डेली न्यूज़ (10 Feb, 2023)



हाथी अभयारण्य

Elephant-Reserves-in-India-Nov-2022


विनिवेश की स्थिति और प्राप्ति

प्रिलिम्स के लिये:

विनिवेश, DIPAM, CPSE, IPO

मेन्स के लिये:

विनिवेश की स्थिति और प्राप्ति।

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय बजट 2023-24 में सरकार ने 51,000 करोड़ रुपए का विनिवेश लक्ष्य निर्धारित किया है, जो चालू वर्ष के बजट अनुमान से लगभग 21% कम है और संशोधित अनुमान से सिर्फ 1,000 करोड़ रुपए अधिक है। यह सात वर्षों में सबसे कम विनिवेश लक्ष्य भी है।

विनिवेश (Disinvestment):

  • परिचय:
    • विनिवेश प्रक्रिया में सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में रणनीतिक या वित्तीय खरीदारों को सरकारी हिस्सेदारी की बिक्री शामिल है, जिसे स्टॉक एक्सचेंजों पर शेयरों की बिक्री के माध्यम से या सीधे खरीदारों को शेयरों की बिक्री के माध्यम से किया जाता।
    • विनिवेश से प्राप्त आय का उपयोग विभिन्न सामाजिक और बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिये एवं सरकार के राजकोषीय घाटे को कम करने हेतु किया जाता है।
  • विधि:
    • अल्पांश विनिवेश (Minority Disinvestment): इसमें सरकार कंपनी में बहुमत रखती है, आमतौर पर 51% से अधिक शेयर अपने पास रखती है ताकि प्रबंधन नियंत्रण सुनिश्चित किया जा सके।
    • बहुमत विनिवेश (Majority Divestment): सरकार अधिग्रहण करने वाली इकाई को नियंत्रण सौंपती है लेकिन कुछ हिस्सेदारी बरकरार रखती है।
    • पूर्ण निजीकरण: कंपनी का 100% नियंत्रण खरीदार को दिया जाता है।
  • प्रक्रिया:
    • भारत में विनिवेश प्रक्रिया का संचालन निवेश और सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग (Department of Investment and Public Asset Management- DIPAM) द्वारा किया जाता है, जो वित्त मंत्रालय के अंतर्गत आता है।
    • DIPAM का प्राथमिक उद्देश्य सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में सरकार के निवेश का प्रबंधन करना और इन उद्यमों में सरकारी इक्विटी के विनिवेश की देख-रेख करना है।
    • सरकार ने वर्ष 2005 में राष्ट्रीय निवेश कोष (National Investment Fund- NIF) का गठन किया था जिसमें केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के विनिवेश से प्राप्त आय को चैनलाइज़ किया जाना था।

विनिवेश की आवश्यकता:

  • राजकोषीय दबाव में कमी: सरकार राजकोषीय दबाव को कम करने या उस वर्ष हेतु राजस्व की कमी को पूरा करने के लिये विनिवेश कर सकती है।
    • वह विनिवेश से प्राप्त आय का उपयोग राजकोषीय घाटे को वित्तपोषित करने, अर्थव्यवस्था और विकास या सामाजिक क्षेत्र के कार्यक्रमों में निवेश करने एवं सरकारी ऋण चुकाने हेतु करती है।
  • निजी अभिकर्त्ता को प्रोत्साहन: विनिवेश संपत्ति निजी स्वामित्त्व और खुले बाज़ार में व्यापार को भी प्रोत्साहित करती है।
    • अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र के निवेश को प्रोत्साहित करना, यह सुधारों के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता और अधिक अनुकूल कारोबारी माहौल बनाने हेतु संकेत देता है।
    • इसके सफल होने पर अब सरकार को घाटे में चल रही इकाई के घाटे को निधि देने की आवश्यकता नहीं होगी।
  • कार्यकुशलता में सुधार: सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों से हटकर सरकार इन उद्यमों की दक्षता और प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार कर सकती है, क्योंकि निजी क्षेत्र का स्वामित्त्व और प्रबंधन नए विचारों एवं अधिक बाज़ारोन्मुख दृष्टिकोण को बढ़ावा दे सकता है।
  • संसाधनों का बेहतर आवंटन: सरकार विनिवेश के माध्यम से मुक्त संसाधनों को सामाजिक और बुनियादी ढाँचे के विकास जैसी अन्य प्राथमिकताओं हेतु पुनः आवंटित कर सकती है।
  • पारदर्शिता: विनिवेश सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के कामकाज़ में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ा सकता है, क्योंकि निजी क्षेत्र के स्वामित्त्व तथा प्रबंधन के तहत वित्तीय एवं परिचालन संबंधी रिपोर्टिंग अधिक सख्त हो सकती है।

हाल के वर्षों में विनिवेश प्रदर्शन:

disinvestment-performance-in-recent-years

  • वर्ष 2014 के बाद से सरकार ने अपने विनिवेश लक्ष्यों को दो बार पूरा (लक्ष्य से अधिक) किया है ।
    • वर्ष 2017-18 में सरकार ने 72,500 करोड़ रुपए के लक्ष्य के मुकाबले 1 लाख करोड़ रुपए से कुछ अधिक की विनिवेश प्राप्तियाँ अर्जित कीं और वर्ष 2018-19 में यह आँकड़ा निर्धारित 80,000 करोड़ रुपए लक्ष्य के मुकाबले 94,700 करोड़ रुपए था।
  • सरकार ने अब तक वर्ष 2022-23 के विनिवेश लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया है, अब तक 31,106 करोड़ रुपए प्राप्त किये गए हैं, जिनमें से 20,516 करोड़ रुपए, जो कि बजटीय अनुमान के एक-तिहाई के करीब है, जीवन बीमा निगम (LIC) में इसके 3.5% शेयरों के IPO (आरंभिक सार्वजनिक पेशकश) से आया है।

वर्ष 2023-24 के लिये विनिवेश योजना:

  • केंद्र वर्ष 2023-24 में विनिवेश किये जाने वाले CPSE की सूची में नई कंपनियों को नहीं जोड़ने की योजना बना रहा है।
  • सरकार ने राज्य के स्वामित्त्व वाली कंपनियों के पहले से ही घोषित और नियोजित निजीकरण पर निर्भर रहने का फैसला किया है।
    • इनमें IDBI बैंक, शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (SCI), कंटेनर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ConCor), NMDC स्टील लिमिटेड, BEML, HLL LIFECARE आदि शामिल हैं।
    • संयोग से भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड, SCI और ConCor के विनिवेश को सरकार ने वर्ष 2019 में मंज़ूरी दी थी लेकिन यह भी तक नहीं पूरी हो पाई है।

भारत में विनिवेश चुनौतियाँ:

  • राजनीतिक विरोध: विनिवेश भारत में राजनीतिक रूप से एक संवेदनशील मुद्दा है, राजनीतिक दल तथा ट्रेड यूनियन अक्सर इस प्रक्रिया के विरोधी रहे हैं जो सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों की बिक्री का विरोध करते हैं।
  • मूल्यांकन के मुद्दे: सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का मूल्यांकन एक चुनौती हो सकती है क्योंकि ये उद्यम नौकरशाही और गैर-बाज़ार-उन्मुख संरचनाओं के कारण बाज़ार में प्रभावी रूप से प्रतिस्पर्द्धा करने में सक्षम नहीं हो सकते हैं।
  • श्रमिक मुद्दे: विनिवेश श्रम संबंधी मुद्दों से अछूता नहीं है क्योंकि सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में श्रमिकों को इन उद्यमों की बिक्री के बाद नौकरी छूटने या वेतन कटौती का डर बना रह सकता है।
  • खरीदारों से ब्याज की कमी: कुछ मामलों में सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में अपनी हिस्सेदारी हेतु खरीदार खोजने के लिये संघर्षरत मालूम पड़ती है, खासकर अगर ये उद्यम वित्तीय रूप से अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रहे हैं।
  • विनियामक चुनौतियाँ: विनिवेश की प्रक्रिया कई प्रकार के विनियमों और अनुमोदन प्रक्रियाओं के अधीन है, जो प्रक्रिया की गति को प्रभावित कर सकती है तथा इसकी जटिलता को बढ़ा सकती है।
  • कानूनी चुनौतियाँ: विनिवेश की प्रक्रिया को न्यायालयों में भी चुनौती दी जा सकती है क्योंकि वादी बिक्री की वैधता अथवा उन नियमों और शर्तों को चुनौती दे सकते हैं, जिनके तहत इसे आयोजित किया गया था।

आगे की राह

  • कुल मिलाकर विनिवेश को भारत में आर्थिक वृद्धि और विकास को बढ़ावा देने के एक महत्त्वपूर्ण उपकरण के रूप में देखा जाता है। राजस्व सृजन, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों की दक्षता में सुधार लाने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने तथा अधिक गतिशील एवं सतत् अर्थव्यवस्था बनाने में मदद के उद्देश्य से भारत में सरकार ने अपने विनिवेश कार्यक्रम को जारी रखा है।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रश्न. शासन के संदर्भ में निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2010)

  1. विदेशी प्रत्यक्ष निवेश अंतर्वाह को प्रोत्साहन देना
  2. उच्च शैक्षिक संस्थानों का निजीकरण करना
  3. अधिकारी तंत्र की डाउन-साइज़िंग करना
  4. सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के शेयरों की बिक्री/ऑफलोडिंग

उपर्युक्त में से किसका उपयोग भारत में राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने के उपायों के रूप में किया जा सकता है?

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1, 2 और 4
(d) केवल 3 और 4

उत्तर: (d)


प्रश्न. भारत सरकार केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उद्यमों (CPSE) में लगी अपनी इक्विटी का विनिवेश क्यों कर रही है? (2011)

  1. सरकार अपनी इक्विटी के विनिवेश से मिले राजस्व का उपयोग मुख्यतः अपने बाह्य ऋण को लौटाने में करना चाहती है ।
  2. सरकार अब CPSE के प्रबंधन का नियंत्रण अपने हाथों में नहीं रखना चाहती।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d)


प्रश्न. राष्ट्रीय निवेश निधि, जिसमें विनिवेश प्राप्तियाँ पहुँचती हैं, के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2010)

  1. केंद्रीय वित्त मंत्रालय राष्ट्रीय निवेश निधि की परिसंपत्ति का प्रबंधन करता है।
  2. राष्ट्रीय निवेश निधि भारत की संचित निधि के अंतर्गत रखी जाती है।
  3. कुछ परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनियाँ, निधि प्रबंधकों के रूप में नियुक्त की जाती हैं।
  4. वार्षिक आय का निश्चित अनुपात चुनिंदा सामाजिक क्षेत्रों का वित्तपोषण करने के लिये प्रयुक्त होता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 3 और 4
(d) केवल 3

उत्तर: (c)

स्रोत: द हिंदू


संसद में भाषण का कुछ हिस्सा रिकॉर्ड से हटाया गया

प्रिलिम्स के लिये:

असंसदीय शब्द, एक्सपंजिंग, संविधान का अनुच्छेद 105(2)।

मेन्स के लिये:

एक्सपंजिंग पर नियम, एक्सपंजिंग से संबंधित प्रक्रिया।

7 फरवरी, 2023 को लोकसभा में विपक्ष के नेता द्वारा दिये गए भाषण के एक हिस्से को अध्यक्ष के आदेश से संसद के रिकॉर्ड से हटा दिया गया।

  • भाषण का कौन सा हिस्सा हटाया जाना है इस पर निर्णय लेने का अधिकार सदन के पीठासीन अधिकारी के पास होता है।

रिकॉर्ड से हटाने के संबंध में नियम:

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 105(2) के तहत संसद सदस्यों को संसद में उनके बयान के लिये न्यायालयी कार्यवाही से सुरक्षा प्राप्त है।
    • हालाँकि उनके भाषण संसद के नियमों के अनुशासन, सदस्यों की अच्छी समझ और अध्यक्ष द्वारा कार्यवाही के नियंत्रण के अधीन हैं।
  • लोकसभा की प्रक्रिया और कार्य-संचालन नियमों के नियम संख्या 380 के तहत अध्यक्ष को वाद-विवाद में प्रयुक्त मानहानिकारक, अशोभनीय अथवा असंसदीय शब्द या अभिव्यक्ति को हटाने का अधिकार प्राप्त है।

असंसदीय अभिव्यक्तियाँ:

  • लोकसभा सचिवालय द्वारा बड़ी मात्रा में असंसदीय अभिव्यक्तियाँ स्पष्ट की गई हैं।
  • इस पुस्तक में ऐसे शब्द अथवा अभिव्यक्तियाँ हैं जिन्हें अधिकांश संस्कृतियों में असभ्य या अपमानजनक माना जाएगा लेकिन इसमें ऐसी सामग्री भी शामिल है जो हानिरहित और अहानिकर है।
  • पीठासीन अधिकारियों- लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा अध्यक्ष का काम ऐसे शब्दों को संसद के रिकॉर्ड से अलग रखना है।

किसी शब्द (अथवा भाषण का भाग) हटाने के निर्णय की प्रक्रिया:

  • रिपोर्टिंग अनुभाग के प्रमुख की सिफारिश के आधार पर और उस संदर्भ को ध्यान में रखते हुए जिसमें शब्द या वाक्य का उपयोग किया गया था, स्पीकर नियम 380 के तहत शब्द या भाषण के हिस्से को हटाने का निर्णय लेता है।
  • किसी टिप्पणी को हटाना है या नहीं, यह तय करने में संदर्भ महत्त्वपूर्ण है। यथासंभव कम-से-कम शब्दों को हटाने पर ज़ोर दिया जाता है।
    • नियम 381 के अनुसार, सदन की कार्यवाही का जो भाग हटाया गया है उसे एक तारांकित चिह्न द्वारा दर्शाया जाएगा और व्याख्यात्मक पादटिप्पणी/फुटनोट को कार्यवाही में निम्नानुसार शामिल किया जाएगा- 'अध्यक्ष के आदेशानुसार निष्काषित'।
  • ये निकाले गए अंश संसद के रिकॉर्ड में मौजूद नहीं हैं, साथ ही इन्हें मीडिया द्वारा रिपोर्ट नहीं किया जा सकता है, हालाँकि उन्हें कार्यवाही के लाइव प्रसारण के दौरान सुना जा सकता है।
  • हालाँकि सोशल मीडिया के प्रसार ने निष्कासन आदेशों को लागू करने में चुनौतियाँ पेश की हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


