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भारतीय अर्थव्यवस्था

ग्रेशम का नियम और मुद्रा विनिमय दर

  • 15 Sep 2023
  • 13 min read

स्रोत: द हिंदू 

प्रिलिम्स के लिये:

स्थिर विनिमय दर, चल और प्रबंधित चल विनिमय दर, ब्रेटन वुड्स सम्मेलन,  श्रीलंकाई संकट- 2022, मुद्रास्फीति

मेन्स के लिये :

स्थिर विनिमय दरों के फायदे और नुकसान, निश्चित विनिमय दरों के विकल्प

चर्चा में क्यों? 

ग्रेशम का नियम, जिसका श्रेय अंग्रेज़ फाइनेंसर थॉमस ग्रेशम को दिया जाता है, श्रीलंका में वर्ष 2022 के आर्थिक संकट का एक महत्त्वपूर्ण कारक था। यह संकट श्रीलंका के सेंट्रल बैंक द्वारा श्रीलंकाई रुपए और अमेरिकी डॉलर के बीच एक स्थिर विनिमय दर को लागू करने के कारण उत्पन्न हुआ था। 

ग्रेशम का नियम:

  • ग्रेशम का नियम एक मौद्रिक सिद्धांत है जो बताता है कि "बुरी मुद्रा अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है"। बुरी मुद्रा वह मुद्रा है जिसका मूल्य उसके अंकित मूल्य के बराबर या उससे कम है। अच्छी मुद्रा में उसके अंकित मूल्य से अधिक मूल्य की संभावना होती है।
    • इसका मतलब यह है कि यदि एक उच्च आंतरिक मूल्य के साथ और एक कम आंतरिक मूल्य के साथ दो प्रकार की मुद्राएँ प्रचलन में हैं, तो लोग अधिक मूल्यवान धन जमा करेंगे और कम मूल्यवान धन व्यय करेंगे।
      • परिणामस्वरूप कम मूल्यवान मुद्रा बाज़ार पर हावी हो जाएगी, जबकि अधिक मूल्यवान मुद्रा प्रचलन से गायब हो जाएगी।
    • यह नियम तब लागू होता है जब सरकार दो मुद्राओं के बीच विनिमय दर तय करती है, जिससे आधिकारिक दर और बाज़ार दर के बीच असमानता उत्पन्न होती है।
      • यह न केवल कागज़ी मुद्राओं पर बल्कि कमोडिटी मुद्राओं और अन्य वस्तुओं पर भी लागू होता है।
  • ग्रेशम के नियम के क्रियान्वयन के उदाहरण:
    • ग्रेशम का नियम श्रीलंका के आर्थिक संकट के दौरान तब महत्त्वपूर्ण मुद्दा बन गया जब देश के सेंट्रल बैंक द्वारा श्रीलंकाई रुपए और अमेरिकी डॉलर के बीच एक स्थिर विनिमय दर निर्धारित की गई। 
      • अनौपचारिक बाज़ार दरों से पता चलता है कि अमेरिकी डॉलर का मूल्य बहुत अधिक है, इसके बावजूद सरकार ने एक अमेरिकी डॉलर के लिये 200 श्रीलंकाई रुपए की स्थिर दर पर ज़ोर दिया।
      • इसके कारण श्रीलंकाई रुपए को वास्तव में उससे अधिक मूल्यवान माना जाने लगा और अमेरिकी डॉलर का बाज़ार दरों के अनुसार कम मूल्यांकन किया गया।
    • परिणामस्वरूप आधिकारिक विदेशी मुद्रा बाज़ार में कम अमेरिकी डॉलर उपलब्ध थे और व्यक्तियों ने आधिकारिक लेन-देन में उनका उपयोग करने से बचना शुरू कर दिया।
  • ग्रेशम के नियम की विषमता:
    • ग्रेशम के नियम के विपरीत थियर्स का नियम एक ऐसी घटना पर प्रकाश डालता है जहाँ "अच्छी मुद्रा, बुरी मुद्रा को प्रचलन से बाहर कर देती है।" मुक्त विनिमय दर के माहौल में लोग उच्च-गुणवत्ता वाली मुद्राओं को पसंद करते हैं और जिन्हें वे निम्नतर मानते हैं उन मुद्राओं को धीरे-धीरे त्याग देते हैं ।
      • हाल के वर्षों में निजी क्रिप्टोकरेंसी (अच्छी मुद्रा) के उदय को प्रायः इस उदाहरण के रूप में उद्धृत किया जाता है कि कैसे सुप्रसिद्ध, निजी मुद्रा उत्पादक सरकार द्वारा जारी मुद्राओं (बुरी मुद्रा) को विस्थापित कर सकते हैं।

