डेली न्यूज़ (05 Jul, 2024)



शहरी वित्त और 16वें वित्त आयोग का मुद्दा

प्रिलिम्स के लिये:

74वाँ संविधान संशोधन, राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत, रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया, भौगोलिक सूचना प्रणाली, वित्त आयोग 

मेन्स के लिये:

शहरी स्थानीय निकायों के समक्ष वित्तीय कमी, शहरी स्थानीय शासन के सशक्तीकरण के उपाय।

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

भारत में 16वें वित्त आयोग (Finance Commission- FC) से संबंधित हाल के घटनाक्रमों ने राजकोषीय विकेंद्रीकरण से संबंधित महत्त्वपूर्ण मुद्दों को उजागर किया है, विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों और संघीय ढाँचे के भीतर उनकी वित्तीय स्थिरता पर ध्यान केंद्रित किया है।

  • विश्व बैंक ने अनुमान लगाया है कि अगले दशक में बुनियादी शहरी बुनियादी ढाँचे के लिये 840 बिलियन अमरीकी डॉलर की आवश्यकता होगी।

शहरी क्षेत्रों में वित्तीय स्थिरता संबंधी मुद्दे क्या हैं?

  • शहरीकरण की चुनौतियाँ: भारत के शहरी क्षेत्र, जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 66% और कुल सरकारी राजस्व में लगभग 90% का योगदान करते हैं, भारी बुनियादी ढाँचे तथा वित्तीय चुनौतियों का सामना करते हैं।
    • महत्त्वपूर्ण आर्थिक केंद्र होने के बावजूद, शहरों को अपर्याप्त वित्तीय सहायता प्राप्त होती है तथा अंतर-सरकारी हस्तांतरण सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.5% होता है, जिससे आवश्यक सेवाएँ प्रदान करने और बुनियादी ढाँचे को बनाए रखने की उनकी क्षमता प्रभावित होती है।
  • वित्तीय हस्तांतरण मुद्दे: शहरी स्थानीय निकायों को धनराशि का हस्तांतरण अन्य विकासशील देशों की तुलना में काफी कम है।
    • उदाहरण के लिये, दक्षिण अफ्रीका अपने सकल घरेलू उत्पाद का 2.6%, मेक्सिको 1.6%, फिलीपींस 2.5% और ब्राज़ील 5.1% अपने शहरों को आवंटित करता है।
    • यह कमी शहरी उत्पादकता और जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करती है, जो कि GST की शुरुआत से और भी बदतर हो गई है, जिसने ULB के अपने कर राजस्व को कम कर दिया है।
  • संसाधनों का दोहन: 221 नगर निगमों (2020-21) के रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया सर्वेक्षण से पता चला है कि इनमें से 70% से अधिक निगमों के राजस्व में गिरावट देखी गई, जबकि इसके विपरीत, उनके व्यय में लगभग 71.2% की वृद्धि हुई।
    • RBI की रिपोर्ट में संपत्ति कर के सीमित कवरेज और नगर निगम के राजस्व को बढ़ाने में इसकी विफलता पर भी प्रकाश डाला गया है।
    • आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) के अनुसार भारत में संपत्ति कर संग्रह दर (GDP अनुपात में संपत्ति कर) दुनिया में सबसे कम है।
  • अनुदान में कमी: विशेषज्ञों का तर्क है कि GST ने न केवल चुंगी समाप्त कर दी, बल्कि कई छोटे उद्यमियों के कारोबार पर भी बुरा असर पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप शहरी स्थानीय निकायों के कर राजस्व में उल्लेखनीय कमी देखी गई।
    • पहले शहरी केंद्रों के कुल राजस्व व्यय का लगभग 55% चुंगी से पूरा किया जाता था, जो अब काफी कम हो गया है।
  • अन्य मामले:
    • जनगणना डेटा संबंधी चिंताएँ: अद्यतन जनगणना आँकड़ों (2011 से) की अनुपस्थिति शहरी आबादी और उसकी आवश्यकताओं का सटीक आकलन करने में चुनौती पेश करती है।
      • यह पुराना डेटा साक्ष्य-आधारित राजकोषीय हस्तांतरण योजना को प्रभावित करता है, जो कि गतिशील शहरीकरण प्रवृत्तियों, जिसमें टियर-2 और 3 शहरों की ओर प्रवास भी शामिल है, को उजागर करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • नीतिगत विकृतियाँ: समानांतर एजेंसियाँ ​​और योजनाएँ, जैसे कि सांसद/विधायक स्थानीय क्षेत्र विकास निधि, स्थानीय सरकारों की वित्तीय स्वायत्तता को कमज़ोर करती हैं, इच्छित संघीय ढाँचे को विकृत करती हैं और शहरी शासन तथा सेवा वितरण को जटिल बनाती हैं।
    • कम क्रियात्मक स्वायत्तता: महामारी के दौरान, राष्ट्रीय, राज्य और ज़िला स्तर के नेताओं को आपदा न्यूनीकरण रणनीतियों पर विचार करते देखा गया, हालाँकि नगर निगमों के प्रमुखों को इस समूह में शामिल नहीं किया गया।
      • स्थानीय सरकारों को राज्य सरकारों के सहायक के रूप में मानने का पुराना दृष्टिकोण नीतिगत प्रतिमान पर हावी बना हुआ है।
    • संरचनात्मक मुद्दे: कुछ शहरी स्थानीय सरकारों के पास बुनियादी ढाँचे और मानव संसाधन नहीं हैं। जबकि कुछ राज्यों में स्थानीय निकायों के लिये नियमित चुनाव नहीं कराए जाते हैं। इससे उनके कामकाज और सेवाओं की डिलीवरी प्रभावित होती है।

16वें वित्त आयोग के लिये प्रमुख विचारणीय विषय क्या हैं?

  • परिचय:
    • भारत में वित्त आयोग भारतीय संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत स्थापित एक संवैधानिक निकाय है।
      • इसका प्राथमिक कार्य केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच वित्तीय संसाधनों के वितरण की सिफारिश करना है।
    • 15वें वित्त आयोग का गठन 27 नवंबर, 2017 को किया गया था। इसने अपनी अंतरिम और अंतिम रिपोर्ट के माध्यम से 1 अप्रैल, 2020 से शुरू होने वाली छह वर्षों की अवधि को कवर करते हुए सिफारिशें कीं।
      • पंद्रहवें वित्त आयोग की सिफारिशें वित्तीय वर्ष 2025-26 तक मान्य हैं।
  • संदर्भ की शर्तें:
    • कर आय का विभाजन: संविधान के अध्याय-I के तहत केंद्र सरकार और राज्यों के बीच करों के वितरण की सिफारिश करना।
      • इसमें कर आय से राज्यों के बीच शेयरों का आवंटन शामिल है।
    • सहायता अनुदान के सिद्धांत: भारत की संचित निधि से राज्यों को सहायता अनुदान को नियंत्रित करने वाले सिद्धांतों की स्थापना करना।
      • इसमें विशेष रूप से संविधान के अनुच्छेद 275 के अंतर्गत राज्यों को सहायता अनुदान के रूप में प्रदान की जाने वाली राशि का निर्धारण करना शामिल है।
    • स्थानीय निकायों के लिये राज्य निधि को बढ़ाना: राज्य की समेकित निधि को बढ़ाने के उपायों की पहचान करना।
      • इसका उद्देश्य राज्य के अपने वित्त आयोग द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर, राज्य के भीतर पंचायतों और नगर पालिकाओं के लिये उपलब्ध संसाधनों को पूरक बनाना है।
    • आपदा प्रबंधन वित्तपोषण का मूल्यांकन: आयोग आपदा प्रबंधन पहल से संबंधित वर्तमान वित्तपोषण संरचनाओं की समीक्षा कर सकता है। 
      • इसमें आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत बनाए गए फंड की जाँच करना और सुधार या बदलाव के लिये उपयुक्त सिफारिशें प्रस्तुत करना शामिल है।

