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डेली न्यूज़

  • 05 Jul, 2022
  • 50 min read
शासन व्यवस्था

अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता दिवस

प्रिलिम्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता दिवस, प्राथमिक कृषि ऋण समितियाँ (PACS)।

मेन्स के लिये:

सहकारी समितियों के कार्य एवं आत्मानिर्भर भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु आर्थिक दक्षता, समानता और नवाचार में वे कैसे मदद कर सकती हैं।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 100वांँ अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता दिवस मनाया गया।

  • भारत ने "सहकारिता के माध्यम से आत्मनिर्भर भारत और बेहतर विश्व का निर्माण" विषय के तहत यह सहकारिता दिवस मनाया।

अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता दिवस:

  • ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:
    • 16 दिसंबर, 1992 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा जुलाई के पहले शनिवार को अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता दिवस के रूप में घोषित किया गया था।
    • इस दिवस का उद्देश्य वैश्विक स्तर पर सहकारी समितियों को बढ़ावा देना और एक ऐसा वातावरण तैयार करना है जो उनके विस्तार और लाभप्रदता को बढ़ावा दे।
    • यह अवसर संयुक्त राष्ट्र द्वारा संबोधित प्रमुख मुद्दों से निपटने के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहकारी आंदोलन और अन्य कारकों के बीच गठबंधन को बढ़ाने एवं विस्तारित करने के लिये सहकारी आंदोलन के योगदान पर प्रकाश डालता है।
  • महत्त्व:
    • इसका उद्देश्य सहकारी समितियों के बारे में जागरूकता बढ़ाना और आंदोलन के मूल्यों को आगे बढ़ाना है:
      • अंतर्राष्ट्रीय एकता
      • आर्थिक दक्षता
      • समानता
      • वैश्विक शांति
  • 2022 की थीम:
    • “सहकारिता एक बेहतर विश्व का निर्माण करती है” (Cooperatives Build a Better World)।

सहकारी समितियांँ:

  • परिचय:
    • सहकारिताएंँ जन-केंद्रित उद्यम हैं जिनका स्वामित्व, नियंत्रण और संचालन उनके सदस्यों द्वारा उनकी सामान्य आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक आवश्यकताओं तथा आकांक्षाओं को पूरा करने के लिये किया जाता है।
    • सहकारिता लोगों को लोकतांत्रिक और समान तरीके से एक साथ लाती है। सदस्य चाहे ग्राहक हों, कर्मचारी हों, उपयोगकर्त्ता हों या निवासी हों, सहकारी समितियों का प्रबंधन लोकतांत्रिक तरीके से 'एक सदस्य, एक वोट' नियम द्वारा किया जाता है।
      • उद्यम में किये गए पूंजी निवेश की परवाह किये बिना सदस्यों को समान मतदान अधिकार प्राप्त है।
  • भारतीय परिप्रेक्ष्य:
    • वर्तमान में भारत में 90 प्रतिशत गांँवों को कवर करने वाली 8.5 लाख से ज़्यादा सहकारी समितियों के नेटवर्क के साथ ये ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में समावेशी विकास के उद्देश्य से सामाजिक-आर्थिक क्षेत्र के विकास के लिये महत्त्वपूर्ण संस्थान हैं।
    • भारत में सहकारिता आंदोलन की सफलता की कुछ जानी मानी कहानियों में शामिल हैं:

संबंधित सरकारी पहल:

  • सहकारिता क्षेत्र को प्रोत्साहन देने के क्रम में केंद्र सरकार ने जुलाई 2021 में सहकारिता मंत्रालय की स्थापना की थी। इसके गठन के बाद से मंत्रालय नई सहकारिता नीति और योजनाओं के मसौदे पर काम कर रहा है।
  • सहकारिता क्षेत्र में देश के किसान, कृषि और ग्रामीण क्षेत्रों के विकास एवं सशक्तीकरण के लिये पर्याप्त संभावनाएंँ हैं।
  • हाल में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (PACS) के डिजिटलीकरण को स्वीकृति देकर सहकारिता क्षेत्र को मज़बूत बनाने का अहम निर्णय लिया है। इसका उद्देश्य PACS की दक्षता बढ़ाना, पारदर्शिता के साथ संचालन कर उनकी विश्वसनीयता को बढ़ान, PACS के कामकाज में विविधता लाना और कई गतिविधियों/सेवाओं के संचालन में सहायता देना है।

सहकारिता के समक्ष चुनौतियाँ:

  • नीति निर्माताओं द्वारा उपेक्षा: सहकारिता की भूमिका को नीति निर्माताओं द्वारा उनकी अदूरदर्शिता के कारण विभिन्न स्तरों पर अनदेखा किया गया है।
  • जागरूकता का अभाव: व्यावसायिक रणनीतियों और बाज़ार गतिविधियों के बारे में जागरूकता एवं जानकारी की कमी।
  • वित्तपोषण और क्षमताओं की कमी: सार्वजनिक हो या निजी क्षेत्र दोनों में ही इस क्षेत्र के प्रति विश्वास की कमी देखी गई है, क्योंकि सहकारी समितियों के लिये बहुत कम या कोई वित्तीय सहायता उपलब्ध नहीं है, जो  उनकी क्षमता को नुकसान पहुँचाता है।
  • खराब प्रबंधन: बाज़ार के बारे में समझ की कमी और श्रमिकों में कौशल की कमी के कारण कई सहकारी समितियाँ खराब प्रदर्शन करती रही हैं और वांछित परिणाम देने में असफल रही हैं।

