भारत में मैंग्रोव
प्रिलिम्स के लिये:मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय दिवस, संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन, भारतीय राज्य वन रिपोर्ट 2021, सुंदरबन, रॉयल बंगाल टाइगर, इरावदी डॉल्फिन, मिष्टी (मैंग्रोव इनिशिएटिव फॉर शोरलाइन हैबिटेट्स एंड टैंगेबल इनकम्स), सतत् झींगा पालन हेतु समुदाय-आधारित पहल (SAIME) मेन्स के लिये:मैंग्रोव का महत्त्व, भारत में मैंग्रोव से संबंधित चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय दिवस ( International Day for the Conservation of the Mangrove Ecosystem) पर पश्चिम बंगाल, जो भारत के लगभग 40% मैंग्रोव वनों का आवास है, ने मैंग्रोव प्रबंधन प्रयासों को सुव्यवस्थित करने के लिये एक समर्पित 'मैंग्रोव सेल (Mangrove Cell)' स्थापित करने की योजना का अनावरण किया।
मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय दिवस:
- मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय दिवस प्रत्येक वर्ष 26 जुलाई को मनाया जाता है तथा इसका उद्देश्य "एक अद्वितीय, विशेष और कमज़ोर पारिस्थितिकी तंत्र" के रूप में मैंग्रोव पारिस्थितिकी प्रणालियों के महत्त्व के बारे में जागरूकता बढ़ाना तथा उनके स्थायी प्रबंधन, संरक्षण और उपयोग के लिये समाधान को बढ़ावा देना है।
- इस अंतर्राष्ट्रीय दिवस को वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (UN Educational, Scientific and Cultural Organization- UNESCO) के सामान्य सम्मेलन द्वारा अपनाया गया था।
भारत में मैंग्रोव की स्थिति:
- परिचय:
- मैंग्रोव उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाने वाला एक अद्वितीय तटीय पारिस्थितिकी तंत्र है। ये नमक-सहिष्णु वृक्षों तथा झाड़ियों के घने वन हैं जो अंतर्ज्वारीय क्षेत्रों- जहाँ भूमि और समुद्र मिलते हैं, में विकसित होते हैं।
- इन पारिस्थितिक तंत्रों की विशेषता खारे पानी, ज्वारीय विविधताओं और कीचड़युक्त, ऑक्सीजन-रहित मृदा जैसी कठोर परिस्थितियों का सामना करने की क्षमता है।
- विशेषताएँ:
- मैंग्रोव प्रजनन के जरायुजता मोड (Viviparity Mode) को प्रदर्शित करते हैं, जहाँ बीज ज़मीन पर गिरने से पहले पेड़ के भीतर अंकुरित होते हैं।
- खारे पानी में अंकुरण की चुनौती को दूर करने के लिये जरायुजता (Viviparity) एक अनुकूली तंत्र है।
- कुछ मैंग्रोव प्रजातियाँ अपनी पत्तियों के माध्यम से अतिरिक्त नमक का स्राव करती हैं, जबकि अन्य अपनी जड़ों में नमक के अवशोषण को अवरुद्ध करती हैं।
- मैंग्रोव पादपों में स्तंभ मूल (Prop Roots) और श्वसन मूल (Pneumatophores) जैसी विशेष जड़ें होती हैं, जो जल प्रवाह को बाधित करने में सहायता करती हैं तथा चुनौतीपूर्ण ज्वारीय वातावरण में सहायता प्रदान करती हैं।
- मैंग्रोव प्रजनन के जरायुजता मोड (Viviparity Mode) को प्रदर्शित करते हैं, जहाँ बीज ज़मीन पर गिरने से पहले पेड़ के भीतर अंकुरित होते हैं।
- भारत में मैंग्रोव आवरण:
- भारत वन स्थिति रिपोर्ट (Indian State Forest Report), 2021 के अनुसार, भारत में मैंग्रोव आवरण 4992 वर्ग किमी. है जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 0.15% है।
- पश्चिम बंगाल में सुंदरवन विश्व का सबसे बड़ा मैंग्रोव वन क्षेत्र है। इसे यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
- सुंदरबन, अंडमान, गुजरात के कच्छ और जामनगर क्षेत्रों में भी पर्याप्त मैंग्रोव आवरण क्षेत्र है।
- महत्त्व:
- जैव विविधता संरक्षण: मैंग्रोव विभिन्न प्रकार के पादपों एवं जीवों की प्रजातियों को आवास प्रदान करते हैं, जो विभिन्न सागरीय और स्थलीय जीवों के प्रजनन, संवर्द्धन एवं चरागाह के रूप में कार्य करते हैं।
- उदाहरण के लिये सुंदरबन में रॉयल बंगाल टाइगर, इरावदी डॉल्फिन, रीसस मकाक, तेंदुआ, छोटे भारतीय कस्तूरी बिलाव निवास करते हैं।
- तटीय संरक्षण: मैंग्रोव तटीय अपरदन, तूफान और सुनामी के प्रति प्राकृतिक बफर के रूप में कार्य करते हैं।
- उनकी सघन जड़ों और स्तंभ मूलों (prop root) का उलझा हुआ जाल तटीय अपरदन को रोकता है तथा लहरों एवं धाराओं के प्रभाव को कम करता है।
- तूफान एवं चक्रवात के दौरान मैंग्रोव उनकी ऊर्जा को अवशोषित और नष्ट कर सकते हैं, जिससे अंतर्देशीय क्षेत्रों तथा मानवीय बस्तियों को विनाशकारी क्षति से बचाया जा सकता है।
- कार्बन पृथक्करण: मैंग्रोव अत्यधिक कुशल कार्बन सिंक होते हैं, जो वायुमंडल से वृहद् मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड को अलग करते हैं और इसे अपने बायोमास एवं अवसाद के रूप में संग्रहीत करते हैं।
- मत्स्य पालन एवं आजीविका: मैंग्रोव मत्स्य और घोंघा के लिये संवर्द्धित क्षेत्र प्रदान करके मत्स्य उत्पादकता को बढ़ाने के साथ ही आजीविका तथा स्थानीय खाद्य सुरक्षा में योगदान कर मत्स्य पालन का समर्थन करते हैं।
- जल की गुणवत्ता में सुधार: मैंग्रोव प्राकृतिक फिल्टर (निस्यंदन) के रूप में कार्य करते हैं, जो तटवर्ती जल को खुले समुद्र में पहुँचने से पूर्व उसको प्रदूषित होने से रोकते हैं और उसके पोषक तत्त्वों को भी बचाते हैं।
- जल को शुद्ध करने में पोषक तत्त्वों की भूमिका समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के स्वास्थ्य को बनाए रखने और कमज़ोर तटों के पारिस्थितिक तंत्र के संतुलन को बनाए रखने में सहायता करती है।
- पर्यटन और मनोरंजन: मैंग्रोव पर्यावरण-पर्यटन, बर्डवॉचिंग (पक्षी अवलोकन), कयाकिंग और प्रकृति-आधारित गतिविधियों जैसे मनोरंजक अवसर प्रदान करते हैं, जो स्थानीय समुदायों के लिये स्थायी आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकते हैं।
- जैव विविधता संरक्षण: मैंग्रोव विभिन्न प्रकार के पादपों एवं जीवों की प्रजातियों को आवास प्रदान करते हैं, जो विभिन्न सागरीय और स्थलीय जीवों के प्रजनन, संवर्द्धन एवं चरागाह के रूप में कार्य करते हैं।
- चुनौतियाँ:
- पर्यावास का विनाश और विखंडन: कृषि, शहरीकरण, जलीय कृषि और बुनियादी ढाँचे के विकास सहित विभिन्न उद्देश्यों के लिये मैंग्रोव वनों का सफाया किया जाना।
- इस तरह की गतिविधियों से मैंग्रोव आवासों का विखंडन और क्षय होता है, जिससे उनके पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता में बाधा उत्पन्न होती है।
