डेली न्यूज़ (05 Oct, 2023)



पशुधन से मीथेन उत्सर्जन

प्रिलिम्स के लिये:

खाद्य और कृषि संगठन, मीथेन उत्सर्जन

मेन्स के लिये:

मीथेन उत्सर्जन से निपटने के लिये भारत में पहल, ग्रीनहाउस गैस के रूप में मीथेन का महत्त्व और जलवायु परिवर्तन पर इसका प्रभाव

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में खाद्य और कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization - FAO) ने "पशुधन और चावल प्रणालियों में मीथेन उत्सर्जन" शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। यह रिपोर्ट पशुधन और चावल के खेतों से होने वाले मीथेन उत्सर्जन के कारण जलवायु पर पड़ने वाले प्रभाव पर प्रकाश डालती है।

  • यह रिपोर्ट, जिसे सितंबर 2023 में FAO के पहले "सतत् पशुधन परिवर्तन पर वैश्विक सम्मेलन" के दौरान जारी किया गया था, IPCC की छठी मूल्यांकन रिपोर्ट में वर्णित पेरिस समझौते के उद्देश्यों को पूरा करने में मीथेन उत्सर्जन को कम करने के महत्त्व पर ज़ोर देती है।

रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष:

  • मीथेन उत्सर्जन के स्रोत:
    • जुगाली करने वाले पशुधन और खाद प्रबंधन का वैश्विक स्तर पर मानवजनित मीथेन उत्सर्जन में लगभग 32% का योगदान है।
    • चावल के खेतों से अतिरिक्त 8% मीथेन उत्सर्जन होता है।
    • कृषि खाद्य प्रणालियों के अतिरिक्त, मीथेन उत्सर्जन उत्पन्न करने वाली अन्य मानवीय गतिविधियों में लैंडफिल, तेल और प्राकृतिक गैस प्रणालियाँ, कोयला खदानें आदि शामिल हैं।

नोट:

  • जुगाली करने वाले पशु रुमिनेंटिया (आर्टियोडैक्टाइला) उपवर्ग के स्तनधारी जीव हैं।
    • इनमें जिराफ, ओकापिस, हिरण, मवेशी, मृग, भेड़ और बकरी जैसे जानवरों का एक विविध समूह शामिल है।
  • अधिकांश जुगाली करने वाले जानवरों का उदर चार कक्षों (four-chambered) वाला और पैर दो खुरों वाला होता है। हालाँकि ऊँटों और चेवरोटेन्स (chevrotains) का उदर तीन-कक्षीय होता है तथा इन्हें अक्सर स्यूडोरुमिनेंट कहा जाता है।
  • जुगाली करने वाले पशुधन का प्रभाव:
    • मीथेन के दैनिक उत्सर्जन में सबसे अधिक योगदान मवेशियों का हैं, इसके बाद भेड़ और बकरी का स्थान है।
    • जुगाली करने वाले पशुधन माँस एवं दूध प्रदान करने वाले प्रोटीन के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं और वर्ष 2050 तक इन पशु उत्पादों की वैश्विक मांग 60-70% तक बढ़ने की उम्मीद है।
  • फीड दक्षता में सुधार:
    • यह रिपोर्ट फीड दक्षता बढ़ाकर मीथेन उत्सर्जन को कम करने पर केंद्रित है।
      • इसमें पोषक तत्त्व घनत्व और फीड पाचनशक्ति में वृद्धि, रूमेन माइक्रोबियल संरचना में बदलाव, नकारात्मक अपशिष्ट फीड सेवन और अल्प चयापचय के शारीरिक वज़न वाले जानवरों का चयन करना शामिल है।
    • बढ़ी हुई फीड दक्षता फीड की प्रति इकाई पशु उत्पादकता को बढ़ाती है, संभावित रूप से फीड लागत और मांस/दुग्ध संप्राप्ति के आधार पर कृषि लाभप्रदता में वृद्धि करती है।
  • क्षेत्रीय अध्ययन की आवश्यकता:
    • यह रिपोर्ट पशु उत्पादन बढ़ाने तथा मीथेन उत्सर्जन को कम करने के लिये बेहतर पोषण, स्वास्थ्य, प्रजनन और आनुवंशिकी के प्रभावों के मापन के लिये क्षेत्रीय अध्ययन की आवश्यकता पर बल देती है।
      • इस तरह के अध्ययनों से क्षेत्रीय स्तर पर निवल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर शमन रणनीतियों के प्रभाव का आकलन करने में मदद मिलेगी।
  • मीथेन उत्सर्जन को कम करने की रणनीतियाँ:
    • अध्ययन में मीथेन उत्सर्जन को कम करने के लिये चार व्यापक रणनीतियों का उल्लेख किया गया है:
      • पशु प्रजनन एवं प्रबंधन
      • आहार योजना, उचित आहार और फीड प्रबंधन
      • चारा अनुसंधान
      • जुगाली में बदलाव
  • चुनौतियाँ और अनुसंधान अंतराल:
    • चुनौतियों में कार्बन फुटप्रिंट की गणना के लिये क्षेत्रीय जानकारी की कमी और सीमित आर्थिक रूप से किफायती मीथेन शमन समाधान शामिल हैं।
    • व्यावहारिक एवं लागत प्रभावी उपाय विकसित करने के लिये और अधिक शोध की आवश्यकता है।

