इंदौर शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 11 नवंबर से शुरू   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारतीय धातु उद्योग: वर्तमान परिदृश्य और भविष्य के रुझान

  • 24 May 2022
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय धातु उद्योग, धातु क्षेत्र से संबंधित पहल।

मेन्स के लिये:

भारतीय धातु उद्योग का महत्त्व और संबद्ध चुनौतियाँ।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में एसोचैम (ASSOCHAM) ने ‘भारतीय धातु उद्योग: वर्तमान परिदृश्य और भविष्य के रुझान’ (Indian Metal Industry: Current Outlook and Future Trends) नामक एक सम्मेलन का आयोजन किया।

भारतीय धातु उद्योग का वर्तमान परिदृश्य:

  • परिचय:
    • 20वीं शताब्दी की शुरुआत में औद्योगीकरण द्वारा संचालित अर्थव्यवस्थाओं के उद्भव के परिणामस्वरूप ऐसे देश लाभान्वित हुए जिन्होंने विस्तृत रूप में धातु उद्योग की स्थापना कर ली थी। 
    • धातुएँ औद्योगीकरण के प्रमुख चालकों में से एक हैं।
  • आँकड़े:
    • अक्तूबर 2021 तक भारत 9.8 मीट्रिक टन के उत्पादन के साथ कच्चे इस्पात का दुनिया में "दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक" था। वित्तीय वर्ष 2022 (जनवरी तक) में कच्चे इस्पात और तैयार इस्पात का उत्पादन क्रमशः 98.39 मीट्रिक टन एवं 92.82 मीट्रिक टन था।
    • वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान भारत में इस्पात की प्रति व्यक्ति खपत 10% बढ़कर 77 किलोग्राम प्रति व्यक्ति हो गई।
    • अनंतिम अनुमानों के अनुसार, भारत ने वर्ष 2021-22 में 120 मिलियन टन से अधिक कच्चे इस्पात और 113.6 मिलियन टन तैयार इस्पात के रिकॉर्ड उत्पादन के साथ 13.5 मिलियन टन तैयार इस्पात का निर्यात किया है।
  • वृद्धि के प्रमुख कारक:
    • भारतीय इस्पात क्षेत्र में वृद्धि लौह अयस्क और लागत प्रभावी श्रम जैसे कच्चे माल की घरेलू उपलब्धता से प्रेरित है।
    • नतीजतन, भारत के विनिर्माण उत्पादन में इस्पात क्षेत्र का प्रमुख योगदान रहा है।
    • भारतीय इस्पात उद्योग अत्यंत आधुनिक है।
      • इसने हमेशा पुराने संयंत्रों के निरंतर आधुनिकीकरण और उच्च ऊर्जा दक्षता स्तरों के उन्नयन का प्रयास किया है।
  • महत्त्व: 
    • लोहा, कोयला, डोलोमाइट, सीसा, जस्ता, चांदी, सोना आदि के विशाल भंडार के साथ-साथ भारत खनन और धातु उद्योग के लिये एक प्राकृतिक गंतव्य है।
    • धातुओं में इस्पात ने ऐतिहासिक रूप से एक प्रमुख स्थान हासिल किया है। कच्चे माल और मध्यवर्ती उत्पाद के रूप में इस्पात के उत्पादन एवं खपत को व्यापक रूप से आर्थिक प्रगति, औद्योगिक विकास के संकेतक के रूप में माना जाता है, साथ ही साथ यह किसी भी अर्थव्यवस्था के लिये प्रमुख आधार के रूप में कार्य करता है।
    • मेक इन इंडिया अभियान, स्मार्ट सिटी, ग्रामीण विद्युतीकरण जैसे सुधारों और राष्ट्रीय विद्युत नीति के तहत नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करने के साथ-साथ भारत में धातु एवं खनन क्षेत्र में अगले कुछ वर्षों में बड़े सुधार की उम्मीद है। 
    • वित्त वर्ष 2021-22 में बुनियादी धातुओं के विनिर्माण के औद्योगिक उत्पादन सूचकांक का औसत 177.3 है तथा इसमें 18.4% की वृद्धि हुई है।
    • कोयला खनन में स्थिरता लाने के महत्त्व को स्वीकार करते हुए कोयला खदानों में बेहतर पर्यावरण प्रबंधन प्रथाओं को अपनाने व बढ़ावा देने के लिये कोयला मंत्रालय और सभी कोयला सार्वजनिक उपक्रमों में एक "सतत् विकास प्रकोष्ठ" बनाया गया है।
  • चुनौतियांँ: 
    • पूंजी: धातु उद्योग को विशेष रूप से लोहा और इस्पात के लिये बड़े पूंजी निवेश की आवश्यकता होती है जिसे भारत जैसे विकासशील देश के लिये वहन कर पाना कठिन है। सार्वजनिक क्षेत्र के कई एकीकृत इस्पात संयंत्र विदेशी सहायता से स्थापित किये गए हैं।
    • कम उत्पादकता: देश में इस्पात उद्योग के लिये प्रति व्यक्ति श्रम उत्पादकता 90-100 टन है जो कि बहुत कम है, जबकि यह कोरिया, जापान और अन्य इस्पात उत्पादक देशों में प्रति व्यक्ति 600-700 टन है।
    • उत्पादन क्षमता का अल्प-उपयोग: दुर्गापुर स्टील प्लांट अपनी क्षमता के लगभग 50% का उपयोग करता है जिसका कारण हड़ताल, कच्चे माल की कमी, ऊर्जा संकट, अक्षम प्रशासन आदि जैसे कारक हैं।
    • भारी मांग: मांगों को पूरा करने के लिये स्टील और अन्य धातुओं का भारी मात्रा में आयात किया जाता है। अतः बहुमूल्य विदेशी मुद्रा को बचाने के लिये उत्पादकता बढ़ाने की आवश्यकता है। 
    • उत्पादों की निम्न गुणवत्ता: कमज़ोर आधारभूत संरचना, पूंजी निवेश तथा अन्य सुविधाएंँ अंततः धातुकर्म प्रक्रिया में अधिक समय लेने के साथ महंँगी होती हैं तथा मिश्र धातुओं की एक निम्न किस्म का उत्पादन करती हैं।