- मैंग्रोव को झींगा फार्मों (Shrimp Farms) और अन्य व्यावसायिक उपयोगों में परिवर्तित करना भी चिंता का विषय है।
- जलवायु परिवर्तन और समुद्र स्तर में वृद्धि: जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र का बढ़ता स्तर मैंग्रोव के लिये एक गंभीर खतरा है।
- जलवायु परिवर्तन से चक्रवात और तूफान जैसी चरम मौसमी घटनाएँ भी सामने आती हैं, जो मैंग्रोव वनों को गंभीर नुकसान पहुँचा सकती हैं।
- प्रदूषण और संदूषण: कृषि अपवाह, औद्योगिक निर्वहन एवं अनुचित अपशिष्ट निपटान से होने वाला प्रदूषण मैंग्रोव आवासों को दूषित करता है।
- भारी धातुएँ, प्लास्टिक और अन्य प्रदूषक इन पारिस्थितिक तंत्रों की वनस्पतियों और जीवों पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।
- एकीकृत प्रबंधन का अभाव: अक्सर मैंग्रोव को प्रवाल भित्तियों और सीग्रास बेड (Seagrass Bed) जैसे आसन्न पारिस्थितिक तंत्रों के साथ उनके अंतर्संबंध पर विचार किये बिना पृथक रूप से प्रबंधित किया जाता है।
- एकीकृत प्रबंधन दृष्टिकोण जिसके तहत व्यापक तटीय पारिस्थितिकी तंत्र पर विचार किया जा सकता है, इसके प्रभावी संरक्षण के लिये आवश्यक है।
- पर्यावास का विनाश और विखंडन: कृषि, शहरीकरण, जलीय कृषि और बुनियादी ढाँचे के विकास सहित विभिन्न उद्देश्यों के लिये मैंग्रोव वनों का सफाया किया जाना।
- मैंग्रोव संरक्षण से संबंधित सरकारी पहल:
आगे की राह
- ड्रोन निगरानी और AI: मैंग्रोव स्वास्थ्य की निगरानी करने और अतिक्रमण या अवैध कटाई जैसी गतिविधियों का पता लगाने के लिये उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाले कैमरों और AI एल्गोरिदम से लैस ड्रोन तकनीक का उपयोग करना।
- यह दृष्टिकोण विशाल क्षेत्रों में कुशल और समय पर निगरानी करने में मदद कर सकता है।
- मैंग्रोव एडॉप्शन प्रोग्राम: एक सार्वजनिक-संचालित पहल शुरू करना जहाँ व्यक्ति, कॉर्पोरेट और संस्थान मैंग्रोव क्षेत्र के एक हिस्से को "एडॉप्ट" कर सकें।
- प्रतिभागी एडॉप्ट किये गए क्षेत्र के रखरखाव, सुरक्षा और बहाली, स्वामित्व एवं सामूहिक ज़िम्मेदारी की भावना को बढ़ावा देने के लिये उत्तरदायी होंगे।
- मैंग्रोव अनुसंधान एवं विकास: मैंग्रोव के संबंध में नवीन अनुप्रयोगों के लिये अनुसंधान में निवेश करना, जैसे- प्रदूषित पानी को साफ करने के लिये फाइटोरेमेडिएशन या मैंग्रोव पौधों के अर्क से नई दवाएँ विकसित करना।
- इससे सतत् विकास के लिये मैंग्रोव के अद्वितीय गुणों का लाभ उठाने के नए तरीके सामने आ सकते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत के निम्नलिखित क्षेत्रों में से किस एक में मैंग्रोव वन, सदापर्णी वन और पर्णपाती वनों का संयोजन है? (2015) (a) उत्तर तटीय आंध्र प्रदेश उत्तर: (d) मेन्सप्रश्न. मैंग्रोवों के रिक्तीकरण के कारणों पर चर्चा कीजिये और तटीय पारिस्थितिकी का अनुरक्षण करने में इनके महत्त्व को स्पष्ट कीजिये। (2019) |
स्रोत: द हिंदू
भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण निरसन विनियम, 2023
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण, OTT संचार सेवा, डायल-अप और लीज्ड लाइन इंटरनेट अभिगम। मेन्स के लिये:भारत में दूरसंचार क्षेत्र में विकास, भारत में दूरसंचार क्षेत्र से संबंधित मुद्दे। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) ने भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण निरसन विनियम, 2023 जारी करके नियामक परिदृश्य को आधुनिक बनाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाया है।
डायल-अप और लीज्ड लाइन इंटरनेट अभिगम:
- डायल-अप इंटरनेट अभिगम, इंटरनेट अभिगम (Internet Access) का एक रूप है जो एक टेलीफोन लाइन के माध्यम से ISP से कनेक्शन स्थापित करने के लिये पब्लिक स्विच्ड टेलीफोन नेटवर्क (Public Switched Telephone Network- PSTN) का उपयोग करता है।
- यह इंटरनेट तक पहुँच का सबसे कम खर्चीला किन्तु सबसे धीमा माध्यम है।
- लीज्ड लाइन इंटरनेट अभिगम एक समर्पित पॉइंट-टू-पॉइंट डेटा सर्किट (Point-to-Point Data Circuit ) है जो गारंटीकृत बैंडविड्थ (Guaranteed Bandwidth) और सममित अपलोड और डाउनलोड गति प्रदान करता है।
- इनका उपयोग आमतौर पर उन व्यवसायों या संगठनों द्वारा किया जाता है जिन्हें अपने संचालन के लिये उच्च-प्रदर्शन तथा विश्वसनीय इंटरनेट कनेक्टिविटी की आवश्यकता होती है।
डायल अप और लीज्ड लाइन इंटरनेट अभिगम का विनियमन:
- डायल-अप और लीज्ड लाइन इंटरनेट अभिगम सेवा की गुणवत्ता पर विनियमन 2001, शुरुआत में भारत में बेसिक सर्विस ऑपरेटर्स (Basic Service Operators) और इंटरनेट सेवा प्रदाताओं (Internet Service Provider- ISP) द्वारा प्रदान की जाने वाली इंटरनेट सेवाओं की गुणवत्ता को नियंत्रित करने के लिये पेश किया गया था।
- यह विनियमन BSNL, MTNL और VSNL जैसे मौजूदा ऑपरेटरों सहित सभी प्रदाताओं पर लागू होता है।
- जब नियम लागू किये गए थे तो डायल-अप सेवाएँ कम गति वाले इंटरनेट तक पहुँच का प्रमुख साधन थीं। हालाँकि समय के साथ, दूरसंचार नेटवर्क में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं।
- FTTH, LTE और 5G सहित विभिन्न प्रौद्योगिकियों के उद्भव ने उपभोक्ताओं के लिये हाई-स्पीड ब्रॉडबैंड सेवाओं को व्यापक रूप से उपलब्ध कराया है।
- इसके अतिरिक्त लीज्ड लाइन पहुँच सेवाएँ मुख्य रूप से इंटरनेट गेटवे सेवा प्रदाताओं (IGSP) द्वारा उद्यमों को प्रदान की जाती हैं। ये सेवाएँ, सेवा स्तरीय समझौता (SLA) द्वारा अधिकृत होती हैं।
- SLA के अंतर्गत सेवा गुणवत्ता संबंधित चिंताओं को सुरक्षित रखने के पर्याप्त प्रावधान हैं, जो वर्ष 2001 के विनियमन को वर्तमान संदर्भ में कम प्रासंगिक बनाते हैं।
- भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण निरसन विनियमन, 2023 से इस नियामक बोझ को हटाने से सेवा प्रदाता अत्याधुनिक सेवाएँ प्रदान करने और ग्राहक अनुभवों को बेहतर बनाने पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।
- इसके अतिरिक्त दूरसंचार क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा और नवाचार में वृद्धि हो सकती है, जिससे सेवा गुणवत्ता में वृद्धि, अधिक कवरेज़ और संभावित लागत दक्षता में वृद्धि होगी।
