जैव विविधता और पर्यावरण
मीथेन उत्सर्जन से निपटने के लिये विश्व बैंक की योजना
प्रिलिम्स के लिये:मीथेन, COP-28, सिकोइया क्लाइमेट फाउंडेशन, बेज़ोस अर्थ फंड, ग्लोबल वार्मिंग पोटेंशियल (GWP), सल्फर हेक्साफ्लोराइड, विश्व बैंक, ग्लोबल मीथेन रिडक्शन प्लेटफॉर्म फॉर डेवलपमेंट (CH4D), ग्लोबल फ्लेयरिंग एंड मीथेन रिडक्शन पार्टनरशिप (GFMR) मेन्स के लिये:मीथेन उत्सर्जन के कारण पर्यावरणीय क्षरण तथा संधारणीयता पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
मीथेन उत्सर्जन के बढ़ते खतरे से निपटने के प्रयास में विश्व बैंक ने अपने निवेश जीवन अवधि के दौरान 10 मिलियन टन तक मीथेन को कम करने के लिये कई देशों के नेतृत्व वाले कार्यक्रमों की एक शृंखला शुरू करने की योजना की घोषणा की है।
मीथेन उत्सर्जन से संबंधित विश्व बैंक की योजना क्या है?
- योजना की आवश्यकता:
- वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (GHG) में मीथेन का योगदान लगभग 19% है जो इसे जलवायु परिवर्तन में प्रमुख योगदानकर्त्ता बनाता है।
- चावल उत्पादन में 8%, पशुधन में 32% तथा सभी मानव-चालित मीथेन उत्सर्जन में 18% अपशिष्ट शामिल है, जिससे इन क्षेत्रों में लक्षित प्रयास महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं।
- मीथेन में कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में बहुत अधिक ग्लोबल वार्मिंग क्षमता (GWP) है।
- ग्रह पर ऊष्मा उत्पन्न करने के मामले में मीथेन कार्बन डाइऑक्साइड से 80 गुना अधिक शक्तिशाली है, इसके बावजूद इस पर कम ध्यान देने के साथ ही कम धन आवंटन किया जाता है।
- विश्व बैंक की योजना:
- विश्व बैंक की योजना अगले 18 महीनों के भीतर कम-से-कम 15 देशों के नेतृत्व वाले कार्यक्रम शुरू करना है।
- विश्व बैंक के अनुसार, यह कदम वैश्विक तापमान में चिंताजनक वृद्धि को कम करने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति सबसे संवेदनशील समुदायों का समर्थन करने की दिशा में उठाया गया है।
- ये कार्यक्रम विशेष रूप से मीथेन उत्सर्जन को लक्षित करेंगे, पर्यावरणीय गिरावट को रोकने और संधारणीय प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिये रणनीतिक हस्तक्षेपों को नियोजित करेंगे।
- विश्व बैंक का ट्रिपल विन दृष्टिकोण:
- महत्त्वाकांक्षी कार्यक्रम चावल उत्पादन, पशुधन संचालन और अपशिष्ट प्रबंधन सहित विभिन्न स्रोतों से मीथेन उत्सर्जन को कम करने पर केंद्रित होंगे।
- विश्व बैंक द्वारा मीथेन कटौती के लिये उल्लिखित व्यापक दृष्टिकोण ट्रिपल विन- उत्सर्जन को कम करना, लचीलापन बढ़ाना और आजीविका को सशक्त बनाने पर बल देता है।
- विश्व बैंक की योजना अगले 18 महीनों के भीतर कम-से-कम 15 देशों के नेतृत्व वाले कार्यक्रम शुरू करना है।
- निधीयन तंत्र:
- वर्तमान में मीथेन उपशमन के लिये कुल वित्त वैश्विक जलवायु वित्त का 2% से भी कम है।
- विश्व बैंक ने वर्ष 2024 से वर्ष 2030 के दौरान सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के चैनलों के माध्यम से मीथेन कटौती के लिये वित्तपोषण में पर्याप्त वृद्धि की कल्पना की है।
- संस्था प्रभावी समाधान उपायों को लागू करने और संपूर्ण ऊर्जा मूल्य शृंखला में मीथेन उत्सर्जन को कम करने के लिये जर्मनी, नॉर्वे, संयुक्त राज्य अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात तथा निजी क्षेत्र के साथ सहयोग करने के लिये तैयार है।
- साझेदारी प्लेटफॉर्म:
- अपने प्रयासों को क्रियान्वित करते हुए विश्व बैंक दो साझेदारी मंच लॉन्च कर रहा है:
- ग्लोबल मीथेन रिडक्शन प्लेटफॉर्म फॉर डेवलपमेंट (CH4D) कृषि और अपशिष्ट में मीथेन में कमी लाने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
- ग्लोबल फ्लेयरिंग एंड मीथेन रिडक्शन पार्टनरशिप (GFMR) तेल और गैस क्षेत्र में मीथेन के रिसाव को कम करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है।
- अपने प्रयासों को क्रियान्वित करते हुए विश्व बैंक दो साझेदारी मंच लॉन्च कर रहा है:
ग्लोबल वार्मिंग क्षमता (GWP):
- GWP इस बात का परिमाण है कि कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) की तुलना में कोई ग्रीनहाउस गैस एक विशिष्ट समय अवधि, आमतौर पर 100 वर्षों में वातावरण में कितनी हिट ट्रैप करती है।
- इसका उपयोग ग्लोबल वार्मिंग पर विभिन्न ग्रीनहाउस गैसों के संभावित प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिये किया जाता है। GWP वायुमंडल में उष्मा को अवशोषित करने और इसे बनाए रखने की उनकी क्षमता के आधार पर विभिन्न गैसों के वार्मिंग प्रभावों की तुलना करने में सहायक है।
- कार्बन डाइऑक्साइड 1 परिमाण के GWP वाली एक रेफरेंस/संदर्भ गैस है। अन्य ग्रीनहाउस गैसों, जैसे- मीथेन (CH4) और नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) की GWP अधिक होती है क्योंकि वे उष्मा को ट्रैप करने में अधिक प्रभावी होते हैं।
- जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) विभिन्न गैसों के लिये GWP मान प्रदान करता है। यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि GWP मान तुलना के लिये चयनित समय (Time Horizon) के आधार पर भिन्न हो सकते हैं।
मीथेन उत्सर्जन से निपटने के लिये क्या पहलें की गई हैं?