आगे की राह

  • सहकारी समितियों की द्वैध भूमिका: सरकार और कॉर्पोरेट्स सहित विभिन्न हितधारकों को सहकारी समितियों के सबसे उल्लेखनीय प्रतिस्पर्द्धात्मक लाभ (यानी एक संगठन और एक उद्यम के रूप में उनकी दोहरी स्थिति) को सामने लाकर उनकी भूमिका को पूर्णता प्रदान करनी चाहिये तथा उन्हें आगे और समर्थन देना चाहिये।
  • सरकार की भूमिका: सरकार को उनकी क्षमताओं के संवर्द्धन हेतु कार्य करना होगा, उन्हें बाज़ार और व्यापारिक समुदायों की ओर से उचित मार्गदर्शन एवं समर्थन मिलना सुनिश्चित हो, ताकि वे उद्यम के संचालन हेतु आवश्यक कौशल एवं ज्ञान का वांछित स्तर प्राप्त कर सकें और पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान में इन क्षमताओं का उपयोग कर सकें।

स्रोत: पी.आई.बी.


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

मेकांग-लंकांग सहयोग

प्रिलिम्स के लिये:

मेकांग-लंकांग सहयोग, मेकांग नदी, पड़ोसी देश म्याँमार

मेन्स के लिये:

भारत और उसके पड़ोस, पड़ोसी देशों में चीन की उपस्थिति, अंतर्राष्ट्रीय समूहों का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

वर्ष 2021 में म्यांँमार में सेना के सत्ता में आने के बाद हाल ही में वहाँ की सैन्य सरकार ने पहली उच्च स्तरीय क्षेत्रीय बैठक की मेज़बानी की।

 बैठक के बारे में:

  • बैठक में चीन के विदेश मंत्री और मेकांग डेल्टा देशों के समकक्ष शामिल हुए।
  • चीन के विदेश मंत्री ने मेकांग-लंकांग सहयोग समूह की बैठक में म्यांँमार, लाओस, थाईलैंड, कंबोडिया और वियतनाम के अपने समकक्षों के साथ बैठक की।
  • यह यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल, बागान के केंद्रीय शहर में आयोजित किया गया था।
  • बैठक का विषय "शांति और समृद्धि के लिये एकजुटता" था।

मेकांग-लंकांग सहयोग:

  • परिचय:
    • यह एक चीनी नेतृत्व वाली पहल है, इसमें मेकांग डेल्टा के देश शामिल हैं, जो जलविद्युत परियोजनाओं की बढ़ती संख्या के कारण बदलते नदी प्रवाह से क्षेत्रीय तनाव का एक संभावित स्रोत बने हुए हैं तथा पारिस्थितिक क्षति की चिंता को बढ़ा रहे हैं।
  • मुद्दे:
    • चीन ने मेकांग के ऊपरी हिस्से पर 10 बांँध बनाए हैं, इस हिस्से को वह लंकांग कहता है।
    • मेकांग नदी पर बांँधों के लिये चीन की आलोचना की जाती है जो जल स्तर और डाउनस्ट्रीम मत्स्य पालन को प्रभावित करते हैं तथा कई दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों की अर्थव्यवस्थाओं के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।

Thailand

म्याँमार में सैन्य तख्तापलट:

  • परिचय:
    • नवंबर 2020 के संसदीय चुनाव में सू की की पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (NLD) ने बहुमत हासिल किया।
    • म्याँमार की संसद में सेना के पास वर्ष 2008 के सैन्य-मसौदे संविधान के अनुसार कुल सीटों का 25% हिस्सा है और कई प्रमुख मंत्री पद भी सैन्य नियुक्तियों के लिये आरक्षित हैं।
    • जब म्याँमार के नवनिर्वाचित सांसदों को वर्ष 2021 में संसद का पहला सत्र आयोजित करना था, तो सेना ने संसदीय चुनावों में मतदान के दौरान भारी धोखाधड़ी का हवाला देते हुए एक वर्ष के लिये आपातकाल लागू कर दिया।
  • तख्तापलट पर भारत की प्रतिक्रिया:
    • इस दौरान भारत ने म्याँमार में लोकतांत्रिक परिवर्तन की प्रक्रिया का समर्थन किया है।
    • यद्यपि भारत ने म्याँमार के हालिया घटनाक्रम पर गहरी चिंता व्यक्त की है, किंतु म्याँमार की सेना से अपने संबंध खराब करना एक व्यवहार्य विकल्प नहीं होगा, क्योंकि म्याँमार के साथ भारत के कई महत्त्वपूर्ण आर्थिक और सामरिक हित जुड़े हैं।

म्याँमार के साथ भारत के संबंध कैसे रहे हैं?

  • भारत के लिये म्याँमार का महत्त्व:
    • भारत के लिये म्याँमार भौगोलिक रूप से महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के भौगोलिक केंद्र में अवस्थित है।
    • म्याँमार एकमात्र दक्षिण-पूर्व एशियाई देश है जो पूर्वोत्तर भारत के साथ थल सीमा साझा करता है।
    • म्याँमार एकमात्र ऐसा देश है जो भारत की "नेबरहुड फर्स्ट नीति" और एक्ट ईस्ट नीति दोनों के लिये समान रूप से महत्त्वपूर्ण है।
    • सागर (SAGAR) नीति के तहत भारत ने म्याँमार के रखाईन प्रांत में सित्वे बंदरगाह को विकसित किया है।
    • ‘सित्वे’ (Sittwe) बंदरगाह को म्याँमार में चीन समर्थित ‘क्याउक्प्यू’ (Kyaukpyu) बंदरगाह के लिये भारत की प्रतिक्रिया के रूप में देखा जा सकता है, गौरतलब है कि क्याउक्प्यू बंदरगाह का उद्देश्य रखाईन प्रांत में चीन की भू-रणनीतिक पकड़ को मज़बूत करना है।
  • जिन परियोजनाओं में भारत शामिल है वे हैं:
    • 160 किलोमीटर लंबी तमू-कलेवा-कालेम्यो सड़क का उन्नयन और पुनर्जीवन।
    • म्याँमार के 32 शहरों में हाई-स्पीड डेटा लिंक के लिये एक असममित डिजिटल सब्सक्राइबर लाइन (ADSL) परियोजना पूरी हो गई है।
    • ONGC विदेश लिमिटेड (OVL), गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (GAIL) और एस्सार म्याँमार में ऊर्जा क्षेत्र में भागीदार हैं।
  • भारत और म्याँमार इनके सदस्य हैं:

बैठक को लेकर भारत की चिंता:

  • म्याँमार में चीन की उपस्थिति और चीन एवं म्याँमार के बीच बढ़ते संबंध भारत के लिये गहरी चिंता का विषय है क्योंकि भारत, म्याँमार के साथ 1600 किमी. की सीमा साझा करता है।
  • तख्तापलट के बाद से चीन-म्याँमार आर्थिक गलियारे के लिये महत्त्वपूर्ण परियोजनाओं पर विशेष ध्यान देने के साथ म्याँमार पर चीन की आर्थिक पकड़ सख्त हो गई है।
  • इसके अलावा नवंबर 2021 में म्याँमार सीमा के पास असम राइफल्स के काफिले पर घातक हमला पूर्वोत्तर भारत में संकट उत्पन्न करने की चीन की बदनीयती का संकेत देती है।

आगे बढ़ने के लिये भारत का दृष्टिकोण क्या होना चाहिये?

  • सांस्कृतिक कूटनीति:
    • बौद्ध धर्म के माध्यम से भारत की सांस्कृतिक कूटनीति का लाभ म्याँमार के साथ संबंधों को मज़बूत करने के लिये उठाया जा सकता है।
    • भारत की "बौद्ध सर्किट" पहल, जिसका उद्देश्य भारत के विभिन्न राज्यों में प्राचीन बौद्ध विरासत स्थलों को जोड़कर भारत आने वाले विदेशी पर्यटकों की संख्या को दोगुना करना है, बौद्ध-बहुल म्याँमार के साथ प्रतिध्वनित होनी चाहिये।
    • यह म्यांँमार जैसे बौद्ध-बहुल देशों के साथ भारत के सद्भावना और विश्वास के राजनयिक संबंध का निर्माण भी कर सकता है।
  • रोहिंग्या मुद्दे का समाधान:
    • रोहिंग्या मुद्दे को जितनी जल्दी सुलझाया जाएगा भारत के लिये म्यांँमार और बांग्लादेश के साथ अपने संबंधों को प्रबंधित करना उतना ही आसान होगा, इसके लिये द्विपक्षीय एवं उपक्षेत्रीय आर्थिक सहयोग पर अधिक ध्यान केंद्रित करना होगा।
  • अन्य उपाय:
    • भारत को म्यांँमार में मौजूदा सरकार के साथ संबंध जारी रखना चाहिये जो दोनों देशों के लोगों के पारस्परिक विकास की दिशा में सहायक होगा।
    • इसे मौजूदा गतिरोध को हल करने में म्यांँमार की सहायता करने के लिये संवैधानिकता और संघवाद का अनुभव साझा करने का समर्थन करना चाहिये।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (पीवाईक्यू):

प्रश्न. मेकांग-गंगा सहयोग जो कि छह देशों की एक पहल है, निम्नलिखित में से कौन-सा/से देश प्रतिभागी नहीं है/हैं? (2015)

  1. बांग्लादेश
  2. कंबोडिया
  3. चीन
  4. म्यांँमार
  5. थाईलैंड

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1 और 3
(d) केवल 1, 2 और 5

उत्तर: (c)

व्याख्या :

  • मेकांग-गंगा सहयोग (MGC) पर्यटन, संस्कृति, शिक्षा, साथ ही परिवहन और संचार में सहयोग के लिये छह देशों- भारत और पाँच आसियान देशों, अर्थात् कंबोडिया, लाओस, म्याँमार, थाईलैंड और वियतनाम द्वारा संचालित एक पहल है। इसे वर्ष 2000 में लाओस के वियनतियाने (Vientiane) में प्रारंभ किया गया था।
  • गंगा और मेकांग दोनों ही नदियों में प्राचीन सभ्यताएँ पनपी हैं, अत: MGC पहल का उद्देश्य इन दो प्रमुख नदी घाटियों में बसे लोगों के बीच संपर्कों को सुविधाजनक बनाना है।
  • MGC वर्षों से सदस्य देशों के बीच विद्यमान सांस्कृतिक और वाणिज्यिक संबंधों का भी संकेत है।

अतः विकल्प C सही है।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-यूरोपीय संघ व्यापार और निवेश समझौते

प्रिलिम्स के लिये:

मुक्त व्यापार समझौता, डेटा सुरक्ष, गैर-टैरिफ बाधाएँ, भारत-यूरोपीय संघ शिखर सम्मेलन, यूरोपीय संघ, मोस्ट फेवर्ड नेशन

मेन्स के लिये:

भारत-ईयू व्यापार और निवेश समझौते, गतिरोध की ओर ले जाने वाले मुद्दे।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत और यूरोपीय संघ ने नई दिल्ली में भारत-यूरोपीय संघ व्यापार एवं निवेश समझौतों के लिये पहले दौर की वार्ता की।

  • वार्ता के दौरान मुक्‍त व्‍यापार समझौते की 18 नीतियों पर 52 सत्र आयोजित किये गये। निवेश सुरक्षा और अन्‍य विषयों पर सात सत्र आयोजित किये गये।
  • दूसरे दौर की वार्ता सितंबर 2022 में ब्रुसेल्स में आयोजित की जाएगी।

European-Union

भारत-यूरोपीय संघ व्यापार और निवेश समझौता क्या है?

