डेली न्यूज़ (07 Jun, 2024)



विकास के सिद्धांत

Theories of Evolution

और पढ़ें: डायनासोर और पक्षियों के बीच संबंध


ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स

प्रिलिम्स के लिये: 

ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC), सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSMEs), एकीकृत भुगतान इंटरफेस (Unified Payments Interface- UPI)

मेन्स के लिये:

ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC), इसकी क्षमता, चुनौतियाँ और आगे की राह

स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC) ने मई 2024 में खुदरा और राइड-हेलिंग सेगमेंट में 8.9 मिलियन लेनदेन का सर्वकालिक उच्च स्तर दर्ज़ किया, जो कुल लेनदेन की मात्रा में 23% माह-दर-माह होने वाली वृद्धि दर्शाता है।

ONDC क्या है?

  • परिचय:
    • ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC) परस्पर जुड़े ई-मार्केटप्लेस का एक नेटवर्क है, जिसके माध्यम से ब्रांड सहित विक्रेता बिचौलियों या मध्यस्थों को दरकिनार करते हुए सीधे ग्राहकों को अपने उत्पाद सूचीबद्ध और विक्रय कर सकते हैं।
      • यह वस्तुओं और सेवाओं की खरीद-बिक्री के लिये प्लेटफॉर्म-केंद्रित मॉडल से खुले स्रोत नेटवर्क में परिवर्तन की अनुमति देता है।
    • इसे डिजिटल इंडिया पहल के एक भाग के रूप में वाणिज्य मंत्रालय द्वारा उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (Department for Promotion of Industry and Internal Trade- DPIIT) के तहत वर्ष 2021 में लॉन्च किया गया था।
    • यह किराने का सामान, गृह सज़ावट, सफाई संबंधी आवश्यक वस्तुएँ, खाद्य वितरण और अन्य उत्पादों की डिलीवरी सेवाएँ प्रदान करता है।
    • यह एक गैर-लाभकारी संगठन है जो एक नेटवर्क प्रदान करता है, जिससे विभिन्न उद्योगों में स्थानीय डिजिटल वाणिज्य स्टोरों को किसी भी नेटवर्क-सक्षम अनुप्रयोगों द्वारा खोजा और उपयोग किया जा सकता है।
    • एकीकृत भुगतान इंटरफेस (Unified Payments Interface- UPI) के समान, ONDC का लक्ष्य ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्मों के बीच परिचालन के स्तर को समान बनाना है।
    • भारतीय गुणवत्ता परिषद (Quality Council of India- QCI) को इस ओपन-सोर्स प्रौद्योगिकी नेटवर्क के माध्यम से ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्मों को एकीकृत करने का कार्य सौंपा गया है, जिससे उपयोगकर्त्ताओं को मूल कोड को संशोधित, संवर्धित या बेहतर बनाने की अनुमति मिल सके।

  • उद्देश्य:
    • ई-कॉमर्स का लोकतंत्रीकरण और विकेंद्रीकरण।
    • विक्रेताओं, विशेषकर छोटे और मध्यम उद्यमों तथा स्थानीय व्यवसायों के लिये समावेशिता एवं पहुँच।
    • उपभोक्ताओं के लिये विकल्प चुनने और स्वतंत्रता में वृद्धि।
    • वस्तुओं और सेवाओं को सस्ता बनाना।
  • कार्य प्रणाली: 
    • ONDC एक खुले नेटवर्क के आधार पर कार्य करता है, जहाँ यह अमेज़न या फ्लिपकार्ट के समान एकल मंच नहीं होगा, बल्कि एक प्रवेश द्वार के रूप में होगा जहाँ विभिन्न प्लेटफॉर्मों पर क्रेता और विक्रेता जुड़ सकेंगे।

ONDC

‘ओपन सोर्स’ क्या है?

  • ‘ओपन सोर्स’ का तात्पर्य है कि प्रक्रिया के लिये प्रयुक्त प्रौद्योगिकी या कोड सभी के उपयोग, पुनर्वितरण और संशोधन हेतु स्वतंत्र रूप से उपलब्ध कराया जाता है।
  • उदाहरण के लिये, iOS का ऑपरेटिंग सिस्टम बंद स्रोत है, इसे कानूनी रूप से संशोधित या उपयोग नहीं किया जा सकता है।
    • जबकि, एंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम ओपन सोर्स है, जिससे सैमसंग, नोकिया, श्याओमी  आदि जैसे स्मार्टफोन निर्माताओं के लिये इसे अपने संबंधित हार्डवेयर हेतु संशोधित करना संभव हो जाता है।

ONDC के संभावित लाभ क्या हैं?

  • उपभोक्ताओं को सशक्त बनाना: ONDC संभावित रूप से सूचना तक पहुँच बढ़ाकर अधिक पारदर्शी वातावरण को बढ़ावा देता है।
    • इससे उपभोक्ताओं को सूचित विकल्प चुनने और विक्रेताओं की एक विस्तृत शृंखला से लाभ अर्जित करने का अधिकार मिलता है, जिससे संभावित रूप से कीमतें कम हो जाती हैं।
  • प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना: मौजूदा प्लेटफॉर्मों के एकाधिकार को समाप्त कर, ONDC एक समान अवसर सृजित करता है। यह विक्रेताओं के बीच प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित करता है, अंततः उत्पादों की एक विस्तृत विविधता और उपभोक्ताओं के लिये संभावित रूप से वहनीय कीमतों में परिवर्तित होता है।
  • नवाचार: ONDC की ओपन-सोर्स वास्तुकला नवाचार को बढ़ावा देती है।
  • लागत क्षमता: ONDC की विकेंद्रीकृत संरचना में परिचालन को सुव्यवस्थित करने, अतिरेक को कम करने तथा महत्त्वपूर्ण लागत को बचाने की क्षमता है।
  • छोटे व्यवसायों को बढ़ावा देना: ONDC छोटे और मध्यम आकार के उद्यमों (MSME) और स्थानीय विक्रेताओं के लिये प्रवेश बाधाओं को कम करता है। यह डिजिटल बाज़ार में अधिक भागीदारी का मार्ग प्रशस्त करता है तथा अधिक समावेशी ई-कॉमर्स पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देता है।

Potential_of_ONDC

ONDC के समक्ष चुनौतियाँ क्या हैं?

  • जटिल कारक: UPI जैसी अन्य प्रणालियों की तुलना में ONDC एक जटिल तंत्र है। लोगों को UPI की सुविधा आकर्षक लगी, जिससे उन्होंने इसे शीघ्रता से अपनाया।
  • स्थापित प्रवृत्ति का खंडन: उपभोक्ता मौजूदा ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के उपयोगकर्त्ता इंटरफेस और कार्यक्षमताओं के आदी हो चुके हैं। ONDC को प्रभावी रूप से प्रतिस्पर्द्धा करने के लिये एक सहज और उपयोगकर्त्ता-अनुकूल अनुभव प्रदान करने की आवश्यकता होगी।
  • विवाद समाधान संबंधी चिंताएँ: सभी लेन-देन का प्रबंधन करने वाले पारंपरिक प्लेटफॉर्म के विपरीत, ONDC केवल ऑनलाइन खरीद और बिक्री पर ध्यान केंद्रित करता है
    • इस पृथक्करण से वितरण, उत्पाद की गुणवत्ता या बिक्री के बाद की सेवा से संबंधित विवादों में वृद्धि हो सकती है, क्योंकि ONDC प्रत्यक्ष मध्यस्थ के रूप में कार्य नहीं करता है।
  • एक सुदृढ़ शिकायत निवारण तंत्र का अभाव: ग्राहक सेवा और शिकायतों के प्रबंधन के संबंध में उत्तरदायित्व पर स्पष्टता की कमी लोगों को मंच से जुड़ने से हतोत्साहित कर सकती है।
  • मौजूदा ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्मों से चुनौतियाँ: पहले से मौजूद ई-कॉमर्स कंपनियों ने अपनी आकर्षक और इंटरऑपरेबल सेवाओं के माध्यम से उपभोक्ताओं के साथ मज़बूत संबंध कायम किये हैं। 
    • ONDC को इस प्रतिस्पर्द्धी परिदृश्य में ग्राहकों को आकर्षित करने और बनाए रखने के लिये आकर्षक रणनीति विकसित करने की आवश्यकता होगी।
  • मूल्य लाभ की अनिश्चितता: एक सुविधाप्रदाता के रूप में, ONDC सीधे उत्पाद मूल्य निर्धारण को प्रभावित करने या स्थापित अभिकर्त्ताओं की तरह उत्पादों पर छूट की पेशकश करने में सक्षम नहीं हो सकता है, जो थोक सौदे और साझेदारी का लाभ उठाते हैं। 

