोमीटर है।
- एडवांस्ड एरिया डिफेंस - यह वायुमंडल के भीतर (Endo- Atmospheric) अथवा पृथ्वी से 20-40 किलोमीटर की ऊँचाई के लिये इंटरसेप्टर मिसाइल है। इसे ‘अश्विन’ नाम दिया गया है।
- रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन के अनुसार, इस प्रणाली को 2022 तक पूर्ण रूप से तैनात कर दिया जाएगा।
- बीएमडी प्रणाली के पहले चरण की 2,000 किलोमीटर की परास को दूसरे चरण में 5,000 किलोमीटर तक बढ़ाया जाएगा।
- भारत के अलावा ऐसी रक्षा प्रणाली अमेरिका, रूस, चीन और इज़राइल के पास भी है।
पृष्ठभूमि
- 1990 के दशक के उत्तरार्द्ध में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने दो स्तरीय बीएमडी सिस्टम विकसित करना शुरू किया था।
- इंटरसेप्टर मिसाइल का पहली बार परीक्षण 2006 में किया गया था। हालाँकि, इसका एकीकृत मोड (एक्सो और एंडो साथ) में अभी तक परीक्षण नहीं किया गया है।
- एक पूर्ण बहु-स्तरीय बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा प्रणाली प्राप्त करने के प्रयासों के तहत पहले दो परीक्षण 1 मार्च और 11 फरवरी, 2017 को आयोजित किये गए थे।
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