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कृषि

कृषि क्षेत्र एवं सौर वृक्ष

  • 14 Aug 2019
  • 18 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस आलेख में कृषि क्षेत्र से संबंधित विभिन्न समस्याओं तथा किसानों की आय दोगुनी करने के सरकार के लक्ष्य की चर्चा की गई है, साथ ही इस लक्ष्य की पूर्ति हेतु सौर वृक्ष की भूमिका का भी उल्लेख किया गया है तथा आवश्यकतानुसार यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ 

कृषि मंत्रालय के एक वक्तव्य के अनुसार, वर्तमान नीतियाँ वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को पूरा करने में कारगर साबित नहीं हो रही हैं। यह ध्यान देने योग्य है कि भारत को वर्ष 1993-94 से वर्ष 2015-16 के बीच 3.31 प्रतिशत की वार्षिक विकास दर से किसानों की आय दोगुनी करने में कुल 22 वर्षों का समय लगा था और यदि भारत सरकार वर्ष 2015-16 से वर्ष 2022-23 के बीच किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को प्राप्त करना चाहती है तो उसे किसानों की वास्तविक आय में 10.4 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर की आवश्यकता होगी। किंतु पिछले पाँच वर्षों में कृषि की विकास दर 2.9 प्रतिशत ही रही है। इस संदर्भ में बजट में अन्नदाता (किसान) को ऊर्जादाता (सौर ऊर्जा उत्पादक) में परिवर्तित करने के विचार को बल दिया गया है।

किसानों की आय दोगुनी करना 

  • वर्ष 2016 में अशोक दलवाई समिति द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर सरकार ने वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने करने का लक्ष्य रखा है।
  • समिति का विचार है कि वर्ष 2015-16 की आय को आधार मानकर यदि सात वर्षों तक लगातार इस क्षेत्र की वृद्धि दर 10.4 प्रतिशत से बढ़ती है तो वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी की जा सकती है।
  • भारत में कृषि क्षेत्र की आय में वृद्धि पिछले कई दशकों से 3-4 प्रतिशत रही है, ऐसे में वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करना एक महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य प्रतीत होता है।
  • अतः सौर ऊर्जा उत्पादन को किसानों के साथ संबद्ध करना, सरकार के वर्ष 2022 के लक्ष्य की पूर्ति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। 

अशोक दलवाई समिति 

  • 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने हेतु सरकार को सप्लाई-लेड उत्पादन प्रणाली की जगह डिमांड-लेड उत्पादन प्रणाली को अपनाते हुए कृषि पारिस्थितिकी तंत्र का कायापलट करना चाहिये।
  • किसानों की आय दोगुनी करने हेतु अपनाई गई रणनीति पर निगरानी रखने के लिये कृषि मंत्रालय को एक ‘सशक्त समिति’ (Empowered Committee) का गठन करना चाहिये।
  • इस रिपोर्ट ने यह भी सुझाया है कि उत्पादन प्रणाली का पुनर्गठन बाज़ार के नज़रिये से किया जाना चाहिये। इसमें गेहूँ और चावल जैसे साधारण अनाजों के उत्पादन की जगह पोषक तत्त्व युक्त अनाजों, डेयरी, पशुधन और मत्स्यपालन पर ज़ोर दिया गया है।
  • इस रिपोर्ट में कृषि में प्रयुक्त होने वाले जल के प्रबंधन पर अत्यधिक ज़ोर दिया गया है। प्रतिवर्ष 20-25 लाख हेक्टेयर भूमि को माइक्रो इरीगेशन के तहत लाया जाएगा और जलवायु आधारित कृषि को बढ़ावा दिया जाएगा।

क्या कृषि क्षेत्र में 5 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर संभव है? (चीन- केस स्टडी) 

चीन द्वारा 1978 में ऐसा किया गया था जब उसने अपने आर्थिक सुधारों की शुरुआत की थी। गौरतलब है कि चीन के आर्थिक सुधारों में कृषि सुधार एक प्राथमिक एजेंडा था। इस कार्य ने चीन में विनिर्माण क्रांति के लिये भी मंच तैयार किया, क्योंकि चीन के कृषि क्षेत्र में आई आय क्रांति (Income Revolution) के फलस्वरूप उत्पन्न हुई घरेलू मांग को पूरा करने के लिये ही वहाँ शहरी और ग्रामीण उद्यमों (Town and Village Enterprises-TVEs) की स्थापना की गई।