नमस्ते (NAMASTE) योजना

प्रिलिम्स के लिये:

मैला ढोने की समस्या से निपटने हेतु पहल, ULB

मेन्स के लिये:

नमस्ते योजना, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय बजट 2023-2024 में यंत्रीकृत स्वच्छता पारिस्थितिकी तंत्र हेतु राष्ट्रीय कार्ययोजना (National Action for Mechanized Sanitation Ecosystem- NAMASTE) के लिये लगभग 100 करोड़ रुपए आवंटित किये गए हैं, साथ ही सरकार सभी शहरों एवं कस्बों में सेप्टिक टैंक तथा सीवर की 100% यांत्रिक सफाई सुनिश्चित करने पर विचार कर रही है।

नमस्ते योजना:

  • परिचय:
    • इसे वर्ष 2022 में केंद्रीय क्षेत्र योजना के रूप में लॉन्च किया गया था।
    • यह योजना आवासन और शहरी मामलों के मंत्रालय तथा सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय (Ministry of Housing and Urban Affairs and the Ministry of Social Justice & Empowerment- MoSJE) द्वारा संयुक्त रूप से शुरू की जा रही है, इसका उद्देश्य असुरक्षित सीवर तथा सेप्टिक टैंक सफाई प्रथाओं को खत्म करना है।
  • उद्देश्य:
    • भारत में स्वच्छता/सफाई संबंधी कार्यों में होने वाली मौतों को शून्य करना।
    • स्वच्छता के सभी कार्य कुशल श्रमिकों द्वारा कराना।
    • कोई भी सफाई कर्मचारी मानव मल के सीधे संपर्क में न आए।
    • स्वच्छता कर्मचारियों को स्वयं सहायता समूहों (Self Help Groups- SHG) में शामिल करना और स्वच्छता उद्यमों को चलाने हेतु सशक्त बनाना।
    • सुरक्षित स्वच्छता कार्य के प्रवर्तन और निगरानी को सुनिश्चित करने हेतु राष्ट्रीय, राज्य एवं शहरी स्थानीय निकाय (ULB) स्तरों पर पर्यवेक्षी तथा निगरानी प्रणाली को मज़बूत करना।
    • स्वच्छता सेवा चाहने वालों (व्यक्तियों और संस्थानों) को पंजीकृत और कुशल स्वच्छता श्रमिकों से सेवाएँ लेने हेतु जागरूकता बढ़ाना।

ULB में लागू की जाने वाली योजना की मुख्य विशेषताएँ:

  • पहचान: NAMASTE में सीवर/सेप्टिक टैंक वर्कर्स (SSWs) की पहचान करने की परिकल्पना की गई है।
  • SSW को व्यावसायिक प्रशिक्षण और PPE किट प्रदान करना।
  • स्वच्छता प्रतिक्रिया इकाइयों (Sanitation Response Units- SRU) को सुरक्षा उपकरणों हेतु सहायता।
  • आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (Ayushman Bharat-Pradhan Mantri Jan Arogya Yojana- AB-PMJAY) के तहत चिह्नित SSW और उनके परिवारों को स्वास्थ्य बीमा योजना का लाभ प्रदान करना।
  • आजीविका सहायता: कार्ययोजना स्वच्छता से संबंधित उपकरणों की खरीद हेतु सफाई कर्मचारियों को वित्तीय सहायता एवं सब्सिडी (पूंजी+ब्याज) प्रदान करके मशीनीकरण तथा उद्यम विकास को बढ़ावा देगी।
  • सूचना शिक्षा और संचार (Information Education and Communication- IEC) अभियान: नमस्ते योजना के बारे में जागरूकता बढ़ाने हेतु ULB और राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी वित्त एवं विकास निगम (National Safai Karamcharis Finance & Development Corporation- NSKFDC) द्वारा संयुक्त रूप से व्यापक अभियान चलाए जाएंगे।

हाथ से मैला ढोने की प्रथा/मैनुअल स्कैवेंजिंग:

  • मैनुअल स्कैवेंजिंग को "सार्वजनिक सड़कों और सूखे शौचालयों से मानव मल को हटाने, सेप्टिक टैंक, नालों और सीवर की सफाई" के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • भारत ने मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 (Prohibition of Employment as Manual Scavengers and their Rehabilitation Act, 2013) के तहत इस प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया है।
    • यह अधिनियम हाथ से मैला ढोने की प्रथा को "अमानवीय प्रथा" के रूप में चिह्नित करता है।

मैला ढोने की समस्या से निपटने के लिये उठाए गए कदम:

  • हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास (संशोधन) विधेयक, 2020:
    • यह सीवर की सफाई को पूरी तरह से मशीनीकृत करने, 'ऑन-साइट' सुरक्षा के तरीके अपनाने और सीवर में होने वाली मौतों के मामले में कर्मियों के परिवार वालों को मुआवज़ा प्रदान करने का प्रस्ताव करता है।
    • यह मैला ढोने वालों कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 में बदलाव है।
    • इसे अभी कैबिनेट की मंज़ूरी मिलना शेष है।
  • मैला ढोने वालों कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013
    • वर्ष 2013 का अधिनियम, जो वर्ष 1993 के अधिनियम के स्थान पर लाया गया, न केवल शुष्क शौचालयों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाता है बल्कि अस्वच्छ शौचालयों, गड्ढों और खुली नालियों की हाथों द्वारा सफाई पर भी प्रतिबंध लगाता है।
  • अस्वच्छ शौचालयों का निर्माण और रखरखाव अधिनियम, 2013:
    • यह अस्वच्छ शौचालयों के निर्माण या रखरखाव तथा किसी को भी हाथ से मैला ढोने हेतु काम पर रखने के साथ-साथ सीवर और सेप्टिक टैंकों की खतरनाक सफाई को गैरकानूनी घोषित करता है।
  • अत्याचार निवारण अधिनियम:
    • वर्ष 1989 में अत्याचार निवारण अधिनियम सफाई कर्मचारियों के लिये एक एकीकृत रक्षा कवच साबित हुआ, मैला ढोने वालों के रूप में कार्यरत 90% से अधिक लोग अनुसूचित जाति के थे। यह अधिनियम हाथ से मैला ढोने वालों को निर्दिष्ट पारंपरिक व्यवसायों से मुक्त करने के संदर्भ में एक मील का पत्थर बन गया।
  • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:
    • वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय के एक आदेश ने सरकार के लिये उन सभी लोगों की पहचान करना अनिवार्य कर दिया था, जो वर्ष 1993 के बाद से सीवेज सफाई का काम करने के दौरान मारे गए थे और प्रत्येक व्यक्ति के परिवार को मुआवज़े के रूप में 10 लाख रुपए दिये जाने का भी आदेश दिया गया था।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रिलिम्स:

प्रश्न: 'राष्ट्रीय गरिमा अभियान' एक राष्ट्रीय अभियान है, जिसका उद्देश्य है: (2016)

(a) बेघर एवं निराश्रित व्यक्तियों का पुनर्वास और उन्हें आजीविका के उपयुक्त स्रोत प्रदान करना।
(b) यौनकर्मियों को उनके अभ्यास से मुक्त करना और उन्हें आजीविका के वैकल्पिक स्रोत प्रदान करना।
(c) हाथ से मैला ढोने की प्रथा को खत्म करना और हाथ से मैला ढोने वालों का पुनर्वास करना।
(d) बंधुआ मज़दूरों को मुक्त करना और उनका पुनर्वास करना।

उत्तर: (c)

व्याख्या:

  • राष्ट्रीय गरिमा अभियान वर्ष 2001 में शुरू किया गया, मैला ढोने की प्रथा के उन्मूलन और इस कार्य में संलग्न लोगों के लिये गरिमापूर्ण जीवन सुनिश्चित करने हेतु यह एक राष्ट्रीय अभियान है।
  • अतः विकल्प (c) सही है।

मेन्स:

प्रश्न. निषेधात्मक श्रम के कौन-से क्षेत्र हैं, जिनका रोबोटों द्वारा धारणीय रूप से प्रबंधन किया जा सकता है? ऐसी पहलों पर चर्चा कीजिये, जो प्रमुख अनुसंधान संस्थानों में मौलिक और लाभप्रद नवाचार के लिये अनुसंधान को आगे बढ़ा सकें। (2015)

स्रोत: पी.आई.बी.


डिजिटल भुगतान उत्सव

प्रिलिम्स के लिये:

डिजिटल भुगतान उत्सव, डिजिटल क्रांति, भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था, MyGov, एकीकृत भुगतान इंटरफेस, डिजिटल लॉकर, मेघराज, डिजिटल इंडिया BHASHINI, डिजिटल इंडिया।

मेन्स के लिये:

डिजिटल भारत, सरकार की नीतियाँ और डिजिटल परिवर्तन से संबंधित हस्तक्षेप।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने 'डिजिटल भुगतान उत्सव' की शुरुआत की, यह एक व्यापक अभियान है जो कई महत्त्वपूर्ण पहलों के साथ-साथ पूरे भारत में डिजिटल भुगतान को प्रोत्साहित करता है।

  • यह अभियान 9 फरवरी से 9 अक्तूबर, 2023 तक आयोजित होने वाले कार्यक्रमों और पहलों की एक शृंखला के साथ भारत के डिजिटल रूप में परिवर्तन की यात्रा को प्रदर्शित करेगा।

आयोजन के प्रमुख बिंदु:

  • लक्ष्य:
    • इस अभियान का लक्ष्य G20 डिजिटल इकोनॉमी वर्किंग ग्रुप (DEWG) इवेंट के हिस्से के रूप में देश में, विशेष तौर पर लखनऊ, पुणे, हैदराबाद और बंगलूरू शहरों में डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने है।
  • प्रयासों की सराहना:
    • डिजिटल भुगतान के क्षेत्र में विभिन्न श्रेणियों में शीर्ष प्रदर्शन करने वाले बैंकों, बैंकरों और फिनटेक कंपनियों को 28 डिजीधन पुरस्कार प्रदान किये गए।
    • यह पुरस्कार डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने और डिजिटल अर्थव्यवस्था के विकास में योगदान देने के लिये इन संगठनों के प्रयासों को मान्यता देता है।
  • महत्त्व:
    • इस व्यापक अभियान के माध्यम से डिजिटल अर्थव्यवस्था के विकास को जारी रखने और वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिये सरकार, उद्योग और नागरिकों सहित विभिन्न हितधारकों को एकजुट किये जाने की उम्मीद है।
    • ये पहलें भारत और देश के बाहर यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (UPI) की पहुँच के दायरे को और विस्तृत करेंगी। इसका लक्ष्य भारत के असंबद्ध क्षेत्रों को जोड़ने और UPI को वैश्विक भुगतान विधि बनाना है।
      • नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI) कुछ देशों के साथ साझेदारी कर इस दिशा में पहले से ही काम कर रही है।

अन्य डिजिटल पहलें:

  • डिजिटल इंडिया भाषिनी:
  • डिजिटल इंडिया जेनेसिस (GENESIS):
    • डिजिटल इंडिया जेनेसिस '(जेन-नेक्स्ट सपोर्ट फॉर इनोवेटिव स्टार्टअप्स) भारत के टियर- II और टियर- III शहरों में सफल स्टार्टअप की खोज, समर्थन, विकास तथा उन्हें सफल बनाने हेतु एक राष्ट्रीय गहन-तकनीकी स्टार्टअप मंच है।
  • माय स्कीम:
    • यह सरकारी योजनाओं तक पहुँच की सुविधा प्रदान करने वाला एक सर्च और डिस्कवरी मंच है।
    • इसका उद्देश्य वन-स्टॉप सर्च और डिस्कवरी पोर्टल को प्रस्तुत करना है, जहाँ उपयोगकर्त्ता उन योजनाओं को खोज सकते हैं जिनके लिये वे पात्र हैं।
  • मेरी पहचान:
    • यह नागरिक लॉगिन के लिये राष्ट्रीय एकल साइन ऑन (NSSO) है।
    • यह एक प्रयोक्ता प्रमाणीकरण सेवा है जिसमें क्रेडेंशियल्स का एक एकल समुच्चय एकाधिक ऑनलाइन अनुप्रयोगों या सेवाओं तक पहुंँच प्रदान करता है।
  • चिप्स स्टार्टअप (C2S) कार्यक्रम:
    • इस C2S कार्यक्रम का उद्देश्य बैचलर, परास्नातक और अनुसंधान स्तरों पर सेमीकंडक्टर चिप के डिज़ाइन के क्षेत्र में विशेष जनशक्ति को प्रशिक्षित करना तथा देश में अर्द्धचालक डिज़ाइन में शामिल स्टार्टअप के विकास के लिये उत्प्रेरक के रूप में कार्य करना है।
    • यह संगठनात्मक स्तर पर सलाह देने की पेशकश करता है और संस्थानों को डिज़ाइन के लिये अत्याधुनिक सुविधाएँ उपलब्ध कराता है।
  • डिजिटल लॉकर (डिजीलॉकर):
    • यह उपयोगकर्त्ताओं को उनके दस्तावेज़ सत्यापन और भंडारण हेतु डिजिटल स्थान प्रदान करके कागज़ रहित शासन को सक्षम बनाता है।
    • यह भारत को जनसंख्या के पैमाने पर डिजिटल परिवर्तन परियोजनाओं के निर्माण के नेतृत्त्वकर्त्ता के रूप में स्थापित करने में मदद करेगा।
  • मेघराज:
    • क्लाउड कंप्यूटिंग के लाभों का उपयोग और दोहन करने हेतु सरकार ने एक महत्त्वाकांक्षी पहल GI क्लाउड शुरू की है, जिसे मेघराज नाम दिया गया है।
    • इस पहल का उद्देश्य सरकार के सूचना और संचार प्रौद्योगिकी ( Information and Communication Technology- ICT) खर्च को अनुकूलित करते हुए देश में ई-सेवाओं के विस्तार में तेज़ी लाना है।
  • इंडियास्टैक ग्लोबल:

डिजिटल इंडिया प्रोग्राम:

  • परिचय:
    • इसे वर्ष 2015 में लॉन्च किया गया था।
    • इस कार्यक्रम को भारतनेट, मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया और स्टैंडअप इंडिया, औद्योगिक गलियारों आदि जैसी कई महत्त्वपूर्ण सरकारी योजनाओं के लिये सक्षम किया गया है।
  • विज़न क्षेत्र:
    • प्रत्येक नागरिक हेतु डिजिटल बुनियादी ढाँचा।
    • मांग आधारित शासन और सेवाएँ।
    • नागरिकों का डिजिटल सशक्तीकरण
  • उद्देश्य:
    • ज्ञान हेतु भविष्य के लिये भारत को तैयार करना।
    • परिवर्तनकारी होने के लिये IT (भारतीय प्रतिभा- Indian Talent ) + IT (सूचना प्रौद्योगिकी- Information Technology) = IT (इंडिया टुमॉरो- India Tomorrow) को महसूस करना है।
    • परिवर्तन सुनिश्चित करने के लिये प्रौद्योगिकी को केंद्र में रखना।
      • कई विभागों को कवर करने वाला एक अम्ब्रेला कार्यक्रम।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन भारत सरकार की "डिजिटल इंडिया" योजना का लक्ष्य/उद्देश्य है/हैं? (वर्ष 2018)

  1. चीन के समान भारत की अपनी इंटरनेट कंपनियों का गठन करना।
  2. हमारी राष्ट्रीय भौगोलिक सीमाओं के भीतर अपने बड़े डेटा केंद्र बनाने के लिये बिग डेटा एकत्र करने वाले विदेशी बहुराष्ट्रीय निगमों को प्रोत्साहित करने हेतु एक नीतिगत ढाँचा स्थापित करना।
  3. हमारे कई गाँवों को इंटरनेट से जोड़ना और हमारे कई स्कूलों, सार्वजनिक स्थानों एवं प्रमुख पर्यटन केंद्रों में वाई-फाई लाना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. "चौथी औद्योगिक क्रांति (डिजिटल क्रांति) के उद्भव ने सरकार के अभिन्न अंग के रूप में ई-गवर्नेंस की शुरुआत की है"। विचार-विमर्श कीजिये। (वर्ष 2020)

स्रोत: पी.आई.बी.


ग्रीन स्टील

प्रिलिम्स के लिये:

ग्रीन स्टील, राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन (NHM), स्टील स्क्रैप पुनर्चक्रण नीति, PAT योजना, CCUS पहल, पार्टियों के सम्मेलन में भारत की प्रतिबद्धता (COP26)।

मेन्स के लिये:

ग्रीन स्टील, महत्त्व, चुनौती और समाधान।

चर्चा में क्यों?

इस्पात मंत्रालय ग्रीन स्टील को बढ़ावा देकर इस्पात उद्योग में कार्बन उत्सर्जन कम करना चाहता है।

ग्रीन स्टील क्या है?

  • परिचय:
    • ग्रीन स्टील का आशय जीवाश्म ईंधन के उपयोग के बिना इस्पात के निर्माण से है।
      • यह कार्य कोयले से चलने वाले संयंत्रों के पारंपरिक कार्बन-गहन विनिर्माण मार्ग के बजाय हाइड्रोजन, कोयला गैसीकरण या बिजली जैसे कम कार्बन ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करके किया जा सकता है।
    • यह अंततः ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करता है, लागत में कटौती करता है और इस्पात की गुणवत्ता में सुधार करता है।
    • कम-कार्बन हाइड्रोजन (नीली हाइड्रोजन और ग्रीन हाइड्रोजन) इस्पात उद्योग के कार्बन फुटप्रिंट को कम करने में मदद कर सकती है।
  • उत्पादन के तरीके:
    • अधिक स्वच्छ विकल्पों के साथ प्राथमिक उत्पादन प्रक्रियाओं को प्रतिस्थापित करना:
  • महत्त्व:
    • ऊर्जा और संसाधन उपयोग के मामले में इस्पात उद्योग सबसे बड़ा औद्योगिक क्षेत्र है। यह कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के सबसे बड़े उत्सर्जकों में से एक है।
    • संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP26) में की गई प्रतिबद्धताओं के मद्देनज़र भारतीय इस्पात उद्योग को वर्ष 2030 तक अपने उत्सर्जन को काफी हद तक कम करने और वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन तक पहुँचाने की आवश्यकता है।

भारत में इस्पात उत्पादन की स्थिति:

  • उत्पादन: भारत वर्तमान में कच्चे इस्पात का दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है जहाँ 31 मार्च, 2022 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष के दौरान 120 मिलियन टन (MT) कच्चे इस्पात का उत्पादन हुआ था।
  • भंडार: देश में इसका 80 प्रतिशत से अधिक भंडार ओडिशा, झारखंड, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश के उत्तरी क्षेत्रों में है।
  • महत्त्वपूर्ण इस्पात उत्पादक केंद्र हैं: भिलाई (छत्तीसगढ़), दुर्गापुर (पश्चिम बंगाल), बर्नपुर (पश्चिम बंगाल), जमशेदपुर (झारखंड), राउरकेला (ओडिशा), बोकारो (झारखंड)।
  • खपत: भारत वर्ष 2021 (106.23 MT) में तैयार स्टील का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता रहा, विश्व स्टील एसोसिएशन के अनुसार, चीन सबसे बड़ा स्टील उपभोक्ता है।

संबंधित सरकारी पहलें:

  • स्टील स्क्रैप पुनर्चक्रण नीति, 2019:
  • राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन:
    • नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (Ministry of New and Renewable Energy- MNRE) ने हरित हाइड्रोजन उत्पादन एवं उपयोग हेतु राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन की घोषणा की है। मिशन में इस्पात क्षेत्र को भी हिस्सेदार बनाया गया है।
  • मोटर वाहन (पंजीकरण और वाहनों के स्क्रैपिंग संशोधन के कार्य)) नियम सितंबर 2021:
    • इससे इस्पात क्षेत्र में स्क्रैप की उपलब्धता बढ़ेगी।
  • राष्ट्रीय सौर मिशन:
    • इसे MNRE द्वारा जनवरी 2010 में शुरू किया गया, यह सौर ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देता है और इस्पात उद्योग के उत्सर्जन को कम करने में भी मदद करता है।
  • प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार (Perform, Achieve and Trade- PAT) योजना:
    • PAT योजना इस्पात उद्योग को ऊर्जा खपत कम करने हेतु प्रोत्साहित करती है।
  • NEDO मॉडल परियोजनाएँ:

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-से कुछ महत्त्वपूर्ण प्रदूषक हैं, भारत में इस्पात उद्योग द्वारा मुक्त किये जाते हैं? (2014)

  1. सल्फर के आक्साइड
  2. नाइट्रोजन के आक्साइड
  3. कार्बन मोनोआक्साइड
  4. कार्बन डाइऑक्साइड

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 3 और 4
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (d)

व्याख्या:

  • इस्पात उद्योग प्रदूषण पैदा करता है क्योंकि यह कोयला और लौह अयस्क का उपयोग करता है जिनके दहन से विभिन्न पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (PAH) यौगिक तथा ऑक्साइड हवा में उत्सर्जित होते हैं।
  • स्टील भट्ठी में लौह अयस्क के साथ कोक प्रतिक्रिया करता है, जिससे लौह का निर्माण होता है और प्रमुख पर्यावरण प्रदूषक उत्सर्जित होते हैं
    • इस्पात उत्पादक इकाइयों से निकलने वाले प्रदूषक हैं:
    • कार्बन मोनोऑक्साइड (CO); अतः 3 सही है।
    • कार्बन डाइऑक्साइड (CO2); अत 4 सही है।
    • सल्फर के ऑक्साइड (SOx); अत: 1 सही है।
    • नाइट्रोजन के आक्साइड (NOx); अत: 2 सही है।
    • PM 2.5;
    • अपशिष्ट जल;
    • खतरनाक अपशिष्ट;
    • ठोस अपशिष्ट।
  • हालांँकि एयर फिल्टर, वॉटर फिल्टर और अन्य प्रकार से पानी की बचत, बिजली की बचत तथा बंद कंटेनर के रूप तकनीकी हस्तक्षेप उत्सर्जन को कम कर सकते हैं।
  • अतः विकल्प (D) सही है।

मेन्स:

प्रश्न. वर्तमान में लौह एवं इस्पात उद्योगों की कच्चे माल के स्रोत से दूर स्थिति का उदाहरणों सहित कारण बताइये। (2020)

प्रश्न. विश्व में लौह एवं इस्पात उद्योग के स्थानिक प्रतिरूप में परिवर्तन का विवरण प्रस्तुत कीजिये। (2014)

स्रोत: पी.आई.बी.


प्राथमिक कृषि ऋण समितियाँ

प्रिलिम्स के लिये:

PACS का डिजिटलीकरण, DBT, ISS, PMFBY, आत्मनिर्भर भारत।

मेन्स के लिये:

PACS का महत्त्व और मुद्दे।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय बजट 2023 में अगले पाँच वर्षों में 63,000 प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (Primary Agricultural Credit Societies- PACS) के डिजिटलीकरण हेतु 2,516 करोड़ रुपए की घोषणा की गई है।

PACS का डिजिटलीकरण:

  • इसका उद्देश्य उनके संचालन में अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही लाना, साथ ही उन्हें अपने व्यवसाय में विविधता लाने के साथ अधिक गतिविधियों को करने में सक्षम बनाना है।
  • इसका उद्देश्य PACS को प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (Direct Benefit Transfer- DBT), ब्याज अनुदान योजना (Interest Subvention Scheme- ISS), फसल बीमा योजना (PMFBY), उर्वरक और बीज जैसे विभिन्न इनपुट सेवाएँ प्रदान करने हेतु नोडल केंद्र बनने में मदद करना है।

प्राथमिक कृषि ऋण समितियाँ:

  • परिचय:
    • PACS ग्राम स्तर की सहकारी ऋण समितियाँ हैं जो राज्य स्तर पर राज्य सहकारी बैंकों (State Cooperative Banks- SCB) की अध्यक्षता वाली त्रि-स्तरीय सहकारी ऋण संरचना में अंतिम कड़ी के रूप में कार्य करती हैं।
      • SCB से क्रेडिट का हस्तांतरण ज़िला केंद्रीय सहकारी बैंकों (District Central Cooperative Banks- DCCB) को किया जाता है, जो ज़िला स्तर पर काम करते हैं। ज़िला केंद्रीय सहकारी बैंक PACS के साथ काम करते हैं, साथ ही ये सीधे किसानों से जुड़े हैं।
    • PACS विभिन्न कृषि और कृषि गतिविधियों हेतु किसानों को अल्पकालिक एवं मध्यम अवधि के कृषि ऋण प्रदान करते हैं।
    • पहला PACS वर्ष 1904 में बनाया गया था।

structure-of-co-operative-credit-institutions

  • स्थिति:
    • भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा 27 दिसंबर, 2022 को प्रकाशित एक रिपोर्ट में PACS की संख्या 1.02 लाख बताई गई है। मार्च 2021 के अंत में इनमें से केवल 47,297 लाभ की स्थिति में थे।

PACS का महत्त्व:

  • ऋण तक पहुँच:
    • PACS लघु किसानों को ऋण तक पहुँच प्रदान करती है, जिसका उपयोग वे अपने खेतों के लिये बीज, उर्वरक और अन्य इनपुट खरीदने के लिये कर सकते हैं। इससे उन्हें अपने उत्पादन में सुधार करने एवं अपनी आय बढ़ाने में मदद मिलती है।
  • वित्तीय समावेशन:
    • PACS उन ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय समावेशन को बढ़ाने में मदद करती है, जहाँ औपचारिक वित्तीय सेवाओं तक पहुँच सीमित है। वे उन किसानों को बुनियादी बैंकिंग सेवाएँ प्रदान करते हैं, जैसे- बचत और ऋण खाते, जिनकी औपचारिक बैंकिंग सेवाओं तक पहुँच नहीं है।
  • सुविधाजनक सेवाएँ:
    • PACS अक्सर ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित होती हैं, जो किसानों हेतु सेवाओं तक पहुँच को सुविधाजनक बनाती हैं। यह महत्त्वपूर्ण है क्योंकि कई किसान शहरी क्षेत्रों में उपलब्ध बैंकों की वित्तीय सेवाओं का उपयोग करने में असमर्थ हैं।
    • PACS में कम समय में न्यूनतम कागज़ी कार्रवाई के साथ ऋण देने की क्षमता है।
  • बचत संस्कृति को बढ़ावा:
    • PACS किसानों को पैसे बचाने के लिये प्रोत्साहित करती है, जिसका उपयोग उनकी आजीविका में सुधार करने और उनके खेतों में निवेश करने के लिये किया जा सकता है।
  • ऋण अनुशासन को बेहतर बनाना:
    • समय पर अपने ऋण चुकाने के लिये किसानों के बीच PACS ऋण अनुशासन को बढ़ावा देती है। यह डिफाॅल्ट के ज़ोखिम को कम करने में मदद करता है, जो ग्रामीण वित्तीय क्षेत्र में एक बड़ी चुनौती हो सकती है।

PACS से संबंधित मुद्दे:

  • अपर्याप्त कवरेज:
    • हालाँकि भौगोलिक रूप से सक्रिय PACS 5.8 गाँवों में से लगभग 90% को कवर करती हैं लेकिन देश के कुछ हिस्से, खासकर पूर्वोत्तर में यह कवरेज़ बहुत कम है।
    • इसके अलावा सदस्यों के रूप में कवर की गई ग्रामीण आबादी सभी ग्रामीण परिवारों का केवल 50% है।
  • अपर्याप्त संसाधन:
    • PACS के संसाधनों की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की लघु और मध्यम अवधि की ऋण आवश्यकताओं के संदर्भ में बहुत अधिक अपर्याप्तता है।
    • यहाँ तक कि इन अपर्याप्त निधियों का बड़ा हिस्सा उच्च वित्तपोषण एजेंसियों से आता है, न कि समितियों के स्वामित्त्व वाले फंडों या उनके द्वारा जमा संग्रहण के माध्यम से।
  • अतिदेय और NPAs:
    • अधिक मात्रा में बकाया राशि (अतिदेय) PACS के लिये एक बड़ी समस्या बन गई है।
    • RBI की रिपोर्ट के अनुसार, PACS ने 1,43,044 करोड़ रुपए के ऋण और 72,550 करोड़ रुपए के NPA की सूचना दी थी। महाराष्ट्र में PACS की संख्या 20,897 है जिनमें से 11,326 नुकसान में हैं।
    • वे ऋण योग्य धन के संचलन पर अंकुश लगाते हैं, उधार लेने के साथ-साथ समाजों की उधार देने की शक्ति को कम करते हैं और भुगतान न करने वाले देनदारों को नकारात्मक पहचान देते हैं।

आगे की राह

  • एक सदी से भी अधिक पुराने इन संस्थानों को नीतिगत प्रोत्साहन मिलना चाहिये और अगर ऐसा हुआ तो ये भारत सरकार के आत्मनिर्भर भारत के साथ-साथ वोकल फॉर लोकल के विज़न में एक प्रमुख स्थान बना सकते हैं, क्योंकि इनमें एक आत्मनिर्भर गाँव की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने की क्षमता है।
  • PACS ने ग्रामीण वित्तीय क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है तथा भविष्य में और भी बड़ी भूमिका निभाने की क्षमता रखती है।
  • इसके लिये PACS को अधिक कुशल, वित्तीय रूप से सतत् और किसानों के लिये सुलभ बनाए जाने की आवश्यकता है।
  • साथ ही यह सुनिश्चित करने के लिये नियामक ढाँचे को मज़बूत किया जाना चाहिये कि PACS प्रभावी रूप से शासित हों और किसानों की ज़रूरतों को पूरा करने में सक्षम हों।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)

  1. कृषि क्षेत्र को अल्पकालिक ऋण परिदान करने के संदर्भ में ज़िला केंद्रीय सहकारी बैंक (DCCBs) अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की तुलना में अधिक ऋण प्रदान करते हैं।
  2. DCCB का एक सबसे प्रमुख कार्य प्राथमिक कृषि साख समितियों को निधि उपलब्ध कराना है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(A) केवल 1
(B) केवल 2
(C) 1 और 2 दोनों
(D) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (B)


प्रश्न. भारत में 'शहरी सहकारी बैंकों' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)

  1. उनका पर्यवेक्षण और विनियमन राज्य सरकारों द्वारा स्थापित स्थानीय बोर्डों द्वारा किया जाता है।
  2. वे इक्विटी शेयर और वरीयता शेयर जारी कर सकते हैं।
  3. उन्हें 1966 में एक संशोधन के माध्यम से बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 के दायरे में लाया गया था।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)

  • सहकारी बैंक वित्तीय संस्थाएँ हैं जो इसके सदस्यों से संबंधित हैं, जो एक ही समय में अपने बैंक के मालिक और ग्राहक होते हैं। वे राज्य के कानूनों द्वारा स्थापित हैं।
  • भारत में सहकारी बैंक, सहकारी समिति अधिनियम के तहत पंजीकृत हैं। वे आरबीआई द्वारा भी विनियमित होते हैं और बैंकिंग विनियम अधिनियम, 1949 तथा बैंकिंग कानून (सहकारी समितियाँ) अधिनियम, 1955 द्वारा शासित होते हैं।
  • सहकारी बैंक उधार देते हैं और जमा स्वीकार करते हैं। वे कृषि एवं संबद्ध गतिविधियों के वित्तपोषण तथा ग्राम और कुटीर उद्योगों के वित्तपोषण के उद्देश्य से स्थापित किये गए हैं।
  • राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (NABARD) भारत में सहकारी बैंकों का शीर्ष निकाय है।
  • शहरी सहकारी बैंकों का विनियमन और पर्यवेक्षण एकल-राज्य सहकारी बैंकों के मामले में सहकारी समितियों के राज्य रजिस्ट्रार तथा बहु-राज्य मामले में सहकारी समितियों के केंद्रीय रजिस्ट्रार (सीआरसीएस) द्वारा किया जाता है। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • बैंकिंग संबंधी कार्य जैसे- नए बैंक/शाखाएँ शुरू करने के लिये लाइसेंस जारी करना, 1966 में संशोधन के बाद बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 के प्रावधानों के तहत ब्याज दरों, ऋण नीतियों, निवेशों एवं विवेकपूर्ण जोखिम मानदंडों से संबंधित मामलों का विनियमन और पर्यवेक्षण रिज़र्व बैंक द्वारा किया जाता है। अतः कथन 3 सही है।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक ने प्राथमिक शहरी सहकारी बैंकों को इक्विटी शेयर, अधिमानी शेयर और ऋण लिखत जारी करने के माध्यम से पूंजी बढ़ाने की अनुमति देते हुए मसौदा दिशा-निर्देश जारी किये।
    • शहरी सहकारी बैंक सदस्यों के रूप में नामांकित अपने परिचालन क्षेत्र के व्यक्तियों को इक्विटी जारी करके और मौजूदा सदस्यों को अतिरिक्त इक्विटी शेयरों के माध्यम से शेयर पूंजी जुटा सकते हैं। अतः कथन 2 सही है।
  • अतः विकल्प (b) सही उत्तर है।

मेन्स:

प्रश्न. "गाँवों में सहकारी समिति को छोड़कर ऋण संगठन का कोई भी ढाँचा उपयुक्त नहीं होगा।" - अखिल भारतीय ग्रामीण ऋण सर्वेक्षण। भारत में कृषि वित्त की पृष्ठभूमि में इस कथन पर चर्चा कीजिये। कृषि वित्त प्रदान करने वाली वित्त संस्थाओं को किन बाधाओं और कसौटियों का सामना करना पड़ता है? ग्रामीण सेवार्थियों तक बेहतर पहुँच और सेवा के लिये प्रौद्योगिकी का किस प्रकार उपयोग किया जा सकता है?” (2014)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारत की परमाणु ऊर्जा क्षमता

प्रिलिम्स के लिये:

न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL), नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (NTPC), इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (IOCL), KAMINI, अप्रसार संधि (NPT)।

मेन्स के लिये:

भारत की नाभिकीय ऊर्जा से संबंधित हालिया विकास, भारत की नाभिकीय ऊर्जा क्षमता को बढ़ाने के तरीके।

चर्चा में क्यों?