आगे की राह

  • डिजिटल बुनियादी ढाँचे का विस्तार: सरकार एक मज़बूत डिजिटल बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है जो ONDC का समर्थन करता है।
    • इसमें ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी में निवेश और ग्रामीण और दूरदराज़ के क्षेत्रों में डिजिटल विभाजन को कम करने की पहल शामिल हो सकती है।
  • डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देना: विविध क्षेत्रीय भाषाओं की आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाली एक व्यापक डिजिटल शिक्षा नीति महत्त्वपूर्ण है। 
    • यह विशेष रूप से छोटे व्यवसायों से जुड़े उपभोक्ताओं और विक्रेताओं दोनों को ONDC प्लेटफॉर्म को प्रभावी ढंग से नेविगेट करने के लिये सशक्त करेगा। उपयोगकर्त्ता के अनुकूल इंटरफेस उपयोग में सरलता को प्राथमिकता देते हैं और इसके विस्तार में योगदान देंगे।
  • लक्षित आउटरीच कार्यक्रम: छोटे विक्रेताओं, विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) एवं किराना स्टोरों में संलग्न, को आकर्षित करने के लिये पर्याप्त निवेश के साथ-साथ व्यापक आउटरीच कार्यक्रम संचालित करना भी आवश्यक हैं। 
    • प्रोत्साहन और हैंडहोल्डिंग समर्थन प्रारंभिक बाधाओं पर नियंत्रण पाने तथा एक तकनीक आधारित प्लेटफॉर्म अपनाने को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
  • विवाद समाधान ढाँचा स्थापित करना: सूचना विषमता, अपारदर्शी मूल्य निर्धारण, गुणवत्ता संबंधी चिंताओं और खरीदार-विक्रेता विवादों जैसे मुद्दों को संबोधित करने के लिये एक सुरक्षित एवं कुशल एकल खिड़की तंत्र (सिंगल-विंडो सिस्टम) स्थापित करना आवश्यक है। 
    • यह ONDC पारिस्थितिकी तंत्र में हितधारकों के बीच विश्वास और आत्मविश्वास स्थापित करेगा।

निष्कर्ष:

ONDC की सफलता सरकार, औद्योगिक खिलाड़ियों और नागरिक समाज के बीच एक सहयोगी प्रयास पर निर्भर करती है। डिजिटल अवसंरचना विकास एवं डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देकर, विक्रेता ऑनबोर्डिंग सुविधा प्रदान करके और एक मज़बूत शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करके, ओएनडीसी (ONDC) भारतीय ई-कॉमर्स परिदृश्य में समावेशिता, पारदर्शिता एवं प्रतिस्पर्द्धा के एक नए युग का सूत्रपात कर सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

भारतीय ई-कॉमर्स परिदृश्य में ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC) की संभावनाओं पर विवेचना कीजिये। इसके सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिये और इसके सफल कार्यान्वयन हेतु रोडमैप सुझाएँ।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. 'भारतीय गुणता परिषद् (QCI)' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)

  1. QCI का गठन, भारत सरकार तथा भारतीय उद्योग द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था।
  2. QCI के अध्यक्ष की नियुक्ति, उद्योग द्वारा सरकार को की गई संस्तुतियों पर, प्रधानमंत्री द्वारा की जाती है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2

उत्तर: (c)


प्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2022)

  1. आरोग्य सेतु
  2. कोविन
  3. डिजीलॉकर
  4. दीक्षा

उपर्युक्त में से कौन-से, ओपेन-सोर्स डिजिटल प्लेटफॉर्म पर बनाए गए हैं ?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2,3 और 4
(c) केवल 1,3 और 4
(d) 1,2,3 और 4

उत्तर: (d)


वैश्विक खाद्य सुरक्षा में परमाणु प्रौद्योगिकी की भूमिका

प्रिलिम्स के लिये:

खाद्य विकिरण, परमाणु ऊर्जा, खाद्य और कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization- FAO) अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (International Atomic Energy Agency- IAEA) , परमाणु प्रौद्योगिकियाँ, पॉलीमरेज़ चेन रिएक्शन (PCR), बौद्धिक संपदा अधिकार

मेन्स के लिये:

खाद्य और प्रसंस्करण क्षेत्र में परमाणु ऊर्जा का महत्त्व।

स्रोत: एफ.ए.ओ.

चर्चा में क्यों?

हाल ही में खाद्य और कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization- FAO) तथा अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (International Atomic Energy Agency- IAEA) द्वारा "बेहतर जीवन के लिये सुरक्षित भोजन" विषय पर संयुक्त रूप से आयोजित एक अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में खाद्य सुरक्षा के मापन, प्रबंधन एवं नियंत्रण के लिये परमाणु प्रौद्योगिकियों के महत्त्व पर ज़ोर दिया गया।

  • इसके अलावा, संगोष्ठी हेतु खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में परमाणु प्रौद्योगिकी के संभावित उपयोग पर प्रकाश डाला गया।

खाद्य सुरक्षा मानक पर परमाणु प्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग क्या है?

