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शासन व्यवस्था

कोल इंडिया और CCI

  • 23 Jun 2023
  • 14 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग, सर्वोच्च न्यायालय, कोयला खदान (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1973, प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002

मेन्स के लिये:

बाज़ार की बदलती गतिशीलता के कारण प्रतिस्पर्द्धा आयोग का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 के तहत CIL के आचरण की जाँच करने के भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (Competition Commission of India- CCI) के अधिकार को बरकरार रखते हुए कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) की अपील को खारिज कर दिया

न्यायालय ने CIL को प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम के दायरे से बाहर करने हेतु कोई ठोस प्रमाण नहीं पाया, जिस पर पहले अनुचित गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाया गया था।

संबंधित मुद्दा: 

  • परिचय: 
    • वर्ष 2017 में CCI ने विद्युत उत्पादकों के साथ ईंधन आपूर्ति समझौतों (Fuel Supply Agreements- FSA) में अनुचित और भेदभावपूर्ण शर्तें आरोपित करने हेतु CIL पर 591 करोड़ रुपए का ज़ुर्माना लगाया था।
      • इस कंपनी को उच्च कीमतों पर कम गुणवत्ता वाले कोयले की आपूर्ति करने एवं आपूर्ति मापदंडों तथा गुणवत्ता के संबंध में अनुबंध में अपारदर्शी शर्तों का अनुसरण करते हुए पाया गया था।
    • CCI ने तर्क दिया कि कोल इंडिया और उसकी सहायक कंपनियाँ बाज़ार की ताकतों से स्वतंत्र होकर काम करती हैं और भारत में गैर-कोकिंग कोयले के उत्पादन एवं आपूर्ति में बाज़ार प्रभुत्व का लाभ लेती हैं।

नोट: 

  • कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) एक सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है जो भारत में सबसे बड़ा कोयला उत्पादक और आपूर्तिकर्त्ता है।
  • यह कोयला खान (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1973 के तहत संचालित होता है, जो इसे देश में कोयला खनन और वितरण पर एकाधिकार देता है।
  • वर्ष 2010 में विनिवेश तक CIL पूरी तरह से सरकारी स्वामित्व वाली इकाई थी। वर्तमान में सरकार के पास 67% शेयर प्रतिशत के साथ बहुमत हिस्सेदारी है।

CIL और CCI के तर्क:

  • CIL का रुख:
    • "कॉमन गुड" का सिद्धांत:
      • CIL "कॉमन गुड" को बढ़ावा देने और एक महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन के रूप में कोयले का समान वितरण सुनिश्चित करने के सिद्धांतों के आधार पर काम करती है।
    • एकाधिकार की स्थिति:
      • कुशल कोयला उत्पादन और वितरण के लिये स्थापित "एकाधिकार" के रूप में अपनी स्थिति का दावा करने हेतु CIL 1973 के राष्ट्रीयकरण अधिनियम को संदर्भित करता है।
    • विभेदक मूल्य निर्धारण:
      • CIL बड़े परिचालन पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने और कल्याणकारी उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से कैप्टिव कोयला उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिये विभेदक मूल्य निर्धारण लागू करता है।
    • राष्ट्रीय नीतियों के लिये निहितार्थ:
      • CIL की कोयला आपूर्ति राष्ट्रीय नीतियों का समर्थन करती है, जैसे बढ़े हुए आवंटन के माध्यम से आर्थिक रूप से वंचित क्षेत्रों में विकास को बढ़ावा देना।
      • CIL कोयला आपूर्ति की राष्ट्रीय नीतियों का समर्थन करती है, जैसे बढ़े हुए आवंटन के माध्यम से आर्थिक रूप से वंचित क्षेत्रों में विकास को बढ़ावा देना।
  •   CCI का पक्ष: 
    • राघवन समिति की रिपोर्ट (2020):  
      • CCI ने राघवन समिति की रिपोर्ट (2020) का हवाला दिया, जिसका निष्कर्ष था कि CIL जैसी राज्य के एकाधिकार (Monopoly) वाली कंपनियाँ राष्ट्र के सर्वोत्तम हित में नहीं हैं और उन्हें प्रतिस्पर्द्धी होना चाहिये।
      • यह बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा और जवाबदेही को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
    • गैर-आवश्यक वस्तु वर्गीकरण:  
      • CCI ने इस बात पर ज़ोर दिया कि वर्ष 2007 से कोयले को "आवश्यक वस्तु" के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है।
        • राष्ट्रीयकरण अधिनियम को भी वर्ष 2017 में नौवीं अनुसूची (ऐसे कानून जिन्हें न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती) से हटा दिया गया था।
      • इससे पता चलता है कि कोयला बाज़ार की गतिशीलता के अधीन है और इसे प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 से छूट नहीं दी जानी चाहिये।
    • उपभोक्ताओं पर प्रभाव:
      • CCI ने कोयले की कीमतों और आपूर्ति में उतार-चढ़ाव से विद्युत उत्पादक कंपनियों पर पड़ने वाले प्रमुख प्रभावों की ओर ध्यान आकृष्ट किया, जिसका उपभोक्ताओं पर अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है।
      • CIL द्वारा अनुचित मूल्य निर्धारण अथवा आपूर्ति प्रणाली का सीधा असर उपभोक्ताओं के हितों पर पड़ेगा। 
    • सरकारी स्वामित्व और आपूर्ति संबंधी आवंटन:
      • CIL द्वारा विद्युत कंपनियों को की जाने वाली कोयला आपूर्ति राष्ट्र के कल्याण हेतु कोयला आपूर्ति से जुड़ी है।
      • CCI का तर्क था कि कोयले की निरंतर आपूर्ति, अनुबंधों का अनुपालन, उचित मूल्य निर्धारण और गुणवत्ता सुनिश्चित करना आम लोगों के हित में है। 
  • सर्वोच्च न्यायालय का फैसला: 
    • सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीयकरण अधिनियम, 1973 के आधार पर छूट संबंधी CIL के तर्क को खारिज कर दिया और फैसला सुनाया कि इसे प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम से छूट नहीं दी जा सकती।
    • न्यायालय ने "प्रतिस्पर्द्धी तटस्थता" के विचार और समान अवसर की आवश्यकता की पुष्टि की तथा फैसला सुनाया कि विशेषज्ञता क्षेत्र की परवाह किये बिना संगठनों के बीच निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा और समानता की आवश्यकता पर ज़ोर दिया जाना चाहिये।
    • यह निर्णय कुशल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में प्रतिस्पर्द्धा के महत्त्व पर प्रकाश डालता है। 

कोयला खदान (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1973: 

  • कोयला संसाधन के तर्कसंगत, समन्वित और वैज्ञानिक विकास को सुनिश्चित करने के लिये भारतीय संसद द्वारा कोयला खदान (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1973 लागू किया गया था।
    • इस अधिनियम के तहत कोयला खनन विशेष रूप से सार्वजनिक क्षेत्र के लिये आरक्षित था।
  • लोहे एवं इस्पात उत्पादन में निजी कंपनियों द्वारा कैप्टिव खनन तथा अलग-अलग छोटे क्षेत्रों में उप-पट्टे पर देने के लिये वर्ष 1976 में अपवाद पेश किये गए थे।
  • वर्ष 1993 में हुए संशोधनों ने विद्युत उत्पादन, कोयला धुलाई और अन्य अधिसूचित अंतिम उपयोगों के लिये कैप्टिव कोयला खनन में निजी क्षेत्र की भागीदारी की अनुमति दी।
    • कैप्टिव उपयोग के लिये कोयला खदानों का आवंटन एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति की सिफारिशों पर आधारित था।
    • सरकारी अधिसूचना द्वारा सीमेंट उत्पादन में कैप्टिव उपयोग के लिये कोयले के खनन की अनुमति दी गई थी।
  • इस अधिनियम ने सीमित प्रावधानों के साथ भारत में विशिष्ट क्षेत्रों एवं उद्देश्यों के लिये निजी क्षेत्र की भागीदारी हेतु कोयला खनन पर सरकारी नियंत्रण को स्थापित किया।

भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग:

  • परिचय: 
    • प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 को लागू करने का उत्तरदायित्व इस सांविधिक निकाय पर है।
    • यह मार्च 2009 में एकाधिकारी तथा प्रतिबंधकारी व्यापार अधिनियम, 1969 की जगह स्थापित किया गया।
    • इस अर्द्ध-न्यायिक निकाय का कार्य मामलों में राय देना और उनका समाधान करना है।
  • संरचना: 
    • इसमें एक अध्यक्ष और छह सदस्य होते हैं जो केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किये जाते हैं।
  • प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002:
    • प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम शुरुआत में वर्ष 2002 में पारित किया गया था तथा बाद में वर्ष 2007 के प्रतिस्पर्द्धा (संशोधन) अधिनियम द्वारा संशोधित किया गया था। इसे बाद में वर्ष 2023 के प्रतिस्पर्द्धा संशोधन अधिनियम द्वारा संशोधित किया गया है।
      • इस नवीनतम संशोधन का उद्देश्य लेन-देन मूल्य के आधार पर विलय और अधिग्रहण को विनियमित करना, मामलों का निपटान करना तथा प्रतिबद्धता के साथ जाँच के आधार पर त्वरित समाधान हेतु एक रूपरेखा तैयार करना और अधिनियम के तहत कुछ विनिर्दिष्ट अपराधों को अपराध की श्रेणी से हटाना है
    • यह प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी समझौतों और प्रमुख स्थिति के दुरुपयोग पर रोक लगाता है।
    • यह भारत के भीतर प्रतिस्पर्द्धा पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले संयोजनों को नियंत्रित करता है।
    • संशोधित अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग और प्रतिस्पर्द्धा अपीलीय न्यायाधिकरण (COMPAT) की स्थापना की गई है।
    • सरकार ने वर्ष 2017 में COMPAT को बदलकर इसे राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (National Company Law Appellate Tribunal- NCLAT) कर दिया।
  • CCI के कार्य और भूमिका: 
    • प्रतिस्पर्द्धा पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली प्रथाओं को समाप्त करना और उपभोक्ता हितों की रक्षा करना।
    • वैधानिक प्राधिकारियों द्वारा संदर्भित प्रतिस्पर्द्धा संबंधी मुद्दों पर राय देना।
    • प्रतिस्पर्द्धा की वकालत करना, सार्वजनिक जागरूकता को बढ़ना और प्रतिस्पर्द्धा के मुद्दों पर प्रशिक्षण प्रदान करना।
    • आर्थिक वृद्धि एवं विकास के लिये उपभोक्ता कल्याण और निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा सुनिश्चित करना।
    • आर्थिक संसाधनों के कुशल उपयोग के लिये प्रतिस्पर्द्धा नीतियों को लागू करना। 

भारतीय बाज़ार एकाधिकार से संबंधित अन्य निर्णय: 

  • भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग बनाम भारतीय इस्पात प्राधिकरण लिमिटेड (SAIL) (2010):
    • सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय रेलवे को रेल की आपूर्ति में प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी प्रथाओं के लिये SAIL की जाँच करने हेतु CCI के आदेश को बरकरार रखा। 
    • सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि SAIL को प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम से छूट नहीं थी और प्रारंभिक चरण में इस आदेश पर कोई अपील नहीं किया जा सकती थी।
    • न्यायालय ने आगे यह भी कहा कि COMPAT के समक्ष किसी भी अपील में CCI एक आवश्यक अथवा उचित पक्ष था।
  • भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग बनाम गूगल LLC एवं अन्य (2021):
    • CCI ने भारत के स्मार्ट टीवी और एंड्रॉइड एप स्टोर बाज़ारों में गूगल द्वारा कथित प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी प्रथाओं की जाँच करने वाले कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील की।
    • उच्च न्यायालय  ने अधिकार क्षेत्र की कमी और गूगल के पास अपना मामला पेश करने का कोई अवसर न होने के कारण CCI के आदेश को रद्द कर दिया।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने CCI की जाँच पर रोक लगा दी और इसमें शामिल सभी पक्षों को नोटिस जारी किया

स्रोत: द हिंदू

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