जैव विविधता और पर्यावरण
रिवर-सिटीज़ एलायंस वैश्विक संगोष्ठी
प्रिलिम्स के लिये:नमामि गंगे कार्यक्रम, NMCG, NIUA, RCA, सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860, गंगा कार्ययोजना मेन्स के लिये:गंगा नदी के कायाकल्प में राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन का महत्त्व, संरक्षण |
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (National Mission for Clean Ganga- NMCG) ने राष्ट्रीय शहरी कार्य संस्थान (National Institute of Urban Affairs- NIUA) के सहयोग से 'रिवर-सिटीज़ एलायंस (RCA) वैश्विक संगोष्ठी: अंतर्राष्ट्रीय नदी-संवेदनशील शहरों के निर्माण हेतु साझेदारी' का आयोजन किया।
- RCA वैश्विक संगोष्ठी का उद्देश्य शहरी नदियों के प्रबंधन हेतु बेहतर अभ्यासों पर चर्चा करने एवं सीखने के लिये एक मंच प्रदान करना है।
- इससे पहले फरवरी 2023 में RCA - DHARA 2023 (ड्राइविंग होलिस्टिक एक्शन फॉर अर्बन रिवर) की एक बैठक आयोजित की गई, जिसमें शहरी नदी प्रबंधन हेतु अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम अभ्यासों एवं उदाहरणों पर संगोष्ठी शामिल है।
राष्ट्रीय शहरी कार्य संस्थान:
- NIUA शहरी विकास और प्रबंधन में अनुसंधान, प्रशिक्षण एवं सूचना प्रसार हेतु एक संस्थान है। यह नई दिल्ली, भारत में स्थित है।
- इसे वर्ष 1976 में सोसायटी पंजीकरण अधिनियम 1860 के तहत एक स्वायत्त निकाय के रूप में स्थापित किया गया था।
- यह संस्थान आवास और शहरी कार्य मंत्रालय, भारत सरकार; राज्य सरकारों; शहरी एवं क्षेत्रीय विकास प्राधिकरणों तथा शहरी मुद्दों से संबंधित अन्य एजेंसियों द्वारा समर्थित है।
RCA:
- परिचय:
- RCA जल शक्ति मंत्रालय (MoJS) एवं आवास और शहरी कार्य मंत्रालय (MoHUA) की एक संयुक्त पहल है, जिसका उद्देश्य नदी-शहरों को जोड़ना तथा सतत् नदी केंद्रित विकास पर ध्यान आकृष्ट करना है।
- यह एलायंस तीन व्यापक विषयों- नेटवर्किंग, क्षमता निर्माण और तकनीकी सहायता पर केंद्रित है।
- नवंबर 2021 में 30 सदस्य शहरों के साथ शुरू हुए इस एलायंस का विस्तार पूरे भारत में 110 नदी-शहरों और डेनमार्क के एक अंतर्राष्ट्रीय सदस्य शहर तक हो गया है।
- उद्देश्य:
- रिवर-सिटीज़ एलायंस का उद्देश्य शहरी नदी प्रबंधन के लिये नई प्रथाओं और दृष्टिकोणों को अपनाने के लिये भारतीय शहरों हेतु ज्ञान विनिमय (ऑनलाइन) की सुविधा प्रदान करना है।
- यह अंतर्राष्ट्रीय शहरों के लिये भी भारतीय शहरों के अनुभवों के बारे में जानने का अवसर प्रदान करेगा, जो कि उनके संदर्भ में प्रासंगिक हो सकता है।
राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (National Mission for Clean Ganga- NMCG)
- परिचय:
- इसे गंगा नदी के जीर्णोद्धार, संरक्षण और प्रबंधन के लिये राष्ट्रीय परिषद द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है, जिसे राष्ट्रीय गंगा परिषद भी कहा जाता है।
- यह मिशन 12 अगस्त, 2011 को सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत एक पंजीकृत सोसायटी के रूप में स्थापित किया गया था।
- इसने पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम (EPA), 1986 के प्रावधानों के तहत गठित राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण (NGRBA) की कार्यान्वयन शाखा के रूप में कार्य किया।
- गंगा नदी के कायाकल्प, संरक्षण और प्रबंधन के लिये राष्ट्रीय परिषद (राष्ट्रीय गंगा परिषद के रूप में संदर्भित) के गठन के परिणामस्वरूप 7 अक्तूबर, 2016 से NGRBA को विघटित कर दिया गया है।
- उद्देश्य:
- NMCG का उद्देश्य गंगा नदी के प्रदूषण को कम करना और इसका कायाकल्प सुनिश्चित करना है।
- इस मिशन में मौजूदा सीवेज उपचार संयंत्र को पूर्व अवस्था में लाना और अधिक सक्षम बनाना तथा सीवेज के प्रवाह की जाँच के लिये रिवरफ्रंट पर निकास बिंदुओं पर प्रदूषण को रोकने हेतु तत्काल अल्पकालिक कदम उठाना शामिल है।
- संगठनात्मक संरचना:
- इस अधिनियम में गंगा नदी में पर्यावरण प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण और कमी लाने के उपाय करने के लिये राष्ट्रीय, राज्य तथा ज़िला स्तर पर पाँच संगठनात्मक संरचनाओं की परिकल्पना की गई है:
- भारत के प्रधानमंत्री की अध्यक्षता के तहत राष्ट्रीय गंगा परिषद।
- केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री की अध्यक्षता में एक अधिकार प्राप्त कृतक बल (Empowered Task Force- ETF)
- राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (National Mission for Clean Ganga- NMCG)
- राज्य गंगा समितियाँ
- राज्यों में गंगा नदी और इसकी सहायक नदियों के निकटवर्ती प्रत्येक विशिष्ट ज़िले में ज़िला गंगा समितियाँ।
- इस अधिनियम में गंगा नदी में पर्यावरण प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण और कमी लाने के उपाय करने के लिये राष्ट्रीय, राज्य तथा ज़िला स्तर पर पाँच संगठनात्मक संरचनाओं की परिकल्पना की गई है:
भारत में गंगा नदी के कायाकल्प के लिये अन्य पहलें:
- नमामि गंगे कार्यक्रम: यह एक एकीकृत संरक्षण मिशन है, जिसे जून 2014 में केंद्र सरकार द्वारा ‘फ्लैगशिप कार्यक्रम' के रूप में अनुमोदित किया गया था, ताकि प्रदूषण के प्रभावी उन्मूलन और राष्ट्रीय नदी गंगा के संरक्षण एवं कायाकल्प के दोहरे उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सके।
- गंगा एक्शन प्लान: यह पहली नदी कार्ययोजना थी जो वर्ष 1985 में पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा शुरू की गई थी। इसका उद्देश्य जल अवरोधन, डायवर्ज़न व घरेलू सीवेज के उपचार द्वारा पानी की गुणवत्ता में सुधार करना तथा विषाक्त एवं औद्योगिक रासायनिक कचरे को नदी में प्रवेश करने से रोकना था।
- राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना गंगा एक्शन प्लान का ही विस्तार है। इसका उद्देश्य गंगा एक्शन प्लान के फेज़-2 के तहत गंगा नदी की सफाई करना है।
- राष्ट्रीय जल मिशन (2010): यह मिशन एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन सुनिश्चित करता है, ताकि जल संरक्षण, जल के कम अपव्यय और समान वितरण के साथ बेहतर नीतियों का निर्माण हो सके।
- राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG): यह गंगा नदी में पर्यावरण प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण और उपशमन उपायों के लिये राष्ट्रीय, राज्य एवं ज़िला स्तर पर एक पाँच-स्तरीय संरचना की परिकल्पना करता है।
- वर्ष 2008 में गंगा को भारत की 'राष्ट्रीय नदी' घोषित किया गया था।
- स्वच्छ गंगा कोष: वर्ष 2014 में इसका गठन गंगा की सफाई, अपशिष्ट उपचार संयंत्रों की स्थापना तथा नदी की जैवविविधता के संरक्षण के लिये किया गया था।
- भुवन-गंगा वेब एप: यह गंगा नदी में होने वाले प्रदूषण की निगरानी में जनता की भागीदारी सुनिश्चित करता है।
- अपशिष्ट निपटान पर प्रतिबंध: वर्ष 2017 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा गंगा नदी में किसी भी प्रकार के कचरे के निपटान पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2014)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b)
अतः विकल्प (b) सही उत्तर है। मेन्स:प्रश्न. नमामि गंगे और राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एन.एम.सी.जी.) कार्यक्रमों और इससे पूर्व की योजनाओं के मिश्रित परिणामों के कारणों पर चर्चा कीजिये। गंगा नदी के परिरक्षण में कौन-सी प्रमात्रा छलांगें, क्रमिक योगदानों के अपेक्षा अधिक सहायक हो सकती है? (2015) |
स्रोत: पी.आई.बी.