असम सरकार ने राज्य वित्त आयोग में नियुक्ति की

  • असम सरकार ने सातवें असम राज्य वित्त आयोग का गठन किया है, जिसके अध्यक्ष लेफ्टिनेंट जनरल राणा प्रताप कलिता (सेवानिवृत्त) और छह अन्य सदस्य होंगे।
  • 73वें और 74वें संविधान संशोधन द्वारा गठित राज्य वित्त आयोग (State Finance Commission- SFC) का उद्देश्य भारत में राज्य तथा उप-राज्य स्तर पर राजकोषीय संबंधों को सुव्यवस्थित करना है, जिसकी नियुक्तियाँ भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243-I एवं 243-Y द्वारा शासित होती हैं।
    • अनुच्छेद 243-I: राज्य के राज्यपाल को प्रत्येक पाँच वर्ष में एक वित्त आयोग गठित करने का आदेश देता है।
    • अनुच्छेद 243Y: इसके तहत गठित वित्त आयोग नगरपालिकाओं की वित्तीय स्थिति की समीक्षा भी करेगा और राज्यपाल को सिफारिशें करेगा।

शहरी वित्त को बेहतर बनाने हेतु क्या कदम उठाने की आवश्यकता है?

  • नगर निगम के राजस्व को मज़बूत करना: सभी वित्त आयोगों ने नगर निगम के वित्त को बेहतर बनाने हेतु संपत्ति कर राजस्व को बढ़ाने की आवश्यकता को पहचाना है। उदाहरण के लिये:
    • 12वें वित्त आयोग ने संपत्ति कर प्रशासन में सुधार के लिये भौगोलिक सूचना प्रणाली (Geographical Information System- GIS) और डिजिटलीकरण के उपयोग को प्रोत्साहित किया।
    • 14वें वित्त आयोग ने अनुशंसा की कि नगर निकायों को खाली भूमि पर कर लगाने में सक्षम किया जाए।
  • कर प्रशासन का आधुनिकीकरण: पुरानी प्रणालियाँ अकुशलता और लीकेज का कारण बनती हैं। स्थानीय निकाय संपत्ति कर मूल्यांकन, ई-फाइलिंग और ऑनलाइन भुगतान के लिये डिजिटल प्लेटफॉर्म लागू कर सकते हैं।
    • इससे पारदर्शिता बढ़ती है, नागरिकों को सुविधा मिलती है तथा संग्रह दर में वृद्धि होती है।
  • विशिष्ट सेवाओं के लिये उपयोगकर्त्ता शुल्क का पता लगाएँ: एक व्यापक कर संरचना के बजाय, कुछ सेवाओं हेतु उपयोगकर्त्ता शुल्क हो सकते हैं। यह पार्किंग, थोक जनरेटर के लिये अपशिष्ट संग्रह या मनोरंजन सुविधाओं पर लागू हो सकता है।
    • मुख्य बात यह सुनिश्चित करना है कि शुल्क उचित हो और सेवा प्रदान करने की लागत को प्रतिबिंबित करे। बेंगलुरु जैसे शहरों ने ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिये उपयोगकर्त्ता शुल्क को सफलतापूर्वक लागू किया है।
  • रणनीतिक संपत्ति प्रबंधन: स्थानीय निकायों के पास अक्सर कम उपयोग वाली संपत्तियाँ होती हैं। इन्हें वाणिज्यिक स्थानों, बाज़ारों या पार्किंग स्थलों के विकास के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी (Public-Private Partnerships- PPP) के माध्यम से मुद्रीकृत किया जा सकता है।
    • इससे स्थानीय निकाय के अधिकार क्षेत्र में किराये की आय और आर्थिक गतिविधि उत्पन्न होती है। विश्व बैंक स्थानीय सरकारों के लिये बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये वित्तपोषण और विशेषज्ञता तक पहुँचने के साधन के रूप में PPP की सिफारिश करता है।
  • स्थानीय व्यवसायों और आर्थिक विकास को बढ़ावा देना: एक संपन्न स्थानीय अर्थव्यवस्था से स्थानीय निकायों के लिये उच्च कर राजस्व की प्राप्ति होती है। इसके लिये किये जाने वाले पहलों में व्यवसाय लाइसेंस को सुव्यवस्थित करना, स्टार्टअप के लिये कर छूट की पेशकश करना या नवाचार केंद्र स्थापित शामिल हो सकता है।
    • अमेरिका में टेक्सास में स्थित शहर ऑस्टिन उद्यमियों के लिये अनुकूल परिवेश के लिये जाना जाता है, जिसके कारण स्थानीय अर्थव्यवस्था समृद्ध हुई।
  • सोशल स्टॉक एक्सचेंज (SSE) का अन्वेषण: ये बाज़ार लाभ सृजन के साथ-साथ सामाजिक प्रभाव पर ध्यान केंद्रित वाले सामाजिक उद्यमों को पूंजी जुटाने का माध्यम प्रदान करते हैं। स्थानीय निकाय एक नया SSE स्थापित करने या पहले से मौजूद किसी के साथ सहयोग करने की व्यवहार्यता की जाँच कर सकते हैं।
    • इससे उन पहलों के लिये निवेश आकर्षित हो सकता है जिनसे स्थानीय सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ स्थानीय निकाय के लिये राजस्व उत्पन्न होता है।
  • वैल्यू कैप्चर तंत्र का क्रियान्वन: इसमें सार्वजनिक अवसंरचना परियोजनाओं के परिणामस्वरूप निजी संपत्तियों के मूल्य में हुए वर्द्धन के एक हिस्से का अधिग्रहण (कैप्चर) करना शामिल है।
    • हॉन्गकॉन्ग एक ऐसे शहर का प्रमुख उदाहरण है जो अवसंरचना परियोजनाओं के लिये भूमि मूल्य कैप्चर का प्रभावी ढंग से उपयोग करता है।

निष्कर्ष:

राजकोषीय हस्तांतरण सिद्धांतों की पुनः समीक्षा करके, वर्तमान शहरीकरण गतिशीलता के आधार पर कार्यप्रणाली को अद्यतन करके तथा शहरी क्षेत्रों के लिये IGT में पर्याप्त वृद्धि की सिफारिश कर उक्त चुनौतियों का समाधान करने में 16वाँ वित्त आयोग की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