वर्तमान में दूरसंचार क्षेत्र से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ:
- वित्तीय तनाव: भारतीय दूरसंचार क्षेत्र तीव्र प्रतिस्पर्द्धा, न्यूनतम टैरिफ और उच्च ऋण बोझ से जूझ रहा है।
- कई दूरसंचार कंपनियाँ वित्तीय चुनौतियों का सामना कर रही हैं, जबकि कुछ तो दिवालिया हो गई हैं या निरंतरता बनाए रखने के लिये अन्य कंपनियों के साथ विलय हो गई हैं।
- ग्रामीण-शहरी असमानता: भारत में यद्यपि पर्याप्त टेली-घनत्व प्राप्त कर लिया गया है, लेकिन देश के शहरी (55.42%) और ग्रामीण (44.58%) क्षेत्रों के बीच दूरसंचार ग्राहकों की हिस्सेदारी में उल्लेखनीय विसंगति मौजूद है।
- इसके अतिरिक्त, देश में फिक्स्ड ब्रॉडबैंड की पहुँच विश्व में सबसे कम है (केवल 1.69 प्रति 100 निवासियों पर)।
- ओवर-द-टॉप प्लेटफॉर्म (OTT) के साथ समस्या: व्हाट्सएप और टेलीग्राम जैसे OTT प्लेटफॉर्म्स वॉयस कॉल और SMS जैसी सेवाएँ प्रदान करने के लिये AIRTEL और JIO जैसे दूरसंचार सेवा प्रदाताओं की नेटवर्क अवसंरचना का उपयोग करते हैं।
- दूरसंचार सेवा प्रदाताओं (TSP) का आरोप है कि इन सुविधाओं के परिणामस्वरूप उनके लिये दोहरे नुकसान की स्थिति बनती है क्योंकि इससे उनके राजस्व के स्रोतों (वॉयस कॉल व SMS) में कटौती होती है।
- ई-कचरे का कुप्रबंधन: दूरसंचार उद्योग पर्यावरण को कई तरह से प्रभावित करता है, जिसमें ई-कचरा (e-waste) उत्पन्न करना प्रमुख है। भारत में अनौपचारिक कचरा बीनने वालों द्वारा 95% से अधिक ई-कचरे का अवैध रूप से पुनर्चक्रण किया जाता है।
आगे की राह:
- AI-सक्षम नेटवर्क प्रबंधन: सरकार को AI-संचालित नेटवर्क प्रबंधन सिस्टम लागू करना आवश्यक है जो नेटवर्क प्रदर्शन को अनुकूलित कर सकता है, रखरखाव की जरूरतों का अनुमान लगा सकता है और उपयोगकर्त्ताओं के लिये निर्बाध कनेक्टिविटी सुनिश्चित कर सकता है।
- टेलीकॉम इन्फ्रास्ट्रक्चर ऑन व्हील्स: विश्वसनीय कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिये मोबाइल टेलीकॉम इंफ्रास्ट्रक्चर इकाइयाँ बनाई जाएं, जिन्हें निर्माण स्थलों, त्योहारों या आपदा क्षेत्रों जैसे अस्थायी या कम सेवा वाले स्थानों पर तैनात किया जा सके।
- सुव्यवस्थित नियामक प्रक्रियाएँ: दूरसंचार बुनियादी ढाँचे की तैनाती के लिये विनियामक अनुमोदन को सरल और तेज़ करना, नौकरशाही बाधाओं को कम करना और तेज़ी से नेटवर्क विस्तार को बढ़ावा देना।
- साथ ही OTT संचार सेवाओं को विनियमन के दायरे में लाना समय की मांग है।
भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण
- परिचय:
- भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (Telecom Regulatory Authority of India- TRAI) की स्थापना 20 फरवरी, 1997 को भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण अधिनियम, 1997 द्वारा की गई थी।
- TRAI की संरचना:
- TRAI में एक अध्यक्ष, दो पूर्णकालिक सदस्य और दो अंशकालिक सदस्य होते हैं, जिनकी नियुक्ति भारत सरकार द्वारा की जाती है।
- TRAI के कार्य:
- दूरसंचार सेवाओं को विनियमित करना, जिसमें दूरसंचार सेवाओं के लिए टैरिफ का निर्धारण/संशोधन शामिल है, जो पहले केंद्र सरकार में निहित थे।
- सेवा की गुणवत्ता और टैरिफ में पारदर्शिता सुनिश्चित करना।
- नीतिगत मामलों और लाइसेंसिंग मुद्दों पर सरकार को सलाह देना
- TRAI की सिफारिशें केंद्र सरकार के लिये बाध्यकारी नहीं हैं।
- अपीलीय प्राधिकरण:
- TRAI अधिनियम को 24 जनवरी 2000 में संशोधित किया गया, जिसने TRAI के न्यायिक और विवादपूर्ण कार्यों को संभालने के लिये एक दूरसंचार विवाद निपटान एवं अपीलीय न्यायाधिकरण (TDSAT) की स्थापना की।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा/से भारत सरकार के ‘डिजिटल इंडिया’ योजना का/के उद्देश्य है/हैं? (2018)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) |
स्रोत: पी.आई.बी
अंतरिक्ष मलबा
प्रिलिम्स के लिये:अंतरिक्ष मलबा, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, चीन का लॉन्ग मार्च 5बी रॉकेट, केसलर सिंड्रोम, प्रोजेक्ट नेत्र, अंतर-एजेंसी अंतरिक्ष मलबा समन्वय समिति मेन्स के लिये:अंतरिक्ष मलबे के प्रबंधन में आने वाली चुनौतियाँ और आगे की राह |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के तट पर इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) के रॉकेट का मलबा मिला है।
- नवंबर 2022 में चीन के लॉन्ग मार्च 5B रॉकेट का बड़ा भाग अनियंत्रित होकर दक्षिण-मध्य प्रशांत महासागर में गिर गया। इस रॉकेट को तियांगोंग अंतरिक्ष स्टेशन के तीसरे और अंतिम मॉड्यूल (मापांक) में प्रयोग किया गया था।
- मई 2021 में 25 टन के चीनी रॉकेट का एक बड़ा भाग हिंद महासागर में मिला था।
अंतरिक्ष मलबा:
- परिचय:
- अंतरिक्ष मलबा पृथ्वी की कक्षा में उन मानव निर्मित वस्तुओं को संदर्भित करता है जो अब किसी उपयोगी उद्देश्य की पूर्ति नहीं करती हैं।
- अंतरिक्ष मलबे में प्रयोग किये गए रॉकेट, निष्क्रिय उपग्रह, अंतरिक्ष निकायों के टुकड़े और एंटी-सैटेलाइट सिस्टम (ASAT) से उत्पन्न मलबा शामिल होता है।
- अंतरिक्ष मलबे से खतरा:
- समुद्री जीवन को ख़तरा:
- इसके महासागरों में गिरने की संभावनाएं अधिक हैं क्योंकि पृथ्वी की सतह का 70% भाग महासागरों से घिरा हुआ है, बड़ी वस्तुएँ (मलबा) समुद्री जीवन के लिये खतरा और प्रदूषण का स्रोत बन सकती हैं।
- संचालित उपग्रहों के लिये खतरा:
- तैरता हुआ अंतरिक्ष मलबा परिचालन उपग्रहों हेतु संभावित खतरा है क्योंकि इन मलबों से टकराने से उपग्रह नष्ट हो सकते हैं।
- केसलर सिंड्रोम अंतरिक्ष में वस्तुओं और मलबे की अत्यधिक मात्रा को संदर्भित करता है।
- तैरता हुआ अंतरिक्ष मलबा परिचालन उपग्रहों हेतु संभावित खतरा है क्योंकि इन मलबों से टकराने से उपग्रह नष्ट हो सकते हैं।
- कक्षीय स्लॉट की कमी:
- विशिष्ट कक्षीय क्षेत्रों में अंतरिक्ष मलबे का संचय भविष्य के मिशनों हेतु वांछित कक्षीय स्लॉट की उपलब्धता को सीमित कर सकता है।
- अंतरिक्ष स्थिति के प्रति जागरूकता:
- अंतरिक्ष मलबे की बढ़ती मात्रा उपग्रह संचालकों एवं अंतरिक्ष एजेंसियों को अंतरिक्ष में वस्तुओं की कक्षाओं को सटीक रूप से ट्रैक करने तथा भविष्यवाणी करने हेतु अधिक चुनौतियाँ उत्पन्न करती है।