स्थिर विनिमय दर(Fixed Exchange Rate):

  • परिचय: 
    •  निश्चित विनिमय दर, जिसे अधिकीलित विनिमय दर (Pegged Exchange Rate) भी कहा जाता है, किसी सरकार या केंद्रीय बैंक द्वारा लागू एक व्यवस्था है जो देश की आधिकारिक मुद्रा विनिमय दर को दूसरे देश की मुद्रा या सोने की कीमत से जोड़ती है।
      •  स्थिर विनिमय दर प्रणाली का उद्देश्य मुद्रा के मूल्य को एक संकीर्ण दायरे में रखना है।
  • इतिहास: 
    • वर्ष 1944 में हुए ब्रेटन वुड्स सम्मेलन ने अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक प्रणाली की स्थापना की, जो स्थिर विनिमय दरों की विशेषता थी। 
      • सम्मेलन में भाग लेने वाले देश अपनी मुद्राओं को अमेरिकी डॉलर से जोड़ने पर सहमत हुए, जिसे 35 अमेरिकी डॉलर प्रति औंस की निश्चित दर पर सोने में परिवर्तित किया जा सकता था।
    • इसका उद्देश्य स्थिरता को बढ़ावा देना और मुद्राओं के प्रतिस्पर्द्धी अवमूल्यन को रोकना था, जिसने महामंदी एवं द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान आर्थिक अस्थिरता में योगदान दिया था।
  • पतन:
    •  ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में स्थापित स्थिर विनिमय दर प्रणाली का पतन निरंतर व्यापार असंतुलन, मुद्रास्फीति, स्पेक्यूलेटिव अटैक्स(किसी देश की मुद्रा की बड़े पैमाने पर और अचानक बिक्री), विनिमय दर समायोजन की कमी और घटते अमेरिकी सोने के भंडार के कारण हुआ था।
    • वर्ष 1971 में "निक्सन शॉक्स", जिसमें अमेरिकी डॉलर की सोने में परिवर्तनीयता को निलंबित करना शामिल था, ने प्रणाली के पतन को चिह्नित किया।
    • इसने प्रमुख मुद्राओं को परिवर्तनीय विनिमय दरों (Floating Exchange Rates) में परिवर्तित कर दिया, जिससे आर्थिक स्थितियों के जवाब में लचीलेपन की अनुमति मिली।

स्थिर विनिमय दरों के लाभ और हानियाँ:

  • लाभ:
    • मूल्य स्थिरता: स्थिर विनिमय दरें मूल्य स्थिरता प्रदान कर सकती हैं। यह स्थिरता उच्च मुद्रास्फीति दर या अस्थिर मुद्रा वाले देशों के लिये विशेष रूप से लाभदायक हो सकती है।
    • कम लेन-देन लागत: एक निश्चित विनिमय दर प्रणाली में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में लगे व्यवसायों को मुद्रा-संबंधित लेन-देन लागतों जैसे- मुद्रा रूपांतरण शुल्क और विनिमय दर जोखिम प्रबंधन खर्चों का कम सामना करना पड़ सकता है।
    • निवेशक का विश्वास: निश्चित विनिमय दरें निवेशकों का विश्वास बढ़ा सकती हैं। स्थिर मुद्रा वाले देश में निवेशकों द्वारा पूंजी लगाने की अधिक संभावना होती है, जिससे पूंजी की लागत कम हो जाती है और संभावित रूप से आर्थिक विकास में तेज़ी आती है।
  • हानि:
    • मौद्रिक नीति की स्वायत्तता की हानि: एक महत्त्वपूर्ण कमी यह है कि स्थिर विनिमय दरों को अपनाने वाले देश अपनी मौद्रिक नीति पर नियंत्रण छोड़ देते हैं।
      • अधिकीलित विनिमय दर को बनाए रखने के लिये उन्हें एंकर मुद्रा की नीतियों के अनुसार ब्याज दरों और धन आपूर्ति को समायोजित करने की आवश्यकता हो सकती है, जो उनकी घरेलू आर्थिक आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं हो सकती है।
    • संभावित हमले: निश्चित विनिमय दर प्रणालियाँ सट्टा हमलों के प्रति संवेदनशील हो सकती हैं।
      • यदि निवेशकों को लगता है कि किसी देश की मुद्रा का मूल्य अधिक है, तो वे बड़े पैमाने पर सेल ऑफ कर सकते हैं, जिससे केंद्रीय बैंक को अधिकीलित विनिमय दर  बनाए रखने के लिये अपने विदेशी मुद्रा भंडार को समाप्त करने हेतु मजबूर होना पड़ेगा।
    • बाहरी निर्भरता: निश्चित विनिमय दर प्रणालियाँ किसी देश के भविष्य को एंकर मुद्रा जारीकर्त्ता की स्थिरता और नीतियों से जोड़ती हैं।
      • यदि एंकर मुद्रा को समस्याओं का सामना करना पड़ता है, तो इसका असर संबंधित देश के विनिमय दर पर भी पड़ सकता है।