  • इन सिफारिशों के परिणाम दूरगामी होंगे, जो भारत के आर्थिक विकास, सामाजिक समानता लक्ष्यों और शहरी केंद्रों में पर्यावरणीय स्थिरता प्रयासों को प्रभावित करेंगे। 
  • प्रभावी कार्यान्वयन के लिये नीतियों को संरेखित करने और देश में सतत् शहरी विकास सुनिश्चित करने के लिये केंद्र तथा राज्य सरकारों के ठोस प्रयासों की आवश्यकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: क्या 16वें वित्त आयोग द्वारा निधियों का वर्द्धित न्यागमन भारत में शहरी स्थानीय निकायों (ULB) के समक्ष विद्यामान वित्त संबंधी प्रणालीगत चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान कर सकता है। विश्लेषण कीजिये।

और पढ़ें: 16वाँ वित्त आयोग

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2023) 

  1. जनांकिकीय निष्पादन  
  2. वन और पारिस्थितिकी  
  3. शासन सुधार  
  4. स्थिर सरकार  
  5. कर एवं राजकोषीय प्रयास

समस्तर कर-अवक्रमण के लिये पंद्रहवें वित्त आयोग ने उपर्युक्त में से कितने को जनसंख्या क्षेत्रफल और आय के अंतर के अलावा निकष के रूप में प्रयुक्त किया?  

(a) केवल दो
(b) केवल तीन 
(c) केवल चार
(d) सभी पाँच

उत्तर: (b)


प्रश्न. भारत के संविधान के अनुसार, भारत के राष्ट्रपति का यह कर्त्तव्य है कि निम्नलिखित में से किसको संसद के समक्ष रखा जाए? (2012)

  1. केंद्रीय वित्त आयोग की सिफारिशें
  2. लोक लेखा समिति की रिपोर्ट
  3. नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट
  4. राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग की रिपोर्ट

नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर का चयन कीजिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 4
(c) केवल 1, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (c)


प्रश्न. भारत के वित्त आयोग के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है? (2011)

(a) यह बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये विदेशी पूंजी की आमद को प्रोत्साहित करता है।
(b) यह सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम के बीच वित्त के उचित वितरण की सुविधा प्रदान करता है।
(c) यह वित्तीय प्रशासन में पारदर्शिता सुनिश्चित करता है।
(d) इस संदर्भ में कोई भी कथन (a), (b) और (c) सही नहीं है।

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. तेरहवें वित्त आयोग की अनुशंसाओं की विवेचना कीजिये जो स्थानीय शासन की वित्त-व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिये पिछले आयोगों से भिन्न हैं। (2013)


1855 का संथाल हुल

प्रिलिम्स के लिये:

1855 का संथाल हुल, संथाल परगना काश्‍तकारी अधिनियम, 1876, दिकू, आदिवासी विद्रोह, मुंडा विद्रोह

मेन्स के लिये:

औपनिवेशिक भारत में जनजातीय विद्रोह, जनजातीय भूमि अधिकार और औपनिवेशिक नीतियाँ, आधुनिक भारतीय इतिहास

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में 30 जून 2024 को 1855 के संथाल हुल की 169वीं वर्षगाँठ मनाई गई, जो ब्रिटिश औपनिवेशिक उत्पीड़न के खिलाफ एक महत्त्वपूर्ण किसान विद्रोह का प्रतीक है।

  • इस विद्रोह के परिणामस्वरूप संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम, 1876 और छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम, 1908 पारित हुआ, जो भारत में जनजातीय भूमि अधिकारों तथा सांस्कृतिक स्वायत्तता के संरक्षण के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण था।

1855 का संथाल हुल क्या है?

  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: 1855 का संथाल हुल भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ सबसे शुरुआती किसान विद्रोहों में से एक था। चार भाइयों - सिद्धो, कान्हो, चाँद और भैरव मुर्मू के साथ-साथ बहनों फूलो और झानो के नेतृत्व में, विद्रोह 30 जून 1855 को शुरू हुआ।
    • विद्रोह का लक्ष्य न केवल अंग्रेज़ थे, बल्कि उच्च जातियाँ, ज़मींदार, दरोगा और साहूकार भी थे, जिन्हें सामूहिक रूप से 'दिकू' कहा जाता था।
    • इसका उद्देश्य संथाल समुदाय के आर्थिक, सांस्कृतिक और धार्मिक अधिकारों की रक्षा करना था।
  • विद्रोह की उत्पत्ति:
    • वर्ष 1832 में कुछ क्षेत्रों को ‘संथाल परगना’ या ‘दामिन-ए-कोह’ नाम दिया गया, जिसमें वर्तमान झारखंड में साहिबगंज, गोड्डा, दुमका, देवघर, पाकुड़ और जामताड़ा के कुछ हिस्से शामिल हैं।
      • यह क्षेत्र संथालों को दिया गया था जो बंगाल प्रेसीडेंसी के अंतर्गत विभिन्न क्षेत्रों से विस्थापित हुए थे।
    • संथालों को दामिन-ए-कोह में बसने और कृषि करने का वादा किया गया था, लेकिन इसके बदले उन्हें दमनकारी भूमि हड़पने तथा बेगारी (बँधुआ मज़दूरी) का सामना करना पड़ा।
      • संथाल क्षेत्र में बँधुआ मज़दूरी की दो प्रणालियाँ उभरीं, जिन्हें कामियोती और हरवाही के नाम से जाना जाता है।
        • कामियोती के तहत, ऋण चुकाए जाने तक ऋणदाता के लिये काम करना पड़ता था, जबकि हरवाही के तहत, ऋणदाता को व्यक्तिगत सेवाएँ प्रदान करनी पड़ती थीं और आवश्यकतानुसार ऋणदाता के खेत की जुताई करनी पड़ती थी। बॉन्ड की शर्तें इतनी सख्त थीं कि संथाल के लिये अपने जीवनकाल में ऋण चुकाना लगभग असंभव था।
  • गुरिल्ला युद्ध एवं दमन:
    • मुर्मू बँधुओं ने ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध में लगभग 60,000 संथालों का नेतृत्व किया। छह महीने तक चले भयंकर प्रतिरोध के बावजूद, जनवरी 1856 में भारी जनहानि और तबाही के साथ विद्रोह का दमन दिया गया।
      • 15,000 से ज़्यादा संथालों ने अपनी जान गँवाई और 10,000 से ज़्यादा गाँव नष्ट हो गए।
      • हुल ने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ़ शुरुआती प्रतिरोध को उजागर किया और यह आदिवासी लचीलेपन का प्रतीक बना हुआ है।
  • प्रभाव: इस विद्रोह के परिणामस्वरूप ही संथाल परगना काश्तकारी (Santhal Pargana Tenancy- SPT) अधिनियम, 1876 पारित किया गया जो आदिवासी भूमि को गैर-आदिवासियों को हस्तांतरित करने को प्रतिबंधित करता है, केवल समुदाय के भीतर ही भूमि उत्तराधिकार की स्वीकृति देता है तथा संथालों को अपनी भूमि पर स्वयं शासन करने का अधिकार सुरक्षित रखता है।

