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जैव विविधता और पर्यावरण

मीथेन का बढ़ता स्तर और जलवायु स्थिरता के लिये खतरा

  • 22 Aug 2023
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये:

टर्मिनेशन लेवल ट्रांज़िशन (पृथ्वी की जलवायु में एक स्थिति से दूसरी स्थिति में महत्त्वपूर्ण और तीव्र बदलाव), मीथेन, ग्रीनहाउस गैस

मेन्स के लिये:

ग्लोबल वार्मिंग पर मीथेन उत्सर्जन का प्रभाव, टर्मिनेशन लेवल ट्रांज़िशन में हाइड्रोकार्बन की भूमिका

चर्चा में क्यों? 

पृथ्वी के वायुमंडल में मीथेन के स्तर में वृद्धि के कारण पृथ्वी पर होने वाले जलवायु परिवर्तन को लेकर चिंता और  अधिक बढ़ गई है।

  • मीथेन, जो कि एक प्रमुख ग्रीनहाउस गैस है, की निरंतर वृद्धि को देखते हुए सवाल उठता है कि क्या पृथ्वी पिछले जलवायु परिवर्तनों के समान 'टर्मिनेशन लेवल ट्रांज़िशन (पृथ्वी की जलवायु में एक स्थिति से दूसरी स्थिति में महत्त्वपूर्ण और तीव्र बदलाव अथवा समाप्ति-स्तर का संक्रमण)' का सामना कर रही है।

टर्मिनेशन लेवल ट्रांज़िशन:

  • "समाप्ति-स्तर का संक्रमण" की अवधारणा से आशय पृथ्वी की जलवायु में एक स्थिति से दूसरी स्थिति  में एक महत्त्वपूर्ण और अचानक बदलाव से है।
  • विभिन्न जलवायवीय कारकों में तीव्र और पर्याप्त परिवर्तन इन संक्रमणों की पहचान है, इन परिवर्तनों के पृथ्वी के पारिस्थितिक तंत्र, मौसम के पैटर्न तथा समग्र पर्यावरणीय स्थिरता पर दूरगामी परिणाम हो सकते हैं।
  • अपने संपूर्ण इतिहास में पृथ्वी की जलवायु ने विभिन्न समाप्ति-स्तर के संक्रमणों का सामना किया है।
  • समुद्री धाराओं में परिवर्तन एवं वायुमंडलीय संरचना सहित विभिन्न कारक इस समाप्ति-स्तर के संक्रमण को और अधिक गति प्रदान कर सकते हैं।
    • वैश्विक शीतलन अथवा हिमयुग की सबसे हालिया घटनाएँ प्लेइस्टोसिन काल के दौरान हुईं, जो लगभग 2.6 मिलियन से 11,700 वर्ष पहले तक देखी गई थीं। ये अक्सर हिमयुग के अंत तथा उसके बाद ऊष्म अंतर-हिमनद काल (Interglacial Periods) में संक्रमण से संबंधित हैं।

ग्लोबल वार्मिंग पर मीथेन का खतरा:

  • ग्रीनहाउस गैस के रूप में मीथेन:
    • मीथेन गैस कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) की तुलना में ऊष्मा को रोके रखने में अधिक सक्षम है।
    • CO₂ के दीर्घकालिक जीवनकाल की तुलना में इसका वायुमंडलीय जीवनकाल एक दशक से भी कम होता है।
    • हालाँकि मात्रा के संदर्भ में मीथेन CO₂ की तुलना में कम है, लेकिन मीथेन की ताप-धारण क्षमता CO2 से लगभग 28-36 गुना अधिक है।
    • मनुष्यों द्वारा जीवाश्म ईंधन जलाए जाने की शुरुआत से पूर्व हवा में मीथेन लगभग 0.7 ppm था। वर्तमान में यह मान 1.9 ppm से अधिक है और तेज़ी से बढ़ता जा रहा है।
      • मीथेन की यह बढ़ी हुई वार्मिंग क्षमता ग्रीनहाउस प्रभाव को तीव्रता प्रदान करती है।
  • ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने में चुनौतियाँ:
    • मीथेन के स्तर में तेज़ी से वृद्धि ग्लोबल वार्मिंग को सुरक्षित स्तर तक सीमित करने के प्रयासों को जटिल बनाती है।
    • बढ़ी हुई मीथेन सांद्रता समग्र ग्रीनहाउस गैस प्रभाव में योगदान करती है, जिससे तापमान में वृद्धि होती है।
    • मीथेन का बढ़ता स्तर ग्रह को खतरनाक तापमान सीमा के करीब पहुँचा सकता है।
    • मीथेन के कारण उत्पन्न होने वाली गर्मी से पर्माफ्रॉस्ट (Permafrost) के पिघलने तथा आर्कटिक सागर की बर्फ के पिघलने से और अधिक मीथेन रिलीज़ हो सकती है, जिससे इसका तापन प्रभाव (Warming Effects) बढ़ सकता है।
  • पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव:
    • बढ़ी हुई मीथेन सांद्रता पारिस्थितिक तंत्र को प्रभावित करने के साथ ही प्राकृतिक प्रक्रियाओं को बाधित कर सकती है तथा जैवविविधता को प्रभावित कर सकती है।
    • कमज़ोर पारिस्थितिकी तंत्र, जैसे- आर्द्रभूमि, मीथेन से संबंधित परिवर्तनों के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील हैं।
  • समुद्र-स्तर में वृद्धि के निहितार्थ:
    • मीथेन का बढ़ा हुआ स्तर ध्रुवीय बर्फ तथा ग्लेशियरों के पिघलने की गति बढ़ाकर समुद्र-स्तर में वृद्धि में योगदान कर सकता है।
    • समुद्र-स्तर में वृद्धि से तटीय समुदायों (Coastal Communities) के लिये खतरा उत्पन्न हो सकता है और यह वृद्धि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को भी बढ़ा सकती है।

मीथेन:

  • मीथेन सबसे सरल हाइड्रोकार्बन (Hydrocarbon) है, जिसमें एक कार्बन परमाणु तथा चार हाइड्रोजन परमाणु (CH4) होते हैं।
  • यह ज्वलनशील है तथा इसे पूरे विश्व में ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है।
  • मीथेन एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस (Greenhouse Gas) है।
  • वायुमंडल में अपने जीवन काल के पहले 20 वर्षों में मीथेन की गर्म करने की क्षमता कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में 80 गुना अधिक है।
  • मीथेन उत्सर्जन का लगभग 60 फीसदी हिस्सा जीवाश्म ईंधन के उपयोग, खेती, लैंडफिल और अपशिष्ट से आता है। शेष प्राकृतिक स्रोतों, विशेष रूप से उष्णकटिबंधीय तथा उत्तरी आर्द्रभूमि में सड़ने वाली वनस्पति से है।

मीथेन उत्सर्जन से निपटने हेतु पहल:

  • भारतीय:
    • 'हरित धारा' (Harit Dhara- HD): भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research- ICAR) ने एक एंटी-मेथेनोजेनिक फीड सप्लीमेंट 'हरित धारा' (HD) विकसित किया है, जो मवेशियों के मीथेन उत्सर्जन को 17-20% तक कम कर सकता है तथा इससे दूध का उत्पादन भी अधिक हो सकता है।
    • भारत ग्रीनहाउस गैस (GHG) कार्यक्रम: WRI इंडिया (गैर-लाभकारी संगठन), भारतीय उद्योग परिसंघ (Confederation of Indian Industry- CII) और द एनर्जी एंड रिसोर्सेज़ इंस्टीट्यूट (The Energy and Resources Institute- TERI) के नेतृत्व में भारत GHG कार्यक्रम, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को मापने तथा उसके प्रबंधन के लिये एक उद्योग-आधारित स्वैच्छिक ढाँचा है। 
      • यह कार्यक्रम उत्सर्जन को कम करने और भारत में अधिक लाभदायक, प्रतिस्पर्द्धी एवं टिकाऊ व्यवसायों तथा संस्थानों के संचालन के लिये व्यापक मापन और प्रबंधन रणनीतियों का निर्माण करता है।
    • जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC): NAPCC को वर्ष 2008 में शुरू किया गया था, इसका उद्देश्य जन-प्रतिनिधियों, सरकार की विभिन्न एजेंसियों, वैज्ञानिकों, उद्योग और समुदायों के बीच जलवायु परिवर्तन के खतरों के बारे में जागरूकता पैदा करना और समाधान के लिये कदम उठाना है।
    • Bharat Stage-VI Norms:India shifted from Bharat Stage-IV (BS-IV) to Bharat Stage-VI (BS-VI) emission norms.
    • भारत स्टेज-VI मानदंड: भारत, भारत स्टेज-IV (BS-IV) से भारत स्टेज-VI (BS-VI) उत्सर्जन मानदंडों में स्थानांतरित हो गया है।
  • वैश्विक:
    • मीथेन अलर्ट और रिस्पांस सिस्टम (MARS): MARS बड़ी संख्या में मौजूदा और भविष्य के उपग्रहों से डेटा को एकीकृत करेगा जो दुनिया में कहीं भी मीथेन उत्सर्जन की घटनाओं का पता लगाने की क्षमता रखता है तथा संबंधित हितधारकों को इस पर कार्य करने के लिये सूचनाएँ भेजता है।
    • वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा: वर्ष 2021 में ग्लासगो जलवायु सम्मेलन (UNFCCC COP 26) में लगभग 100 देशों ने वर्ष 2020 के स्तर से वर्ष 2030 तक मीथेन उत्सर्जन में कम-से-कम 30% की कटौती करने के लिये एक स्वैच्छिक प्रतिज्ञा की, जिसे वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा कहा जाता है।
      • इस वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा का भारत हिस्सा नहीं है।
    • वैश्विक मीथेन पहल (GMI): यह एक अंतर्राष्ट्रीय सार्वजनिक-निजी साझेदारी है जो स्वच्छ ऊर्जा स्रोत के रूप में मीथेन की पुनर्प्राप्ति और उपयोग में आने वाली बाधाओं के समाधान पर केंद्रित है।

      UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

    प्रश्न. ‘मीथेन हाइड्रेट’ के निक्षेपों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-से सही हैं?  (2019)

    1. भूमंडलीय तापन के कारण इन निक्षेपों से मीथेन गैस का निर्मुक्त होना प्रेरित हो सकता है।  
    2. ‘मीथेन हाइड्रेट’ के विशाल निक्षेप उत्तरी ध्रुवीय टुंड्रा में तथा समुद्र अधस्तल के नीचे पाए जाते हैं।  
    3. वायुमंडल में मीथेन एक या दो दशक के बाद कार्बन डाइऑक्साइड में ऑक्सीकृत हो जाती है। 

    नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

    (a) केवल 1 और 2 
    (b) केवल 2 और 3 
    (c) केवल 1 और 3 
    (d) 1, 2 और 3 

    उत्तर: (d)

    व्याख्या:

    • ‘मीथेन हाइड्रेट’ बर्फ की एक जालीनुमा पिंजड़े जैसी संरचना है, जिसमें मीथेन अणु बंद होते हैं। यह एक ऐसी "बर्फ" है जो स्वाभाविक रूप से उपसतह पर जमा होती है जहाँ तापमान और दबाव की स्थिति इसके गठन के लिये अनुकूल होती है।
    • आर्कटिक पर्माफ्रॉस्ट के नीचे मीथेन हाइड्रेट तलछट और तलछटी चट्टान इकाइयों के निर्माण तथा स्थिरता के लिये उपयुक्त तापमान एवं दबाव की स्थिति वाले क्षेत्रों में महाद्वीपीय मार्जिन के साथ तलछटी जमा; अंतर्देशीय झीलों और समुद्र के गहरे पानी के तलछट व अंटार्कटिक बर्फ आदि शामिल हैं। अत: कथन 2 सही है।
    • मीथेन हाइड्रेट्स जो एक संवेदनशील तलछट है, तापमान में वृद्धि या दबाव में कमी के साथ तेज़ी से पृथक हो सकती है। इस पृथक्करण से मुक्त मीथेन और पानी को प्राप्त किया जाता है जिसे ग्लोबल वार्मिंग द्वारा रोका जा सकता है। अत: कथन 1 सही है।
    • मीथेन वायुमंडल से लगभग 9 से 12 वर्ष की अवधि में ऑक्सीकृत हो जाती है जहाँ यह कार्बन डाइऑक्साइड में परिवर्तित होती है। अत: कथन 3 सही है।
    • अतः विकल्प (D) सही उत्तर है।

    प्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2019)

    1. कार्बन मोनोऑक्साइड 
    2. मीथेन 
    3. ओज़ोन  
    4. सल्फर  डाइऑक्साइड 

    उपर्युक्त में से कौन-से फसल/बायोमास अवशेषों को जलाने के कारण वातावरण में छोड़े जाते हैं?

    (a) केवल 1 और 2 
    (b) केवल 2, 3 और 4 
    (c) केवल 1 और 4 
    (d) 1, 2, 3 और 4 

    उत्तर: (d)

    स्रोत: डाउन टू अर्थ

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