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भारतीय अर्थव्यवस्था

सार्वजनिक बैंकों में धोखाधड़ी के मामले

  • 26 Dec 2020
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (Public Sector Banks- PSBs) द्वारा लोन से जुड़े खातों की समीक्षा की जा रही है, इसके कारण उन खातों, जिन्हें पहले पूर्व चेतावनी संकेत प्रणाली (EWS) के तहत रखा गया था में अधिक धोखाधड़ी के मामले सामने आने की आशंका है ।

  • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा  बैंकिंग धोखाधड़ी के बारे में पता लगाने और इसकी रिपोर्ट करने में देरी को देखते हुए EWS फ्रेमवर्क को विकसित किया गया था।
  • EWS ढाँचे का उद्देश्य बैंक धोखाधड़ी से जुड़े अपराधों को रोकना और उनका पता लगाना, नियामकों को समय पर रिपोर्ट करना तथा कर्मचारियों द्वारा जवाबदेही की कार्यवाही शुरू करना है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि बैंकों के संचालन और ज़ोखिम उठाने की क्षमता प्रभावित न हो।

प्रमुख बिंदु:

डेटा विश्लेषण:

  • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा पर्यवेक्षण और सतर्कता को सख्त किये जाने के बावजूद वर्ष 2019-20 के दौरान बैंकों और वित्तीय संस्थानों द्वारा रिपोर्ट किये गए धोखाधड़ी (1 लाख रूपए और उससे अधिक राशि) के कुल मामलों में संख्या के अनुसार 28% तथा मूल्य के अनुसार 159% की वृद्धि हुई है।
  • RBI की वार्षिक रिपोर्ट 2020 के अनुसार, मार्च 2019 में धोखाधड़ी के कुल मामलों की संख्या 6,799 (71,543 करोड़ रुपए की राशि के साथ) थी, जबकि वर्ष 2020 में धोखाधड़ी के मामलों की संख्या बढ़कर 8,707 (1,85,644 करोड़ रुपए की राशि के साथ) हो गई है।
  • बैंकिंग धोखाधड़ी के सर्वाधिक मामले सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSBs) में देखे गए। इन बैंकों में 1,48,400 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी के साथ कुल 4,413 मामले दर्ज किये गए, जबकि निजी बैंकों में 34,211 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी के साथ कुल 3,066 मामले दर्ज किये गए।

वर्तमान स्थिति: 

  • बड़े खातों के मामले में जहाँ भी ऐसे उदाहरण मिलते हैं धोखाधड़ी की रिपोर्ट की जाएगी और उनके खिलाफ 100% प्रतिबंध लगाया जाएगा।
    • बैंकों ने पर्याप्त रूप से बैलेंस शीट का प्रावधान किया है कि नहीं, यह सुनिश्चित करने के लिये भी इनकी गहन समीक्षा की जा रही है।
  • RBI ने यह भी संकेत दिया है कि वर्ष 2019-20 के दौरान दर्ज धोखाधड़ी वास्तव में वर्ष 2010 से 2014 के दौरान स्वीकृत ऋण के मामलों में हुई थी।
    • वर्ष 2019-20 के दौरान बैंकों और वित्तीय संस्थानों द्वारा धोखाधड़ी तथा उनके बारे में जानकारी मिलने की तारीख के बीच औसत अंतराल 24 माह का था।
    • धोखाधड़ी के बड़े मामलों (यानी 100 करोड़ रुपए और उससे अधिक की धोखाधड़ी) में औसत अंतराल 63 माह का था।
  • इन खातों में भिन्नता तथा अन्य मुद्दों की पहचान फोरेंसिक ऑडिट और जाँच के बाद की गई है।
    • RBI निधियों के अपयोजन (Diversion of Funds) को लंबी अवधि के लिये अल्पावधि कार्यशील पूंजी कोषों के उपयोग, न कि मंज़ूरी की शर्तों के अनुरूप; जिन उद्देश्यों के लिये ऋण स्वीकृत किया गया था उनके अलावा अन्य उद्देश्यों/गतिविधियों में उधार लिये गए धन को लगाने; और उधार लिये गए धन को सहायक कंपनियों/समूह की कंपनियों या अन्य कॉरपोरेट्स को हस्तांतरित करने के रूप में परिभाषित करता है।

कारण:

  • बैंकों द्वारा EWS का कमज़ोर कार्यान्वयन।
  • आंतरिक ऑडिट के दौरान EWS का पता न लगना।
    • आंतरिक ऑडिट में एक कंपनी के आंतरिक नियंत्रण का मूल्यांकन किया जाता है, जिसमें कंपनी के कॉर्पोरेट प्रशासन और लेखा प्रक्रियाएँ शामिल होती हैं।
    • ये कानूनों और नियमों का अनुपालन सुनिश्चित करते हैं तथा साथ ही समयबद्ध एवं सटीक वित्तीय रिपोर्टिंग व डेटा संग्रह बनाए रखने में मदद करते हैं।
  • फोरेंसिक ऑडिट के दौरान उधारकर्त्ताओं का असहयोग।
    • फोरेंसिक ऑडिट एक फर्म या व्यक्ति के वित्तीय रिकॉर्ड का परीक्षण और मूल्यांकन है जो ऐसे साक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये किया जाता है जिसका उपयोग कानूनी कार्यवाही  के दौरान या न्यायालय में किया जा सकता है।
  • अयोग्य ऑडिट रिपोर्ट।
  • संयुक्त उधारदाताओं की बैठकों के दौरान निर्णय लेने की क्षमता में कमी।

नियंत्रित करने के उपाय:

  • जाँच के दायरे में आने वाले उधारकर्त्ता खातों का समय पर और निर्णायक फोरेंसिक ऑडिट एवं समवर्ती ऑडिट फंक्शन के सुदृढ़ीकरण के साथ-साथ EWS तंत्र को मज़बूत किया जा रहा है।
  • धोखाधड़ी की निगरानी और पहचान में सुधार के लिये RBI द्वारा विभिन्न डेटाबेस और सूचना प्रणालियों को जोड़ने का कार्य किया जा रहा है।
  • गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC)  द्वारा धोखाधड़ी की ऑनलाइन रिपोर्टिंग और ‘अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों’ (Scheduled Commercial Banks- SCB) के केंद्रीय धोखाधड़ी रजिस्ट्री (CFR)  पोर्टल की नई संवर्द्धित सुविधाओं के साथ जनवरी 2021 तक चालू होने की संभावना है।
    • RBI द्वारा CFR की शुरुआत की गई है, जो बैंकों को उधार लेने वालों द्वारा की गई धोखाधड़ी के मामलों का जल्दी पता लगाने में मदद करने के लिये एक प्रकार का खोज योग्य डेटाबेस (Searchable database) है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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