धातु क्षेत्र के लिये सरकार की पहल: 

आगे की राह 

  • उद्योग और अन्य हितधारकों को सामूहिक रूप से उन सभी क्षेत्रों और कारकों की पहचान करने की आवश्यकता है जो इन धातुओं की खपत में वृद्धि हेतु योगदान दे रहे हैं ताकि आम आदमी के लिये सस्ती कीमत पर इनकी उपलब्धता सुनिश्चित हो सके।
  • प्रौद्योगिकी विकास और नवाचार के माध्यम से घरेलू क्षमता को मज़बूत करना आवश्यक है। यह न केवल भारतीय धातु और धातुकर्म क्षेत्र को वास्तव में वैश्विक स्तर पर सक्षम बनाएगा बल्कि भारत को धातु और धातु उत्पादों के लिये एक विनिर्माण केंद्र बनने में भी मदद करेगा। 
  • देश में खनिज भंडार, विशेष रूप से जो खनिज आर्थिक विकास की रीढ़ हैं,  जैसे- लोहा, कोयला, बॉक्साइट, चूना, तांँबा, मैंगनीज़, क्रोमियम आदि के विकास की आवश्यकता को युक्तिसंगत बनाना महत्त्वपूर्ण है।
  • यह ज़रूरी है कि उद्योगों के विभिन्न संघ ग्रामीण भारत के क्षेत्रों में बैठकों या सेमिनारों का आयोजन कर सरकार की योजनाओं के बारे में ग्रामीणों को जानकारी प्रदान करें। साथ ही वहांँ कौशल विकास कार्यक्रम चलाकर राष्ट्र निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
  • तकनीक और स्मार्ट वर्किंग की शुरुआत करके लागत को कम करना आवश्यक है। 
  • इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि उच्च गुणवत्ता वाले लौह अयस्क की घरेलू उपलब्धता, मज़बूत घरेलू मांग और युवा कार्यबल की उपलब्धता के परिणामस्वरूप भारत को इस्पात उत्पादन में अपने समकक्षो की तुलना में प्रतिस्पर्द्धात्मक लाभ प्राप्त होगा।
  • भारत की तुलनात्मक रूप से कम प्रति व्यक्ति इस्पात खपत, साथ ही बुनियादी ढांँचे के निर्माण एवं ऑटोमोबाइल और रेलवे क्षेत्रों में खपत में वृद्धि के कारण अपेक्षित वृद्धि के लिये अवसर प्रदान करती है।