मीथेन:

  • मीथेन सबसे सरल हाइड्रोकार्बन है, जिसमें एक कार्बन परमाणु (C) और चार हाइड्रोजन परमाणु (H4) होते हैं।
    • यह ज्वलनशील है और विश्व भर में इसका उपयोग ईंधन के रूप में किया जाता है।
  • मीथेन एक प्रबल ग्रीनहाउस गैस (GHG) है, जिसका वायुमंडलीय जीवनकाल लगभग एक दशक का होता है और यह जलवायु को सैकड़ों वर्षों तक प्रभावित करती है।
  • वायुमंडल में अपने अस्तित्त्व के प्रारंभिक 20 वर्षों में, मीथेन का वार्मिंग प्रभाव कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में 80 गुना अधिक है।
  • मीथेन के सामान्य स्रोत तेल और प्राकृतिक गैस प्रणालियाँ, कृषि गतिविधियाँ, कोयला खनन एवं अपशिष्ट हैं।

मीथेन उत्सर्जन से निपटने के लिये पहल:

  • भारतीय स्तर पर:
    • 'हरित धरा' (HD):
      • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research- ICAR) ने एक एंटी-मिथेनोजेनिक फीड सप्लीमेंट 'हरित धारा' (HD) को विकसित किया है, जो मवेशियों के मीथेन उत्सर्जन को 17-20% तक कम कर सकता है और इसके परिणामस्वरूप अधिक दूध उत्पादन भी हो सकता है।
    • सतत् कृषि पर राष्ट्रीय मिशन (National Mission on Sustainable Agriculture-NMSA):
      • इसे कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित किया जाता है और इसमें चावल की खेती में मीथेन नियंत्रण विधिओं जैसी जलवायु प्रत्यास्थ गतिविधियाँ शामिल हैं
        • ये विधियाँ मीथेन उत्सर्जन में पर्याप्त कमी लाने में योगदान करती हैं।
    • जलवायु अनुकूल कृषि में राष्ट्रीय नवाचार (National Innovation in Climate Resilient Agriculture-NICRA):
      • NICRA परियोजना के तहत भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने चावल की कृषि से मीथेन उत्सर्जन को कम करने के लिये तकनीक विकसित की है। इन प्रौद्योगिकियों में शामिल हैं:
        • चावल गहनता प्रणाली: यह तकनीक पारंपरिक रोपाई वाले चावल की तुलना में 22-35% कम जल का उपयोग करते हुए चावल की उपज को 36-49% तक बढ़ा सकती है।
        • चावल का प्रत्यक्ष बीजारोपण: यह विधि पारंपरिक धान की कृषि के विपरीत नर्सरी को बढ़ावा देने, जल भराव और रोपाई की आवश्यकता को समाप्त करके मीथेन उत्सर्जन को कम करती है।
        • फसल विविधीकरण कार्यक्रम: धान की कृषि से दालें, तिल, मक्का, कपास और कृषि वानिकी जैसी वैकल्पिक फसलों को अपनाने से मीथेन उत्सर्जन को कम किया जा सकता है।
    • भारत स्टेज-VI मानदंड:
  • वैश्विक स्तर पर:
    • मीथेन चेतावनी और प्रतिक्रिया प्रणाली (MARS):
      • MARS बड़ी संख्या में मौज़ूदा और भविष्य के उपग्रहों से डेटा को एकीकृत करेगा जो विश्व में कहीं भी मीथेन उत्सर्जन की घटनाओं का पता लगाने की क्षमता रखता है तथा इस पर कार्रवाई करने के लिये संबंधित हितधारकों को सूचनाएँ भेजता है।
    • वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा :
      • वर्ष 2021 में ग्लासगो जलवायु सम्मेलन (UNFCCC COP 26) में वर्ष 2030 तक मीथेन उत्सर्जन को वर्ष 2020 के स्तर से 30% तक कम करने के लिये लगभग 100 राष्ट्र एक स्वैच्छिक प्रतिज्ञा में शामिल हुए थे, जिसे ग्लोबल मीथेन प्रतिज्ञा के रूप में जाना जाता है।
        • भारत वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा का हिस्सा नहीं है।
    • वैश्विक मीथेन पहल (Global Methane Initiative- GMI):
      • यह एक अंतर्राष्ट्रीय सार्वजनिक-निजी साझेदारी है जो स्वच्छ ऊर्जा स्रोत के रूप में मीथेन की पुनर्प्राप्ति और उपयोग में आने वाली बाधाओं को कम करने पर केंद्रित है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. ‘मीथेन हाइड्रेट’ के निक्षेपों के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-से कथन सही हैं? (2019)