शासन व्यवस्था
गैर-संचारी रोगों हेतु सरकारी कार्यक्रम का नया नाम
प्रिलिम्स के लिये:NPCDCS कार्यक्रम, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, NP-NCD, गैर-संचारी रोग मेन्स के लिये:राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, गैर-संचारी रोग |
चर्चा में क्यों?
कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग और स्ट्रोक की रोकथाम एवं नियंत्रण के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम (National Programme for Prevention and Control of Cancer, Diabetes, Cardiovascular Diseases and Stroke- NPCDCS) का मौजूदा नाम बदलकर गैर-संचारी रोगों की रोकथाम और नियंत्रण के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम (National Programme for Prevention & Control of Non-Communicable Diseases- NP-NCD) कर दिया गया है।
- नाम में यह बदलाव सभी प्रकार के गैर-संचारी रोगों को समाहित करने के लिये किया गया है।
- इसके अलावा स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने गैर-संचारी रोगों की जाँच एवं प्रबंधन के लिये व्यापक आबादी को कवर करने हेतु व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा गैर-संचारी रोग (Comprehensive Primary Healthcare Non-Communicable Disease- CPHC NCD IT) प्रणाली का नाम बदलकर राष्ट्रीय NCD पोर्टल कर दिया है।
NPCDCS/NP-NCD:
- परिचय:
- NPCDCS को पूरे देश में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत लागू किया जा रहा है।
- उद्देश्य:
- इसे वर्ष 2010 में बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करने, मानव संसाधन विकास, स्वास्थ्य संवर्द्धन, शीघ्र निदान, प्रबंधन और रेफरल प्रक्रियाओं पर ध्यान देने के लक्ष्य के साथ शुरू किया गया था।
- प्रबंधन:
- NPCDCS के तहत कार्यक्रम प्रबंधन के लिये राष्ट्रीय, राज्य और ज़िला स्तर पर NCD इकाइयाँ स्थापित की जा रही हैं तथा ज़िला एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (Community Health Centres- CHC) स्तर पर NCD क्लीनिक स्थापित किये जा रहे हैं ताकि शुरुआती निदान, उपचार और फॉलो-अप के लिये सेवाएँ प्रदान की जा सकें।
- उपलब्धि:
- NPCDCS के तहत 677 NCD ज़िला-स्तरीय क्लीनिक, 187 ज़िला कार्डियक केयर यूनिट, 266 ज़िला डे केयर सेंटर और 5,392 NCD सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र-स्तरीय क्लीनिक स्थापित किये गए हैं।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन:
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) को भारत सरकार द्वारा वर्ष 2013 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन और राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन को मिलाकर शुरू किया गया था।
- मुख्य कार्यक्रम संबंधी घटकों में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में प्रजनन-मातृ-नवजात-बाल एवं किशोर स्वास्थ्य (RMNCH+A) तथा संचारी एवं गैर-संचारी रोगों के लिये स्वास्थ्य प्रणाली को मज़बूत करना शामिल है। NHM न्यायसंगत, सस्ती और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुँच की परिकल्पना करता है जो लोगों की ज़रूरतों के प्रति जवाबदेह और उत्तरदायी है।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन का लक्ष्य निम्नलिखित संकेतकों की प्राप्ति सुनिश्चित करना है:
- मातृ मृत्यु दर (MMR) को 1/1000 के स्तर पर लाना।
- शिशु मृत्यु दर (IMR) को 25/1000 के स्तर पर लाना।
- कुल प्रजनन दर (TFR) को कम करके 2.1 पर लाना।
- 15-49 वर्ष की महिलाओं में एनीमिया की रोकथाम एवं नियंत्रण।
- संक्रामक और गैर-संक्रामक रोगों, चोटों तथा उभरते रोगों से होने वाली मौतों को नियंत्रित करना।
- कुल स्वास्थ्य देखभाल खर्च में व्यक्तिगत आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय में कमी लाना।
- क्षय रोग के वार्षिक मामलों एवं मृत्यु दर को घटाकर आधा करना।
- कुष्ठ रोग की व्यापकता को <1/10000 के स्तर पर लाना और सभी ज़िलों में नए मामलों को भी शून्य तक लाना।
- मलेरिया के वार्षिक मामलों को <1/1000 के स्तर पर लाना।
- माइक्रोफाइलेरिया (Microfilaria) के प्रसार को सभी ज़िलों में 1 प्रतिशत से कम करना।
- वर्ष 2015 तक कालाज़ार (Kala-azar) का उन्मूलन, सभी प्रखंडों में प्रति 10000 जनसंख्या पर कालाज़ार के मामलों को 1 से भी कम करना।
गैर-संचारी रोग:
- परिचय:
- गैर-संचारी रोग (Non-Communicable Diseases- NCD) लंबी अवधि तक व्याप्त रहते हैं, जिसे पुरानी बीमारियों के रूप में भी जाना जाता है और आनुवंशिक, शारीरिक, पर्यावरण तथा व्यवहार संबंधी कारकों के संयोजन का परिणाम होते हैं।
- NCD में प्रमुख रूप से हृदय रोग (जैसे दिल का दौरा और स्ट्रोक), कैंसर, पुराने श्वसन रोग (जैसे प्रतिरोधी फुफ्फुसीय रोग एवं अस्थमा) तथा मधुमेह शामिल हैं।
- कारण:
- तंबाकू का उपयोग, अस्वास्थ्यकर आहार, शराब का सेवन, शारीरिक निष्क्रियता और वायु प्रदूषण जैसी स्थितियाँ जोखिम में योगदान देने वाले मुख्य कारक हैं।
- भारत की पहल:
- केंद्र सरकार देश के विभिन्न हिस्सों में राज्य कैंसर संस्थानों (SCI) और तृतीयक देखभाल केंद्रों (TCCC) की स्थापना का समर्थन करने के लिये तृतीयक देखभाल कैंसर सुविधा योजना को सुदृढ़ कर रही है।
- प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (PMSSY) के तहत नए AIIMS और कई उन्नत संस्थानों के मामले में ऑन्कोलॉजी के विभिन्न पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
- उपचार के लिये सस्ती दवाएँ और विश्वसनीय प्रत्यारोपण (AMRIT) हेतु दीनदयाल आउटलेट 159 संस्थानों/अस्पतालों में खोले गए हैं, जिसका उद्देश्य कैंसर और हृदय रोग की दवाएँ तथा प्रत्यारोपण रोगियों को रियायती कीमतों पर उपचार उपलब्ध कराना है।