- भारतीय:
- 'हरित धरा' (HD): भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने एक एंटी-मिथेनोजेनिक फीड पूरक 'हरित धरा' (HD) विकसित किया है, जो मवेशियों के मीथेन उत्सर्जन को 17-20% तक कम कर सकता है और इसके परिणामस्वरूप उच्च दुग्ध उत्पादन भी हो सकता है।
- भारत ग्रीनहाउस गैस कार्यक्रम: WRI इंडिया (गैर-लाभकारी संगठन), भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) और द एनर्जी एंड रिसोर्सेज़ इंस्टीट्यूट (TERI) के नेतृत्व में भारत GHG कार्यक्रम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का आकलन करने और इसे प्रबंधित करने के लिये एक उद्योग-आधारित स्वैच्छिक ढाँचा है।
- जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAPCC): इसे भारत में जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिये वर्ष 2008 में लॉन्च किया गया। इसका उद्देश्य जन प्रतिनिधियों, सरकार की विभिन्न एजेंसियों, वैज्ञानिकों, उद्योग और जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न खतरों तथा इन परिवर्तनों का मुकाबला करने हेतु भारत के स्तर पर प्रस्तावित कदमों के आधार पर समुदाय के बीच जागरूकता पैदा करना है।
- भारत स्टेज-VI मानदंड: भारत, भारत स्टेज-IV (BS-IV) से भारत स्टेज-VI (BS-VI) उत्सर्जन मानदंडों में स्थानांतरित हो गया।
- वैश्विक स्तर पर:
- मीथेन चेतावनी और प्रतिक्रिया प्रणाली (MARS):
- MARS बड़ी संख्या में मौजूदा और भविष्य के उपग्रहों से डेटा को एकीकृत करेगा जो विश्व में कहीं भी मीथेन उत्सर्जन की घटनाओं का पता लगाने की क्षमता रखता है तथा इस पर कार्रवाई करने के लिये संबंधित हितधारकों को सूचनाएँ भेजता है।
- वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा :
- वर्ष 2021 में ग्लासगो जलवायु सम्मेलन (UNFCCC COP-26) में वर्ष 2030 तक मीथेन उत्सर्जन को वर्ष 2020 के स्तर से 30% तक कम करने के लिये लगभग 100 राष्ट्र एक स्वैच्छिक प्रतिज्ञा में शामिल हुए थे, जिसे ग्लोबल मीथेन प्रतिज्ञा के रूप में जाना जाता है।
- वैश्विक मीथेन पहल (GMI):
- यह एक अंतर्राष्ट्रीय सार्वजनिक-निजी साझेदारी है जो स्वच्छ ऊर्जा स्रोत के रूप में मीथेन की पुनर्प्राप्ति और उपयोग में आने वाली बाधाओं को कम करने पर केंद्रित है।
- मीथेन चेतावनी और प्रतिक्रिया प्रणाली (MARS):
मीथेन उत्सर्जन को कम करने हेतु क्या उपाय किये जा सकते हैं?
- ऊर्जा क्षेत्र में: मीथेन उत्सर्जन संपूर्ण तेल और गैस आपूर्ति शृंखला के साथ घटित होता है, लेकिन इसमें विशेष रूप से उपकरणों के कारण लीकेज, सिस्टम में गड़बड़ी और जान-बूझकर फ्लेयरिंग और वेंटिंग से होने वाले क्षणिक उत्सर्जन शामिल हैं।
- मौजूदा लागत प्रभावी समाधान उत्सर्जन को कम करने में मदद कर सकते हैं। इसमें लीक डिटेक्शन एंड रिपेयर कार्यक्रम शुरू करना, बेहतर प्रौद्योगिकियों एवं परिचालन अभ्यासों को लागू करना और मीथेन की ज़ब्ती एवं उपयोग करना शामिल हैं जो अन्यथा बर्बाद हो जाएगा।
- कृषि क्षेत्र में: किसान पशुओं को अधिक पौष्टिक चारा प्रदान कर सकते हैं ताकि वे बड़े, स्वस्थ और अधिक उत्पादक हों और इस प्रकार कम लागत में प्रभावी ढंग से अधिक उत्पादन किया जा सके।
- जब धान-चावल जैसी प्रमुख फसलों की बात आती है, तो विशेषज्ञ वैकल्पिक रूप से गीला करने और सुखाने के तरीकों की सलाह देते हैं जो उत्सर्जन को आधा कर सकते हैं।
- खेतों में लगातार जल बनाए रखने के बजाय पूरे फसल मौसम में दो-तीन बार सिंचाई और अपवाह का प्रयोग किया जा सकता है जिससे उपज को प्रभावित किये बिना मीथेन उत्पादन को सीमित किया जा सकता है।
- इस प्रक्रिया में एक-तिहाई कम जल की आवश्यकता होगी, जिससे यह अधिक किफायती हो जाएगा।
- खेतों में लगातार जल बनाए रखने के बजाय पूरे फसल मौसम में दो-तीन बार सिंचाई और अपवाह का प्रयोग किया जा सकता है जिससे उपज को प्रभावित किये बिना मीथेन उत्पादन को सीमित किया जा सकता है।
- जब धान-चावल जैसी प्रमुख फसलों की बात आती है, तो विशेषज्ञ वैकल्पिक रूप से गीला करने और सुखाने के तरीकों की सलाह देते हैं जो उत्सर्जन को आधा कर सकते हैं।
- अपशिष्ट क्षेत्र में: अपशिष्ट क्षेत्र वैश्विक मानव-जनित मीथेन उत्सर्जन में लगभग 20% योगदान करते हैं।
- लागत-प्रभावी शमन उपाय (जहाँ आर्गेनिक पदार्थों के पृथक्करण और पुनर्चक्रण में व्यापक संभावनाएँ निहित हैं) नए रोज़गार पैदा करने की भी क्षमता रखते हैं।
- खाद्य क्षति और अपव्यय से बचना भी महत्त्वपूर्ण है।
- इसके अतिरिक्त लैंडफिल गैस को एकत्र करने और ऊर्जा पैदा करने से मीथेन उत्सर्जन कम होगा, अन्य प्रकार के ईंधन विस्थापित होंगे और राजस्व की नए अवसर सृजित होंगे।
- लागत-प्रभावी शमन उपाय (जहाँ आर्गेनिक पदार्थों के पृथक्करण और पुनर्चक्रण में व्यापक संभावनाएँ निहित हैं) नए रोज़गार पैदा करने की भी क्षमता रखते हैं।