  • वन हेल्थ दृष्टिकोण का पूरक:
    • वन हेल्थ दृष्टिकोण मानव, पशु और पर्यावरणीय स्वास्थ्य के अंतर्संबंध को मान्यता देता है; परमाणु तकनीकों का उपयोग भोजन एवं पर्यावरण में संदूषकों, रोगाणुओं तथा विषाक्त पदार्थों का पता लगाने व उनकी निगरानी करने के लिये किया जा सकता है।
    • पॉलीमरेज़ चेन रिएक्शन (PCR) परीक्षण एक आणविक परमाणु तकनीक है, जो एक दिन से भी कम समय में पशु रोगों का तेज़ी से पता लगा लेती है।
  • खाद्य विकिरण: 
    • खाद्य विकिरण, हानिकारक बैक्टीरिया, रोगाणुओं और कीटों को नष्ट करने के लिये खाद्य पदार्थों को आयनकारी विकिरण के संपर्क में लाने की एक प्रक्रिया है; परमाणु प्रौद्योगिकी खाद्य उत्पादों की जीवन अवधि को बढ़ाने तथा उपभोग के लिये उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने में सहायता करती है।
    • स्थिर समस्थानिक विश्लेषण एक परमाणु तकनीक है जिसका उपयोग खाद्य उत्पादों की उत्पत्ति और प्रामाणिकता निर्धारित करने के लिये किया जाता है, साथ ही यह मिलावट का पता लगाने तथा लेबलिंग दावों को सत्यापित करने में सहायता करता है।
  • उन्नत मृदा एवं जल प्रबंधन:
    • अतीत में हुए परमाणु विस्फोटों से वास्तव में वैज्ञानिकों को मृदा अपरदन का मापन एवं आकलन करने में सहायता मिल रही है, परमाणु घटनाओं के बाद बचे रेडियोधर्मी न्यूक्लाइडों से वैज्ञानिकों को मृदा के स्वास्थ्य और अपरदन की दर का निर्धारण करने में सहायता मिल सकती है।
  • कीट नियंत्रण: 
    • कृषि उत्पादन प्रणालियों में कीट नियंत्रण के लिये परमाणु तकनीक, जैसे कि स्टेराइल इन्सेक्ट टेक्नोलॉजी (SIT) का उपयोग किया जाता है। 
    • यह तकनीक प्रजनन को सीमित करती है और कीटों तथा पीड़कों को कम करती है, जिससे रासायनिक कीटनाशकों की आवश्यकता कम हो जाती है, जो खाद्य सुरक्षा पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं।
  • पादप प्रजनन और आनुवंशिकी: 
    • फसल प्रजनन में प्रयुक्त परमाणु प्रौद्योगिकी जलवायु परिवर्तन के अनुकूल उन्नत किस्मों के विकास में सहायक है।
    • बीजों को गामा किरणों, एक्स-रे, आयनों या इलेक्ट्रॉन किरणों द्वारा विकिरणित करने से उसमें आनुवंशिक परिवर्तन शुरू हो जाते हैं, जिससे प्रजनन उद्देश्यों के लिये उपलब्ध आनुवंशिक विविधता का विस्तार होता है।

खाद्य सुरक्षा में तकनीक-संबंधी प्रगति की क्या आवश्यकता है?

  • जलवायु परिवर्तन: सूखा, बाढ़ और तापमान में उतार-चढ़ाव जैसी जलवायु-जनित चुनौतियाँ फसल उत्पादन एवं खाद्य उपलब्धता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती हैं, इसलिये जलवायु-स्मार्ट कृषि (Climate-Smart Agriculture- CSA) को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
  • खाद्य अपशिष्ट: FAO के अनुसार, मानव उपभोग के लिये उत्पादित भोजन का लगभग 1/3 हिस्सा वैश्विक स्तर पर नष्ट या बर्बाद हो जाता है, जो प्रतिवर्ष लगभग 1.3 बिलियन टन होता है अर्थात लगभग 3.1 बिलियन लोग वर्ष 2020 में स्वस्थ आहार का खर्च नहीं उठा पाएंगे (FAO, 2022)।
  • जनसंख्या वृद्धि: अनुमान है कि वर्ष 2050 तक विश्व की जनसंख्या 9.7 बिलियन तक पहुँच जाएगी (संयुक्त राष्ट्र विश्व जनसंख्या संभावनाएँ, 2019), जिससे खाद्य उत्पादन प्रणालियों पर अत्यधिक दबाव पड़ेगा और तकनीकी विस्तार की आवश्यकता में वृद्धि होगी।
  • सीमित संसाधन: सीमित कृषि योग्य भूमि और स्वच्छ जल के संसाधनों के साथ, प्रौद्योगिकी ऊर्ध्वाधर खेती, हाइड्रोपोनिक्स एवं कुशल सिंचाई प्रणालियों के माध्यम से उत्पादकता को अधिकतम करने में सहायता कर सकती है।

नोट: 

  • एटम्स 4फूड (Atoms 4Food) वैश्विक स्तर पर भुखमरी से निपटने और खाद्य सुरक्षा बढ़ाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (International Atomic Energy Agency- IAEA) तथा FAO की एक संयुक्त पहल है।
    • इसे रोम में वर्ष 2023 विश्व खाद्य मंच (World Food Forum) में प्रदर्शित किया गया।
    • इस परियोजना का उद्देश्य परमाणु प्रक्रियाओं और अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाना तथा विभिन्न देशों की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप समाधान तैयार करना है।
  • इन प्रौद्योगिकियों का उपयोग कृषि एवं पशुधन उत्पादकता को बढ़ाने, प्राकृतिक संसाधनों का अधिक प्रभावी ढंग से प्रबंधन करने, खाद्य विषमताओं को कम करने, खाद्य सुरक्षा मानकों को सुनिश्चित करने, पोषण मूल्य में सुधार करने हेतु तथा जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियों को कम करने के लिये किया जाता है।
    • खाद्य और कृषि में परमाणु तकनीक का संयुक्त FAO/IAEA केंद्र, वैश्विक खाद्य सुरक्षा तथा सतत् कृषि विकास के लिये परमाणु प्रौद्योगिकियों के सुरक्षित एवं प्रभावी अनुप्रयोग में सहायता करता है।

खाद्य सुरक्षा हेतु परमाणु प्रौद्योगिकी के उपयोग से क्या चुनौतियाँ संबंधित हैं?

  • भौगोलिक एवं क्षेत्रीय विविधताएँ:
    • विविध कृषि-जलवायु क्षेत्र और पद्धतियाँ, विश्व भर में परमाणु तकनीकों के एकरूप अनुप्रयोग एवं अनुकूलन से संबंधित चुनौतियाँ उत्पन्न कर सकती हैं।
    • मृदा तथा जल प्रबंधन के लिये समस्थानिक तकनीकों के अनुप्रयोग हेतु मृदा के प्रकार, जलवायु परिस्थितियों और सिंचाई पद्धतियों में भिन्नता के कारण क्षेत्र-विशिष्ट अंशांकन एवं अनुकूलन की आवश्यकता हो सकती है।
  • सीमित वित्तपोषण व निवेश एवं प्रौद्योगिकी:
    • खाद्य संरक्षण और कीट नियंत्रण के लिये विकिरण सुविधाओं के विकास हेतु पूंजी निवेश की आवश्यकता होती है, जो बजट की कमी के कारण एक बड़ी चुनौती सिद्ध हो सकती है।
    • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण प्रतिबंधों या उच्च लागत के कारण त्वरक-आधारित उत्परिवर्तन प्रजनन या खाद्य ट्रेसिबिलिटी के लिये विशेष विश्लेषणात्मक उपकरण जैसी उन्नत तकनीकों तक पहुँच कठिन हो सकती है।
  • विनियामक चुनौतियाँ:
    • कृषि में परमाणु प्रौद्योगिकी का उपयोग सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये सख्त नियमों और दिशानिर्देशों के अधीन है; आवश्यक अनुमोदन, लाइसेंस प्राप्त करना तथा नियामक आवश्यकताओं का अनुपालन एक लंबी व जटिल प्रक्रिया हो सकती है।
    • बौद्धिक संपदा अधिकार और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण बाधाओं सहित विभिन्न कारक कृषि अनुकूलन में बाधा उत्पन्न करते हैं।
  • संबद्ध बुनियादी ढाँचे का अभाव:
    • कृषि में परमाणु तकनीकों का प्रभावी उपयोग करने के लिये विशेष प्रयोगशालाओं और अनुसंधान सुविधाओं का अभाव तथा इस क्षेत्र में प्रशिक्षित कर्मियों एवं विशेषज्ञता के अभाव के परिणामस्वरूप इन तकनीकों का व्यापक अनुप्रयोग सीमित हो रहा है।

परमाणु ऊर्जा क्या है?

