डेली न्यूज़ (01 Sep, 2023)



इलेक्ट्रिफाइड फ्लेक्स फ्यूल व्हीकल

प्रिलिम्स के लिये:

इलेक्ट्रिफाइड फ्लेक्स फ्यूल व्हीकल, भारत स्टेज-6 (BS-6) स्टेज-II, भारत स्टेज उत्सर्जन मानक, इथेनॉल सम्मिश्रण

मेन्स के लिये:

फ्लेक्स फ्यूल व्हीकल का महत्त्व तथा उपयोग, विकास का हरित मॉडल

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में टोयोटा किर्लोस्कर मोटर द्वारा विकसित विश्व के पहले भारत स्टेज-6 (BS-6) स्टेज-II, इलेक्ट्रिफाइड फ्लेक्स फ्यूल व्हीकल अर्थात् विद्युतीकृत फ्लेक्स ईंधन वाहन के प्रोटोटाइप का अनावरण किया गया।

  • यह वाहन 85% इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल से चलने में सक्षम है और इसमें इलेक्ट्रिक पावरट्रेन की सुविधा है।
  • पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय (Ministry of Petroleum & Natural Gas) ने 20% से अधिक उच्च इथेनॉल मिश्रण के साथ पेट्रोल को प्रतिस्थापित करने के लिये फ्लेक्स-ईंधन वाहनों की क्षमता पर भी प्रकाश डाला है।

नोट:

फ्लेक्स-फ्यूल व्हीकल (FAV): इनमें ऐसे इंजन होते हैं जो फ्लेक्स ईंधन- पेट्रोल/ डीज़ल/ इलेक्ट्रिक और इथेनॉल का संयोजन, जिसमें 100% तक इथेनॉल शामिल हो सकता है, पर चल सकते हैं।

क्या होते हैं इलेक्ट्रिफाइड फ्लेक्स फ्यूल व्हीकल?

  • परिचय: 
    • एक इलेक्ट्रिफाइड फ्लेक्स फ्यूल व्हीकल/विद्युतीकृत फ्लेक्स ईंधन वाहन में एक फ्लेक्सी ईंधन इंजन और एक इलेक्ट्रिक पावरट्रेन दोनों होते हैं जो इसे उच्च इथेनॉल उपयोग और बहुत अधिक ईंधन दक्षता का दोहरा लाभ प्रदान करने की क्षमता प्रदान करता है।
    • फ्लेक्स फ्यूल स्ट्रॉन्ग हाइब्रिड इलेक्ट्रिक व्हीकल (FFV-SHEV): जब FFV को मज़बूत हाइब्रिड इलेक्ट्रिक तकनीक के साथ एकीकृत किया जाता है, तो इसे FFV-SHEV कहा जाता है।
      • स्ट्रॉन्ग हाइब्रिड पूर्ण हाइब्रिड वाहनों के लिये प्रयुक्त किया जाने वाला  एक अन्य शब्द है, जो पूरी तरह से इलेक्ट्रिक या पेट्रोल मोड पर चलने की क्षमता रखते हैं।
      • इसके विपरीत हल्के हाइब्रिड वाहन पूरी तरह से इनमें से किसी एक मोड पर नहीं चल सकते हैं और द्वितीयक मोड का उपयोग केवल प्रणोदन के मुख्य मोड के पूरक के रूप में करते हैं।
  • महत्त्व: 
    • इलेक्ट्रिक पॉवरट्रेन के एकीकरण से पारंपरिक ईंधन पर निर्भरता कम हो जाती है, जो ‘संवहनीय परिवहन’ तथा 'आत्मनिर्भर भारत' के तहत इथेनॉल का उत्पादन बढ़ाने जैसी पहलों में योगदान देगा।
    • SHEVs के समान ही यह वाहन इथेनॉल और विद्युत के उपयोग को अनुकूलित करके उच्च ईंधन दक्षता प्राप्त कर सकता है।
    • FFV के उपयोग को बढ़ावा देने से भारत की पेट्रोल की खपत कम हो सकती है और इस तरह देश में प्रचुर इथेनॉल क्षमता का लाभ उठाया सकता है।
    • यह वाहन जलवायु परिवर्तन से निपटने के वैश्विक प्रयासों के अनुरूप डीकार्बोनाइज़ेशन और ग्रीन मोबिलिटी की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण प्रगति का प्रतिनिधित्व करता है।

BS6 (स्टेज II) मानदंड क्या हैं?