- सरकार की भूमिका: भारत सरकार को अपने नागरिकों के लिये खाद्यान्न उत्पादन और उपभोग करने में मदद के लिये एक खाद्य प्रणाली परिवर्तन नीति विकसित करनी चाहिये।
- साइलो में काम करने के बजाय सरकार को एक व्यापक नीति विकसित करनी चाहिये जो किसानों को पौधे-आधारित खाद्य उत्पादन के स्थायी तरीकों की ओर ले जाए।
- औद्योगिक पशुधन उत्पादन और उससे जुड़े इनपुट से सब्सिडी को हटाना और रोज़गार सृजन, सामाजिक न्याय, गरीबी में कमी, पशु संरक्षण एवं बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य को एक ही समाधान के कई पहलुओं के रूप में देखना।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. ‘मीथेन हाइड्रेट’ के निक्षेपों के बारे में निम्नलिखित में से कौन-से कथन सही हैं? (2019) 1. भूमंडलीय तापन के कारण इन निक्षेपों से मीथेन गैस का निर्मुक्त होना प्रेरित हो सकता है। नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) प्रश्न: निम्नलिखित पर विचार कीजिये: 1. कार्बन मोनोक्साइड फसल/जैव मात्रा के अवशेषों के दहन के कारण वायुमंडल में उपर्युक्त में से कौन-से निर्मुक्त होते हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) |
शासन व्यवस्था
हाशिये पर रहने वाले समुदाय हेतु निशुल्क डिजिटल उपकरण
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, PM ई-विद्या, आत्मनिर्भर भारत अभियान, ज्ञान साझा करने के लिये डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर (दीक्षा), डिजिटल रूप से सुलभ सूचना प्रणाली (DAISY), CBSE पॉडकास्ट- शिक्षा वाणी, साथी पोर्टल मेन्स के लिये:हाशिये पर रहने वाले समुदायों को निःशुल्क डिजिटल उपकरण प्रदान करने के सरकारी कदम का महत्त्व |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
हाल ही में शिक्षा राज्य मंत्री ने लोकसभा में एक लिखित जवाब में हाशिये पर रहने वाले समुदायों को मुफ्त में डिजिटल उपकरण प्रदान करने के लिये सरकार द्वारा किये गए उपायों के बारे में विवरण प्रदान किया।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में डिजिटल बुनियादी ढाँचे, ऑनलाइन शिक्षण प्लेटफॉर्म और टूल, वर्चुअल लैब, डिजिटल रिपॉजिटरी, ऑनलाइन मूल्यांकन, ऑनलाइन शिक्षण, शिक्षण के लिये प्रौद्योगिकी तथा शिक्षण क्षेत्र आदि में निवेश का आह्वान किया गया है।
हाशिये के समुदायों को डिजिटल उपकरण उपलब्ध कराने हेतु क्या सरकारी पहलें मौजूद हैं?
- PM ई-विद्या:
- परिचय:
- 17 मई, 2020 को ‘PM ई-विद्या’ नामक एक व्यापक पहल को आत्मनिर्भर भारत अभियान के हिस्से के रूप में शुरू किया गया था।
- यह शिक्षा के लिये मल्टी-मोड एक्सेस को सक्षम करने हेतु डिजिटल/ऑनलाइन/ ऑन-एयर शिक्षा से संबंधित सभी प्रयासों को एकीकृत करती है।
- PM ई-विद्या पहल सभी राज्यों के छात्रों के लिये निःशुल्क उपलब्ध है।
- PM ई-विद्या के प्रमुख घटक:
- ज्ञान साझा करने हेतु डिजिटल बुनियादी ढाँचा (DIKSHA): DIKSHA राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में स्कूली शिक्षा के लिये गुणवत्तापूर्ण ई-सामग्री और सभी ग्रेडों हेतु क्यूआर कोड से लैस प्रभावशाली पाठ्यपुस्तकें प्रदान करने वाला देश का डिजिटल बुनियादी ढाँचा है।
- DIKSHA पोर्टल और मोबाइल एप: इसे शिक्षा मंत्रालय द्वारा राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों और राष्ट्रीय स्तर के संगठनों द्वारा बड़ी संख्या में ई-पुस्तकों और ई-सामग्री के भंडार के रूप में बनाया गया है।
- PM e-VIDYA DTH TV चैनल: वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिये केंद्रीय बजट की घोषणा के अनुसार, 12 DTH चैनलों को 200 PM e-VIDYA DTH TV चैनलों तक विस्तारित किया गया है, ताकि सभी राज्य कक्षा एक से बारह तक विभिन्न भारतीय भाषाओं में पूरक शिक्षा प्रदान कर सकें।
- CBSE पॉडकास्ट- शिक्षा वाणी: रेडियो, कम्युनिटी रेडियो और CBSE पॉडकास्ट "शिक्षा वाणी" के व्यापक उपयोग को सक्रिय रूप से प्रोत्साहित करना।
- डिजिटली सुगम्य सूचना प्रणाली (DAISY): दृष्टिबाधितों और श्रवणबाधितों के लिये विशेष ई-सामग्री DAISY और NIOS वेबसाइट/यूट्यूब पर सांकेतिक भाषा में विकसित की गई है।
- वर्चुअल लैब और कौशल ई-लैब: महत्त्वपूर्ण आलोचनात्मक सोच, कौशल को बढ़ावा देने और रचनात्मकता के लिये वर्ष 2023 तक 750 वर्चुअल लैब और 75 स्किलिंग ई-लैब स्थापित करने का प्रस्ताव है।
- वर्चुअल लैब कक्षा 6-12वीं हेतु विज्ञान और गणित विषयों के लिये प्रस्तावित हैं और स्किलिंग ई-लैब एक अनुरूपित शिक्षण वातावरण प्रदान करेगी।
- DIKSHA प्लेटफॉर्म पर ही वर्चुअल लैब्स को लेकर एक वर्टिकल बनाया गया है।
- ज्ञान साझा करने हेतु डिजिटल बुनियादी ढाँचा (DIKSHA): DIKSHA राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में स्कूली शिक्षा के लिये गुणवत्तापूर्ण ई-सामग्री और सभी ग्रेडों हेतु क्यूआर कोड से लैस प्रभावशाली पाठ्यपुस्तकें प्रदान करने वाला देश का डिजिटल बुनियादी ढाँचा है।
- परिचय:
- समग्र शिक्षा:
- समग्र शिक्षा की केंद्र प्रायोजित योजना के ICT और डिजिटल पहल घटक में छठी से बारहवीं कक्षा वाले सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूल शामिल हैं।
- साथी पोर्टल:
- देश भर में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों की सहायता के लिये आईआईटी कानपुर के सहयोग से एक SATHEE पोर्टल विकसित किया गया है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारतीय संविधान के निम्नलिखित में से कौन-से प्रावधान शिक्षा पर प्रभाव डालते हैं? (2012)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. भारत में डिजिटल पहल ने किस प्रकार से देश की शिक्षा व्यवस्था के संचालन में योगदान किया है? विस्तृत उत्तर दीजिये। (2020) प्रश्न. जनसंख्या शिक्षा के मुख्य उद्देश्यों की विवेचना करते हुए भारत में इन्हें प्राप्त करने के उपायों पर विस्तृत प्रकाश डालिये। (2021) |
सामाजिक न्याय
भारत में अपराध पर NCRB रिपोर्ट 2022
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो, संज्ञेय अपराध, राजद्रोह, दुर्घटनावश मृत्यु और आत्महत्याएँ मेन्स के लिये:भारत में अपराध की स्थिति और संबंधित मुद्दे, विभिन्न प्रकार के अपराधों को संबोधित करने में कानूनी ढाँचे की प्रभावशीलता |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) ने हाल ही में "2022 के दौरान भारत में अपराध (Crime in India for 2022)" शीर्षक से अपनी वार्षिक रिपोर्ट जारी की है, जो देश भर में अपराध के रुझानों का एक व्यापक अवलोकन प्रदान करती है।
भारत में अपराध पर NCRB रिपोर्ट 2022 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- समग्र अपराध आँकड़े:
- कुल 58,00,000 से अधिक संज्ञेय अपराध दर्ज किये गए, जिनमें भारतीय दंड संहिता (IPC) तथा विशेष और स्थानीय कानून (SLL) के तहत यानी दोनों प्रकार के अपराध शामिल थे।
- वर्ष 2021 की तुलना में मामलों के पंजीकरण में 4.5% की गिरावट देखी गई।
- कुल 58,00,000 से अधिक संज्ञेय अपराध दर्ज किये गए, जिनमें भारतीय दंड संहिता (IPC) तथा विशेष और स्थानीय कानून (SLL) के तहत यानी दोनों प्रकार के अपराध शामिल थे।
- अपराध दर में गिरावट:
- प्रति लाख जनसंख्या पर अपराध दर वर्ष 2021 के 445.9 से घटकर 2022 में 422.2 हो गई।
- कुल अपराध संख्या पर जनसंख्या वृद्धि के प्रभाव को देखते हुए इस गिरावट को अधिक विश्वसनीय संकेतक माना जाता है।
- प्रति लाख जनसंख्या पर अपराध दर वर्ष 2021 के 445.9 से घटकर 2022 में 422.2 हो गई।
- सबसे सुरक्षित शहर:
- महानगरों में प्रति लाख जनसंख्या पर सबसे कम संज्ञेय अपराध दर्ज करते हुए कोलकाता लगातार तीसरे वर्ष भारत का सबसे सुरक्षित शहर बनकर उभरा है।
- पुणे (महाराष्ट्र) और हैदराबाद (तेलंगाना) ने क्रमशः दूसरा एवं तीसरा स्थान हासिल किया।
- महानगरों में प्रति लाख जनसंख्या पर सबसे कम संज्ञेय अपराध दर्ज करते हुए कोलकाता लगातार तीसरे वर्ष भारत का सबसे सुरक्षित शहर बनकर उभरा है।
- साइबर अपराधों में वृद्धि:
- साइबर अपराध रिपोर्टिंग में वर्ष 2021 के 52,974 मामलों में 24.4% की एक महत्त्वपूर्ण वृद्धि के साथ कुल 65,893 मामले दर्ज हुए हैं।
- पंजीकृत मामलों में अधिकांश साइबर धोखाधड़ी के मामले (64.8%) शामिल हैं, इसके बाद ज़बरन वसूली (5.5%) और यौन शोषण (5.2%) के मामले आते हैं।
- इस श्रेणी के तहत अपराध दर वर्ष 2021 के 3.9 से बढ़कर वर्ष 2022 में 4.8 हो गई।
- आत्महत्याएँ और कारण:
- 2022 में भारत में आत्महत्याओं में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई, कुल 1.7 लाख से अधिक मामले 2021 की तुलना में 4.2% की चिंताजनक वृद्धि को दर्शाते हैं।
- आत्महत्या दर में भी 3.3% की वृद्धि हुई, जिसकी गणना प्रति लाख जनसंख्या पर आत्महत्याओं की संख्या के रूप में की जाती है।
- प्रमुख कारणों में 'पारिवारिक समस्याएँ,' 'विवाह संबंधी समस्याएँ,' दिवालियापन और ऋणग्रस्तता, 'बेरोज़गारी एवं पेशेवर मुद्दे' तथा बीमारी' शामिल हैं।
- आत्महत्या के सबसे अधिक मामले महाराष्ट्र में दर्ज़ किये गए, इसके बाद तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, केरल और तेलंगाना का स्थान है।
- आत्महत्या के कुल मामलों में दैनिक वेतन भोगियों की हिस्सेदारी 26.4% थी।
- कृषि श्रमिक और किसान भी असमान रूप से प्रभावित हुए, जो आत्महत्या के आँकड़ों का एक बड़ा हिस्सा है।
- इसके बाद बेरोज़गार व्यक्तियों का स्थान है, जो वर्ष 2022 में भारत में दर्ज आत्महत्या के सभी मामलों में से 9.2% थे। वर्ष में दर्ज कुल आत्महत्या के मामलों में 12,000 से अधिक छात्र शामिल थे।
- अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के खिलाफ बढ़ते अपराध:
- भारत में अपराध रिपोर्ट में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) व्यक्तियों के खिलाफ अपराधों एवं अत्याचारों में समग्र वृद्धि पर प्रकाश डाला गया है।
- राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना जैसे राज्यों में वर्ष 2022 में ऐसे मामलों में वृद्धि देखी गई।
- मध्य प्रदेश और राजस्थान प्रमुख योगदानकर्त्ताओं के रूप में बने हुए हैं, जो एससी और एसटी समुदायों के खिलाफ अपराध एवं अत्याचार की सबसे अधिक घटनाओं वाले शीर्ष पाँच राज्यों में लगातार प्रमुख स्थान पर हैं।
- ऐसे अपराधों के उच्च स्तर वाले अन्य राज्यों में बिहार, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और पंजाब शामिल हैं।
- भारत में अपराध रिपोर्ट में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) व्यक्तियों के खिलाफ अपराधों एवं अत्याचारों में समग्र वृद्धि पर प्रकाश डाला गया है।
- महिलाओं के विरुद्ध अपराध:
- वर्ष 2022 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल 4,45,256 मामले दर्ज किये गए, जो वर्ष 2021 की तुलना में 4% अधिक हैं।
- प्रमुख श्रेणियों में 'पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता,' 'महिलाओं का अपहरण' और 'महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुँचाने के इरादे से उन पर हमला' जैसे मामले शामिल हैं।
- बच्चों के विरुद्ध अपराध:
- बच्चों के विरुद्ध अपराध के मामलों में वर्ष 2021 की तुलना में 8.7% की वृद्धि देखी गई।
- इनमें से अधिकांश मामले अपहरण (45.7%) से संबंधित थे और 39.7% मामले यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम के तहत दर्ज किये गए थे।
- बच्चों के विरुद्ध अपराध के मामलों में वर्ष 2021 की तुलना में 8.7% की वृद्धि देखी गई।
- वरिष्ठ नागरिकों के विरुद्ध अपराध:
- वर्ष 2021 में वरिष्ठ नागरिकों के विरुद्ध अपराध के 26,110 मामले थे जिनमें 9.3% की बढ़ोतरी के साथ ये 28,545 हो गए।
- इनमें से अधिकांश मामले (27.3%) चोट/घात के बाद चोरी (13.8%) तथा जालसाज़ी, छल और धोखाधड़ी (11.2%) से संबंधित हैं।
- वर्ष 2021 में वरिष्ठ नागरिकों के विरुद्ध अपराध के 26,110 मामले थे जिनमें 9.3% की बढ़ोतरी के साथ ये 28,545 हो गए।
- जानवरों द्वारा किये गए हमलों में वृद्धि:
- NCRB रिपोर्ट में जानवरों के हमलों के कारण मरने वाले अथवा घायल होने वाले लोगों की संख्या में चिंताजनक प्रवृत्ति का पता चलता है।
- वर्ष 2021 की तुलना में वर्ष 2022 में ऐसी घटनाओं में 19% की उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई।
- महाराष्ट्र में सबसे अधिक मामले दर्ज किये गए, इसके बाद उत्तर प्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़ एवं मध्य प्रदेश में विभिन्न संख्या में संबंधित मामले दर्ज किये गए।
- इसके आतिरिक्त जानवरों/सरीसृपों तथा कीटों के काटने के मामलों में भी 16.7% की वृद्धि हुई।
- उक्त के काटने के सबसे अधिक मामले राजस्थान में, उसके बाद क्रमशः मध्य प्रदेश, तमिलनाडु तथा उत्तर प्रदेश में दर्ज किये गए।
- NCRB रिपोर्ट में जानवरों के हमलों के कारण मरने वाले अथवा घायल होने वाले लोगों की संख्या में चिंताजनक प्रवृत्ति का पता चलता है।
- पर्यावरण संबंधी अपराध:
- भारत में पर्यावरण संबंधी अपराधों की कुल संख्या में वर्ष 2021 की तुलना में वर्ष 2022 में लगभग 18% की कमी आई है।
- पर्यावरण संबंधी अपराधों में सात अधिनियमों के तहत उल्लंघन शामिल हैं:
- वन अधिनियम, 1927, वन संरक्षण अधिनियम, 1980, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972, पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986, वायु (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1981, जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974, ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम, 2000, राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010
- पर्यावरण संबंधी अपराधों में सात अधिनियमों के तहत उल्लंघन शामिल हैं:
- वायु (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 और जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के उल्लंघन के लिये दर्ज मामलों में लगभग 42% की वृद्धि हुई है।
- पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत पंजीकृत उल्लंघनों में भी लगभग 31% की वृद्धि हुई है।
- आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र और हरियाणा में वन संबंधी अपराधों की संख्या बढ़ी है।
- बिहार, पंजाब, मिज़ोरम, राजस्थान और उत्तराखंड सहित पाँच राज्यों में वन्यजीव संबंधी अपराध बढ़े हैं।
- देश में वन्यजीव अपराध के मामलों की अधिकतम संख्या (30%) वाले राजस्थान में वर्ष 2021 की तुलना में वर्ष 2022 में ऐसे अपराधों में 50% की वृद्धि दर्ज की गई।
- भारत में पर्यावरण संबंधी अपराधों की कुल संख्या में वर्ष 2021 की तुलना में वर्ष 2022 में लगभग 18% की कमी आई है।
- राज्य के विरुद्ध अपराध:
- विगत वर्ष की तुलना में वर्ष 2022 में राज्य के विरुद्ध हुए अपराधों में सामान्य वृद्धि देखी गई।
