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डेली न्यूज़

  • 05 Nov, 2024
  • 51 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

जैवविविधता पर कन्वेंशन का COP-16

प्रिलिम्स के लिये:

जैवविविधता पर कन्वेंशन (CBD), राष्ट्रीय जैवविविधता रणनीति और कार्य योजना (NBSAP), कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क (KMGBF), डिजिटल सीक्वेंस इनफार्मेशन (DSI), जीनोमिक सीक्वेंस, कुनमिंग जैवविविधता कोष (KBF), कृत्रिम जीव विज्ञान,  DNA अनुक्रमण, जीन एडिटिंग, पारिस्थितिक या जैविक रूप से महत्त्वपूर्ण समुद्री क्षेत्र (EBSA), जैव सुरक्षा पर कार्टाजेना प्रोटोकॉल, एक स्वास्थ्य, जीवित संशोधित जीव (LMO), राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण (NBA), जैवविविधता प्रबंधन समितियाँ।

मेन्स के लिये:

कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क का महत्त्व, भारत के जैवविविधता लक्ष्य।  

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जैवविविधता पर कन्वेंशन (CBD) के पक्षकारों का 16वाँ सम्मेलन (COP-16) कैली, कोलंबिया में संपन्न हुआ।

COP-16  से CBD तक के मुख्य बिंदु क्या हैं?

  • कैली फंड: कैली फंड की स्थापना आनुवंशिक संसाधनों पर डिजिटल सीक्वेंस इनफार्मेशन (DSI)/डिजिटल अनुक्रम सूचना के उपयोग से होने वाले लाभों का निष्पक्ष और न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित करने के लिये की गई थी।
    • कैली फंड का कम-से-कम 50% हिस्सा स्वदेशी लोगों और स्थानीय समुदायों, विशेषकर महिलाओं तथा युवाओं की स्वत: पहचानी गई आवश्यकताओं पर केंद्रित होगा।
      • DSI जीनोम अनुक्रम (जीनोमिक सीक्वेंस) पर्यावरण और जैविक अनुसंधान में मूल रूप से भूमिका निभाने वाले डेटा को संदर्भित करता है
  • स्थायी सहायक निकाय: पक्षों ने अनुच्छेद 8j के आधार पर एक नया स्थायी सहायक निकाय स्थापित करने पर सहमति व्यक्त की जो स्वदेशी लोगों के ज्ञान, नवाचारों और प्रथाओं के संरक्षण एवं रखरखाव से संबंधित है
    • उन्होंने स्वदेशी लोगों और स्थानीय समुदायों पर कार्य हेतु एक नया कार्यक्रम भी अपनाया।
      • इसमें विशिष्ट कार्यों की रूपरेखा प्रदान की गई है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि स्वदेशी लोग और स्थानीय समुदाय जैवविविधता के संरक्षण, सतत् उपयोग तथा उचित वितरण में सार्थक योगदान दें।
  • संसाधनों का संग्रहण: सभी पक्षकारों ने विश्व भर में जैवविविधता पहलों का समर्थन करने हेतु वर्ष 2030 तक प्रतिवर्ष 200 बिलियन अमेरिकी डॉलर की सहायता के लिये एक नई “संसाधनों के संग्रहण की रणनीति (Strategy for Resource Mobilization)” विकसित करने पर सहमति व्यक्त की।
    • कुनमिंग जैवविविधता कोष (KBF) को COP-16  में चीन के 200 मिलियन अमेरिकी डॉलर के योगदान के साथ लॉन्च किया गया। 
    • एक अन्य लक्ष्य वर्ष 2030 तक जैवविविधता को नुकसान पहुँचाने वाली व्यवसायों के लिये सब्सिडी को प्रतिवर्ष 500 बिलियन अमेरिकी डॉलर पर पुनर्निर्देशित करना है।
  • राष्ट्रीय जैवविविधता लक्ष्य: CBD के 196 पक्षोंकरों में से 119 देशों ने 23 KMGBF लक्ष्यों तक पहुँचने में सहायता हेतु राष्ट्रीय जैवविविधता लक्ष्य प्रस्तुत किये।
    • वर्तमान में 44 देशों ने राष्ट्रीय लक्ष्यों के कार्यान्वयन के समर्थन के लिये राष्ट्रीय जैवविविधता रणनीतियाँ और कार्य योजनाएँ प्रस्तुत की हैं।
  • सिंथेटिक बायोलॉजी: COP-16 ने विकासशील देशों के बीच क्षमता निर्माण, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और ज्ञान-साझाकरण के माध्यम से असमानताओं को दूर करने में मदद करने हेतु एक नई विषयगत कार्य योजना पेश की।
    • सिंथेटिक बायोलॉजी में DNA सीक्वेंस (अनुक्रमण) और जीन एडिटिंग के माध्यम से नए जीवों को निर्मित या मौजूदा जीवों को संशोधित करने के लिये इंजीनियरिंग सिद्धांतों का उपयोग किया जाता है।
  • आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ: यह नए डेटाबेस, सीमा पार व्यापार विनियमन और ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों के साथ बेहतर समन्वय के माध्यम से आक्रामक विदेशी प्रजातियों के प्रबंधन हेतु दिशा-निर्देश प्रस्तावित करता है।
  • पारिस्थितिक या जैविक रूप से महत्त्वपूर्ण समुद्री क्षेत्र (EBSA): COP-16  ने EBSA की पहचान करने के लिये एक नई और विकसित प्रक्रिया पर सहमति व्यक्त की।
    • वर्ष 2010 में स्थापित EBSA महासागर के सबसे महत्त्वपूर्ण और संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान करता है। तब से महासागर संरक्षण प्रयासों में एक केंद्र बिंदु बन गया है।
  • सतत् वन्यजीव प्रबंधन और पादप संरक्षण: सतत् वन्यजीव प्रबंधन पर लिये गए निर्णय में निगरानी, ​​क्षमता निर्माण और स्वदेशी लोगों, स्थानीय समुदायों एवं महिलाओं की समावेशी भागीदारी की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया।
    • पादप संरक्षण में प्रगति मापने योग्य और वैश्विक जैवविविधता लक्ष्यों के अनुरूप होनी चाहिये।
  • जैवविविधता और स्वास्थ्य पर वैश्विक कार्य योजना: COP-16 में, CBD पक्षकारों ने जैवविविधता और स्वास्थ्य पर एक वैश्विक कार्य योजना को मंज़ूरी दी, जिसे ज़ूनोटिक रोगों के उद्भव तथा गैर-संचारी रोगों को रोकने एवं सतत् पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने में मदद करने हेतु डिज़ाइन किया गया है।
    • यह रणनीति एक समग्र "वन हेल्थ (One Health)" दृष्टिकोण को अपनाती है, इसके तहत पर्यावरण, पशु तथा मानव स्वास्थ्य के अंतर्संबंधों को शामिल किया जाता है। 
  • जोखिमपूर्ण मूल्यांकन: कैली में, जैव सुरक्षा पर कार्टाजेना प्रोटोकॉल के पक्षकारों ने इंजीनियर्ड जीन वाले जीवित संशोधित जीवों (living modified organisms- LMO) द्वारा उत्पन्न जोखिमों के आकलन पर नए स्वैच्छिक मार्गदर्शन को अपनाया गया है।
  • अफ्रीकी मूल के लोगों को मान्यता: कन्वेंशन के कार्यान्वयन में अफ्रीकी मूल के लोगों की भूमिका को मान्यता देने पर निर्णय लिया गया है।

कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क (KMGBF)

  • परिचय: यह एक बहुपक्षीय संधि है जिसका उद्देश्य वर्ष 2030 तक वैश्विक स्तर पर जैवविविधता से होने वाले नुकसान को रोकना तथा उसकी भरपाई करना है। 
    • दिसंबर, 2022 में पार्टियों के 15वें सम्मेलन (COP) के दौरान अपनाया गया, जो सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) का समर्थन करता है तथा जैवविविधता के लिये वर्ष 2011-2020 की रणनीतिक योजना की उपलब्धियों पर आधारित है।
  • उद्देश्य और लक्ष्य: इसका लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि वर्ष 2030 तक कम-से-कम 30% क्षीण स्थलीय, अंतर्देशीय जल, समुद्री एवं तटीय पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावी ढंग से बहाल किया जाए।
    • इसमें वर्ष 2030 तक त्वरित कार्रवाई हेतु 23 कार्य-उन्मुख वैश्विक लक्ष्य शामिल हैं।
    • इसके तहत प्रत्येक राष्ट्र के लिये अपनी भूमि और जल क्षेत्र का 30% हिस्सा अलग रखने की आवश्यकता नहीं है, यह सामूहिक वैश्विक प्रयासों को संदर्भित करता है
    • इसके तहत प्रत्येक देश के लिये अपने भूमि और जल क्षेत्र का 30% हिस्सा आवंटित करना अनिवार्य नहीं है। यह सामूहिक वैश्विक प्रयासों को संदर्भित करता है।
  • दीर्घकालिक दृष्टिकोण: यह दृष्टिकोण वर्ष 2050 तक प्रकृति के साथ सद्भाव के लिये सामूहिक प्रतिबद्धता की परिकल्पना को प्रदर्शित करता है तथा जैवविविधता संरक्षण एवं सतत् उपयोग से संबंधित वर्तमान कार्यों व नीतियों के लिये एक आधारभूत मार्गदर्शिका प्रदान करता है।

नोट: 

  • ऐतिहासिक संदर्भ: भारत की पहली राष्ट्रीय जैवविविधता रणनीति और कार्य योजना (NBSAP) वर्ष 1999 में बनाई गई थी, जिसे आइची जैवविविधता लक्ष्यों के साथ संरेखित करने के लिये वर्ष 2008 और 2014 में संशोधित किया गया था। 
  • NBSAP की आवश्यकता: भारत एक महाविविधता वाला देश है, जिसमें 55,000 से अधिक पादप प्रजातियाँ और 100,000 पशु प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनका संरक्षण आजीविका एवं पारिस्थितिक स्वास्थ्य दोनों के लिये महत्त्वपूर्ण है।

भारत के संशोधित NBSAP के मुख्य बिंदु क्या हैं? 

  • संशोधित NBSAP: संशोधित NBSAP में KMGBF के वैश्विक उद्देश्यों के अनुरूप 23 राष्ट्रीय जैवविविधता लक्ष्यों की रूपरेखा प्रदान की गई है।
    • लक्ष्य जैवविविधता के खतरों को कम करने, सतत् उपयोग को बढ़ावा देने, पारिस्थितिकी तंत्र अनुकूलन, प्रजातियों की पुनर्प्राप्ति एवं सतत् प्रबंधन पर केंद्रित हैं।
  • व्यापक संरचना: संशोधित NBSAP में प्रासंगिक विश्लेषण, क्षमता निर्माण, वित्तपोषण तंत्र एवं जैवविविधता निगरानी ढाँचे को संबोधित करने वाले 7 अध्याय शामिल हैं।
  • कार्यान्वयन: पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) बहु-स्तरीय शासन संरचना द्वारा समर्थित जैवविविधता संरक्षण की देख-रेख करता है।
  • लक्ष्य:
    • संरक्षण क्षेत्र: जैवविविधता में वृद्धि हेतु 30% क्षेत्रों को प्रभावी रूप से संरक्षित करने का लक्ष्य।
    • आक्रामक प्रजातियों का प्रबंधन: आक्रामक विदेशी प्रजातियों के प्रवेश और प्रबंधन में 50% की कमी का लक्ष्य। 
    • सतत् उपभोग: सतत् उपभोग विकल्पों को सक्षम बनाना और खाद्य अपशिष्ट को आधे से कम करना। 
    • प्रदूषण में कमी: प्रदूषण को कम करने, पोषक तत्त्वों की हानि और कीटनाशक जोखिम को आधा करने के लिये प्रतिबद्धता।
    • लाभ साझाकरण: आनुवंशिक संसाधनों, डिजिटल सीक्वेंस इनफार्मेशन तथा संबंधित पारंपरिक ज्ञान से लाभ के निष्पक्ष और न्यायसंगत साझाकरण को बढ़ावा देना।
  • वित्तपोषण: भारत द्वारा वित्त वर्ष 2025-30 तक जैवविविधता और संरक्षण पर लगभग 81,664 करोड़ रुपए खर्च किये जाने की उम्मीद है।
    • सम्मेलन में भारतीय अधिकारियों द्वारा कहा गया कि इन लक्ष्यों को पूरा करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय वित्त की आवश्यकता होगी।
  • सामुदायिक सहभागिता: स्थानीय समुदाय, विशेषकर वन-निर्भर क्षेत्रों में, संरक्षण प्रयासों में सक्रिय रूप से शामिल होंगे।

निष्कर्ष:

जैवविविधता पर कन्वेंशन के पक्षकारों के 16वें सम्मेलन (COP 16) ने वैश्विक जैवविविधता प्रयासों में महत्त्वपूर्ण प्रगति को चिह्नित किया, विशेष रूप से कैली फंड की स्थापना, संशोधित राष्ट्रीय जैवविविधता रणनीति और कार्य योजनाओं तथा कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क के प्रति प्रतिबद्धता के माध्यम से, जिसमें समान संसाधन साझाकरण एवं सतत् प्रथाओं पर ज़ोर दिया गया।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: 

प्रश्न: भारत की संशोधित राष्ट्रीय जैवविविधता रणनीति और कार्य योजना (NBSAP) की प्रमुख विशेषताओं तथा कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क (KMGBF) के साथ इसके संरेखण का मूल्यांकन कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स  

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2023)

  1. भारत में जैवविविधता प्रबंधन समितियाँ नागोया प्रोटोकॉल के उद्देश्यों को हासिल करने के लिये प्रमुख कुंजी हैं।
  2. जैवविविधता प्रबंधन समितियों के, अपने क्षेत्राधिकार के अंतर्गत, जैविक संसाधनों तक पहुँच के लिये संग्रह शुल्क लगाने की शक्ति सहित, पहुँच और लाभ सहभागिता निर्धारित करने हेतु महत्त्वपूर्ण प्रकार्य हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 न ही 2

उत्तर: (c) 


प्रश्न: 'भूमंडलीय पर्यावरण सुविधा' के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (2014)

(a) यह 'जैवविविधता पर अभिसमय' एवं 'जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र ढाँचा अभिसमय' के लिये वित्तीय क्रियाविधि के रूप में काम करता है
(b) यह भूमंडलीय स्तर पर पर्यावरण के मुद्दों पर वैज्ञानिक अनुसंधान करता है 
(c) यह आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) के अधीन एक अभिकरण है जो अल्पविकसित देशों को उनके पर्यावरण की सुरक्षा के विशिष्ट उद्देश्य से प्रौद्योगिकी और निधियों का अंतरण सुकर बनाता है। 
(d) दोनों (a) और (b)

उत्तर: (a) 


प्रश्न. “मोमेंटम फॉर चेंज: क्लाइमेट न्यूट्रल नाउ” यह पहल किसके द्वारा प्रवर्तित की गई है? (2018) 

(a) जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल 
(b) UNEP सचिवालय 
(c) UNFCCC सचिवालय 
(d) विश्व मौसमविज्ञान संगठन

उत्तर: (c)


मेन्स

प्रश्न: भैषजिक कंपनियों द्वारा आयुर्विज्ञान के पारंपरिक ज्ञान को पेटेंट कराने से भारत सरकार किस प्रकार रक्षा कर रही है? (2019)


सामाजिक न्याय

भारत में अवैतनिक कार्य के आर्थिक मूल्य की पहचान

प्रिलिम्स के लिये:

अवैतनिक कार्य, देखभाल अर्थव्यवस्था, सकल घरेलू उत्पाद, सतत् विकास लक्ष्य, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष

मेन्स के लिये:

अवैतनिक कार्य और लैंगिक समानता, अवैतनिक कार्य का आर्थिक प्रभाव

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों? 

एक हालिया अध्ययन में अवैतनिक श्रम, विशेष रूप से महिलाओं द्वारा किये जाने वाले श्रम के आर्थिक मूल्य की ओर ध्यान आकर्षित किया गया है साथ ही उत्पादकता के मापन की आवश्यकता पर भी ज़ोर दिया गया है।

अवैतनिक कार्य क्या है?

  • अवैतनिक कार्य से तात्पर्य उन गतिविधियों से है जिनमें व्यक्ति, विशेषकर महिलाएँ, बिना किसी मौद्रिक पारिश्रमिक के संलग्न होती हैं।
    • महिलाओं का अवैतनिक श्रम, जिसमें देखभाल कार्य, पालन-पोषण और घरेलू ज़िम्मेदारियाँ  शामिल हैं, आर्थिक रूप से काफी हद तक अदृश्य रहता है या उनकी पहचान नहीं की जाती है।
  • गतिविधियों के प्रकार:
    • घरेलू कार्य: सफाई, खाना पकाना और बच्चों का पालन-पोषण।
    • देखभाल कार्य: वृद्ध एवं बीमार व्यक्तियों सहित परिवार के सदस्यों की देखभाल करना।
    • सामुदायिक सेवाएँ: बिना वेतन के सामुदायिक गतिविधियों में स्वयंसेवा करना।
    • निर्वाह उत्पादन: व्यक्तिगत उपयोग के लिये खेती या शिल्प कार्यों में संलग्न होना।
  • आर्थिक योगदान: विकासशील देशों में अवैतनिक श्रम अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान देता है तथा प्रायः सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में इसका बड़ा हिस्सा होता है।
    • यह आवश्यक सेवाएँ प्रदान करके श्रम बल को समर्थन प्रदान करता है, जिससे अन्य लोग भी वेतनभोगी कार्य में भाग लेने में सक्षम हो जाते हैं।
  • लैंगिक असमानताएँ और सीमित अवसर: सामाजिक मानदंडों के कारण महिलाओं को असमान रूप से अवैतनिक कार्यों का बोझ उठाना पड़ता है, जिससे शिक्षा, कौशल विकास और सवेतन रोज़गार तक उनकी पहुँच सीमित हो जाती है, जो असमानता के चक्र को मज़बूत करता है एवं आर्थिक स्वतंत्रता में बाधा डालता है।
  • अवैतनिक कार्य का महत्त्व: अवैतनिक कार्य को महत्त्व देने से लैंगिक असमानताओं के अंतर को कम करने और श्रम ज़िम्मेदारियों के निष्पक्ष वितरण को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है।
    • राष्ट्रीय खातों में अवैतनिक कार्य को शामिल करना सतत् विकास के लक्ष्यों, विशेष रूप से लैंगिक समानता प्राप्त करने (जैसा कि संयुक्त राष्ट्र (UN) सतत् विकास लक्ष्यों (SGD) में रेखांकित किया गया है), के साथ संरेखित है।

SGD 5:

  • संयुक्त राष्ट्र का सतत् विकास लक्ष्य 5 लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण पर केंद्रित हैतथा  SGD लक्ष्य 5.4 का लक्ष्य वर्ष 2030 तक अवैतनिक देखभाल और घरेलू कार्य को मान्यता और महत्त्व देना।

अवैतनिक कार्य पर अध्ययन के मुख्य बिंदु क्या हैं?

  • अवैतनिक कार्य का परिमाणन: लेखकों ने अवैतनिक घरेलू कार्य के आर्थिक मूल्य को मापने के लिये, सितंबर, 2019 से मार्च 2023 तक 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों को कवर करते हुए, सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) द्वारा उपभोक्ता पिरामिड घरेलू सर्वेक्षण (CPHS) के आंकड़ों का उपयोग किया।
    • निष्कर्ष बताते हैं कि श्रम बल में शामिल न होने वाली महिलाएँ प्रतिदिन अवैतनिक घरेलू कार्यों में 7 घंटे से अधिक समय व्यतीत करती हैं, जबकि कार्यरत महिलाएँ लगभग 5.8 घंटे कार्य करती हैं। 
      • इसके विपरीत, पुरुषों का योगदान काफी कम है, बेरोज़गार पुरुषों के लिये यह औसतन प्रतिदिन 4 घंटे से कम हैतथा  कार्यरत पुरुषों के लिये यह 2.7 घंटे है।
      • यह तीव्र विरोधाभास महिलाओं द्वारा वहन किये जाने वाले अवैतनिक श्रम के महत्त्वपूर्ण बोझ को रेखांकित करता है। 
  • मूल्यांकन विधियाँ: इस अध्ययन में दो इनपुट-आधारित मूल्यांकन विधियों का उपयोग किया गया है:
    • अवसर लागत (GOC): इस विधि में अवैतनिक श्रम के मूल्य की गणना उस मज़दूरी के आधार पर की जाती है जिसमे अवैतनिक कार्य करने के कारण लोगों को जो मज़दूरी का नुकसान होता है।
    • प्रतिस्थापन लागत (RCM): किराये पर लिये गए बाज़ार कर्मचारी इन घरेलू कामों को पूरा कर सकते हैं, इस विधि के तहत बाज़ार में तुलनीय भूमिकाओं के लिये प्रचलित दरों के आधार पर मूल्य आवंटित करके मौद्रिक मूल्य की गणना की जाती है।
    • मूल्यांकन से निष्कर्ष: वर्ष 2019-20 के लिये GOC पद्धति का उपयोग करते हुए अवैतनिक घरेलू कार्य का अनुमानित मूल्य 49.5 लाख करोड़ रुपए तथा RCM पद्धति के साथ 65.1 लाख करोड़ रुपए था, जो कि नाममात्र GDP का क्रमशः 24.6% और 32.4% है।
  • नीतिगत सिफारिशें: शोधकर्त्ता ऐसी नीतियों का समर्थन करते हैं जो कार्यबल में लैंगिक समानता को प्रोत्साहित करने के लिये अवैतनिक कार्य को मान्यता और महत्त्व दें।
    • यद्यपि राष्ट्रीय लेखा प्रणाली ने वर्ष 1993 से घरेलू उत्पादन को सकल घरेलू उत्पाद की गणना में शामिल किया है, लेकिन इसमें अवैतनिक देखभाल कार्य को विशेष रूप से शामिल नहीं किया गया।
    • भारतीय स्टेट बैंक की वर्ष 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, अवैतनिक कार्य भारतीय अर्थव्यवस्था में लगभग 22.7 लाख करोड़ रुपए (GDP का लगभग 7.5%) का योगदान देगा।
      • शोधकर्त्ता ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि महिलाओं की श्रम शक्ति में भागीदारी बढ़ाने से भारत के सकल घरेलू उत्पाद में संभावित रूप से 27% की वृद्धि हो सकती है।
    • वे अवैतनिक कार्य को महत्त्व देने तथा देखभाल संबंधी ज़िम्मेदारियों के न्यायसंगत पुनर्वितरण को बढ़ावा देने के लिये कार्यप्रणाली को परिष्कृत करने हेतु भविष्य में अनुसंधान की आवश्यकता पर भी बल देते हैं ।

नोट: राष्ट्रीय लेखा प्रणाली (SNA) वर्ष 2008 अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, यूरोपीय संघ, आर्थिक सहयोग और विकास संगठन, संयुक्त राष्ट्र और विश्व बैंक द्वारा संयुक्त रूप से विकसित व्यापक आर्थिक खातों का एक व्यापक, सुसंगत और अनुकूल शृंखला है।

  • SNA सरकारी और निजी क्षेत्र के विश्लेषकों, नीति निर्माताओं और निर्णय लेने वालों की आवश्कताओं को पूरा करने में मदद करता है।

भारत में अवैतनिक कार्य पर प्रमुख आँकड़े क्या हैं?

  • आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) 2023-24: PLFS रिपोर्ट 2023-24 के अनुसार, 36.7% महिलाएँ और 19.4% कार्यबल घरेलू उद्यमों में अवैतनिक कार्य में संलग्न हैं।
    • वर्ष 2022-23 के आँकड़ों में भी इसी प्रकार की प्रवृत्ति दिखी, जिसमें 37.5% महिलाएँ और कुल कार्यबल का 18.3% हिस्सा अवैतनिक कार्यों में संलग्न है।
  • टाइम यूज सर्वे 2019 (राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO)): 6+ आयु वर्ग की 81% महिलाएँ प्रतिदिन पाँच घंटे से ज़्यादा अवैतनिक घरेलू कार्य करती हैं। 15-29 आयु वर्ग के लिये यह आँकड़ा बढ़कर 85.1% और 15-59 आयु वर्ग के लिये 92% हो जाता है।
    • इसके विपरीत केवल 24.5% पुरुष (6 वर्ष से अधिक आयु के) प्रतिदिन एक घंटे से अधिक समय अवैतनिक घरेलू कार्य में बिताते हैं।  
  • अवैतनिक देखभाल सेवाएँ: 6 वर्ष से अधिक आयु की 26.2% महिलाएँ प्रतिदिन दो घंटे से अधिक समय देखभाल करती हैं, जबकि पुरुषों के लिये यह आँकड़ा 12.4% है।  
    • 15-29 आयु वर्ग में 38.4% महिलाएँ और केवल 10.2% पुरुष अवैतनिक देखभाल में शामिल हैं।

अवैतनिक कार्य का वैश्विक आर्थिक प्रभाव

  • वर्ष 2022 के एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग (APEC) अध्ययन का अनुमान है कि अवैतनिक कार्य APEC अर्थव्यवस्थाओं में सकल घरेलू उत्पाद में 9% का योगदान देगा, जो कुल 11 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है।
  • विभिन्न देशों में अवैतनिक कार्य सकल घरेलू उत्पाद का 10-60% हिस्सा है। उदाहरण के लिये ऑस्ट्रेलिया का अवैतनिक कार्य उसके सकल घरेलू उत्पाद का 41.3% तक प्रतिनिधित्व करता है जबकि थाईलैंड का लगभग 5.5% है।

महिलाएँ अवैतनिक कार्यों में अधिक संलग्न क्यों रहती हैं?

  • सांस्कृतिक मानदंड और लैंगिक भूमिकाएँ: सामाजिक मानदंड देखभाल और घरेलू कर्त्तव्यों को महिलाओं की स्वाभाविक भूमिका मानते हैं, जिससे यह कार्य अवैतनिक तथा अप्रमाणित हो जाता है।
    • भारत में 53% महिलाएँ देखभाल की ज़िम्मेदारियों के कारण श्रम बल से बाहर रहती हैं। इसकी तुलना में केवल 1.1% पुरुष ही ऐसे हैं जो समान कारणों से श्रम शक्ति से बाहर हैं। 
  • आर्थिक बाधाएँ: कई घरों में महिलाओं द्वारा किये जाने वाले अवैतनिक कार्य को लागत-बचत उपाय के रूप में देखा जाता है, क्योंकि परिवार घरेलू कर्त्तव्यों और देखभाल के लिये महिलाओं पर निर्भर रहते हैं, विशेषकर कम आय वाले घरों में, जहाँ सहायता के लिये किसी को कार्य पर रखना आर्थिक रूप से चुनौतीपूर्ण होता है।
    • संवहनीय देखभाल सेवाओं की कमी प्रायः महिलाओं को देखभाल के बुनियादी अवसरंचना में अपर्याप्त सार्वजनिक निवेश के कारण अवैतनिक देखभाल संबंधी भूमिकाएँ निभानी पड़ती हैं। 
  • सीमित रोज़गार अवसर: महिलाओं, विशेष रूप से कम शिक्षित या ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं को रोज़गार के सीमित अवसरों का सामना करना पड़ता है। परिणामस्वरूप घर पर बिना वेतन के कार्य करना उनके परिवारों के लिये योगदान का प्राथमिक रूप बन जाता है।
  • नीतिगत अंतराल: दोनों लिंगों के लिये पैतृक अवकाश और अनुकूलन कार्य व्यवस्था जैसी परिवार-अनुकूल नीतियों का अभाव, जिसके परिणामस्वरूप प्रायः महिलाओं को ही प्राथमिक देखभाल का बोझ उठाना पड़ता है।
    • संस्थागत समर्थन का अभाव महिलाओं द्वारा अवैतनिक कार्य करने की धारणा को मज़बूत करता है।
  • अवैतनिक कार्य की सीमित मान्यता: अवैतनिक घरेलू और देखभाल संबंधी कार्य को कम आंका जाता है तथा अक्सर आधिकारिक आर्थिक मापदंडों में अदृश्य कर दिया जाता है, जिससे यह धारणा बनी रहती है कि यह "वास्तविक कार्य" नहीं है एवं इसके लिये औपचारिक पारिश्रमिक या मान्यता की आवश्यकता नहीं होती है।

अवैतनिक कार्य में असमानता को दूर करने के लिये कौन-सी नीतियों की आवश्यकता है?

  • प्रारंभिक बाल्‍यावस्‍था देखभाल और शिक्षा (ECCE) में निवेश: सुलभ और संवहनीय बाल्यावस्था देखभाल सेवाएँ उपलब्ध कराने के लिये ECCE पर सरकारी व्यय में वृद्धि करना, जिससे अधिकाधिक महिलाएँ कार्यबल में शामिल हो सकें।
    • बच्चों की देखभाल के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करना तथा विशेष रूप से ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में बच्चों की देखभाल एवं शिक्षा प्रदान करने वाले सामुदायिक केंद्रों का विकास करना, ताकि महिलाओं पर अवैतनिक देखभाल का बोझ कम किया जा सके।
    • ईरान, मिस्र, जॉर्डन और माली जैसे देशों में भी देखभाल के कारण श्रम बल से बाहर महिलाओं का प्रतिशत अधिक है। इसके विपरीत बेलारूस, बुल्गारिया और स्वीडन जैसे देशों में ECCE में पर्याप्त निवेश के कारण 10% से भी कम महिलाएँ इस स्थिति में हैं।
  • लचीली कार्य नीतियाँ: कंपनियों को लचीली कार्य व्यवस्था लागू करने के लिये प्रोत्साहित करना, जिससे माता-पिता तथा देखभाल करने वालों को कार्य और घर की ज़िम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाने में सहायता मिले।
    • वृद्धजनों और विशेष आवश्यकता वाले परिवार के सदस्यों की देखभाल को शामिल करने के लिये सशुल्क पारिवारिक अवकाश नीतियों का विस्तार करना। 
  • विधिक ढाँचा और श्रम अधिकार: ऐसे कानूनों को लागू करना, जो औपचारिक रूप से अवैतनिक देखभाल कार्य को अर्थव्यवस्था में वैध योगदान के रूप में मान्यता देते हैं।
    • कार्यस्थल पर लैंगिक समानता को बढ़ावा देने वाले कानूनों को प्रभावी बनाना तथा लागू करना, जैसे भेदभाव-विरोधी उपाय और समान वेतन विनियम।
  • साझा ज़िम्मेदारी को बढ़ावा देना: राष्ट्रीय जागरूकता अभियान शुरू करना, जो पारंपरिक लिंग भूमिकाओं को चुनौती देना और पुरुषों एवं महिलाओं के बीच साझा घरेलू ज़िम्मेदारियों को प्रोत्साहित करना।

निष्कर्ष

लैंगिक समानता और आर्थिक उत्पादकता के लिये, विशेष रूप से महिलाओं द्वारा किये जाने वाले अवैतनिक कार्यों को मान्यता देना तथा उनका मूल्यांकन करना महत्त्वपूर्ण है। अवैतनिक कार्यों को मापदंड में शामिल करने और सहायक नीतियों को लागू करने से असमानताओं को दूर किया जा सकता है तथा महिलाओं की कार्यबल भागीदारी को सशक्त बनाया जा सकता है, जिससे अधिक समतापूर्ण समाज एवं सतत् आर्थिक विकास हो सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: चर्चा कीजिये कि कैसे सांस्कृतिक मानदंड अवैतनिक कार्यों में महिलाओं की भागीदारी और श्रम बाज़ार तक उनकी पहुँच को प्रभावित करते हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

मेन्स:

प्रश्न. 'देखभाल अर्थव्यवस्था' और 'मुद्रीकृत अर्थव्यवस्था' के बीच अंतर कीजिये। महिला सशक्तीकरण के द्वारा देखभाल अर्थव्यवस्था को मुद्रीकृत अर्थव्यवस्था में कैसे लाया जा सकता है? (2023)


भारतीय अर्थव्यवस्था

कोल इंडिया लिमिटेड का 50वाँ स्थापना दिवस

प्रिलिम्स के लिये:

कोल इंडिया लिमिटेड (CIL), महारत्न, कोयला और लिग्नाइट अन्वेषण पर रणनीति रिपोर्ट, माइन क्लोज़र पोर्टल, रानीगंज कोलफील्ड, दामोदर नदी, राष्ट्रीय कोयला विकास निगम (NCDC), नॉन-कोकिंग कोल, ज़िला खनिज निधि, राष्ट्रीय खनिज अन्वेषण ट्रस्ट, कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR), अम्लीय वर्षा, स्मॉग, नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता।

मेन्स के लिये:

भारतीय अर्थव्यवस्था में कोयला क्षेत्र का महत्त्व, संबंधित चुनौतियाँ और आगे का रास्ता।

स्रोत: पी.आई.बी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) ने अपना 50वाँ स्थापना दिवस मनाया, जिसकी स्थापना राष्ट्रीयकृत कोकिंग कोल (1971) और नॉन-कोकिंग खानों (1973) की शीर्ष होल्डिंग कंपनी के रूप में हुई थी।

  • CIL कोयला मंत्रालय के अधीन कार्य करता है, जिसका मुख्यालय कोलकाता में है।

कोल इंडिया लिमिटेड के बारे में मुख्य बिंदु क्या हैं?

  • परिचय: CIL भारत में एक सरकारी स्वामित्व वाली कोयला खनन कंपनी है, जो देश में कोयला संसाधनों के उत्पादन और प्रबंधन के लिये ज़िम्मेदार है।
    • इसकी स्थापना वर्ष 1975 में की गई थी, जो विश्व की सबसे बड़ी कोयला उत्पादक खनन कंपनी है।
  • संगठनात्मक संरचना: CIL को 'महारत्न' सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम के रूप में वर्गीकृत किया गया है। यह ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (ECL), भारत कोकिंग कोल लिमिटेड (BCCL) जैसी 8 सहायक कंपनियों के माध्यम से कार्य करती है।
    • महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड (MCL) CIL की सबसे बड़ी कोयला उत्पादक सहायक कंपनी है।
  • सामरिक महत्त्व: भारत की स्थापित विद्युत क्षमता का आधे से अधिक हिस्सा कोयला आधारित है, जिसमें CIL देश के कुल कोयला उत्पादन का लगभग 78% आपूर्ति करता है।
    • भारत की प्राथमिक वाणिज्यिक ऊर्जा आवश्यकताओं में भी कोयले का योगदान 40% है।
  • खनन क्षमता: आठ भारतीय राज्यों में CIL 84 खनन क्षेत्रों में कार्य करती है तथा कुल 313 सक्रिय खदानों का प्रबंधन करती है। 
  • हालिया घटनाक्रम: CIL ने हाल ही में कोयला और लिग्नाइट अन्वेषण पर रणनीति रिपोर्ट के साथ-साथ माइन क्लोज़र पोर्टल (Mine Closure Portal)की शुरुआत की है
    • इसने निगाही परियोजना ( Nigahi project) (सिंगरौली, मध्य प्रदेश) में 50 मेगावाट के सौर ऊर्जा संयंत्र के विकास की भी घोषणा की, जो कोयला और लिग्नाइट अन्वेषण के लिये रूपरेखा तैयार करता है।

नोट: एक सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम (PSU) "महारत्न" का दर्जा दिये जाने हेतु विचार किये जाने के पात्र हैं। यही उसे "नवरत्न" का दर्जा प्राप्त है , वह भारतीय स्टॉक एक्सचेंजों में सूचीबद्ध है, न्यूनतम शेयरधारिता मानदंडों का अनुपालन करती है, तथा उसका औसत वार्षिक कारोबार 25,000 करोड़ रुपए से अधिक है , पिछले तीन वर्षों में उसकी कुल संपत्ति 15,000 करोड़ रुपए से अधिक है, और शुद्ध लाभ 5,000 करोड़ रुपए से अधिक है, साथ ही उसकी वैश्विक उपस्थिति भी महत्त्वपूर्ण है।

भारत में कोयला क्षेत्र से संबंधित प्रमुख बिंदु क्या हैं?

  • स्वतंत्रता पूर्व: भारत में कोयला खनन की शुरुआत वर्ष 1774 में दामोदर नदी के किनारे रानीगंज कोयला क्षेत्र में मेसर्स सुमनेर और हीटली द्वारा की गई थी।
    • वर्ष 1853 में भाप इंजनों के प्रयोग से मांग में काफी वृद्धि हुई।
  • स्वतंत्रता के बाद: वर्ष 1956 में स्थापित राष्ट्रीय कोयला विकास निगम (NCDC) ने कोयला उद्योग के व्यवस्थित और वैज्ञानिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण: राष्ट्रीयकरण की प्रक्रिया दो चरणों में शुरू हुई:
    • सर्वप्रथम वर्ष 1971-72 में कोकिंग कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण किया गया था।
    • वर्ष 1973 में गैर-कोकिंग कोयला खदानें स्थापित की गईं।
  • वर्तमान उत्पादन: भारत ने वर्ष 2023-24 में 997.83 मिलियन टन (MT) कोयला का उत्पादन किया। CIL का उत्पादन 10.04% की वृद्धि के साथ 773.81 MT तक पहुँच गया।
    • TISCO, IISCO, DVC और अन्य द्वारा भी छोटी मात्रा में कोयले का उत्पादन किया जाता है।
  • कोयला आयात: वर्ष 2022-23 में कोयले का कुल आयात 237.668 मीट्रिक टन तथा वर्ष 2021-22 में 208.627 मीट्रिक टन था, इस प्रकार वर्ष 2021-22 की तुलना में यह 13.92% की वृद्धि को दर्शाता है।
    • कोयला मुख्य रूप से इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया, रूस, दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका, सिंगापुर और मोज़ाम्बिक से आयात किया जाता था।
    • इस्पात, विद्युत्, सीमेंट और कोयला व्यापारी अपनी आपूर्ति आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये नॉन-कोकिंग कोयले का आयात करते हैं।

कोयले का वर्गीकरण

  • एन्थ्रेसाइट: उच्चतम गुणवत्ता वाला कोयला, 80-95% कार्बन, उच्च कैलोरी मान, नीली लौ के साथ ज्वलित है, जम्मू और कश्मीर में यह अल्प मात्रा में पाया जाता है।
  • बिटुमिनस: 60-80% कार्बन, उच्च कैलोरी मान, निम्न नमी; झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में पाया जाता है।
  • लिग्नाइट: 40-55% कार्बन, भूरा रंग, उच्च आर्द्रता, अधिक धुआँ उत्पन्न करता है; राजस्थान, असम (लखीमपुर) और तमिलनाडु में भंडार है।
  • पीट: कार्बनिक पदार्थ (लकड़ी) से कोयले में परिवर्तन के पहले चरण में प्राप्त होता है, <40% कार्बन, निम्न कैलोरी मान।

कोयला क्षेत्र का आर्थिक महत्त्व क्या है?

  • ऊर्जा आधार: कोयला ऊर्जा का प्राथमिक स्रोत है, जो मुख्य रूप से ताप विद्युत संयंत्रों को ईंधन प्रदान करता है और भारत की प्राथमिक ऊर्जा आवश्यकताओं में से आधे से अधिक को पूरा करता है।
    • अनुमान है कि वर्ष 2030 तक कोयले की मांग बढ़कर 1,462 मिलियन टन (MT) और वर्ष 2047 तक 1,755 मीट्रिक टन हो जाएगी, जो विद्युत उत्पादन के लिये इसके महत्त्व को दर्शाती है।
  • रेलवे माल ढुलाई: भारत में रेलवे माल ढुलाई में कोयला सबसे बड़ा योगदानकर्त्ता है, जो कुल माल ढुलाई आय का लगभग 49% है।
  • राजस्व सृजन: कोयला क्षेत्र विभिन्न करों, रॉयल्टी और वस्तु एवं सेवा कर (GST) के माध्यम से केंद्र तथा राज्य सरकारों को प्रत्येक वर्ष 70,000 करोड़ रुपए से अधिक का योगदान देता है।
  • रोज़गार के अवसर: कोयला क्षेत्र रोज़गार का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है, जो कोल इंडिया लिमिटेड और इसकी सहायक कंपनियों में 2 लाख से अधिक व्यक्तियों के साथ-साथ हज़ारों संविदा श्रमिकों को रोज़गार प्रदान करता है।
  • कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR): कोयला क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रम विशेष रूप से कोल इंडिया लिमिटेड कोयला उत्पादक क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, जल आपूर्ति और कौशल विकास में निवेश करते हैं, जो सामुदायिक कल्याण के प्रति क्षेत्र की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

भारत के कोयला क्षेत्र में चुनौतियाँ क्या हैं?

  • पर्यावरणीय चुनौतियाँ: 
    • वायु प्रदूषण: कोयले के जलने से सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, पार्टिकुलेट मैटर आदि का उत्सर्जन होता है, जिसके परिणामस्वरूप अम्लीय वर्षा, धुआँ, धुंध तथा श्वसन संबंधी बीमारियाँ होती हैं।
    • जल की खराब गुणवत्ता: आस-पास के जल निकायों में घुले हुए ठोस पदार्थों का उच्च स्तर पाया जाता है। भूजल का अत्यधिक पंपिंग जल की कमी की समस्या को और बढ़ा देता है।
    • भूमि क्षरण: खुले में खनन के लिये भूमि अधिग्रहण की आवश्यकता होती है, जिससे निर्वनीकरण होता है और जैवविविधता का नुकसान होता है।
  • उत्पादन की उच्च लागत: रिपोर्ट बताती है कि उत्पादन की औसत लागत लगभग 1,500 रुपए प्रति टन है, जो अन्य कोयला उत्पादक देशों की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक है।
  • कोयले की गुणवत्ता: भारत में उत्पादित कोयले का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा निम्न गुणवत्ता का है, जो दक्षता को प्रभावित करता है।
    • CIL के अनुसार घरेलू कोयले का 30-40% गैर-कोककारी (कोकिंग) कोयले के रूप में वर्गीकृत है, जो विद्युत उत्पादन के लिये कम कुशल है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश: भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक अपनी नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावाट तक बढ़ाना है। कोयला क्षेत्र का प्रभुत्व इस लक्ष्य के लिये चुनौती बन रहा है।
    • कोयले में निवेश, नवीकरणीय प्रौद्योगिकियों के विकास में निवेश के साथ प्रतिस्पर्द्धा करता है।
  • एकाधिकारवादी बाज़ार संरचना: CIL के प्रभुत्व वाले कोयला उद्योग की राष्ट्रीयकृत संरचना ने एकाधिकारवादी प्रथाओं के विषय में चिंताएँ उत्पन्न की हैं, जिसमें एकतरफा आपूर्ति समझौते भी शामिल हैं, जिनसे उपभोक्ताओं को नुकसान होता है।

भारत के कोयला क्षेत्र की चुनौतियों का समाधान कैसे करें?

  • पर्यावरणीय चुनौतियों को कम करना: स्क्रबर, फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन और इलेक्ट्रोस्टेटिक प्रीसिपिटेटर (ESP) की स्थापना से सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड तथा पार्टिकुलेट मैटर उत्सर्जन को कम किया जा सकता है।
  • प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना: प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित करने और उपभोक्ता विकल्प को बढ़ाने के लिये निजी अभिकर्त्ताओं को कोयला खनन तथा वितरण में अधिक स्वतंत्रतापूर्वक भाग लेने की अनुमति दी जानी चाहिये।  
  • निवेश विविधीकरण: कोयले से नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में संक्रमण के लिये एक स्पष्ट रोडमैप बनाना ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कोयला क्षेत्र के प्रभुत्व के कारण नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश स्थिर न हो। उदाहरण के लिये हरित पहल।
  • लागत प्रबंधन पहल: तकनीकी प्रगति, बेहतर खनन तकनीकों और बेहतर संसाधन प्रबंधन के माध्यम से कोयला उत्पादन की लागत को कम करने के उपायों का पता लगाना।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत में कोयला क्षेत्र के सामने आने वाली चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये और इन मुद्दों के समाधान के लिये व्यापक उपाय सुझाएँ।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)

  1. भारत सरकार द्वारा कोयला क्षेत्र का राष्ट्रीयकरण इंदिरा गांधी के कार्यकाल में किया गया था।
  2. वर्तमान में, कोयला खंडों का आवंटन लॉटरी के आधार पर किया जाता है।
  3. भारत हाल के समय तक घरेलू आपूर्ति की कमी को पूरा करने के लिये कोयले का आयात करता था, किंतु अब भारत कोयला उत्पादन में आत्मनिर्भर है।

उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)


प्र. भारत में इस्पात उत्पादन उद्योग को निम्नलिखित में से किसके आयात की अपेक्षा होती है? (2015)

(a) शोरा 
(b) शैल फॉस्फेट (रॉक फॉस्फेट) 
(c) कोककारी (कोकिंग) कोयला
(d) उपर्युक्त सभी

उत्तर: (c)


प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन-सा/से भारतीय कोयले का/के अभिलक्षण है/हैं? (2013)

  1. उच्च भस्म अंश
  2. निम्न सल्फर अंश
  3. निम्न भस्म संगलन तापमान

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये।

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)


मेन्स:

Q. गोंडवानालैंड के देशों में से एक होने के बावजूद भारत के खनन उद्योग अपने सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) में बहुत कम प्रतिशत का योगदान देते हैं। विवेचना कीजिये। (2021)

Q. "प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभाव के बावजूद, कोयला खनन विकास के लिये अभी भी अपरिहार्य है।" विवेचना कीजिये।(2017)


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