किसानों की आय वृद्धि में बाधा

  • हरित क्रांति (Green Revolution) के बाद से अब तक भारत में कोई भी बड़ा कृषि सुधार नहीं हुआ है और इस वजह से किसानों की आय बहुत कम है।
  • इसी के साथ वर्तमान भारतीय अर्थव्यवस्था में मंदी के संकेत स्पष्ट देखे जा सकते हैं, खासकर ऑटोमोबाइल सेक्टर जहाँ ट्रैक्टरों की बिक्री में 13 प्रतिशत, दुपहिया वाहनों की बिक्री में 16 प्रतिशत और कारों की बिक्री में भी 16 प्रतिशत की कमी देखने को मिली है।
  • इस मंदी का मुख्य कारण वस्तुओं की मांग (मुख्यतः ग्रामीण मांग) में कमी को बताया जा रहा है। जब आम जनता को उचित लाभ नहीं प्राप्त होता तो वह कुछ हद तक अपनी दैनिक मांग को भी कम कर देती है जिसके कारण उद्योग की रफ़्तार भी धीमी हो जाती है।

कृषि विकास की धीमी गति का कारण

  • कम उत्पादकता: वर्तमान में भारत की अधिकांश फसलों की उत्पादकता वैश्विक औसत स्तर से काफी कम है। इस तथ्य के प्रमुख कारणों में कम गुणवत्ता वाले बीजों का प्रयोग, कृषि क्षेत्र में उन्नत तकनीक की कमी और बेहतर कृषि पद्धतियों के बारे में ज्ञान की कमी आदि का उल्लेख किया जाता है। भारत में तक़रीबन 53 प्रतिशत कृषि क्षेत्र ऐसा है जहाँ पानी की आवश्यक मांग, पानी की पूर्ति या उपलब्धता से काफी अधिक है। इसके अलावा खाद्य पदार्थों की कीमतों को घटाकर मुद्रास्फ़ीति को नियंत्रित करना भी एक तरह से किसानों के ही विरुद्ध जाता है।
  • भारतीय कृषि क्षेत्र में कौशल की मांग और आपूर्ति में काफी अंतर है, जिसके कारण अधिकांशतः फसलों के विविधीकरण, सही कृषि को अपनाने और फसल उत्पादन के बाद मूल्य संवर्द्धन (Value Addition) में काफी बाधाएँ आती हैं।
  • कुछ नीतियाँ (जैसे APMC अधिनियम के प्रावधान) निजी क्षेत्र को सीधे खेतों से बंदरगाहों तक आपूर्ति श्रृंखला बनाने से रोकती हैं, जिसके कारण किसानों को मंडी प्रणाली पर निर्भर रहना पड़ता है।
  • इसके अतिरिक्त अनिवार्य वस्तु अधिनियम भी कृषि प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढाँचे में बड़े निवेश के लिये हानिकारक साबित हुआ है।

उपरोक्त कारक कृषि-निर्यात के लिये उपलब्ध कमज़ोर बुनियादी ढाँचे की ओर इशारा करते हैं और इनके कारण कृषि-निर्यात में लगातार गिरावट भी दर्ज की जा रही है।

कृषि-निर्यात में गिरावट

विगत 5 वर्षों में कृषि-निर्यात में नकारात्मक वृद्धि दर्ज की गई है। साथ ही कृषि निर्यात पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Prices-MSPs) ने भी नकारात्मक प्रभाव डाला है। उच्चतर MSP, विशेष रूप से वैश्विक कीमतों के संबंध में किसी भी अर्थव्यवस्था को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है। वैश्विक कीमतों से आगे जाने पर उच्च MSP की नीति अर्थव्यवस्था के लिये व्यर्थ साबित हो सकती है। इन सबका प्रत्यक्ष परिणाम यह है कि भारतीय किसानों को वैश्विक बाज़ारों का पूरा लाभ भी नहीं मिल रहा है।

क्या किया जाना चाहिये?