संथाल जनजाति

  • गोंड और भील के बाद यह भारत में तीसरी सबसे बड़ी अनुसूचित जनजाति है, जो अपने शांतिपूर्ण स्वभाव के लिये जानी जाती है। वे मूल रूप से खानाबदोश थे और बिहार तथा ओडिशा के संथाल परगना में बसने से पहले छोटा नागपुर पठार में निवास करते थे। 
    • ये झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में निवास करते हैं तथा कृषि, औद्योगिक श्रम, खनन एवं उत्खनन जैसे कार्यों में शामिल हैं। 
  • वे एक स्वायत्त आदिवासी धर्म में आस्था रखते हैं और पवित्र उपवनों के रूप में प्रकृति की उपासना करते हैं। उनकी भाषा को संथाली कहा जाता है जिसकी अपनी लिपि है जिसे 'OL चिकी' कहा जाता है जो आठवीं अनुसूची में अनुसूचित भाषाओं की सूची में शामिल है। 
  • उनके कलारूप, जैसे- फूटा कच्चा पैटर्न की साड़ी और पोशाक आदि लोकप्रिय हैं। वे कृषि और उपासना से संबंधित विभिन्न त्योहारों तथा अनुष्ठानों को मनाते हैं। संथाल घर, जिन्हें 'Olah' के नाम से जाना जाता है, बाहरी दीवारों पर बहुरंगी चित्रों से सुसज्जित अपने बड़े आकार, सफाई और आकर्षक रूप के कारण आसानी से पहचाने जा सकते हैं।

छोटा नागपुर क्षेत्र में हुए अन्य जनजातीय विद्रोह कौन-से हैं?

  • मुंडा विद्रोह: मुंडा उलगुलान (विद्रोह) भारतीय स्वतंत्रता के दौरान एक महत्त्वपूर्ण जनजातीय विद्रोह था, जिसने जनजातीय लोगों द्वारा शोषण का विरोध करने उनकी क्षमता को उजागर किया। 
    • यह अधिनियम आदिवासी और दलित समुदाय की भूमि की बिक्री को भी प्रतिबंधित करता है किंतु समान पुलिस के क्षेत्र में किसी अन्य आदिवासी व्यक्ति तथा एक ही ज़िले के दलित व्यक्ति के बीच भूमि हस्तांतरण की अनुमति देता है।
    • झारखंड के छोटा नागपुर में मुंडा जनजाति को, जो मुख्य रूप से कृषि करती थी, ब्रिटिश उपनिवेशवादियों, ज़मींदारों और मिशनरियों के उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। उनकी भूमि ज़ब्त कर ली गई और मज़दूरों के रूप में काम करने के लिये विवश किया गया। 
    • बिरसा मुंडा ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया और जनजाति की छीनी गई भूमि तथा उनके अधिकारों को पुनः प्राप्त करने का प्रयास किया। 
    • बिरसा आंदोलन के परिणामस्वरूप वर्ष 1908 में अंग्रेज़ों द्वारा अधिनियमित किया गया छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (CNT अधिनियम), ज़िला कलेक्टर की स्वीकृति से एक ही जाति और कुछ भौगोलिक क्षेत्रों के भीतर ही भूमि के हस्तांतरण की अनुमति देता है। 
  • ताना भगत आंदोलन: यह आंदोलन अप्रैल 1914 में जतरा भगत के नेतृत्व में शुरू हुआ, जिसका उद्देश्य छोटानागपुर के उराँव समुदाय में कुप्रथाओं को रोकना और ज़मींदारों द्वारा किये जा रहे शोषण का विरोध करना था।
    • इस आंदोलन ने महात्मा गांधी से प्रभावित होकर अहिंसा को बढ़ावा दिया। आंदोलन के परिणामस्वरूप, पशु बलि बंद कर दी गई और शराब का सेवन प्रतिबंधित कर दिया गया।
  • चुआर विद्रोह: चुआर विद्रोह छोटा नागपुर और बंगाल के मैदानों के मध्य क्षेत्र में शुरू हुआ जो वर्ष 1767 से 1802 तक जारी रहा। इसका नेतृत्व दुर्जन सिंह ने किया। अंग्रेज़ों द्वारा उनकी भूमि अधिग्रहण का जनजातियों ने विद्रोह किया और गुरिल्ला युद्धनीति का इस्तेमाल किया।
  • तमाड़ विद्रोह: यह वर्ष 1789 और 1832 के बीच छोटानागपुर क्षेत्र में तमाड़ के उराँव जनजातियों द्वारा किया गया विद्रोह था, जिसका नेतृत्व भोला नाथ सहाय ने किया था।
    • जनजातियों ने ब्रिटिश सरकार द्वारा लागू की गई दोषपूर्ण संरेखण प्रणाली के खिलाफ विद्रोह किया, जो कि काश्तकारों के भूमि अधिकारों को सुरक्षित करने में विफल रही थी, जिसके कारण वर्ष 1789 में तामार जनजातियों में अशांति फैल गई।

औपनिवेशिक भारत में जनजातीय विद्रोह

  • औपनिवेशिक भारत में जनजातीय विद्रोह विविध और बहुआयामी थे, जो ब्रिटिश औपनिवेशिक नीतियों तथा जनजातीय समुदायों पर उनके प्रभाव के विरुद्ध गहरी शिकायतों को दर्शाते थे।
  • मुख्य भूमि और सीमांत जनजातीय विद्रोहों में वर्गीकृत ये आंदोलन 18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से लेकर भारतीय स्वतंत्रता की पूर्व संध्या तक फैले रहे, जिन्होंने क्षेत्रीय गतिशीलता को प्रभावित किया तथा ब्रिटिश सत्ता को चुनौती दी।

    स्थिति

मुख्यभूमि जनजातीय विद्रोह

सीमांत जनजातीय विद्रोह

भौगोलिक फोकस

मध्य एवं पश्चिम-मध्य भारत।

भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र

विशेषताएँ

कृषि एवं वन आधारित; भूमि एवं वन नीतियों पर केंद्रित।

राजनीतिक स्वायत्तता और सांस्कृतिक संरक्षण; भूमि निपटान नीतियों से कम प्रभावित।

कारण

भू-राजस्व बंदोबस्त, वन नीतियाँ, बाहरी लोगों का आगमन और ईसाई मिशनरियाँ

राजनीतिक स्वायत्तता, भूमि और जंगलों पर नियंत्रण तथा गैर-संस्कृतिकरण आंदोलन

लक्ष्य

स्थानीय स्वायत्तता, सांस्कृतिक संरक्षण

राजनीतिक स्वायत्तता, स्वतंत्रता

सांस्कृतिक प्रतिरोध

जनजातीय पहचान और रीति-रिवाज़ों को संरक्षित करने का लक्ष्य

सांस्कृतिक प्रभावों का विरोध किया, विशेषकर संस्कृतीकरण का

प्रभाव

क्षेत्रीय पहचान और स्वायत्तता आंदोलनों में योगदान दिया

स्वदेशी प्रथाओं और राजनीतिक स्वायत्तता के संरक्षण पर ध्यान केंद्रित

आंदोलनों के उदाहरण

पहाड़िया विद्रोह (1778, राजमहल हिल्स), चुआर विद्रोह (1776, मिदनापुर और बांकुरा), खोंड विद्रोह (1837-56 और 1914), कोया विद्रोह (1879-80, आंध्र प्रदेश का पूर्वी गोदावरी क्षेत्र) और रम्पा विद्रोह (1922-1924, आंध्र प्रदेश)