  • पृष्ठभूमि:
    • भारत और यूरोपीय संघ ने एक व्यापक मुक्त व्यापार समझौता (FTA) करने के लिये वर्ष 2007 में बातचीत शुरू की थी, जिसे आधिकारिक तौर पर BTIA कहा जाता है।
    • BTIA को वस्तुओं, सेवाओं और निवेशों में व्यापार को शामिल करने का प्रस्ताव दिया गया था।
      • हालाँकि बाज़ार पहुँच और पेशेवरों की आवाजाही पर मतभेदों को लेकर वर्ष 2013 में बातचीत ठप हो गई।
  • क्षेत्र:
    • यूरोपीय संघ के साथ भारत का द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2021-22 में 116 बिलियन डॉलर से अधिक का था।
    • वैश्विक व्यवधानों के बावजूद द्विपक्षीय व्यापार ने वर्ष 2021-22 में 43% से अधिक की प्रभावशाली वार्षिक वृद्धि हासिल की।
    • वर्तमान में यूरोपीय संघ अमेरिका के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, साथ ही भारतीय निर्यात के लिये दूसरा सबसे बड़ा गंतव्य है।
    • भारत में विदेशी निवेश प्रवाह में यूरोपीय संघ (EU) की हिस्सेदारी पिछले दशक में 8% से बढ़कर 18% हो गई है, जिससे यूरोपीय संघ भारत में पहला विदेशी निवेशक बन गया है।

संबंधित चुनौतियांँ:

  • सबसे पसंदीदा राष्ट्र (Most-Favoured Nation):
    • EU निवेश संधि अभ्यास अपनी निवेश संधियों में सर्वाधिक पसंदीदा राष्ट्र (MFN) प्रावधान को शामिल करने की अपनी उत्सुकता को दर्शाता है।
      • भारत निवेश संधियों में MFN प्रावधान को शामिल करने के खिलाफ है।
  • निष्पक्ष और न्यायसंगत व्यवहार:
    • यूरोपीय संघ अपनी निवेश संधियों में उचित और न्यायसंगत उपचार (FET) प्रावधान शामिल करता है।
      • FET एक महत्त्वपूर्ण वास्तविक सुरक्षा सुविधा है जो विदेशी निवेशकों को मनमाने व्यवहार के लिये राज्यों को जवाबदेह ठहराने में सक्षम बनाती है।
      • भारत की मॉडल द्विपक्षीय निवेश संधि और हाल ही में भारत द्वारा हस्ताक्षरित निवेश संधियों में FET प्रावधान अनुपस्थित है।
  • बहुपक्षीय निवेश न्यायालय:
    • यूरोपीय संघ मौजूदा मध्यस्थता-आधारित निवेशक-राज्य विवाद निपटान (ISDS) प्रणाली में सुधार हेतु बहुपक्षीय निवेश न्यायालय (MIC) को बढ़ावा दे रहा है।
      • फिर भी MIC पर भारत की आधिकारिक स्थिति स्पष्ट नहीं है। भारत ने MIC स्थापित करने की दिशा में चल रही बातचीत में योगदान नहीं दिया है, जो एक ऐसे देश के लिये हैरान करने वाला है जो नियम आधारित वैश्विक व्यवस्था का समर्थन करता है।
  • गैर टैरिफ बाधाएंँ:

यूरोपीय संघ:

  • परिचय:
    • यूरोपियन यूनियन 27 देशों का एक समूह है जो एक संसक्त आर्थिक और राजनीतिक ब्लॉक के रूप में कार्य करता है।
    • इसके 19 सदस्य देश अपनी आधिकारिक मुद्रा के तौर पर 'यूरो' का उपयोग करते हैं।
      • जबकि 8 सदस्य देश (बुल्गारिया, क्रोएशिया, चेक गणराज्य, डेनमार्क, हंगरी, पोलैंड, रोमानिया एवं स्वीडन) यूरो का उपयोग नहीं करते हैं।
    • यूरोपीय देशों के मध्य सदियों से चली आ रही लड़ाई को समाप्त करने के लिये यूरोपीय संघ के रूप में एक एकल यूरोपीय राजनीतिक इकाई बनाने की इच्छा विकसित हुई जिसका द्वितीय विश्व युद्ध के साथ समापन हुआ और इस महाद्वीप का अधिकांश भाग समाप्त हो गया।
    • EU ने कानूनों की मानकीकृत प्रणाली के माध्यम से एक आंतरिक एकल बाज़ार (Internal Single Market) विकसित किया है जो सभी सदस्य राज्यों के मामलों में लागू होता है और सभी सदस्य देशों की इस पर एक राय होती है।
  • भारत के लिये यूरोपीय संघ का महत्त्व:
    • यूरोपीय संघ शांति को बढ़ावा देने, रोज़गार सृजित करने, आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और देश भर में सतत् विकास को बढ़ाने के लिये भारत के साथ मिलकर काम करता है।
    • वर्ष 2017 में EU-भारत शिखर सम्मेलन में नेताओं ने सतत् विकास के लिये एजेंडा 2030 के क्रियान्वयन पर सहयोग को मज़बूती प्रदान करने के लिये अपने इरादे को दोहराया और भारत-EU विकास संवाद के विस्तार हेतु सहमत हुए।