  • भारत में कृषि उत्पादकता को इस तरीके से बढ़ाने के प्रयास होने चाहिये ताकि प्रति इकाई लागत में कटौती हो सके और भारतीय कृषि को अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनाया जा सके। इसके प्रभाव से निर्यात को बढ़ावा दिया जा सकेगा।
  • राज्यों को मॉडल कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग अधिनियम, 2018 और मॉडल एग्रीकल्चर लैंड लीज़िंग एक्ट, 2016 को अपनाने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
  • किसान उत्पादक संगठनों को बढ़ावा देना चाहिये।
  • कृषि क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास में निवेश करने तथा अनुसंधान का उपयोग प्रयोगशाला से खेतों तक करके कृषि क्षेत्र में वैश्विक प्रतियोगिता को बढ़ावा दिया जा सकता है।
  • इसके अलावा कुशल जल प्रबंधन और कृषि-निर्यात के बुनियादी ढाँचे पर निवेश किया जाना भी आवश्यक है।
  • भारत कृषि क्षेत्र में R&D पर अपनी कृषि-GDP का लगभग 0.7 प्रतिशत हिस्सा खर्च करता है और यदि भारत को अपने निर्धारित लक्ष्य (किसानों की आय दोगुना करना) की प्राप्ति करनी है तो उसे इस खर्च को अगले पाँच वर्षों में दोगुना करना होगा। इसके लिये अनिवार्य वस्तु अधिनियम में संशोधन किया जा सकता है ताकि किसानों और उपभोक्ताओं के हितों के मध्य संतुलन स्थापित किया जा सके।
  • सभी हितधारकों के साथ विचार-विमर्श करते हुए भारत सरकार को एक स्पष्ट और स्थिर कृषि निर्यात नीति का निर्माण करना चाहिये।
  • भारत को कृषि क्षेत्र से जुड़े लोगों को अन्य क्षेत्रों में कार्य करने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये और इसी के साथ देश के अन्य क्षेत्रों जैसे- विनिर्माण, सेवाओं एवं निर्यात आदि के विकास पर भी ज़ोर देना चाहिये। वर्ष 2022-23 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये उत्तरजीविता हेतु की जाने वाली कृषि को कृषि व्यवसाय में परिवर्तित करने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।

कुसुम योजना (किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान)

किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (कुसुम/KUSUM) नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय की एक योजना है। यह योजना निम्नलिखित प्रावधान करती है:

  • ग्रामीण क्षेत्रों में ग्रिड से जुड़े सौर ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना जिनमें से प्रत्येक की क्षमता लगभग 2 मेगावाट हो।
  • ऐसे किसान जो ग्रिड से नहीं जुड़े हैं, उनकी सिंचाई संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने के लिये एकल ऑफ-ग्रिड सौर जल पंपों की स्थापना।
  • ग्रिड से जुड़े 10 लाख सौर ऊर्जा चालित कृषि पंपों का सौरीकरण (Solarisation) ताकि किसान ग्रिड द्वारा की जाने वाली आपूर्ति से मुक्त हो सकें तथा ग्रिड से प्राप्त अधिशेष को वितरण कंपनियों (DISCOMs) को बेचकर अतिरिक्त आय प्राप्त करने में सक्षम हो सकें।

सौर ऊर्जा तथा कृषि 

  • भारत के समक्ष अपने आर्थिक संवृद्धि को तीव्र करने तथा ऊर्जा संकट से निपटने की चुनौती है, इस चुनौती से निपटने में पर्यावरणीय उत्तरदायित्त्व का ध्यान रखना भी आवश्यक है। भारत ने नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में वृद्धि के लिये अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) की स्थापना की है तथा वर्ष 2022 तक 100 गीगावाट सौर ऊर्जा के उत्पादन का भी लक्ष्य रखा है। इस परिप्रेक्ष्य में केंद्र सरकार ने सौर ऊर्जा संवर्द्धन के लिये कुसुम स्कीम को लॉन्च किया है।

सौर वृक्ष (Solar Tree)