अहोम विद्रोह (1828, असम), सिंगफोस विद्रोह (1830 के प्रारंभ में, असम), कुकी विद्रोह (1817-19, मणिपुर), नागा आंदोलन (1905-31; मणिपुर) और ज़ेलियांगसोंग आंदोलन (1920 का दशक; मणिपुर)

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दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: औपनिवेशिक भारत में जनजातीय विद्रोह ब्रिटिश औपनिवेशिक नीतियों के खिलाफ गहरी शिकायतों को दर्शाते हैं। मुख्य भूमि और सीमावर्ती क्षेत्रों के उदाहरणों के संदर्भ में इस कथन पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत के इतिहास के संदर्भ में 'उलगुलान' या 'महा उथल-पुथल' का नेतृत्व किसके द्वारा किया गया था? (2020)

(a) बक्शी जगबंधु
(b) अल्लूरी सीतारामराजू
(c) सिद्धू और कान्हू मुर्मू
(d) बिरसा मुंडा

उत्तर: (d)


प्रश्न 2. संथाल विद्रोह के शांत हो जाने के बाद, औपनिवेशिक शासन द्वारा कौन-सा/से उपाय किया/किये गए? (2018)

  1. 'संथाल परगना' नामक राज्यक्षेत्रों का सृजन किया गया। 
  2. किसी संथाल द्वारा गैर-संथाल को भूमि अंतरण करना गैरकानूनी हो गया।

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)


प्रश्न. निम्नलिखित में से किसने 19वीं शताब्दी में भारत में जनजातीय विद्रोह के लिये एक सामान्य कारक प्रदान किया? (2011)

(a) भूमि राजस्व और आदिवासी उत्पादों पर कर लगाने की नई प्रणाली की शुरुआत
(b) आदिवासी क्षेत्रों में विदेशी धार्मिक मिशनरियों का प्रभाव
(c) आदिवासी क्षेत्रों में बिचौलियों के रूप में बड़ी संख्या में साहूकारों, व्यापारियों और राजस्व किसानों का उदय।
(d) आदिवासी समुदायों की पुरानी कृषि व्यवस्था का पूर्ण विघटन

उत्तर: (d)


पोलियो के टीके का विकास

प्रिलिम्स के लिये:

पोलियो, वैक्सीन व्युत्पन्न पोलियोवायरस, विश्व स्वास्थ्य संगठन, सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम

मेन्स के लिये:

पोलियोवायरस, भारत तथा विश्व में पोलियो टीकाकरण और उनके उन्मूलन हेतु कार्यक्रम, पोलियो पर विश्व स्वास्थ्य संगठन के कार्यक्रम।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

टीके के प्रति झिझक, गलत सूचना, संघर्ष, गरीबी और साथ ही इन अलग-थलग क्षेत्रों तक सीमित पहुँच के कारण वाइल्ड पोलियोवायरस, अफगानिस्तान तथा पाकिस्तान के बड़े शहरों में पुनः प्रकट होने लगा है।

  • चूँकि वर्ष 2024 के अंत तक पोलियो का उन्मूलन नहीं किया जा सकता, इसलिये विश्व स्वास्थ्य संगठन की वैश्विक पोलियो उन्मूलन पहल के अपने लक्ष्य में असफल होने की आशंका है।
  • इनएक्टिवेटेड पोलियो वैक्सीन (IPV) और ओरल पोलियो वैक्सीन (OPV) नामक दो टीकों ने दुनिया से पोलियो को लगभग खत्म करने में मदद की है।

पोलियो टीकों के विकास का इतिहास क्या है?

  • दो पोलियो टीकों का विकास- जोनास साल्क द्वारा निष्क्रिय पोलियो वैक्सीन (IPV) तथा अल्बर्ट सबिन द्वारा ओरल पोलियो वैक्सीन (OPV) कई प्रमुख सफलताओं का परिणाम था:
    • गैर-तंत्रिका कोशिकाओं में पोलियोवायरस का संवर्धन:
      • वर्ष 1948 में सूक्ष्म जीव वैज्ञानिकों ने पोलियो वायरस को केवल तंत्रिका कोशिकाओं में विकसित करने के बजाय, मानव मांसपेशियों तथा त्वचा कोशिकाओं में विकसित करने की विधि की खोज की, जैसा कि पहले माना जाता था।
      • इससे पोलियो वायरस के बड़े पैमाने पर उत्पादन की अनुमति प्राप्त की, जो वैक्सीन अनुसंधान एवं विकास के लिये विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण था।
    • निष्क्रिय पोलियो वैक्सीन (IPV) का विकास:
      • पोलियो वायरस को विकसित करके एवं उसे निष्क्रिय करके तथा परीक्षण प्रतिभागियों को इंजेक्शन देकर, जोनास साल्क ने पहला प्रभावी पोलियो टीका निर्मित किया गया।
      • जैसे ही IPV को मांसपेशियों में प्रविष्ट कराया गया, इसने सिस्टेमिक/प्रणालीगत प्रतिरक्षा उत्पन्न की।
    • ओरल पोलियो वैक्सीन (OPV):
      • अल्बर्ट सबिन ने OPV विकसित किया, जिसमें जीवित, कमज़ोर पोलियोवायरस स्ट्रेन शामिल थे जिन्हें मौखिक रूप से दिया जाता था।
      • OPV ने आँत में एक शक्तिशाली सुरक्षात्मक म्यूकोसल प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया उत्पन्न की, जहाँ वायरस अपना संक्रमण शुरू करता है।

नोट:

  • प्रतिरक्षा प्रणाली के 2 मुख्य भाग होते हैं: सिस्टेमिक/प्रणालीगत (रक्त, मस्तिष्क और अन्य अंग प्रणालियों सहित) तथा म्यूकोसल/श्लैष्मिक (पाचन और श्वसन प्रणाली, मूत्रजननांगी पथ और आँखों की आंतरिक परत सहित)।
    • बाह्य वातावरण के साथ बार-बार संपर्क के कारण अतिरिक्त सुरक्षा के लिये म्यूकोसल घटकों को श्लेष्म झिल्ली के साथ पंक्तिबद्ध किया जाता है।

IPV और OPV के लाभ तथा हानियाँ क्या हैं? 