  1. भूमंडलीय तापन के कारण इन निक्षेपों से मीथेन गैस का निर्मुक्त होना प्रेरित हो सकता है।
  2. ‘मीथेन हाइड्रेट’ के विशाल निक्षेप उत्तरध्रुवीय टुंड्रा में तथा समुद्र अधस्तल के नीचे पाए जाते हैं।
  3. वायुमंडल के अंदर मीथेन एक या दो दशक के बाद कार्बन डाइऑक्साइड में ऑक्सीकृत हो जाती है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर : (d)

प्रश्न. निम्न पर विचार कीजिये : (2019)

  1. कार्बन मोनोक्साइड
  2. मीथेन
  3. ओज़ोन
  4. सल्फर डाइऑक्साइड

उपर्युक्त में से कौन फसल/बायोमास अवशेषों को जलाने के कारण वातावरण में उत्सर्जित होते हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (d)


कछुओं और हार्ड शेल टर्टल का अवैध व्यापार

प्रिलिम्स के लिये:

टर्टल, भारतीय स्टार कछुआ, ओलिव रिडले, ग्रीन टर्टल 

मेन्स के लिये:

कछुओं और टर्टल के लिये प्रमुख खतरे, वन्यजीव तस्करी।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों ?

ओरिक्स, द इंटरनेशनल जर्नल ऑफ कंज़र्वेशन में प्रकाशित 'फ्रॉम पेट्स टू प्लेट्स' नामक एक हालिया अध्ययन ने कछुओं और हार्ड-शेल टर्टल के अवैध व्यापार के बारे में जानकारी प्रदान की है।

  • यह अध्ययन वाइल्डलाइफ कंज़र्वेशन सोसाइटी-इंडिया के काउंटर वाइल्डलाइफ ट्रैफिकिंग प्रोग्राम से जुड़े विशेषज्ञों द्वारा किया गया था।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:

  • चेन्नई ट्रैफिकिंग नेटवर्क में अग्रणी:
    • चेन्नई कछुआ और हार्ड-शेल टर्टल ट्रैफिकिंग नेटवर्क में प्राथमिक नोड के रूप में उभरा है।
      • यह शहर वैश्विक पालतू पशु व्यापार में एक केंद्रीय भूमिका निभाता है, जिससे इन सरीसृपों के अवैध व्यापार को सहायता मिलती है।
    • मुंबई, कोलकाता, बंगलुरु, अनंतपुर, आगरा, उत्तर 24 परगना (पश्चिम बंगाल में), और हावड़ा (भारत-बांग्लादेश सीमा के पास) भी इस नेटवर्क के लिये महत्त्वपूर्ण क्षेत्र हैं, जो कछुओं व टर्टल  की तस्करी में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।
  • मुख्य रूप से घरेलू सॉफ्ट-शैल टर्टल की तस्करी:
    • सॉफ्ट-शेल टर्टल की तस्करी मुख्य रूप से घरेलू प्रकृति की है। भारत से सॉफ्ट-शेल टर्टल की अंतर्राष्ट्रीय तस्करी ज़्यादातर बांग्लादेश तक ही सीमित है।
  • एशियाई कछुओं पर संकट:
    • कछुओं और मीठे जल के टर्टलों की वन्य आबादी को पालतू जानवरों, भोजन एवं दवाओं के अवैध व्यापार से भारी दबाव का सामना करना पड़ता है।
      • भारत में संकटग्रस्त कछुए और मीठे जल के टर्टल (TFT) की 30 प्रजातियों में से कम से कम 15 का अवैध तरीके से व्यापार किया जाता है। मीठे जल की प्रजातियों, जैसे कि भारतीय फ्लैपशेल टर्टल, की अवैध बाज़ारों में बहुत माँग है।
        • भारतीय सॉफ्टशेल टर्टल, जिसे गंगा सॉफ्टशेल टर्टल भी कहा जाता है, मीठे जल का सरीसृप है जो उत्तरी एवं पूर्वी भारत में गंगा, सिंधु और महानदी नदियों में पाया जाता है।
  • तस्करी के नेटवर्क का तुलनात्मक अध्ययन :
    • अध्ययन में पाया गया कि सॉफ्ट-शेल टर्टल की तस्करी के नेटवर्क की तुलना में कछुए और हार्ड-शेल वाले टर्टलों की तस्करी का नेटवर्क भौगोलिक स्तर पर अधिक व्यापक था तथा ये अंतर्राष्ट्रीय तस्करी से भी संबद्ध थे।  
    • कछुए और हार्ड-शेल टर्टल की तस्करी जटिल मार्ग से होती है, जबकि सॉफ्ट-शेल टर्टल की तस्करी में मुख्य रूप से स्रोत से गंतव्य तक एक-दिशात्मक मार्ग का पालन किया जाता है।
  • तस्करी किये गये टर्टल की गंभीर स्थिति:
    • अवैध व्यापार में शामिल टर्टल प्रायः निर्जलित, भूखे और घायल अवस्था में पाए जाते हैं।
    • तस्करी किये गए टर्टल की उच्च मृत्यु दर इस मुद्दे का समाधान करने की तात्कालिकता को रेखांकित करती है।

कछुए और हार्ड-शेल टर्टल:

  • सभी कछुए, टर्टल हैं क्योंकि वे टेस्टुडाइन्स/चेलोनिया वर्ण के हैं।
  • कछुओं को ज़मीन पर रहने के कारण अन्य टर्टल से अलग किया गया है, जबकि टर्टल की कई (हालाँकि सभी नहीं) प्रजातियाँ आंशिक रूप से जलीय होती हैं।
  • हार्ड-शेल टर्टल के कवच सख्त और हड्डीदार होते हैं जो इन्हें सुरक्षा प्रदान करते हैं, तथा उन्हें आसानी से दबाया नहीं जा सकता।
  • इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) के अनुसार कछुओं और टर्टल की अधिकांश प्रजातियाँ असुरक्षित, लुप्तप्राय या गंभीर रूप से संकटग्रस्त हैं।
  • इंडियन स्टार कछुआ, ओलिव रिडले कछुआ और हरा कछुआ भारत में कछुओं और हार्ड-शेल टर्टल के कुछ उदाहरण हैं।

सॉफ्टशेल टर्टल:

  • सॉफ्टशेल टर्टल Trionychidae परिवार में सरीसृपों का एक बड़ा समूह हैं।
  • उन्हें सॉफ्टशेल्स कहा जाता है क्योंकि उनके खोलों/कवचों में कठोर शल्कों का अभाव होता है, इनके कवच चमड़े जैसे लचीले होते हैं।
  • वे प्रायः मिट्टी, रेत और उथले जल में रहते हैं।
  • भारत में आम तौर पर पाए जाने वाले सॉफ्ट-शेल टर्टल इंडियन फ्लैपशेल कछुए, इंडियन पीकॉक सॉफ्ट-शेल कछुए और लिथ्स सॉफ्ट-शेल कछुए हैं।

विशेषता

कछुआ (Tortoise- कच्छप)

टर्टल (Turtle- कूर्म)

कवच का आकार

ऊँचे गुम्बदाकार, गोलाकार, भारी कवच वाले

पतले और अधिक सुव्यवस्थित

प्राकृतिक आवास

मुख्यतः स्थलीय (भूमि-निवास)

जल में जीवन के लिये  अनुकूलित

आहार

मुख्यतः शाकाहारी

सर्वाहारी या शाकाहारी

अंग

मोटी, स्तम्भाकार टाँगें, पंजे जैसी उंगलियाँ

तरणक-पाद, जालीदार पैर


दक्षिण-चीन सागर

प्रिलिम्स के लिये:

दक्षिण-चीन सागर, स्प्रैटली द्वीप समूह, पार्सल द्वीप समूह, प्रतास द्वीप समूह, नटुना द्वीप और स्कारबोरो शोल, आसियान, संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून अभिसमय

मेन्स के लिये:

दक्षिण चीन सागर का महत्त्व और संबंधित मुद्दे

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में फिलीपींस के तट रक्षकों ने स्कारबोरो शोल(Shoal) के लैगून के प्रवेश द्वार पर चीनी जहाज़ों द्वारा लगाए गए अवरोधों को हटा दिया।

  • यह घटना तब हुई जब चीनी तटरक्षक जहाज़ों ने फिलीपींस की नौकाओं को प्रवेश करने से रोकने के लिये 300 मीटर लंबा अवरोध लगाया, जिससे दक्षिण-चीन सागर में लंबे समय से चल रहा तनाव बढ़ गया।

दक्षिण-चीन सागर का महत्त्व:

  • सामरिक स्थिति: दक्षिण-चीन सागर की सीमा उत्तर में चीन एवं ताइवान से पश्चिम में भारत-चीनी प्रायद्वीप (वियतनाम, थाईलैंड, मलेशिया एवं सिंगापुर सहित), दक्षिण में इंडोनेशिया और ब्रुनेई तथा पूर्व में फिलीपींस से लगती है (पश्चिम फिलीपीन सागर के रूप में जाना जाता है)। 
    • यह ताइवान जलडमरूमध्य द्वारा पूर्वी-चीन सागर से और लूज़ाॅन जलडमरूमध्य द्वारा फिलीपीन सागर (प्रशांत महासागर के दोनों सीमांत समुद्र) से जुड़ा हुआ है।
  • व्यापारिक महत्त्व: वर्ष 2016 में लगभग 3.37 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य का व्यापार दक्षिण चीन सागर के माध्यम से किया गया, जिससे यह एक महत्त्वपूर्ण वैश्विक व्यापारिक मार्ग बन गया।
    • सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज़ (CSIS) के अनुसार, मात्रा के हिसाब से वैश्विक व्यापार का 80% और मूल्य के हिसाब से 70% हिस्सा समुद्री मार्ग से परिवहन किया जाता है, जिसमें 60% एशिया से होकर गुजरता है तथा वैश्विक नौ-परिवहन का एक तिहाई हिस्सा दक्षिण-चीन सागर से होकर गुजरता है।
    • विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन, दक्षिण-चीन सागर पर बहुत अधिक निर्भर है, जिसका अनुमानित 64% व्यापार इस क्षेत्र से होता है। इसके विपरीत अमेरिकी व्यापार का केवल 14% इन जलमार्गों से परिवहन होता है।
    • भारत अपने लगभग 55% व्यापार के लिये इस क्षेत्र पर निर्भर है।
  • मत्स्यन क्षेत्र: दक्षिण-चीन सागर एक समृद्ध मत्स्यन क्षेत्र भी है, जो इस क्षेत्र के लाखों लोगों को आजीविका और खाद्य सुरक्षा का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत प्रदान करता है।

