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भारतीय अर्थव्यवस्था

भारतीय रिज़र्व बैंक की वार्षिक रिपोर्ट

  • 26 Aug 2020
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

RBI की वार्षिक रिपोर्ट, ई-वे बिल

मेन्स के लिये:

अर्थव्यवस्था पर COVID-19 का प्रभाव, RBI की वार्षिक रिपोर्ट

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India) ने वित्तीय वर्ष 2019-20 की अपनी वार्षिक रिपोर्ट जारी की है।

प्रमुख बिंदु:

  • RBI की इस रिपोर्ट के अनुसार, COVID-19 महामारी के कारण देश की अर्थव्यवस्था में आई गिरावट वर्तमान वित्तीय वर्ष की दूसरी तिमाही में भी जारी रह सकती है।
  • वर्तमान वित्तीय वर्ष में अब तक की कुल मांग के आकलन से पता चलता है कि COVID-19 महामारी के कारण खपत में भारी गिरावट देखी गई है।
  • RBI के अनुसार, खपत में आई इस कमी को दूर करने और अर्थव्यवस्था में पूर्व-COVID दौर की गति को पुनः प्राप्त करने में काफी समय लग सकता है।

आर्थिक सुधार की गति पर लॉकडाउन का प्रभाव:

  • इस रिपोर्ट के अनुसार, मई और जून माह में देश के कई हिस्सों में लॉकडाउन में कुछ ढील के साथ ही अर्थव्यवस्था में कुछ सुधार देखने को मिला था परंतु देश के कुछ हिस्सों में पुनः लॉकडाउन लागू होने के कारण जुलाई तथा अगस्त में इसका प्रभाव कम होने लगा।
  • रेटिंग एजेंसियों के अनुसार, COVID-19 महामारी के नियंत्रण हेतु लागू लॉकडाउन के कारण वित्तीय वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में देश की जीडीपी में 20% तक की गिरावट का अनुमान है।
  • जून 2020 में ई-वे बिल (e-Way Bill) जारी करने के मामलों में पिछले माह की तुलना में 70.3% का सुधार देखने को मिला हालाँकि जुलाई माह में इसमें केवल 11.4% की ही वृद्धि देखने को मिली।
  • पिछले वर्ष की तुलना में जुलाई 2020 में ई-वे बिल जारी करने के मामलों में 7.3% की गिरावट देखने को मिली है।
    • ई-वे बिल को घरेलू ट्रेडिंग गतिविधि के संकेतक के रूप में देखा जाता है।

असमानता:

  • RBI के अनुसार, इस महामारी ने नई विषमताओं को उजागर किया है।
  • इस महामारी के दौरान जहाँ कार्यालयों में प्रबंधन या डेस्क से जुड़े अधिकांश कर्मचारी घरों पर रहकर अपना कार्य करने में सक्षम हैं वहीं अति आवश्यक सेवाओं से जुड़े कर्मचारियों को कार्यस्थल से अपना कार्य करने पर विवश होना पड़ा है जिससे उनके संक्रमित होने का खतरा भी बढ़ जाता है।
  • होटल और रेस्त्रां, एयरलाइंस और पर्यटन जैसे कुछ क्षेत्रों में, रोज़गार के नुकसान के प्रभाव अन्य क्षेत्रों की तुलना में अधिक गंभीर रहे हैं।

शहरी क्षेत्र की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:

  • इस रिपोर्ट के अनुसार, COVID-19 महामारी के कारण शहरी खपत में भारी कमी देखने को मिली है।
  • वित्तीय वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में यात्री वाहनों और उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं (Consumer Durables) की बिक्री पिछले वित्तीय वर्ष की इसी अवधि की तुलना में घटकर क्रमशः 20% और 33% ही रह गई। साथ ही इस दौरान हवाई यातायात पूरी तरह से बंद रहा था।

ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:

  • RBI के अनुसार, शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर COVID-19 का प्रभाव उतना गंभीर नहीं रहा है।
  • खरीफ की बुआई की प्रगति के कारण जुलाई माह में ट्रैक्टरों की बिक्री में 38.5% की वृद्धि देखने को मिली है।
  • साथ ही जुलाई माह में मोटरसाइकिल की बिक्री में आई गिरावट में भी सुधार देखने को मिला है।
  • हालाँकि ग्रामीण क्षेत्रों में दैनिक मज़दूरी में आई कमी के कारण मांग में हुई गिरावट पर पूर्ण सुधार नहीं संभव हो सका है।
  • लोगों की आजीविका के छिन जाने और प्रवासी मज़दूरों की समस्या के कारण दैनिक मज़दूरी में आई गिरावट का संकट अभी भी बना हुआ है।

अर्थव्यवस्था में सुधार के प्रयास :

  • COVID-19 के कारण अर्थव्यवस्था की क्षति को कम करने के लिये मार्च से लेकर अबतक RBI द्वारा बाज़ार में लगभग 10 लाख करोड़ रुपए का निवेश किया है।
  • इस दौरान RBI ने विकास की गति को मज़बूती और वित्तीय प्रणाली को स्थिरता प्रदान करने के लिये रेपो रेट में 115 बेसिस पॉइंट की कटौती करते हुए इसे 4% तक कर दिया।

घरेलू निवेश में गिरावट:

  • RBI के अनुसार, सितंबर 2019 में सरकार द्वारा कॉर्पोरेट टैक्स में की गई कटौती अपेक्षा के अनुरूप निवेश चक्र को पुनः शुरू करने में सफल नहीं रही है।
  • अधिकांश कंपनियों द्वारा इस छूट का उपयोग अपने ऋण को कम करने और कैश बैलेंस को बनाए रखने और अन्य मौजूदा परिसंपत्तियों में किया गया।
  • गौरतलब है कि सितंबर 2019 में केंद्रीय वित्त मंत्री ने घरेलू कंपनियों के लिये कर दरों को 22% और नई घरेलू विनिर्माण कंपनियों के लिये 15% तक करने की घोषणा की थी।
  • इन सुधारों के बाद भी वित्तीय वर्ष 2019-20 में जीडीपी और सकल स्थिर पूंजी निर्माण (Gross Fixed Capital Formation-GFCF) का अनुपात घटकर 29.8% रह गया, जो वित्तीय वर्ष 2018-19 के दौरान 31.9% था।

बैंक धोखाधड़ी के मामलों में वृद्धि:

  • वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान 1 लाख रुपए से अधिक के बैंक धोखाधड़ी के मामलों की संख्या में दोगुने से अधिक की वृद्धि देखने को मिली है।
  • वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान कुल 8,707 मामलों में 1.85 करोड़ रुपए की वित्तीय गड़बड़ी देखी गई जबकि वित्तीय वर्ष 2018-19 के दौरान कुल 6,799 मामलों में 71,543 करोड़ रुपए की वित्तीय गड़बड़ी दर्ज की गई थी
  • RBI के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान बैंक धोखाधड़ी के कुल मामलों में 80% सार्वजनिक बैंकों और लगभग 18.4% निजी बैंकों से संबंधित थे।
  • वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान बैंक धोखाधड़ी की घटना होने और इसका पता चलने का औसत अंतराल 24 माह रहा।
  • RBI ने बैंकों द्वारा ‘प्रारंभिक चेतावनी संकेतों’ (Early Warning Signals- EWS) के कमज़ोर कार्यान्वयन, आंतरिक ऑडिट के दौरान EWS का पता न लगाने, फोरेंसिक ऑडिट के दौरान उधारकर्त्ताओं का गैर-सहयोग, अनिर्णायक ऑडिट रिपोर्ट आदि को धोखाधड़ी का पता लगाने में देरी का प्रमुख कारण बताया है।

महँगाई:

  • RBI की मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee -MPC) के अनुमान के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2020-21 की दूसरी तिमाही के दौरान भी हेडलाइन मुद्रास्फीति (Headline Inflation) में वृद्धि बनी रह सकती है, परंतु तीसरी तिमाही से इसमें कुछ कमी आने का अनुमान है।
  • जुलाई 2020 में खुदरा मुद्रास्फीति 6.93 प्रतिशत पर थी, जो ऊपरी सहिष्णुता सीमा (6%) से अधिक थी।

मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee -MPC):

  • RBI की मौद्रिक नीति समिति का गठन वर्ष 2016 में भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 (RBI Act) में संशोधन के माध्यम से किया गया था।
  • मौद्रिक नीति समिति के कुल 6 सदस्यों में से 3 सदस्य RBI से होते हैं तथा अन्य 3 सदस्यों की नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा की जाती है।
  • मौद्रिक नीति समिति अन्य कार्यों के साथ मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने हेतु रेपो दर तय करने का कार्य करती है।

सुझाव:

  • COVID-19 महामारी की समाप्ति के पश्चात संभावित घाटे को कम करने और वित्तीय स्थिरता के साथ अर्थव्यवस्था को मज़बूत तथा सतत् विकास के मार्ग पर लाने हेतु उत्पाद बाज़ारों, वित्तीय क्षेत्र, विधि एवं अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा से जुड़े व्यापक संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता होगी।
  • RBI के अनुसार, परिसंपत्ति मुद्रीकरण और प्रमुख बंदरगाहों के निजीकरण से प्राप्त धन के माध्यम से लक्षित सार्वजनिक निवेश को अर्थव्यवस्था को पुनः गति प्रदान करने का एक व्यवहारिक उपाय बताया है।
  • RBI के अनुसार, संरचनात्मक सुधारों और अवसंरचना परियोजनाओं के त्वरित कार्यान्वयन हेतु ‘वस्तु और सेवा कर परिषद’ [Goods and Services Tax (GST) Council] की तरह ही भूमि, श्रम तथा ऊर्जा के क्षेत्र में भी शीर्ष निकायों की स्थापना की जा सकती है।

स्त्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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