आगे की राह

  • भू-आर्थिक सहयोग: भारत सुरक्षा दृष्टिकोण से नहीं तो भू-आर्थिक रूप से इंडो-पैसिफिक मामलों में यूरोपीय संघ के देशों के साथ संलग्न हो सकता है।
    • यह क्षेत्रीय बुनियादी ढांँचे के सतत् विकास के लिये बड़े पैमाने पर आर्थिक संसाधन जुटा सकता है, राजनीतिक प्रभाव को नियंत्रित कर सकता है तथा इंडो-पैसिफिक संवाद को आकार देने के लिये अपने महत्त्वपूर्ण सॉफ्ट पावर का लाभ उठा सकता है।
  • भारत-यूरोपीय संघ BTIA संधि को अंतिम रूप देना: भारत और यूरोपीय संघ एक मुक्त-व्यापार समझौते पर बातचीत कर रहे हैं, लेकिन यह 2007 से लंबित है।
    • इसलिये भारत और यूरोपीय संघ के बीच घनिष्ठ अभिसरण के लिये दोनों को व्यापार समझौते को जल्द से जल्द अंतिम रूप देने में संलग्न होना चाहिये।
  • महत्त्वपूर्ण अभिकर्त्ताओं के साथ सहयोग:
    • फ्रांँस के साथ भारत की साझेदारी अब इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में एक मज़बूत क्षेत्रीय सहयोग है।
    • भारत ब्रिटेन के साथ व्यापार समझौते के लिये भी बातचीत में लगा हुआ है।

स्रोत: पी.आई.बी.


जैव विविधता और पर्यावरण

पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986

प्रिलिम्स  के लिये:

पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986, पर्यावरण संरक्षण कोष, मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन, स्टॉकहोम सम्मेलन।

मेन्स के लिये:

पर्यावरण संरक्षण अधिनियम में प्रस्तावित संशोधन, EPA की विशेषताएँ, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 की कमियाँ।

चर्चा में क्यों?

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 में संशोधन का प्रस्ताव रखा।

  • हालाँकि हाल ही में जो प्रावधान लागू हुए हैं वे पहले से लागू पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के प्रावधान एकल उपयोग प्लास्टिक प्रतिबंध के दंडात्मक प्रावधानों के लिये लागू होंगे हैं।

पर्यावरण संरक्षण अधिनियम में प्रस्तावित प्रमुख संशोधन क्या हैं?

  • मंत्रालय ने साधारण उल्लंघनों के लिये कारावास के भय को दूर करने हेतु EPA, 1986 के मौजूदा प्रावधानों को अपराध से मुक्त करने का प्रस्ताव किया गया है।
    • इसमें "कम गंभीर" उल्लंघनों के लिये दंड के रूप में कारावास कि सज़ा को हटाना शामिल है।
      • हालाँकि EPA के गंभीर उल्लंघन जो गंभीर क्षति या जीवन की हानि का कारण बनते हैं, को भारतीय दंड संहिता के प्रावधान के तहत कवर किया जाएगा।
  • EPA के प्रावधानों की विफलता, उल्लंघन या गैर-अनुपालन जैसी रिपोर्ट, जानकारी प्रस्तुत करना आदि से अब विधिवत अधिकृत न्यायनिर्णयन अधिकारी के माध्यम से मौद्रिक दंड लगाकर निपटा जाएगा।
  • कारावास के बजाय इस संशोधन में एक पर्यावरण संरक्षण कोष के निर्माण का प्रस्ताव भी किया गया है जिसमें पर्यावरण को हुए नुकसान का न्यायनिर्णयन के बाद अधिकारी द्वारा लगाए गए दंड की राशि को माफ कर दिया जाएगा।
    • केंद्र सरकार उस तरीके को निर्धारित कर सकती है जिसमें संरक्षण निधि को प्रशासित किया जाएगा।

पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986:

  • परिचय:
    • EPA, 1986 पर्यावरण सुरक्षा की दीर्घकालिक आवश्यकताओं के अध्ययन, योजना तथा कार्यान्वयन हेतु ढाँचा स्थापित करता है और पर्यावरण को खतरे में डालने वाली स्थितियों के लिये त्वरित और पर्याप्त प्रतिक्रिया की प्रणाली निर्धारित करता है।'
  • पृष्ठभूमि:
    • EPA का अधिनियमन जून, 1972 (स्टॉकहोम सम्मेलन) में स्टॉकहोम में आयोजित "मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन" को देश में प्रभावी बनाने हेतु किया गया। ज्ञातव्य है कि भारत ने मानव पर्यावरण में सुधार के लिये उचित कदम उठाने हेतु इस सम्मेलन में भाग लिया था।
    • अधिनियम स्टॉकहोम सम्मेलन में लिये गए निर्णयों को लागू करता है।
  • संवैधानिक प्रावधान:
    • EPA को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 253 के तहत अधिनियमित किया गया था, जो अंतर्राष्ट्रीय समझौतों को प्रभावी करने के लिये कानून बनाने का प्रावधान करता है।
    • संविधान का अनुच्छेद 48A निर्दिष्ट करता है कि राज्य पर्यावरण की रक्षा और सुधार करने तथा देश के वनों एवं वन्यजीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगा।
    • अनुच्छेद 51A में प्रावधान है कि प्रत्येक नागरिक पर्यावरण की रक्षा करेगा।
  • केंद्र सरकार की शक्तियांँ:
    • EPA केंद्र सरकार को अपने सभी रूपों में पर्यावरण प्रदूषण को रोकने और देश के विभिन्न हिस्सों के लिये विशिष्ट पर्यावरणीय समस्याओं से निपटने हेतु अधिकृत अधिकारियों को अधिकार देता है।
    • EPA सरकार को निम्नलिखित अधिकार भी देता है:
      • पर्यावरण प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण और उपशमन के लिये एक राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम की योजना बनाना और उसे क्रियान्वित करना।
      • विभिन्न स्रोतों से पर्यावरण प्रदूषकों के उत्सर्जन या निर्वहन जैसे विभिन्न पहलुओं में पर्यावरण की गुणवत्ता के लिये मानक निर्धारित करना।
    • अधिनियम के अनुसार केंद्र सरकार को निम्नलिखित के मामले में निर्देश देने की शक्ति प्राप्त है:
      • किसी उद्योग के संचालन या प्रक्रिया को बंद करना, निषेध या विनियमन।
      • विद्युत या जल या किसी अन्य सेवा की आपूर्ति में ठहराव या विनियमन।