- इस अवधि के दौरान विधि विरुद्ध क्रिया-कलाप निवारण अधिनियम (UAPA) के तहत दर्ज मामलों में लगभग 25% की वृद्धि हुई।
- इसके विपरीत IPC की राजद्रोह धारा के तहत मामलों में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई।
- राजद्रोह के मामलों में कमी का श्रेय मई 2022 में राजद्रोह के मामलों को प्रास्थगन/स्थगित रखने के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को दिया जा सकता है।
- विगत वर्ष की तुलना में वर्ष 2022 में राज्य के विरुद्ध हुए अपराधों में सामान्य वृद्धि देखी गई।
- आर्थिक अपराधों में वृद्धि:
- आर्थिक अपराधों को आपराधिक विश्वासघात, जालसाज़ी, छल तथा धोखाधड़ी (Forgery, Cheating, Fraud- FCF) तथा कूटकरण (Counterfeiting) में वर्गीकृत किया गया है।
- FCF के अधिकांश मामले (1,70,901 मामले) देखे गए, इसके बाद आपराधिक विश्वासघात (21,814 मामले) तथा कूटकरण (670 मामले) के अपराध थे।
- क्राइम इन इंडिया रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि सरकारी अधिकारियों ने वर्ष 2022 में कुल 342 करोड़ रुपए से अधिक के जाली भारतीय मुद्रा नोट (Fake Indian Currency Notes- FICN) ज़ब्त किये।
- आर्थिक अपराधों को आपराधिक विश्वासघात, जालसाज़ी, छल तथा धोखाधड़ी (Forgery, Cheating, Fraud- FCF) तथा कूटकरण (Counterfeiting) में वर्गीकृत किया गया है।
- विदेशियों के विरुद्ध अपराध:
- विदेशियों के खिलाफ 192 मामले दर्ज किये गए जो वर्ष 2021 के 150 मामलों से 28% अधिक है।
- 56.8% पीड़ित एशियाई महाद्वीप से थे, जबकि 18% अफ्रीकी देशों से थे।
- विदेशियों के खिलाफ 192 मामले दर्ज किये गए जो वर्ष 2021 के 150 मामलों से 28% अधिक है।
- उच्चतम आरोपपत्र दर:
- IPC अपराधों के तहत उच्चतम आरोपपत्र दर वाले राज्य केरल, पुद्दुचेरी और पश्चिम बंगाल हैं।
- आरोप पत्र दायर करने की दर उन मामलों को दर्शाती है जहाँ पुलिस कुल सही मामलों (जहाँ आरोपपत्र दायर नहीं किया गया था लेकिन अंतिम रिपोर्ट को सही के रूप में प्रस्तुत किया गया था) में से आरोपियों के खिलाफ आरोप तय करने के चरण तक पहुँच गई थी।
- IPC अपराधों के तहत उच्चतम आरोपपत्र दर वाले राज्य केरल, पुद्दुचेरी और पश्चिम बंगाल हैं।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो क्या है?
- NCRB की स्थापना केंद्रीय गृह मंत्रालय के अंतर्गत वर्ष 1986 में इस उद्देश्य से की गई थी कि भारतीय पुलिस में कानून व्यवस्था को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिये पुलिस तंत्र को सूचना प्रौद्योगिकी समाधान और आपराधिक गुप्त सूचनाएँ प्रदान कर समर्थ बनाया जा सके।
- यह राष्ट्रीय पुलिस आयोग (1977-1981) और गृह मंत्रालय के कार्य बल (1985) की सिफारिशों के आधार पर स्थापित किया गया था।
- यह गृह मंत्रालय का हिस्सा है और इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है।
- यह भारतीय और विदेशी अपराधियों के फिंगरप्रिंट रिकॉर्ड करने के लिये "नेशनल वेयरहाउस" के रूप में भी कार्य करता है, और फिंगरप्रिंट खोज के माध्यम से अंतर-राज्यीय अपराधियों का पता लगाने में सहायता करता है।
- NCRB के चार प्रभाग हैं: अपराध और आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क एवं सिस्टम (CCTNS), अपराध सांख्यिकी, फिंगरप्रिंट और प्रशिक्षण।
- NCRB के प्रकाशन:
- क्राइम इन इंडिया रिपोर्ट
- आकस्मिक मृत्यु और आत्महत्या
- जेल सांख्यिकी
- भारत में गुमशुदा महिलाओं और बच्चों पर रिपोर्ट
- ये प्रकाशन न केवल पुलिस अधिकारियों के लिये बल्कि भारत में ही नहीं विदेशों में भी अपराध विशेषज्ञों, शोधकर्त्ताओं, मीडिया तथा नीति निर्माताओं हेतु अपराध आँकड़ों पर प्रमुख संदर्भ बिंदु के रूप में काम करते हैं।
जैव विविधता और पर्यावरण
तटीय क्षरण
प्रिलिम्स के लिये: राष्ट्रीय तटीय अनुसंधान केंद्र, समुद्री प्रदूषण, तटीय प्रक्रियाएँ और खतरे, तटीय आवास और पारिस्थितिकी तंत्र, समुद्र-स्तर में वृद्धि, आपदा प्रबंधन, तटीय क्षेत्र प्रबंधन योजनाएँ, बाढ़ प्रबंधन योजना, तटीय प्रबंधन सूचना प्रणाली मेन्स के लिये: तटीय क्षरण और तटीय पारिस्थितिकी तंत्र पर इसका प्रभाव |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री ने लोकसभा में एक लिखित उत्तर में राष्ट्रीय तटीय अनुसंधान केंद्र (NCCR) द्वारा संचालित वर्ष 1990 से वर्ष 2016 तक बहु-वर्णक्रमीय उपग्रह चित्रों तथा क्षेत्र-सर्वेक्षण डेटा से संपूर्ण भारतीय तटरेखा में हुए परिवर्तन पर अंतर्दृष्टि साझा की।
- NCCR, भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय का एक संलग्न कार्यालय है जिसे केंद्रीय डोमेन के तहत सभी बहु-विषयक अनुसंधान करने के लिये अनिवार्य किया गया है जिनमें समुद्री प्रदूषण, तटीय प्रक्रियाएँ और खतरे, तटीय आवास तथा पारिस्थितिकी तंत्र एवं क्षमता निर्माण व प्रशिक्षण शामिल हैं।
तटीय क्षरण के संबंध में NCCR की प्रमुख टिप्पणियाँ क्या हैं?