  • BS6 मानदंड: भारत स्टेज (BS) मानदंड मोटर वाहनों से वायु प्रदूषकों के उत्पादन को विनियमित करने के लिये भारत सरकार द्वारा स्थापित उत्सर्जन मानक हैं।
  • BS6 (स्टेज II): शुरुआती BS6 मानदंडों की तुलना में BS6 (स्टेज II) की उत्सर्जन सीमाएँ अधिक सख्त हैं।
    • BS6 (स्टेज II) में वास्तविक ड्राइविंग उत्सर्जन (Real Driving Emissions- RDE) एवं कॉर्पोरेट औसत ईंधन अर्थव्यवस्था (Corporate Average Fuel Economy- CAFE 2) और ऑन-बोर्ड डायग्नोस्टिक्स शामिल हैं।
    • नए RDE परीक्षण के आँकड़े गति (Speed), त्वरण (Acceleration) और मंदन (Deceleration) में लगातार परिवर्तन के साथ वास्तविक यातायात स्थितियों में वाहनों द्वारा उत्पादित उत्सर्जन की मात्रा का अधिक यथार्थवादी अनुमान प्रदान करेंगे।
    • ऑनबोर्ड डायग्नोस्टिक (OBD) सिस्टम विभिन्न वाहन उपप्रणालियों और सेंसरों की स्थिति तथा प्रदर्शन की निगरानी करते हैं व इन्हें रिकॉर्ड करते हैं।

इथेनॉल सम्मिश्रण:

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न.भारत की जैव ईंधन की राष्ट्रीय नीति के अनुसार, जैव ईंधन के उत्पादन के लिये निम्नलिखित में से किनका उपयोग कच्चे माल के रूप में हो सकता है? (2020)

  1. कसावा
  2. क्षतिग्रस्त गेहूँ के दाने
  3. मूँगफली के बीज
  4. कुलथी (Horse gram)
  5. सदा आलू
  6. चुकंदर

नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2, 5 और 6
(b) केवल 1, 3, 4 और 6
(c) केवल 2, 3, 4 और 5
(d) 1, 2, 3, 4, 5 और 6

उत्तर: (a)


फ्लोरा फौना और ‘फंगा’

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र जैवविविधता, वनस्पति और जीव, कवक, स्पीशीज़ सर्वाइवल कमीशन (SSC), प्रकृति संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय संघ (IUCN)

मेन्स के लिये:

कवक और संरक्षण में उनका महत्त्व

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र जैवविविधता ने कवक के महत्त्व को उजागर करने के लिये विश्व स्तर पर लोगों से आग्रह किया है कि जब भी वे 'फ्लोरा और फौना (वनस्पति और जीव)' कहें तो शब्द ‘फंगा (कवक)’ का उपयोग करें।

संयुक्त राष्ट्र जैवविविधता द्वारा ‘फंगा’ शब्द के उपयोग का आग्रह:

  • संयुक्त राष्ट्र जैवविविधता के अनुसार, “अब कानूनी संरक्षण ढाँचे में वनस्पतियों और जीवों के साथ समान स्तर पर कवक की पहचान एवं उसे संरक्षित करने का समय आ गया है।”
  • यह पहली बार नहीं है जब फ्लोरा और फौना (वनस्पति और जीव) के साथ कवक को भी शामिल करने का अनुरोध किया गया है।
    • इससे पहले IUCN के स्पीशीज़ सर्वाइवल कमीशन (SSC) ने घोषणा की थी कि वह अपने आंतरिक और सार्वजानिक संचार में "माइकोलॉजिकली समावेशी" भाषा का उपयोग करेगा तथा संरक्षण रणनीतियों में दुर्लभ एवं लुप्तप्राय वनस्पतियों और जीवों के साथ कवक को शामिल करेगा।
  • कवक, यीस्ट, फफूँद और मशरूम के बिना पृथ्वी पर जीवन संभव नहीं है क्योंकि ये अपघटन और वन पुनर्जनन, स्तनधारियों के पाचन, कार्बन पृथक्करण, वैश्विक पोषक चक्र और एंटीबायोटिक दवा के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।

कवक:

  • विशेषताएँ: 
    • यूकैरियोट्स: वनस्पतियों, जीवों और प्रोटिस्ट की तरह कवक में जटिल झिल्लीबद्ध कोशिकांग तथा एक वास्तविक केंद्रक होता है।
    • हेटरोट्रॉफिक: कवक मुख्य रूप से डीकंपोज़र या सैप्रोफाइट्स होते हैं, जिसका अर्थ है कि वे अपने परिवेश से जैविक पदार्थों को अवशोषित करके पोषक तत्व प्राप्त करते हैं।
    • एंज़ाइमों का स्राव: कवक जटिल जैविक यौगिकों को सरल पदार्थों में तोड़ने के लिये एंज़ाइमों का स्राव करते हैं, जिन्हें वे अवशोषित कर सकते हैं।
  • लाभ:
    • पोषक तत्त्वों का आवर्तन:
      • कवक पोषक तत्त्वों को पौधों के लिये सुलभ बनाने हेतु परिवर्तित किया जा सकता है, यह कार्बनिक पदार्थों को तोड़कर डीकंपोज़र के रूप में कार्य करता है, जिससे पोषक तत्त्वों की साइक्लिंग और मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है।
    • कार्बन साइक्लिंग और जलवायु विनियमन:
      • कवक कार्बन चक्र में भाग लेकर मिट्टी के कार्बन भंडारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे कार्बनिक पदार्थों को विघटित करते हैं, मृत पौधों से कार्बन का चक्रण करते हैं और पौधों की जड़ों के साथ सहजीवी संबंध बनाते हैं।
      • माइकोरिजल कवक पौधों की जड़ों के साथ सहजीवी संबंध बनाते हैं, जिससे उन्हें पोषक तत्त्व ग्रहण करने में सहायता मिलती है।
    • भोजन के रूप में कवक:
      • इसके अनेक लाभकारी अनुप्रयोग हैं। उदाहरण के लिये यीस्ट का उपयोग बेकिंग और शराब बनाने में किया जाता है। कवक पेनिसिलिन जैसे एंटीबायोटिक्स भी उत्पन्न करते हैं।
      • कुछ कवक, जैसे- मशरूम और ट्रफल्स, खाने योग्य हैं तथा व्यंजनों में बेशकीमती हैं। अन्य जैसे- फफूँद (Molds) का उपयोग पनीर बनाने में किया जाता है।
    • पर्यावरण संरक्षण:
      • कवक को पर्यावरण से विभिन्न प्रदूषकों, जैसे- प्लास्टिक और अन्य पेट्रोलियम-आधारित उत्पादों, फार्मास्यूटिकल्स तथा व्यक्तिगत देखभाल उत्पादों एवं तेल को कम करने में सहायक पाया गया है।
  • कवक के हानिकारक प्रभाव:
    • मानव और पशु रोग:
      • कवक मनुष्यों और जानवरों में विभिन्न प्रकार की बीमारियों का कारण बन सकता है। जिसमें में एथलीट फुट (डर्माटोफाइट्स के कारण), दाद, हिस्टोप्लास्मोसिस तथा एस्परगिलोसिस शामिल हैं।
      • कुछ कवक मायकोटॉक्सिन नामक विषैले यौगिकों का उत्पादन करते हैं, जो भोजन को दूषित कर सकते हैं और उपभोग करने पर स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न कर सकते हैं।
    • फसल और पौधों के रोग:
      • कवक रोगजनक फसलों और पौधों को संक्रमित एवं नुकसान पहुँचा सकते हैं, जिससे कृषि में अत्यधिक आर्थिक नुकसान हो सकता है।
      • उदाहरणों में रतुआ (Rust), पाउडर फफूंँद (Powdery Mildew) और विभिन्न प्रकार के फंगल ब्लाइट (Fungal Blights) शामिल हैं।
    • एलर्जी प्रतिक्रिया:
      • विशेष रूप से उच्च आर्द्रता वाले इनडोर वातावरण में फंगल बीजाणुओं के संपर्क में आने से कुछ व्यक्तियों में एलर्जी और श्वसन संबंधी समस्याएँ हो सकती हैं।
      • एलर्जिक राइनाइटिस और एलर्जिक ब्रोंकोपुलमोनरी एस्परगिलोसिस जैसी स्थितियाँ फंगल एलर्जी से जुड़ी हैं।
    • वस्तुओं का जैव निम्नीकरण:
      • कवक, कपड़ा, चमड़ा तथा कागज़ जैसी वस्तुओं को नष्ट कर सकता है, यदि इन वस्तुओं को ठीक से संरक्षित या संग्रहीत नहीं किया जाता है तो यह नुकसानदेह हो सकता है।