EPA के तहत अपराधों और दंड की वर्तमान स्थिति:

  • अधिनियम के किसी भी प्रावधान का गैर-अनुपालन या उल्लंघन एक अपराध माना जाता है।
  • अपराधों का संज्ञान:
    • कोई भी न्यायालय इस अधिनियम के तहत किसी भी अपराध का संज्ञान नहीं लेगा बशर्ते शिकायत निंमलिखित में से किसी के द्वारा न की गई हो:
      • केंद्र सरकार या उसकी ओर से कोई प्राधिकरण।
      • एक ऐसा व्यक्ति, जो केंद्र सरकार या उसके प्रतिनिधि प्राधिकरण को 60 दिनों का नोटिस सौंपने के पश्चात् न्यायालय के पास आया हो।
  • दंड:
    • EPA के मौजूदा प्रावधानों या इस अधिनियम के नियमों के किसी भी गैर-अनुपालन या उल्लंघन के मामले में उल्लंघनकर्त्ता को 5 वर्ष तक की कैद या 1,00,000 रुपए तक के ज़ुर्माने या दोनों से दंडित किया जा सकता है। .
      • इस तरह के उल्लंघन को जारी रखने के मामले में प्रतिदिन के लिये 5,000 रुपए तक का अतिरिक्त ज़ुर्माना लगाया जा सकता है, जिसके दौरान इस तरह का उल्लंघन जारी रहता है तो इस तरह के पहले उल्लंघन के लिये दोषी ठहराया जा सकता है।
      • यदि उल्लंघन दोष सिद्ध होने की तिथि के बाद एक वर्ष की अवधि के बाद भी जारी रहता है, तो अपराधी को कारावास कि सज़ा से दंडित किया जा सकता है, जिसे सात वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।

अधिनियम की कमियाँ:

  • अधिनियम का पूर्ण केंद्रीकरण:
    • अधिनियम का एक संभावित दोष इसका केंद्रीकरण हो सकता है।
      • जहाँ केंद्र को व्यापक शक्तियाँ प्रदान की जाती हैं वहीँ राज्य सरकारों के पास कोई शक्ति नहीं होती है। ऐसे में केंद्र सरकार इसकी मनमानी एवं दुरुपयोग के लिये उत्तरदायी है।
  • कोई सार्वजनिक भागीदारी नहीं:
    • अधिनियम में पर्यावरण संरक्षण के संबंध में सार्वजनिक भागीदारी के बारे में भी कोई बात नही कही गई है।
    • जबकि मनमानी को रोकने और पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिये नागरिकों को पर्यावरण संरक्षण में शामिल करने की आवश्यकता है।
  • सभी प्रदूषकों को शामिल न किया जाना:

पर्यावरण की रक्षा के लिये अन्य पहल:

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 भारत सरकार को सशक्त करता है कि

  1. वह पर्यावरणीय संरक्षण की प्रक्रिया में लोक सहभागिता की आवश्यकता का और इसे हासिल करने की प्रक्रिया और रीति का विवरण दे।
  2. वह विभिन्न स्रोतों से पर्यावरणीय प्रदूषकों के उत्सर्जन या विसर्जन के मानक निर्धारित करे।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1और न ही 2

उत्तर: (b)

  • पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) अधिसूचना, 2006 पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत जारी की गई थी।
    • पर्यावरणीय प्रभाव आकलन भारत की पर्यावरणीय निर्णय लेने की प्रक्रिया का एक महत्त्वपूर्ण घटक है, जिसमें प्रस्तावित परियोजनाओं के संभावित प्रभावों का विस्तृत अध्ययन किया जाता है।
    • EIA के सबसे महत्त्वपूर्ण निर्धारकों में से एक किसी भी विकासात्मक परियोजना पर सार्वजनिक सुनवाई और सार्वजनिक भागीदारी की प्रक्रिया है।
    • हालाँकि पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम (EPA), 1986 में कहीं भी पर्यावरण संरक्षण के लिये सार्वजनिक भागीदारी का उल्लेख नहीं है। यह पर्यावरण की रक्षा के लिये केवल सरकारी अधिकारियों और प्रदूषकों से संबंधित है।
    • अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • EPA 1986 केंद्र सरकार को सभी रूपों में पर्यावरण प्रदूषण को रोकने और देश के विभिन्न हिस्सों में विशिष्ट पर्यावरणीय समस्याओं से निपटने के लिये प्राधिकरण स्थापित करने हेतु अधिकृत करता है।
    • EPA, 1986 की धारा 3, केंद्र सरकार को ऐसे स्रोतों से पर्यावरण प्रदूषकों के उत्सर्जन या निर्वहन के संबंध मे मानकों को निर्धारित करने का अधिकार देती है।
    • अत: कथन 2 सही है।
  • अतः विकल्प (b) सही उत्तर है।

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय इतिहास

अल्लूरी सीताराम राजू

प्रिलिम्स के लिये:

आधुनिक इतिहास, महात्मा गांधी, असहयोग आंदोलन।

मेन्स के लिये:

अल्लूरी सीताराम राजू और स्वतंत्रता आंदोलन में उनका योगदान।

चर्चा में क्यों?

