कृषि
ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग से संबंधित अध्ययन
- 22 Jan 2020
- 6 min read
प्रीलिम्स के लियेज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग मेन्स के लियेज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग से लाभ व चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
यूनाइटेड किंगडम के एबरडीन विश्वविद्यालय (University of Aberdeen) तथा जेम्स हट्टन इंस्टीट्यूट (James Hutton Institute) के द्वारा प्रकाशित जर्नल ‘प्रकृति वहनीयता (NATURE SUSTAINABILITY)’ में यह दावा किया गया है कि ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग (Zero Budget Natural Farming-ZBNF) भारत में खाद्यान्न उपलब्धता के लक्ष्य को प्रभावित कर सकती है।
प्रमुख बिंदु
- एबरडीन विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित जर्नल में यह बताया गया है कि भारत सरकार वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगुनी करने के लिये ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग को व्यापक पैमाने पर प्रोत्साहित कर रही है।
- इस प्रकार की कृषि से भारत में खाद्यान्न का संकट उत्पन्न हो सकता है, क्योंकि इससे फसल उत्पादन तथा उत्पादकता दोनों नकारात्मक रूप से प्रभावित होती है।
- वर्तमान में भारत की जनसंख्या विश्व की जनसंख्या का 17.71 प्रतिशत है। इसके वर्ष 2010 की 1.2 बिलियन जनसंख्या के सापेक्ष 33 प्रतिशत की वृद्धि के साथ वर्ष 2050 तक 1.6 बिलियन तक पहुँचने की संभावना है।
- जर्नल के अनुसार वर्ष 2050 तक भारत की 60 प्रतिशत जनसंख्या सुपाच्य प्रोटीन, वसा तथा कैलोरी की निर्धारित मात्रा में कमी का अनुभव करेगी।
- कृषि भूमि के सीमित होते क्षेत्र पर खाद्यान्न की बढ़ती माँग को पूरा करने के लिये फसल उत्पादन की दक्षता में वृद्धि की जानी चाहिये परंतु जलवायु परिवर्तन, मृदा क्षरण तथा निर्जनीकरण भारतीय कृषि की दक्षता वृद्धि में बाधक हैं।
- ZBNF के प्रायोजकों का दावा है कि मृदा में पौधे के विकास के लिये आवश्यक सभी पोषक तत्त्व पहले से ही मौजूद होते हैं और यह सूक्ष्म जीवों की पारस्परिक क्रिया के परिणामस्वरूप विमोचित होते हैं।
- जबकि केवल नाइट्रोजन ही सूक्ष्म जीवों की पारस्परिक क्रिया के परिणामस्वरूप मृदा की ऊपरी परत से विमोचित होता है, इस प्रकार केवल नाइट्रोजन का विमोचन अन्य कार्बनिक पदार्थों की उपस्थिति को प्रभावित कर देता है और संभव है कि अग्रिम 20 वर्षो बाद मृदा की ऊपरी परत से सभी कार्बनिक पदार्थों का लोप हो जाए।
- इसलिये दीर्घकालिक रूप से ZBNF प्रत्येक क्षेत्र के लिये समान रूप से उपयोगी नहीं है।
क्या है ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग
- ZBNF मूल रूप से महाराष्ट्र के एक किसान सुभाष पालेकर द्वारा विकसित रसायन मुक्त कृषि (Chemical-Free Farming) का एक रूप है। यह विधि कृषि की पारंपरिक भारतीय प्रथाओं पर आधारित है।
- इस विधि में कृषि लागत जैसे कि उर्वरक, कीटनाशक और गहन सिंचाई की कोई आवश्यकता नहीं होती है। जिससे कृषि लागत में आश्चर्यजनक रूप से गिरावट आती है, इसलिये इसे ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग का नाम दिया गया है।
- इस विधि के अंतर्गत किसी भी फसल का उत्पादन करने पर उसका लागत मूल्य शून्य (ज़ीरो) ही आता है।
- ZBNF के अंतर्गत घरेलू संसाधनों द्वारा विकसित प्राकृतिक खाद का इस्तेमाल किया जाता है जिससे किसानों को किसी भी फसल को उगाने में कम खर्चा आता है और कम लागत लगने के कारण उस फसल पर किसानों को अधिक लाभ प्राप्त होता है।
ZBNF के घटक
- बीजामृत- यह प्रथम चरण होता है जिसमें गाय के गोबर, गोमूत्र तथा चूना व कृषि भूमि की मृदा से बीज शोधन किया जाता है।
- जीवामृत- गाय के गोबर, गोमूत्र व अन्य जैविक पदार्थों का एक घोल तैयार कर किण्वन किया जाता है। किण्वन के पश्चात् प्राप्त इस पदार्थ को उर्वरक व कीटनाशक के स्थान पर प्रयोग में लाया जाता है।
- मल्चिंग- इसमें जुताई के स्थान पर फसल के अवशेषों को भूमि पर आच्छादित कर दिया जाता है।
- वाफसा- इसमें सिंचाई के स्थान पर मृदा में नमी एवं वायु की उपस्थिति को महत्त्व दिया जाता है।
भारत में स्थिति
- आंध्र प्रदेश भारत का पहला ऐसा राज्य है जिसने वर्ष 2015 में ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग की शुरुआत की।
- वर्ष 2024 तक आंध्र प्रदेश सरकार ने ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग को प्रत्येक गाँव तक पहुँचाने का लक्ष्य रखा है।
- कर्नाटक के किसान संगठन, कर्नाटक राज्य रायथा संघ (Karnataka Rajya Raitha Sangha-KRRS) के द्वारा भी ZBNF को बढ़ावा दिया जा रहा है।
- हाल ही में हिमाचल प्रदेश सरकार ने भी ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग को अपने राज्य में बढ़ावा देने के लिये एक परियोजना प्रारंभ की है।