  • यह ऊर्जा का एक रूप है जो परमाणु के नाभिक या क्रोड से उत्सर्जित होती है।
  • यह अपने उच्च ऊर्जा घनत्व के लिये जाना जाता है, जिसका अर्थ है कि परमाणु ईंधन की थोड़ी मात्रा से बड़ी मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न हो सकती है।
    • परमाणु ऊर्जा का उपयोग करने के दो प्राथमिक विधियाँ हैं:
  • नाभिकीय विखंडन: इस प्रक्रिया में परमाणु के नाभिक को दो छोटे नाभिकों में विभाजित किया जाता है, जिससे बड़ी मात्रा में ऊर्जा मुक्त होती है।
    • परमाणु ऊर्जा संयंत्र मुख्य रूप से इस विधि का उपयोग करते हैं, ईंधन के रूप में यूरेनियम-235 या प्लूटोनियम-239 का उपयोग करते हैं। जब इन भारी समस्थानिकों के नाभिकों पर न्यूट्रॉन की बमबारी की जाती है, तो वे अस्थिर हो जाते हैं और छोटे नाभिकों में विभाजित हो जाते हैं, जिससे अतिरिक्त न्यूट्रॉन निकलते हैं।
    • इस शृंखला अभिक्रिया से ऊष्मा उत्पन्न होती है, जिसका उपयोग भाप निर्मित करने, टर्बाइन चलाने और अंततः विद्युत उत्पन्न करने के लिये किया जाता है।
  • नाभिकीय संलयन (Nuclear Fusion): यह दो हल्के परमाणुओं के नाभिकों को मिलाकर एक भारी नाभिक बनाने की प्रक्रिया है। संलयन वह प्रक्रिया है जो सूर्य के लिये ऊर्जा का स्रोत है। 
    • यद्यपि इसमें स्वच्छ और वस्तुतः असीमित ऊर्जा की व्यापक संभावनाएँ निहित हैं, लेकिन पृथ्वी पर नियंत्रित परमाणु संलयन प्राप्त करना अत्यधिक चुनौतीपूर्ण है।

खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) क्या है?

  • FAO संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है जो भुखमरी को समाप्त करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों का नेतृत्त्व करती है।
  • विश्व खाद्य दिवस, 16 अक्तूबर, 1945 को संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन (FAO) की स्थापना के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
  • भारत सहित 194 सदस्य देशों एवं यूरोपीय संघ के साथ FAO विश्वभर में 130 से अधिक देशों में कार्यरत है।
  • यह रोम (इटली) स्थित संयुक्त राष्ट्र के खाद्य सहायता संगठनों में से एक है। इसकी सहयोगी संस्थाएँ विश्व खाद्य कार्यक्रम तथा कृषि विकास के लिये अंतर्राष्ट्रीय कोष (IFAD) हैं।

आगे की राह

  • बुनियादी ढाँचे और सुविधाओं का विकास: विकिरण सुविधाएँ, विश्लेषणात्मक प्रयोगशालाएँ तथा परमाणु प्रौद्योगिकी के लिये उपकरण स्थापित करने हेतु धन एवं संसाधन आवंटित करना, जैसे कि खराब होने वाले उत्पादों को संरक्षित करना, हानि को न्यूनतम करने व खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु खाद्य विकिरण सुविधा स्थापित करना आवाश्यक है
  • विनियामक सुधार और प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना: रेडियोधर्मी कृषि सामग्रियों के सुरक्षित संचालन, परिवहन तथा निपटान के लिये दिशा-निर्देश बनाये जाने चाहिये तथा विकिरण-प्रेरित उत्परिवर्ती फसलों के अनुमोदन एवं व्यावसायीकरण की देखरेख हेतु एक नियामक निकाय का गठन किया जाना चाहिये।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देना: परमाणु प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के लिये अनुसंधान संस्थानों, निजी क्षेत्र और उद्योग के बीच सहयोग को बढ़ावा देना तथा परमाणु-आधारित कृषि उत्पादों के विकास एवं व्यावसायीकरण में निवेश करने हेतु कंपनियों को प्रोत्साहन प्रदान करना।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और ज्ञान साझाकरण: अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना जैसे कि विशेषज्ञता और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के लिये संयुक्त FAO/IAEA केंद्र के साथ साझेदारी करना।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

“प्रौद्योगिकी में फसल की पैदावार, किसानों की आय और कृषि क्षेत्र के सामने आने वाली चुनौतियों का सामना करने की क्षमता में सुधार करके भारतीय कृषि के विकास तथा स्थिरता में महत्त्वपूर्ण योगदान देने की क्षमता है।” आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)

  1. भारतीय पेटेंट अधिनियम के अनुसार, किसी बीज बनाने की जैविक प्रक्रिया को भारत में पेटेंट कराया जा सकता है। 
  2. भारत में कोई बौद्धिक संपदा अपीलीय बोर्ड नहीं है। 
  3. पादप किस्में भारत में पेटेंट कराए जाने के पात्र नहीं हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. फसल विविधता के समक्ष मौजूदा चुनौतियाँ क्या हैं? उभरती प्रौद्योगिकियाँ फसल विविधता के लिये किस प्रकार  अवसर प्रदान करती हैं। (2021)


RBI द्वारा ब्रिटेन से भारत में स्वर्ण प्रत्यावर्तन

प्रिलिम्स के लिये:

RBI के पास विदेशी मुद्रा और स्वर्ण भंडार, बैंक ऑफ इंटरनेशनल सेटलमेंट्स (BIS), IMF। 

मेन्स के लिये:

भारत का विदेशी मुद्रा भंडार और इसके प्रबंधन में केंद्रीय बैंक की भूमिका।

स्रोत: इकोनाॅमिक टाइम्स

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) ने ब्रिटेन से 100 टन से अधिक स्वर्ण अपने घरेलू भंडार में प्रत्यावर्तन एक महत्त्वपूर्ण रणनीतिक कदम उठाया है।

  • यह 1990 के दशक के बाद से अब तक का सबसे बड़ा प्रत्यावर्तन है और यह RBI के अपने स्वर्ण भंडार के प्रबंधन के प्रति विकसित होते दृष्टिकोण को दर्शाता है।

नोट

  • 1990-91 के विदेशी मुद्रा संकट के दौरान, भारत ने 405 मिलियन अमेरिकी डॉलर का ऋण प्राप्त करने के लिये बैंक ऑफ इंग्लैंड के पास अपने स्वर्ण भंडार का एक हिस्सा गिरवी रख दिया था।
  • यद्यपि ऋण नवंबर 1991 तक चुका दिया गया था, लेकिन RBI ने लॉजिस्टिक कारणों से स्वर्ण को ब्रिटेन में ही रखने का निर्णय लिया, क्योंकि विदेशों में संग्रहीत सोने का उपयोग व्यापार, स्वैप में प्रवेश करने और रिटर्न अर्जित करने के लिये आसानी से किया जा सकता था।
  • स्वर्ण भंडार के प्रत्यावर्तन का भारत के सकल घरेलू उत्पाद, कर संग्रह या RBI की बैलेंस शीट पर कोई वित्तीय प्रभाव नहीं पड़ता है, क्योंकि इसमें केवल स्वर्ण भंडारण स्थान (RBI की कुल स्वर्ण परिसंपत्ति वही रहेगी) में परिवर्तन होता है।
  • इस स्थानांतरण से कोई सीमा शुल्क या GST संबंधी समस्या नहीं जुड़ी है, क्योंकि वापस लाया जा रहा सोना पहले से ही भारत के स्वामित्व में है।

RBI के पास कितना स्वर्ण है?