- समुद्री जीवन को ख़तरा:
अंतरिक्ष गतिविधियों से निपटने में चुनौतियाँ:
- विभिन्न देशों के द्वारा अधिक उपग्रह प्रक्षेपण:
- संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, भारत और जापान जैसे देश मानव मिशन, चंद्र अन्वेषण (Lunar Exploration) और संसाधन दोहन समेत कई अंतरिक्ष गतिविधियों में सक्रिय रूप से लगे हुए हैं।
- विगत दशक में उपग्रह प्रक्षेपण में तीव्रता से वृद्धि हुई है। जिसमें वर्ष 2013 में 210, वर्ष 2019 में 600, वर्ष 2020 में 1,200 और वर्ष 2022 में 2,470 उपग्रह प्रक्षेपित हुए हैं।
- अंतरिक्ष संसाधन अन्वेषण पर एक सहमत अंतर्राष्ट्रीय ढाँचे की कमी के कारण क्षुद्रग्रहों और ग्रहों पर पाए जाने वाले मूल्यवान धातुओं की खोज में अंतर्राष्ट्रीय स्पर्द्धा और रुचि में काफी वृद्धि हुई है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, भारत और जापान जैसे देश मानव मिशन, चंद्र अन्वेषण (Lunar Exploration) और संसाधन दोहन समेत कई अंतरिक्ष गतिविधियों में सक्रिय रूप से लगे हुए हैं।
- समन्वय एवं अंतरिक्ष यातायात प्रबंधन:
- अंतरिक्ष यातायात का वर्तमान समन्वय विभिन्न देशों और क्षेत्रीय संस्थाओं द्वारा अलग-अलग मानकों तथा प्रथाओं को अपनाने के कारण खंडित है।
- समन्वय की इस कमी से अंतरिक्ष में संभावित टकराव और दुर्घटनाएँ हो सकती हैं, जिससे परिचालन अंतरिक्ष यान के लिए जोखिम पैदा हो सकता है और अंतरिक्ष में मलबा बढ़ सकता है।
- तकनीकी चुनौतियाँ:
- अंतरिक्ष मिशनों को विकसित करने और तैनात करने के लिये अत्याधुनिक तकनीक की आवश्यकता होती है, जो महंगी हो सकती है और इसमें तकनीकी विफलताओं का खतरा हो सकता है। अंतरिक्ष एजेंसियों और निजी कंपनियों को अपने मिशन की सफलता सुनिश्चित करने हेतु इन चुनौतियों का समाधान करना होगा।
- भू-राजनैतिक तनाव:
- जैसे-जैसे देश अंतरिक्ष यात्राओं में हिस्सेदारी बढ़ा रहे हैं, बाहरी अंतरिक्ष में भू-राजनैतिक तनाव की संभावना बढ़ रही हैं।
- प्रतिस्पर्धात्मक हित और क्षेत्रीय दावे कूटनीतिक चुनौतियाँ पैदा कर सकते हैं और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में बाधा डाल सकते हैं।
अंतरिक्ष कचरे पर अंकुश लगाने से संबंधित पहल:
- भारत:
- वर्ष 2022 में ISRO ने टकराव के खतरों वाली वस्तुओं की लगातार निगरानी करने, अंतरिक्ष मलबे के विकास की संभावनाओं का आकलन करने और अंतरिक्ष कचरे से उत्पन्न जोखिम को कम करने के लिये सिस्टम फॉर सेफ एंड सस्टेनेबल ऑपरेशंस मैनेजमेंट (IS 4 OM) की स्थापना की।
- ISRO ने अन्य अंतरिक्ष वस्तुओं के साथ टकराव से बचने के लिये वर्ष 2022 में भारतीय परिचालन अंतरिक्ष संपत्तियों की सहायता से 21 टकराव परिहार अभ्यास भी किये।
- इसरो ने अंतरिक्ष कचरे के खतरे की निगरानी और उसे कम करने के लिये अंतरिक्ष कचरा अनुसंधान केंद्र (SDRC) भी स्थापित किया है।
- 'नेत्रा परियोजना' भारतीय उपग्रहों द्वारा कचरे और अन्य खतरों का पता लगाने के लिये अंतरिक्ष में स्थापित एक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली है।
- वैश्विक:
- अंतर-एजेंसी अंतरिक्ष मलबा समन्वय समिति (Inter-Agency Space Debris Coordination Committee- IADC) एक अंतर्राष्ट्रीय सरकारी मंच है जिसकी स्थापना वर्ष 1993 में की गई थी ताकि अंतरिक्ष मलबे के मुद्दे को प्रस्तुत करने के लिये अंतरिक्ष अन्वेषण करने वाले देशों के बीच प्रयासों को समन्वित किया जा सके।
- संयुक्त राष्ट्र ने अंतरिक्ष मलबे को कम करने के साथ ही बाह्य अंतरिक्ष गतिविधियों की दीर्घकालिक स्थिरता के लिये दिशा-निर्देश विकसित करने हेतु बाह्य अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग पर समिति (Committee on the Peaceful Uses of Outer Space- COPUOS) की स्थापना की है।
- यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (European Space Agency- ESA) ने स्वच्छ अंतरिक्ष पहल शुरू की है, जिसका उद्देश्य अंतरिक्ष मलबे की मात्रा को कम करना और स्थायी अंतरिक्ष गतिविधियों को बढ़ावा देना है।
अंतरिक्ष गतिविधियों से निपटान हेतु संयुक्त राष्ट्र की पाँच संधियाँ:
- बाह्य अंतरिक्ष संधि 1967:
- चंद्रमा और अन्य खगोलीय पिंडों सहित बाह्य अंतरिक्ष की खोज तथा उपयोग में राज्यों की गतिविधियों को नियंत्रित करने वाले सिद्धांतों पर संधि।
- बचाव समझौता (Rescue Agreement) 1968:
- अंतरिक्ष यात्रियों के बचाव, अंतरिक्ष यात्रियों की वापसी और बाह्य अंतरिक्ष में प्रक्षेपित वस्तुओं की वापसी पर समझौता।
- दायित्व अभिसमय (Liability Convention) 1972:
- यह मुख्य रूप से अंतरिक्ष वस्तुओं द्वारा अन्य अंतरिक्ष परिसंपत्तियों को होने वाली क्षति से संबंधित है, साथ ही यह पृथ्वी पर अंतरिक्ष वस्तुओं के गिरने से होने वाली क्षति पर भी लागू होता है।
- यह अभिसमय प्रक्षेपण करने वाले देश को पृथ्वी पर उसकी अंतरिक्ष वस्तु या वायु में उड़ान के कारण होने वाली किसी भी क्षति के लिये मुआवज़ा देने के लिये "पूरी तरह से उत्तरदायी (Absolutely Liable)" बनाता है। जिस देश में मलबा(Debris) गिरता है, वह उस वस्तु के गिरने से क्षतिग्रस्त होने पर मुआवज़े के लिये दावा कर सकता है।
- पंजीकरण अभिसमय (Registration Convention) 1976:
- बाह्य अंतरिक्ष में लॉन्च की गई वस्तुओं के पंजीकरण पर अभिसमय।
- द मून एग्रीमेंट (The Moon Agreement) 1979:
- चंद्रमा और अन्य खगोलीय पिंडों पर देशों की गतिविधियों को नियंत्रित करने वाला समझौता।
- भारत इन सभी पाँच संधियों का हस्ताक्षरकर्त्ता है, लेकिन उसने केवल चार का अनुसमर्थन किया है। भारत ने मून एग्रीमेंट की पुष्टि नहीं की है।
आगे की राह:
- अंतरिक्ष मलबे (Space Debris) को ट्रैक करने और निगरानी करने की क्षमता में सुधार से परिचालन उपग्रहों तथा मानव अंतरिक्ष मिशनों के लिये उत्पन्न जोखिम को कम करने में सहायता प्राप्त हो सकती है।
- एकल-उपयोग रॉकेटों के बजाय पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण वाहनों/रोकेटों का उपयोग करने से प्रक्षेपणों से उत्पन्न नए मलबे की संख्या को कम करने में सहायता प्राप्त हो सकती है।