- फार्मास्यूटिकल्स विभाग द्वारा कम कीमतों पर जेनेरिक दवाएँ उपलब्ध कराने हेतु जन औषधि स्टोर स्थापित किये गए हैं।
- वैश्विक:
- सतत् विकास हेतु एजेंडा: राज्य एवं सरकार के प्रमुख सतत् विकास हेतु एजेंडा 2030 (SDG लक्ष्य 3.4) के हिस्से के रूप में रोकथाम और उपचार के माध्यम से NCDs के कारण समय-पूर्व होने वाली मृत्यु दर को एक-तिहाई तक कम करने तथा वर्ष 2030 तक महत्त्वाकांक्षी राष्ट्रीय प्रतिक्रिया विकसित करने हेतु प्रतिबद्ध हैं।
- WHO, NCD के खिलाफ वैश्विक लड़ाई के समन्वय और प्रचार में एक प्रमुख नेतृत्त्वकारी भूमिका निभाता है।
- वैश्विक कार्ययोजना: वर्ष 2019 में विश्व स्वास्थ्य सभा ने NCD की रोकथाम और नियंत्रण के लिये WHO की वैश्विक कार्ययोजना को वर्ष 2013-2020 की अवधि से बढ़ाकर वर्ष 2030 तक कर दिया है और NCD की रोकथाम एवं नियंत्रित करने की प्रगति में तेज़ी लाने के लिये कार्यान्वयन रोडमैप वर्ष 2023 से 2030 के विकास का आह्वान किया।
- यह NCD की रोकथाम और प्रबंधन की दिशा में सबसे अधिक प्रभाव वाले नौ वैश्विक लक्ष्यों के समूह को प्राप्त करने हेतु कार्यों का समर्थन करता है।
- सतत् विकास हेतु एजेंडा: राज्य एवं सरकार के प्रमुख सतत् विकास हेतु एजेंडा 2030 (SDG लक्ष्य 3.4) के हिस्से के रूप में रोकथाम और उपचार के माध्यम से NCDs के कारण समय-पूर्व होने वाली मृत्यु दर को एक-तिहाई तक कम करने तथा वर्ष 2030 तक महत्त्वाकांक्षी राष्ट्रीय प्रतिक्रिया विकसित करने हेतु प्रतिबद्ध हैं।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
US फेडरल रिज़र्व दर में वृद्धि
प्रिलिम्स के लिये:US फेडरल रिज़र्व दर में वृद्धि का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, मुद्रास्फीति, भारतीय रिज़र्व बैंक, विनिमय दर मेन्स के लिये:भारतीय अर्थव्यवस्था पर US फेडरल रिज़र्व दर में वृद्धि का प्रभाव और विकल्प |
चर्चा में क्यों?
मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिये आक्रामक रूप से ब्याज दरों को बढ़ाने के बाद अमेरिकी फेडरल रिज़र्व ने एक बार फिर अपने मानक ओवरनाइट ब्याज दर को एक-चौथाई प्रतिशत बढ़ाकर 5.00%-5.25% के बीच कर दिया है।
- ओवरनाइट दरें वे हैं जिन पर विभिन्न बैंक एक दिन के लिये ओवरनाइट बाज़ार में एक-दूसरे को वित्तीय सहायता प्रदान करते हैं।
- कई देशों में ओवरनाइट दर वह ब्याज दर है जिसे केंद्रीय बैंक द्वारा मौद्रिक नीति (भारत में रेपो दर) को लक्षित करने के लिये निर्धारित किया जाता है।
भारत पर इस वृद्धि का प्रभाव:
- अर्थशास्त्रियों ने उम्मीद जताई है कि फेडरल की ताज़ा बढ़ोतरी का भारत पर भौतिक प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि RBI ने बढ़ोतरी को रोक दिया है और कच्चे तेल की कीमतों में भी कमी की है।
- घरेलू बाज़ारों के लचीले बने रहने की संभावना है और अगर अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न होती है, तो इसका अर्थव्यवस्था पर सीमित प्रभाव पड़ेगा।
- यह भी उम्मीद है कि रुपए की मज़बूती और विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) द्वारा जारी खरीदारी से बाज़ार को मज़बूती मिलेगी।
- FII ने पहले ही भारत में निवेश करना शुरू कर दिया है, अप्रैल 2023 में प्रवाह बढ़कर 13,545 करोड़ रुपए और मई में अब तक 8,243 करोड़ रुपए हो गया है।
- इसके अलावा इस वृद्धि को वर्ष 2023 के लिये अंतिम वृद्धि के रूप में देखा जा रहा है और फेडरल रिज़र्व वर्ष 2023 की दूसरी छमाही से दरों में कटौती करना शुरू कर देगा।
- यदि फेडरल रिज़र्व वर्ष के अंत में कटौती का विकल्प चुनता है, तो पूंजी प्रवाह बढ़ने की उम्मीद है।
- यदि फेडरल रिज़र्व जुलाई 2023 से दरों में कटौती करना शुरू करता है, तो बाज़ारों में तेज़ी से वृद्धि होने की उम्मीद है।
केंद्रीय बैंकों को दर वृद्धि का सहारा:
- मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिये केंद्रीय बैंक ब्याज दरों में वृद्धि कर सकता है।
- यह उधार लेने हेतु उपलब्ध धन की मात्रा को कम करने के लिये किया जा रहा है, जो अर्थव्यवस्था को धीमा करने और कीमतों को तेज़ी से बढ़ने से रोकने में मदद कर सकता है।
- उच्च उधार लागत के कारण लोग और कंपनियाँ उधार लेने के लिये कम इच्छुक हो सकती हैं, जो आर्थिक गतिविधि एवं विकास को धीमा कर सकती है।
- इसके कारण व्यवसाय कम ऋण ले सकते हैं, कम लोगों को नियुक्त कर सकते हैं और उधार लेने की बढ़ी हुई लागत की वजह से उत्पादन कम कर सकते हैं।
अमेरिकी फेडरल रिज़र्व दर वृद्धि का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:
- पूंजी प्रवाह: US फेडरल रिज़र्व दर में वृद्धि से अमेरिका में ब्याज दरों में वृद्धि हो सकती है, जो अन्य देशों से पूंजी प्रवाह को आकर्षित कर सकती है। इससे भारत में विदेशी निवेश में कमी आ सकती है, साथ ही यह आर्थिक विकास को प्रभावित कर सकता है।
- रुपए का मूल्यह्रास: इससे रुपए का मूल्यह्रास भी हो सकता है, जिसका प्रभाव भारत के व्यापार संतुलन और चालू खाता घाटे पर पड़ सकता है।
- भारतीय रुपए के मूल्यह्रास के परिणामस्वरूप कच्चे तेल और अन्य वस्तुओं का आयात महँगा हो सकता है। यह भारतीय अर्थव्यवस्था में आयातित मुद्रास्फीति की स्थिति उत्पन्न कर सकता है।
- घरेलू उधार लागत: इससे भारत में उधार लेने की लागत में वृद्धि हो सकती है, क्योंकि निवेशक भारतीय प्रतिभूतियों के बजाय अमेरिकी प्रतिभूतियों में निवेश कर सकते हैं। इससे घरेलू निवेश में कमी और व्यवसायों एवं व्यक्तियों के लिये उच्च उधार लागत हो सकती है।