इनएक्टिवेटेड पोलियो वैक्सीन (IPV)

ओरल पोलियो वैक्सीन (OPV )

लाभ:

  • IPV को मृत या निष्क्रिय पोलियोवायरस से बनाया जाता है जिसका तात्पर्य यह है कि इसके कारण बीमारी का कारण नहीं बन सकता है।
  • IPV प्रतिरक्षाविहीन व्यक्तियों के उपयोग के लिये सुरक्षित है, क्योंकि इसमें जीवित वायरस नहीं होता है।
  • IPV एक दीर्घकालिक प्रतिरक्षा प्रदान करता है और सुरक्षा बनाए रखने के लिये इसके अत्यधिक सेवन की आवश्यकता नहीं होती है।

हानियाँ:

  • OPV की अपेक्षा IPV का उत्पादन और नियंत्रण अधिक महँगा है। पूर्ण प्रतिरक्षा प्राप्त करने के लिये IPV को कई बार (प्रायः एक बार में 2-4 शॉट्स) उपयोग करने की आवश्यकता होती है। 
  • IPV द्वारा प्राप्त म्यूकोसल प्रतिरक्षा OPV की अपेक्षा कम है, जो वायरस के संचरण को बाधित करने की इसकी क्षमता को सीमित कर सकता है।

लाभ:

  • IPV की अपेक्षा OPV के उत्पादन और नियंत्रण की लागत कम है।
  • प्रभावी प्रतिरक्षा के लिये OPV का केवल एक या सीमित संख्या में उपयोग ही पर्याप्त है।
  • OPV बेहतर म्यूकोसल प्रतिरक्षा प्रदान कर सकता है, जो वायरस के संचरण को बाधित करने में मदद करता है।

हानियाँ:

  • OPV में जीवित, कमज़ोर पोलियोवायरस होता है, जो कई मामलों में उत्परिवर्तित हो सकता है और वैक्सीन-व्युत्पन्न पोलियोवायरस (VDPV) प्रकोप का कारण बन सकता है।
  • OPV को प्रतिरक्षाविहीन व्यक्तियों में उपयोग के लिये अनुशंसित नहीं किया जाता है क्योंकि जीवित वायरस जोखिम उत्पन्न कर सकता है।
  • OPV-व्युत्पन्न प्रतिरक्षा, IPV-व्युत्पन्न प्रतिरक्षा जितनी दीर्घकालिक नहीं हो सकती है।

नोट:

विश्व ने पोलियो के उन्मूलन हेतु दोनों टीकों का इस्तेमाल किया है। 

  • नॉर्वे, स्वीडन, फिनलैंड और आइसलैंड जैसे कुछ देश पूर्ण रूप से IPV पर निर्भर थे। 
  • हालाँकि अधिकतर देशों ने दोनों टीकों के संयोजन का इस्तेमाल किया। 
    • इन देशों ने बेहतर सुरक्षा और प्रशासन में आसानी के लिये OPV को प्राथमिकता दी तथा फिर जब नेचुरल पोलियो के मामलों की संख्या शून्य होने के साथ IPV का उपयोग शुरू किया।

पोलियो से संबंधित मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • पोलियो (poliomyelitis) एक अत्यधिक संक्रामक वायरल बीमारी है जो मुख के माध्यम से शरीर में प्रवेश करती है और आँत में अपना संचरण बढ़ाते हुए तंत्रिका तंत्र पर आक्रमण करती है।
  • यह मुख्य रूप से 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों को प्रभावित करता है।
    • पोलियोवायरस की ऊष्मायन (Incubation) अवधि आमतौर पर 7-10 दिन होती है, लेकिन यह 4-35 दिनों तक हो सकती है।
  • पोलियोवायरस संक्रमण के आरंभिक लक्षणों में बुखार, थकान, सिरदर्द, उल्टी, गर्दन में अकड़न और अंगों में दर्द शामिल हैं।
    • पोलियोवायरस से संक्रमित 90% लोगों में कोई लक्षण नहीं या न्यून लक्षण होते हैं, जिनकी अक्सर पहचान करना भी मुश्किल हो जाता है।
  • 200 में से एक संक्रमण के मामले में पैरों का स्थायी पक्षाघात (Paralysis) हो जाता है जो संक्रमण के कुछ घंटों के भीतर हो सकता है।
    • पोलियो वायरस से लकवाग्रस्त 5-10% लोगों की श्वसन की माँसपेशियों के स्थिर होने से मृत्यु हो जाती है।
  • यह वायरस संक्रमित लोगों, आम तौर पर बच्चों, के मल के ज़रिए फैलता है और खराब स्वच्छता तथा सफाई व्यवस्था वाले क्षेत्रों में तेज़ी से फैल सकता है।
  • जंगली पोलियोवायरस के कारण होने वाले मामलों में 1988 से 99% से ज़्यादा की कमी आई है। अनुमान है कि 125 से ज़्यादा स्थानिक देशों में 350 000 मामले थे, जो अब घटकर सिर्फ़ दो स्थानिक देश अफगानिस्तान और पाकिस्तान रह गए हैं (अक्टूबर 2023 तक)।
  • तीन साल तक पोलियो के कोई मामले न आने के बाद, भारत को वर्ष 2014 में WHO द्वारा पोलियो-मुक्त प्रमाण-पत्र मिला।

पोलियो उन्मूलन के लिये क्या उपाय किये गए हैं?

  • वैश्विक:
    • वैश्विक पोलियो उन्मूलन पहल: इसे वर्ष 1988 में राष्ट्रीय सरकारों द्वारा शुरू किया गया था और इसका नेतृत्व विश्व स्वास्थ्य संगठन, रोटरी इंटरनेशनल, संयुक्त राज्य अमेरिका रोग नियंत्रण एवं रोकथाम केंद्र (Centers for Disease Control and Prevention - CDC) तथा संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (United Nations Children's Fund - UNICEF) ने किया था।
    • विश्व पोलियो दिवस: यह दिवस प्रत्येक वर्ष 24 अक्टूबर को मनाया जाता है ताकि देशों से इस बीमारी के खिलाफ लड़ाई में सतर्क रहने का आह्वान किया जा सके।
  • भारत:
    • पल्स पोलियो कार्यक्रम:
    • गहन मिशन इंद्रधनुष 2.0
    • सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (Universal Immunization Programme - UIP): इसे वर्ष 1985 में 'प्रतिरक्षण के विस्तारित कार्यक्रम’ (Expanded Programme of Immunization) में संशोधन के साथ शुरू किया गया था।
      • इस कार्यक्रम के उद्देश्य:
        • टीकाकरण कवरेज में तेज़ी से वृद्धि
        • सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार
        • स्वास्थ्य सुविधा स्तर पर एक विश्वसनीय कोल्ड चेन सिस्टम की स्थापना
        • ज़िलेवार प्रदर्शन की निगरानी के लिये तंत्र बनाना
        • वैक्सीन उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना आदि शामिल हैं। 

और पढ़ें: गिनी कृमि रोग

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत सरकार द्वारा चलाया गया 'मिशन इंद्रधनुष' किससे संबंधित है? (2016)

