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एडिटोरियल

  • 06 Sep, 2021
  • 17 min read
कृषि

उत्तर- आधुनिक कृषि

यह एडिटोरियल दिनांक 03/09/2021 को ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में प्रकाशित ‘‘For a post-Covid-19 India, the need for postmodern agriculture’’ लेख पर आधारित है। इसमें विज्ञान-प्रेरित आधुनिक कृषि की वर्तमान समस्याओं के समाधान के लिये कृषि क्षेत्र में उत्तर आधुनिक दृष्टिकोण को अपनाने के संबंध में चर्चा की गई है।

डेविड क्वामेन (David Quammen) ने अपनी किताब ‘Spillover: Animal Infections and the Next Human Pandemic’ में चेतावनी देते हुए कहा है कि "हम पारिस्थितिक तंत्र को बाधित करते हैं और विषाणुओं/वायरस को उनके प्राकृतिक मेज़बानों (natural hosts) से निर्मुक्त कर देते हैं। जब ऐसा होता है तो उन्हें एक नए मेज़बान की आवश्यकता होती है। प्रायः हम ही उसके नए मेज़बान बनते हैं।" संवहनीयता (Sustainability) बेहद महत्त्वपूर्ण है, लेकिन प्राकृतिक संसाधनों के लापरवाह प्रबंधन ने पहले से ही बहुत कुछ नष्ट कर दिया है और कृषि सहित लगभग सभी क्षेत्र इससे प्रभावित हुए हैं।  

भारत में कृषि क्षेत्र की समस्याओं को देखते हुए यह अनिवार्य प्रकट होता है कि हमें बढ़ती आबादी के भरण-पोषण के लिये वैज्ञानिक नवाचार की आवश्यकता है। चुनौती यह है कि निरंतरता और परिवर्तन का सर्वश्रेष्ठ सुमेल कैसे प्राप्त किया जाए ताकि ‘न्यू नॉर्मल’ के लिये हम अपने उपयुक्त मार्ग की तलाश कर सकें। इसके लिये कृषि के एक नए युग, यानी उत्तर आधुनिक कृषि के युग में प्रवेश करने की आवश्यकता है।

उत्तर आधुनिक कृषि (Post-modern Agriculture)

  • कृषि के लिये उत्तर आधुनिक दृष्टिकोण संवहनीयता, अर्थात्  संवहनीय कृषि (Sustainable Agriculture- SA) पर आधारित है । 
  • यह आधुनिकतम प्रौद्योगिकी का उपयोग करता है और आधुनिक प्रबंधन पद्धतियों को एकीकृत करता है। इसके साथ ही,  यह उच्च आर्थिक मूल्य के कृषि उत्पादों के उत्पादन से भी संलग्न है।
  • उत्तर आधुनिक कृषि के प्रकार और प्रौद्योगिकियों का दायरा अत्यंत व्यापक है। कृषि उत्पादों का चयन, पालन-पोषण के तरीकों में सुधार, स्वास्थ्य एवं सुरक्षा के दृष्टिकोण से विचार और उपज का विपणन—सभी इसके दायरे में हैं।
  • उत्तर आधुनिक कृषि को वैज्ञानिक रूप से संचालित करने की आवश्यकता है। बायोटेक्नोलॉजी, नैनो टेक्नोलॉजी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रिमोट सेंसिंग, कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी और इस तरह के अन्य अग्रणी/फ्रंटियर विषयों से संसाधन-दक्षता को बढ़ावा मिलेगा। कृषि भू-दृश्य और जल संभरण के स्तर पर प्रबंधन तेज़ी से प्रासंगिक होता जाएगा।  
  • कृषि का बहुक्रियाशील चरित्र इसके आर्थिक, पर्यावरणीय और सामाजिक आयामों के साथ पहले से ही केंद्रीय मंच पर उभर रहा है।