आगे की राह

  • कवक संरक्षण को बढ़ावा देना: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कानूनी संरक्षण ढाँचे में कवक को शामिल करने की पहल करनी चाहिये। इसमें कवक-समृद्ध पारिस्थितिक तंत्र एवं आवासों की पहचान तथा रक्षा करना शामिल होगा।
    • अनुसंधान, आवास संरक्षण तथा बहाली प्रयासों के लिये विशेष रूप से फंगल संरक्षण परियोजनाओं के लिये पर्याप्त धन एवं अनुदान आवंटित किया जाना चाहिये।
  • अनुसंधान एवं शिक्षा:
    • कवक विविधता, वितरण तथा पारिस्थितिक भूमिकाओं का अध्ययन करने के लिये अनुसंधान हेतु निवेश किया जाना चाहिये। प्रभावी संरक्षण प्रयासों के लिये इनके बारे में जानकारी होना आवश्यक है।
    • पारिस्थितिकी तंत्र स्वास्थ्य, पोषक चक्र तथा जैवविविधता में कवक के महत्त्वपूर्ण योगदान के बारे में जनता, नीति निर्माताओं और संरक्षणवादियों को सूचित करने के लिये जागरूकता अभियान एवं  शैक्षिक कार्यक्रम प्रारंभ करना चाहिये।
  • माइकोलॉजिकल समावेशिता: सरकारी एजेंसियों, अनुसंधान संस्थानों तथा संरक्षण संस्थाओं को अपने संचार, नीतियों एवं रिपोर्टों में "माइकोलॉजिकली समावेशी" भाषा अपनाने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये।


CSIR PRIMA ET11 और सरलीकृत ट्रैक्टर परीक्षण प्रक्रिया

प्रिलिम्स के लिये:

ट्रैक्टर परीक्षण दिशा-निर्देश, व्यापार सुगमता, इलेक्ट्रिक ट्रैक्टर- CSIR PRIMA ET11

मेन्स के लिये:

सतत् कृषि और व्यापार सुगमता में इलेक्ट्रिक वाहनों का महत्त्व

स्रोत: पी.आई.बी. 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘सीएसआईआर-केंद्रीय यांत्रिक अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान’ (CSIR- Central Mechanical Engineering Research Institute or CSIR-CMERI) ने मुख्य रूप से भारत के छोटे और सीमांत किसानों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये CSIR PRIMA ET11 नाम से कॉम्पैक्ट 100% शुद्ध इलेक्ट्रिक ट्रैक्टर को स्वदेशी रूप से डिज़ाइन और विकसित किया है।

  • इसके अतिरिक्त व्यापार सुगमता को प्रोत्साहित करने और विश्वास-आधारित शासन को बढ़ावा देने की दिशा में एक बड़े कदम के तहत सरकार ने प्रदर्शन मूल्यांकन के लिये ट्रैक्टरों के परीक्षण की प्रक्रिया को सरल बना दिया है।

CSIR PRIMA ET11 की प्रमुख विशेषताएँ:

  • परिचय: CSIR PRIMA ET11, पूर्णतः इलेक्ट्रिक संचालित ट्रैक्टर है जिसकी शुरुआत धारणीय कृषि के लिये भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
    • संपूर्ण ट्रैक्टर को स्वदेशी घटकों तथा प्रौद्योगिकियों के साथ डिज़ाइन एवं निर्मित किया गया है साथ ही यह कृषि क्षेत्र की मांग को भी पूरा करेगा।
  • विशेषताएँ: विकसित तकनीक को महिलाओं की सुविधा एवं उपयोग में आसानी को ध्यान में रखते हुए उपयोगकर्ता के अनुकूल बनाया गया है।
    • इस ट्रैक्टर में V2L (vehicle to load) नामक एक पोर्ट लगा है, इसका मतलब है कि जब ट्रैक्टर संचालन में नहीं होता है तो इसकी बैटरी की शक्ति का उपयोग अन्य माध्यमिक अनुप्रयोगों जैसे- पंप और सिंचाई आदि के लिये किया जा सकता है।
  • महत्त्व: 
    • परंपरागत रूप से ट्रैक्टर में डीज़ल का उपयोग किया जाता है, जो पर्यावरण प्रदूषण में योगदान देता है ।
      • एक अनुमान के अनुसार, इसमें देश के कुल वार्षिक डीज़ल उपयोग का लगभग 7.4% और कुल कृषि ईंधन उपयोग के 60% का इस्तेमाल किया जाता है।
      • साथ ही उनका PM2.5 और NOx उत्सर्जन अगले दो दशकों में मौजूदा स्तर से 4-5 गुना बढ़ने की संभावना है।
    • वैश्विक कार्बन फुटप्रिंट कटौती रणनीति के लिये इस क्षेत्र में विद्युतीकरण की दिशा में तेज़ी से बदलाव करने की आवश्यकता है।
      • इसलिये ट्रैक्टरों का विद्युतीकरण एक आवश्यक कदम है जो देश को जलवायु संबंधी लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता करता है।

नोट: 