(a) बच्चों और गर्भवती महिलाओं का प्रतिरक्षण
(b) पूरे देश में स्मार्ट सिटि का निर्माण
(c) बाहरी अंतरिक्ष में पृथ्वी-सदृश ग्रहों के लिये भारत की स्वयं की खोज 
(d) नई शिक्षा-नीति

उत्तर: (a)


प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-से 'राष्ट्रीय पोषण मिशन (नेशनल न्यूट्रिशन मिशन)' के उद्देश्य हैं? (2017) 

  1. गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं में कुपोषण संबंधी जागरूकता उत्पन्न करना।
  2.  छोटे बच्चों, किशोरियों और महिलाओं में रक्ताल्पता को कम करना। 
  3.  बाजरा, मोटे अनाज और अपरिष्कृत चावल के उपभोग को बढ़ाना।
  4.   मुर्गी के अंडों के उपभोग को बढ़ाना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1, 2 और 3
(c) केवल 1, 2 और 4
(d) केवल 3 और 4 

उत्तर: (a)


ग्लोबल इंडियाAI शिखर सम्मेलन

प्रिलिम्स के लिये:

वैश्विक INDIAai शिखर सम्मेलन, भारत मंडपम, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तैयारी सूचकांक, INDIAai मिशन, कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर वैश्विक भागीदारी

मेन्स के लिये:

भारत में कृत्रिम बुद्धिमत्ता पारिस्थितिकी तंत्र, श्रम बाज़ार पर AI का प्रभाव, INDIAai मिशन

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों?

नई दिल्ली के भारत मंडपम में ग्लोबल इंडियाAI शिखर सम्मेलन (Global INDIAai Summit) सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। इस ऐतिहासिक कार्यक्रम में भारत और विश्व स्तर पर कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के भविष्य पर चर्चा करने के लिये विशेषज्ञ, नीति निर्माता और उत्साही लोग इसमें शामिल हुए

  • एक अन्य महत्त्वपूर्ण घटना यह रही कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस प्रीपेयर्डनेस सूचकांक (AIPI) डैशबोर्ड लॉन्च किया है, जो वैश्विक स्तर पर 174 अर्थव्यवस्थाओं की AI तत्परता की निगरानी करेगा।

शिखर सम्मेलन से संबंधित प्रमुख बिंदु और निष्कर्ष क्या हैं?

  • ग्लोबल AI डिस्कोर्स: भारत ने AI उपलब्‍ध करने और इसे सभी के लिये सुलभ बनाने की सरकार की मंशा पर बल देकर वैश्विक चर्चा की शुरुआत की।  
    • चर्चाओं में भारत की AI विषय को आकार देने में अनूठी आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया, जिसमें वैश्विक AI नेतृत्व प्राप्त करने के साथ-साथ अपनी घरेलू मांग को पूरा करने पर ध्यान केंद्रित किया गया।
    • शिखर सम्मेलन ने ग्लोबल साउथ देशों को अपनी AI-संबंधी चिंताओं और आकांक्षाओं को व्यक्त करने के लिये एक मंच प्रदान किया, जिसमें कई देशों ने ग्लोबल नॉर्थ के साथ इन देशों के अंतराल को पाटने में भारत की भूमिका को स्वीकार किया।
  • INDIAai मिशन: शिखर सम्मेलन ने INDIAai मिशन के माध्यम से देश में एक समावेशी और मज़बूत AI इकोसिस्‍टम बनाने तथा वैश्विक AI नवाचार का नेतृत्व करने के लिये भारत की योजनाबद्ध कार्रवाई एवं प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया।
    • शिखर सम्मेलन में कंप्यूट क्षमता, आधारभूत मॉडल, डेटासेट, एप्लीकेशन डेवलपमेंट, भविष्य के कौशल, स्टार्टअप फाइनेंसिंग और सुरक्षित AI जैसे क्षेत्रों में AI विकास को आगे बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया गया जो INDIAai मिशन के प्रमुख स्तंभ हैं।
    • चर्चा में विभिन्न कार्यान्वयन पहलुओं को शामिल किया गया, जैसे कि भारत की विविध आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये मल्टी-लार्ज लैंग्वेज मॉडल (LLM) मॉडल विकसित करना, AI-तैयार डेटा का प्लेटफॉर्मीकरण और मानकीकरण तथा बहु-हितधारक दृष्टिकोण के साथ एक साझेदार इकोसिस्‍टम तैयार करना।
  • वैश्विक साझेदारी:
    • CAIGP: वैश्विक भागीदारी पर सहयोगात्मक AI (CAIGP) के आयोजन ने वैश्विक AI विभाजन को दूर करने के लिये तंत्र की पहचान करने हेतु कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर वैश्विक भागीदारी (GPAI) के सदस्यों, AI विशेषज्ञों को एकजुट किया।
      • GPAI भारत सहित 29 सदस्य देशों के साथ एक बहु-हितधारक पहल है, जिसका उद्देश्य AI से संबंधित प्राथमिकताओं पर अत्याधुनिक अनुसंधान और एप्‍लाइड गतिविधियों का समर्थन करके AI पर सिद्धांत तथा व्यवहार के बीच के अंतराल को पाटना है।
      • भारत वर्ष 2024 में GPAI का प्रमुख अध्यक्ष है। GPAI के प्रमुख अध्यक्ष के रूप में, भारत प्रमुख मुद्दों पर चर्चा करने और भरोसेमंद AI को बढ़ावा देने के लिये वैश्विक AI विशेषज्ञों को आमंत्रित कर  रहा है।
    • GPAI सर्वसम्मति: सदस्यों ने GPAI के भविष्य के दृष्टिकोण पर आम सहमति बनाई, जिसमें AI की परिवर्तनकारी क्षमता पर ज़ोर दिया गया, जोखिमों को स्वीकार किया गया और मानव-केंद्रित AI विकास के लिये प्रतिबद्धता जताई गई।
    • OECD-GPAI साझेदारी: नई दिल्ली में आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (Organisation for Economic Co-operation and Development - OECD) और GPAI के बीच AI पर एक नई एकीकृत साझेदारी की घोषणा की गई, जिससे अंतर्राष्ट्रीय सहयोग मज़बूत होगा। इसका खास तौर पर भारत और अन्य गैर-OECD सदस्य देशों के लिये महत्त्वपूर्ण प्रभाव है।
      • भारत ने रणनीतिक रूप से OECD सदस्यों के साथ GPAI की स्वतंत्र पहचान सुनिश्चित की, जिससे वैश्विक AI शासन चर्चाओं में इसकी प्रासंगिकता बनी रही।
      • हालाँकि इसके विपरीत, भारत द्वारा स्वतंत्रता के लिये प्रयास किये जाने के बावजूद सचिवालय OECD के पास ही रहा और गैर-OECD GPAI सदस्य समान रूप से भाग ले रहे थे, लेकिन OECD की प्रशासनिक निगरानी में।
  • स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र समर्थन (Startup Ecosystem Support): भारतीय AI मिशन के 10,372 करोड़ रुपए के परिव्यय में से 2,000 करोड़ रुपए स्वदेशी AI-आधारित समाधान विकसित करने वाले भारतीय स्टार्टअप को समर्थन देने के लिये निर्धारित किये गए।
    • AI विकास में कंप्यूटिंग शक्ति की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता को स्पष्ट करते हुए, स्टार्टअप के लिये GPU अवसंरचना तक सब्सिडी वाली पहुँच प्रदान करने की योजनाओं पर चर्चा की गई।
    • शिखर सम्मेलन में AI स्टार्टअप के सामने आने वाले प्रमुख मुद्दों को हल करने की रणनीतियों पर प्रकाश डाला गया, जिसमें डेटासेट तक पहुँच, कौशल विकास और नवाचार को बढ़ावा देना शामिल है।
  • AI शिक्षा: व्यापक AI साक्षरता को बढ़ावा देने के लिये आयु-उपयुक्त AI शिक्षण वातावरण की आवश्यकता पर बल दिया गया।
  • सेक्टर-विशिष्ट अंतर्दृष्टि: शिखर सम्मेलन में भारत के एग्रीस्टैक में AI अनुप्रयोगों, किसानों को डेटा-संचालित ऋण वितरण और समय पर कृषि सूचना संग्रह तथा निर्णय लेने के लिये AI के उपयोग पर चर्चा की गई।
    • चर्चा में भारत में कानूनी ढाँचे और डेटासेट प्लेटफॉर्म पर चर्चा की गई, जिसमें शासन में डेटा प्रबंधन के महत्त्व पर ज़ोर दिया गया। सरकारी सेवाओं में AI के एकीकरण पर भी चर्चा की गई, जिसमें दक्षता और नागरिक सेवाओं में सुधार पर ध्यान केंद्रित किया गया।
  • नैतिक और मानव-केंद्रित AI: शिखर सम्मेलन में भरोसेमंद और मानव-केंद्रित AI विकास को बढ़ावा देने की सामूहिक प्रतिबद्धता की पुष्टि की गई।
    • प्रतिभागियों ने AI प्रणालियों द्वारा उत्पन्न उभरते जोखिमों और चुनौतियों को पहचाना तथा ज़िम्मेदार विकास की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। शिखर सम्मेलन में AI पर OCD अनुशंसा और AI की नैतिकता पर UNESCO अनुशंसा के प्रति प्रतिबद्धताओं को याद किया गया।
      • UNESCO ने मानव अधिकारों और सम्मान की रक्षा पर ध्यान केंद्रित करते हुए AI की नैतिकता पर सिफारिश को अपनाया।
        • इस सिफारिश में AI सिस्टम की पारदर्शिता, निष्पक्षता और मानवीय निगरानी पर ज़ोर दिया गया है। इसमें नीति-निर्माताओं के लिये डेटा गवर्नेंस, पर्यावरण, लिंग, शिक्षा, अनुसंधान, स्वास्थ्य एवं सामाजिक कल्याण जैसे क्षेत्रों में मूल मूल्यों और सिद्धांतों को लागू करने के लिये नीति कार्रवाई क्षेत्र भी शामिल हैं।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता तैयारी सूचकांक (AIPI) क्या है?