  • स्वर्ण भंडार:
    • भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 मुद्राओं, लिखतों, जारीकर्त्ताओं और प्रतिपक्षों के व्यापक मापदंडों के भीतर विभिन्न विदेशी मुद्रा आस्तियों एवं स्वर्ण भंडार का उपयोग करने के लिये व्यापक कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।
    • मार्च 2024 के अंत तक, RBI के पास 822.10 टन स्वर्ण था, जिसमें से 408.31 टन घरेलू स्तर पर संग्रहीत है और शेष 413.79 टन अभी भी बैंक ऑफ इंग्लैंड और बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स (Bank for International Settlements- BIS) जैसी विदेशी संस्थाओं के पास जमा है।
    • RBI के अनुसार अप्रैल 2024 तक भारत के मौजूदा विदेशी मुद्रा भंडार (648.562 बिलियन अमरीकी डॉलर) में सोने का हिस्सा 54.4 बिलियन अमरीकी डॉलर है।
  • स्वर्ण की खरीद का इतिहास:
    • विश्व स्वर्ण परिषद (World Gold Council) के अनुसार,  RBI उन शीर्ष पाँच केंद्रीय बैंकों में शामिल है जिनके द्वारा स्वर्ण की खरीद की जा रही है।

    • वर्ष 2009 में वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान RBI ने 200 टन स्वर्ण खरीदा था।
    • RBI ने वित्त वर्ष 2023 में 34.22 टन स्वर्ण (वित्त वर्ष 2022 में 65.11 टन स्वर्ण) खरीदा, और वित्त वर्ष 2024 में 19 टन स्वर्ण खरीदा।

भारत में स्वर्ण भंडार:

  • राष्ट्रीय खनिज सूची के अनुसार, 2015 तक भारत में स्वर्ण के अयस्क के कुल भंडार का अनुमान 501.83 मिलियन टन है।
  • स्वर्ण के अयस्क के सबसे बड़े संसाधन बिहार (44%) में स्थित हैं, इसके बाद राजस्थान (25%), कर्नाटक (21%), पश्चिम बंगाल (3%), आंध्र प्रदेश (3%), झारखंड (2%) का स्थान आता है।
  • कर्नाटक में देश के कुल स्वर्ण उत्पादन का लगभग 80% हिस्सा है। कोलार ज़िले में कोलार गोल्ड फील्ड्स (Kolar Gold Fields- KGF) विश्व की सबसे पुरानी और सबसे गहरी स्वर्ण खदानों में से एक है।

स्वर्ण के अन्य प्रमुख खरीदार:

  • पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना: यह एक प्रमुख स्वर्ण खरीदार बना हुआ है। वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल (World Gold Council- WGC) की रिपोर्ट (अप्रैल 2024 में जारी) के अनुसार, वर्ष 2024 की पहली तिमाही में चीन केंद्रीय बैंकों के बीच स्वर्ण का सबसे बड़ा खरीदार था।
  • सेंट्रल बैंक ऑफ टर्की: अप्रैल 2024 तक, सेंट्रल बैंक ऑफ टर्की ने इस वर्ष अब तक का सबसे अधिक सोना (8 टन) खरीदा है, जिससे इसकी कुल होल्डिंग 578 टन हो गई है।
  • उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाएँ: WGC रिपोर्ट में लगातार इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि उभरती अर्थव्यवस्थाओं के केंद्रीय बैंक स्वर्ण खरीदने की प्रवृत्ति में अग्रणी हैं।

भारतीय रिज़र्व बैंक ने स्वर्ण वापस भारत लाने का निर्णय क्यों किया?

  • मुद्रास्फीति के विरुद्ध संरक्षण:
    • जब मुद्रास्फीति अधिक होती है, तो स्वर्ण अपना महत्त्व स्थिर रखता है। मुद्रास्फीति के कारण क्रय शक्ति खोने वाली मुद्राओं के विपरीत, सोने का ऐतिहासिक प्रदर्शन बताता है कि इन समयों के दौरान इसकी कीमत में वृद्धि भी हो सकती है।
    • इससे RBI को चुनौतीपूर्ण आर्थिक परिस्थितियों में भी अच्छे रिटर्न प्राप्त होने की भी संभावना होती है।
  • भू-राजनीतिक अनिश्चितता के विरुद्ध बचाव:
    • वर्तमान भू-राजनीतिक परिदृश्य, जिसमें रूस-यूक्रेन युद्ध जैसी घटनाएँ शामिल हैं, जिसके कारण पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर अत्यधिक प्रतिबंध लगाए गए, जिसके कारण विदेशों में रखी रूसी संपत्तियों को फ्रीज़ कर दिया गया है, इससे RBI के लिये भी चिंता उत्पन्न हो सकती है कि वह अपनी संपत्तियों को अपने वॉलेट में स्थानांतरित करके उन पर नियंत्रण स्थापित करे।
      • ऐसी अनिश्चितताओं के दौरान स्वर्ण को एक सुरक्षित आश्रय के रूप में भी देखा जाता है।
  • विविधीकरण और तरलता:
    • अपने भंडार में सोना शामिल करने से RBI को अपनी विदेशी मुद्रा होल्डिंग्स में विविधता लाने का विकल्प मिलता है।
    • स्वर्ण एक सुरक्षित एवं तरल परिसंपत्ति है (इसे अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में पारदर्शी मूल्य पर सरलता से खरीदा और बेचा जा सकता है)।
    • इससे RBI को अपने भंडार के प्रबंधन हेतु लचीलापन और अतिरिक्त विकल्प उपलब्ध हो जाते हैं।
  • शक्ति और आत्मविश्वास: 
    • यह भारत की मज़बूत आर्थिक वृद्धि और अपनी वित्तीय परिसंपत्तियों की सुरक्षा करने की क्षमता को दर्शाएगा तथा भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिरता में विश्वास का संकेत देगा।
    • यह वर्ष 1991 के आर्थिक संकट के विपरीत है, जब भारत को विदेशी मुद्रा के लिये अपना स्वर्ण भंडार गिरवी रखना पड़ा था।
  • भंडारण शुल्क:
    • स्वर्ण को वापस लाने से बैंक ऑफ इंग्लैंड को भुगतान की जाने वाली भंडारण लागत समाप्त हो जाती है।

अर्थव्यवस्था में स्वर्ण का क्या महत्त्व है?

  • सीमित आपूर्ति एवं आंतरिक मूल्य: केंद्रीय बैंकों द्वारा इच्छानुसार मुद्रित की जाने वाली मुद्राओं के विपरीत, भूवैज्ञानिक सीमाओं के कारण स्वर्ण की आपूर्ति सीमित होती है।
    • यह दुर्लभता, इसके अद्वितीय भौतिक गुणों और ऐतिहासिक महत्त्व के साथ मिलकर स्वर्ण को अंतर्निहित महत्त्व प्रदान करती है।
  • मुद्रास्फीति के विरुद्ध बचाव:
    • स्वर्ण ने ऐतिहासिक रूप से मुद्रास्फीति के दौरान अपने महत्त्व को भलीभाँति बरकरार रखकर अच्छा प्रदर्शन किया है। वर्ष 2023 के विश्व स्वर्ण परिषद के अध्ययन में 50 वर्षों में स्वर्ण की कीमतों और अमेरिकी मुद्रास्फीति के बीच सकारात्मक संबंध पाया गया। यह मुद्रास्फीति के विरूद्ध बचाव हेतु  स्वर्ण को मूल्यवान बनाता है।
  • विविधीकरण और स्थिरता:
    • स्वर्ण देश के विदेशी भंडार में विविधता लाता है, एकल मुद्रा पर निर्भरता कम करता है तथा आर्थिक चुनौतियों के दौरान स्थिरता प्रदान करता है।
    • इसके अतिरिक्त, स्वर्ण भंडार रखना, अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों द्वारा किसी देश की अर्थव्यवस्था में विश्वास के संकेत के रूप में देखा जा सकता है।
  • आभूषण एवं सांस्कृतिक महत्त्व: 
    • आभूषणों में स्वर्ण की मांग वैश्विक स्तर पर, विशेषकर भारत और चीन जैसे कुछ क्षेत्रों में, मज़बूत बनी हुई है। 
    • इसके अतिरिक्त, स्वर्ण का कई समाजों में सांस्कृतिक महत्त्व है, जो इसके मूल्य एवं मांग को और अधिक प्रभावित कर सकता है।

विनिमय दर प्रबंधन की ऐतिहासिक व्यवस्था:

  • स्वर्ण मानक (1870-1914):
    • स्वर्ण का मूल्य प्रत्यक्ष रूप से मुद्राओं से संबंधित था। प्रत्येक देश अपनी मुद्रा को मज़बूती देने के लिये स्वर्ण भंडार संरक्षित करता था।
    • स्थिर त्विनिमय दरों ने अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को सरल और पूर्वानुमान योग्य बना दिया।
    • त्रुटियाँ:
      • सीमित स्वर्ण आपूर्ति के कारण आर्थिक विकास को पूर्ण करने के लिये मुद्रा आपूर्ति का विस्तार करना कठिन हो गया।
      • जब देशों में व्यापार घाटा हुआ तो उनके स्वर्ण भंडार में कमी आई, जिससे उनकी अर्थव्यवस्था को हानि पहुँची।
      • स्वर्ण की खोज या हानि से विनिमय दरों में अचानक उतार-चढ़ाव हो सकता है।
  • ब्रेटन वुड्स प्रणाली (1944-1971):
    • इसकी स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की गई थी और इसका उद्देश्य अधिक स्थिर एवं पूर्वानुमानित अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली का निर्माण करना था।
    • प्रमुख विशेषता:
      • आरक्षित मुद्रा के रूप में अमेरिकी डॉलर के साथ निश्चित विनिमय दरें। 
      • अन्य मुद्राएँ डॉलर से एक निश्चित दर पर जुड़ी हुई थीं।
      • 35 अमेरिकी डॉलर प्रति औंस की निर्धारित कीमत पर अमेरिकी मुद्रा को स्वर्ण में परिवर्तित किया जा सकेगा।
    • चुनौतियाँ:
      • ट्रिफिन दुविधा: विश्व अर्थव्यवस्था के विस्तार के कारण अमेरिका अपनी व्यवस्था को बनाये रखने के लिये अपने स्वर्ण भंडार को बनाये रखने में असमर्थ रहा।
      • अमेरिका के व्यापार घाटे के कारण स्वर्ण पर नियंत्रण बनाए रखने की उसकी क्षमता पर संदेह उत्पन्न हो गया।
  • वर्तमान परिदृश्य (विभिन्न शासन-काल-1971 के बाद):
    • आपूर्ति और मांग की बाज़ार शक्तियाँ विभिन्न प्रकार की व्यवस्थाओं के साथ विनिमय दरों का निर्धारण करती हैं।
    • अस्थिर और स्थिर विनिमय दरें:
      • निर्धारित दरें: कोई देश अपनी मुद्रा को किसी एक मज़बूत मुद्रा (जैसे, USD) या मुद्राओं की एक टोकरी से जोड़ता है।
      • डॉलरीकरण: कुछ देश अपनी मुद्रा को पूरी तरह से त्याग देते हैं और अमेरिकी डॉलर को अपना लेते हैं (जैसे, इक्वाडोर)। इससे विनिमय दर जोखिम समाप्त हो जाता है, लेकिन मौद्रिक नीति पर नियंत्रण छोड़ देता है।
  • विशेष आहरण अधिकार (Special Drawing Rights- SDRs):
    • विशेष आहरण अधिकार (SDR) को IMF ने स्वर्ण भंडार के पूरक के रूप में बनाया था। यह प्रमुख मुद्राओं की एक टोकरी है, जो सीधे स्वर्ण में परिवर्तनीय नहीं है।
    • स्वर्ण की कीमत मुक्त बाज़ार में आपूर्ति और मांग से निर्धारित होती है, न कि मुद्राओं से उसके संबंध से।

निष्कर्ष:

ब्रिटेन से 100 टन से अधिक स्वर्ण वापस अपने घरेलू भंडार में लाने का RBI का निर्णय एक महत्त्वपूर्ण रणनीतिक कदम है। यह केंद्रीय बैंक के लॉजिस्टिक दक्षता, विविध भंडारण और भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिरता में विश्वास पर ध्यान केंद्रित करने को दर्शाता है। यह कार्रवाई केंद्रीय बैंकों के बीच वैश्विक रुझानों के अनुरूप है, क्योंकि वे अनिश्चित समय के दौरान अपने विदेशी मुद्रा भंडार की सुरक्षा बढ़ाने का प्रयास करते हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा स्वर्ण भंडार में वृद्धि के पीछे के तर्क पर चर्चा कीजिये। साथ ही, भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था के संदर्भ में व्यापक आर्थिक स्थिरता के लिये स्वर्ण भंडार के महत्त्व का मूल्यांकन कीजिये।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. सरकार की 'संप्रभु स्वर्ण बॉण्ड  योजना (Sovereign Gold Bond Scheme)' एवं 'स्वर्ण मुद्रीकरण योजना (Gold Monetization Scheme)' का/के उद्देश्य क्या है/ हैं? (2016)

  1. भारतीय गृहस्थों के पास निष्क्रिय पड़े स्वर्ण को अर्थव्यवस्था में लाना
  2. स्वर्ण एवं आभूषण के क्षेत्र में एफ० डी० आई० (FDI) को प्रोत्साहित करना
  3. स्वर्ण-आयात पर भारत की निर्भरता में कमी लाना

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये-

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


प्रश्न. भारत की विदेशी मुद्रा आरक्षित निधि में निम्नलिखित में से कौन-सा एक मदसमूह सम्मिलित है? (2013)

(a) विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति, विशेष आहरण अधिकार (एस० डी० आर०) तथा विदेशों से ऋण
(b) विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा धारित स्वर्ण तथा विशेष आहरण अधिकार (एस० डी० आर०)
(c) विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति, विश्व बैंक से ऋण तथा विशेष आहरण अधिकार (एस० डी० आर०)
(d) विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा धारित स्वर्ण तथा विश्व बैंक से ऋण

उत्तर: (b)


प्रश्न. भारतीय सरकारी बॉण्ड प्रतिफल निम्नलिखित में से किससे/किनसे प्रभावित होता है/होते हैं? (2021)

  1. यूनाइटेड स्टेट्स फेडरल रिज़र्व की कार्रवाई
  2. भारतीय रिज़र्व बैंक की कार्रवाई
  3. मुद्रास्फीति एवं अल्पावधि ब्याज दर

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये-

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


लघुपक्षवाद का उदय

प्रिलिम्स के लिये:

हिंद-प्रशांत, स्क्वाड, विश्व व्यापार संगठन (WTO) फोरम-शॉपिंग, ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (TPP) क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership- RCEP) चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता (Quadrilateral Security Dialogue- Quad) त्रिपक्षीय सहयोग और निगरानी समूह (Trilateral Cooperation and Oversight Group- TCOG) 

मेन्स के लिये:

चीनी आक्रामकता, हिंद-प्रशांत, विश्व व्यापार संगठन (WTO), चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता (Quadrilateral Security Dialogue- Quad), बहुपक्षवाद, वैश्विक व्यवस्था, लघुपक्षवाद का महत्त्व और चुनौतियाँ

स्रोत: ORF

चर्चा में क्यों?

हाल ही में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीनी आक्रामकता के बढ़ने से स्क्वाड के गठन को बढ़ावा मिला है, जो “लघुपक्षवाद” (मिनिलैटरलिज़्म) के बढ़ते महत्त्व को उजागर करता है।

  • स्क्वाड एक बहुपक्षीय समूह है जिसमें अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और फिलीपींस जैसे देश शामिल हैं।

लघुपक्षवाद क्या है?

  • परिचय:
    • लघुपक्षता (मिनीलैटरल) से तात्पर्य अनौपचारिक और अधिक लक्षित पहल से है, जिसका उद्देश्य विशिष्ट खतरों, आकस्मिकताओं या सुरक्षा मुद्दों को संबोधित करना होता है तथा केवल कुछ देश ही (आमतौर पर तीन या चार) इसे सीमित अवधि के भीतर हल करने में समान रुचि रखते हैं।
    • ये व्यवस्थाएँ स्थायी या औपचारिक संस्थागत संरचना के बिना व्यापक समावेशिता के बजाय विशिष्ट उद्देश्य पर केंद्रित होती हैं।
    • लघुपक्षता के अंतर्गत परिणाम एवं प्रतिबद्धताएँ गैर-बाध्यकारी और स्वैच्छिक होती हैं, जो इसमें भाग लेने वाले राज्यों की इच्छा पर निर्भर करती हैं।

मिनिलेटरल ग्रुपिंग टाइप

हाल ही में सुर्खियों में आए संस्थानों के उदाहरण

भागीदारी आधारित बहुपक्षता

क्वाड; ऑस्ट्रेलिया-UK-US त्रिपक्षीय सुरक्षा तंत्र (AUKUS); ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप के लिये व्यापक और प्रगतिशील समझौता (CPTPP); भारत-जापान-ऑस्ट्रेलिया त्रिपक्षीय समझौता; भारत-इज़राइल-यूएई-यूएस तंत्र (I2U2)

सिंगल-पावर एलईडी मिनीलैटरल्स

बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI); लंकांग-मेकांग सहयोग

(LMC); मेकांग-यूएस भागीदारी (MUSP)

सेक्टोरल बहुपक्षता



डिजिटल अर्थव्यवस्था साझेदारी समझौता (DEPA); ब्रुनेई-

इंडोनेशिया-मलेशिया-फिलीपींस पूर्वी आसियान विकास क्षेत्र

(BIMP-EAGA)

मुद्दा-आधारित बहुपक्षता



जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन पार्टनरशिप (JETP); मलक्का स्ट्रेट्स

पैट्रोल्स (MSP); जापान-यूके-इटली ग्लोबल कॉम्बैट एयर प्रोग्राम

(GCAP)

  • लघुपक्षवाद के उदय के कारण:
    • विकासशील वैश्विक व्यवस्था और खतरों की बदलती प्रकृति ने स्थानीय संघर्षों एवं मुद्दों के समाधान में बहुपक्षीय ढाँचे की निरंतर प्रासंगिकता के लिये लगातार चुनौतियाँ उत्पन्न की हैं।
    • अमेरिकी वैश्विक नेतृत्त्व में असंगति और बहुध्रुवीय विश्व के उदय के साथ-साथ अमेरिका तथा चीन के मध्य भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता ने बहुपक्षीय संगठनों में मतभेद को प्रकट कर दिया है
    • विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization- WTO) जैसी वैश्विक संस्थाओं को बहुपक्षीय सदस्यता और परस्पर विरोधी प्राथमिकताओं के कारण जटिल मुद्दों पर आम सहमति बनाने में संघर्ष करना पड़ा है।
    • वैश्विक समस्याओं में क्षेत्रीय विविधताएँ हो सकती हैं। लघुपक्षीय संगठन किसी विशेष चुनौती का सामना कर रहे छोटे समूहों की ज़रूरतों के हिसाब से समाधान तैयार कर सकते हैं।
    • सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के सुधार से लघुपक्षवाद का विकास सरल हो गया है।
      • अनौपचारिक संचार विधियों ने राज्यों के लिये लचीले और लक्षित सहयोग में संलग्न होना सरल बना दिया है, जिससे लघुपक्षवाद के विकास को समर्थन मिला है।
    • कोविड-19 महामारी के प्रभाव ने रणनीतिक और लक्षित लघुपक्षवाद के उद्भव को बढ़ावा दिया है, जो आपूर्ति शृंखला लचीलापन सहित विभिन्न मुद्दों पर केंद्रित हैं।
  • बहुपक्षवाद के साथ तुलना:
    • बहुपक्षवाद में तीन या अधिक राज्यों द्वारा क्षेत्रीय या अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के साझा दृष्टिकोण के लिये नियमों और मानदंडों के संस्थागतकरण और अनुपालन के माध्यम से विश्वास का निर्माण करने तथा संघर्ष से बचने का औपचारिक प्रयास शामिल होता है।
    • विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization- WTO) जैसे बहुपक्षीय ढाँचे, लघुपक्षवाद की अधिक केंद्रित और लचीली प्रकृति के विपरीत, व्यापक और समावेशी भागीदारी पर ज़ोर देते हैं।
  • क्षेत्रीय संगठनों के साथ तुलना:
    • लघुपक्षवाद (Minilateralism) तात्कालिक, विशिष्ट मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करता है तथा लचीले, तदर्थ गठबंधन बनाता है, जैसे कि हिंद-प्रशांत सुरक्षा और आर्थिक चिंताओं के लिये क्वाड (Quad)।
    • क्षेत्रीय संगठन, यूरोपीय संघ (European Union-EU) जैसे संरचित और औपचारिक सहयोग के माध्यम से आर्थिक एकीकरण एवं सुरक्षा सहित व्यापक मुद्दों को संबोधित करते हैं।

स्क्वाड (Squad) और क्वाड (QUAD):

  • 'स्क्वाड' का गठन और भूमिका:
    • यह गठन विशेष रूप से चीनी और फिलीपीनी सेनाओं के बीच भौतिक टकराव को देखते हुए महत्त्वपूर्ण है, जिससे तनाव बढ़ गया है तथा फिलीपींस द्वारा आनुपातिक जवाबी कार्रवाई की मांग की गई है।
    • फिलीपींस की समुद्री सुरक्षा को बढ़ाने के लिये, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और फिलीपींस के रक्षा मंत्रियों ने समुद्री सहयोग को आगे बढ़ाने पर चर्चा करने के लिये हवाई में बैठक की। इस नए समूह को अनौपचारिक रूप से 'स्क्वाड' नाम दिया गया है।
    • इसका उद्देश्य दक्षिण चीन सागर (South China Sea- SCS) में चीनी आक्रामकता का मुकाबला करने के लिये सहयोगात्मक प्रयासों को मज़बूत करना है।
    • क्वाड के साथ तुलना:
      • अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत से मिलकर बने क्वाड का उद्देश्य व्यापक रूप से एक सुरक्षित एवं स्थिर हिंद-प्रशांत क्षेत्र सुनिश्चित करना है, जबकि 'स्क्वाड' विशेष रूप से दक्षिण चीन सागर में सुरक्षा गतिशीलता को संबोधित करता है।

लघुपक्षता के क्या लाभ हैं?

  • लघुपक्षता साझा हितों और मूल्यों के अनुसार कार्य करने वाले देशों के स्थिर ढाँचे को दरकिनार करने तथा आम चिंता के मुद्दों को हल करने की अनुमति देती है। उदाहरण के लिये, दक्षिण एशिया के कुछ देशों के मध्य बांग्लादेश-भूटान-भारत-नेपाल (BBIN) मोटर वाहन समझौते (MVA) की परिकल्पना की गई थी, यहाँ तक ​​कि SAARC भी इसी तरह की पहल करने में विफल रहा।
  • लघुपक्षता अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिये एक समुत्थानशील और मॉड्यूलर दृष्टिकोण प्रदान करती है। इन्हें विशिष्ट मुद्दों को संबोधित करने के लिये शीघ्रता से निर्मित किया जा सकता है और ये बहुपक्षीय ढाँचे की व्यापक औपचारिकताओं पर आधारित नहीं होते हैं।
  • लघुपक्षता की स्वैच्छिक और गैर-बाध्यकारी प्रकृति, देशों को त्वरित निर्णय लेने तथा बदलती परिस्थितियों के अनुकूल ढलने में सहायता करती है।
  • लघुपक्षता विशेष रूप से हिंद-प्रशांत जैसे क्षेत्रों में मुद्दा-विशिष्ट साझेदारी और रणनीतिक गठबंधन के निर्माण में सहायक है।
    • उदाहरणों के लिये इसमें चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता (Quad) और त्रिपक्षीय सहयोग एवं निरीक्षण समूह (Trilateral Cooperation and Oversight Group- TCOG) शामिल हैं, जो बड़े, अधिक औपचारिक संगठनों की तुलना में क्षेत्रीय सुरक्षा चिंताओं को अधिक प्रभावी ढंग से संबोधित करते हैं।
  • आपदाओं की स्थिति में, क्षेत्रीय लघुपक्षीय मंच प्रभावित देशों की सहायता के लिये तुरंत आगे आ सकते हैं।

लघुपक्षवाद से संबंधित मुद्दे क्या हैं?

  • लघुपक्षता से फोरम शॉपिंग को बढ़ावा मिल सकता है, महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँच सकता है तथा वैश्विक शासन में जवाबदेही कम हो सकती है।
    • कानूनी रूप से बाध्यकारी प्रतिबद्धताओं के बजाय स्वैच्छिक प्रतिबद्धताओं को बढ़ावा देकर, लघुपक्षीय देश अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों और मानकों के प्रवर्तन को कमज़ोर कर सकते हैं।
  • लघुपक्षता को प्राथमिकता देने से देशों के लिये बहुपक्षीय ढाँचे के साथ जुड़ने के प्रोत्साहन कम हो सकता है।
  • लघुपक्षवाद की सफलता सामान्यतः नेतृत्व, राजनीतिक इच्छाशक्ति और सदस्यों के बीच द्विपक्षीय संबंधों पर निर्भर करती है।
    • राजनीतिक नेतृत्व में परिवर्तन या तनावपूर्ण संबंध, लघुपक्षीय पहलों (Minilateral Initiatives) को कम या समाप्त कर सकते हैं, जैसा कि जापान और ऑस्ट्रेलिया में नेतृत्व परिवर्तन के कारण क्वाड की प्रारंभिक विफलता के दौरान देखा गया था।
  • लघुपक्षीय गठबंधनों का उन देशों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है जो वार्ता/समझौता में भाग नहीं लेते हैं, जिससे मौजूदा बहुपक्षीय प्रयासों में शामिल होने के लिये उनका प्रोत्साहन कम हो सकता है।
    • यह बात दोहा व्यापार वार्ता में देखी गई, जहाँ बहुपक्षीय पहलों पर ध्यान केंद्रित करने से व्यापक बहुपक्षीय प्रगति में बाधा उत्पन्न हुई।

नोट:

फोरम शॉपिंग तब होती है जब लोग विशिष्ट समूहों का चयन करते हैं, जहाँ वे उन स्थानों के अनुकूल नियमों या विशेषताओं के आधार पर अपनी नीतियों का विस्तार कर सकते हैं।

आगे की राह 

  • बहुपक्षीय एकीकरण: लघुपक्षवाद को बड़े बहुपक्षीय संगठनों के कार्यों को कमज़ोर करने के बजाय उनके प्रति पूरक दृष्टिकोण अपनाना चाहिये।  
  • दूरदर्शी दृष्टिकोण: यह समझने के लिये कि लघुपक्षवाद विभिन्न क्षेत्रों में सुरक्षा और रणनीतिक परिणामों को किस प्रकार प्रभावित करेंगे, दूरदर्शी दृष्टिकोण आवश्यक है।
    • लघुपक्षवाद संस्थाओं में बहुलता और विविधता सुनिश्चित करने से विभिन्न समूहों की आवश्यकताओं को पूरा करने तथा साझा हितों के मुद्दों का समाधान करने में मदद मिल सकती है।
    • उदाहरणतः क्षेत्र में सभी के लिये सुरक्षा और विकास (Security and Growth for All in the Region- SAGAR) के तहत भारत अपने समुद्री पड़ोसियों के साथ आर्थिक तथा सुरक्षा सहयोग को गहरा करना चाहता है एवं उनकी समुद्री सुरक्षा क्षमताओं के निर्माण में सहायता करना चाहता है।
  • स्पष्ट उद्देश्य: अपनी प्रभावशीलता को अधिकतम करने के लिये लघुपक्षवाद को ठोस और मापनीय उद्देश्य निर्धारित करने चाहिये।
    • यह दृष्टिकोण कूटनीति के एक उपकरण के रूप में उनकी भूमिका को बढ़ाएगा और बहुपक्षीय मंचों पर वार्ता को सुव्यवस्थित करने में सहायता करेगा।
    • 'स्क्वाड' और इसी तरह के लघुपक्षीय समूहों का उदय हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उभरते सुरक्षा परिदृश्य के लिये रणनीतिक अनुकूलन को दर्शाता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: समकालीन वैश्विक शासन में लघुपक्षवाद की प्रासंगिकता का आकलन कीजिये। इसके लाभ और सीमाओं पर चर्चा कीजिये।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से किस समूह के सभी चारों देश G20 के सदस्य हैं? (2020)

(a) अर्जेंटीना, मैक्सिको, दक्षिण अफ्रीका और तुर्की
(b)
ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, मलेशिया और न्यूज़ीलैंड
(c)
ब्राज़ील, ईरान, सऊदी अरब और वियतनाम
(d)
इंडोनेशिया, जापान, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया

उत्तर: (a)


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)

  1. न्यू डेवलपमेंट बैंक की स्थापना APEC द्वारा की गई है। 
  2. न्यू डेवलपमेंट बैंक का मुख्यालय शंघाई में है।

उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b)
केवल 2
(c)
1 और 2 दोनों
(d)
न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. 'मोतियों के हार' (द स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स) से आप क्या समझते हैं? यह भारत को किस प्रकार प्रभावित करता है? इसका सामना करने के लिये भारत द्वारा उठाए गए कदमों की संक्षिप्त रूपरेखा दीजिये। (2013)