- अधिक टिकाऊ सामग्रियों का उपयोग करने तथा अंततः डी-ऑर्बिटिंग के लिये उपग्रहों को डिज़ाइन करने से दीर्घावधि में उत्पन्न मलबे की संख्या को कम किया जा सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नQ. अंतर्राष्ट्रीय नागर विमानन नियम सभी देशों को अपने भू-भाग के ऊपर के आकाशी क्षेत्र (एयरस्पेस) पर पूर्ण और अनन्य प्रभुता प्रदान करते हैं। आप 'आकाशी क्षेत्र' से क्या समझते हैं? इस आकाशी क्षेत्र के ऊपर के आकाश के लिये इन नियमों के क्या निहितार्थ हैं? इससे प्रसूत चुनौतियों पर चर्चा कीजिये और खतरे को नियंत्रित करने के तरीके सुझाइये। (2014) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
नर्सिंग, प्रसूति विद्या और दंत चिकित्सा में सुधार के लिये स्वास्थ्य देखभाल विधेयक
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय नर्सिंग और प्रसूति विद्या आयोग (NNMC) विधेयक, राष्ट्रीय दंत चिकित्सा आयोग विधेयक मेन्स के लिये:अर्थव्यवस्था में स्वास्थ्य क्षेत्र का महत्त्व, नर्सिंग, प्रसूति विद्या और दंत चिकित्सा से संबंधित चुनौतियाँ, सरकारी पहलें |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में लोकसभा ने राष्ट्रीय नर्सिंग और प्रसूति विद्या आयोग (National Nursing and Midwifery Commission- NNMC) विधेयक , 2023 तथा राष्ट्रीय दंत चिकित्सा आयोग विधेयक, 2023 पारित किया।
- इन विधेयकों का उद्देश्य मौजूदा अधिनियमों को निरस्त कर विभिन्न चिकित्सा क्षेत्रों में स्वास्थ्य देखभाल की गुणवत्ता में सुधार लाना है।
राष्ट्रीय नर्सिंग और प्रसूति विद्या आयोग विधेयक, 2023:
- परिचय:
- NNMC विधेयक एक महत्त्वपूर्ण स्वास्थ्य देखभाल कानून है जिसका उद्देश्य भारत में नर्सिंग और प्रसूति विद्या के क्षेत्र में सुधार एवं विस्तार करना है।
- इसके तहत नर्सिंग और प्रसूति विद्या पेशेवरों के लिये एक नियामक निकाय के रूप में राष्ट्रीय नर्सिंग और प्रसूति विद्या आयोग की स्थापना करने का निर्णय लिया गया है।
- भारतीय नर्सिंग काउंसिल अधिनियम, 1947 काफी पुराना है और नर्सिंग तथा प्रसूति विद्या पेशे की वर्तमान ज़रूरतों एवं मांगों के अनुरूप नहीं है। इसलिये शिक्षा, प्रशिक्षण, अभ्यास एवं सेवा मानक के मामले में पिछले कुछ वर्षों में महत्त्वपूर्ण विकास को देखते हुए इसमें सुधार किया गया है।
मुख्य विशेषताएँ:
- राष्ट्रीय नर्सिंग और प्रसूति विद्या आयोग:
- संरचना:
- इसमें 29 सदस्य होंगे।
- नर्सिंग और प्रसूति विद्या में स्नातकोत्तर डिग्री और 20 वर्षों के अनुभव के साथ अध्यक्ष।
- स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग, सैन्य नर्सिंग सेवा तथा स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के पदेन सदस्य।
- नर्सिंग और प्रसूति विद्या पेशेवरों तथा धर्मार्थ संस्थानों के अन्य सदस्य।
- कार्य:
- नर्सिंग और प्रसूति विद्या हेतु शिक्षा के लिये नीतियाँ बनाना तथा मानकों को विनियमित करना।
- नर्सिंग और प्रसूति विद्या संस्थानों के लिये एक समान प्रवेश प्रक्रिया निर्धारित करना।
- नर्सिंग और प्रसूति विद्या संस्थानों को विनियमित करना।
- शिक्षण संस्थानों में संबद्ध संकाय के लिये मानक स्थापित करना।
- संरचना:
- स्वायत्त बोर्ड:
- नर्सिंग और प्रसूति विद्या स्नातक एवं स्नातकोत्तर शिक्षा बोर्ड: इसका कार्य स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर पर शिक्षा तथा परीक्षा को विनियमित करना है।
- नर्सिंग और प्रसूति विद्या मूल्यांकन और रेटिंग बोर्ड: यह नर्सिंग तथा प्रसूति विद्या संस्थानों के मूल्यांकन एवं रेटिंग के लिये रूपरेखा प्रदान करता है।
- नर्सिंग और प्रसूति विद्या नैतिकता एवं पंजीकरण बोर्ड: पेशेवर आचरण को विनियमित करना तथा पेशे में नैतिकता को बढ़ावा देना।
- राज्य नर्सिंग और प्रसूति विद्या आयोग:
- इसका गठन राज्य सरकारों द्वारा किया जाना है।
- इसमें स्वास्थ्य विभाग और नर्सिंग/प्रसूति विद्या कॉलेजों के प्रतिनिधियों सहित 10 सदस्य शामिल होंगे।
- इसके कार्यों में पेशेवर आचरण लागू करना, राज्य रजिस्टरों में डेटा दर्ज करना, विशेषज्ञता प्रमाण-पत्र जारी करना तथा कौशल-आधारित परीक्षा का आयोजन करना शामिल है।
- संस्थाओं की स्थापना:
- नए नर्सिंग और प्रसूति विद्या संस्थान स्थापित करने अथवा सीटें/स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम बढ़ाने के लिये मूल्यांकन एवं रेटिंग बोर्ड से अनुमति लेना आवश्यक है।
- अस्वीकृति के मामले में राष्ट्रीय आयोग और केंद्र सरकार के पास अपील दायर करने की सुविधा उपलब्ध है।
- एक पेशेवर के रूप में अभ्यास हेतु:
- नर्सिंग या प्रसूति कार्य के लिये व्यक्तियों को राष्ट्रीय अथवा राज्य रजिस्टर में नामांकित होना अनिवार्य है।
- अनुपालन न करने पर कारावास अथवा ज़ुर्माना हो सकता है।
- सलाहकार परिषद:
- यह नर्सिंग और प्रसूति विद्या शिक्षा, सेवाओं, प्रशिक्षण और अनुसंधान पर राष्ट्रीय आयोग को सलाह एवं सहायता प्रदान करता है।
- इसमें प्रत्येक राज्य और केंद्रशासित प्रदेश, आयुष मंत्रालय, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, राष्ट्रीय मूल्यांकन तथा प्रत्यायन परिषद, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद एवं नर्सिंग/प्रसूति विद्याके पेशेवर प्रतिनिधि शामिल हैं।
राष्ट्रीय दंत चिकित्सा आयोग विधेयक, 2023:
- परिचय:
- राष्ट्रीय दंत चिकित्सा आयोग विधेयक भारत में दंत चिकित्सा के विनियमन और सुधार पर केंद्रित है।
- मुख्य विशेषताएँ:
- दंत चिकित्सा के पेशे को विनियमित करने के लिये राष्ट्रीय दंत चिकित्सा आयोग (National Dental Commission- NDC) की स्थापना।
- दंत चिकित्सक अधिनियम, 1948 का निरस्तीकरण।
प्रमुख बिंदु:
- राष्ट्रीय दंत चिकित्सा आयोग :
- संरचना:
- इसका गठन केंद्र सरकार द्वारा 33 सदस्यों के साथ किया जाएगा और इसकी अध्यक्षता एक प्रतिष्ठित व अनुभवी दंत चिकित्सक द्वारा की जाएगी।
- इसके अध्यक्ष की नियुक्ति खोज-सह-चयन (Search-Cum- Selection) समिति की सिफारिश पर केंद्र सरकार द्वारा की जाती है, जिसकी अध्यक्षता कैबिनेट सचिव करता है।
- आयोग के पदेन सदस्यों में तीन स्वायत्त बोर्डों के अध्यक्ष, स्वास्थ्य सेवाओं के महानिदेशक, दंत चिकित्सा और शैक्षिक अनुसंधान केंद्र, एम्स के प्रमुख शामिल हैं।
- अंशकालिक सदस्यों में सरकारी संस्थानों के दंत चिकित्सा संकाय और राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों के प्रतिनिधि शामिल हैं।