- शेयर बाज़ार: इसका असर भारत के शेयर बाज़ार पर भी पड़ सकता है। उच्च अमेरिकी ब्याज दरों से इक्विटी जैसी जोखिम भरी संपत्तियों की मांग में कमी आ सकती है, जिससे भारत में स्टॉक की कीमतों में गिरावट आ सकती है।
- बाह्य ऋण: भारत का बाह्य ऋण ज़्यादातर अमेरिकी डॉलर में दर्शाया गया है, US फेडरल रिज़र्व दर में वृद्धि से उस ऋण सेवा की लागत बढ़ सकती है, क्योंकि रुपए का मूल्य डॉलर के मुकाबले गिर सकता है। इससे भारत के बाह्य ऋण के बोझ में वृद्धि हो सकती है एवं अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
- बैंक: बैंकिंग उद्योग को ब्याज दरों में वृद्धि से लाभ होता है, क्योंकि बैंक अपने ऋण पोर्टफोलियो को अपनी जमा दरों की तुलना में बहुत तेज़ी से पुनर्मूल्यांकित करते हैं, जिससे उन्हें अपना शुद्ध ब्याज मार्जिन बढ़ाने में मदद मिलती है।
फेडरल रिज़र्व दर वृद्धि का मुकाबला करने हेतु भारत के पास उपलब्ध विकल्प:
- घरेलू ब्याज दरों को समायोजित करना: RBI, विदेशी निवेशकों को भारतीय बाज़ारों में निवेश करने हेतु आकर्षित करने के लिये US फेडरल रिज़र्व दर में वृद्धि के जवाब में ब्याज दरें बढ़ा सकता है, जिससे भारतीय मुद्रा की मांग बढ़ेगी एवं इसके मूल्य को बनाए रखने में मदद मिलेगी। हालाँकि यह घरेलू आर्थिक विकास को भी धीमा कर सकता है।
- विदेशी मुद्रा भंडार का विविधीकरण: भारत अमेरिकी डॉलर पर अपनी निर्भरता कम करने और US फेडरल रिज़र्व दर में वृद्धि के प्रभाव को कम करने हेतु अपने विदेशी मुद्रा भंडार में विविधता ला सकता है। उदाहरण के लिये भारत अन्य प्रमुख मुद्राओं जैसे- यूरो, येन और चीनी युआन पर अपनी निर्भरता बढ़ा सकता है।
- अन्य देशों के साथ व्यापार संबंधों को बढ़ाना: भारत अपने आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और US फेडरल रिज़र्व दर में वृद्धि के प्रभाव को कम करने हेतु अन्य देशों के साथ व्यापार संबंधों को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर सकता है। इसमें नए निर्यात बाज़ारों की खोज, विदेशी निवेश को आकर्षित करना एवं द्विपक्षीय व्यापार समझौतों को बढ़ाना शामिल हो सकता है।
- घरेलू खपत को प्रोत्साहित करना: यदि फेडरल रिज़र्व की दर में बढ़ोतरी से भारतीय अर्थव्यवस्था में मंदी आती है, तो सरकार आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिये कर कटौती, सब्सिडी अथवा सार्वजनिक कार्य कार्यक्रमों जैसे उपायों के माध्यम से घरेलू खपत को बढ़ावा दे सकती है।
- कच्चे तेल पर निर्भरता कम करना: अमेरिकी डॉलर के मज़बूत होने के कारण भारत पर पड़ने वाले प्रमुख प्रभावों में से एक कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि है, जिस कारण वस्तुओं की कीमतों में समग्र वृद्धि देखने को मिलती है। इससे निपटने के लिये नवीकरणीय ऊर्जा और इथेनॉल जैसे ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों के उपयोग को बढ़ावा देना आवश्यक है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारतीय सरकारी बॉण्ड प्रतिफल निम्नलिखित में से किससे/किनसे प्रभावित होता/होते है/हैं? (2021)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (c) केवल 1 और 2 उत्तर: d प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2022)
उपर्युक्त कथनों में से कौन से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: b |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
CPEC का अफगानिस्तान तक विस्तार
प्रिलिम्स के लिये:CPEC का अफगानिस्तान तक विस्तार, ग्वादर बंदरगाह, BRI, हिंद महासागर, मध्य एशिया, ईरान का चाबहार बंदरगाह मेन्स के लिये:CPEC का अफगानिस्तान तक विस्तार और भारत के लिये इसके निहितार्थ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में चीन और पाकिस्तान ने इस्लामाबाद में विदेश मंत्री-स्तरीय पाकिस्तान-चीन सामरिक वार्ता के चौथे दौर का आयोजन किया, जिसमें दोनों चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) को अफगानिस्तान तक विस्तारित करने पर सहमत हुए।
- साथ ही 5वीं चीन-पाकिस्तान-अफगानिस्तान त्रिपक्षीय विदेश मंत्रियों की वार्ता भी आयोजित की गई जिसमें आतंकवाद का मुकाबला करने और विभिन्न आर्थिक क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की गई।
- वर्ष 2021 में चीन ने अफगानिस्तान में CPEC के विस्तार हेतु पेशावर-काबुल मोटरमार्ग के निर्माण का प्रस्ताव रखा था।
चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा
- CPEC चीन के उत्तर-पश्चिम झिंजियांग उइगर स्वायत्त क्षेत्र और पाकिस्तान के पश्चिमी प्रांत बलूचिस्तान में ग्वादर बंदरगाह को जोड़ने वाली बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं का 3,000 किलोमीटर लंबा मार्ग है।
- यह पाकिस्तान और चीन के बीच एक द्विपक्षीय परियोजना है, जिसका उद्देश्य ऊर्जा, औद्योगिक एवं अन्य बुनियादी ढाँचा विकास परियोजनाओं के साथ राजमार्गों, रेलवे तथा पाइपलाइनों के नेटवर्क के साथ पूरे पाकिस्तान में कनेक्टिविटी को बढ़ावा देना है।
- यह चीन के लिये ग्वादर बंदरगाह से मध्य-पूर्व और अफ्रीका तक पहुँचने का मार्ग प्रशस्त करेगा, जिससे चीन को हिंद महासागर तक पहुँचने में मदद मिलेगी तथा बदले में चीन पाकिस्तान के ऊर्जा संकट को दूर करने और लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के लिये पाकिस्तान में विकास परियोजनाओं का समर्थन करेगा।
- CPEC बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का एक हिस्सा है।
- वर्ष 2013 में लॉन्च किये गए BRI का उद्देश्य दक्षिण-पूर्व एशिया, मध्य एशिया, खाड़ी क्षेत्र, अफ्रीका और यूरोप को भूमि एवं समुद्री मार्गों के नेटवर्क से जोड़ना है।
पाकिस्तान और चीन दोनों के लिये महत्त्वपूर्ण है अफगानिस्तान:
- दुर्लभ खनिजों तक पहुँच: अफगानिस्तान में बड़ी मात्रा में दुर्लभ पृथ्वी खनिज (1.4 मिलियन टन) हैं जो इलेक्ट्रॉनिक्स और सैन्य उपकरण बनाने हेतु महत्त्वपूर्ण हैं। हालाँकि जब से तालिबान ने सत्ता संभाली है, देश आर्थिक कठिनाइयों का सामना कर रहा है क्योंकि विदेशी सहायता वापस ले ली गई है।
- ऊर्जा और अन्य संसाधन: CPEC में अफगान भागीदारी इस्लामाबाद और बीजिंग को ऊर्जा एवं अन्य संसाधनों का दोहन करने की अनुमति देगी, साथ ही ताँबा, सोना, यूरेनियम तथा लिथियम से लेकर अफगानिस्तान के अप्रयुक्त प्राकृतिक संसाधनों की विशाल संपत्ति तक पहुँच प्राप्त होगी, जो विभिन्न उन्नत इलेक्ट्रॉनिक प्रौद्योगिकियों व उच्च तकनीक मिसाइल मार्गदर्शन प्रणालियों हेतु महत्त्वपूर्ण घटक हैं।
CPEC का अफगानिस्तान में विस्तार से भारत पर प्रभाव:
- मध्य एशिया में भारत के प्रभाव को सीमित करना:
- CPEC में अफगानिस्तान की भागीदारी ईरान के चाबहार बंदरगाह में भारत के निवेश को सीमित कर सकती है। भारत की योजना ईरान और अफगानिस्तान एवं मध्य एशियाई देशों के बीच महत्त्वपूर्ण व्यापार अवसरों के प्रवेश द्वार के रूप में बंदरगाह को बढ़ावा देना है।
- पाकिस्तान भी मध्य एशिया में भारत के प्रभाव को कम करने की उम्मीद कर रहा है और CPEC इसके लिये सही मंच प्रदान कर सकता है।
- विकास सहायता में भारत की तुलना में चीन अग्रणी :
- विकास सहायता के संदर्भ में भारत अफगानिस्तान का सबसे बड़ा क्षेत्रीय ऋणदाता रहा है, जिसने परियोजनाओं हेतु 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का निवेश किया है जैसे-
- सड़क निर्माण, विद्युत संयंत्र निर्माण, बाँध निर्माण, संसद भवन, ग्रामीण विकास, शिक्षा, बुनियादी ढाँचा आदि।
- CPEC के विस्तार के साथ चीन द्वारा भारत को विस्थापित करने और अफगानिस्तान के विकास क्षेत्र में नेतृत्त्व करने का अनुमान है।
- विकास सहायता के संदर्भ में भारत अफगानिस्तान का सबसे बड़ा क्षेत्रीय ऋणदाता रहा है, जिसने परियोजनाओं हेतु 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का निवेश किया है जैसे-
- सुरक्षा चिंताएँ:
- अफगानिस्तान के बगराम एयरफोर्स बेस पर चीन का नियंत्रण हो सकता है।
- बगराम हवाई अड्डा सबसे बड़ा और सबसे तकनीकी रूप से उन्नत हवाई अड्डा है क्योंकि अमेरिकी सेना ने काबुल हवाई अड्डे के बजाय इसका इस्तेमाल वहाँ से वापस लौटने तक किया।
- भारत की संप्रभुता पर प्रभाव:
- CPEC पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होकर गुज़रता है, जो भारत की संप्रभुता को कमज़ोर करता है। भारत ने इस मुद्दे पर अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के उल्लंघन को लेकर बार-बार चिंता जताई है।
- CPEC को अफगानिस्तान तक विस्तारित करके चीन और पाकिस्तान अपने आर्थिक एवं रणनीतिक संबंधों को और मज़बूत कर रहे हैं जिसे भारत अपनी सुरक्षा तथा क्षेत्रीय हितों के लिये एक खतरे के रूप में देखता है।
- आतंकवाद और सामरिक चिंताएंँ:
- अगर अफगानिस्तान CPEC का हिस्सा बन जाता है, तो इससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा, लेकिन पाकिस्तान को इस क्षेत्र में रणनीतिक लाभ भी मिल सकता है, जो भारत के हितों के लिये खतरा हो सकता है।
- ऐसे स्थिति में पाकिस्तान, भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा दे सकता है।
- दुर्लभ पृथ्वी खनिजों का दोहन:
- दुर्लभ पृथ्वी धातुएँ, उन्नत इलेक्ट्रॉनिक प्रौद्योगिकियों और उच्च तकनीक मिसाइल मार्गदर्शन प्रणालियों के लिये प्रमुख घटक हैं।
आगे की राह
- CPEC में चीन के पक्ष में इस क्षेत्र में शक्ति संतुलन को बदलने की क्षमता है, जो भारत को काफी हद तक प्रभावित करता है। अगर इससे ठीक से नहीं निपटा गया तो यह क्षेत्र की रणनीतिक गतिशीलता और दीर्घ काल में PoK पर भारत के दावे की विश्वसनीयता को बदल सकता है।
- भारत को देश के बुनियादी ढाँचे और विकास में निवेश कर अफगानिस्तान के साथ अपने आर्थिक एवं व्यापारिक संबंधों को मज़बूत करना चाहिये। इससे न केवल अफगानिस्तान की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा बल्कि भारत को CPEC के प्रभाव का मुकाबला करने में भी मदद मिलेगी।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में देखा जाने वाला बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (2016) का उल्लेख किसके संदर्भ में किया जाता है? (a) अफ्रीकी संघ उत्तर: (d) व्याख्या:
मेन्सप्रश्न. चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) को चीन की बड़ी 'वन बेल्ट वन रोड' पहल के मुख्य उपसमुच्चय के रूप में देखा जाता है। CPEC का संक्षिप्त विवरण दीजिये और उन कारणों का उल्लेख कीजिये जिनकी वजह से भारत ने खुद को इससे दूर किया है। (2018) प्रश्न. चीन और पाकिस्तान ने आर्थिक गलियारे के विकास हेतु एक समझौता किया है। यह भारत की सुरक्षा के लिये क्या खतरा प्रस्तुत करता है? समालोचनात्मक चर्चा कीजिये। (2014) प्रश्न. "चीन एशिया में संभावित सैन्य शक्ति की स्थिति विकसित करने के लिये अपने आर्थिक संबंधों और सकारात्मक व्यापार अधिशेष का उपयोग उपकरण के रूप में कर रहा है"। इस कथन के आलोक में भारत पर पड़ोसी देश के रूप में इसके प्रभाव की चर्चा कीजिये। (2017) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
अरब लीग
प्रिलिम्स के लिये:अरब लीग, मध्य पूर्व, खाड़ी देश, तेल, प्रेषण, सीरिया संकट। मेन्स के लिये:अरब लीग- मध्य पूर्व में भारत का महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
एक दशक से अधिक के निलंबन के बाद हाल ही में अरब लीग ने सीरिया को फिर से संगठन में शामिल कर लिया है।
सीरिया को अरब लीग में क्यों शामिल किया गया है?