  • CSIR-CMERI पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर में स्थित एक प्रमुख अनुसंधान संस्थान है। इसकी स्थापना वर्ष 1958 में CSIR के तहत की गई थी।
  • CSIR-CMERI का विभिन्न रेंजों और क्षमताओं के ट्रैक्टरों के डिज़ाइन तथा विकास में एक लंबा इतिहास है, सबसे पहले वर्ष 1965 में स्वदेशी रूप से विकसित स्वराज ट्रैक्टर, उसके बाद वर्ष 2000 में 35hp सोनालिका ट्रैक्टर और फिर छोटे एवं सीमांत किसानों की मांग के लिये वर्ष 2009 में 12hp कृषिशक्ति छोटे डीज़ल ट्रैक्टर का विकास किया गया।

ट्रैक्टर परीक्षण की सरलीकृत प्रक्रिया:

  • ट्रैक्टर निर्माताओं को अब CMVR/उत्पादन की अनुरूपता (COP) प्रमाण पत्र और कंपनी द्वारा की जाने वाली स्व-घोषणा के आधार पर सब्सिडी योजना में भाग लेने की अनुमति दी जाएगी कि सब्सिडी के तहत शामिल करने के लिये प्रस्तावित ट्रैक्टर कृषि एवं किसान कल्याण विभाग द्वारा दिये गए बेंचमार्क विनिर्देशों के अनुरूप है।
  • निर्माताओं को सब्सिडी के तहत आपूर्ति किये जाने वाले ट्रैक्टर पर न्यूनतम तीन साल की वारंटी देनी होगी।
  • ट्रैक्टर परीक्षण प्रक्रिया में कुछ अनिवार्य परीक्षणों का पालन किया जाएगा, यानी, ड्रॉबार प्रदर्शन परीक्षण, PTO प्रदर्शन और हाइड्रोलिक प्रदर्शन परीक्षण एवं ब्रेक प्रदर्शन
    • ये सभी परीक्षण लोडेड कारों के उपयोग के माध्यम से केंद्रीय फार्म मशीनरी प्रशिक्षण और परीक्षण संस्थान (CFMTTI) या महिंद्रा रिसर्च वैली (MRV) या किसी अन्य सरकारी अधिकृत संस्थान या उनकी स्वयं की सुविधाओं पर किये जाएंगे।
  • ब्रेक परफॉर्मेंस टेस्ट केंद्रीय मोटर वाहन नियम (CMVR) के तहत आवश्यकता के अनुसार किया जाएगा।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-से भारत में वर्ष 1991 में आर्थिक नीतियों के उदारीकरण के पश्चात् घटित हुए? 

  1. GDP में कृषि का अंश वृहत् रूप से बढ़ गया। 
  2. विश्व व्यापार में भारत के निर्यात का योगदान बढ़ गया।
  3. FDI का अंतर्वाह बढ़ गया।
  4. भारत का विदेशी विनिमय भंडार वृहत् रूप से बढ़ गया। 

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 4
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • भारत में आर्थिक सुधार वर्ष 1991 और बाद के वर्षों में सरकार द्वारा शुरू की गई नव-उदारवादी नीतियों को संदर्भित करते हैं। इन सुधारों का केंद्र बिंदु देश की अर्थव्यवस्था का उदारीकरण था, प्रचलित नियमों को सरल बनाना एवं निजी क्षेत्र को अधिक महत्त्व देना था। वर्ष 1991 की नई औद्योगिक नीति नए आर्थिक सुधारों का केंद्र बिंदु है।
  • नए आर्थिक सुधारों की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं: 
    • औद्योगिक क्षेत्र को अनारक्षित करना।
    • औद्योगिक क्षेत्र में वि-लाइसेंसीकरण की योजना।
    • अर्थव्यवस्था को विदेशी प्रतिस्पर्द्धा के लिये खोलना- आर्थिक सुधारों ने विदेशी व्यापार व विदेशी निवेश में व्यापक उदारीकरण की शुरुआत की। आयात प्रतिस्थापन एवं आयात प्रतिबंध नीतियों को समाप्त किया गया तथा इसके बजाय आयात उदारीकरण और निर्यात प्रोत्साहन नीतियों को पेश किया गया। इससे भारत के निर्यात में वृद्धि हुई। अतः कथन 2 सही है। 
    • व्यापार एवं निवेश का उदारीकरण 
  • हालाँकि भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र के योगदान में धीरे-धीरे गिरावट आई। वर्ष 1991 में 29% की तुलना में वर्तमान में सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान 17% है जो इस क्षेत्र के घटते योगदान को दर्शाता है। अतः कथन 1 सही नहीं है। 
  • वर्ष 1991 से पहले विदेशी निवेश लगभग नगण्य था। निवेश के मुद्दे पर आर्थिक सुधार देश में पूंजी गतिशीलता के दौर को चिह्नित करते हैं। FDI (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) और FPI (विदेशी पोर्टफोलियो निवेश) के रूप में देश में विदेशी पूंजी के अंतर्वाह में वृद्धि हुई। अतः कथन 3 सही है। 
  • भारत में विदेशी मुद्रा भंडार की बुरी दशा उन कारकों में से एक थी, जिसने सरकार को वर्ष 1991 के आर्थिक सुधारों के लिये बाध्य किया। वर्तमान में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार वर्ष 1991 की तुलना में रिकॉर्ड उच्च दर पर है। अतः कथन 4 सही है।

मेन्स: 

प्रश्न. कृषि उत्पादन को बनाए रखने में एकीकृत कृषि प्रणाली (IFS) कहाँ तक सहायक है? (2019)


अफ्रीका की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में भारत की रुचि

स्रोत: पी.आई.बी. 

प्रिलिम्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA), नवीकरणीय ऊर्जा, सौर ऊर्जा

मेन्स के लिये:

अफ्रीका: नवीकरणीय ऊर्जा में एक संभावित वैश्विक नेता, भारत के लिये अफ्रीका का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance- ISA) ने रवांडा सरकार के सहयोग से किगाली, रवांडा में अपनी 5वीं क्षेत्रीय बैठक की मेज़बानी की। ISA ने युगांडा गणराज्य, कोमोरोस संघ और माली गणराज्य में नौ सौर ऊर्जा प्रदर्शन परियोजनाओं का उद्घाटन किया। इनमें से 4 परियोजनाएँ युगांडा में हैं तथा 2 कोमोरोस में एवं 3 माली में हैं।

  • बैठक के दौरान "सार्वभौमिक ऊर्जा पहुँच के लिये सौर ऊर्जा का रोडमैप" नामक एक रिपोर्ट का अनावरण किया गया।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:

  • रिपोर्ट सौर-संचालित समाधानों का उपयोग कर वैश्विक ऊर्जा पहुँच चुनौती से प्रभावी और आर्थिक रूप से निपटने के लिये एक रणनीतिक दृष्टिकोण की रूपरेखा तैयार करती है। इसमें केस स्टडीज़, वास्तविक जीवन के उदाहरण और नवीन नीतियाँ शामिल हैं जिनका उद्देश्य सौर मिनी-ग्रिड के कार्यान्वयन में परिवर्तनकारी बदलाव लाना है।
  • रिपोर्ट के निष्कर्ष अफ्रीका, विशेषकर उप-सहारा क्षेत्र और ग्रामीण क्षेत्रों के लिये महत्त्वपूर्ण प्रासंगिकता रखते हैं। यह सौर ऊर्जा पर केंद्रित विद्युतीकरण रणनीतियों की एक शृंखला की पहचान, विशेष रूप से सौर मिनी-ग्रिड और विकेंद्रीकृत नवीकरणीय ऊर्जा समाधानों पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
    • यह दृष्टिकोण विविध ऊर्जा पहुँच चुनौतियों का समाधान करने के लिये प्रभावी समाधान प्रदान करता है।
    • इन समाधानों को बढ़ावा देने से स्थानीय नवाचारों और व्यापार मॉडल के उद्भव को बढ़ावा मिल सकता है, जिससे देश के भीतर सौर ऊर्जा उत्पादन अपनाने को प्रोत्साहन मिलेगा।

नोट:

  • एक विकेंद्रीकृत ऊर्जा प्रणाली की विशेषता ऊर्जा उत्पादन सुविधाओं को ऊर्जा खपत के स्थल के करीब स्थित करना है।
    • यह नवीकरणीय ऊर्जा (RE) के साथ-साथ संयुक्त ऊष्मा और बिजली के अधिक-से-अधिक उपयोग की अनुमति देती है, जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम करती है और पर्यावरण-दक्षता को बढ़ाती है।

सौर ऊर्जा परियोजनाओं का महत्त्व:

  • ऐसे सौर परियोजना मॉडल का निर्माण करना जिनका सदस्य देशों द्वारा उपयोग किया जा सके:
  • इन परियोजनाओं का मुख्य उद्देश्य वंचित समुदायों के कल्याण को बढ़ाना है। परियोजनाएँ केवल ऊर्जा प्रदान करने तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि वे उन्नति के प्रेरक एवं वैश्विक सहयोग के प्रतीक के रूप में भी कार्य करती हैं।
  • सतत् ऊर्जा परिवर्तन के लिये सौर ऊर्जा को बढ़ावा देना:
  • ISA भारत के G20 प्रेसीडेंसी के साथ साझेदारी कर रहा है और सार्वभौमिक ऊर्जा पहुँच प्राप्त करने और एक स्थायी ऊर्जा संक्रमण सुनिश्चित करने के साधन के रूप में सौर ऊर्जा को बढ़ावा दे रहा है।
  • किफायती ऋण और तकनीकी विशेषज्ञता की कमी से निपटना:
  • इन परियोजनाओं के पीछे मुख्य विचार सदस्य देशों में व्यक्तियों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिये सौर प्रौद्योगिकी अनुप्रयोगों की पर्याप्त क्षमता को उजागर करना है।
  • ISA अपने सदस्य देशों में किफायती ऋण और तकनीकी विशेषज्ञता की गंभीर कमी को संबोधित करेगा, विशेष रूप से LDC और छोटे विकासशील द्वीपीय राज्यों (Small Island Developing States- SIDS) पर ध्यान केंद्रित करेगा।

वैश्विक RE संक्रमण में अफ्रीका की क्षमता: 

  • अफ्रीका वैश्विक स्तर पर नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन और नवाचार में एक प्रमुख शक्ति के रूप में उभरने की क्षमता रखता है।
  • विभिन्न बाधाओं का सामना करने के बावजूद यह महाद्वीप नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की एक समृद्ध शृंखला से संपन्न है, जिसमें पर्याप्त सौर क्षमता, पवन संसाधन, भू-तापीय क्षेत्र, जल ऊर्जा और हरित हाइड्रोजन जैसी संभावनाएँ शामिल हैं।
  • इसके अलावा अफ्रीका के पास विश्व के 40% से अधिक महत्त्वपूर्ण खनिज भंडार हैं जो नवीकरणीय और निम्न-कार्बन प्रौद्योगिकियों के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
  • इन संसाधनों का लाभ उठाने से अफ्रीका को न केवल अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने का अवसर मिलता है, बल्कि विश्व में RE उत्पादन और प्रगति में एक महत्त्वपूर्ण अभिकर्त्ता के रूप में स्वयं को स्थापित करने का भी अवसर मिलता है।
    • हालाँकि पूरे महाद्वीप में सौर ऊर्जा की क्षमता को पूरी तरह से अनलॉक करने के लिये सरकारों, निजी क्षेत्र की संस्थाओं और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के बीच सहयोग की आवश्यकता है।

भारत के लिये अफ्रीका का महत्त्व:

  • संभावित बाज़ार: इस दशक में सबसे तेज़ी से विकसित होते रवांडा, सेनेगल, तंज़ानिया आदि आधा दर्जन से अधिक देश अफ्रीका में हैं जो अफ्रीका को विश्व के विकास ध्रुवों में से एक बनाता है।
    • अफ्रीकी महाद्वीप की जनसंख्या एक अरब से अधिक है और संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद 2.5 ट्रिलियन डॉलर है जो इसे आर्थिक विकास, व्यापार विस्तार और रणनीतिक साझेदारी के व्यापक अवसरों के साथ  एक विशाल संभावित बाज़ार बनाता है।
  • संसाधन संपन्न: अफ्रीका एक संसाधन संपन्न देश है जहाँ कच्चे तेल, गैस, दालें, चमड़ा, सोना और अन्य धातुओं का विशाल भंडार है जिनकी भारत में पर्याप्त मात्रा में कमी है।
    • नामीबिया और नाइजर यूरेनियम के शीर्ष दस वैश्विक उत्पादकों में से हैं।
    • दक्षिण अफ्रीका विश्व में प्लैटिनम और क्रोमियम का सबसे बड़ा उत्पादक है।
    • भारत मध्य-पूर्व से दूर अपनी तेल आपूर्ति में विविधता लाने की कोशिश कर रहा है और अफ्रीका भारत के ऊर्जा मैट्रिक्स में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
  • हिंद महासागर की भू-राजनीति: पूर्वी अफ्रीकी देशों की भौगोलिक स्थिति, प्राकृतिक संसाधन, सुरक्षा संबंधी चिंताएँ और क्षेत्रीय संलग्नताएँ उन्हें सामूहिक रूप से हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) की वैश्विक भू-राजनीति में प्रमुख अभिनेताओं के रूप में स्थापित करती हैं, जिसका अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, सुरक्षा और कूटनीति पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। 
    • सोमालिया, केन्या, तंज़ानिया और मोज़ाम्बिक जैसे पूर्वी अफ्रीकी देश रणनीतिक रूप से अफ्रीका के पूर्वी तट पर स्थित हैं, जो हिंद महासागर की सीमा पर है।
    • यह स्थान इन देशों को IOR में महत्त्वपूर्ण समुद्री मार्गों और व्यापार मार्गों तक पहुँच प्रदान करता है, जिससे वे समुद्री सुरक्षा तथा वाणिज्य में महत्त्वपूर्ण अभिकर्त्ता बन जाते हैं।
  • व्यापार समझौता ज्ञापन: भारत ने हिंद महासागर रिम (IOR) पर सभी अफ्रीकी देशों के साथ समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किये हैं जो अफ्रीकी देशों के साथ बढ़ती रक्षा भागीदारी का प्रमाण है।
    • पैन अफ्रीकन ई-नेटवर्क प्रोजेक्ट (2009) के तहत भारत ने अफ्रीका के देशों को सैटेलाइट कनेक्टिविटी, टेली-मेडिसिन तथा टेली-एजुकेशन प्रदान करने के लिये एक फाइबर-ऑप्टिक नेटवर्क स्थापित किया है।
    • इसके बाद के चरण, ई-विद्याभारती और ई-आरोग्यभारती (e-VBAB), 2019 में प्रस्तुत किये गए जो अफ्रीकी छात्रों को निशुल्क टेली-शिक्षा प्रदान करने तथा स्वास्थ्य पेशेवरों के लिये निरंतर चिकित्सा शिक्षा प्रदान करने पर केंद्रित थे।

आगे की राह 

  • सौर/RE क्षमता के दोहन में भारत द्वारा अफ्रीका को सहायता:
    • तकनीकी तथा वित्तीय सहायता: भारत अफ्रीकी देशों को उनके RE बुनियादी ढाँचे को विकसित करने में तकनीकी विशेषज्ञता एवं वित्तीय सहायता प्रदान कर सकता है।
    • क्षमता निर्माण और सहयोग: भारत सहयोगी परियोजनाओं के माध्यम से अफ्रीकी देशों में विशिष्ट ऊर्जा चुनौतियों का समाधान कर प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को बढ़ावा देने वाले क्षमता निर्माण कार्यक्रमों तथा अनुसंधान साझेदारियों को सुविधाजनक बना सकता है।
  • भारत द्वारा अफ्रीका की RE क्षमता का लाभ उठाना:
    • निवेश के अवसर: भारत, स्थानीय आर्थिक विकास में योगदान करते हुए अफ्रीका की RE परियोजनाओं में निवेश के अवसर खोज सकता है।
    • नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकी का निर्यात: भारतीय कंपनियाँ, अफ्रीकी बाज़ारों में RE प्रौद्योगिकियों तथा उपकरणों का निर्यात कर सकती हैं। भारत की विनिर्माण क्षमताओं का लाभ उठाते हुए यह दोनों क्षेत्रों के लिये लाभकारी हो सकता है।
    • RE साझेदारी: भारत अफ्रीकी देशों के साथ क्षेत्रीय ऊर्जा साझेदारी की दिशा में काम कर सकता है जिससे सीमा पार ऊर्जा व्यापार को बढ़ावा मिलेगा। 
      • इसमें स्थिर तथा सतत् ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये RE को सीमाओं के पार कुशलतापूर्वक स्थानांतरित करने के लिये ऊर्जा गलियारों एवं ट्रांसमिशन अवसंरचना का विकास शामिल हो सकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)

  1. भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन (इंडिया-अफ्रीका समिट):
  2.  जो वर्ष 2015 में हुआ, तीसरा सम्मेलन था
  3.  की शुरुआत वास्तव में वर्ष 1951 में जवाहरलाल नेहरू द्वारा की गई थी

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (a)

व्याख्या:

  • भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन भारत और अफ्रीकी देशों के बीच संबंधों को फिर से शुरू करने का एक मंच है।
  • इसकी शुरुआत वर्ष 2008 में नई दिल्ली में हुई थी। तब से शिखर सम्मेलन प्रत्येक तीन वर्ष पर बारी-बारी से भारत और अफ्रीका में आयोजित किया जाता है। अतः कथन 2 सही नहीं है।
  • दूसरा शिखर सम्मेलन वर्ष 2011 में अदीस अबाबा में आयोजित किया गया था। तीसरा शिखर सम्मेलन वर्ष 2014 में होने वाला था लेकिन इबोला के प्रकोप के कारण स्थगित कर दिया गया था तथा बाद में अक्तूबर 2015 में नई दिल्ली में आयोजित हुआ था। अत: कथन 1 सही है।
  • अत: विकल्प (a) सही उत्तर है।

मेन्स:

प्रश्न. उभरते प्राकृतिक संसाधन समृद्ध अफ्रीका के आर्थिक क्षेत्र में भारत अपना क्या स्थान देखता है? (2014)

प्रश्न. अफ्रीका में भारत की बढ़ती रुचि के अपने सकारात्मक और नकारात्मक पक्ष हैं। समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (2015)