स्थिर विनिमय दरों के विकल्प:

  • फ्लोटिंग विनिमय दर: इसे लचीली विनिमय दर के रूप में भी जाना जाता है, यह एक ऐसी प्रणाली है जहाँ मुद्रा का मूल्य विदेशी मुद्रा बाज़ार में आपूर्ति और मांग से निर्धारित होता है।
    • इस प्रणाली में विनिमय दर में लगातार उतार-चढ़ाव हो सकता है और आधिकारिक तौर पर यह किसी अन्य मुद्रा या वस्तु से जुड़ी या तय नहीं की जाती है।
    • फ्लोटिंग विनिमय दरें मुद्राओं को आर्थिक स्थितियों, व्यापार असंतुलन और बाज़ार की ताकतों के लिये स्वतंत्र रूप से समायोजित करने की अनुमति देती हैं।
      • उदाहरण: कनाडा और ऑस्ट्रेलिया।
  • प्रबंधित फ्लोट (Managed Float): प्रबंधित फ्लोटिंग विनिमय दर (Managed Float Exchange Rate), जिसे डर्टी फ्लोट भी कहा जाता है, एक ऐसी प्रणाली है जहाँ किसी देश का केंद्रीय बैंक या सरकार अपनी मुद्रा के मूल्य को प्रभावित करने के लिये कभी-कभी विदेशी मुद्रा बाज़ार में हस्तक्षेप करती है।
    • जबकि विनिमय दर में कुछ हद तक परिवर्तन संभव है, अधिकारी कुछ आर्थिक लक्ष्यों के जवाब में इसके मूल्य को स्थिर करने या प्रबंधित करने या अत्यधिक अस्थिरता को रोकने के लिये अपनी मुद्रा खरीद या बेच सकते हैं।
      उदाहरण: भारत और चीन।

  UPSC  सिविल सेवा परीक्षा,  विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारतीय रुपए के अवमूल्यन को रोकने के लिये सरकार/RBI द्वारा निम्नलिखित में से कौन सा सबसे संभावित उपाय नहीं है? (2019)

(a) गैर-आवश्यक वस्तुओं के आयात पर अंकुश लगाना और निर्यात को बढ़ावा देना।
(b) भारतीय उधारकर्ताओं को रुपया मूल्यवर्ग मसाला बॉण्ड जारी करने के लिये प्रोत्साहित करना।
(c) बाहरी वाणिज्यिक उधार से संबंधित शर्तों को आसान बनाना।
(d) विस्तारवादी मौद्रिक नीति का अनुसरण।

उत्तर: (d) 


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:(2021)

  1. किसी मुद्रा के अवमूल्यन का प्रभाव यह होता है कि वह आवश्यक रूप से:
  2. विदेशी बाज़ारों में घरेलू निर्यात की प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार करता है। 
  3.  घरेलू मुद्रा के विदेशी मूल्य को बढ़ाता है।  
  4. व्यापार संतुलन में सुधार करता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 3
(d) केवल 2 और 3

उत्तर: (a)  


मेन्स:

प्रश्न. विश्व व्यापार में संरक्षणवाद और मुद्रा चालबाज़ियों की हाल की घटनाएँ भारत की समष्टि आर्थिक स्थिरता को किस प्रकार से प्रभावित करेंगी? ( 2018)

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