- निलंबन:
- सरकार विरोधी प्रदर्शनों पर हिंसक रूप से कानूनी कार्रवाई के बाद वर्ष 2011 में सीरिया को अरब लीग से निलंबित कर दिया गया था।
- अरब लीग ने सीरिया पर शांति योजना का पालन नहीं करने का आरोप लगाया, जिसमें सैन्य बलों की वापसी, राजनीतिक कैदियों की रिहाई और विपक्षी समूहों के साथ बातचीत शुरू करने का आह्वान किया गया था।
- शांति वार्ता और युद्धविराम समझौते के प्रयासों के बावजूद, हिंसा जारी रही, जिसके चलते अंततः सीरिया को संगठन से निलंबित कर दिया गया।
- इस निलंबन से सीरिया को आर्थिक एवं कूटनीतिक परिणामों को सामना करना पड़ा।
- पुनः शामिल किया जाना:
- यह कदम सीरिया तथा अन्य अरब देशों की सरकारों के बीच संबंधों में नरमी का प्रतीक है और इसे सीरिया में जारी संकट के समाधान हेतु एक क्रमिक प्रक्रिया की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है।
- सीरिया संकट के परिणामस्वरूप 21 मिलियन की युद्ध-पूर्व आबादी के लगभग आधे हिस्से का विस्थापन हुआ है और 300,000 से अधिक नागरिकों की मृत्यु हुई है।
- सीरिया को इन लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करने के लिये एक समिति की स्थापना की जाएगी जिसमें मिस्र, सऊदी अरब, लेबनान, जॉर्डन और इराक शामिल होंगे।
- लेकिन इस निर्णय का मतलब अरब राज्यों और सीरिया के बीच संबंधों की बहाली नहीं है क्योंकि यह प्रत्येक देश पर निर्भर करता है कि वह इसे व्यक्तिगत रूप से तय करे।
- यह सीरिया में जारी गृहयुद्ध से उत्पन्न संकट के समाधान का आह्वान करता है, जिसमें शरणार्थियों के पड़ोसी देशों में प्रवास करने और पूरे क्षेत्र में नशीली दवाओं की तस्करी शामिल है।
- यह कदम सीरिया तथा अन्य अरब देशों की सरकारों के बीच संबंधों में नरमी का प्रतीक है और इसे सीरिया में जारी संकट के समाधान हेतु एक क्रमिक प्रक्रिया की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है।
अरब लीग क्या है?
- परिचय:
- अरब लीग, जिसे लीग ऑफ अरब स्टेट्स (LAS) भी कहा जाता है, मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका के सभी अरब देशों का एक अंतर-सरकारी समग्र-अरब संगठन (pan-Arab organisation) है।
- वर्ष 1944 में अलेक्जेंड्रिया प्रोटोकॉल को अपनाने के बाद 22 मार्च, 1945 को काहिरा, मिस्र में इसका गठन किया गया था।
- सदस्य:
- वर्तमान में इसमें 22 अरब देश शामिल हैं: अल्जीरिया, बहरीन, कोमोरोस, जिबूती, मिस्र, इराक, जॉर्डन, कुवैत, लेबनान, लीबिया, मॉरिटानिया, मोरक्को, ओमान, फिलिस्तीन, कतर, सऊदी अरब, सोमालिया, सूडान, सीरिया, ट्यूनीशिया, संयुक्त अरब अमीरात और यमन।
- उद्देश्य:
- इसका उद्देश्य अपने सदस्यों के राजनीतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं सामाजिक कार्यक्रमों को मज़बूती प्रदान करना तथा उन्हें समन्वयित करना और उनके बीच या उनके एवं तीसरे पक्ष के बीच विवादों की मध्यस्थता करना है।
- 13 अप्रैल, 1950 को संयुक्त रक्षा और आर्थिक सहयोग संबंधी एक समझौते पर हस्ताक्षर ने भी सभी हस्ताक्षरकर्त्ताओं को सैन्य रक्षा उपायों के समन्वय के लिते प्रतिबद्ध किया।
- इसका उद्देश्य अपने सदस्यों के राजनीतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं सामाजिक कार्यक्रमों को मज़बूती प्रदान करना तथा उन्हें समन्वयित करना और उनके बीच या उनके एवं तीसरे पक्ष के बीच विवादों की मध्यस्थता करना है।
- चिंताएँ:
- अरब लीग की उन मुद्दों को प्रभावी ढंग से हल करने में असमर्थता के चलते आलोचना की गई है जिन्हें संभालने के लिये इसका गठन किया गया था। इस संस्थान तथा इसके उद्देश्य वाक्य "एक अरब राष्ट्र एक शाश्वत मिशन के साथ" (one Arab nation with an eternal mission) जिसे अब अप्रचलित माना जा रहा है, की प्रासंगिकता पर भी सवाल उठ रहे हैं।
- इससे ऐसे उदाहरण भी सामने आए हैं जहाँ नेताओं के वार्षिक शिखर सम्मेलन जैसे महत्त्वपूर्ण कार्यक्रमों को स्थगित या रद्द कर दिया गया है।
- निर्णयों को लागू करने और अपने सदस्यों के बीच संघर्षों का समाधान करने में प्रभावशीलता की कमी के चलते लीग की आलोचना भी की गई है। इस पर एकजुटता भंग करने, खराब प्रशासन और अरब लोगों एक बजाय निरंकुश शासन का अधिक प्रतिनिधि होने का आरोप भी लगाया गया है।
- अरब लीग की उन मुद्दों को प्रभावी ढंग से हल करने में असमर्थता के चलते आलोचना की गई है जिन्हें संभालने के लिये इसका गठन किया गया था। इस संस्थान तथा इसके उद्देश्य वाक्य "एक अरब राष्ट्र एक शाश्वत मिशन के साथ" (one Arab nation with an eternal mission) जिसे अब अप्रचलित माना जा रहा है, की प्रासंगिकता पर भी सवाल उठ रहे हैं।
भारत के लिये मध्य पूर्व/उत्तरी अफ्रीका (MENA) का महत्त्व
- मध्य पूर्व:
- ईरान जैसे देशों के साथ सदियों से भारत के अच्छे संबंध रहे हैं, जबकि छोटा सा गैस समृद्ध देश कतर इस क्षेत्र में भारत के सबसे करीबी सहयोगियों में से एक है।
- खाड़ी के अधिकांश देशों के साथ भारत के अच्छे संबंध हैं।
- इन संबंधों के दो सबसे महत्त्वपूर्ण कारण तेल एवं गैस तथा व्यापार हैं।