प्रधानमंत्री ने 4 जुलाई, 2022 को अल्लूरी सीतारमण राजू की 125वीं जयंती के उपलक्ष्य में आंध्र प्रदेश में उनकी एक कांस्य प्रतिमा का अनावरण किया।

  • आज़ादी का अमृत महोत्सव के हिस्से के रूप में सरकार स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान को उचित मान्यता देने और देश भर के लोगों को उनके बारे में जागरूक करने के लिये प्रतिबद्ध है।

Alluri-Sitarama-Raju

अल्लूरी सीताराम राजू :

  • परिचय:
    • वह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल एक भारतीय क्रांतिकारी थे।
    • उनका जन्म वर्तमान आंध्र प्रदेश में वर्ष 1897 (कुछ स्रोतों में वर्ष 1898) में हुआ था।
    • वह 18 वर्ष की आयु में एक संन्यासी बन गए और उन्होंने अपनी तपस्या, ज्योतिष तथा चिकित्सा के ज्ञान एवं जंगली जानवरों को वश में करने की अपनी क्षमता के कारण पहाड़ी व आदिवासी लोगों के बीच एक रहस्यमय आभा प्राप्त की।
  • स्वतंत्रता आंदोलन:
    • बहुत कम उम्र में राजू ने गंजम, विशाखापत्तनम और गोदावरी में पहाड़ी लोगों के असंतोष को अंग्रेज़ो के खिलाफ अत्यधिक प्रभावी गुरिल्ला प्रतिरोध में बदल दिया।
      • गुरिल्ला युद्ध अनियमित युद्ध का एक रूप है जिसमें लड़ाकों के छोटे समूह एक बड़ी और कम-गतिशील पारंपरिक सेना से लड़ने के लिये घात, तोड़फोड़, छापे, छोटे युद्ध, हिट-एंड-रन रणनीति एवं गतिशीलता सहित सैन्य रणनीति शामिल है।
    • औपनिवेशिक शासन ने आदिवासियों की पारंपरिक पोडु (स्थानांतरित) खेती को खतरे में डाल दिया, क्योंकि सरकार ने वन भूमि को सुरक्षित करने की मांग की थी।
    • वर्तमान आंध्र प्रदेश में जन्मे सीताराम राजू वर्ष 1882 के मद्रास वन अधिनियम के खिलाफ ब्रिटिश विरोधी गतिविधियों में शामिल हो गए। इस अधिनियम ने आदिवासियों (आदिवासी समुदायों) के उनके वन आवासों में मुक्त आवाजाही तथा उनके पारंपरिक रूप पोडु (स्थानांतरित खेती झूम कृषि) को प्रतिबंधित कर दिया।
    • अंग्रेज़ो के प्रति बढ़ते असंतोष ने 1922 के रम्पा विद्रोह/मन्यम विद्रोह को जन्म दिया, जिसमें अल्लूरी सीताराम राजू ने एक नेतृत्वकर्त्ता के रूप में प्रमुख भूमिका निभाई।
      • रम्पा विद्रोह महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के साथ हुआ। उन्होंने लोगों को खादी पहनने और शराब छोड़ने के लिये सहमत किया।
      • लेकिन साथ ही उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि भारत केवल बल के प्रयोग से ही आज़ाद हो सकता है अहिंसा से नहीं।
    • स्थानीय ग्रामीणों द्वारा उनके वीरतापूर्ण कारनामों के लिये उन्हें "मन्यम वीरुडु" (जंगल का नायक) उपनाम दिया गया था।
    • वर्ष 1924 में अल्लूरी सीताराम राजू को पुलिस हिरासत में ले लिया गया, एक पेड़ से बांँध कर सार्वजनिक रूप से गोली मार दी गई तथा सशस्त्र विद्रोह को प्रभावी ढंग से समाप्त कर दिया।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

डिजिटल इंडिया सप्ताह 2022

प्रिलिम्स के लिये:

डिजिटल इंडिया भाषिनी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस।

मेन्स के लिये:

भारत का डिजिटल इंडिया विज़न, प्रौद्योगिकी मिशन, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डिजिटल गवर्नमेंट।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री ने डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के तहत डिजिटल इंडिया सप्ताह 2022 का उद्घाटन किया, जिसका उद्देश्य व्यापार करने में सुगमता को बढ़ावा देना और जीवन को आसान बनाना है।

  • विषय: 'नव भारत प्रौद्योगिकी प्रेरणा '
    • देश को डिजिटल रूप से सशक्त समाज और ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था में बदलना।
  • कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री ने प्रौद्योगिकी तक पहुँच बढ़ाने, जीवन को आसान बनाने के लिये सेवा वितरण को सुव्यवस्थित करने और स्टार्टअप को बढ़ावा देने के उद्देश्य से कई डिजिटल पहलों की शुरुआत की।

डिजिटल पहल:

  • डिजिटल इंडिया भाषिनी:
  • डिजिटल इंडिया जेनेसिस (GENESIS):
    • डिजिटल इंडिया जेनेसिस '(जेन-नेक्स्ट सपोर्ट फॉर इनोवेटिव स्टार्टअप्स) भारत के टियर- II और टियर- III शहरों में सफल स्टार्टअप की खोज, समर्थन, विकास और सफल बनाने हेतु एक राष्ट्रीय गहन-तकनीकी स्टार्टअप मंच है।
  • माय स्कीम :
    • यह सरकारी योजनाओं तक पहुँच की सुविधा प्रदान करने वाला एक सर्च और डिस्कवरी मंच है।
    • इसका उद्देश्य वन-स्टॉप सर्च और डिस्कवरी पोर्टल को प्रस्तुत करना है, जहाँ उपयोगकर्त्ता उन योजनाओं को खोज सकते हैं जिनके लिये वे पात्र हैं।
  • मेरी पहचान:
    • यह एक नागरिक लॉगिन के लिये राष्ट्रीय एकल साइन ऑन (NSSO) है।
    • यह एक प्रयोक्ता प्रमाणीकरण सेवा है जिसमें क्रेडेंशियल्स का एक एकल समुच्चय एकाधिक ऑनलाइन अनुप्रयोगों या सेवाओं तक पहुंँच प्रदान करता है।
  • चिप्स स्टार्टअप (C2S) कार्यक्रम:
    • C2S कार्यक्रम का उद्देश्य बैचलर, परास्नातक और अनुसंधान स्तरों पर सेमीकंडक्टर चिप्स के डिजाइन के क्षेत्र में विशेष जनशक्ति को प्रशिक्षित करना है तथा देश में अर्द्धचालक डिज़ाइन में शामिल स्टार्टअप के विकास के लिये उत्प्रेरक के रूप में कार्य करना है।
    • यह संगठनात्मक स्तर पर सलाह देने की पेशकश करता है और संस्थानों को डिज़ाइन के लिये अत्याधुनिक सुविधाएँ उपलब्ध कराता है।
  • इंडिया स्टैक ग्लोबल:
    • यह आधार, यूपीआई (यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस), डिजिलॉकर, काउइन वैक्सीनेशन प्लेटफॉर्म, गवर्नमेंट ई मार्केटप्लेस, दीक्षा प्लेटफॉर्म और आयुष्मान भारत डिजिटल हेल्थ मिशन जैसी इंडिया स्टैक के तहत कार्यान्वित प्रमुख परियोजनाओं का वैश्विक भंडार है।
    • यह भारत को जनसंख्या स्तर पर डिजिटल परिवर्तन परियोजनाओं के निर्माण के नेता के रूप में स्थापित करने में मदद करेगा।

डिजिटल इंडिया कार्यक्रम:

  • परिचय:
    • इसे वर्ष 2015 में लॉन्च किया गया था।
    • इस कार्यक्रम को भारतनेट, मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया और स्टैंडअप इंडिया, औद्योगिक गलियारों आदि जैसी कई महत्त्वपूर्ण सरकारी योजनाओं के लिये सक्षम किया गया है।
  • विज़न क्षेत्र:
    • प्रत्येक नागरिक हेतु डिजिटल बुनियादी ढाँचा।
    • मांग आधारित शासन और सेवाएँ।
    • नागरिकों का डिजिटल सशक्तीकरण।
  • उद्देश्य:
    • भारत के ज्ञान को भविष्य के लिये तैयार करना।
    • परिवर्तनकारी होने के लिये IT (भारतीय प्रतिभा) + आईटी (सूचना प्रौद्योगिकी) = आईटी (इंडिया टुमॉरो) को महसूस करना है।
    • परिवर्तन को सक्षम करने के लिये प्रौद्योगिकी को केंद्रीय बनाना।
      • कई विभागों को कवर करने वाला एक अम्ब्रेला कार्यक्रम-

Nine-Pillars

डिजिटल इंडिया कार्यक्रम की उपलब्धियांँ :

  • वर्ष 2014 से 23 लाख करोड़ रुपए से अधिक प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण या DBT के माध्यम से लाभार्थियों को हस्तांतरित किये गए हैं।
    • आधार, UPI, कोविन और डिजिलॉकर जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म सेवाओं ने "ईज़ज़ ऑफ लिविंग" में योगदान दिया है क्योंकि इससे नागरिकों को बिना सरकारी कार्यालयों या बिचौलियों के पास गए ऑनलाइन सेवाएँ मिलती हैं।
  • डिजिटल इंडिया ने सरकार को नागरिकों के दरवाज़ेज़े और फोन (Doorsteps and Phones) तक पहुँचा दिया है। 1.25 लाख से अधिक कॉमन सर्विस सेंटर (CSC) और ग्रामीण स्टोर अब ई-कॉमर्स को ग्रामीण भारत में ले जा रहे हैं।
    • इसी प्रकार ग्रामीण संपत्तियों के लिये संपत्ति के दस्तावेज़ज़ प्रौद्योगिकी के उपयोग से उपलब्ध कराए जा रहे हैं।
  • वन नेशन वन राशन कार्ड (ONORC) की मदद से 80 करोड़ से अधिक देशवासियों हेतु मुफ्त राशन सुनिश्चित किया गया।
  • Co-Win प्लेटफॉर्म के माध्यम से भारत ने विश्व का सबसे बड़ा और सबसे कुशल कोविड टीकाकरण एवं कोविड राहत कार्यक्रम चलाया है।

आगे की राह

  • भारत की डिजिटल क्रांति भारत और उसकी अर्थव्यवस्था के लिये एक आदर्श बदलाव का कारण बनेगी। सार्वजनिक और निजी भागीदारी, अनुकूल सरकारी नीतियों, नवोन्मेषी सुधारों, जनसांख्यिकीय लाभ, बढ़ती आय व भारत की स्टार्टअप संस्कृति के उदय की मदद से भारत सबसे तेज़ी से बढ़ती डिजिटल अर्थव्यवस्था बन सकता है।
  • डिजिटल क्रांति ने बदलते समय के प्रति पहले ही भारतीय अर्थव्यवस्था को लचीला बनने में मदद की है। भविष्य में भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था से भारत को 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता मिलने की उम्मीद है।

स्रोत: पी.आई.बी.


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