दक्षिण-चीन सागर में प्रमुख विवाद:

  • विवाद:
    • दक्षिण-चीन सागर विवाद का केंद्र भूमि सुविधाओं (द्वीपों और चट्टानों) और उनसे संबंधित क्षेत्रीय जल पर क्षेत्रीय दावों के इर्द-गिर्द घूमता है।
      • दक्षिण-चीन सागर में प्रमुख द्वीप और चट्टान संरचनाएँ स्प्रैटली द्वीप समूह, पैरासेल द्वीप समूह, प्रैटस, नटुना द्वीप तथा स्कारबोरो शोल हैं।
    • इस क्षेत्र में लगभग 70 प्रवाल द्वीप और टापू विवाद के अधीन हैं, चीन, वियतनाम, फिलीपींस, मलेशिया एवं ताइवान सभी इन विवादित क्षेत्रों पर 90 से अधिक चौकियाँ बना रहे हैं।
    • चीन अपने "नाइन-डैश लाइन" मानचित्र के साथ समुद्र के 90% हिस्से पर दावा करता है और नियंत्रण स्थापित करने के लिये इसने द्वीपों का भौतिक रूप से विस्तार किया है तथा वहाँ सैन्य प्रतिष्ठानों का निर्माण किया है।
      • चीन पारासेल और स्प्रैटली द्वीप समूह में विशेष रूप से सक्रिय है, वह वर्ष 2013 से व्यापक ड्रेजिंग एवं कृत्रिम द्वीप-निर्माण में संलग्न होकर 3,200 एकड़ नई भूमि का निर्माण कर रहा है।
      • चीन निरंतर तटरक्षक उपस्थिति के माध्यम से स्कारबोरो शोल को भी नियंत्रित करता है।
  • विवाद सुलझाने के प्रयास:
    • कोड ऑफ कंडक्ट (CoC): चीन और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन (ASEAN) के बीच चर्चा का उद्देश्य स्थिति को प्रबंधित करने के लिये एक COC स्थापित करना है, लेकिन आंतरिक आसियान विवादों एवं चीन के दावों की भयावहता के कारण इसकी प्रगति धीमी रही है।
    • पार्टियों के आचरण पर घोषणा (DoC): वर्ष 2002 में आसियान और चीन ने अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार शांतिपूर्ण विवाद समाधान के लिये अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करते हुए DOC को अपनाया।
      • DoC का उद्देश्य CoC के लिये मार्ग प्रशस्त करना था, जो अभी भी अस्पष्ट है।
    • मध्यस्थता कार्यवाही: वर्ष 2013 में फिलीपींस ने समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय  (UNCLOS) के तहत चीन के खिलाफ मध्यस्थता कार्यवाही शुरू की।
      • वर्ष 2016 में स्थायी मध्यस्थता न्यायालय (PCA) ने चीन के "नाइन-डैश लाइन" दावे के खिलाफ निर्णय सुनाया और कहा कि यह UNCLOS के साथ संगत नहीं था।
      • चीन ने मध्यस्थता के निर्णय को खारिज़ कर दिया और PCA के अधिकार को चुनौती देते हुए अपनी संप्रभुता एवं ऐतिहासिक अधिकारों का दावा किया।

नोट: UNCLOS के तहत प्रत्येक देश 12 समुद्री मील तक का एक क्षेत्रीय समुद्र और क्षेत्रीय समुद्री आधार रेखा से 200 समुद्री मील तक का एक विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) स्थापित कर सकता है।