- कार्य:
- दंत चिकित्सा शिक्षा, संस्थानों, अनुसंधान और बुनियादी ढाँचे को विनियमित करना, साथ ही राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा (NEET) के माध्यम से प्रवेश सुनिश्चित करना।
- संरचना:
- स्वायत्त बोर्ड:
- स्नातक और स्नातकोत्तर दंत चिकित्सा शिक्षा बोर्ड: इसका कार्य शिक्षा मानकों का निर्धारण, पाठ्यक्रम तैयार करना और दंत चिकित्सा संबंधी योग्यताओं को मान्यता देना है।
- दंत चिकित्सा मूल्यांकन और रेटिंग बोर्ड: यह दंत चिकित्सा संस्थानों के लिये अनुपालन मूल्यांकन प्रक्रिया निर्धारित करने, नए संस्थानों की स्थापना की अनुमति देने तथा निरीक्षण व रेटिंग का कार्य करता है।
- नैतिकता और दंत चिकित्सा पंजीकरण बोर्ड: यह दंत चिकित्सकों/दंत सहायकों के ऑनलाइन राष्ट्रीय रजिस्टरों के रख-रखाव, लाइसेंस निलंबन/रद्द करने और आचरण, नैतिकता तथा अभ्यास के दायरे के मानकों को विनियमित करने के लिये उत्तरदायी है।
- राज्य दंत चिकित्सा परिषद:
- इसकी स्थापना आगामी एक वर्ष के भीतर की जानी है, जो रजिस्टरों के रख-रखाव, शिकायतों के समाधान और प्रावधानों को लागू करने के लिये ज़िम्मेदार होगा।
- प्रवेश परीक्षा:
- बैचलर ऑफ डेंटल सर्जरी में प्रवेश के लिये NEET परीक्षा और लाइसेंसिंग तथा स्नातकोत्तर प्रवेश के लिये नेशनल एग्जिट टेस्ट (डेंटल) में उतीर्ण होना अनिवार्य है।
- नेशनल एग्जिट टेस्ट पास करने के बाद दंत चिकित्सा अभ्यास करने का लाइसेंस प्रदान किया जाता है, लेकिन अभ्यास शुरू करने से पहले राज्य/राष्ट्रीय रजिस्टर में पंजीकरण आवश्यक है।
- दंत चिकित्सा सलाहकार परिषद:
- इसका कार्य शिक्षा, प्रशिक्षण, अनुसंधान और दंत चिकित्सा शिक्षा तक समान पहुँच उपलब्ध कराने के संबंध में आयोग को सलाह देना है ।
- इस आयोग के पदेन सदस्य परिषद के पदेन सदस्य होते हैं।
स्रोत: द हिंदू
क्षेत्रीय संपर्क योजना के समक्ष चुनौतियाँ
प्रिलिम्स के लिये:क्षेत्रीय संपर्क योजना, UDAN योजना, क्षेत्रीय संपर्क योजना के सामने आने वाली चुनौतियाँ मेन्स के लिये:क्षेत्रीय संपर्क योजना के सामने आने वाली चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
इस योजना के तहत बनाए गए कई हवाई अड्डों का संचालन न होने के कारण नागरिक उड्डयन मंत्रालय की क्षेत्रीय संपर्क योजना (Regional Connectivity Scheme- RCS), उड़ान (UDAN) को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
- 74 हवाई अड्डों के निर्माण की मांग के बावजूद मई 2014 के बाद से केवल 11 ग्रीनफील्ड हवाई अड्डों का ही संचालन हो पाया है।
क्षेत्रीय संपर्क योजना:
- परिचय:
- क्षेत्रीय हवाई अड्डे के विकास तथा क्षेत्रीय संपर्क बढ़ाने के लिये नागरिक उड्डयन मंत्रालय द्वारा UDAN (उड़े देश का आम नागरिक/Ude Desh Ka Aam Nagarik) को लॉन्च किया गया था।
- यह राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन नीति (National Civil Aviation Policy), 2016 का हिस्सा है।
- यह योजना 10 वर्ष की अवधि के लिये लागू है।
- उद्देश्य:
- भारत के सुदूर क्षेत्रों और क्षेत्रीय हवाई संपर्क में सुधार करना।
- दूरस्थ क्षेत्रों का विकास और व्यापार एवं वाणिज्य तथा पर्यटन विस्तार को बढ़ाना।
- आम लोगों को सस्ती दरों पर हवाई यात्रा की सुविधा उपलब्ध कराना।
- विमानन क्षेत्र में रोज़गार सृजन।
- प्रमुख विशेषताएँ:
- इस योजना के तहत एयरलाइंस को कुल सीटों की 50% सीटों के लिये हवाई किराया 2,500 रुपए प्रति घंटे की उड़ान पर सीमित करना होगा।
- इस उद्देश्य को निम्नलिखित के आधार पर प्राप्त किया जाएगा:
- केंद्र एवं राज्य सरकारों और हवाई अड्डों के संचालकों की ओर से रियायतों के रूप में वित्तीय प्रोत्साहन के माध्यम से।
- व्यवहार्यता अंतराल अनुदान (Viability Gap Funding- VGF)- संचालन की लागत और अपेक्षित राजस्व के बीच अंतर को कम करने के लिये एयरलाइंस को प्रदान किये जाने वाले सरकारी अनुदान के माध्यम से।
- योजना के तहत व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये क्षेत्रीय कनेक्टिविटी अनुदान (Regional Connectivity Fund- RCF) प्रदान किया गया है।
- इस निवेश में सहभागी राज्य सरकारें (केंद्रशासित प्रदेश और NER राज्यों के अतिरिक्त जिनका योगदान 10% है) 20% की भागीदारी करेंगी।
उड़ान योजना के चरण:
- चरण 1 को वर्ष 2017 में लॉन्च किया गया, जिसका उद्देश्य देश में अनुपयोगी और असेवित हवाई अड्डे शुरू करना था।
- चरण 2 को वर्ष 2018 में लॉन्च किया गया, जिसका उद्देश्य देश के दूरस्थ और दुर्गम हिस्सों में हवाई संपर्क का विस्तार करना था।
- चरण 3 को नवंबर 2018 में लॉन्च किया गया, जिसमें देश के पहाड़ी और दूरदराज़ के क्षेत्रों में हवाई संपर्क बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया गया था।
- उड़ान योजना का चरण 4 दिसंबर 2019 में शुरू किया गया, जिसमें द्वीपों और देश के अन्य दूरस्थ क्षेत्रों को जोड़ने पर ध्यान केंद्रित किया गया था।
- चरण 5 को अप्रैल 2023 में लॉन्च किया गया, यह श्रेणी-2 (20-80 सीट) और श्रेणी-3 (>80 सीट) एयरक्राफ्ट पर केंद्रित है, इसमें यान की उड़ान के आरंभ और गंतव्य के बीच की दूरी पर कोई प्रतिबंध नहीं है।
RCS योजना की चुनौतियाँ:
- वाणिज्यिक व्यवहार्यता:
- योजना के तहत चिह्नित कई मार्ग एयरलाइंस के लिये व्यावसायिक रूप से अव्यवहार्य पाए गए हैं। कुछ मार्गों पर हवाई यात्रा की कम मांग के कारण उड़ान योजना के तहत प्रदान किये जाने वाले अनुदान के बावजूद एयरलाइंस के लिये लाभप्रद ढंग से कार्य करना मुश्किल है।
- RCS के तहत हवाई अड्डा विकास में कम उपयोग वाले हवाई अड्डों के पुनरुद्धार के लिये 479 मार्गों पर परिचालन करना शामिल था। हालाँकि इनमें से 225 मार्गों पर परिचालन बंद हो चुका है।
- ढाँचागत बाधाएँ:
- कुछ दूरदराज़ के क्षेत्रों में पर्याप्त हवाई अड्डों के बावजूद बुनियादी ढाँचे की कमी, एयरलाइंस के लिये चुनौतियाँ खड़ी करती हैं।
- कई हवाई अड्डों को सुरक्षा मानकों को पूरा करने और हवाई यातायात में हुई वृद्धि के उचित प्रबंधन के लिये उन्नयन तथा सुधार की आवश्यकता है।
- हवाई यात्रा पर सब्सिडी:
- RCS का लक्ष्य चयनित मार्गों पर परिचालन करने वाली एयरलाइंस को सब्सिडी और व्यवहार्यता अंतर निधि प्रदान करके हवाई यात्रा को किफायती बनाना है। हालाँकि इस योजना को समस्याओं का सामना करना पड़ा है क्योंकि सब्सिडी के बावजूद कुछ मार्ग व्यावसायिक रूप से अव्यवहार्य पाए गए।
- उच्च परिचालन लागत:
- दूरदराज़ के क्षेत्रों में परिचालन करने वाली एयरलाइंस को अक्सर उच्च परिचालन लागत का सामना करना पड़ता है, जिसमें ईंधन खर्च, रख-रखाव लागत और लॉजिस्टिक चुनौतियों में वृद्धि शामिल है, जो उनकी लाभप्रदता को प्रभावित कर सकती है।
- हवाई यात्रा किराए की सीमाएँ:
- RCS उड़ानों के लिये हवाई किराए की सीमा एयरलाइन्स की राजस्व क्षमता को प्रभावित कर सकती है, खासकर जब परिचालन लागत अधिक हो। यह एयरलाइंस को कुछ मार्गों पर परिचालन को लेकर हतोत्साहित कर सकता है।
- यात्री जागरूकता:
- उड़ान के तहत हवाई यात्रा विकल्पों की उपलब्धता के बारे में संभावित यात्रियों के बीच जागरूकता की कमी क्षेत्रीय हवाई सेवाओं की मांग और उपयोग को सीमित कर सकती है।
आगे की राह
- क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजना ने हवाई अड्डे के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, लेकिन वाणिज्यिक व्यवहार्यता और एयरलाइंस की स्थिरता से संबंधित चुनौतियों ने इसकी समग्र सफलता में बाधा उत्पन्न की है।
- जैसे-जैसे विमानन क्षेत्र का विकास जारी है, देश भर के छोटे शहरों और क्षेत्रों के लिये स्थायी हवाई कनेक्टिविटी प्राप्त करने हेतु इन मुद्दों को संबोधित करना आवश्यक होगा।
- इन चुनौतियों से निपटने के लिये सरकार, विमानन उद्योग के हितधारकों और स्थानीय अधिकारियों के सहयोगात्मक प्रयास की आवश्यकता है।
- हवाई अड्डे के बुनियादी ढाँचे का विस्तार, सब्सिडी वितरण को सुव्यवस्थित करना, परिचालन संबंधी बाधाओं को दूर करना और क्षेत्रीय हवाई यात्रा जागरूकता को बढ़ावा देना आवश्यक है जिन पर भारत की क्षेत्रीय संपर्क योजना उड़ान की सफलता तथा स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस 2023: भारतीय बाघ संरक्षण
प्रिलिम्स के लिये:अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस, प्रोजेक्ट टाइगर, 1973, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण, बाघ अभयारण्य मेन्स के लिये:बाघ संरक्षण का महत्त्व, संबंधित पहल |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस, 2023 पर प्रकाशित दो महत्त्वपूर्ण रिपोर्टों ने भारत में बाघ संरक्षण की स्थिति और इसके समक्ष आने वाली चुनौतियों की ओर ध्यान आकर्षित किया है।
- भारतीय वन्यजीव संस्थान और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण द्वारा प्रकाशित भारतीय बाघ अभयारण्य के प्रबंधन प्रभावशीलता मूल्यांकन (Management Effectiveness Evaluation- MEE), 2022 (पाँचवें चक्र) रिपोर्ट में भारतीय बाघ अभयारण्यों की प्रगति और चुनौतियों की संयुक्त तस्वीरें सामने आई हैं।
- दूसरी ओर, चीनी विज्ञान अकादमी और जंगली बिल्लियों के संरक्षण के लिये समर्पित एक वैश्विक संगठन पैंथेरा के एक अध्ययन से बांग्लादेश में बाघों की तस्करी और अवैध शिकार की गंभीर समस्या का पता चला है।
- भारत में जंगली बाघों की संख्या वर्ष 2006 में मात्र 1,400 थी, जो वर्ष 2022 में बढ़कर 3,167 हो गई है, इस संख्या को बनाए रखने के लिये देश की वन क्षमता के बारे में चर्चा शुरू हो गई है।
अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस 2023
- प्रत्येक वर्ष 29 जुलाई को धारीदार बिल्ली के संरक्षण को बढ़ावा देने के साथ-साथ उसके प्राकृतिक आवासों की रक्षा के लिये वैश्विक प्रणाली का समर्थन करने हेतु अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस (ITD) के रूप में मनाया जाता है।
- ITD की स्थापना वर्ष 2010 में रूस में आयोजित सेंट पीटर्सबर्ग टाइगर समिट में जंगली बाघों की संख्या में गिरावट के बारे में जागरूकता बढ़ाने, उन्हें विलुप्त होने से बचाने और बाघ संरक्षण के कार्य को प्रोत्साहित करने के लिये की गई थी।
MEE रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ:
- समग्र प्रबंधन के प्रदर्शन में सुधार:
- इस रिपोर्ट में 33 मापदंडों का उपयोग करके 51 बाघ अभयारण्यों का मूल्यांकन किया गया है।
- अधिकतम अंक के प्रतिशत के आधार पर परिणामों को चार समूहों में विभाजित किया गया था। 12 टाइगर रिज़र्वों ने 'उत्कृष्ट (Excellent)' श्रेणी (स्कोर >= 90%) प्राप्त किया, 21 ने 'बहुत अच्छा (Very Good)' (75-89%) स्कोर किया, 13 ने 'अच्छा (Good)' (60-74%) स्कोर किया तथा 5 को 'निष्पक्ष (Fair)' (50-59% स्कोरिंग) श्रेणियों के रूप में वर्गीकृत किया गया।
- बाघ अभयारण्यों में प्रबंधन प्रदर्शन के लिये औसत स्कोर 51 बाघ अभयारण्यों के लिये 78.01% (50% से 94% के बीच) का समग्र औसत स्कोर दर्शाता है।
- जलवायु कार्रवाई की सबसे कमज़ोर क्षेत्र के रूप पहचान:
- इस रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन और कार्बन कैप्चर प्रयासों को भारतीय बाघ अभयारण्यों के लिये सबसे कमज़ोर प्रदर्शन करने वाले क्षेत्र के रूप में पहचाना गया है, जिसे वर्तमान चक्र में 60% का सबसे कम स्कोर प्राप्त हुआ है।
- जलवायु परिवर्तन बाघ अभ्यारण्यों, विशेष रूप से सुंदरबन जैसे उच्च तीव्रता वाले जलवायु प्रभावों से प्रभावित क्षेत्रों, के लिये एक बड़ी चिंता का विषय है।
- संरक्षण प्रयासों में निधि प्रवाह की बाधा:
- केंद्र एवं राज्य सरकारों के साथ-साथ अन्य दानदाताओं से अपर्याप्त धनराशि, बाघ रिज़र्व प्रबंधन के लिये महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ उत्पन्न करती है।
- बाघ अभयारण्यों में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले पाँच क्षेत्रों में निधि प्रवाह रैंक (Fund Flow Rank) से संबंधित तीन पैरामीटर।
- बाघ संरक्षण के लिये वास्तविक फंड आवंटन (Actual Fund Allocation) वर्ष 2018-19 से कम हो गया है, वर्ष 2022-23 में इसमें वृद्धि हुई है लेकिन वास्तविक फंड रिलीज़ (Actual Fund Release) सीमित है।
- जटिल मांग तथा आपूर्ति प्रक्रियाओं ने निधि प्रवाह को और धीमा कर दिया है, जिससे संरक्षण प्रयासों में विलंब हो रहा है।
- वित्त की कमी बुनियादी ढाँचे के रखरखाव, गाँवों के पुनर्वास और मानव-वन्यजीव संघर्ष प्रबंधन को प्रभावित करती है।