- प्राकृतिक कारणों अथवा मानवजनित गतिविधियों के कारण भारत की तटरेखा के कुछ हिस्से विभिन्न डिग्री के क्षरण के अधीन हैं।
- तटरेखा विश्लेषण से पता चलता है कि 34% तट का क्षरण हो रहा है, 28% साथ-साथ बढ़ भी रहा है तथा 38% स्थायी स्थिति में है।
- राज्य-वार विश्लेषण से पता चलता है कि पश्चिम बंगाल (63%) तथा पांडिचेरी (57%) तटों पर क्षरण 50% से अधिक है जिसके बाद केरल (45%) एवं तमिलनाडु (41%) हैं।
- ओडिशा (51%) एकमात्र तटीय राज्य है जहाँ 50% से अधिक अभिवृद्धि देखी गई है।
- तटरेखा के पीछे हटने के कारण भूमि/आवास और मछुआरों की आजीविका को नुकसान होगा, साथ ही नावों को खड़ा करने, जाल सुधारने तथा मछली पकड़ने जैसी गतिविधियों के लिये जगह नहीं बचेगी।
तटीय कटाव से निपटने हेतु क्या सरकारी उपाय किये गए हैं?
- खतरे की रेखा: पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने देश के तटों के लिये खतरे की रेखा का निर्धारण किया है।
- खतरे की रेखा जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र के स्तर में वृद्धि सहित तटरेखा परिवर्तन का संकेत है।
- इस लाइन का उपयोग तटीय राज्यों में एजेंसियों द्वारा अनुकूली और शमन उपायों की योजना सहित आपदा प्रबंधन के लिये एक उपकरण के रूप में किया जाना है।
- तटीय क्षेत्र प्रबंधन योजनाएँ: MoEFCC द्वारा अनुमोदित तटीय राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों की नई तटीय क्षेत्र प्रबंधन योजनाओं में खतरे की रेखा शामिल है।
- तटीय विनियमन क्षेत्र अधिसूचना, 2019: MoEFCC ने तटीय हिस्सों, समुद्री क्षेत्रों के संरक्षण और सुरक्षा तथा मछुआरों एवं अन्य स्थानीय समुदायों के लिये आजीविका सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से तटीय विनियमन क्षेत्र अधिसूचना, 2019 को अधिसूचित किया है।
- हालाँकि तटीय नियम तट पर कटाव/क्षरण नियंत्रण उपाय सुनिश्चित करने की अनुमति देते हैं।
- नो डेवलपमेंट ज़ोन (NDZ): अधिसूचना भारत के समुद्र तट को अतिक्रमण और क्षरण से बचाने के लिये तटीय क्षेत्रों की विभिन्न श्रेणियों के साथ NDZ का भी प्रावधान करती है।
- बाढ़ प्रबंधन योजना: यह योजना जल शक्ति मंत्रालय की है, जिसमें राज्यों की प्राथमिकताओं के अनुसार राज्य सरकारों द्वारा अपने स्वयं के संसाधनों के साथ समुद्री क्षरण-प्रतिरोधी योजनाओं की योजना और कार्यान्वयन शामिल है।
- केंद्र सरकार राज्यों को तकनीकी, सलाहकारी, उत्प्रेरक और प्रचारात्मक सहायता प्रदान करती है।
- तटीय प्रबंधन सूचना प्रणाली (CMIS):
- इसे केंद्रीय क्षेत्र योजना ‘जल संसाधन सूचना प्रणाली के विकास’ के तहत शुरू किया गया है।
- CMIS एक डेटा संग्रह गतिविधि है किजिसके तहत निकट समुद्र तटीय क्षेत्र का डेटा इकट्ठा करना शामिल है, इसका उपयोग सुभेद्य तटीय हिस्सों में साइट विशिष्ट तटीय सुरक्षा संरचनाओं की योजना, डिज़ाइन, निर्माण और रखरखाव में किया जा सकता है।
- समुद्र तटीय क्षरण का शमन: ये उपाय पुद्दुचेरी और केरल के चेल्लानम में किये गए हैं, जिससे पुद्दुचेरी में क्षरित तटीय क्षेत्रों और चेल्लानम में बाढ़ के कारण नष्ट हुए मत्स्यन वाले गाँव के तटीय क्षेत्रों की बहाली और सुरक्षा में मदद मिली।
- सुभेद्य हिस्सों में तटीय सुरक्षा उपायों के डिज़ाइन और तटरेखा प्रबंधन योजनाओं की तैयारी में तटीय राज्यों को तकनीकी सहायता प्रदान की गई है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत में मृदा अपक्षय समस्या निम्नलिखित में से किससे/किनसे संबंधित है/हैं? 1. वेदिका कृषि नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b)
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जैव विविधता और पर्यावरण
ग्लोबल क्लाइमेट 2011-2020: WMO
प्रिलिम्स के लिये:विश्व मौसम विज्ञान संगठन, ग्लोबल क्लाइमेट 2011-2020: डिकेड ऑफ एक्सीलिरेशन, अल-नीनो घटना, ग्रीनहाउस गैस (GHG), समुद्री हीटवेव, हिमनद मेन्स के लिये:ग्लोबल क्लाइमेट 2011-2020: WMO, पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organization- WMO) ने संपूर्ण ग्रह पर जलवायु परिवर्तन के खतरनाक त्वरण तथा इसके बहुमुखी प्रभावों के संबंध में एक रिपोर्ट प्रकाशित की है, जिसका शीर्षक ग्लोबल क्लाइमेट 2011-2020: डिकेड ऑफ एक्सीलिरेशन है।
रिपोर्ट से संबंधित प्रमुख बिंदु क्या हैं?