- दो अन्य कारण खाड़ी देशों में काम करने वाले भारतीयों की भारी संख्या और उनके द्वारा देश में भेजे जाने वाले प्रेषण हैं।
- उत्तरी अफ्रीका:
- मोरक्को और अल्जीरिया जैसे उत्तर अफ्रीकी देश भारत के लिये महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि वे अफ्रीका के अन्य हिस्सों हेतु प्रवेश द्वार के रूप में काम करते हैं। भारत की फ्रैंकोफोन अफ्रीका (फ्रेंच भाषी अफ्रीकी राष्ट्र) में प्रवेश की इच्छा को देखते हुए यह क्षेत्र भारत के लिये अधिक प्रासंगिक हो जाता है।
- स्वच्छ ऊर्जा के स्रोत के रूप में अपनी क्षमता के कारण उत्तरी अफ्रीका भारत के लिये महत्त्वपूर्ण है। इस क्षेत्र में प्रचुर मात्रा में सौर एवं पवन संसाधन उपलब्ध हैं, जिनका उपयोग विद्युत उत्पादन हेतु किया जा सकता है।
- भारत ने महत्त्वाकांक्षी नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य निर्धारित किये हैं और उत्तरी अफ्रीका भारत को अपने नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को पूरा करने का अवसर प्रदान कर सकता है।
- इसके अलावा उत्तरी अफ्रीका की रणनीतिक अवस्थिति इसे व्यापार एवं वाणिज्य के लिये एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र बनाती है।
- उत्तरी अफ्रीका स्वेज़ नहर के माध्यम से होने वाले वैश्विक व्यापार के परस्पर प्रतिच्छेद मार्ग पर है। वर्ष 2022 में 22000 से अधिक जहाज़ पारगमन के साथ, यह नहर विश्व के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण समुद्री मार्गों में से एक है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2018) कभी-कभी समाचारों में चर्चित शहर: देश
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-से सही सुमेलित हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) प्रश्न. दक्षिण-पश्चिम एशिया का निम्नलिखित में से कौन-सा एक देश भूमध्य सागर तक नहीं फैला है? (2015) (a) सीरिया उत्तर: (b) प्रश्न.'गोलन हाइट्स' के नाम में जाना जाने वाला क्षेत्र निम्नलिखित में से किससे संबंधित घटनाओं के संदर्भ में यदा-कदा समाचारों में दिखाई देता है?(2015) (a) मध्य एशिया उत्तर: (b) प्रश्न. योम किप्पुर युद्ध किन पक्षों/देशों के बीच लड़ा गया था? (2008) (a) तुर्किये और ग्रीस उत्तर: (c) |
स्रोत: इकनॉमिक टाइम्स
जैव विविधता और पर्यावरण
प्रवासी प्रजातियों पर अभिसमय
प्रिलिम्स के लिये:बॉन कन्वेंशन (UNEP/CMS), मध्य एशियाई फ्लाईवे, माइक्रो-प्लास्टिक और सिंगल-यूज़ प्लास्टिक, वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 मेन्स के लिये:प्रवासी प्रजातियों पर अभिसमय और भारत द्वारा किये गए प्रयास |
चर्चा में क्यों?
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम/प्रवासी प्रजातियों पर अभिसमय (United Nations Environment Programme/Convention on Migratory Species- UNEP/CMS) के सहयोग से मध्य एशियाई फ्लाईवे (Central Asian Flyway- CAF) में प्रवासी पक्षियों एवं उनके आवासों के संरक्षण प्रयासों को मज़बूत करने हेतु पक्षकार देशों की एक बैठक आयोजित की।
- बैठक में आर्मेनिया, बांग्लादेश, कज़ाखस्तान, किर्गिज़स्तान, कुवैत सहित 11 देशों ने भाग लिया। प्रतिनिधियों ने CAF के लिये एक संस्थागत ढाँचे और CMS/CAF कार्ययोजना को अद्यतन करने हेतु एक मसौदा रोडमैप पर सहमति व्यक्त की।
CMS:
- परिचय:
- यह UNEP के तहत एक अंतर-सरकारी संधि है जिसे बॉन कन्वेंशन के नाम से जाना जाता है।
- इस पर वर्ष 1979 में हस्ताक्षर किये गए थे और यह 1983 से लागू है।
- CMS में 1 मार्च, 2022 तक 133 पक्षकार हैं।
- भारत भी वर्ष 1983 से CMS का एक पक्षकार है।
- लक्ष्य:
- इसका उद्देश्य स्थलीय, समुद्री और एवियन प्रवासी प्रजातियों को उनकी सीमा में संरक्षित करना है।
- यह वैश्विक स्तर पर संरक्षण उपायों को संचालित करने के लिये कानूनी नींव रखता है।
- CMS के तहत कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौते और कम औपचारिक समझौता ज्ञापन भी कानूनी साधनों के रूप में संभव हैं।
- CMSके तहत दो परिशिष्ट:
- परिशिष्ट I 'संकटग्रस्त प्रवासी प्रजातियों' को सूचीबद्ध करता है।
- परिशिष्ट II 'अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता वाली प्रवासी प्रजातियों' को सूचीबद्ध करता है।
- भारत और CMS:
- भारत ने साइबेरियन क्रेन (1998), समुद्री कछुए (2007), डुगोंग (2008) और रैप्टर (2016) के संरक्षण एवं प्रबंधन पर CMS के साथ गैर-कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौता ज्ञापन (Memorandum of Understanding- MoU) पर हस्ताक्षर किये हैं।
- भारत दुनिया के 2.4% भूमि क्षेत्र के साथ ज्ञात वैश्विक जैवविविधता में लगभग 8% का योगदान देता है।
- भारत कई प्रवासी प्रजातियों को अस्थायी आश्रय भी प्रदान करता है जिनमें अमूर फाल्कन, बार-हेडेड गीज़, ब्लैक-नेक्ड क्रेन, समुद्री कछुए, डुगोंग, हंपबैक व्हेल आदि शामिल हैं।
- प्रवासी प्रजातियाँ:
- जंगली पशुओं की एक प्रजाति अथवा निचले श्रेणी के टैक्सोन, (जैविक वर्गीकरण के विज्ञान में प्रयुक्त इकाई) जिसकी पूरी आबादी अथवा आबादी का कोई भौगोलिक रूप से अलग हिस्सा चक्रीय रूप से और अनुमानित रूप से एक या एक से अधिक राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र की सीमाओं के पार जा सकता है।