- परिदृश्य एकीकरण और मानव-वन्यजीव संघर्ष में अनुकूलता:
- परिदृश्य एकीकरण और मानव-वन्यजीव संघर्षों का मुकाबला करने के लिये 85 प्रतिशत से अधिक अंक प्राप्त करने वाले बेहतर प्रदर्शन संकेतक पाए गए।
- शीर्ष तथा खराब प्रदर्शन करने वाले रिज़र्व:
- केरल में पेरियार टाइगर रिज़र्व लगभग 94% के MEE स्कोर के साथ सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शनकर्त्ता के रूप में सामने आया है, इसके बाद मध्य प्रदेश में सतपुड़ा और कर्नाटक में बांदीपुर हैं।
- पश्चिम बंगाल का सुंदरबन, जो कि मैंग्रोव वाला विश्व का एकमात्र बाघ रिज़र्व है, इसे 'बहुत अच्छी (Very Good)' श्रेणी के साथ 32वाँ स्थान प्राप्त हुआ।
- केवल 50% के साथ मिज़ोरम में डंपा को सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले बाघ अभयारण्य के रूप में पहचाना जाता है, इसके बाद छत्तीसगढ़ में इंद्रावती और असम में नामेरी का स्थान है।
- कुल मिलाकर 29 बाघ अभयारण्यों ने पिछले मूल्यांकन की तुलना में अपनी स्थिति में सुधार किया है, जबकि दो अभयारण्यों की स्थिति अभी भी वही बनी हुई है।
- MEE का महत्त्व:
- यह रिपोर्ट शीर्ष भारतीय वन्यजीव विशेषज्ञों को शामिल करते हुए एक विस्तृत विश्लेषण के आधार पर तैयार की गई है और संरक्षित क्षेत्रों पर अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ के विश्व आयोग की रूपरेखा का अनुसरण करती है।
- यह संरक्षण प्रयासों में अंतराल की पहचान करती है और बाघों के दीर्घकालिक अस्तित्व के लिये अधिक प्रभावी रणनीतियों को अपनाने में मदद करती है।
- यह रिपोर्ट शीर्ष भारतीय वन्यजीव विशेषज्ञों को शामिल करते हुए एक विस्तृत विश्लेषण के आधार पर तैयार की गई है और संरक्षित क्षेत्रों पर अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ के विश्व आयोग की रूपरेखा का अनुसरण करती है।
पैंथेरा द्वारा किये गए अनुसंधान की मुख्य विशेषताएँ:
- पैंथेरा द्वारा किये गए अध्ययन में बांग्लादेश को लुप्तप्राय बाघों के अवैध शिकार और तस्करी के लिये एक प्रमुख केंद्र के रूप में उजागर किया गया है।
- इसने देश और विदेश में बांग्लादेशी अभिजात वर्ग के बढ़ते वर्ग की पहचान की जो औषधीय, आध्यात्मिक तथा सजावटी उद्देश्यों के लिये बाघ के अंगों की मांग को बढ़ा रहा है।
- शोध से पता चला है कि बांग्लादेश से बाघ के अंगों की आपूर्ति भारत, चीन और मलेशिया सहित 15 देशों के साथ-साथ यूनाइटेड किंगडम, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया तथा जापान जैसे विकसित G-20 देशों को की जा रही थी।
- बांग्लादेश में बाघों के एक महत्त्वपूर्ण निवास स्थान सुंदरबन में बाघों के अवैध शिकार में शामिल समुद्री डाकू समूहों की घुसपैठ देखी गई, जिससे बाघों की आबादी में उल्लेखनीय गिरावट आई।
- अध्ययन में बाघों के अवैध शिकार के लिये चार स्रोत स्थलों की पहचान की गई, जिनमें भारत और बांग्लादेश में सुंदरबन, भारत में काज़ीरंगा-गर्मपानी (Garampani) पार्क, म्याँमार का उत्तरी वन परिसर और भारत में नामदफा-रॉयल मानस पार्क शामिल हैं।
- बाघों की तस्करी में शामिल व्यापारियों ने लॉजिस्टिक्स कंपनियों के मालिक होने और कानूनी वन्यजीव व्यापार के लिये लाइसेंस होने के कारण अवैध रूप से प्राप्त बाघ के अंगों को आसानी से छिपा दिया।
- शोध में बांग्लादेश सरकार द्वारा विशिष्ट खिलाड़ियों, व्यापार मार्गों और अवैध शिकार के मुद्दों को लक्षित करते हुए एक समस्या-उन्मुख दृष्टिकोण का सुझाव दिया गया
बाघ संरक्षण की भारत के वनों की क्षमता को लेकर चिंता:
- संरक्षित क्षेत्रों के बाहर विचरण: बाघों की लगभग 30% आबादी संरक्षित क्षेत्रों के बाहर विचरण करती है जिस कारण मानव बस्तियों में इनके घुस आने के मामले सामने आते रहते हैं, इससे मानव-बाघ संघर्ष होता है।
- बाघों की बढ़ती आबादी के साथ एक सवाल यह भी है कि क्या भारत के जंगल इन शीर्ष शिकारी पशुओं को सही वातावरण प्रदान करने की क्षमता के अनुरूप हैं।
- बाघ गलियारों का संकुचन: रेलवे लाइनों, राजमार्गों और नहरों जैसे बुनियादी ढाँचे के निर्माण के परिणामस्वरूप बाघ गलियारे संकुचित हो रहे हैं, जो कि दो बड़े वन क्षेत्रों को जोड़ने वाला प्रमुख मार्ग है।
- मानव-प्रधान क्षत्रों में प्रवेश: ऐसा माना जाता है कि बाघ शाकाहारी जीवों की तलाश में जंगलों को छोड़ तेज़ी से मानव-प्रधान क्षेत्रों की ओर बढ़ते हैं। यह व्यवहार लैंटाना जैसी आक्रामक प्रजातियों द्वारा प्राकृतिक वनस्पतियों के अधिग्रहण से प्रेरित है, जो प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित करता है तथा इन्हें मनुष्यों के निवास वाले क्षेत्रों में भोजन की तलाश करने के लिये बाध्य करता है।
- असमान जनसंख्या वितरण: भारत में 53 बाघ अभयारण्य हैं जो 75,000 वर्ग किमी. में फैले हुए हैं, केवल 20 अभयारण्य (एक-तिहाई क्षेत्र) बाघ संरक्षण के लिये हैं, यह असमान जनसंख्या वितरण को दर्शाता है।
आगे की राह:
- बाघ आवासों के बेहतर संरक्षण के लिये वन प्रबंधन प्रथाओं को सुदृढ़ किया जाना चाहिये।
- वन क्षेत्रों के बीच अप्रतिबंधित आवाजाही की सुविधा के लिये बाघ गलियारों को सुरक्षित और पुनर्स्थापित किया जाना चाहिये।
- मानव-वन्यजीव संघर्ष के प्रबंधन के लिये साक्ष्य-आधारित रणनीतियाँ लागू किये जाने की आवश्यकता है।
- इन संघर्षों को कम करने के लिये बाघ अभयारण्यों के आसपास गाँवों का पुनर्वास में तेज़ी लाना आवश्यक है।
- मानवाधिकारों और अन्य प्रजातियों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए संरक्षण के लिये एक समावेशी दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिये।
- मानव-प्रधान क्षेत्रों में बाघों की गतिविधियों और सामाजिक सहिष्णुता पर शोध करना।
- आवास संबंधी समस्या के समाधान के लिये स्थायी बुनियादी ढाँचे का विकास सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
- स्थानीय समुदाय को बाघों सहित संरक्षण परियोजनाओं का समर्थन जारी रखने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित बाघ आरक्षित क्षेत्रों में "क्रांतिक बाघ आवास (Critical Tiger Habitat)" के अंतर्गत सबसे बड़ा क्षेत्र किसके पास है? (2020) (a) कॉर्बेट उत्तर: (c)
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