भारतीय अर्थव्यवस्था
बाज़ार एकाधिकार एवं प्रतिस्पर्धा-विरोधी प्रथाएँ
- 07 Mar 2024
- 17 min read
प्रिलिम्स के लिये:बाज़ार एकाधिकार और प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी प्रथाएँ, गूगल प्ले स्टोर, भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग, प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 मेन्स के लिये:बाज़ार एकाधिकार एवं प्रतिस्पर्धा-विरोधी प्रथाएँ, भारत में बाज़ार एकाधिकार एवं कानून, समावेशी विकास तथा इससे उत्पन्न होने वाले मुद्दे |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में गूगल एवं ऐप डेवलपर्स के बीच एक विवाद सामने आया है, जहाँ गूगल द्वारा लगभग एक दर्जन कंपनियों को एंड्रॉयड ऐप्स के लिये अपने बाज़ार से हटा दिया है।
- इस विवाद में बाज़ार एकाधिकार एवं प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी प्रथाओं पर चिंताएँ शामिल हैं, जिसमें एंड्रॉइड ऐप बाज़ार पर गूगल का कड़ा नियंत्रण कार्य कर रहा है।
गूगल एवं ऐप डेवलपर्स के बीच मामला क्या है?
- पृष्ठभूमि एवं प्रसंग:
- गूगल का एंड्रॉइड प्लेटफाॅर्म और इसका ऐप मार्केटप्लेस, गूगल प्ले, भारतीय स्मार्टफोन के पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभावी हैं।
- ऐप वितरण एवं राजस्व के लिये गूगल प्ले पर उनकी निर्भरता के कारण, भारतीय डेवलपर्स गूगल के नियमों तथा शुल्कों के अधीन हैं।
- यह विवाद डिजिटल सेवाओं की in-ऐप खरीदारी पर गूगल द्वारा 11% से 30% तक की शुल्क लगाने से उपजा है, जिसे डेवलपर्स नवाचार एवं प्रतिस्पर्द्धा के लिये अत्यधिक होने के साथ ही हानिकारक भी मानते हैं।
- मुद्दे एवं चिंताएँ:
- भारत मैट्रिमोनी तथा डिज़नी + हॉटस्टार जैसे प्रमुख अभिकर्त्ताओं सहित भारतीय ऐप डेवलपर्सों द्वाराआर्थिक बोझ एवं विकल्प की कमी का हवाला देते हुए गूगल द्वारा लागू शुल्क को न्यायालय में चुनौती दी है।
- भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग द्वारा प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी प्रथाओं के लिये गूगल पर ज़ुर्माना लगाया है, जो इसके बाज़ार प्रभुत्व एवं मूल्य निर्धारण नीतियों पर नियामक जाँच का संकेत देता है।
- यह संघर्ष प्लेटफाॅर्म एकाधिकार के साथ छोटे और मध्यम आकार के उद्यमों (SME), नवाचार एवं उपभोक्ता कल्याण पर उनके प्रभाव के बारे में व्यापक चिंताओं को रेखांकित करता है।
- भारत मैट्रिमोनी तथा डिज़नी + हॉटस्टार जैसे प्रमुख अभिकर्त्ताओं सहित भारतीय ऐप डेवलपर्सों द्वाराआर्थिक बोझ एवं विकल्प की कमी का हवाला देते हुए गूगल द्वारा लागू शुल्क को न्यायालय में चुनौती दी है।
- अंतर्राष्ट्रीय तुलनाएँ:
- टेक अभिकर्त्ताओं तथा ऐप डेवलपर्स के बीच इसी तरह के विवाद विश्व स्तर पर हुए हैं, ऐप्पल को अपने ऐप स्टोर शुल्क एवं प्रथाओं पर जाँच का सामना करना पड़ रहा है।
- यूरोपीय संघ तथा संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे न्यायक्षेत्रों में कानूनी एवं नियामक कार्रवाइयाँ अविश्वास संबंधी चिंताओं को दूर करने के साथ डिजिटल बाज़ारों में निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा को लागू करने के लिये मिसाल के रूप में कार्य करती हैं।
प्ले स्टोर कार्य कैसे करता है?
- गूगल का ऑपरेटिंग सिस्टम एंड्रॉइड सैमसंग, वनप्लस, मोटोरोला एवं ओप्पो समेत अन्य स्मार्टफोन पर चलता है।
- उपयोगकर्त्ता द्वारा खरीदे जाने वाले फोन में कुछ गूगल ऐप्स और प्ले स्टोर पहले से इंस्टॉल आते हैं।
- लेकिन नया ऐप जोड़ने के लिये यूज़र को प्ले स्टोर पर जाकर उसे डाउनलोड करना होगा।
- गूगल पर ऐप्स के पास डिजिटल सेवाओं के लिये भुगतान स्वीकार करने के तीन विकल्प हैं, गूगल की बिलिंग प्रणाली, वैकल्पिक भुगतान जहाँ कंपनी कमीशन प्राप्त करती है और उपभोग मोड जहाँ डेवलपर भुगतान स्वीकार करने के लिये उपयोगकर्त्ता को बाह्य वेबसाइट पर पुनर्निर्देशित करता है।
बाज़ार एकाधिकार क्या है?
- परिचय:
- बाज़ार एकाधिकार उस स्थिति को संदर्भित करता है जिसमें एक एकल कंपनी या कंपनियों का समूह किसी विशेष बाज़ार या उद्योग के महत्त्वपूर्ण हिस्से पर हावी होता है और नियंत्रित करता है।
- एकाधिकार में, केवल एक विक्रेता या निर्माता होता है जो एक विशिष्ट उत्पाद या सेवा प्रदान करता है और उपभोक्ताओं के लिये कोई करीबी विकल्प उपलब्ध नहीं होता है।
- यह एकाधिकारवादी इकाई को पर्याप्त बाज़ार शक्ति प्रदान करता है, जिससे उसे बाज़ार की स्थितियों को प्रभावित करने, कीमतें निर्धारित करने और वस्तुओं या सेवाओं की आपूर्ति को नियंत्रित करने की अनुमति मिलती है।
- बाज़ार एकाधिकार की विशेषताएँ:
- एकल विक्रेता या निर्माता:
- एकाधिकार में, केवल एक इकाई होती है जो पूरे बाज़ार पर हावी होती है। यह कंपनी किसी विशेष उत्पाद या सेवा की अनन्य प्रदाता है।
- प्रवेश में उच्च बाधाएँ:
- एकाधिकार अक्सर तब उत्पन्न होता है जब नए प्रतिस्पर्धियों को बाज़ार में प्रवेश करने से रोकने वाली महत्त्वपूर्ण बाधाएँ होती हैं। बाधाओं में उच्च स्टार्टअप लागत, संसाधनों तक विशेष पहुँच, सरकारी नियम या मज़बूत ब्रांड वफादारी शामिल हो सकती है।
- कोई विकल्प न होना:
- एकाधिकारवादी कंपनी द्वारा पेश किये गए उत्पाद या सेवा के लिये उपभोक्ताओं के पास सीमित या कोई वैकल्पिक विकल्प नहीं है। बाज़ार में इसका कोई करीबी विकल्प उपलब्ध नहीं है।
- बाज़ार की शक्ति एवं मूल्य नियंत्रण:
- एकाधिकार बाज़ार में अत्यधिक शक्ति होती है, जो उसे प्रतिस्पर्द्धा के महत्त्वपूर्ण डर के बिना कीमतों को नियंत्रित करने की अनुमति प्रदान करता है। इससे उपभोक्ताओं के लिये कीमतें अधिक हो सकती हैं और संभावित रूप से उत्पादन में कमी आ सकती है।
- आपूर्ति पर प्रभाव:
- एकाधिकार का उत्पाद या सेवा की आपूर्ति पर नियंत्रण होता है। यह उत्पादित मात्रा निर्धारित कर सकता है और साथ ही बाज़ार को प्रभावित करने के लिये आपूर्ति को समायोजित कर सकता है।
- प्रतिस्पर्द्धा का अभाव:
- प्रतिस्पर्द्धियों की अनुपस्थिति के कारण, एकाधिकार ऐसे वातावरण में संचालित होते हैं जहाँ उनके विशिष्ट उत्पाद या सेवा के लिये कोई सीधी प्रतिस्पर्द्धा नहीं होती है। प्रतिस्पर्द्धा की इस कमी के परिणामस्वरूप नवाचार एवं दक्षता के लिये प्रोत्साहन में कमी आ सकती है।
- एकल विक्रेता या निर्माता:
प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी प्रथाओं से संबंधित प्रमुख शर्तें क्या हैं?
- बेहद सस्ती कीमत:
- बेहद सस्ती मूल्य निर्धारण तब होता है जब कोई कंपनी प्रतिस्पर्द्धियों को बाज़ार से बाहर करने के लिये जानबूझकर अपनी कीमतें लागत से कम निर्धारित करती है। एक बार जब प्रतिस्पर्द्धा समाप्त हो जाते हैं, तो कंपनी घाटे की भरपाई करने एवं एकाधिकार स्थिति का लाभ प्राप्त करने के लिये कीमतें बढ़ा सकती है।
- कार्टेल:
- कार्टेल स्वतंत्र कंपनियों या राष्ट्रों के समूह हैं जो वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्माण, बिक्री तथा वितरण को नियंत्रित करने के लिये एक साथ आते हैं।
- कार्टेल आमतौर पर अवैध होते हैं और प्रतिस्पर्द्धा विरोधी व्यवहार को बढ़ावा देने के लिये जाने जाते हैं।
- विलय:
- विलय में दो या दो से अधिक कंपनियों का एक इकाई में संयोजन शामिल होता है। हालाँकि सभी विलय प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी नहीं हैं, कुछ विलय किसी विशेष बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा को कम कर देते हैं, जिससे नियामक जाँच हो सकती है।
- मूल्य निर्णय:
- मूल्य भेदभाव तब होता है जब एक विक्रेता एक ही उत्पाद या सेवा के लिये अलग-अलग ग्राहकों से अलग-अलग कीमतें वसूलता है। हालाँकि यह हमेशा अवैध नहीं होता है, लेकिन अगर यह प्रतिस्पर्द्धा को नुकसान पहुँचाता है तो इसे प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी माना जा सकता है।
- मूल्य निर्धारण समझौते:
- मूल्य निर्धारण में प्रतिस्पर्धियों के बीच उनके उत्पादों या सेवाओं के लिये एक विशिष्ट मूल्य निर्धारित करने हेतु एक समझौता शामिल होता है। यह प्रतिस्पर्द्धा को समाप्त करता है और बनावटी रूप से कीमतें बढ़ाता है, जिससे अविश्वास कानूनों का उल्लंघन होता है।
बाज़ार के एकाधिकार से निपटने के लिये भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय पहल क्या हैं?
- भारतीय:
- प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002: प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 भारत में अविश्वास मुद्दों को हल करने वाला प्राथमिक कानून है। इसे बाज़ारों में प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देने और बनाए रखने, प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी प्रथाओं को रोकने एवं उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने के लिये अधिनियमित किया गया था।
- प्रतिस्पर्द्धा संशोधन विधेयक, 2022: प्रस्तावित संशोधन का उद्देश्य नियामक फ्रेमवर्क को और सुदृढ़ करना, उभरती चुनौतियों का समाधान करना तथा प्रतिस्पर्द्धा कानून प्रवर्तन की प्रभावशीलता को बढ़ाना है।
- भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCI): CCI भारतीय बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 के तहत प्रतिस्पर्द्धा का नियामक है। यह प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम 2002 के प्रावधानों को लागू करने के लिये ज़िम्मेदार है। इसमें केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त एक अध्यक्ष व अन्य सदस्य होते हैं।
- CCI प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी प्रथाओं, प्रमुख स्थिति के दुरुपयोग और प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी समझौतों की जाँच करती है एवं कार्रवाई करती है।
- प्रतिस्पर्द्धा अपीलीय न्यायाधिकरण और NCLAT: प्रतिस्पर्द्धा अपीलीय न्यायाधिकरण शुरू में CCI के निर्णयों के खिलाफ अपील सुनने के लिये ज़िम्मेदार है।
- हालाँकि वर्ष 2017 में, सरकार ने COMPAT को राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण से प्रतिस्थापित कर दिया, जो अब प्रतिस्पर्द्धा मामलों से संबंधित अपीलों को संभालता है।
- प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002: प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 भारत में अविश्वास मुद्दों को हल करने वाला प्राथमिक कानून है। इसे बाज़ारों में प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देने और बनाए रखने, प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी प्रथाओं को रोकने एवं उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने के लिये अधिनियमित किया गया था।
- अंतर्राष्ट्रीय पहल:
- OECD प्रतिस्पर्द्धा समिति: आर्थिक सहयोग और विकास संगठन OECD प्रतिस्पर्द्धा समिति सहित विभिन्न पहलों के माध्यम से प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी प्रथाओं से निपटता है, जो प्रतिस्पर्द्धा से संबंधित मुद्दों पर सदस्य देशों के बीच चर्चा और सहयोग की सुविधा प्रदान करता है।
- व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन: यह प्रतिस्पर्द्धा कानून और नीति पर अपने अंतर सरकारी विशेषज्ञों के समूह के माध्यम से प्रतिस्पर्द्धा नीति व कानून पर मार्गदर्शन प्रदान करता है तथा प्रभावी प्रतिस्पर्द्धा फ्रेमवर्क को लागू करने में राष्ट्रों का समर्थन करता है।
- यह उपभोक्ताओं का दुरुपयोग से संरक्षण और प्रतिस्पर्द्धा को बाधित करने वाले नियमों पर अंकुश लगाने की नीतियों के विषय में भीं कार्य करता है।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा नेटवर्क (ICN): ICN समग्र विश्व के प्रतिस्पर्द्धा प्राधिकरणों का एक नेटवर्क है। यह वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा चुनौतियों से निपटने के लिये सदस्य न्यायालयों के बीच संचार और सहयोग की सुविधा प्रदान करता है।
- ICN, प्रतिस्पर्द्धा कानून के विभिन्न पहलुओं पर सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने और दिशा-निर्देश तैयार करने के लिये एक मंच प्रदान करता है।
- विश्व व्यापार संगठन (WTO): मुख्य रूप से व्यापार के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, WTO व्यापार और प्रतिस्पर्द्धा नीति के बीच वार्ता पर कार्य समूह के माध्यम से प्रतिस्पर्द्धा नीति को संबोधित करता है।
- इसका उद्देश्य प्रतिस्पर्द्धा नीतियों के कारण व्यापार में अनावश्यक बाधाएँ उत्पन्न होने से बचाना है।
आगे की राह
- सार्वजनिक नीति विशेषज्ञ और उद्योग प्रतिनिधि जैसे समर्थक प्रतिस्पर्द्धा बढ़ाने तथा ऐप स्टोर गेटकीपरों के प्रभुत्व को कम करने के लिये नियामक सुधारों का प्रस्ताव कर सकते हैं।
- ऐप स्टोर नीतियों में पारदर्शिता और निष्पक्षता को अनिवार्य बनाना, अधिक भुगतान विकल्पों के साथ डेवलपर्स को सशक्त बनाना तथा वैकल्पिक वितरण चैनलों के उद्भव को सुविधाजनक बनाना महत्त्वपूर्ण है।
- प्लेटफॉर्म प्रदाताओं, डेवलपर्स और उपभोक्ताओं के हितों को संतुलित करने के लिये नवाचार, प्रतिस्पर्द्धा तथा उपभोक्ता कल्याण को प्राथमिकता देने वाले एक समावेशी दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारतीय विधान के प्रावधानों के अंतर्गत उपभोक्ताओं के अधिकारों/विशेषाधिकारों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2012)
निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न. क्या वर्ष 1991 में शुरू हुए उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की मांगों के लिये भारत सरकार की व्यवस्था ने पर्याप्त रूप से प्रतिक्रिया दी है? इस महत्त्वपूर्ण परिवर्तन के प्रति उत्तरदायी होने के लिये सरकार क्या कर सकती है? (2016) |