- "चक्रीय रूप से" पद किसी भी प्रकार के चक्र को संदर्भित करता है, जिसमें जलवायु, जैविक और खगोलीय (सर्कैडियन, वार्षिक आदि) चक्र शामिल हैं।
- पद "अनुमानित रूप से" का तात्पर्य है कि एक घटना की कुछ प्रकार की स्थितियों के तहत पुनरावृत्ति होने की उम्मीद की जा सकती है, हालाँकि जरूरी नहीं कि यह समय-समय पर नियमित रूप से हो।
मध्य एशियाई फ्लाईवे:
- मध्य एशियाई फ्लाईवे (CAF) पक्षियों के लिये एक प्रमुख प्रवासी मार्ग है, जो आर्कटिक महासागर से हिंद महासागर तक 30 देशों तक फैला हुआ है।
- भारतीय उपमहाद्वीप CAF का एक हिस्सा है जहाँ 182 प्रवासी जलपक्षी प्रजातियों (29 विश्व स्तर पर संकटग्रस्त प्रजातियों सहित) के कम-से-कम 279 आबादी भारत में पाई जाती है।
- भारत में प्रवासी पक्षियों की 400 से अधिक प्रजातियाँ हैं, जिनमें साइबेरियन क्रेन और लैसर वाइट फ्रंट गूज़ जैसे संकटग्रस्त और लुप्तप्राय प्रजातियाँ शामिल हैं।
फ्लाईवे:
- फ्लाईवे अपने वार्षिक चक्र के दौरान पक्षियों के एक समूह द्वारा उपयोग किया जाने वाला क्षेत्र है जिसमें उनके प्रजनन क्षेत्र, ठहराव क्षेत्र और सर्दियों के क्षेत्र शामिल हैं।
- CMS सचिवालय ने पक्षियों के प्रवास के संबंध में वैश्विक स्तर पर नौ प्रमुख फ्लाईवे की पहचान की है।
प्रवासी प्रजातियों के लिये भारत द्वारा किये गए प्रयास:
- प्रवासी पक्षियों के संरक्षण के लिये राष्ट्रीय कार्ययोजना (2018-2023): भारत ने मध्य एशियाई फ्लाईवे की प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण के लिये राष्ट्रीय कार्ययोजना शुरू की है।
- प्रवासी पक्षियों द्वारा सामना की जाने वाली वाली विभिन्न समस्याओं जैसे- निवास स्थान का नुकसान, निम्नीकरण और विखंडन, अवैध शिकार, प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन का प्रबंधन करके इन प्रजातियों के महत्त्वपूर्ण आवासों तथा प्रवासी मार्गों पर दबाव कम करने का प्रयास।
- प्रवासी पक्षियों की संख्या में कमी को रोकना और वर्ष 2027 तक इस परिदृश्य को संतुलित करना।
- आवासों और प्रवासी मार्गों के खतरों से बचाना और भावी पीढ़ियों के लिये उनकी स्थिरता सुनिश्चित करना।
- प्रवासी पक्षियों और उनके आवासों के संरक्षण के लिये मध्य एशियाई फ्लाईवे के साथ-साथ विभिन्न देशों के बीच सीमा पार सहयोग का समर्थन करना।
- प्रवासी पक्षियों और उनके आवासों पर डेटाबेस में सुधार करना ताकि उनके संरक्षण आवश्यकताओं को बेहतर तरीके से समझा जा सके।
- भारत के अन्य प्रयास:
- समुद्री कछुओं का संरक्षण: वर्ष 2020 तक समुद्री कछुआ नीति और समुद्री स्ट्रैंडिंग प्रबंधन नीति की शुरुआत।
- माइक्रो प्लास्टिक और सिंगल यूज़ प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण में कमी।
- बाघ, एशियाई हाथी, हिम तेंदुआ, एशियाई शेर, एक सींग वाला गैंडा और ग्रेट इंडियन बस्टर्ड जैसी प्रजातियों के संरक्षण के लिये सीमा पार संरक्षित क्षेत्र।
- पारिस्थितिक रूप से नाजुक क्षेत्रों में अनुकूल विकास के लिये रैखिक अवसंरचना नीति दिशा-निर्देशों जैसे सतत् बुनियादी ढाँचे का विकास।
- प्रोजेक्ट स्नो लेपर्ड (PSL): PSL को हिम तेंदुओं और उनके आवास के संरक्षण के लिये एक समावेशी और भागीदारी दृष्टिकोण को बढ़ावा देने हेतु वर्ष 2009 में लॉन्च किया गया था।
- डुगोंग संरक्षण रिज़र्व: भारत ने तमिलनाडु में अपना पहला डुगोंग संरक्षण रिज़र्व स्थापित किया है।
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972:
- प्रवासी पक्षियों सहित पक्षियों की दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रजातियों को अधिनियम की अनुसूची-I में शामिल किया गया है जिससे उन्हें उच्चतम स्तर की सुरक्षा प्राप्त होती है।
- इस अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर कठोर दंड का प्रावधान किया गया है।
- पक्षियों और उनके आवासों की बेहतर सुरक्षा और संरक्षण के लिये इस अधिनियम के तहत प्रवासी पक्षियों सहित पक्षियों के महत्त्वपूर्ण आवासों को संरक्षित क्षेत्रों के रूप में अधिसूचित किया गया है।
- अन्य पहलें:
- नगालैंड राज्य में अमूर फाल्कन्स, जो दक्षिणी अफ्रीका की ओर अपनी यात्रा के दौरान पूर्वोत्तर भारत में प्रवास करते हैं, की सुरक्षा के लिये केंद्रित सुरक्षा उपाय किये गए हैं। इन उपायों में स्थानीय समुदायों द्वारा सहायता भी शामिल है।
- भारत ने गिद्धों के संरक्षण के लिये कई कदम उठाए हैं जैसे- डाइक्लोफेनाक के पशु चिकित्सा उपयोग पर प्रतिबंध लगाना, गिद्ध प्रजनन केंद्रों की स्थापना आदि।
- वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो की स्थापना वन्यजीवों तथा उनके अंगों एवं उत्पादों के अवैध व्यापार पर नियंत्रण के लिये की गई है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2020) अंतर्राष्ट्रीय समझौता/संगठन विषय
उपयुक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: c
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