कृषि के लिये उत्तर आधुनिक दृष्टिकोण की आवश्यकता

  • हरित क्रांति के नकारात्मक परिणाम: विज्ञान-प्रेरित प्रौद्योगिकियों पर आधारित और हरित क्रांति की प्रतीकात्मकता से निरुपित आधुनिक कृषि अब एक दोधारी तलवार की तरह देखी जाती है।   
    • खाद्यान्न उत्पादन को तीन गुना करने के प्रयास में कृषि रसायनों के बढ़ते अनुप्रयोग और जीवाश्म ईंधन ऊर्जा पर बढ़ती निर्भरता के साथ भारत में नाइट्रोजन उर्वरक का उपयोग 10 गुना बढ़ गया।  
    • देश में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के 18% के लिये कृषि क्षेत्र उत्तरदायी है।  
    • तेज़ी से घटते भूमिगत जलवाही स्तर (groundwater aquifers) और 35% भूमि क्षरण से त्रस्त हमारी मृदा में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा एशिया में न्यूनतम है।    
    • गेहूँ और चावल की एकल कृषि (monocultures) पारंपरिक कृषि प्रणालियों की विविधता को विस्थापित कर रही है। 
    • आनुवंशिक समरूपता जैविक और अजैविक तनावों के प्रति संवेदनशीलता की वृद्धि के साथ पोषण के लिये अहितकर रही है।   
  • संवहनीय कृषि की संभावनाएँ: चूँकि उत्तर आधुनिक कृषि, कृषि की संवहनीयता की अवधारणा पर आधारित है; यह एकल (Monocultural) कृषि उत्पादन मॉडल का प्रतिकार करती है।  
    • इसका सार दूसरी हरित क्रांति या सदाबहार क्रांति (Evergreen Revolution) के आरंभ में निहित है।  
    • वर्तमान में कम भूमि, जल और ऊर्जा के उपयोग साथ कृषि उत्पादन बढ़ाने की विभिन्न कृषि प्रणालियाँ प्रचलित हैं। उनकी प्रौद्योगिकियाँ मृदा उर्वरता की पुनर्बहाली, जल की गुणवत्ता की पुनःप्राप्ति, जैव विविधता में सुधार और अंतर-पीढ़ीगत समता को बनाए रखते हुए उत्पादकता में वृद्धि करती हैं।
    • राष्ट्रीय संवहनीय कृषि मिशन (National Mission on Sustainable Agriculture), जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (National Action Plan on Climate Change) के आठ मिशनों में से एक है जो संवहनीय कृषि की ओर आगे बढ़ने का लक्ष्य रखता है। 

उत्तर आधुनिक कृषि के लिये रणनीति

  • कृषि-वानिकी (Agroforestry): पोषक तत्वों के पुनर्चक्रण, कार्बन भंडारण, जैव विविधता संरक्षण और मृदा एवं जल संरक्षण के माध्यम  कृषि-वानिकी की 25 मिलियन हेक्टेयर में विस्तृत वृक्ष-आधारित कृषि प्रणालियाँ पारिस्थितिकी को समृद्ध करते हुए फल, चारा, ईंधन, फाइबर और लकड़ी प्रदान करती हैं।  
    • यह फसल विफलता के विरुद्ध आय, पोषण और बीमा की वृद्धि कर कृषक-प्रत्यास्थता को बढ़ाता है।
  • संरक्षण कृषि (Conservation Agriculture- CA): संरक्षण कृषि मुख्य रूप से भारत के गेहूँ-चावल क्षेत्र में लगभग दो मिलियन हेक्टेयर भूमि-क्षेत्र में प्रचलित है। यह जल, पोषक तत्त्वों और ऊर्जा के न्यून दक्षता उपयोग को संबोधित करता है।  
    • इसके अभ्यासों में शून्य जुताई, लेजर लेवलिंग, फसल अनुक्रमण, परिशुद्ध सिंचाई (precision irrigation), तनाव-सहिष्णु एवं जलवायु-प्रत्यास्थी किस्मों का उपयोग और फसल अवशेषों को जलाने के बजाय उन्हें बनाए रखना शामिल है।
    • हालाँकि, वर्षा-सिंचित क्षेत्रों में संरक्षण कृषि को अपनाया जाना अभी शेष है।
  • शून्य-बजट प्राकृतिक खेती (Zero-Budget Natural Farming- ZBNF): इस विधि में कृषि लागत जैसे कि उर्वरक, कीटनाशक और गहन सिंचाई की कोई आवश्यकता नहीं होती है। जिससे कृषि लागत में आश्चर्यजनक रूप से गिरावट आती है, इसलिये इसे ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग का नाम दिया गया है। इस विधि के अंतर्गत किसी भी फसल का उत्पादन करने पर उसका लागत मूल्य शून्य (ज़ीरो) ही आता है। ZBNF के अंतर्गत घरेलू संसाधनों द्वारा विकसित प्राकृतिक खाद का इस्तेमाल किया जाता है जिससे किसानों को किसी भी फसल को उगाने में कम खर्चा आता है और कम लागत लगने के कारण उस फसल पर किसानों को अधिक लाभ प्राप्त होता है।
    • आंध्र प्रदेश वर्ष 2024 तक 80 लाख हेक्टेयर भूमि-क्षेत्र में 60 लाख किसानों द्वारा ZBNF अपनाने हेतु प्रोत्साहित देने के लक्ष्य के साथ अग्रणी भूमिका में है।
    • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के अंतर्गत ZBNF के विज्ञान पर प्रयोग चल रहा है।
  • जैविक खेती (Organic farming): इसका अभ्यास निवल कृषित क्षेत्र के केवल 2% भाग में हो रहा है। राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम (National Programme for Organic Production- NPOP) 70% कवरेज के लिये उत्तरदायी है।  
    • वर्ष 2015 में शुरू की गई ‘परंपरागत कृषि विकास योजना’ के बावजूद जैविक खेती की दिशा में प्रगति धीमी ही रही है।  
    • यद्यपि सिक्किम को वर्ष 2016 में एक जैविक राज्य घोषित किया गया था।
  • चावल गहनता प्रणाली (Systems of Rice Intensification- SRI): यह कम से अधिक की प्राप्ति का विशिष्ट उदाहरण प्रस्तुत करता है। यह प्रणाली पौधों और मृदा के जैविक और आनुवंशिक क्षमता का उपयोग करती है और जल के उपयोग में 25-50% की कमी, तुलनात्मक रूप से 30-40% कम कृषि रसायन और 80-90% कम बीज के साथ चावल की पैदावार को 20-50% तक बढ़ाने के लिये जानी जाती है।  
    • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (National Food Security Mission) ने SRI के अंतर्गत पाँच मिलियन हेक्टेयर कृषि-क्षेत्र को लाने की परिकल्पना की थी। व्यापक अनुमानों में SRI के कवरेज को लगभग आधा मिलियन हेक्टेयर पाया गया है। 
  • अन्य संवहनीय कृषि अभ्यासों में जलवायु-कुशल कृषि, पर्माकल्चर, पुनर्योजी कृषि (Regenerative Agriculture), बायोडायनामिक खेती, ऊर्ध्वाधर खेती  और हाइड्रोपोनिक्स शामिल हैं, हालाँकि इनके अभ्यास अभी छोटे पैमाने पर ही चल रहे हैं।