सौर ऊर्जा नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन का एक अच्छा माध्यम है। किंतु बड़े स्तर पर सौर पैनल स्थापित करने के लिये भूमि की अनुपलब्धता एक सबसे बड़ी बाधा होती है। सौर वृक्ष उपर्युक्त समस्या को सुलझाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। सौर वृक्ष सामान्य वृक्ष जैसे ही होते हैं जिसमें पत्तियों के रूप में सौर पैनल लगे होते हैं तथा इसकी शाखाएँ धातु की बनी होती हैं। सौर वृक्ष सामान्य सौर ऊर्जा संयंत्रों के सापेक्ष 100 गुना कम स्थान लेते हैं किंतु इन संयंत्रों से उत्पादित मात्रा के समान ही ऊर्जा का उत्पादन करते हैं। उदाहरण के लिये पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर में केंद्रीय यांत्रिक अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (CMERI) ने सौर वृक्ष का निर्माण किया है, यह सौर वृक्ष 4 वर्ग फीट स्थान घेरता है तथा 3 किलोवाट ऊर्जा का उत्पादन करता है। इस प्रकार के सौर वृक्ष ऑफ ग्रिड क्षेत्रों में भी स्थापित किये जा सकते हैं।

अन्नदाता से ऊर्जादाता

किसानों को अपनी भूमि पर सौर वृक्षों को स्थापित करने के लिये प्रोत्साहित करने से दोहरे लाभ की पूर्ति की जा सकती है। सौर वृक्षों की ऊँचाई 10-12 फीट के करीब होती है, इससे खेतों में फसलों को पर्याप्त सौर प्रकाश की प्राप्ति होती रहेगी जिससे पौधों को प्रकाश संश्लेषण में बाधा उत्पन्न नहीं होगी, साथ ही पौधों की उत्पादकता भी नकारात्मक रूप से प्रभावित नहीं होगी तथा किसान दो फसलों को उगा सकते हैं। सौर वृक्षों से बड़ी मात्रा में अतिरिक्त ऊर्जा का उत्पादन होगा और इस उत्पादन को राज्य सरकारों द्वारा खरीद लिया जाएगा, इससे किसानों को अतिरिक्त आय की प्राप्ति हो सकेगी। ध्यातव्य है कि एक एकड़ भूमि में 500 सौर वृक्षों को स्थापित किया जा सकता है। इस प्रकार के सौर वृक्ष जापान, चीन एवं जर्मनी जैसे कई देशों में लगाए गए हैं। किंतु इस प्रकार के सौर वृक्षों को स्थापित करने में आवश्यक पूंजी का अभाव एक बड़ी चुनौती होगी। सौर वृक्षों की स्थापना के लिये निजी क्षेत्र को निवेश हेतु आमंत्रित किया जा सकता है। निजी क्षेत्र किसानों के साथ मिलकर इस प्रकार के वृक्षों की स्थापना कर सकते हैं। इससे किसानों के साथ-साथ निजी क्षेत्र को भी लाभ प्राप्त होगा। इस प्रकार सुगमता पूर्वक किसानों की आय दोगुनी की जा सकती है।

निष्कर्ष

सरकार का लक्ष्य वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करना है लेकिन वर्तमान कृषि क्षेत्र की गति को ध्यान में रखते हुए इस लक्ष्य की प्राप्ति संभव नहीं है। कृषि क्षेत्र में सुधार हेतु गठित अशोक दलवाई समिति ने किसानों की आय दोगुनी करने के लिये विभिन्न सिफारिशें दी हैं जिसे धीरे-धीरे लागू करके इस लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। फिर भी यदि तेज़ी से किसानों को आर्थिक लाभ उपलब्ध करना है तो उसके लिये सौर वृक्ष एक उचित उपाय हो सकता है। सरकार को सौर वृक्ष स्थापित करने के लिये एक रोड मैप तैयार करना होगा जिससे इस योजना को लागू किया जा सके, साथ ही किसानों के हितों की भी रक्षा हो सके।

प्रश्न: कृषि क्षेत्र कई दशकों से संकट का सामना कर रहा है, इस क्षेत्र की स्थिति में सुधार हेतु सरकार ने वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य तय किया है। इस लक्ष्य की प्राप्ति में सौर वृक्ष की भूमिका की चर्चा कीजिये। 

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