आगे की राह

  • बहुपक्षीय जुड़ाव: राजनयिक प्रयासों को सुविधाजनक बनाने, किसी भी समाधान का निष्पक्ष और अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों (विशेष रूप से समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय) के अनुरूप होना सुनिश्चित करते हुए, संबद्ध क्षेत्र के बाहर के देशों सहित अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की सक्रिय भागीदारी को प्रोत्साहित करना चाहिये।
  • पर्यावरण संरक्षण: दक्षिण-चीन सागर में समुद्री पर्यावरण की रक्षा के प्रयासों हेतु परस्पर सहयोग की आवश्यकता है। 1950 के दशक से इस क्षेत्र में मछलियों के कुल स्टॉक में 70 से 95% की गिरावट को देखते हुए इन सहयोगों में अवैध मत्स्य पलान की समस्या का निपटान, प्रदूषण को कम करने और जैवविविधता को संरक्षित करने के उपाय शामिल हैं। सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज़ की एक रिपोर्ट के अनुसार प्रवाल भित्तियों में प्रति दशक 16% की गिरावट देखी गई है।
  • मरीन पीस पार्क: दक्षिण चीन सागर में मरीन पीस पार्क (Marine Peace Park) अथवा संरक्षित क्षेत्र के निर्माण की संभावनाओं पर भी विचार किया जा सकता है। स्थलीय राष्ट्रीय उद्यानों के समान इन क्षेत्रों को अनुसंधान, संरक्षण और पारिस्थितिक पर्यटन जैसी गैर-राजनीतिक गतिविधियों के लिये उपयोग किया जा सकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. शीतयुद्धोत्तर अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य के संदर्भ में, भारत की पूर्वोन्मुखी नीति के आर्थिक और सामरिक आयामों का मूल्यांकन कीजिये। (2016)


भारत और अर्जेंटीना के बीच सामाजिक सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर

प्रिलिम्स के लिये:

सामाजिक सुरक्षा समझौता, अर्जेंटीना

मेन्स के लिये:

भारत-अर्जेंटीना संबंध

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

भारत और अर्जेंटीना ने हाल ही में एक 'सामाजिक सुरक्षा समझौते (Social Security Agreement- SSA)' पर हस्ताक्षर किये हैं जिसका उद्देश्य दोनों देशों में पेशेवरों के विधिक अधिकारों की सुरक्षा करना है। इस समझौते से दोनों देशों के पेशेवरों के लिये जोखिम मुक्त अंतर्राष्ट्रीय गतिशीलता मिलना अपेक्षित है।

सामाजिक सुरक्षा समझौता:

  • परिचय:
    • यह दोनों देशों में श्रमिकों और पेशेवरों के अधिकारों तथा सामाजिक लाभ की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
  • आवश्यकता:
    • अर्जेंटीना में काम करने वाले भारतीय पेशेवरों और भारत में रोज़गार की इच्छा रखने वाले अर्जेंटीना के नागरिकों की बढ़ती संख्या इस कानूनी ढाँचे की आवश्यकता का प्रमुख आधार है।
  • प्रमुख बिंदु:
    • SSA भारत और अर्जेंटीना दोनों में सामाजिक सुरक्षा के विभिन्न पहलुओं से संबंधित कानून पर लागू होता है, जिसमें वृद्धावस्था, उत्तरजीवियों के लिये पेंशन तथा नियोजित व्यक्तियों के लिये पूर्ण विकलांगता पेंशन शामिल है।
    • यह समझौता अस्थायी आधार पर दूसरे देश में काम करने वाले कामगारों और उनके परिवार के सदस्यों को विभिन्न अधिकार और लाभ प्रदान करता है
      • इन लाभों में सेवानिवृत्ति या पेंशन के लिये नकद भत्ते, किराया, सब्सिडी, या एकमुश्त भुगतान, सभी स्थानीय कानून के अनुसार, बिना किसी कटौती, संशोधन, निलंबन, दमन या प्रतिधारण के शामिल हैं।
    • SSA बीमा अवधि को विनियमित करने के लिये कानूनी ढाँचा स्थापित करता है, जिसमें योगदान, अंशदायी लाभ तथा दूसरे देश में काम करने वाले कामगारों के लिये उनके निर्यात के साथ जमा की गई सेवाओं की अवधि शामिल है।
      • इस ढाँचे में एयरलाइंस और जहाज़ों के चालक दल के सदस्य भी शामिल हैं।
    • यह समझौता अर्जेंटीना में सामाजिक सुरक्षा प्रणाली के अंशदायी लाभों से संबंधित कानून का उल्लेख करता है।
    • यह समझौता दोनों देशों में सामाजिक सुरक्षा के लिये किये गए लाभ या योगदान के नुकसान के खिलाफ पेशेवरों और श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा करेगा तथा इस प्रकार पेशेवरों एवं श्रम बल को अधिक से अधिक गतिविधि करने की सुविधा प्रदान करेगा।