विगत वर्ष के प्रश्न:

प्रश्न. ताम्र प्रगलन संयंत्रों को लेकर चिंता क्यों है?

  1. वे पर्यावरण में घातक मात्रा में कार्बन मोनोऑक्साइड निर्मुक्त कर  सकते हैं।
  2. कॉपर स्लैग पर्यावरण में कुछ भारी धातुओं के निक्षालन  का कारण बन सकता है।
  3. वे प्रदूषक के रूप में सल्फर डाइऑक्साइड निर्मुक्त कर सकते हैं।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: B

व्याख्या:

  • कई अलग-अलग प्रक्रियाएंँ हैं जिनका उपयोग तांँबे के उत्पादन के लिये किया जा सकता है। पारंपरिक प्रक्रियाओं में से एक रेवरबेरेटरी भट्टियों (या अधिक जटिल अयस्कों के लिये इलेक्ट्रिक भट्टियांँ) में गलाने पर आधारित है, जिससे मैट (कॉपर-आयरन सल्फाइड) का उत्पादन होता है। भट्ठी से मैट को कन्वर्टर्स पर चार्ज़ किया जाता है, जहांँ पिघला हुआ पदार्थ हवा की उपस्थिति में लोहे और सल्फर अशुद्धियों (कन्वर्टर स्लैग के रूप में) को हटाने तथा ब्लिस्टर कॉपर बनाने के लिये ऑक्सीकृत होता है।
  • इस प्रक्रिया से उत्सर्जित होने वाले प्रमुख वायु प्रदूषक सल्फर डाइऑक्साइड और पार्टिकुलेट मैटर हैं तथा अधिकांश ठोस अपशिष्ट स्लैग को छोड़ दिया जाता है। अत: कथन 3 सही है।
  • उत्पादित स्लैग में संभावित विषैले तत्त्वो जैसे- आर्सेनिक, सीसा, कैडमियम, बेरियम और ज़स्ता की महत्त्वपूर्ण सांद्रता हो सकती है। प्राकृतिक अपक्षय परिस्थितियों के तहत स्लैग इन संभावित ज़हरीले एवं प्रदूषित तत्त्वो को पर्यावरण, मृदा, सतही जल व भूजल में छोड़ सकता है। अतः कथन 2 सही है।
  • चूंँकि स्लैग रासायनिक रूप से निष्क्रिय होता है, इसलिये इसे सीमेंट के साथ मिलाया जाता है और सड़कों एवं रेलरोड बेड बनाने के लिये उपयोग किया जाता है। सैंडब्लास्टिंग इसका एक अन्य अनुप्रयोग है। इसके अलावा इसे रूफिंग सिंगल (छत के रूप में प्रयुक्त धातु की चादरें) में जोड़ा जाता है।
  • कॉपर गलाने से वातावरण में कार्बन मोनोऑक्साइड की घातक मात्रा नहीं निकलती है। अतः कथन 1 सही नहीं है।

स्रोत: पी.आई.बी.

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2