  • AIPI देशों का उनके डिजिटल बुनियादी ढाँचे, मानव पूंजी, श्रम नीतियों, नवाचार, एकीकरण और विनियमन के आधार पर मूल्यांकन करता है।
    • उन्नत डिजिटल बुनियादी ढाँचे वाले देश सूचकांक पर उच्च स्कोर करते हैं। कुशल कार्यबल की उपलब्धता और AI कौशल का समर्थन करने वाली शैक्षिक प्रणाली महत्त्वपूर्ण कारक हैं।
  • AIPI डैशबोर्ड देशों को उन्नत अर्थव्यवस्था (AE), उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्था (EM) तथा निम्न आय वाले देश (LIC) में वर्गीकृत करता है।
    • सिंगापुर (0.80), डेनमार्क (0.78) और संयुक्त राज्य अमेरिका (0.77) उच्चतम रेटिंग वाले AI में से हैं। EM के रूप में वर्गीकृत 0.49 रेटिंग के साथ भारत 72वें स्थान पर है।
    • उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं में भारत का प्रदर्शन अपेक्षाकृत मज़बूत है, लेकिन चीन (0.63) जैसे अपने कुछ क्षेत्रीय साथियों से पीछे 31वें स्थान पर है।

Artificial_Intelligence_Preparedness Index

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष:

  • IMF, 190 सदस्य देशों का संगठन है जिसका मुख्यालय वाशिंगटन DC में है, भारत इसके संस्थापक सदस्यों में से एक है तथा इसका प्रतिनिधित्व वित्तीय महत्त्व के आधार पर होता है।
  • इसके उद्देश्यों में वैश्विक मौद्रिक सहयोग को बढ़ावा देना, वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करना, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देना और गरीबी को कम करना शामिल है।
  • IMF का इतिहास वर्ष 1944 के ब्रेटन वुड्स सम्मेलन से शुरू होता है, जहाँ आर्थिक संकटों से बचने के लिये इसकी स्थापना की गई थी। 
  • रिपोर्टें: वैश्विक वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट तथा वर्ल्ड इकोनाॅमिक आउटलुक।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. वैश्विक AI विभाजन को दूर करने में वैश्विक साझेदारी जैसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर वैश्विक साझेदारी के महत्त्व पर चर्चा कीजिये। भारत इन साझेदारियों में क्या भूमिका निभाता है? 

और पढ़ें: Global Partnership on Artificial Intelligence (GPAI) Summit

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. विकास की वर्तमान स्थिति में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence), निम्नलिखित में से किस कार्य को प्रभावी रूप से कर सकती है? (2020)

  1. औद्योगिक इकाइयों में विद्युत की खपत कम करना   
  2. सार्थक लघु कहानियों और गीतों की रचना   
  3. रोगों का निदान   
  4. टेक्स्ट-से-स्पीच (Text-to-Speech) में परिवर्तन   
  5. विद्युत ऊर्जा का बेतार संचरण

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2, 3 और 5
(b) केवल 1, 3 और 4
(c) केवल 2, 4 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर: (b)


प्रश्न. 'वानाक्राई, पेट्या और इटरनलब्लू' जो हाल ही में समाचारों में उल्लिखित थे, निम्नलिखित में से किससे संबंधित हैं? (2018)

(a) एक्सोप्लैनेट्स
(b) क्रिप्टोकरेंसी
(c) साइबर आक्रमण
(d) लघु उपग्रह

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. भारत के प्रमुख शहरों में IT उद्योगों के विकास से उत्पन्न होने वाले मुख्य सामाजिक-आर्थिक निहितार्थ क्या हैं? (2022)

प्रश्न. "चौथी औद्योगिक क्रांति (डिजिटल क्रांति) के प्रादुर्भाव ने ई-गवर्नेंस को सरकार का अविभाज्य अंग बनाने में पहल की है"। विवेचन कीजिये। (2020)