भारत-अर्जेंटीना संबंध:

  • राजनीतिक संबंध:
    • फरवरी 2019 में भारत-अर्जेंटीना संबंधों को रणनीतिक साझेदारी के स्तर तक विस्तारित कर दिया गया।
    • भारत ने वर्ष 1943 में ब्यूनस आयर्स में एक व्यापार आयोग की शुरुआत की, जिसे बाद में वर्ष 1949 में दक्षिण अमेरिका में भारत के पहले दूतावासों में से एक में बदल दिया गया।
    • अर्जेंटीना ने वर्ष 1920 के दशक में कलकत्ता में एक वाणिज्य दूतावास की स्थापना की थी, जिसे वर्ष 1950 में दूतावास के रूप में दिल्ली में स्थानांतरित कर दिया गया था।
  • आर्थिक संबंध:
    • भारत अर्जेंटीना का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, जिसका द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2022 में 6.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर के ऐतिहासिक स्तर तक पहुँच गया, जिसमें वर्ष 2021 की तुलना में 12% की वृद्धि दर्ज़ की गई।
    • अर्जेंटीना को भारत से निर्यात की प्रमुख वस्तुओं में पेट्रोलियम तेल, कृषि रसायन, यार्न-कपड़े से बने उत्पाद, कार्बनिक रसायन, थोक दवाएँ और दोपहिया वाहन शामिल हैं।
    • अर्जेंटीना से भारत के आयात की प्रमुख वस्तुओं में वनस्पति तेल (सोयाबीन एवं सूरजमुखी), चमड़ा, अनाज, अवशिष्ट रसायन और संबद्ध उत्पाद तथा दालें शामिल हैं।
  • सांस्कृतिक संबंध:
  • भारत और अर्जेंटीना के बीच ऐतिहासिक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संबंध भी हैं, जैसे वर्ष 1924 में रवींद्रनाथ टैगोर की अर्जेंटीना यात्रा तथा वर्ष 1968 में विश्व भारती विश्वविद्यालय द्वारा विक्टोरिया ओकाम्पो को ‘मानद डॉक्टरेट’ का पुरस्कार देना।
  • आतंकवाद से बचाव (Counter-Terrorism):
    • भारत और अर्जेंटीना ने आतंकवाद से लड़ने के लिये एक अलग संयुक्त घोषणा पत्र जारी किया।
    • अर्जेंटीना ने जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकवादी हमले की कड़े शब्दों में निंदा की।
    • दोनों देशों ने आतंकवाद के सभी रूपों और अभिव्यक्तियों से लड़ने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई तथा आह्वान किया कि किसी भी देश को अपने क्षेत्र का इस्तेमाल दूसरे देशों पर आतंकवादी हमले करने के लिये नहीं करने देना चाहिये।

अर्जेंटीना:

  • राजधानी: ब्यूनस आयर्स।
  • राजभाषा: स्पेनिश।
  • अर्जेंटीना क्षेत्रफल की दृष्टि से विश्व का आठवाँ सबसे बड़ा देश है।
    • यह देश दक्षिण एवं पश्चिम में चिली, उत्तर में बोलीविया एवं पैराग्वे और पूर्व में ब्राज़ील, उरुग्वे तथा अटलांटिक महासागर से घिरा है।
  • एंडीज़ पर्वत श्रेणी का सबसे ऊँचा पर्वत सेरो एकांकागुआ है।
  • अर्जेंटीना संसाधनों से समृद्ध है, इसके पास सुशिक्षित कार्यबल है और यह दक्षिण अमेरिका की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है।
  • देश को चार क्षेत्रों में विभाजित किया गया है: एंडीज़, उत्तर, पम्पास और पेटागोनिया। पम्पास कृषि प्रधान क्षेत्र है।