भारत की नाभिकीय ऊर्जा क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। वर्ष 2021-22 तक यह बढ़कर 47,112 मिलियन यूनिट हो गई थी।

  • वर्ष 2017 में सरकार ने एक साथ 11 घरेलू 7,000 मेगावाट क्षमता वाले दबावयुक्त भारी जल रिएक्टरों के निर्माण को मंज़ूरी दी थी।

भारत की नाभिकीय ऊर्जा स्थिति:

  • परिचय:
    • नाभिकीय ऊर्जा भारत के लिये विद्युत का पाँचवाँ सबसे बड़ा स्रोत है जो देश में कुल विद्युत उत्पादन में लगभग 3% योगदान देती है।
    • भारत के देश भर में 7 विद्युत संयंत्रों में 22 से अधिक नाभिकीय रिएक्टर हैं जो 6780 मेगावाट नाभिकीय ऊर्जा का उत्पादन करते हैं। इसके अलावा जनवरी 2021 में एक रिएक्टर, काकरापार नाभिकीय ऊर्जा परियोजना (KAPP-3) को भी ग्रिड से जोड़ दिया गया है।
      • दबावयुक्त भारी जल रिएक्टर (PHWRs) की संख्या 18 है और 4 हल्के जल रिएक्टर (LWRs) हैं।
      • KAPP-3 भारत की पहली 700 MWe यूनिट है और PHWR का सबसे बड़ा स्वदेशी रूप से विकसित संस्करण है।
  • हालिया विकास:
    • सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSU) के साथ संयुक्त उद्यम:
    • परमाणु प्रतिष्ठानों का विस्तार:
      • बीते समय में भारत के परमाणु प्रतिष्ठान ज़्यादातर दक्षिण भारत में अथवा पश्चिम में महाराष्ट्र और गुजरात में स्थित थे।
        • हालाँकि सरकार अब देश के अन्य हिस्सों में इसके विस्तार को प्रोत्साहित कर रही है। उदाहरण के तौर पर हरियाणा के गोरखपुर शहर में आगामी परमाणु ऊर्जा संयंत्र, जो निकट भविष्य में चालू हो जाएगा।
    • भारत की स्वदेशी पहल:
      • यूरेनियम-233 का उपयोग कर दुनिया का पहला थोरियम आधारित नाभिकीय संयंत्र, "भवनी", तमिलनाडु के कलपक्कम में स्थापित किया जा रहा है।
      • यह सयंत्र पूरी तरह स्वदेशी होगा और अपनी तरह का पहला सयंत्र होगा। कलपक्कम में प्रायोगिक थोरियम संयंत्र "कामिनी" पहले से मौजूद है।
  • चुनौतियाँ:
    • सीमित घरेलू संसाधन: भारत के पास यूरेनियम के सीमित घरेलू संसाधन हैं, जो परमाणु रिएक्टरों के लिये ईंधन है।
      • इसने देश को अपनी यूरेनियम आवश्यकताओं का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा आयात करने के लिये मजबूर किया है, जिससे देश का परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम वैश्विक बाज़ार स्थितियों और राजनीतिक तनावों के प्रति संवेदनशील हो गया है।
    • जनता का विरोध: रिएक्टरों की सुरक्षा और पर्यावरण पर संभावित प्रभाव को लेकर चिंताओं के कारण परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के निर्माण को अक्सर स्थानीय समुदायों के विरोध का सामना करना पड़ता है।
    • तकनीकी चुनौतियाँ: परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के विकास में जटिल तकनीकी चुनौतियाँ शामिल हैं, जिनमें रिएक्टरों का डिज़ाइन और निर्माण, परमाणु कचरे का प्रबंधन तथा परमाणु सुरक्षा मानकों का रखरखाव शामिल है।
    • अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध: भारत परमाणु अप्रसार संधि (NPT) का सदस्य नहीं है और अतीत में अपने परमाणु हथियार कार्यक्रम के लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों का सामना कर चुका है।
      • इसने अन्य देशों से उन्नत परमाणु प्रौद्योगिकी और ईंधन आपूर्ति तक इसकी पहुँच को सीमित कर दिया है।
    • नियामक बाधाएँ: भारत में परमाणु ऊर्जा के विकास के लिये नियामक ढाँचा जटिल है और धीमी गति तथा नौकरशाही होने के कारण इसकी आलोचना की गई है, जिससे परियोजनाओं के कार्यान्वयन में देरी हुई है।

भारत अपनी परमाणु ऊर्जा क्षमता कैसे बढ़ा सकता है?

  • जनता के विरोध पर काबू पाना: सार्वजनिक चिंताओं को संबोधित करना और परमाणु ऊर्जा की सुरक्षा के बारे में जन जागरूकता बढ़ाना नए रिएक्टरों के निर्माण के विरोध पर काबू पाने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • यह पारदर्शी संचार और स्थानीय समुदायों के साथ परामर्श के साथ-साथ कठोर सुरक्षा मानकों के कार्यान्वयन के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।
  • तकनीकी नवाचार: नाभिकीय ऊर्जा क्षेत्र के सामने आने वाली तकनीकी चुनौतियों से निपटने हेतु भारत को रिएक्टर डिज़ाइन, अपशिष्ट प्रबंधन और सुरक्षा प्रणालियों में नवाचार पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
    • इसमें अनुसंधान और विकास एवं उन्नत प्रौद्योगिकियों की स्थापना में निवेश शामिल हो सकता है।
  • वित्तीय स्थिरता: नाभिकीय ऊर्जा क्षेत्र के सामने आने वाली वित्तीय चुनौतियों से निपटने हेतु भारत को ऊर्जा के अन्य रूपों के साथ नाभिकीय ऊर्जा को अधिक लागत-प्रतिस्पर्द्धी बनाने के तरीके खोजने की आवश्यकता है।
    • इसमें निर्माण और संचालन लागत को कम करने के साथ-साथ नवीन वित्तपोषण मॉडल विकसित करना शामिल हो सकता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में सुधार: उन्नत नाभिकीय प्रौद्योगिकी और ईंधन आपूर्ति तक पहुँच पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों के माध्यम से उत्पन्न बाधाओं को दूर करने के लिये भारत को अपनी अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी को मज़बूत करने की आवश्यकता है।
    • इसमें अन्य देशों के साथ संयुक्त उद्यमों का विकास, अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान पहलों में भागीदारी और नाभिकीय व्यापार समझौतों को शामिल किया जा सकता है।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रश्न. नाभिकीय रिएक्टर में भारी जल का कार्य होता है: (2011)

(a) न्यूट्रॉन की गति को धीमा करना।
(b) न्यूट्रॉन की गति बढ़ाना ।
(c) रिएक्टर को ठंडा करना ।
(d) नाभिकीय अभिक्रिया को रोकना।

उत्तर: (a)


प्रश्न. ऊर्जा की बढ़ती हुई ज़रूरतों के परिप्रेक्ष में क्या भारत को अपने नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम का विस्तार करना जारी रखना चाहिये? नाभिकीय ऊर्जा से संबंधित तथ्यों और भयों की विवेचना कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2018)

स्रोत: पी.आई.बी.