चुनौतियाँ

  • किसानों के बीच जागरूकता की कमी: केंद्र एवं राज्य सरकारों, विकास बैंकों, गैर-सरकारी संस्थानों, निजी क्षेत्रों और कृषि-उद्यम संबंधी स्टार्ट-अप्स द्वारा कार्यान्वित कई संवहनीय कृषि कार्यक्रम और अभ्यास लगभग दो दशकों से जारी हैं।  
    • लेकिन ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (Council of Energy, Environment and Water) की वर्ष 2021 की एक रिपोर्ट में पाया गया है कि 4% से कम किसानों ने संवहनीय कृषि अभ्यासों को अपनाया है।
  • ज़मीनी स्तर पर निराशाजनक अभिग्रहण: राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (National Sample Survey Organisation- NSSO) या नीति आयोग के विकास निगरानी और मूल्यांकन कार्यालय (Development Monitoring and Evaluation Office) जैसी सार्वजनिक एजेंसियों द्वारा संवहनीय कृषि का हाल में कोई समग्र मूल्यांकन नहीं किया गया है। 
    • स्पष्ट है कि सुविचारित नीतियाँ और अभियान स्वतः ज़मीनी स्तर पर बड़े पैमाने पर और तेज़ी से अभिग्रहण के रूप में परिणाम नहीं भी दिखा सकते।

आगे की राह 

  • निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं: 
    • विभिन्न संवहनीय कृषि कार्यक्रमों एवं अभ्यासों और किसानों द्वारा उनके अभिग्रहण का एक समग्र मूल्यांकन करना;  
    • विभिन्न कृषि जलवायु क्षेत्रों में संवहनीय कृषि की बहुक्रियाशील प्रकृति की बेहतर समझ के लिये एक रूपरेखा का निर्माण;
    • उत्पादकता और पर्यावरणीय लागतों एवं लाभों दोनों को ध्यान में रखते हुए संवहनीय कृषि की प्रगति के मापन के लिये एक नमूना/टेम्पलेट विकसित करना; और   
    • लघु-अवधि और दीर्घावधि में कड़ाई से निगरानी के लिये आदेशों और प्रदेयों की एक प्रणाली का निर्माण करना।
  • पारितंत्र पुनर्बहाली की दिशा में आगे बढ़ना: कोविड-19 के प्रकोप के कम होने की उम्मीद के साथ, यह अवधि संयुक्त राष्ट्र के पारितंत्र पुनर्बहाली दशक 2021-2030 (United Nations (UN) Ecosystem Restoration Decade of 2021-2030) के साथ संगत है, जो प्रत्यास्थी उत्पादन और उपभोग प्रणालियों का पोषण करने वाली हरित पुनःप्राप्ति की ओर रूपांतरणकारी परिवर्तनों को अपनाने पर लक्षित है।  
  • उत्तर आधुनिक प्रौद्योगिकी का उपयोग: कृषि क्षेत्र को संवहनीय कृषि के मार्ग पर बने रहने और संसाधन-दक्षता को आगे बढ़ाने के लिये वैज्ञानिक नवाचारों और आधुनिकतम प्रौद्योगिकी की आवश्यकता होगी।

निष्कर्ष

प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन, वनों की कटाई और कृषि की असंवहनीय गहनता पशुजन्य (zoonotic) रोगों को बढ़ावा देने वाले पर्यावरणीय चालक हैं। इस प्रकार, उत्तर कोविड समय में संसाधनों के संरक्षण और इनकी पुनःपूर्ति के लिये उत्तर आधुनिक कृषि को अपनाये जाने की आवश्यकता है।  

अभ्यास प्रश्न: उत्तर कोविड समय में संसाधनों के संरक्षण एवं इनकी पुनःपूर्ति के साथ ही सदाबहार क्रांति के लिये उत्तर आधुनिक कृषि को अपनाये जाने की आवश्यकता है। चर्चा कीजिये।  


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