- तापमान के रुझान:
- 2011-2020 का दशक भूमि तथा महासागर दोनों के लिये रिकॉर्ड स्तर पर सबसे गर्म दशक के रूप में उभरा।
- वैश्विक औसत तापमान 1850-1900 के औसत से 1.10 ± 0.12 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया है जो 1990 के दशक के बाद से प्रत्येक दशक में गर्मी पिछले दशक से अधिक रही है।
- कई देशों में रिकॉर्ड स्तर पर उच्च तापमान दर्ज किया गया, वर्ष 2016 (अल-नीनो घटना के कारण) तथा वर्ष 2020 सबसे गर्म वर्षों के रूप में सामने आए।
- ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन:
- प्रमुख ग्रीनहाउस गैसों (GHG) की वायुमंडलीय सांद्रता में वृद्धि जारी रही, विशेष रूप से CO2, 2020 में 413.2 ppm तक पहुँच गई, जो मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधन के दहन और भूमि-उपयोग परिवर्तनों के कारण थी।
- इस दशक में CO2 की औसत वृद्धि दर में वृद्धि देखी गई, जो जलवायु को स्थिर करने के लिये स्थायी उत्सर्जन में कमी की तत्काल आवश्यकता को उजागर करती है।
- समुद्री परिवर्तन:
- महासागर के गर्म होने की दर में काफी तेज़ी आई, 90% संचित ऊष्मा समुद्र में जमा हो गई। वर्ष 2006-2020 तक ऊपरी 2000 मीटर की गहराई में वार्मिंग दर दोगुनी हो गई, जिससे समुद्री पारिस्थितिक तंत्र प्रभावित हुआ।
- CO2 अवशोषण के कारण महासागर के अम्लीकरण ने समुद्री जीवों के लिये चुनौतियाँ पैदा कीं, जिससे उनके खोल और कंकाल का निर्माण प्रभावित हुआ।
- समुद्री गर्म लहरें और समुद्र स्तर में वृद्धि:
- समुद्री हीटवेव की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि हुई, जिससे वर्ष 2011 और 2020 के बीच समुद्र सतह लगभग 60% प्रभावित हुआ।
- वर्ष 2011-2020 तक वैश्विक औसत समुद्र स्तर में 4.5 मिमी/वर्ष की वृद्धि हुई, जिसका मुख्य कारण समुद्र का गर्म होना और बर्फ के बड़े पैमाने पर नुकसान है।
- ग्लेशियर और हिम परत का नुकसान:
- वर्ष 2011 और 2020 के बीच वैश्विक स्तर पर ग्लेशियर लगभग 1 मीटर प्रतिवर्ष की कमी देखी गई, जिससे अभूतपूर्व जनहानि हुई, इससे पानी की आपूर्ति प्रभावित हुई।
- वर्ष 2001-2010 की तुलना में ग्रीनलैंड और अंटार्कटिक में हिम परत में 38% से अधिक की गिरावट आई, जिसने समुद्र के स्तर में वृद्धि में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
- आर्कटिक सागर में बर्फ का कम होना:
- ग्रीष्म मौसम के दौरान आर्कटिक समुद्री बर्फ में पिघलना जारी रहा, जिसका औसत मौसमी न्यूनतम स्तर 1981-2010 के औसत से 30% कम था।
- ओज़ोन छिद्र और सफलताएँ:
- वर्ष 2011-2020 की अवधि में अंटार्कटिक ओज़ोन छिद्र कम हो गया, जिसका श्रेय मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के तहत सफल अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई को दिया गया है।
- इन प्रयासों के कारण ओज़ोन-क्षयकारी पदार्थों से समताप मंडल में प्रवेश करने वाले क्लोरीन में कमी आई है ।
- सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) पर प्रभाव:
- चरम मौसम की घटनाओं ने SDG की प्रगति में बाधा उत्पन्न की, जिससे खाद्य सुरक्षा, मानव गतिशीलता और सामाजिक आर्थिक विकास प्रभावित हुआ है।
- प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों में सुधार से प्रभावित लोगों की संख्या में कमी आई है, लेकिन चरम मौसम की घटनाओं से आर्थिक नुकसान बढ़ गया है।
- 2011-2020 का दशक 1950 के बाद पहला दशक था जब 10,000 या उससे अधिक मौतों वाली एक भी अल्पकालिक घटना नहीं हुई थी।
जलवायु और विकास लक्ष्यों पर कार्रवाई को मुख्यधारा में लाने के लिये WMO की सिफारिशें क्या हैं?
- अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और उनके भागीदारों के साथ सहयोग के माध्यम से वर्तमान एवं भविष्य के वैश्विक संकटों के खिलाफ सामूहिक समुत्थानशीलता को बढ़ाना।
- सहक्रियात्मक कार्रवाई को आगे बढ़ाने के लिये विज्ञान-नीति-समाज संपर्क को मज़बूत करना।
- विशेष रूप से वैश्विक दक्षिण/ग्लोबल साउथ के लिये राष्ट्रीय, संस्थागत और व्यक्तिगत स्तरों पर संस्थागत क्षमता निर्माण एवं क्रॉस-सेक्टरल व अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना।
- राष्ट्रीय, उप-राष्ट्रीय और बहु-राष्ट्रीय स्तरों पर जलवायु एवं विकास सहक्रियाओं को बढ़ाने के लिये सभी क्षेत्रों और विभागों के नीति निर्माताओं के बीच नीतिगत सुसंगतता एवं समन्वय सुनिश्चित करना।
WMO क्या है?
- परिचय:
- यह 192 सदस्य राष्ट्रों और क्षेत्रों की सदस्यता वाला एक अंतर-सरकारी संगठन है। भारत भी इसका एक सदस्य है।
- इसका गठन अंतर्राष्ट्रीय मौसम विज्ञान संगठन (IMO) से हुआ, जिसकी स्थापना वर्ष 1873 वियना अंतर्राष्ट्रीय मौसम विज्ञान काॅन्ग्रेस के बाद की गई थी।
- स्थापना:
- 23 मार्च, 1950 को WMO कन्वेंशन के अनुसमर्थन द्वारा स्थापित WMO मौसम विज्ञान (मौसम और जलवायु), परिचालन जल विज्ञान तथा संबंधित भू-भौतिकी विज्ञान के लिये संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसी बन गई।
- मुख्यालय:
- जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड