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जैव विविधता और पर्यावरण

हरित परिवहन के लिये भारत का संक्रमण

  • 21 Sep 2022
  • 17 min read

यह एडिटोरियल दिनांक 18/09/2022 को ‘हिंदू बिजनेस लाइन’ में प्रकाशित “Green Transport: Keep all options on the table” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में ‘हरित परिवहन’ की क्षमता का दोहन करने की आवश्यकता के बारे में चर्चा की गई है।

एक कुशल परिवहन क्षेत्र देश के आर्थिक विकास और इसके लोगों की भलाई के लिये महत्त्वपूर्ण है। परिवहन क्षेत्र वैश्विक ऊर्जा खपत में 30% तक की हिस्सेदारी रखता है। इसका ऊर्जा उपयोग वर्ष 2030 तक प्रत्येक वर्ष 1% की दर से बढ़ने का अनुमान है।

भारत में परिवहन क्षेत्र का व्यापक विकास हुआ है। यह विकास भौतिक प्रसार के साथ ही यात्रियों एवं माल ढुलाई दोनों की गतिशीलता मांगों की पूर्ति करने की क्षमता के मामले में हुआ है। हालाँकि इस प्रभावशाली विकास के बावजूद यह देखा गया है कि भारत में मौजूदा परिवहन अवसंरचना कवरेज, क्षमता के साथ-साथ सेवा की गुणवत्ता के मामले में बढ़ती गतिशीलता की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकने से अभी बहुत दूर है।

असंवहनीय परिवहन गतिविधियाँ वायु गुणवत्ता में गिरावट, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, वैश्विक जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरे और जीवों के पर्यावास की क्षति एवं विखंडन जैसे व्यापक नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न कर सकती हैं।

इसलिये भारत के परिवहन क्षेत्र के लिये भविष्य की राह के रूप में शहर, राज्य और राष्ट्रीय सभी स्तरों संवहनीय या हरित परिवहन पर अधिकाधिक ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।

हरित परिवहन क्या है?

  • हरित परिवहन (Green transport) या संवहनीय/सतत् परिवहन (Sustainable transport) परिवहन के उन साधनों को संदर्भित करता है जो पर्यावरण और पारिस्थितिक संतुलन के साथ ही मानव स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित नहीं करते हैं।
  • संवहनीयता के मूल्यांकन के घटकों में शामिल हैं:
    • वाहन (कार, बस, हवाई जहाज़, जहाज़ आदि)
    • ऊर्जा का स्रोत (पवन एवं सौर ऊर्जा, बिजली, बायोमास आदि)
    • अवसंरचना (सड़क, रेलवे, वायुमार्ग, जलमार्ग)

भारत में परिवहन अवसंरचना की वर्तमान स्थिति

  • सड़कें: सड़कें वर्तमान में भारत में परिवहन का प्रमुख साधन हैं। वे देश के लगभग 85% यात्री यातायात का वहन करते हैं।
    • सड़क परिवहन कच्चे माल को उद्योगों तक और तैयार माल को बाज़ार तक ले जाने में औद्योगिक क्षेत्र की मदद करता है।
  • बंदरगाह और नौवहन: भारत में 13 प्रमुख बंदरगाह हैं जो इसकी 7500 किमी से अधिक लंबी तटरेखा पर स्थित हैं। बंदरगाह तेज़ी से विकास कर रही भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी व्यापार क्षेत्र में सुधार लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हैं, जहाँ देश का मात्रा के हिसाब से 95% और मूल्य के हिसाब से 67% विदेशी व्यापार समुद्री मार्ग से ही संपन्न होता है।
  • रेलवे: भारतीय रेलवे देश की मुख्य धमनी है। इसे भारत की जीवन रेखा भी कहा जाता है जो माल ढुलाई और यात्री दोनों प्रकार की परिवहन सेवा प्रदान करती है।
    • भारतीय रेलवे नेटवर्क एकल प्रबंधन के तहत विश्व का चौथा और एशिया का दूसरा सबसे बड़ा रेलवे नेटवर्क है। यह भारत में सबसे बड़ा एकल नियोक्ता भी है।
  • नागरिक उड्डयन: भारत में नागरिक उड्डयन उद्योग देश में सबसे तेज़ी से बढ़ते उद्योगों में से एक के रूप में उभरा है। भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा घरेलू विमानन बाज़ार बन गया है और अनुमान है कि वर्ष 2024 तक यह यूनाइटेड किंगडम को पीछे छोड़कर तीसरा सबसे बड़ा हवाई यात्री बाज़ार बन जाएगा।

संवहनीय परिवहन विकास के संबंध में सरकार की प्रमुख पहलें:

भारत में परिवहन से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ

  • रेलवे से संबद्ध चुनौतियाँ:
    • रेल नेटवर्क का धीमा विस्तार: देश के आकार और बढ़ती अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं के दृष्टिकोण से रेलवे का विकास बेहद धीमा और अपर्याप्त रहा है।
    • भारत में पहाड़ी क्षेत्रों और पूर्वोत्तर राज्यों में रेलवे की उपस्थिति अभी भी बेहद कम है, जिससे इन क्षेत्रों में रेलवे तक पहुँच एक प्रमुख चिंता का विषय है।
    • उच्च माल ढुलाई लागत: भारत में रेलवे द्वारा माल ढुलाई लागत विश्व के अन्य देशों की तुलना में बहुत अधिक है, क्योंकि यात्री यातायात को सब्सिडी देने के लिये माल ढुलाई शुल्क को उच्च रखा गया है।
    • सामाजिक बनाम वाणिज्यिक उद्देश्य: निजी अनुबंध भारतीय रेलवे को व्यावसायीकरण की ओर ले जा रहे हैं। हालाँकि रेलवे के निजीकरण से अवसंरचना में सुधार होगा, जिससे यात्रा सुविधाओं में वृद्धि होगी।
    • लेकिन निजी खिलाड़ी लाभ कमाने पर अधिक केंद्रित होंगे जिसके परिणामस्वरूप कीमतों में वृद्धि होगी और इससे समाज के सभी वर्गों तक एकसमान पहुँच की स्थिति बदतर बनेगी। यह रेलवे के मूल सामाजिक उद्देश्य को ही कमज़ोर कर देगा।
  • सड़क परिवहन से संबद्ध चुनौतियाँ:
    • जल संकट में उत्प्रेरक भूमिका: असंवहनीय सड़क निर्माण और रखरखाव (अभेद्य सतहों के निर्माण सहित) अपवाह की तेज़ दर, निम्न भूजल पुनर्भरण दर और क्षरण में वृद्धि के कारण जल की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
    • ग्रामीण क्षेत्रों में बदतर पहुँच: ग्रामीण क्षेत्रों में भारत की लगभग 70% आबादी निवास करती है, फिर भी भारत के 33% गाँवों की सदाबहार सड़कों तक पहुँच नहीं है और वे मानसून के मौसम के दौरान शेष भारत से कटे रहते हैं।
    • यह समस्या भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में और भी विकट है जो देश के प्रमुख आर्थिक केंद्रों से पर्याप्त रूप से जुड़े हुए नहीं हैं।
    • सड़क दुर्घटनाओं में वृद्धि: भारत में दुनिया के 1% वाहन हैं, लेकिन यह विश्व में सभी सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों में 11% हिस्सेदारी रखता है।
  • सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के वर्ष 2020 की समीक्षा रिपोर्ट के अनुसार:
    • स्पीडिंग या तीव्र गति से वाहन चालन 69.3% मौतों के लिये ज़िम्मेदार है।
    • हेलमेट नहीं पहनने के कारण 30.1% मौतें हुईं।
    • सीटबेल्ट का प्रयोग न करने से 11.5% मौतें हुईं।
    • अपर्याप्त यातायात सुगमीकरण अवसंरचना: भारत के अत्यधिक भीड़भाड़ वाले शहरों में यातायात को सुगम या सुचारू करने के उपायों और इसके लिये आवश्यक जनशक्ति की कमी है। इस तथ्य के बावजूद कि 60% से अधिक सड़क दुर्घटनाएँ अधिक गति के कारण होती हैं, राज्य राजमार्गों और प्रमुख सड़कों पर गति सीमा संबंधी बोर्ड शायद ही कभी नज़र आते हैं।
  • हवाई परिवहन से संबद्ध चुनौतियाँ:
    • पहुँच और वहनीयता बाधाएँ: खराब क्षेत्रीय संपर्क, अपर्याप्त हैंगर स्पेस और हवाई अड्डे के विस्तार के लिये भूमि की कमी भारत के विमानन क्षेत्र की कुछ प्रमुख बाधाएँ हैं।
    • इसके अलावा, उच्च केंद्रीय और राज्य करों के कारण भारत में हवाई ईंधन आसियान और मध्य पूर्व के देशों की तुलना में लगभग 60% अधिक महँगा है।
    • यह नागरिक उड्डयन उद्योग की लाभप्रदता को वैश्विक तेल कीमतों में अस्थिरता के प्रति संवेदनशील बनाता है।
  • बंदरगाहों और नौवहन से संबद्ध चुनौतियाँ:
    • अक्षमता और उच्च टर्नअराउंड समय: अपर्याप्त बंदरगाह अवसंरचना और दीर्घ कस्टम क्लीयरेंस प्रक्रियाओं सहित विभिन्न बाधाओं के कारण भारत में बंदरगाह संचालन में अक्षमताएँ उत्पन्न होती हैं जो फिर उच्च ठहराव समय और उच्च टर्नअराउंड समय को अवसर देती है।
    • इसके अलावा, बदतर आंतरिक कनेक्टिविटी/संपर्क और अक्षम मोडल स्थानांतरण के कारण कार्गो की धीमी निकासी की समस्या उत्पन्न होती है।

अन्य चुनौतियाँ:

  • शहरी परिवहन प्रबंधन में अंतराल:
    • मुख्य रूप से तीव्र शहरीकरण के कारण सार्वजनिक परिवहन की मांग और आपूर्ति के बीच एक अंतराल मौजूद है।
    • भारतीय शहरों में वाहनों की बढ़ती संख्या को जलवायु परिवर्तन के उत्प्रेरक के रूप में देखा जाता है क्योंकि वे दहन ईंधनों पर उच्च निर्भरता रखते हैं।
  • जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता के कारण शहरी परिवहन कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन का दूसरा प्रमुख स्रोत है।
  • जैव विविधता के लिये खतरा:
    • परिवहन क्षेत्र को पर्यावास की क्षति और परिणामस्वरूप जैव विविधता में गिरावट के प्रमुख कारण के रूप में चिह्नित किया गया है।
    • सड़क, रेलवे, वायुमार्ग नेटवर्क के विस्तार से पर्यावास का विखंडन और क्षरण होता है।

आगे की राह

  • इंटेलिजेंट ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम (ITS):
    • उपयोगकर्ताओं को बेहतर ढंग से सूचित रखने और परिवहन नेटवर्क का सुरक्षित, अधिक समन्वित और 'स्मार्ट' उपयोग करने के लिये एक इंटेलिजेंट ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम की ओर आगे बढ़ने की आवश्यकता है।
    • उदाहरण: इंटेलिजेंट ट्रैफिक मैनेजमेंट, V2X कम्युनिकेशन, इलेक्ट्रॉनिक टोल कलेक्शन।
  • ‘हरित यात्रा आदतों’ के प्रति जागरूकता का प्रसार करना:
    • बढ़ती परिवहन समस्याओं के दुष्प्रभावों के बारे में लोगों को शिक्षित करने के लिये गहन जागरूकता अभियान शुरू करना आवश्यक है। इस क्रम ने गैर-मोटर चालित वाहनों के अधिक से अधिक उपयोग, अपने वाहनों का उचित रखरखाव करने, सुरक्षित ड्राइविंग अभ्यासों के प्रयोग आदि को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
    • इस तरह के अभियान व्यक्तियों, परिवारों और समुदायों को ‘हरित यात्रा आदतों’ (Green Travel Habits) को अपनाने के लिये प्रोत्साहित करेंगे जो परिवहन को कम प्रदूषणकारी और कम नुकसानदेह बनाएँगे।
  • परिवहन में प्रत्यास्थता, न्यायसम्यता और संवहनीयता (Resilience, Equity, and Sustainability in Transport- REST):
  • प्रत्यास्थता: सार्वजनिक परिवहन के डिजिटलीकरण के साथ ही अधिक बसों की खरीद, ई-बसों के प्रयोग, बस कॉरिडोर एवं बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम के निर्माण के साथ सार्वजनिक परिवहन के बारे में पुनर्विचार और भरोसे की पुनर्बहाली करने की आवश्यकता है।
  • न्यायसम्यता: पूर्वोत्तर क्षेत्र पर विशेष ध्यान देने के साथ अंतिम संपर्क सड़क और रेलवे कनेक्टिविटी को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
  • संवहनीयता: उत्सर्जन मानदंडों को सख्त किया जाना चाहिये और इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये; इसके साथ ही जीवाश्म ईंधन के स्थान पर जैव ईंधन के प्रयोग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
    • विद्युतीकरण को बढ़ावा देने के लिये कई इलेक्ट्रिक फ्रेट कॉरिडोर का विकास करना भी इलेक्ट्रिक वाहनों के लाभों को प्राप्त करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • हरित गतिशीलता में विनिर्माण केंद्र के रूप में उभरना:
    • उचित नीति समर्थन, उद्योग कार्रवाई, बाज़ार निर्माण, निवेशकों की बढ़ती रुचि एवं स्वीकृति के साथ भारत हरित गतिशीलता (Green Mobility) में कम लागत, शून्य-कार्बन विनिर्माण केंद्र के रूप में स्वयं को स्थापित करने के साथ ही आर्थिक विकास, रोज़गार सृजन और बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य के अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है।

अभ्यास प्रश्न: भारत के उल्लेखनीय अवसंरचनात्मक विकास के बावजूद भारत में परिवहन क्षेत्र अभी भी बढ़ती मांगों की पूर्ति कर सकने से मीलों दूर है। व्याख्या कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:  

प्रारंभिक परीक्षा

प्रश्न.  सार्वजनिक परिवहन में बसों के लिए ईंधन के रूप में हाइड्रोजन समृद्ध CNG (H-CNG) के उपयोग के प्रस्तावों के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेकेें : (2019)

  1. एच-सीएनजी के उपयोग का मुख्य लाभ कार्बन मोनोऑक्साइड उत्सर्जन का उन्मूलन है।
  2. ईंधन के रूप में एच-सीएनजी कार्बन डाइऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन उत्सर्जन को कम करता है।
  3. बस द्वारा ईंधन के रूप में सीएनजी के एक पाँचवे हिस्से तक हाइड्रोजन मिलाया जा सकता है।
  4. एच-सीएनजी ईंधन को CNG से कम महँगा बनाता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (b)


मेन्स

Q. राष्ट्रीय शहरी परिवहन नीति वाहनों को चलाने के बजाय लोगों को ले जाने पर जोर देती है। इस संबंध में सरकार की विभिन्न रणनीतियों की सफलता की आलोचनात्मक विवेचना कीजिये। (2014)

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